सामुद्रिक शास्त्र


        जातक, रमल, केरलीय प्रश्न आदि अंगों की तरह सामुद्रिक शास्त्र भी ज्योतिषशास्त्र का एक अंग है। है। कतिपय आचार्यों का कथन है कि भगवान विष्णु ने सामुद्रिक नामक ब्राह्मण का अवतार लेकर जो फल कथन किया है उसे सामुद्रिक शास्त्र कहा गया है। कुछ अन्य लोगों का मत है कि समुद्र में शयन करने वाले भगवान विष्णु और लक्ष्मी के सौन्दर्य तथा शुभ लक्षणों को देखकर समुद्रदेव ने ही इस शास्त्र का निर्माण किया है -
                            पुरुषोत्तमस्य लक्ष्म्या समं निजोत्सङ्गमधिशयानस्य।
                             शुभलक्षणानि दृष्ट्वा क्षणं समुद्र: पुरा दध्यौ।।  (सामुद्रिकशास्त्र, १।३)
     अन्य आचार्यों का मत है कि समस्त शास्त्र भगवान शिव से उत्पन्न हैं और शिव ही त्रिभुवन गुरु हैं। अत: शंकर जी ने प्राणियों के शुभाशुभ लक्षणों का जो वर्णन पार्वती जी से किया था वही विषय सामुद्रिक शास्त्र के नाम से जाना गया है। वस्तुत: समुद्र अगाध है तथा प्राणियों के चिह्न (लक्षण) भी अगाध असंख्य हैं अत: जिस शास्त्र के द्वारा असंख्य लक्षणों का वर्णन प्राप्त होता है उस अंश को सामुद्रिक नाम दिया गया है। प्राणियों की आकृति, चिह्न, तिल, मशक आदि, हस्तरेखा, मस्तिष्क रेखा, पाद रेखा तथा अंग-प्रत्यंग का विवेच्य ही सामुद्रिक शास्त्र के नाम से जाना जाता है।
`यत्राकृतिस्तत्रगुणा: वसन्ति' अर्थात् जहाँ सुन्दर आकृति होती है वहीं गुणों का वास होता है। सुदर्शन पुरुष या स्त्री में सुन्दर गुण अवश्य रहते हैं यह लोक में देखा जाता है। आचार्य वराहमिहिर का कथन है कि उन्मान अङ्गुलात्मक ऊँचाई, मान (भारीपन), गति (गमन), संहति (घनता), सार, वर्ण, स्नेह (स्निग्धता), स्वर (शब्द), प्रकृति, सत्व, अनूक (जन्मान्तर गमन), क्षेत्र तथा मृजा (शरीरच्छाया) इनको अच्छी तरह जानने वाला (सामुद्रिक शास्त्र ज्ञाता) प्राणियों के शुभाशुभ फल कह सकता है -
                उन्मानमानगतिसंहतिसारवर्णस्नेहस्वरप्रकृतिसत्वमनूकमादौ ।
                क्षेत्रं मृजा च विधिवत् कुशलोऽवलोक्य सामुद्रविद्वदति यातमनागतं वा ।। बृहत्संहिता, पुरुषलक्षणाध्याय,
      संहिता ग्रन्थों में कहीं-कहीं प्रसंगवश पुरुष एवं स्त्रियों के लक्षण देर्विष नारद, वराहमिहिर, माणडव्य ऋषि तथा स्वामी र्काितकेय आदि ने कहा है जिसका उल्लेख सामुद्रिक शास्त्र में प्राप्त होता है। यहाँ वराहमिहिर, नारद, पाराशर तथा सामुद्रिक शास्त्र के आधार पर उन लक्षणों के फलों पर विचार किया जा रहा है।
पैर का लक्षण एवं फल - पसीने से रहित, कोमल तल वाले, कमलोदर के समान, परस्पर सटी हुई अंगुलियों से युक्त, ताम्रवर्ण के सुन्दर नखवाले, सुन्दर एड़ियों से युत, गरम, शिराओं से रहित, छिपी हुई पांव के गांठी वाले तथा कछुवे के पृष्ठ के समान पैर राजा का होता है। अर्थात् इन लक्षणों से युक्त जिनके पैर होते हैं वे राजा या राजा के सदृश होते हैं। जैसा कि सामुद्रिक शास्त्र का भी मत है।
       शूर्पाकार, खुरदुरा, पाण्डुर नखवाला तथा वक्र नाड़ियों से युत, सूखे और विरल अंगुलियों वाले पैर दरिद्रता और दु:ख देते हैं। मध्य में उन्नत तथा पाण्डुर वर्ण के पांव सदैव यात्रा करने वाले व्यक्ति के होते हैं। कषाय (कृष्ण लोहित) पांव वंश नाश के सूचक है। जिसके पांव की कान्ति अग्नि में पकी हुई मिट्टी के समान हो वह ब्रह्मघाती होता है। यदि पांव का तल पीला हो तो व्यक्ति अगम्या स्त्री में रत होता है।
       जंघा का लक्षण एवं फल - विरल तथा सूक्ष्म रोमों से युत हाथी के सूँड़ के समान ऊरु वाले तथा पुष्ट एवं समान जानु वाले मनुष्य राजा या राजा के तुल्य होते हैं। कुत्ते या सियार के सदृश जंघा वाले मनुष्य धनहीन होते हैं। राजाओं की जंघाओं की रोमकूपों में एक-एक रोम, पण्डित एवं श्रोत्रिय के जंघाओं के रोमकूपों में दो-दो रोम तथा निर्धन एवं दु:खी जनों के जंघाओं के रोमकूपों में तीन या चार रोम होते हैं। मांसरहित जानु वाला मनुष्य प्रवास में मरता है। छोटे जानु वाला मनुष्य भाग्यशाली, अति विस्तीर्ण जानु वाला दरिद्र, नीचे जानुवाला स्त्रीजित, मांसयुत जानुवाला राज्यभोगी तथा बड़े जानुवाला मनुष्य दीर्घजीवी होता है।
वृषण लक्षण -  एक अण्डवाला मनुष्य पानी में डूबकर मरता है तथा विषम (छोटे-बड़े) अण्डवाला मनुष्य स्त्री लम्पट, समान अण्डवाला राजा, ऊपर को खिंचे अण्डवाला अल्पायु तथा लम्बे अण्डवाला मनुष्य सौ वर्ष पर्यन्त जीता है। यथा -
                   जलमृत्युरेक वृषणो विषमै: स्त्रीचञ्चल: समै: क्षितिप:।
                   ह्रस्वायुश्चौद्वद्धै: प्रलम्बवृषणस्य शतमायु: ।। (बृहत्संहिता, ६८।९)
कटि और उदर का लक्षण - सिंह के समान कटि वाला राजा, ऊंट के समान कटिवाला निर्धन, समान उदर वाला भोगी तथा घड़े के समान उदर वाला निर्धन होता है। सामुद्रिक शास्त्र में ऊंट के साथ-साथ कुत्ता, शृगाल तथा गधे के सदृश कटिवाला निर्धन होता है। यथा -
                           सिंहतुल्या कटिर्यस्य स नरेन्द्रो न संशय:।
                           श्वशृगालखरोष्ट्राणां तुल्या यस्य स निर्धन:।।
                           समोदरा भोगयुता विषमा निर्धना: स्मृता:।। - बृहत्संहिता, ६८।१८
नाभि का लक्षण एवं फल - गोल, ऊँची और विस्तीर्ण नाभिवाला मनुष्य सुखी होता है। छोटी, अदृश्य एवं अनिम्न नाभि दु:खदायक है। पेट के वलि के मध्य में स्थित और विषम नाभि शूली पर चढ़ाती है तथा निर्धन बनाती है। वामावर्त नाभि शठ और दक्षिणावर्त नाभि तत्त्वज्ञानी बनाती है। दोनों पाश्र्व में आयत नाभि दीर्घायु, ऊपर की ओर आयत नाभि ऐश्वर्य, नीचे की ओर आयत नाभि गायों-पशुओं से युक्त तथा कमल कोर की तरह नाभि राजा बनाती है।
