भक्ति
आन्दोलन के प्रवर्तक द्वैतवादी मध्वाचार्य का जन्म कर्णाटक के पाजक नामक स्थान पर हुआ। यह उडुपी के समीप है। इनके पिता का नाम मध्वगेद भट्ट
तथा गुरु का नाम अच्युतप्रेक्ष था। भारत के दार्शनिकों में से एक थे। इनका अन्य
नाम पूर्णप्रज्ञ व आनंदतीर्थ भी हैं। मध्वाचार्य को वायु का तृतीय अवतार माना जाता
है (हनुमान और भीम क्रमशः प्रथम व द्वितीय अवतार थे)। मध्वाचार्य ने गोदावरी के तटवर्ती भाग में रहने वाले शोभनभट्ट जैसे अनेक वेदान्तयों को अपना शिष्य बनाया। उन्होंने तत्ववाद का
प्रवर्तन किया जिसे द्वैतवाद के नाम से जाना जाता है। द्वैतवाद,
वेदान्त की तीन प्रमुख दर्शनों में एक है।
मध्वाचार्य
लिखित ग्रन्थ
मध्वाचार्य
ने सैंतीस ग्रन्थों की रचना की। इन्होने द्वैत दर्शन के ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा
और अपने वेदांत के व्याख्यान की तार्किक पुष्टि के लिये एक स्वतंत्र ग्रंथ 'अनुव्याख्यान' भी
लिखा। श्रीमद्भगवद्गीता और 10 उपनिषदों पर
टीकाएँ, महाभारत के तात्पर्य की व्याख्या करनेवाला ग्रंथ महाभारततात्पर्यनिर्णय
तथा श्रीमद्भागवतपुराण पर टीका ये इनके मुख्य ग्रंथ है। ऋग्भाष्य
(ऋग्वेद 1.1- 40) के चालीस सूक्तों पर भी एक टीका लिखी । ऐसा
लगता है कि ये अपने मत के समर्थन के लिये प्रस्थानत्रयी की अपेक्षा पुराणों पर
अधिक निर्भर है।
मध्वाचार्य
के सिद्धान्त
वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्यों के सिद्धान्त को समझने के लिए शंकराचार्य के अद्वैत सिद्धान्त को जानना आवश्यक हो जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के सभी आचार्यों ने अद्वैत सिद्धान्त का खण्डन करने के साथ-साथ एक दूसरे के सिद्धान्त का भी खण्डन करते हैं। श्री मध्वाचार्य ने प्रस्थानत्रयी ग्रंथों
से अपने द्वैतवाद सिद्धांत का विकास किया। यहाँ इन्होंने शंकराचार्य के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्टाद्वैतवाद का खण्डन किया है। ये जीव और जगत् को मिथ्या न मानकर सत्य मानते हैं। मध्व जीवात्मा एवं परमात्मा की विशेषताओं में साम्य मानते हैं। यह `सद्वैष्णव´
भी कहा जाता है, यह श्री
रामानुजाचार्य के श्री वैष्णवत्व से अलग है।
मध्वाचार्य
ने 'पाँच भेदों' की स्थापना की, जो `अत्यन्त भेद दर्शनम्´ भी कहा जाता है। उसकी पांच
विशेषतायें हैं-
(क) भगवान और व्यक्तिगत आत्मा का पार्थक्य, (ईश्वर और जीव)
(ख) परमात्मा और पदार्थ का पार्थक्य, (ईश्वर और जड जगत्)
(ग) जीवात्मा एवं पदार्थ का पार्थक्य, (जीव और जगत्)
(घ) एक आत्मा और दूसरी आत्मा में पार्थक्य तथा (जीव और जीव)
(ङ) एक भौतिक वस्तु और अन्य भौतिक वस्तु में पार्थक्य। (जड और जड)
मध्व दर्शन के अनुसार समस्त जीव एक दूसरे से भिन्न है। यह परमात्मा से भी भिन्न है।
मध्व दर्शन के अनुसार समस्त जीव एक दूसरे से भिन्न है। यह परमात्मा से भी भिन्न है।
अत्यन्त
भेद दर्शनम् का वर्गीकरण पदार्थ रूप में
इस प्रकार भी किया गया है :
(अ) स्वतंत्र
(आ) आश्रित
स्वतंत्र
वह है जो पूर्ण रूपेण स्वतंत्र है। जो भगवान या सनातन सत्य है। लेकिन जीवात्मा और
जगत् भगवान पर आश्रित हैं। इसलिये भगवान उनका नियंत्रण करते हैं। परमात्मा
