संस्कृत सप्ताह 2017

परिचय
संस्कृत दिवस रक्षाबंधन के दिन श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। संस्कृत दिवस एक परम्परा है। वैदिक साहित्य में यह श्रावणी के नाम से लिखा गया है। इसी दिन वैदिक विद्वान् उपाकर्म करते हैंइसमें हेमाद्रि संकल्प लेने के साथ यज्ञोपवीत का परिवर्तन किया जाता है। अन्य त्यौहारों की तरह ही यह एक त्यौहार है। उपाकर्म करने लिए संस्कृत भाषा की जानकारी होना आवश्यक है। इसके विना हेमाद्रि संकल्प का उच्चारण कर पाना सम्भव नहीं है। संस्कृत भाषा हमें पर्वों एवं त्यौहारों से परिचय करकार जीवन को नवगति देती है। जीवन में उल्लास का वातावरण तैयार करती है। अतः यह त्यौहारों का त्यौहार है। सभी पर्वों एवं त्यौहारों की जन्मदातृ। संस्कृत दिवस के दिन संस्कृत भाषा के प्रति प्रेम तथा अनुराग रखने वाले लोग इसे उल्लास पूर्वक मनाते हैं।
उद्देश्य
संस्कृत दिवस मनाने के पीछे मुख्यतः तीन उद्येश्य हैं-
1. वर्ष भर में संस्कृत के लिए किये गये कार्यों के मूल्यांकन ।
2. आगामी वर्ष के लिए कार्य योजना का निर्माण ।
3. इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को आयोजित कर संस्कृत के प्रति जनाकर्षण पैदा करना ।
         संस्कृत दिवस के बारे में संस्कृत के कुछ बुद्धिजीवियों को मैंने कहते सुना है कि एक दिन में बहुत कुछ नहीं बदला जा सकता। यह सच है, परंतु 1 दिन भी कुछ नहीं किया जाए, इससे यह बेहतर है कि एक दिन तो कुछ किया जाए। कोई भी दिवस प्रेरणा दिवस का कार्य करता है, जिसके आयोजनों के द्वारा हम प्रेरित होते हैं। उन आयोजनों के द्वारा समाज को जोड़ने की कोशिश करते हैं। उत्सव के बहाने जोड़े गए लोगों को साथ लेकर सालों साल काम किया जाता है। इसीलिए एक दिन को उत्सव का रूप देकर सामुहिक आयोजन किया जाता है। संस्कृत दिवस पर हम जन संवाद करते हैं। इस प्रकार हम जनता की नब्ज टटोलते हैं। जनता की नब्ज टटोलने तथा उनसे संस्कृत के वारे में राय जानने का अवसर हमें किसी विद्यालय में नहीं मिल पाता है। किसी भी भाषा की उन्नति के लिए विचार विमर्श आवश्यक होता है। संस्कृत से जो नहीं जुड़े हैं, उन्हें जोडने के लिए संस्कृत दिवस हमें अवसर भी देता है और उपाय भी। बच्चे और युवा सामूहिक आयोजन से सक्रिय हो उठते हैं।                
संस्कृत शिक्षा केंद्रों पर सिर्फ पाठ्यपुस्तकें ही पढ़ाई जाती है, जबकि संस्कृत दिवस पर हम संस्कृत के व्यापक सामाजिक, ऐतिहासिक संदर्भ को जानते और समझते हैं। संस्कृत की विकास गाथा की चर्चा हम सुनते हैं। इसकी समस्याओं से रुबरु होते हैं। भविष्य में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए कार्य योजना तैयार करते हैं। इस प्रकार संस्कृत के बारे में पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त हमारा सोच व्यापक होता है। यही संस्कृत दिवस की प्रासंगिकता है और यथार्थ भी।
           संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति, परंपरा तथा आदर्श की रक्षा कवच है। प्राचीन काल में इसी दिन से शिक्षण सत्र आरंभ होता था। रक्षाबंधन के दिन संस्कृत दिवस मनाने के पीछे उद्देश्य यह है कि जिस तरह यह भाषा अन्य भाषाओं का लालन-पालन, पोषण तथा संवर्धन की है, उसी तरह हमारा भी दायित्व बनता है कि हम इस भाषा को संरक्षण प्रदान करने का संकल्प लें। इस भाषा के प्रति आत्मीय भाव को पुनर्जागरण कराने में संस्कृत दिवस की अहम भूमिका है। यह दिवस हमें प्रेरणा देता है तथा संकल्पबद्ध होने का सुअवसर भी।