पेट के वलियों का लक्षण और फल -  एक वलि (उदर की रेखा) वाले मनुष्य का शस्त्र से मरण, दो वलि वाले मनुष्य बहुत स्त्रियों को भोगने वाले, तीन वलि वाले उपदेशक, चार वलि वाले बहुत पुत्रों से युक्त और वलिरहित उदर वाले राजा या तत्सदृश होते हैं। विषम (छोटी-बड़ी) वलि वाले अगम्या स्त्री में गमन करने वाले तथा सीधी वलि वाले मनुष्य सुखी तथा परस्त्री से विमुख होते हैं।
हृदय का लक्षण एवं फल - राजाओं का हृदय ऊंचा, विस्तीर्ण एवं कम्प से रहित होता है। निर्धनों का हृदय विपरीत लक्षणों (नीचा, कुश, सकम्प) तथा कठोर रोम से युक्त तथा शिराओं से व्याप्त होता है। समान (न ऊंची, न नीची) छाती वाले धनी, छोटी छाती वाले पुरुषार्थ से रहित, विषम छाती वाले निर्धन तथा शस्त्र से मृत्यु पाने वाले होते हैं।
ग्रीवा तथा पृष्ठ का लक्षण एवं फल - चपटी ग्रीवा वाला पुरुष निर्धन, सूखी हुई नाड़ियों से युत ग्रीवा वाला निर्धन, महिष के समान ग्रीवा वाला शूर और बैल के समान ग्रीवा वाला शस्त्र से मरण पाने वाला होता है तथा शंख के समान ग्रीवा वाला राजा और लम्बी ग्रीवा वाला बहुत खाने वाला होता है। अभग्न और रोम रहित पीठ धनी व्यक्तियों की तथा भग्न और रोगों से युत पीठ निर्धन व्यक्ति की होती है।
कांख का लक्षण एवं फल - पसीने से रहित, पुष्ट, ऊंची, सुगन्धयुत, समान तथा रोमों से व्याप्त कांख धनी व्यक्तियों की होती है तथा पसीने से युक्त, अपुष्ट, नीची, दुर्गन्धयुक्त, विषम और रोमरहित कांख निर्धन व्यक्तियों की होती है।
कन्धे का लक्षण एवं फल - मांसहीन, रोमों से युत, भग्न तथा छोटे निर्धन के कन्धे होते हैं तथा विस्तीर्ण, अभग्न और परस्पर सटे हुए कन्धे सुखी और बली पुरुषों के होते हैं।
बाहु का लक्षण एवं फल - हाथी की सूड़ के समान वर्तुलाकार, जानुपर्यन्त लम्बे, सम तथा मोटे बाहु राजा के होते हैं तथा रोमों से युत तथा छोटे बाहु निर्धन के होते हैं।
अंगुली और हांथ का लक्षण एवं फल - लम्बी अंगुलियों वाले मनुष्य दीर्घायु, सीधी अंगुलियों वाले सुभग, पतली अंगुलियों वाले बुद्धिमान, चपटी अंगुलियों वाले दूसरे के सेवक, मोटी अंगुलियों वाले निर्धन तथा बाहर को झुकी हुई अंगुलियों वाले शस्त्र से मृत्यु पाने वाले होते हैं। वानर के समान हाथ वाले धनी तथा बाघ के समान हाथ वाले पापी होते हैं। निगूढ़, दृढ़ तथा सुश्लिष्ट सन्धियों से युत मणिबन्ध (हांथ की कलाई) वाले राजा तथा छोटे संधि सहित मणि बन्ध वाले दरिद्र होते हैं। नीची हथेली वाले पिता के धन से रहित, वर्तुलाकार नीची हथेली वाले धनी तथा ऊंची हथेली वाले दानी, विषम हथेली वाले दुष्ट तथा निर्धन, लाख के समान लाल वर्ण की हथेली वाले धीर, पीली हथेली वाले अगम्या स्त्री में गमन करने वाले तथा रूखी हथेली वाले निर्धन होते हैं। यव रेखा से युत अंगुष्ठ मध्य या अंगुष्ठमूल वाले पुत्रवान होते हैं। जिनके अंगुली के पर्व लम्बे हों वे भाग्यशाली तथा दीर्घायु होते हैं।
नखों का लक्षण एवं फल - तुष (भूसी) के समान रेखाओं से युत नख वाले नपुंसक, कुत्सित एवं वर्णहीन नख वाले, दूसरे के मुख को देखने वाले तथा ताम्र वर्ण के नख वाले सेनापति होते हैं।
हथेली की रेखा एवं अंगुलियों का लक्षण एवं फल - स्निग्ध एवं गहरी हस्तरेखा वाले धनी, रूखी तथा ऊंची रेखा वाले निर्धन, हाथ में विरल अंगुली वाले निर्धन तथा सघन अंगुली वाले धनसंचयी होते हैं। जिसके हाथ में मणिबन्ध से निकल कर तीन रेखा अंगुलियों की ओर जायँ वह राजा होता है। दो मछली के चिह्न से युक्त हथेली वाला सदावत्र्त करने वाला होता है। यदि हाथ में वङ्का के समान रेखा हो तो धनी, मछली के समान हो तो विद्वान् तथा शंख, छत्र, पालकी, हाथी, घोड़ा और कमल के समान रेखा हो तो राजा होता है। यदि कलश, मृणाल, पताका या अंकुश के समान हाथ में रेखा हो तो भूमि में धन गाड़ने वाला होता है। रस्सी की तरह हाथ में रेखा हो तो अति धनी, स्वस्तिक रेखा हो तो ऐश्वर्यशाली होता है। यदि चक्र, तलवार, फरशा, तोमर, बर्छी, धनुष या भाला के समान हाथ में रेखा हो या चिह्न हो तो सेनापति और ऊखल के समान रेखा हो तो याज्ञिक होता है। मकर (घड़ियाल), ध्वजा और कोष्ठागार की तरह हांथ में रेखा हो तो बहुत धनी तथा वेदी की तरह ब्रह्मतीर्थ (अंगुष्ठमूल) हो तो अग्निहोत्री होता है। वापी, देव मन्दिर का चिह्न या त्रिभुज हो तो र्धािमक तथा अंगुष्ठमूल में जितनी स्थूल रेखा हो उतने पुत्र और जितनी सूक्ष्म रेखा हों उतनी कन्यायें होती हैं। जिनकी तर्जनी के मूल तक तीन रेखा गयी हों वे सौ वर्षपर्यन्त जीते हैं। छोटी रेखा होने पर अनुपात से आयु की कल्पना करनी चाहिए। जिनके हाथ में टूटी हुई रेखा हों वे वृक्ष या उच्च स्थान से नीचे गिरते हैं। अधिक रेखायुत हाथ या रेखा रहित हाथ वाले निर्धन होते हैं।
ठोढ़ी, दांत और ओष्ठ का लक्षण एवं फल - अतिकृश और दीर्घ ओष्ठ वाले निर्धन और मांसयुत अधरवाले धनी होते हैं। विम्ब फल के समान लाल और वक्रता से रहित अधर वाले राजा, छोटे अधर वाले राजा तथा फटे, खण्डित, वर्णरहित और रूखे अधर वाले धनहीन होते हैं। स्निग्ध, घन, तीक्ष्ण और सम दांत शुभ होते हैं।
जीभ तथा तालु का लक्षण एवं फल - लाल, लम्बी, चिकनी तथा समान जीभ वाले भोगी होते हैं। सपेâ, काली और रूखी जीभ वाले निर्धन होते हैं। इसी प्रकार तालु का भी लक्षण एवं फल जानना चाहिए।
मुख का लक्षण एवं फल - सुन्दर, वर्तुलाकार, निर्मल, चिकना और समान मुख राजाओं का होता है। इससे उलटा कुरूप, वक्राकार, मलिन, रूखा और विषम मुख भाग्य रहित का होता है। स्त्री के समान मुख वाले सन्तान हीन, गोलमुख वाले शठ, लम्बे मुख वाले निर्धन, भयानक मुख वाले धूर्त, निम्नमुख वाले पुत्रहीन, छोटे मुख वाले कृपण, सम्पूर्ण तथा सुन्दर मुख वाले भोगी होते हैं।
दाढ़ी का लक्षण एवं फल - आगे से बिना फटे, चिकनी, कोमल और नीचे को झुकी हुई दाढ़ी शुभ होती है तथा लाल रूखी और अल्प दाढ़ी वाले चोर या घूंस लेने वाले होते हैं।
