ज्ञान की महीयसी राशि ऋषियों द्वारा देखे गये, जिनके नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद है। इनके चार श्रेणी है।
1. मंत्र संहिता में
मंत्रों को एक साथ रखा 2. ब्राह्मण ग्रन्थ इसे आपस्तम्ब
वेद मानते है। परन्तु वहाँ केवल वेद की व्याख्या की गयी है। ब्राह्मण ग्रन्थों में
समाजशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र का उद्भव एवं विकास है। इन समाजशास्त्र एवं राजनीति शास्त्रों के महाकोश के रूप में यहां
संरचना प्राप्त होती हैं। भारतीय समाजिक संस्थाओं का उद्भव ब्राह्मण ग्रन्थों से
ही हुआ है। कृष्ण यजुर्वेद में मंत्र भाग और ब्राह्मण भाग को अलग नहीं किया जा
सकता, अतः इसे कृष्ण यजुर्वेद कहा गया है। यहाँ विकृति
पाठ की योजना, अनुक्रमणियाँ नहीं देखी जाती। आर्य समाज
तथा अनेक पूर्ववर्ती भाष्यकार संहिता भाग के अन्तर्गत ब्राह्मण ग्रन्थों को नहीं
मानते हैं। ब्राह्मण भाग के अन्तिम अंश उपनिषद् है। वेदों के संहिताकरण का प्रयोजन
यज्ञानुष्ठान से है। यज्ञ में चार मुख्य कर्ता होते है। 1. ऋतिक 1. होता 2. उद्गाता 3. अध्वर्यु 4. ब्रह्मा
ये यज्ञ के भाग है। होता का वेद ऋग्वेद है। वह होतृमेध में ऋग्वेद का मंत्र बोलता
है। यज्ञ का संयोजन कर्ता अध्वर्यु है। अध्वर का अर्थ वेद से है। अध्वर्यु का वेद
यजुर्वेद है। उद्गाता सामवेद के मंत्रों का गान करता है। सर्वकर्माभिज्ञ ब्रह्मा
होता है। इसका सम्बन्ध इन्द्र से है। अग्नि से ऋग्वेद, आदित्य
से यजुर्वेद एवं वायु से सामवेद है।
संहिताकरण का आधार
पूर्व में सभी वेदों के मंत्र मिले हुए थे। देश
के सबसे बड़े प्रज्ञापुरूष वेद व्यास को वेदों के वर्गीकरण का श्रेय जाता है।
यद्यपि वेदों को त्रिपिटक ग्रन्थ के जैसे विभाजन अथवा सम्पादन सम्भव नहीं था।
महाभारत के सम्पादन को भी विदेशियों ने असाध्य मानकर छोड़ दिया। बाद में बड़ौदा एवं
पूना से इसके संशोधित संस्करण प्रकाशित हुए। वेदों का वर्गीकरण करके अपने चार प्रिय शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी तथा सुमन्तु को क्रमशः
प्रचार-प्रसार हेतु नियुक्त किया। ऋग्वेद का वर्गीकरण निम्नानुसार किया-
1. दूसरे मण्डल से सातवें मण्डल
तक वंश मण्डल नाम से बनाये गये। ये पारिवारिक मण्डल है, जिसमें गृत्समद्, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, वामदेव भारद्वाज आदि ऋषियों अथवा इसके वंशजों द्वारा सात्क्षात्कार किये
गये मंत्रो के संकलन प्राप्त होते है। वेद व्यास
नें इन मंत्रो को पृथक्-पृथक् कर सब तक पहुँचाया।
2. नवें
और दसवें मण्डल का सम्पादन विषय की दृष्टि से किया गया। नवें मण्डल में सोम की
प्रशंसा की गयी तथा दसवें मण्डल का सांस्कृतिक महत्व है। अमेरिकी शोधकर्ता कवक वंश
को सोम वंश माना है, जिसे दाण्डेकर ने खण्डन कर दिया है।
यजुर्वेद में यज्ञ के अनुरूप मंत्र है। सामवेद
गान प्रधान है, इसके दो भाग है।
1. आर्चिक
- ऋचा भाग 2. गान भाग । कुछ
गान आरण्य में गाये जाते थे। सामवेद में लगभग एक हजार ढंग से गान होते थे। अर्थवेद
जीवन का वेद है। यह लौकिक एवं पारमार्थिक दोनों रूप में उपयोगी है। ऋग्वेद की शाकल
शाखा उपलब्ध है। शाखाओं से तात्पर्य मंत्रों के प्रचार-प्रसार
से है। वेदों की सभी शाखाओं का एक ही संहिता मान्य है। शाखाओं में न्यूनाधिक्य या
पौर्वापर्य भेद देश के आधार पर होता है। कुछ शाखाओं के मंत्रों में पाठ भेद भी
मिलते है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें