संस्कृत शिक्षण पाठशाला 1 में आपको वर्णों से परिचय कराया गया। वर्णों से परिचय कराने के दो उद्देश्य हैं। 1. सन्धि प्रकरण में वर्णों के मेल को समझाना। 2. पदों के रूप को समझना। स्वर तथा व्यंजन के मेल से शब्द बनते हैं। किसी वाक्य में एक या दो पद होते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, अव्यय को सुबन्त तथा धातु (क्रिया) को तिङन्त कहा जाता है। संस्कृत शिक्षण पाठशाला 1 में इन्हें विस्तार से समझाया गया है। सुबन्त तथा तिङन्त पदों से परिचित हो जाने बाद हम वाक्य निर्माण में समर्थ हो जाते हैं। आप इनका भरपूर अभ्यास कर लें। सुबन्त पदों में स्वरांत शब्दों के मूल रूप से तथा धातु (क्रिया) के लिए उसके मूल रूप के साथ गण से परिचय होना आवश्यक है। इसी आधार पर इसके रूप बनते हैं। इस पाठ को लिखते समय मैं यह महसूस कर रहा हूँ कि जिज्ञासु अध्येता धातुओं के मूल स्वरूप से परिचित नहीं हैं अतः उनके सम्मुख धातुओं के लट्, लङ् लृट् लकार के रूप आने पर अर्थ बोध नहीं हो पाता। अस्तु। वाक्य में अनेक प्रकार के सुबन्त पद तथा धातुओं का उपयोग होता है। इस ब्लॉग में मैंने संस्कृत के उन प्रमुख धातुओं को संग्रहीत कर प्रकाशित किया है, जिसका बार-बार प्रयोग होता है। मैंने गत अध्याय में कुछेक सुबन्त तथा तिङन्त पदों के रूपों से आपका परिचय करा दिया है। यहाँ आपके अभ्यास के लिए लिंक भी दिये गये हैं। अब जब हम दोनों प्रकार के पदों और उसके रूप से परिचय प्राप्त कर लेते हैं तब वाक्य संरचना के लिए कुछ नियम जानना आवश्यक हो जाता है। जैसे- 1. प्रथम पुरुष 2. मध्यम पुरुष तथा 3. उत्तम पुरुष का ज्ञान । इसके साथ वचन से भी परिचय कराया जा चुका है। यहीं पर 1. वर्तमान काल (जिस समय कार्य होते रहता है) 2. भूत काल (जब कोई काम हो चुका होता है) 3. भविष्यत् काल सहित अन्य लकारों की भी जानकारी दी जा चुकी है। इस प्रकार इस पाठ में सुबन्त तथा तिङन्त पदों, काल, वचन, पुरुष तथा लिंग से परिचय करते हुए एक- एक वाक्य बनाना सिखाया जा चुका है। यहीं पर कारक से परिचय कराया जा चुका है। कुल मिलाकर संस्कृत वाक्य विन्यास को इसमें संक्षेप में समझाया गया है। संस्कृत शिक्षण पाठशाला 2, 3 तथा 4 में इन्हें और विस्तार दिया गया है। संस्कृत शिक्षण पाठशाला 2 पाठकों की जिज्ञासाओं के समाधान के लिए लिखा जा रहा है।काल ( समय ) जब हम किसी कार्य के होने या करने के बारे में बोलते हैं तो वह किसी न किसी समय से बंधा होता है।अतः किसी क्रिया को जिस समय में किया जाता है , उसे काल कहते हैं। समय को हम मुख्यतः तीन भागों में बांटते हैं। 1. वर्तमान काल (जिस समय कार्य होते रहता है) । इसे लट् लकार कहा जाता है। 2. भूत काल (जब कोई काम हो चुका होता है) । इसे लङ् लकार कहा जाता है। 3. भविष्यत् काल (जब कोई काम होने वाला हो)। इसे लृङ् लकार कहा जाता है। यहाँ हम उसे मोटे अक्षर द्वारा प्रदर्शित करते हैं। लोट् और विधि लिङ् लकार का प्रयोग विधान करने, आज्ञा देने आदि अर्थों में होता है।