कान का लक्षण एवं फल - मांसरहित कान वाले दु:खी होते हैं तथा चपटे कान वाले अधिक भोगी, छोटे कान वाले कृपण, शंकु के समान आगे से तीखे कान वाले सेनापति, रोमयुक्त कान वाले दीर्घायु, बड़े कान वाले धनी, नाड़ियों से युत कान वाले क्रूर तथा लम्बे और पुष्ट कान वाले सुखी होते हैं।
कपोल और नासिका का लक्षण एवं फल - ऊंचे गाल वाले धनी और मांस युत गाल वाले राजा के मन्त्री होते हैं। तोते के समान नासिका वाले भोगी और सुखी, मांसरहित नासिका वाले दीर्घायु, कटी हुई नासिका वाले अगम्या स्त्री में गमन करने वाले, लम्बी नासिका वाले भाग्यशाली, ऊपर खिची हुई नासिका वाले चोर, चपटी नासिका वाले स्त्री के हाथ से मृत्यु पाने वाले, आगे से टेढ़ी नासिका वाले धनी, दाहिने ओर झुकी नासिका वाले अधिक खाने वाले तथा कठोर तथा सीधी और छोटे छिद्रों से युत सुन्दर पुट वाली नासिका वाले बड़े भाग्यशाली होते हैं।
आंख का लक्षण एवं फल - कमल दल के समान नेत्र वाले धनी, लाल नेत्रान्त वाले लक्ष्मीवान् , शहद के समान पीले नेत्र वाले धनी, बिल्ली के समान (कंजे) नेत्र वाले पापी, हरिण के समान गोल और अचल नेत्र वाले चोर, नील नेत्र वाले क्रूर, हाथी के समान नेत्र वाले सेनापति, गहरे नेत्र वाले ऐश्वर्यशाली तथा नील कमल दल के समान नेत्र वाले विद्वान होते हैं। अति काले तारा वाले नेत्र उखाड़े जाते हैं। मोटे नेत्रवाले मन्त्री, कपिल वर्ण के नेत्र वाले भाग्यशाली, दीन नेत्र वाले निर्धन तथा चिकने और स्थूल नेत्र वाले धनी तथा भोगी होते हैं।
भौंह का लक्षण एवं फल - मध्य में ऊंची भ्रू वाले अल्पायु, बड़ी और ऊंची भ्रू वाले अतिसुखी, विषम (एक में बड़ी तथा दूसरे में छोटी) भ्रू वाले निर्धन, बाल चन्द्र की तरह झुकी हुई भ्रू वाले धनवान् , लम्बी तथा परस्पर बिना मिली भ्रूवाले धनी, टूटी हुई भ्रूवाले निर्धन तथा मध्य में नत भ्रूवाले मनुष्य अगम्या स्त्री में गमन करने वाले होते हैं।
(शंख कनपटी) तथा ललाट का लक्षण एवं फल - ऊँची तथा बड़ी (शंख कनपटी) वाले धनी तथा नीची कनपटी वाले पुत्र तथा धन से रहित होते हैं। टेढ़े ललाट वाले धनी, सीप के समान विशाल ललाट वाले आचार्य, नाड़ियों से व्याप्त ललाट वाले पाप में रत, ललाट के मध्य में ऊँची नाड़ी वाले धनी और ललाट में स्वस्तिक की तरह रेखा वाले धनाढ्य होते हैं। निम्न ललाट वाले वध, बन्धन के भागी और पाप कर्म में रत, ऊंचे ललाट वाले राजा तथा गोल ललाट वाले कृपण होते हैं।
ललाट रेखा का लक्षण एवं फल - ललाट में तीन रेखा वाले सौ वर्ष जीते हैं, चार रेखा वाले राजा होते हैं तथा ९५ वर्ष जीते हैं। ललाट में टूटी हुई रेखा वाले अगम्या स्त्री में गमन करने वाले और ९० वर्ष जीते हैं। रेखाओं से रहित ललाट वाले ९० वर्ष जीते हैं तथा केशान्त तक रेखा वाले अस्सी वर्ष जीते हैं। पांच रेखा युत ललाट वाले सत्तर वर्ष जीते हैं, ललाट में स्थित सब रेखाओं के अग्रभाग मिले हों तो साठ वर्ष की आयु होती है। छ:, सात आदि बहुत रेखाओं से युत ललाट वाले पचास वर्ष जीते हैं। यदि ललाट में टेढ़ी रेखा हो तो चालीस वर्ष आयु होती है। यदि ललाट में भ्रू से लगी रेखा हो तो तीस वर्ष की आयु होती है। यदि ललाट के वाम भाग में टेढ़ी रेखा हो तो बीस वर्ष की आयु होती है। छोटी रेखा हो तो बीस वर्ष से कम जीता है। यदि एक या दो रेखा से युत ललाट हो तो बीस वर्ष से कम आयु होती है। बीच में बुद्ध्यानुसार आयु की कल्पना करनी चाहिए।
शिर का लक्षण एवं फल - गोल शिर वाले गायों से युत, छत्र की तरह ऊपर से विस्तीर्ण शिर वाले राजा, चपटे शिर वाले पिता-माता के घातक और शिरस्त्राण के समान शिर वाले दीर्घायु होते हैं। घड़े के समान शिर वाले पापी और निर्धन, निम्न शिर वाले प्रतिष्ठित तथा अति निम्न शिर वाले अनर्थकारी होते हैं।
केश का लक्षण एवं फल - एक रोम कूप में एकएक काले, स्निग्ध, थोड़े से कुटिल, बिना फूटे अग्रभाग वाले, कोमल तथा घने केश हों तो सुखी या राजा होता है। एक रोम छिद्र में अनेक, विषम, कपिल, मोटे, फूटे अग्रभाग वाले, रूखे, छोटे, बहुत कुटिल और बहुत घने केश निर्धनों के होते हैं।
स्वर का लक्षण एवं फल - हाथी, बैल, रथ समूह, भेरी, मृदंग, िंसह या मेघ के समान स्वर वाले राजा तथा गर्दभ, जर्जर (विकृत) और रूखे स्वर वाले धन और सुख से हीन होते हैं।
ये सभी लक्षण पुरुषों के तथा स्त्रियों के समान रूप से समझने चाहिए। स्त्रियों के कुछ विशेष लक्षण इस प्रकार हैं। जिस कन्या के पांव स्निग्ध, ऊंचे, आगे से पतले और लाल नखों से युक्त, समान, सुन्दर, पुष्ट और छिपे हुए गुल्फ वाले, मिली हुई अंगुली वाले तथा कमल की कान्ति के समान कान्ति वाले हों वह जिस पति का वरण करती है वह राजा होता है।
     जिस स्त्री के पांव की कनिष्ठिका या अनामिका भूमि का स्पर्श न करे, अंगूठे से लम्बी तर्जनी हो वह व्यभिचारिणी और अति पापिनी होती है। छोटी गरदन वाली निर्धन, बहुत लम्बी गरदन वाली कुलक्षय करने वाली तथा मोटी गरदन वाली स्त्री क्रूर प्रकृति की होती है। जिस स्त्री के नेत्र केकर (कञ्जा), पीले, श्याम या चञ्चल हों वह बुरे स्वभाव वाली होती है तथा जिसके हंसने के समय गालों में गढ्ढे पड़ जाते हों वह व्यभिचारिणी होती है। जिस स्त्री का ललाट लम्बा हो वह देवर को, उदर लम्बा हो तो श्वसुर को, और कटि प्रदेश लम्बा हो तो पति के लिये घातक होती है तथा जिसके ऊपर के ओठ में अधिक रोम हों और जो बहुत लम्बी हो वह पति के लिये शुभ देने वाली नहीं होती है।
जिस स्त्री के ऊपर का ओष्ठ ऊंचा हो या केशों के अग्रभाग रूखे हों वह कलहप्रिया होती है। अधिकतर कुरूपा स्त्रियों में दोष और सुन्दरी में गुण होते हैं। जैसा कि वराहमिहिराचार्य का कथन है -
                    या त्तूत्तरोष्ठेन समुन्नतेन रूक्षाग्रकेशी कलहप्रिया सा।
                   प्रायो विरूपासु भवन्ति दोषा यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति।। बृहत्संहिता, स्त्रीलक्षणाध्याय, २३
इस प्रकार शुभाशुभ लक्षणों का विधिवत अवलोकन कर शुभाशुभ फलों को जानना चाहिए।

