गया तीर्थ की ऐतिहासिकता

हिंदुओं के अनेक प्रकार के तीर्थ है। ब्रह्म पुराण के अनुसार तीर्थों चार प्रकार के होते हैं 1- ईश्वर द्वारा उत्पन्न 2- असुर से सम्बन्धित 3- ऋषियों से सम्बन्धित 4- राजाओं (मनुष्यों) द्वारा निर्मित। गया के तीर्थों का संबंध मृत मानवों अर्थात् पितरों के साथ है। गया एक ऐसा तीर्थ है, जहां लोग अपने पूर्वजों के मृत्यु का पर्व मनाने जाते हैं। गया पितृतीर्थ है। इस तीर्थ का संबंध मानवों के अतिरिक्त दानवों तथा देवताओं से भी रहा है। यह अत्यंत प्राचीन तीर्थ है। ऋग्वेद में सर्वप्रथम इसके बारे में संकेत प्राप्त होता है। ऋग्वेद के 2 सूक्तों के रचयिता प्लति के पुत्र गय थे। महाभारत तथा वायु पुराण में जिस गयासुर का वर्णन प्राप्त होता है, उसका मूल उत्स अथर्ववेद है। यहाँ असित एवं कश्यप के साथ गय नामक एक व्यक्ति वर्णित है। गय यहां पर ऐंद्रजालिक के रूप में वर्णित है। चुंकि असुर इंद्रजाल करने में सिद्धहस्त थे, अतः परवर्ती रचनाकारों ने गय को असुर (ऐंद्रजालिक) मानते हुए कथा को विस्तार दे दिया। और्णनाभ जो बुद्ध के पूर्ववर्ती थे ने इदम् विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम् के त्रेधा शब्द का अर्थ समारोहण,विष्णुपद एवं गयशीर्ष किया है। गयशीर्ष शब्द की चर्चा महाभारत के वनपर्व, विष्णुधर्मसूत्र, विष्णु पुराण तथा महाभारत में प्राप्त होता है। नारदीय पुराण में भी गयशीर्ष की चर्चा प्राप्त होती है। गयशीर्ष का नाम वनपर्व 87/ 11 एवं 95/9, विष्णु धर्मसूत्र 85/4 विष्णु पुराण 22/20 तथा महावग्ग 1/21/1 में आया है। जैन एवं बौद्ध ग्रंथों में राजा गय का राज्य गया के चारों ओर था ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है। उत्तराध्ययन सूत्र में आया है कि वह राजगृह के राजा समुद्रविजय का पुत्र था और ग्यारहवां चक्रवर्ती हुआ। अश्वघोष के बुद्धचरितम् में ऋषि गय के आश्रम में बुद्ध का आना तथा उस संत ने निरंजना नदी के पुनीत तट पर अपना निवास बनाया और पुनः वह गया के कश्यप के आश्रम में, जो उरुबिल्व कहलाता था, का प्रसंग प्राप्त होता है। इस ग्रंथ में यह भी आया है कि वहां धर्माटवी भी थी, जहां 700 जटिल रहते थे। उन्हें बुद्ध ने निर्माण प्राप्ति में सहायता दी थी। विष्णु धर्मसूत्र में श्राद्ध के लिए विष्णुपद पवित्र स्थल कहा गया है।पद्म पुराण आदि 38/2-21, गरूड 1 अध्याय 82-86 आदि में गया के विषय में अनेक उद्धरण एवं कखानक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि पौराणिक काल आते आते वेद की एक ऋचा किस प्रकार एक कथानक के रूप ले लेती है। संस्कृत का ग्रन्थ धार्मिक पर्यटन (तीर्थ) के माध्यम से किस प्रकार अर्थव्यवस्था को रप्तार देता है। भारत की एकता और अखण्डता में इसका कितना अहम योगदान है। यह धर्म के फलक को भी विस्तार देता है। पवित्र नदियों में स्नान का भी उतना ही महत्व है,जितना कि विशाल द्रव्य खर्च कर होने वाले यज्ञ यागादि का। ये तीर्थ विना भेदभाव के सभी के लिए उपलब्ध थे। अस्तु।