स्वतंत्र हैं। इसलिए उनका वर्गीकरण असम्भव है। आश्रित तत्त्व सकारात्मक एवं
नकारात्मक रूप में विभाजित किये जाते हैं। सकारात्मक को भी चेतन (जैसे आत्मा) और
अचेतन (जैसे वे पदार्थ) में वर्गीकृत किया जा सकता है।
अचेतन
तत्त्व को परिभाशित करने के पहले मध्वाचार्य स्वतंत्र और आश्रित के बारे में बताते
हैं जो संसार से नित्य मुक्त हैं। इस विचारधारा के अनुसार विष्णु स्वतंत्र हैं जो
विवेकी और संसार के नियन्ता हैं। उनकी शक्ति लक्ष्मी हंत जो नित्य मुक्त हैं। कई
व्यूहों एवं अवतारों के रूपों में हम विष्णु को पा सकते हैं (उन तक पहुँच सकते
हैं)। उसी प्रकार अत्यन्त आश्रित लक्ष्मी भी विष्णु की शक्ति हैं और नित्य भौतिक
शरीर लिये ही कई रूप धारण कर सकती हैं। वह दुख-दर्द से परे हैं। उनके पुत्र
ब्रह्मा और वायु हैं। `प्रकृति´ शब्द प्र = परे + कृति = सृष्टि का संगम है।
मध्वाचार्य
ने सृष्टि और ब्रह्म को अलग माना है। उनके अनुसार विष्णु भौतिक संसार के कारण
कर्ता हैं। भगवान प्रकृति को लक्ष्मी द्वारा सशक्त बनाते हैं और उसे दृश्य जगत में
परिवर्तित करते हैं। प्रकृति भौतिक वस्तु, शरीर
एवं अंगों का भौतिक कारण है। प्रकृति के तीन पहलुओं से तीन शक्तियाँ आविर्भूत हैं
: लक्ष्मी, भू (सरस्वती-धरती) और दुर्गा। अविद्या (अज्ञान)
भी प्रकृति का ही एक रूप है जो परमात्मा को जीवात्मा से छिपाती है।
मध्वाचार्य
जी का विश्वास है कि प्रकृति से बनी धरती माया नहीं, बल्कि परमात्मा से पृथक सत्य है। यह दूध में छिपी दही के समान परिवर्तन
नहीं है, न ही परमात्मा का रूप है। इसलिए यह अविशेष द्वैतवाद
ही है।
मध्वाचार्य
जी ने रामानुजाचार्य का आत्माओं का वर्गीकरण को स्वीकार किया। जैसे :--
(क) नित्य - सनातन (लक्ष्मी के समान)
(ख) मुक्त - देवता, मनुष्य, ॠषि,
सन्त और महान व्यक्ति
(ग) बद्ध - बँधे व्यक्ति
मध्वाचार्य
ने इनके साथ और दो वर्ग जोड़ा, जो मोक्ष के योग्य है और जो मोक्ष के योग्य नहीं है
:
1.
पूर्ण समर्पित लोग, बद्ध भी मोक्ष के लिए
योग्य हैं।
2.
जो मोक्ष के लिए योग्य नहीं हैं। वे हैं:
(क) नित्य संसारी : सांसारिक चक्र में बद्ध।
(ख) तमोयोग्य : जिन्हें नरक जाना है।
इस
वर्गीकरण के अनुसार जीवात्मा का एक अलग अस्तित्व है। इस प्रकार एक आत्मा दूसरी
आत्मा से भिन्न होती हैं। इसका अर्थ आत्मा अनेक हैं। जीवात्मा परमात्मा एवं प्रकृति
से भिन्न होने से परमात्मा के निर्देश पर आश्रित है। उनके पिछले जन्मों के आधार
(कर्मो) पर परमात्मा उन्हें प्रेरित करते हैं। पिछले कर्मो के अनुसार जीवात्मा
कष्ट झेलते हैं, जिससे उनकी आत्मा पवित्र हो
जाती है और जीवन-मरण से मुक्त होकर आनन्द का अनुभव करती हैं जो आत्मा की सहजता है।
आनन्दानुभूति में जीवात्मा भिन्न होती है। लेकिन उनमें कोई वैमनस्य नहीं होता और
वे पवित्र होकर परब्रह्म को प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन वे परमात्मा के बराबर नहीं
हो सकतीं। वे परमात्मा की सेवा के लायक हो जाती हैं। नवधा भक्ति मार्ग से आत्मा
परमात्मा की कृपा से मुक्ति प्राप्त कर लेती है।
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