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अंक ज्योतिष


         अंक ज्योतिष ऐसी विद्या है जिसे सामान्य व्यक्ति अथवा अपरिपक्व बुद्धि का व्यक्ति स्वल्प प्रयत्न से ही सम्पूर्ण भविष्य फल जान सकता है तथा किसी भी जातक के भूत, भविष्य तथा वर्तमान को बता सकता है। जन्माङ्ग चक्र के लिये जितना अधिक शुद्ध समय होगा उतना ही सटीक फल जाना जा सकता है किन्तु अंक ज्योतिष में केवल जन्मतिथि के आधार पर सम्पूर्ण जीवन का फल ज्ञात हो जाता है। अंक ज्योतिष मूलत: भारतीय है किन्तु आजकल जिस रूप में यह प्रसिद्ध है वह पाश्चात्य पद्धति को आधार बनाकर आजकल अंक ज्योर्तिविद् अंक के आधार पर फलादेश कर रहे हैं। जैसे संयुक्तांक का फल जानने के लिये नाम को लिखकर उसके प्रत्येक अक्षरों के अंकों को जोड़कर जो संयुक्त अक्षर होगा वही उसकी भाग्य का निर्धारक होगा।
        अंक का प्रयोग सर्वप्रथम वैदिक काल में हुआ है। शुक्ल यजुर्वेद में एका च मे तिस्रश्च्च मे तिस्रश्चमे पञ्च च मे पञ्च च मे सप्त च मे सप्त च मे नव च म नव च म एकादश च मे एकादश च मे त्रयोदश च मे त्रयोदश च मे पञ्चदश च मे पञ्चदश च मे सप्तदश च मे सप्तदश च मे नवदशचमे नव दश च एकविंशतिश्च मे एकविंशतिश्च मे त्रयोविंशतिश्च मे त्रयोविंशतिश्च मे पञ्चिंवशतिश्च मे पञ्चविंशतिश्च मे सप्तिंवशतिश्च मे सप्तिंवशतिश्च मे नविंवशतिश्च मे नविंवशतिश्च मे एकत्रिंशच्च मे एकत्रिंशच्च में त्रयस्त्रिंशच्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्  का उल्लेख मिलता है (शुक्ल यजुर्वेद १८।२४)।
आर्यभट ने भी अंकों को अक्षरों द्वारा प्रयोग किया है। उनके अनुसार क १, ख २, ग ३, घ ४, ङ ५, च ६, छ ७, ज ८, झ ९, ञ १०, ट ११, ठ १२, ड १३, ढ १४, ण १५, त १६, थ १६, द १८, ध १९, न २०, प २१, फ २२, ब २३, भ २४, म २५, य ३०, र ४०, ल ५०, व ६०, श ७०, ष ८०, स ९० तथा ह का १०० अंक है।
स्वरों की संख्या में अ का १, इ का १००, उ का १००००, ऋ का १० लाख, ऌ का १० करोड़, ए का १० अरब, ऐ का १० खरब, ओ का १० नील तथा औ का १० पद्म संख्या मानी है।
          आधुनिक काल के प्रसिद्ध पाश्चात्य ज्योर्तिविद् कीरो ने लिखा है कि मैं ज्ञान प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में भारतवर्ष गया वहाँ अनेक ब्राह्मणों के सम्पर्क में अन्य विद्याओं के साथ-साथ अंकों के गूढ़ रहस्य का ज्ञान भी प्राप्त किया। पाइथागोरस ने भी कहा है कि सम्पूर्ण विश्व का निर्माण अंकों की शक्ति से ही हुआ है तथा अंकों की शक्ति को भारतीय  जानते हैं। पञ्चाङ्गों के आधार पर भी अंक का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। संस्कृत महीनों के आधार पर मूलांक जानना चाहिए। महीने का प्रारम्भ आश्विन मास से करना चाहिए। जैसे आश्विन मास के किसी पक्ष में जन्म होने पर मूलांक १, कार्तिक मास का २, अगहन मास का ३, पौष मास का ४, माघ का ५, फाल्गुन का ६, चैत्र का ७, वैशाख का ८, ज्येष्ठ का ९, आषाढ़ का १, श्रावण का २ तथा भाद्रपद का ३ मूलांक होता है। जन्म तिथियों के आधार पर भी मूलांक जानने की परम्परा है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक ३० संख्या होती है। जैसे पूर्णिमा तिथि का जन्म होने से मूलांक ६ तथा कृष्णपक्ष की पंचमी का मूलांक २ है। इसी तरह संयुक्ताक्षर जानने के लिये तिथि, मास एवं संवत् (जन्मानुसार) की संख्या जोड़कर अंक जानना चाहिए। यहाँ विभिन्न अंकों में जन्मे जातकों के स्वभाव, शरीराकृति, खान-पान, विद्या, धन, भाग्य, सन्तान, आयु, मैत्री, कर्म, लाभ, व्यय तथा अन्य सभी बातों पर प्रकाश डाला जा रहा है।