इतिहास
भारत सरकार ने 1956 में प्रथम संस्कृत आयोग का गठन किया। इस आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर सुनीति कुमार चटर्जी थे। इस कमेटी ने संस्कृत को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ने के साथ अन्य कई सिफारिशें की। उसमें एक दिन संस्कृत दिवस के रूप में मनाने की भी सिफारिश की गयी। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश से केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस मनाने का निर्देश 1969 में जारी किया गया। तब से प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन से संस्कृत दिवस मनाना आरम्भ हुआ । संस्कृत भाषा स्वयं में हजारों वर्षों का इतिहास समेटे है, इसका उसी के अनुरूप में कार्य विस्तार भी हुआ। इसमें इतने अधिक विषय वस्तु है कि मात्र 1 दिन में लोगों के परिचित करा पाना संभव नहीं था। भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश को एक ही दिन संस्कृत के समस्त पक्षों से परिचित कराना असंभव होता था। अतः इसका आयोजन सप्ताहव्यापी किए जाने की घोषणा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में किया गया। भारत में अब तक संस्कृत शिक्षा के उत्थान के लिए 2 संस्कृत आयोगों का गठन किया जा चुका है। जनता तथा लोक सभा के आग्रह पर केंद्रीय शासन ने संस्कृत भाषा के पठन-पाठन, अनुसंधान एवं संस्कृत शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन आर्थिक तथा स्वतंत्र भारत में संस्कृत भाषा के चतुर्दिक विकास एवं उसके पुनः संगठन की जानकारी के लिए विश्वविख्यात भाषा वैज्ञानिक डॉक्टर सुनीति कुमार चटर्जी की अध्यक्षता में 1 अक्टूबर सन 1956 को प्रथम संस्कृत आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने अक्टूबर 1957 में अपना सर्वांगपूर्ण प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। 12 अध्यायों के अपने इस प्रतिवेदन में सम्मानित सदस्यों ने संस्कृत शिक्षा के ऐतिहासिक विवेचन के साथ उसकी वर्तमान स्थिति का रोचक चित्रण किया है। प्रथम संस्कृत आयोग के 58 साल बाद 2013 में द्वितीय संस्कृत आयोग का गठन यूपीए-2 सरकार के समय में पद्मभूषण प्रो. सत्यव्रत शास्त्री की अध्यक्षता में किया गया। इसमें 13 सदस्य थे। इस आयोग ने 407 पृष्ठों की अंतिम रिपोर्ट मानव संसाधन विकास मंत्रालय मंत्रालय को सौंप दी। भारत सरकार ने इस आयोग द्वारा किये गये सिफारिश को लागू करने के लिए  एन. गोपालस्वामी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जो संस्कृत भाषा के लिए दसवर्षीय कार्ययोजना प्रस्तुत कर सकें। उक्त समिति ने विजन एंड रोड मैप फॉर द डेवलपमेंट ऑफ संस्कृत 10 ईयर पर्सपेक्टिव प्लान बनाकर भारत सरकार को सौंप दिया।
आवश्यकता
            सर्वविदित है कि संस्कृत भाषा से ही अन्य अधिकांश भाषाओं की उत्पत्ति हुई है भाषाओं की उत्पत्ति के साथ ही इसमें ज्ञान-विज्ञान का सृजन तथा परस्पर आदान प्रदान भी हुआ संस्कृत अन्य भाषाओं की जननी होने के साथ हैं अन्य भाषाओं को विभिन्न भावों, व्यवहारों आदि को व्यक्त करने के लिए आवश्यक शब्द उपलब्ध कराती रही है। वहीं अनुवाद परंपरा से उन्हें पुष्टि भी करती रही है। आज समस्त भारोपीय भाषाएं तथा इन भाषाओं का व्यवहार करने वाला मानव संस्कृत भाषा का ऋणी है। उनका जीवन भाषाओं के माध्यम से चलता है। संस्कृत ने ही मानवीय भाषाओं को अतीत से वर्तमान तक प्रत्येक रूप में पालन पोषण तथा संरक्षण दिया है। इस भाषा के अवदान एवं अनिवार्यता से जन-जन को परिचित कराने के लिए संस्कृत भाषा को एक त्यौहार के माध्यम से पहुँचाने तथा उन तक संपर्क बढ़ाने के लिए संस्कृत सप्ताह की आवश्यकता है।