सबसे पहले हम लट् लकार के तीनों वचनों प्रयोग करेंगें। इस पाठ में ही हम तीन काल, तीन पुरुष तथा तीन लिंग का एक- एक वाक्य बनाना सीखेंगें। लोट् तथा विधि लिङ् का भी वाक्य बनायेंगें। वर्तमान काल के लिए प्रयुक्त लट् लकार का रूप (पठति, पठतः, पठन्ति आदि) ऊपर के पाठ में आप पढ़ चुके हैं। बोलचाल में लोट् लकार का अधिक प्रयोग होते देखा जाता है, जबकि किसी घटनाक्रम के वर्णन में भूतकाल का प्रयोग होता है। इस पाठ के बाद इस पाठशाला में संस्कृत के 10 लकारों के बारे में भी जानकारी दूँगा। संस्कृत के सामान्य अध्येता के लिए 5 लकार का ज्ञान पर्याप्त है। संस्कृत में काल के लिए लकार शब्द का भी प्रयोग होता है। इनके भेद अधोलिखित हैं। लट्- वर्तमान काललृट्- सामान्य भविष्यलोट्- आज्ञा देनेलङ्- अद्यतन भूत विधि लिङ्- विधि, सम्भावना, इच्छा वद् धातु लट् लकार वदति वदतः वदन्तिवदसि वदथः वदथ
वदामि वदावः वदामः
वद् धातु लृट् लकार- सामान्य भविष्य वदिष्यति वदिष्यतः वदिष्यन्ति
वदिष्यसि वदिष्यथः वदिष्यथ वदिष्यामि वदिष्यावः वदिष्यामः लोट्- वर्तमान कालवदतु वदताम् वदन्तुवद वदतम् वदतवदानि वदाव वदाम
लङ् लकार- अद्यतन भूत
अवदत् अवदताम् अवदन्अवदः अवदतम् अवदत
अवदम् अवदाव अवदाम
विधि लिङ् लकार- सम्भावना, इच्छा
वदेत् वदेताम् वदेयुः
वदेः वदेतम् वदेत
वदेयम् वदेव वदेम
लृङ्- क्रियातिपत्ती (हेतु हेतु मद् भविष्य) लिट्- परोक्ष भूत लुङ्- सामान्य भूत लुट्- अनद्यतन भविष्य आशीर्लिंङ् - आशीर्वाद
अभ्यास- इन पाँच लकारों का कर्ता के साथ वाक्य बनायें।
विशेष नियम-
1.अभी तक हमने सामान्य नियम पढ़ा है कि जब किसी क्रिया का एक कर्ता हो तो क्रिया भी एकवचन का होती है तथा दो कर्ता होने पर क्रिया द्विवचन। दो कर्ताओं के बीच और शब्द के लिए च शब्द लिखते हैं। लेकिन जब एक वाक्य में संज्ञाओं को अलग-अलग समझी जाती है या सभी मिलकर एक विचार का रूप लेती है तब अनेक संज्ञा के लिए भी एकवचन क्रिया का ही प्रयोग किया जाता है। जैसे- पटुत्वं सत्यवादित्वं कथायोगेन बुध्यते।
2. अथवा के साथ जुड़े क्रियापदों के साथ एकवचन की क्रिया होती है। जैसे- सुरेशः महेशः राधा वा गच्छतु।
3. जब कर्ता भिन्न वचनों के होते हैं, तब कर्ता के निकटतम वचन के अनुसार क्रिया होती है। जैसे- त्वं वा अयं वा पुस्तकं गृह्णातु।
4. जब दो या दो से अधिक विभिन्न पुरुषों वाले कर्ता शब्द और द्वारा संयुक्त होते हैं तब इस प्रकार की क्रिया होगी-
(क) उत्तम, मध्यम तथा प्रथम पुरुष के योग में उत्तम पुरुष की क्रिया।
(ख) मध्यम तथा प्रथम पुरुष के योग में मध्यम पुरुष की क्रिया।