अंक एक

       एक अंक का स्वामी सूर्य है, अत: एक मूलांक का जातक, आत्मबली, दृढ़ इच्छा शक्ति वाला, उत्तम विचार वाला, दृढ़ निश्चयी, स्थिर स्वभाव वाला, स्वाभिमानी, जिद्दी, क्रियाशील तथा दृढ़ मैत्री वाला रहेगा।
इस अंक का जातक साहसी, अद्भुत सहनशक्ति सम्पन्न तथा विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य धारक रहेगा। इसमें नेतृत्व की क्षमता अधिक होगी। अपरिचित व्यक्ति भी शीघ्र मित्र बन जाते हैं किन्तु आपके तेज से क्षुभित होकर अलग भी शीघ्र हो जाते हैं। व्यापार में अधिक उन्नति करेंगे, नौकरी में श्रेष्ठ पद, अध्यक्ष अथवा किसी भी संस्था में सर्वोपरि रहना पसन्द करेंगे, दिल के साफ होंगे। सत्य का अधिकाधिक पालन करना प्रमुख गुण होगा। सीमित काम वासना होगी। संयमी जीवन व्यतीत होगा।
        धन की अच्छी स्थिति रहेगी, स्वल्प सन्तान रहेगी। प्राय: १ पुत्र की स्थिति बनती है। शत्रु पीछे से हानि पहुंचाते हैं। सन्मुख आने का साहस नहीं करते। यदि किसी ने अपमान किया तो उससे सदैव प्रतिशोध का भाव रखते हैं।
रविवार का दिन सदैव शुभदायक रहेगा। लाल, गुलाबी, मैरून या र्इंट का रंग शुभदायक होगा। माणिक्य, तांबा एवं स्वर्ण लाभदायक होगा। अंक १, १०, १९, २८ शुभदायक रहेंगे। सूर्य की आराधना, अघ्र्य देना, सूर्य को प्रणाम करना तथा वाल्मीकिकृत् आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ सदैव अनु्कूल रहेगा।

अंक दो

         अंक २ का स्वामी चन्द्रमा है, अत: दो मूलांक का जातक कल्पनाशील, कलाप्रेमी, हास्यप्रिय, सुन्दर आकृति वाला, शान्त एवं विनम्र स्वभाव का होगा। यह जातक हवाई महल तक बनाता है। विचारवान किन्तु चञ्चल मनोवृत्तिवाला गुणी एवं विलक्षण होगा।
यह नयी वस्तुओं का सदैव अन्वेषण करता रहता है। यह लेखक, कवि अथवा चिकित्सक होता है। इसे क्रोध जल्दी आता है किन्तु शीघ्र ही समाप्त भी हो जाता है। ऐसा जातक सम्मान अधिक चाहता है, कभी-कभी झूठी प्रशंसा से भी अत्यधिक प्रसन्न हो जाता है।
           यह जातक कामी एवं भोगी होता है। धनाढ्य योग होने से जातक धन का दुरुपयोग भी अधिक करता है। इसके धन का अधिक भाग सट्टे, लाटरी अथवा व्यभिचार में खर्च हो जाता है। इसके प्रकट एवं गुप्त दोनों प्रकार के शत्रु होते हैं। किन्तु यह शत्रुओं पर सदैव हावी रहता है। ऐसे जातक अत्यन्त दयालु, सौन्दर्यप्रेमी, आत्मविश्वास में कमी, परिवर्तनशील, दाम्पत्य जीवन में अनबन, पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों से अधिक प्रीति, समुद्र, नदी, पर्वत, वन से अधिक प्रीति तथा दूसरों के मन का भाव शीघ्र ही जान लेने वाले रहेंगे।
        ऐसे जातक के लिये सोमवार का दिन सदैव शुभदायक रहेगा। श्वेत, दुधिया तथा आसमानी रंग शुभ रहेगा। मोती, चन्द्रकान्त मणि, चांदी का छल्ला सदैव लाभदायक रहेगा। अंक २, ११, २० व २९ शुभदायक रहेगा। इन तिथियों में किया गया कार्य भी सफल होगा। भगवान शिव की आराधना, शक्ति (दुर्गा) का पूजन तथा सप्तशती का पाठ सदैव अनिष्टों का शमन करेगा।

अंक तीन

          अंक तीन का स्वामी गुरु है अत: तीन मूलांक का जातक महत्त्वाकांक्षी, विश्वासयुक्त, अत्यन्त स्वाभिमानी, अहंकार युक्त, विवेकी, धैर्यवान्, वेदान्त, भागवत, व्याकरण, ज्योतिष आदि शास्त्रों का ज्ञाता, दृढ़ निश्चियी, सद्व्यवहार सम्पन्न, अतिथि को ईश्वर समझने वाला तथा सदैव लोगों से घिरा रहने वाला होता है। जातक सद्-असद् का विवेचन करने वाला तथा ग्राम, नगर या देश का मुखिया होता है।
         किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता, सदैव उच्च अभिलाषा वाला, अधिकार सम्पन्न तथा अनुशासनप्रेमी होगा। यम-नियम का पालन करने वाला, तानाशाही प्रवृत्ति, ईष्र्यालु प्रवृत्ति, धन का संचय न कर सकने वाला, किन्तु धन की चिन्ता भी न करने वाला तथा परमार्थी होगा।
स्वजनों से दूर रहने वाला, ईमानदार, प्रेम में असफल, बाल्यावस्था में संघर्ष अधिक, दुष्ट मित्रों की सहायता करने वाला, समाजसुधारक, यात्राप्रिय विशेषकर तीर्थयात्राओं में भ्रमण करने वाला, स्वार्थी लोगों से घिरे रहने वाला, वकील, प्रवक्ता, प्रोपेâसर, पौरोहित्य कर्म, पुजारी, र्धािमक कार्यकत्र्ता, धर्मगुरु तथा अन्वेषक होगा।
सम्पूर्ण जीवन में कोई ऐसा कार्य कर जाते हैं जिसे लोग बहुत काल तक याद रखते हैं। निद्रा प्रेमी, स्वादिष्ट भोजन करने वाले, राजयोगी, सुख-सुविधाओं अथवा भौतिक सुखों का पूर्ण उपभोग करने वाले, कभी सादा जीवन उच्च विचार वाले, स्वतन्त्रताप्रिय, न्यायप्रिय, शत्रुओं से कष्ट तथा अपने विचारों को दूसरों पर लादने वाले होंगे।
           गुरुवार का दिन सदैव शुभदायक रहेगा। पीला, श्वेत मिश्रित पीत वर्ण, शुभदायक रहेगा। पीला पुखराज, सुनहला, हल्दी की माला तथा स्वर्ण लाभदायक रहेगा। अंक ३, १२, २१ तथा ३० शुभदायक रहेंगे। भगवान विष्णु की आराधना, विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का पाठ, केले के वृक्ष में जलादि देना, अश्वत्थपूजन तथा शालिग्राम शिलापूजन से समस्त अरिष्टों का शमन होगा।