वर्तमान स्थिति
             आज संस्कृत सीखने के मुख्य तीन स्रोत हैं। 
1. विद्यालय 
2. पत्राचार, रोडियो, टेलीविजन, इन्टरनेट, समाचार पत्र तथा पत्रिका 
3. स्वयंसेवी संगठनों, भाषा शिक्षण हेतु केन्द्र सरकार द्वारा संचालित अौपचारिक शिक्षण केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा संचालित संस्कृत सम्भाषण, पौरोहित्य आदि के प्रशिक्षण कार्यक्रम।
विद्यालय
 विद्यालयों में संस्कृत की शिक्षा देने के तीन उपक्रम है।
      (क) वह विद्यालय जिन्हें हम संस्कृत माध्यम का अथवा परंपरागत विद्यालय तथा महाविद्यालय कहते हैं। देश में कुल 14 संस्कृत विश्वविद्यालय। संस्कृत माध्यम से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा देने के लिए उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद् से उत्तर प्रदेश में 1192 विद्यालय संबद्ध हैं।
             उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद् का गठन वर्ष 2001 में तत्कालीन रामप्रकाश गुप्त के शासन काल में किया गया। आपने गठन काल से ही यह परिषद् बदहाल स्थिति में है। इस परिषद को संचालित करने के लिए अभी तक इसका अपना भवन तथा कर्मचारियों की व्यवस्था नहीं हो पायी है। यहां का पाठ्यक्रम भी अत्यंत पुराना है। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा संचालित पाठ्यक्रम को ही यहाँ भी स्वीकार किया है, जिसे 50 से अधिक वर्षों से भी बदला नहीं गया है। परिषद् के नवीन पाठ्यक्रम के निर्माण के लिए गत वर्ष प्रयास किए गए, लेकिन कुछ परंपरागत पंडितों के विरोध के कारण उसे लागू नहीं कराया जा सका। वर्ष 2005 में जहां यहां पर 200000 छात्रों की संख्या थी जो अब घटकर मात्र 80000 तक सीमित हो गई है। इस परिषद् के पाठ्यक्रमों का ट्यूटोरियल बनाने की घोषणा पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा की गई, परंतु यह योजना सरकारी फाइलों में उलझ कर रह गई ।  यह कुछ आंकडे हैं,जो संकेत करने के लिए काफी हैं कि उत्तर प्रदेश में परम्परागत माध्यमिक संस्कृत शिक्षा की स्थिति लगातार अधोमुखी होती जा रही है।
           उत्साहवर्धक बात रही कि मायावती के शासनकाल में जहां कुछ विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की गई, वहीं समाजवादी पार्टी के सरकार में 100 से अधिक नए विद्यालयों को अनुदान सूची में सम्मिलित किया गया। इस प्रकार एक आशा की किरण परम्परागत माध्यमिक संस्कृत शिक्षा से भी दिखायी दे रही है।  बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड,पटना छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्या मंडलम्,रायपुर जैसे अनेक राज्यों के बोर्ड भी परंपरागत संस्कृत के विद्यालयों को संचालित करने के लिए अलग से गठित है।
            (ख) वेद के सस्वर कण्ठस्थ पाठ परंपरा को संरक्षित रखने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन महर्षि सांदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान तथा शंकराचार्य, महर्षि महेश योगी जैसे अन्य संतों के द्वारा वेद विद्यालय खोले गए हैं। वहां पर वेद के मूल भाग को कंठस्थ कराया जाता है।