(ग) जब विभिन्न पुरुषों के दो या दो से अधिक कर्ता अथवा (वा) से जुड़े हों तो क्रिया का वचन तथा पुरुष निकटतम कर्ता के अनुसार होती है।क्रियापदों से परिचय तथा भेद संस्कृत में तीन प्रकार के क्रियाओं के पद (शब्द) होते है। 1.परस्मैपद 2.आत्मनेपद और 3.उभयपद परस्मैपदी धातु - भू-भवति, भवतः, भवन्ति आदि। आत्मनेपदी धातु - शी - शेते, शयाते शेरते आदि। उभयपदी धातु - कृ - (i) करोति, कुरुतः, कुर्वन्ति आदि (ii) कुरुते, कुर्वाते, कुर्वते आदि । इसमें कुछ धातु सकर्मक तथा कुछ धातु अकर्मक होता है। यह सकर्मक, अकर्मक भी क्रिया के दो भेद माने जाते हैं। जिस क्रिया का कार्य अन्य किसी कर्म के बिना नहीं हो सकता अर्थात् जिसमें कर्म आवश्यक होता है उसको सकर्मक-क्रिया और जो क्रिया स्वतन्त्र रूप से स्वयं ही अपने कार्य को कर सकती है अर्थात् जिसमें कर्म की आवश्यकता नहीं होती उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं । धातुओं के बारे में संस्कृत शिक्षण पाठशाला 2 में विस्तार से चर्चा की गयी है । यहाँ कुछ परस्मैपदी तथा कुछ आत्मनेपदी धातुओं के नाम, उसका प्रथम पुरुष, एकवचन का रूप तथा हिन्दी में अर्थ दिया जा रहा है।
सबसे पहले हम लट् लकार के तीनों वचनों प्रयोग करेंगें। इस पाठ में ही हम तीन काल, तीन पुरुष तथा तीन लिंग का एक- एक वाक्य बनाना सीखेंगें। लोट् तथा विधि लिङ् का भी वाक्य बनायेंगें। वर्तमान काल के लिए प्रयुक्त लट् लकार का रूप (पठति, पठतः, पठन्ति आदि) ऊपर के पाठ में आप पढ़ चुके हैं। बोलचाल में लोट् लकार का अधिक प्रयोग होते देखा जाता है, जबकि किसी घटनाक्रम के वर्णन में भूतकाल का प्रयोग होता है। इस पाठ के बाद इस पाठशाला में संस्कृत के 10 लकारों के बारे में भी जानकारी दूँगा। संस्कृत के सामान्य अध्येता के लिए 5 लकार का ज्ञान पर्याप्त है। संस्कृत में काल के लिए लकार शब्द का भी प्रयोग होता है। इनके भेद अधोलिखित हैं।
वदसि वदथः वदथ
वदामि वदावः वदामः
वदिष्यसि वदिष्यथः वदिष्यथ
विधि लिङ् लकार- सम्भावना, इच्छा
वदेत् वदेताम् वदेयुः
वदेः वदेतम् वदेत
वदेयम् वदेव वदेम
विशेष नियम-
1.अभी तक हमने सामान्य नियम पढ़ा है कि जब किसी क्रिया का एक कर्ता हो तो क्रिया भी एकवचन का होती है तथा दो कर्ता होने पर क्रिया द्विवचन। दो कर्ताओं के बीच और शब्द के लिए च शब्द लिखते हैं। लेकिन जब एक वाक्य में संज्ञाओं को अलग-अलग समझी जाती है या सभी मिलकर एक विचार का रूप लेती है तब अनेक संज्ञा के लिए भी एकवचन क्रिया का ही प्रयोग किया जाता है। जैसे- पटुत्वं सत्यवादित्वं कथायोगेन बुध्यते।
2. अथवा के साथ जुड़े क्रियापदों के साथ एकवचन की क्रिया होती है। जैसे- सुरेशः महेशः राधा वा गच्छतु।
3. जब कर्ता भिन्न वचनों के होते हैं, तब कर्ता के निकटतम वचन के अनुसार क्रिया होती है। जैसे- त्वं वा अयं वा पुस्तकं गृह्णातु।
4. जब दो या दो से अधिक विभिन्न पुरुषों वाले कर्ता शब्द और द्वारा संयुक्त होते हैं तब इस प्रकार की क्रिया होगी-