अंक चार

       अंक चार का स्वामी छाया ग्रह राहु है, अत: ऐसे जातक। सामान्य से हटकर भिन्न दृष्टि वाले होंगे। संघर्षमय जीवन, वाद-विवाद, बहस में विरोधी रुख अपनाना, मित्रों की अपेक्षा शत्रुओं की अधिकता, कभी-कभी मित्र भी शत्रुवत् व्यवहार करेंगे। प्राचीन परम्परा का विरोध करना, धर्म में अनास्था अथवा र्धािमक मर्यादाओं के विपरीत चलना रूढ़िवादिता को पाखण्ड मानना इनका स्वभाव होगा।
     धन की समस्या सदैव बनेगी, आय की अपेक्षा व्यय की अधिकता अधिक रहेगी। क्रोधी प्रकृति, अस्थिर चित्तवृत्ति, चञ्चल धन तथा अस्थायी जीविका वाले, भूत-प्रेत में विश्वास करने वाले, अनिश्चय की स्थिति अथवा द्वन्द्वात्मक जीवन वाले किसी भी कार्य में स्वजनों अथवा किसी भी व्यक्ति से परामर्श लेने वाले, समाज सुधार की योजना बनाने वाले तथा विरोधी पक्ष की सदैव सहायता करने वाले होंगे।
       दूसरों को हानि पहुँचाकर भी अपना कार्य सिद्ध करने की प्रवृत्ति, अपने दोषों को न मानने वाले, उग्र स्वभाव होते हैं तथा ऐसे जातक के व्यक्तित्व को समझकर लोग घबड़ा जाते हैं । किसी भी व्यक्ति की परवाह न करने वाले, स्वभाव में क्षणिकता वाले, क्षण-क्षण में बदलने वाले बिना सोच तथा विचार के काम में लग जाने वाले रहेंगे।
     वाचाल , व्यर्थ का परोपकार करने वाले, जल्दी प्रसन्न होने वाले, भावुक प्रकृति, असहिष्णु, वृद्धावस्था कष्टकारी, सन्देह से युक्त, स्वास्थ्य बाधित, वायु, हृदय रोग, पत्नी से अनबन, पिता की सम्पत्ति में विवाद, स्वजनों से दूर रहने वाले तथा एक साथ अनेक कार्यों में उलझे रहने वाले होंगे।
      शनिवार का दिन शुभदाक रहेगा। नीला, बैंगनी, चित्र-विचित्र तथा काला रंग शुभदायक रहेगा। गोमेद, लाजावर्त, हकीक तथा त्रिशक्ति मुद्रिका धारण करना शुभ रहेगा। ४, १३, २२ तथा ३१ अंक शुभ रहेंगे। शक्ति की आराधना, हनुमान या भैरव की उपासना, कृष्णा गाय की सेवा तथा तुलसीपूजन उत्तम होगा। अपाहिज, कोढ़ी तथा दीन दरिद्रों की सेवा से भी अनिष्ट प्रभाव समाप्त होंगे।

अंक पांच

        अंक ५ का स्वामी ग्रह बुध है, अत: जातक बुद्धिमान, स्वाभिमानी, दुर्बल, कुछ चिड़चिड़ा स्वभाव, निर्णय में शीघ्रता करने वाला, संवेदनशील, उत्तेजक, तीक्ष्ण बुद्धि के कारण स्थिति को तुरन्त भांप लेने वाला, ज्योतिष अथवा भविष्य को जानने वाला, परिश्रम से भागने वाला किन्तु बौद्धिक परिश्रम करने वाला, नवीन आविष्कार तथा नया विचार करने वाला, मौलिक चिन्तन युक्त, किन्तु बहुत शीघ्र क्रोध करने वाला होगा।
स्त्रियों के कारण अपमानित होने वाला, चंचल स्वभाव के कारण जल्दी कार्यक्षेत्र, व्यापारादि में परिवर्तन करने वाला, सबसे मैत्री भाव रखने वाला, विपत्ति से जल्दी घबड़ाने वाला, धैर्य का अभाव, धनी, धन का स्थायी स्वामी, कला, चित्र आदि का पारखी, रत्नों का विशेषज्ञ, सट्टे, लाटरी, दलाली आदि में रुचि रखने वाला होगा।
जोखिम भरा कार्य करने वाला, परिस्थितियों के अनुवूâल ढालने वाला, धन का सदुपयोग करने वाला, कभी अपव्यय भी करता है। सदैव लोगों से घिरा रहने वाला, यात्रा अधिक करने वाला तथा यात्राओं से लाभ उठाने वाला, आय के अनेक स्रोतों वाला तथा व्यापारिक प्रवृत्ति का होगा।
        अचानक धन की अधिक प्राप्ति, भाग्यवादी, जीवन में उतार-चढ़ाव अधिक देखने वाले, शीघ्र ही कार्य की गुणवत्ता समझने वाले, युवावस्था तक जीवन के सम्पूर्ण सुखों को प्राप्त कर लेने वाले, गुणी व्यक्तियों का आदर करने वाले, उच्च लोगों के सम्पर्क में सदैव रहने वाले, मित्रों की सदा सहायता पाने वाले, अनेक क्षेत्र में उपयुक्त ज्ञान रखने वाले तथा स्वतन्त्र विचारों के होंगे।
      बुधवार का दिन सदैव अनुवूâल रहेगा। पन्ना, आनेक्स, मरगज, फिरोजा, ओपल रत्न शुभदायी रहेंगे। ५, १४, तथा २३ अंक शुभदायक रहेंगे। गणेश की उपासना शुभ रहेगी। गणेश अथर्वशीर्ष का प्रतिदिन पाठ अथवा विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का पाठ कल्याणकारी होगा। हरा रंग शुभ है। धानी रंग भी हितकर होगा।

अंक छ:

        अंक ६ का स्वामी ग्रह शुक्र है, अत: ऐसे जातक आकर्षक व्यक्तित्व वाले, कोमल स्वभाव के कारण अपरिचित को भी अपना बना लेने वाले, दृढ़निश्चयी, कुछ सीमा तक हठी, साहित्य, संगीत, कला तथा विज्ञान के प्रेमी, सौन्दर्यप्रेमी, मित्रों की सहायता करने वाले, जिस कार्य को एक बार स्वीकार कर ले उसका आजीवन निर्वाह करने वाले होंगे।
निवास स्थान या आफिस को सजाकर रखने वाले, साधारण धनी, कहीं-कहीं धन का दुरुपयोग करने वाले, चंचलचित्त, यात्रा के शौकीन, रहस्यात्मक, विज्ञान अथवा आधुनिक नयी खोजों में रुचि रखने वाले, मातृभक्त, गुरुजनों का सम्मान करने वाले किन्तु विरोध को न सहने वाले होंगे।
           प्राय: अपनी बात पर अड़ने वाले, उतावली करने वाले, कभी नशे की आदी, मिष्ठान्न प्रेमी, स्वादिष्ट या चटपटे भोजनों के प्रेमी, शारीरिक श्रम से दूर भागने वाले, सब पर विश्वास करने वाले, विपरीत िंलग को अधिक महत्व देने वाले, अत्यधिक भोग विलास में रहने वाले, जारिणी स्त्रियों से प्रेम रखने वाले होंगे।
प्रतिशोध की भावना रखने वाले, भूमि, भवन, वाहन के स्वामी, विद्या के व्यसनी, अलौकिक विद्या जानने वाले, तन्त्र-मन्त्र में पूर्ण विश्वास रखने वाले, नीच (छुद्र) जनों की सहायता प्राप्त करने वाले, अपनी प्रतिभा के सामने अन्य को कम समझने वाले तथा गुप्त रोगों से पीड़ित रहेंगे।
        अंक ६ सर्वदा शुभदायक रहेगा। दिन शुक्रवार शुभ रहेगा। श्वेत आसमानी या हल्का नीला रंग शुभदायक रहेगा। हीरा, सफेद पुखराज, स्फटिक, चांदी आदि रत्न शुभदायक रहेंगे। दुर्गा की आराधना, वैष्णवी देवी का पूजन एवं दर्शन तथा सौन्दर्यलहरी के पाठ से समस्त अरिष्टों का शमन होगा।