       (ग) तीसरे उपक्रम में राज्य सरकारों के बोर्ड, CBSE तथा ICSC बोर्ड, विभिन्न विश्वविद्यालय तथा उससे संबद्ध महाविद्यालय आते हैं, यहां अन्य पाठ्यक्रमों के साथ एक विषय के रूप में संस्कृत शिक्षा भी दी जाती है। इसे संस्कृत की आधुनिक धारा कहा जाता है। इन सबी स्थानों पर विद्यालय के माध्यम से संस्कृत की शिक्षा दी जाती है।
पत्राचाररोडियोटेलीविजनइन्टरनेटसमाचार पत्र तथा पत्रिका 
      जो लोग किन्ही कारणों से विद्यालय में आकर संस्कृत शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते, उनके लिए राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान एवं संस्कृतभारती जैसी संस्थाएं पत्राचार के माध्यम से संस्कृत की शिक्षा उपलब्ध करा रही है। दिव्य वाणी जैसे निजी रेडियो चैनल, टेलीविजन पर वार्तावली, CEC- UGC टीवी के व्यास चैनल पर Learn sanskrit Be Modern नामक संस्कृत सिखाने का भी कार्यक्रम चलाया जाता है। अनेक सोशल मीडिया तथा वेबसाइट के माध्यम से भी संस्कृत शिक्षण  कार्य चल रहा है। देश में अनेक दैनिक समाचार पत्र तथा 3000 से अधिक पत्रिकाओं का नियमित प्रकाशन हो रहे हैं, जिसके माध्यम से संस्कृत भाषा तथा उसमें निहित ज्ञान को सीखा जा सकता है।
स्वयंसेवी संगठनोंभाषा शिक्षण हेतु केन्द्र सरकार द्वारा संचालित अौपचारिक शिक्षण केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा संचालित संस्कृत सम्भाषणपौरोहित्य आदि के प्रशिक्षण कार्यक्रम।
       संस्कृतभारती, लोकभाषा प्रचार समिति जैसे कुछ स्वयंसेवी संगठन भाषा शिक्षण हेतु नियमित शिविरों का संचालन करता है। संस्कृतभारती ग्रीष्म काल में सम्पूर्ण देश में आवासीय संस्कृत सम्भाषण प्रशिक्षण शिविर का आयोदन करती है, जिसमें सम्भाषण शिविर में पढ़ाने हेतु प्रशिक्षण भी देती है।  राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा अन्य स्थानों पर अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण केंद्र का संचालन किया जाता है। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ प्रतिवर्ष सरल संस्कृत सम्भाषण प्रशिक्षण शिविर, ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड प्रशिक्षण शिविर का आयोजन करता है।
        यदि देखा जाए तो कोई भी भाषा स्वयं में जीविकोपार्जन का साधन नहीं होती, अपितु भाषा द्वारा उपार्जित ज्ञान से रोजगार पाया जाता है। भाषा से रोजगार खोजने वाले को चाहिए की संस्कृत में निहित ज्ञान का उपयोग करते हुए विभिन्न रोजगार को खोजें।संस्कृत भाषा के विस्तार में अनेक सहायक उपकरण है। कभी-कभी कुछ उपकरण भाषा के विकास में रुकावट भी पैदा करता है उसी में से एक है लिपि।  संस्कृत भाषा अनेक लिपि में लिखी जाती है परंतु समस्या तब आती है जब अनेक लिपि में इसकी पुस्तकें मुद्रित नहीं हो पाती। भारत जैसे देश में अनेक लिपियां प्रचलित हैं। वहां के छात्रों को संस्कृत अध्ययन के समय पहले देवनागरी लिपि का ज्ञान करना होता है, उसके बाद वह संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर पाता हैं। भाषा शिक्षण के लिए वर्तमान के डिजिटल युग में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रगत अध्ययन केंद्र द्वारा अनेक टूल्स विकसित किए। इसी प्रकार उस्मानिया विश्वविद्यालय तथा विभिन्न IIT के द्वारा भी टूल्स विकसित किए गए हैं ।
