नया साल बनाम Happy New year

         मैं सोचता हूं भारत की धरा पर प्रकृति में आज किसी प्रकार का बदलाव नहीं आया है। ठीक कल जैसा ही आज भी है। कुछ लोगों का कहना है कि आज नया साल आ गया है। हाँ सरकारी व्यवहार में दिखने वाला तथा धार्मिक कारणों से यह नववर्ष है। व्यवहार में इसी लिए आया क्योंकि हम गुलाम हो गये थे। अन्यथा हमने ही विश्व को समय को मापना सिखाया था। आज भी वह विद्या मेरे पास सुरक्षित है। नया वर्ष मानने के पीछे खगोलीय सिद्धांत नहीं, बल्कि एक मानसिक अवस्था कारण है। आज तो कुछ लोग एक पन्ना भर पलटते है। मुझे पलटने की जरुरत नहीं पडती। मकर संक्रान्ति से नया वर्ष क्यों नहीं शुरु हो सकता। उसी दिन से 1,2,3,4 की गिनती शुरु कर लो। आज के दिन की प्रतीक पूजा क्यों?
            यहां हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से रहते आ रहे हैं । हम कहीं बाहर से आकर यहां नहीं बसे हैं । हमारी संस्कृति, हमारी धार्मिक चेतना, हमारी परंपराएं यहीं पली-बढ़ी है और हम आयातित धर्मों, सिद्धांतों, मान्यताओं, परंपराओं को आत्मसात तो करते हैं परंतु अपना बनाकर। अपनी शर्तों पर। हम जब विदेशी नामों का भी भारतीयकरण कर देते रहें हैं तो संस्कृतियों का क्यों नहीं ? अभी भारतीय किसानों के खेत की फसलें नहीं काटी जा रही है । न हीं बागों में फूल खिले हैं । पेडों में फल भी आने शुरू नहीं हुए, फिर किस बात का उल्लास? जब मैं इस नव वर्ष को उल्लास के साथ मनाने को सोचता हूं, अपने को जोड़ने की कोशिश करता हूं तो मुझे इसमें किसी भी प्रकार की तार्किकता नजर नहीं आती । नयापन नजर नहीं आता।किसी भी कैलेंडर का निर्माण समय के सिद्धांत पर होता है । समय का मापन धरती के भ्रमण के आधार पर होता है । आज सूर्य उत्तरायण या दक्षिणायन नहीं हुए अर्थात् समय की गति में भी किसी प्रकार का बदलाव नहीं हो रहा। मेरे किसी भी पूर्वजों, पौराणिक पुरुषों का संबंध इस नववर्ष से नहीं रहा है। भारत भूमि पर उत्पन्न हुए किसी संतों महापुरुषों का संबंध इस नव वर्ष से नहीं रहा है । इस नव वर्ष का धार्मिक या समय के सिद्धांतों (ऋतु चक्र परिवर्तन ) से सम्बन्ध भी नहीं है। फिर यह नववर्ष किसका और किसलिए? क्या अब मुझे उल्लास मनाने के लिए आयातित परंपराओं पर निर्भर रहना पड़ेगा? क्या हमारा इतिहास और गणित इतना कमतर है कि मुझे दूसरी परंपरा का अनुसरण करना पडे।     आप बहस कर सकते हैं कि आज का दैनिक व्यवहार इसी कैलेंडर के आधार पर निर्भर है। मैं अंशतः स्वीकार करता हूं । एक बार एक ज्योतिषी से भी यही प्रश्न पूछा गया कि मुझे तिथियां याद नहीं रहती, जबकि दिनांक याद रहते हैं उन्होंने छूटते ही उत्तर दिया। यदि आपको तिथि के आधार पर पेमेंट और छुट्टी दिया जाए तो सारी तिथियां याद रहेगी। कहने का आशय यह है कि जिसे हम दैनिक व्यवहार में लाते हैं, वह याद रहने लगता है । जैसे गांव के किसानों को नक्षत्रों के नाम। मेरे पास एक नहीं अनेकों कैलेंडर है और वह मुझे सुविधा देते हैं। भारत में ही काल गणना के अनुसार 8 प्रकार के वर्ष होते हैं। हम अपना पर्व त्यौहार और व्रत चंद्र वर्ष के अनुसार तथा कुछ कार्य सौर वर्ष के अनुसार मनाते हैं । सौर वर्ष में भी 365 दिन ही होते हैं ।            
मिथिला,उडिया सहित अनेकों सांस्कृतिक परम्पराओं में अलग-अलग नववर्ष का आरंभ होता है। मुझे कब घर में रहना है और कब कौन सा मार्ग अवरुद्ध रहेगा, गुरु गोविंद सिंह जयंती कब है यह सब कुछ मैं उस कैलेंडर में देख कर निर्धारित करता हूं । अपने अन्य धर्मावलंबी मित्रों को बधाई भी तो मुझे देनी है। जानकारी के लिए सब कुछ रखना चाहिए, परंतु गर्व करने के लिए अपना ही होना चाहिए। मैं हिंदू और सब विचारधाराओं को आत्मसात करने का माद्दा भी रखता हूं । हमारी अपनी सनातन परंपरा और धर्म-दर्शन है । जीवन पद्धति है और प्रत्येक उल्लास के पीछे कोई न कोई हमारा इतिहास जुड़ा है । वह मुझे अतीत का स्मरण करता है। गर्व अनुभव करने में मददगार होता है । इस नव वर्ष में ऐसा कुछ नहीं लगता इसलिए मैं आत्मसात नहीं कर पाता हूं । जब तक इसका भारतीयकरण नहीं किया जाता तब तक इससे जुड़ना कठिन लगता है । इसमें भोगवादी प्रवृति दिखाई देती है । इसमें ईश्वर और मानवता के लिए समर्पण नहीं है ।
     हम वर्षों से जिन संस्था (कई महापुरुष भी संस्थागत रूप होते हैं ) से जुडते रहे हैं, जिससे हम लाभान्वित होते रहते हैं । उस संस्था के स्थापना दिवस/ पुण्यदिवस पर शुभकामना देना भूल जाते हैं । अच्छा होता जब हम अपने आदर्श चरित्रों को याद कर उनके जन्मदिन या पुण्यतिथि पर एक दूसरे को बधाई देते । यह नववर्ष भोगवादी और बाजारवादी प्रवृत्ति का नमूना है अतः मुझे इसमें कुछ भी नयापन नहीं लगता। मैं एक बुद्धिजीवी प्राणी हूं और मेरा विवेक आज तक इसमें कोई भी तत्व ढूंढ नहीं पाया।
भारतीय नव वर्ष कब?
भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से अप्रैल में मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिळ नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु १३ या १४ अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल १५ जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह १९ मार्च को होता है। महाराष्ट्र में नव वर्ष गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। कर्नाटक के लोग कन्नड नया वर्ष उगाडी चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं।

  सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगादि और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है। इस दिन जैन धर्म का नववर्ष भी होता है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी १४ या १५ अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है। मिथिला तथा नेपाल के मिथिलांचल का नव वर्ष कार्तिक मास में आरंभ होता है।

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