अंक सात

          अंक ७ का आधिपत्य केतु करता है। अत: सात अंक का जातक भावुक, कलाप्रिय, कल्पनाशील तथा आध्यात्मिक शक्ति वाला होगा। जातक प्रवक्ता, लेखक, चित्रकार, संगीतज्ञ तथा धर्मप्रचारक होगा। सभी धर्मों का समान आदर करेगा। स्वाध्याय में रत, विद्या तथा पुस्तकों का प्रेमी, दार्शनिक, सदा परिवर्तन प्रिय, सामान्य यात्रा से बचने वाला, कभी दूर देशों  की यात्रा करने वाला, यशस्वी, विनोदी तथा धनाढ्य होगा।
जातक मौलिक विचारों वाला, जनसामान्य से अलग विचार रखने वाला, संकोची स्वभाव, एकान्तप्रेमी, वाद-विवाद से बचने वाला तथा गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता, स्वकुटुम्ब पालक, मातृपितृभक्त, स्वतन्त्रताप्रिय, जल का प्रेमी, उच्च विचारों वाला या योगी होगा।
        जातक चुम्बकीय व्यक्तित्व वाला, अन्तर्दृष्टिसम्पन्न, हृदय सम्बन्धी कष्ट अथवा गुर्दे की समस्या से ग्रस्त, अल्पावस्था का विवाह कष्टकारी रहेगा। विलम्ब से विवाह हितकारी होगा। इसकी र्आिथक स्थिति सुदृढ़ होगी यह अपने लोगों तथा स्ववर्ग वालों के लिये सगे-सम्बन्धियों की पूर्ण सहायता करने वाला होगा।
     सामान्य परिस्थितियों में जातक बहुत ही परम्परावादी तथा रीति-रिवाजों को निभाने वाला होगा, प्राकृतिक रूप से कर्मशील, चुस्त, सक्रिय, शक्तिशाली, ऊर्जावान तथा आशावादी होगा। जातक स्वर्निमित पद-प्रतिष्ठा का स्वामी होगा तथा दूसरों के सामने अपना उदाहरण प्रस्तुत करेगा। ऐसा जातक महापुरुष की श्रेणी में गिना जाता है।
अंक ७ सर्वदा शुभदायक रहेगा। दिन बुधवार शुभ रहेगा। चित्र-विचित्र रंग, दुधिया रंग अथवा भूरा रंग शुभ रहेगा। लहसुनिया तथा वैदूर्यमणि सर्वदा शुभदायक रहेगा। नरिंसह भगवान की आराधना, नरिंसहकवच एवं स्तोत्र का पाठ अरिष्टों से रक्षा करेगा।

अंक आठ

       अंक ८ का स्वामी ग्रह शनि है, अत: ८ अंक वाले जातकों का व्यक्तित्व निराला होता है। मित्रों में ऐसे जातक का जीवन सबसे अलग होगा। ये दार्शनिक विचार, भाग्य की अपेक्षा कर्म पर अधिक निर्भर रहने वाले, गुप्त शत्रुओं के प्रकोप वाले, गृहस्थ जीवन में गम्भीर कठिनाईयों वाले धन की समस्या, पुत्र सुख में बाधा अथवा पुत्र भी शत्रु जैसा बर्ताव करने वाले रहेंगे।
        इस अंक के जातक प्रेम प्रसंगों में असफल, विरक्ति प्रधान, धर्म तथा योग में गहरी आस्था तथा योगी जीवन, सदैव किसी न किसी कार्य में लगे रहने वाले, अन्तर्मुखीवृत्ति, थोड़ा बोलने वाले, प्राय: परेशानियों से घिरे रहने वाले, अपने लोगों द्वारा अपमानित होने वाले तथा तन्त्र-मन्त्र आदि गूढ़ विद्याओं के ज्ञाता होंगे।
गम्भीर प्रवृत्ति, दिखावे से दूर रहने वाले, परम्परा अथवा रीति-रिवाजों से दूर रहने वाले, कुछ महत्त्वाकांक्षी, परिश्रम से उच्च पद प्राप्त करने वाले, कठिन परिस्थितियों में भी अपूर्व धैर्यधारक, धन का दुरुपयोग न करने वाले, जीवन में मनोरंजन से दूर रहने वाले, थोड़े उत्सवों में सम्मिलित होने वाले, व्यसन में रुचि तथा जीवन के स्वल्पावस्था से सूझ-बूझ रखने वाले होंगे।
        इनकी पत्नी एवं पुत्र का स्वभाव रूखा होता है। ये एक स्थान पर ही स्थिर रहने वाले, संकोची स्वभाव, लोगों की सहायता प्राप्त न करने वाले, हठी प्रवृत्ति, लोगों की सलाह को न मानने वाले, वातव्याधि, कोष्ठबद्धता, पीतज्वर, गठिया आदि से कष्ट, खल्वाट, न्यायप्रिय, न्याय के लिये लड़ने वाले होते हैं और वकील अथवा न्यायाधीश भी बन सकते हैं।
अंक ८ सर्वदा शुभदायक। ८, १७, २६ अंक शुभ। शनिवार शुभदायक। नीलम, जमुनिया आदि रत्न अनुवूâल। काला एवं नीला रंग शुभदायक रहेगा। भगवान शिव की आराधना, रुद्राभिषेक, शिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ अथवा लघुमृत्युञ्जय मन्त्र या महामृत्युञ्जय मन्त्र जप से समस्त बाधाएँ दूर होंगी।