 संस्कृत की विशाल ज्ञान संपदा अभी भी पांडुलिपियों में सुरक्षित हैं। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के द्वारा कुछ वर्षों पूर्व उन पांडुलिपियों का डिजिटलाइजेशन किया गया था। अभी भी वह पांडुलिपि सुगमता से प्राप्त नहीं हो रहे हैं। यदि इसके लिए कोई समुचित तंत्र विकसित हो जाए तब संस्कृत अध्ययन का विस्तार सुनिश्चित है।
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान मुंबई परिसर के  शिक्षाशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर मदन मोहन झा तथा मैंने भी कई Android ऐप विकसित किये। पुस्तक संदर्शिका मोबाइल ऐप में संस्कृत पुस्तकों की सूची तथा विद्यालय अन्वेषिका में उत्तर प्रदेश में स्थित संस्कृत शिक्षण केंद्रों की सूची दी गयी है। अभी तक हमारे पास एक साथ एक ही स्थान पर संस्कृत शिक्षा केन्द्रों के वारे में जानकारी पाने का आसान स्रोत उपलब्ध नहीं था।  हमारे आसपास संस्कृत की कौन - कौन संस्थाएं कार्यरत है तथा उनसे हमें किस प्रकार की सहायता मिल सकती है। योग्य छात्रों को आसान सूचना उपलब्ध नहीं मिलने के कारण उन्हें उचित विद्यालय में नामांकन लेने में कठिनाई आ रही थी। अच्छे शिक्षण संस्थाओं को योग्य छात्र नहीं मिल पाते थे। अब आप घर बैठे इस ऐप की सहायता से अपने जनपद अथवा प्रदेश में स्थित माध्यमिक विद्यालयों, वेद विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि का नाम, पता, सम्पर्क सूत्र तथा वहां पर उपलब्ध शैक्षिक सुविधाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आप अपने परिचितों को उचित सुझाव दे सकते हैं। यह ऐप संस्कृत पुस्तक प्रेमियों तथा पुस्तकालयों को पुस्तक खरीद, अभिभावकों को श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान के चयन, छात्रों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचने, योजनाकार को संस्कृत संबंधी योजना के निर्माण, पत्रवाहक को संस्कृत विद्यालयों तक पत्र पहुंचाने आदि जैसे विविध कार्य में सहायक सिद्ध होगा। इससे उन संस्थाओं को भी पहचान मिल सकेगा, जो अब तक पहचान की संकट के कारण उपेक्षित थे। इसी प्रकार अबतक अनेक प्रकार के शब्दकोश, व्याकरण आदि के लिए Android ऐप आ चुका है। इस प्रकार संस्कृत के डिजिटल युग के एक नया दौर का आरंभ हो चुका है।  इसी संस्कृत सप्ताह के अवसर पर दिनांक 4 अगस्त से 10 अगस्त 2017 तक मैंने संस्कृत पद्य रचनम् ।। कवयो वयममी।। इस Facebook ग्रुप पर 25 से अधिक संस्कृत कवियों  के कविता पाठ का लाइव प्रसारण करवा चुका हूँ। डिजिटल संस्कृत कवि सम्मेलन का यह पहला और अनूठा प्रयोग था, जिसे सफलतापूर्वक संचालित किया जा चुका है। इस प्रकार संस्कृत डिजिटल युग की भाषा भी  बनती जा रही है।
इस वर्ष के संस्कृत सप्ताह में लखनऊ का हिंदी प्रिंट मीडिया संस्कृत भाषा की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित की। संस्कृत सप्ताह का समाचार छापने को लेकर उनमें प्रतिस्पर्धा का भाव देखा गया। यहां का समाज भी इस प्रकार के समाचार की प्रतीक्षा करता है, क्योंकि इस वर्ष हमने लखनऊ के निशातगंज पांचवी गली में स्थित सब्जी मंडी की दुकानों पर सब्जियों के संस्कृत में लिखे हुए नाम की पट्टिका लगाया। अनेक दुकानों पर सचित्र सब्जियों के नाम लिखे वैनर लगाये गये। लखनऊ निवासी इस अनूठे प्रयास को देखने तथा सब्जियां खरीदने  बड़ी मात्रा में आये । यहां संस्कृत को लेकर कुछ अधिक ही उत्सुकता रहती हैं। नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला ने संस्कृत सप्ताह से जुड़े समाचार को सचित्र प्रकाशित किया। 

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