(क) उत्तम, मध्यम तथा प्रथम पुरुष के योग में उत्तम पुरुष की क्रिया।
(ख) मध्यम तथा प्रथम पुरुष के योग में मध्यम पुरुष की क्रिया।
(ग) जब विभिन्न पुरुषों के दो या दो से अधिक कर्ता अथवा (वा) से जुड़े हों तो क्रिया का वचन तथा पुरुष निकटतम कर्ता के अनुसार होती है।
परस्मैपदी धातुएँ - दा-ददाति (देता है), क्री- क्रीणाति (खरीदता है), चुर् - चोरयति (चुराता है), रुद – रोदति (रोता है), ब्रू-ब्रवीति (बोलता है), दुह् - दोग्धि (दुहता है), इष्- इच्छति (चाहता है), विद्- वेत्ति (जानता है), याच् -याचति (माँगता है), हन् - हन्ति ( मारता है), प्रच्छ – पृच्छति (पूछता है), हस्- हसति (हँसता है), पच्– पचति (पकाता है), नृत्– नृत्यति (नाचता है), घ्रा - जिघ्रति (सूंघता है), हृ-हरति (हरता है), कथ्- कथयति (कहता है), नी–नयति (ले जाता है), जागृ- जागति (जागता है), अद्-अत्ति (खाता है), भो - बिभ्यति (डरता है), अर्च्-अर्चति (पूजता है), अर्ज्-अर्जति (कमाता है), अश्- अश्नाति (खाता है), अस्-अस्यति (फेंकता है), आप्-आप्नोति (पाता है), आप्- आपयति (पहुँचाता है), ई-एति (जाता है), प्र- ईर् -प्रेरयति (प्रेरित करता है), ईष्य् – ईर्ष्यति (ईर्ष्या करता है), कुप्- कुप्यति (क्रोध करता है), कृष्-कर्षति (खींचता है), क्रन्द- क्रन्दति (रोता है), क्रीड्- क्रीडति (खेलता है), क्लिश्-क्लिश्नाति (दुःख देता है), क्षल्-क्षालयति (धोता है), क्षिप्-क्षिपति (फेंकता है), खन्-- खनति (खोदता है), खाद्- खादति (खाता है), गण्-गणयति (गिनता है), गर्ज- गर्जति (गरजता है), गर्ह्- गर्हयति (निन्दा करता है), गवेष्- गवेषयति (खोजता है), गृ– गिरति, गिलति (निगलता है), गै- गायति (गाता है), घुष्- घोषयति (घोषित करता है) चर्-चरति (विचरता है, चरता है), चल्- चलति (चलता है), चि-चिनोति (चुनता है), चिन्त् - चिन्तयति (चिन्ता करता है), जप्-जपति (जपता है), जीव्— जीवति (जीता है), जृ- जीर्यति (वृद्ध होता है), ज्वल्-ज्वलति (जलता है), तड् - ताडयति (पीटता है), तन्- तनोति (फैलाता है), तप्- तपति (तपता है), तर्क - तर्कयति (सोचता है), तर्ज्- तर्जयति (डाँटता है), तुद् - तुदति (दुःख देता है) तुल्-तोलयति (तोलता है), तुष्- तुष्यति ( प्रसन्न होता है), तृप् - तृप्यति (तृप्त होता है), तृ- तरति (तैरता है), त्यज्-त्यजति (छोड़ता है), दण्ड–दण्डयति (दण्ड देता है), दह-दहति (जलाता है), दिव्-दीव्यति (जुबा खेलता है), दिश्—दिशति (देता है, कहता है), द्रुह, -द्रुह्यति (ईर्ष्या करता है), धा- दधाति (धारण करता है), वह्- वहति (वहता है, ले जाता है), धाव्– धावति (दौड़ता है), ध्यै–घ्यायति (ध्यान करता है), नश्– नश्यति (नष्ट करता है), पत्- पतति (गिरता है), पा-पाति (रक्षा करता है), बन्ध्-बघ्नाति (बांधता है), भक्ष्- भक्षयति (खाता है), भज्- भजति (सेवा करता है), भुज्-भुनक्ति (पालता है), मुच्–मुञ्चति (छोड़ता है), लिख्-लिखति (लिखता है), शक्-शक्नोति (सकता है)