अंक नौ

अंक ९ का स्वामी ग्रह मंगल है, अत: ९ अंक के जातक अत्यन्त भाग्यशाली होंगे। उत्साही, दु:साहसी, महत्त्वाकांक्षी, विचारों से सुस्पष्ट, दृढ़ इच्छा शक्ति वाले, अच्छी तर्क शक्ति, गणितज्ञ, भूगोल अथवा खगोल का ज्ञान रखने वाले, वाद-विवाद में प्रभावी, प्रतिपक्षी को परास्त करने वाले, कलहप्रिय, युद्धप्रिय अथवा लड़ाईझगड़े में आनन्द लेने वाले, स्पष्टवादी, किञ्जित् भावुक तथा उत्तम व्यक्तित्व के कारण लोगों को अपनी ओर आर्किषत करने वाले होंगे।
          ऐसे जातक अच्छे संगठनकत्र्ता, समाज सुधारक, कार्यों में शीघ्रता करने वाले, स्वतन्त्रताप्रिय, शत्रुओं का बाहुल्य, बड़े नेता अथवा अधिक नेतृत्व क्षमता वाले, अपनी आलोचना से कुपित होने वाले, धनी, मनोविनोदी, क्रोधी, किसी के अधीन न रहने वाले, घरेलू जीवन झंझटों से युक्त, प्रत्येक कार्य में पूर्ण नियन्त्रण रखने वाले होते हैं। कठोरता एवं कोमलता का समन्वय ऐसे जातकों के जीवन में देखा जाता है।
          ऐसे जातक दिखावा का आडम्बर युक्त जीवन वाले, थोड़ी (छोटी) भी बात को बढ़ा-चढ़ा कर बताने वाले, अनुशासनप्रिय, किसी भी प्रकार के कार्य करने की पूर्ण क्षमता वाले, निर्बल जनों की सहायता करने वाले, उच्चाधिकारियों से भी उलझने वाले, उतावली  करने वाले, र्धािमक, पुरातनपन्थी, बुद्धिमान, साहित्य या संगीत में रुचि, पिता के स्नेह अथवा संरक्षण से वंचित तथा परिवार से अतिरिक्त बाहर पूर्ण सम्मान प्राप्त करने वाले, हंसी-मजाक अथवा गप्पबाजी में अधिक समय व्यतीत करने वाले, ईष्र्यालु प्रवृत्ति, आजीविका के लिये जन्मस्थान से दूर जाने वाले, पूर्ण शिक्षा प्राप्त करने वाले, रक्त चाप अथवा रुधिर विकार, चोट-चपेट तथा दुर्घटनाओं के योग वाले होते हैं। इन्हें फोड़े, पुंâसी अथवा घाव से कष्ट तथा कभी मूच्र्छा का प्रकोप भी होता है।
          अंक ९ सर्वदा शुभदायक होगा। ९, १८, २७ अंक शुभ रहेंगे। मंगलवार अनुवूâल रहेगा। जीवन में ९, १८, २७, ३६, ४५, ५४, ६३ वर्ष लाभ, भाग्य एवं पद-प्रतिष्ठा के लिये होगा। रंग लाल या गुलाबी शुभ रहेगा। मूंगा, लाल हकीक शुभदायक रहेगा। हनुमान जी की आराधना, हनुमत् स्तोत्र तथा भगवान राम के पूजन से समस्त कष्टों से निवृत्ति होगी।
इस प्रकार अंकों के आधार पर भविष्य का ज्ञान किया जा सकता है। अंकों का प्रत्येक मनुष्य के जीवन से गहरा सम्बन्ध है। एक ही अंक किसी के लिये शुभ तो दूसरे के लिये अशुभ हो जाता है। प्रत्येक घटनाएँ एक क्रिया हैं तथा संख्या का क्रिया से घनिष्ठ सम्बन्ध है। शब्दों को भी अंकों में परिर्वितत कर अथवा नामोंं को अंक में परिर्वितत कर उनके योग से जो अंक प्राप्त हो अथवा जन्मतिथि, मास, संवत् के अंकों का योग कर उनके योग से जो अंक प्राप्त हो अथवा जन्मतिथि, मास, संवत् के अंकों का योग कर उसके आधार पर भविष्य फल निर्धारण करना चाहिए।

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गङ्गा स्तुतिः


 गङ्गास्तुतिः

मातः शैलसुतासपत्नि वसुधाश्रृङ्गारहारावलि
स्वर्गारोहणवैजयन्ति भवतीं भागीरथीं प्रार्थये ।
त्वत्तीरे वसतः त्वदम्बु पिबतस्त्वद्वीचिषु प्रेङ्खतः
त्वन्नाम स्मरतस्त्वदर्पितदृशः स्यान्मे शरीरव्ययः ॥ 1॥

त्वत्तीरे तरुकोटरान्तरगतो गङ्गे विहङ्गो वरं
त्वन्नीरे नरकान्तकारिणि वरं मत्स्योऽथवा कच्छपः ।
नैवान्यत्र मदान्धसिन्धुरघटासङ्घट्टघण्टारण-
त्कारस्तत्र समस्तवैरिवनिता-लब्धस्तुतिर्भूपतिः ॥ 2॥

उक्षा पक्षी तुरग उरगः कोऽपि वा वारणो वाऽ-
वारीणः स्यां जननमरणक्लेशदुःखासहिष्णुः ।
न त्वन्यत्र प्रविरल-रणत्किङ्किणी-क्वाणमित्रं
वारस्त्रीभिश्चमरमरुता वीजितो भूमिपालः ॥ 3॥

काकैर्निष्कुषितं श्वभिः कवलितं गोमायुभिर्लुण्टितं
स्रोतोभिश्चलितं तटाम्बु-लुलितं वीचीभिरान्दोलितम् ।
दिव्यस्त्री-कर-चारुचामर-मरुत्संवीज्यमानः कदा
द्रक्ष्येऽहं परमेश्वरि त्रिपथगे भागीरथी स्वं वपुः ॥ 4॥

अभिनव-बिसवल्ली-पादपद्मस्य विष्णोः
मदन-मथन-मौलेर्मालती-पुष्पमाला ।
जयति जयपताका काप्यसौ मोक्षलक्ष्म्याः
क्षपित-कलिकलङ्का जाह्नवी नः पुनातु ॥ 5॥

एतत्ताल-तमाल-साल-सरलव्यालोल-वल्लीलता-
च्छत्रं सूर्यकर-प्रतापरहितं शङ्खेन्दु-कुन्दोज्ज्वलम् ।
गन्धर्वामर-सिद्ध-किन्नरवधू-तुङ्गस्तनास्फालितं
स्नानाय प्रतिवासरं भवतु मे गाङ्गं जलं निर्मलम् ॥ 6॥

गाङ्गं वारि मनोहारि मुरारि-चरणच्युतम् ।
त्रिपुरारि-शिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥ 7॥

पापापहारि दुरितारि तरङ्गधारि
शैलप्रचारि गिरिराज-गुहाविदारि ।
झङ्कारकारि हरिपाद-रजोपहारि
गाङ्गं पुनातु सततं शुभकारि वारि ॥ 8॥

गङ्गाष्टकं पठति यः प्रयतः प्रभाते
वाल्मीकिना विरचितं शुभदं मनुष्यः ।
प्रक्षाल्य गात्र-कलिकल्मष-पङ्कमाशु
मोक्षं लभेत् पतति नैव नरो भवाब्धौ ॥ 9॥

           गङ्गास्तोत्रम्

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले  ॥ 1॥

भागिरथि सुखदायिनि मातः तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ 2॥

हरिपदपाद्य तरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृति भारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ 3॥

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ 4॥

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डित गिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥ 5॥

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवति कृततरलापाङ्गे ॥ 6॥

तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ 7॥

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ 8॥

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ 9॥

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥ 10॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनः तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ 11॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ 12॥

येषां हृदये गङ्गा भक्तिः तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकन्ता पञ्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः ॥13॥

गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति सुखीस्तव इति च समाप्तः ॥ 14॥ 
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