गया ईसा के कई शताब्दियों पूर्व एक समृद्धशाली नगर था। फाहियान के भारत आगमन के समय (चौथी शताब्दी) में यह नगर नष्टप्राय था, किंतु सातवीं शताब्दी में जब ह्वेनसांग यहां आया तो इसे भरा पूरा देखा। व्हेनसांग के अनुसार यहां ब्राह्मणों के 1000 कुल थे। प्राचीन पाली ग्रंथों एवं ललितविस्तर में भी गया के मंदिरों का उल्लेख प्राप्त होता है। कुल मिलाकर इतना स्पष्ट है कि बुद्ध के आविर्भाव के पूर्व गया तीर्थ अपने अस्तित्व में आ चुका था।
हजारों वर्षों से गया तीर्थ हिंदुओं के आस्था का केन्द्र रहा है। गया के बारे में विपुल मात्रा में साहित्य भी प्राप्त होते हैं। आज संपूर्ण गया 15 किलोमीटर में फैला है। इसके पूर्व में महानदी फल्गु अवस्थित है। यह सुखी नदी है। गड्ढा खोदकर लोग इसमें से जल प्राप्त करते हैं। इसका संबंध गायबाल जाति के लोगों से तथा गयासुर से भी जोड़ा जाता है। वायु पुराण के 106 अध्याय में इस नगर का नाम तथा इसके उत्पत्ति की कहानी प्राप्त होती है। गय नामक असुर से पीड़ित देवगन अपनी रक्षा हेतु ब्रह्मा के पास जाते हैं। ब्रह्मा उन्हें लेकर शिव के पास गये। शिव ने उन्हें विष्णु के पास जाने का सुझाव दिया। ब्रह्मा तथा शिव ने मिलकर विष्णु की स्तुति की। विष्णु प्रकट होकर सभी देवों से कहे कि आप लोग गयासुर के पास चलें। विष्णु ने गयासुर के कठिन तप का कारण पूछा गया से वरदान मांगा कि वह देवताओं, ऋषि तथा मंत्रों से भी अधिक पवित्र हो जाए। देवों ने तो अस्तु कहा और स्वर्ग चले गए। इस प्रकार एक लंबी कथा वहां प्राप्त होती है। गया के प्रमुख स्थान है- विष्णुपद,  बोधिवृक्ष, प्रेतशिला, फाल्गु नदी
गया के तीर्थ की संख्या तो बहुत अधिक है परंतु सभी तीर्थयात्री सभी तीर्थों की यात्रा नहीं करते हैं बल्कि इन्हीं तीन स्थलों की यात्रा करते हैं। विष्णुपद में भगवान विष्णु के पदचिन्ह स्थापित है। जिसका आकार लगभग 16 इंच लंबा है। इस मंदिर में सभी हिंदू मतावलंबी दर्शन करने जाते हैं। यहां कोई 45 वेदियां हैं। विस्तृत अध्ययन के लिए पढें-वायु पुराण (गया माहात्म्य)
प्राचीन ग्रन्थ जिसमें गया तीर्थ का वर्णन प्राप्त होता है-
1- तीर्थचिन्तामणि
2- तीर्थप्रकाश
3- तीर्थेन्दु शेखर
4- त्रिस्थली सेतु
5- त्रिस्थली सेतु सार संग्रह
गया श्राद्ध के लिए लिखित प्राचीन ग्रन्थ
ग्रन्थ ग्रन्थकार
1- गयाश्राद्धपद्धति ---- वाचस्पति
2- तीर्थयात्रातत्व --------- रघुनन्दन
3- गयाश्राद्धपद्धति ---------- माधव के पुत्र रघुनाथ
4- गयाश्राद्धविधि ---------- वाचस्पति


नोट- साक्ष्य तथा सामग्री मिलने के साथ- साथ लेख में निरन्तर परिवर्तन होता रहेगा।


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