1. भ्वादि । 2. अदादि । 3. जुहोत्यादि । 4. दिवादि 5. स्वादि । 6. तुदादि । 7. रुधादि । 8. तनादि । 9. क्रयादि । 10. चुरादि ।
इस श्लोक को याद कर लें-
भ्वाद्यदादी जुहोत्यादिदिवादिः स्वादिरेव च ।
तुदादिश्च रुधादिश्च तन-क्र्यादिचुरादयः ॥
पाठ- 29
धातुओं के क्रियापद पर चटका लगाकर धातु का नाम लिखें। सर्च पर क्लिक करें। नया विंडो खुलने पर धातु के नाम पर क्लिक करें। पुनः इच्छित लकार का चयन कर धातुरूप देखें ।
अथवा
धातुरूपमाला पर क्लिक कर ऐप डाउनलोड करें।
परस्मैपदी धातुरूप को याद करने के लिए नीचे ट्रिक दिया गया है। प्रमुख 6 लकारों के धातुरूप को याद रखने के लिए धातु के आगे इन प्रत्ययों को लगायें। जैसे- पठ् + ति – पठति।
प्रत्यय |
लट् |
लिट् |
लुट् |
लृङ् |
लोट् |
लङ् |
तिप् |
ति |
णल् - अ |
ता |
ष्यति |
तु/तात् |
अत् |
तस् |
तः |
अतुस् - अतुः |
रौ |
ष्यतः |
आताम् |
अताम् |
झि |
अन्ति |
उस् - उः |
रः |
ष्यन्ति |
अन्तु |
अन् |
सिप् |
सि |
थल्- इथ |
सि |
ष्यसि |
अ/तात् |
अः |
थस् |
थः |
अथुस्- अथुः |
स्थः |
ष्यथः |
तम् |
अतम् |
थ |
थ |
अ |
थ |
ष्यथ |
त |
अत |
मिप् |
आमि |
णल् - अ |
स्मि |
ष्यामि |
आनि |
अम् |
वस् |
आवः |
इव |
स्वः |
ष्यावः |
आव |
आव |
मस् |
आमः |
इम |
स्मः |
ष्यामः |
आम |
आम |
अधोलिखित धातुओं के लङ् लकार का रूप याद करें। नीचे कतिपय वाक्य दिये जा रहे हैं। इसी तरह अन्य लकारों में भी वाक्य बनायें।
कृ, खेल्, पठ्, दृश्, खाद्, भ्रम्, श्रु, स्था, क्षल् (शौचकर्मणि) – चुरादिः, नृति गात्रविक्षेपे, गै, हस्, पठ्, नी ।
खेलृँ (खेल्)चलने कर्तृवाच्य लट् लकार (वर्तमानकाल) - भ्वादिगणः
उदाहरण-
एकः
बालकः
एकः (प्रथम
पुरुष, एकवचन) बालकः (प्रथम पुरुष, एकवचन)
एकः
बालकः खेलति ।
एकः (प्रथम पुरुष, एकवचन) बालकः (प्रथम पुरुष, एकवचन) अखेलत् (प्रथम पुरुष, एकवचन, भूतकाल) यहाँ बालकः कर्ता है, जो कि प्रथम पुरुष, एकवचन का है अतः क्रिया (खेल्) भी प्रथम पुरुष, एकवचन की ही होगी ।
एकवचन द्विवचन बहुवचन
Third Person खेलति खेलतः खेलन्ति
Second Person खेलसि खेलथः खेलथ
First Person खेलामि खेलावः खेलामः
खेलृँ (खेल्)चलने कर्तृवाच्य लङ् लकार (भूतकाल) - भ्वादिगणः
एकः
बालकः
एकः (प्रथम
पुरुष, एकवचन) बालकः (प्रथम पुरुष, एकवचन)
एकः
बालकः अखेलत् ।
एकः (प्रथम
पुरुष, एकवचन) बालकः (प्रथम पुरुष, एकवचन) अखेलत् (प्रथम पुरुष, एकवचन, भूतकाल)
यहाँ
बालकः कर्ता है, जो कि प्रथम पुरुष, एकवचन का है अतः क्रिया (खेल्) भी प्रथम
पुरुष, एकवचन की ही होगी ।
ह्यः एकः बालकः अखेलत् ।
एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम
पुरुष अखेलत् / अखेलद् अखेलताम् अखेलन्
मध्यम
पुरुष अखेलः अखेलतम् अखेलत
उत्तम
पुरुष अखेलम् अखेलाव अखेलाम
ह्यः
(अव्यय) एकः (प्रथम
पुरुष, एकवचन) बालकः (प्रथम पुरुष, एकवचन) अखेलत् (प्रथम पुरुष, एकवचन, भूतकाल)
यहाँ
बालकः कर्ता है, जो कि प्रथम पुरुष, एकवचन का है अतः क्रिया (खेल्) भी प्रथम
पुरुष, एकवचन की ही होगी ।
इसी
प्रकार अन्य उदाहरण देखें-
पठँ
व्यक्तायां वाचि (बोलकर पढ़ना) - भ्वादिः
ह्यः एका बालिका अपठत् ।
अपठत्
/ अपठद् अपठताम् अपठन्
अपठः अपठतम् अपठत
अपठम् अपठाव अपठाम
लिखँ
अक्षरविन्यासे (लिखना) - तुदादिः
ह्यः सः न अलिखत् ।
अलिखत् / अलिखद् अलिखताम् अलिखन्
अलिखः अलिखतम् अलिखत
अलिखम् अलिखाव अलिखाम
गै शब्दे (गाना) - भ्वादिः
ह्यः सा बालिका न अगायत् ।
अगायत्
/ अगायद् अगायताम् अगायन्
अगायः अगायतम् अगायत
अगायम् अगायाव अगायाम
धावुँ
गतिशुद्ध्योः (दौड़ना) – भ्वादिः लङ् लकार
ह्यः
तौ अधावताम् ।
अधावत्
अधावताम् अधावन्
अधावः अधावतम् अधावत
अधावम् अधावाव अधावाम
आप
ऊपर में खेल्, पठ् तथा लिख् धातु के लङ् लकार (भूतकाल) का रूप देख चुके हैं। इसके
प्रथम पुरुष द्विवचन का रूप देखें। यहाँ बालकौ, बालके तथा तौ प्रथम पुरुष, द्विवचन
का रूप है। इसे समझने के लिए बालक, बालिका तथा तत् (पुल्लिंग) शब्द का रूप याद
होना चाहिए। नीचे के वाक्य में बालकौ, बालके कर्ता है। तौ कर्ता के स्थान पर आया
सर्वनाम है। इसे आप ह्यः तौ बालकौ अलिखताम् लिखने से स्पष्ट समझ सकते हैं। अतः
यहाँ क्रिया भी प्रथम पुरुष द्विवचन का है।
ह्यः
द्वौ बालकौ अखेलताम् ।
ह्यः
द्वे बालिके अपठताम् ।
ह्यः तौ अलिखताम् ।
प्रथम
पुरुष, बहुवचन का उदाहरण-
ह्यः
ते बालिके अगायताम् ।
मध्यम
पुरुष, द्विवचन का उदाहरण-
किं
युवां ह्यः अपठतम् ?
श्रु श्रवणे –
भ्वादिः लङ् लकार का रूप
किं युवां ह्यः अशृणुतम् ?
अशृणोत् /
अशृणोद् अशृणुताम् अशृण्वन्
अशृणोः अशृणुतम् अशृणुत
अशृणवम् अशृण्व / अशृणुव अशृण्म
/ अशृणुम
धावुँ (धाव्) गतिशुद्ध्योः
(दौड़ना) – भ्वादिः लङ् लकार का रूप
किं युवां ह्यः अधावतम् ?
अधावत् अधावताम् अधावन्
अधावः अधावतम् अधावत
अधावम् अधावाव अधावाम
युवाम् अपठतम्
युवाम् अपिबतम्
युवाम् अधावतम्
युवाम् अनृत्यतम्
युवाम् उपाविशतम्
युवाम् प्राक्षालयतम्
युवाम् उदतिष्ठतम्
युवाम् अजानीतम्
युवाम्
अपश्यतम्
युवाम् अशृणुतम्
युवाम् अदतम्
युवाम् अशक्तम्
युवाम् ऐच्छतम्
युवाम् अखेलतम्
युवाम् अखादतम्
युवाम् आस्तम्
उत्तम
पुरुष, एकवचन का उदाहरण-
ह्यः अहं गृहकार्यम् अकरवम् ।
ह्यः अहं विपणिम् अगच्छम् ।
ह्यः अहं चित्रं न अपश्यम् ।
उत्तम
पुरुष, द्विवचन का उदाहरण-
ह्यः आवाम् अपठाव ।
ह्यः आवाम् अशृणुव ।
ह्यः
आवां गृहकार्यं न अकुर्व ।
ह्यः आवाम् अपि विपणिम् अगच्छाव ।
ह्यः आवां चित्रम् अपश्याव ।
आवाम्
अपिबाव
आवाम्
अधावाव
आवाम्
अनृत्याव
आवाम्
उपाविशाव
आवाम्
प्राक्षालयाव
आवाम्
उदतिष्ठाव
आवाम्
अजानीव
आवाम् अपश्याव
आवाम्
अशृणुव
आवाम्
अदद्व
आवाम्
अशाव
आवाम्
ऐच्छाव
आवाम्
अखेलाव
आवाम्
अखादाव
आवाम् आस्व
अधोलिखित का वर्तमान काल में रूप बताइये
गमिष्यथ, आगमिष्यामि, श्रोष्यानि, वदिष्यसि, पठिष्यति, लेखिष्यतः, पास्यसि, खादिष्यन्ति, द्रक्ष्यावः, नेष्यामि, चलिष्यामः, वसिष्यानि, ज्ञास्याति प्रक्ष्यतः, उपवेक्ष्यासि, दास्यथ, कथयिष्यामि, हसिष्यति, स्मरिष्यामि, नर्तिष्यति, गास्यानि, स्थास्यामि, क्षिप्स्यन्ति, अटिष्यावः भ्रमिष्यामि, करिष्यति। |
पाठ- 30
यहाँ कुछ धातुओं के पूर्व उपसर्ग का प्रयोग किया गया है। जैसे- आनयताम् में आ उपसर्ग तथा नी धातु है। प्रक्षालयति में क्षल् धातु के पहले प्र उपसर्ग लगाया गया है। उदतिष्ठम् में स्था धातु तथा उत् उपसर्ग लगा है। उत् + स्था में स्था को तिष्ठ हो जाता है। उप + विश् (विशँ प्रवेशने – तुदादिः) से लङ् लकार में उपाविशत्, उपाविशताम्, उपाविशन्, उपाविशः, उपाविशतम्, उपाविशत,उपाविशम्, उपाविशाव, उपाविशाम रूप बनता है।
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि संस्कृत के कुछ मूल धातु के स्थान पर एक नया आदेश हो जाता है, जिससे उसके स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन हो जाता है। जैसे दृश् धातु के स्थान पर को पश्य आदेश होकर पश्यति रूप बनता है। आप संस्कृत शिक्षण पाठशाला 3 में उपसर्ग के बारे में विस्तार से जान सकेंगें कि धातु (क्रिया) उपसर्ग लगने पर उसके अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार हम एक ही धातु से अनेक क्रियावाचक शब्द उत्पन्न हो सकते हैं।
भूतकालः
(द्विवचनम्) अभ्यासः
१. (क) पदपूरणं कुरुत।
ह्यः द्वौ
बालकौ .................। (खेलति)
ह्यः ते
बालिके........। (पठति)
ह्यः आवां
गृहकार्यं न....."। (करोति)
ह्यः आवां
चित्रम् .........."। (पश्यति)
किं युवां
ह्यः भोजनालये ..... ..........."? (खादति)
किं युवां
ह्यः समुद्रतीरे .........? (भ्रमति)
युवां ह्यः
संस्कृतसमाचारम्........... (शृणोति)
आवां ह्यः
उद्याननिकटे ............ । (तिष्ठति)
आवां ह्यः
समुद्रजलेन मुखं ।... । (प्रक्षालयत्ति)
(ख) रिक्तस्थानं पूरयत।
ह्यः बालकौ
अलिखताम्।
ह्यः आवाम्
ह्यः बालिके अनृत्यताम्।
किं ह्यः
युवाम् .....
ह्यः तौ
अगायताम्।
ह्यः आवाम् .....
।
ह्यः ते
बालिके बहु अहसताम्।
ह्यः आवाम्
अपि बहु ............"
ह्यः एतौ
छात्रौ ध्यानेन अपठताम्।
किं ह्यः
युवाम् अपि ध्यानेन .....
ह्यः एते
बालिके पुष्पम् आनयताम्।
ह्यः आवां
पुष्पं न .........
एक पद को
दूसरे पद से मिलायें ।
आवाम् अलिखताम्
तौ अजानीतम्
युवाम् अपश्यताम्
एतौ उपाविशाव
मित्रे अकूर्दताम्
कपी अधावताम्
ते अगायताम्
नीचे लिखे
धातुरूप से चयन कर वाक्य को शुद्ध करें।
(क) ह्यः आवां समुद्रतीरे अभ्रमतम् ।
भ्रमुँ (भ्रम्)चलने
– भ्वादिः तथा भ्रमुँ (भ्रम्) अनवस्थाने – दिवादिः का लङ् लकार में रूप
Third Person अभ्राम्यत् / अभ्राम्यद् / अभ्रमत् / अभ्रमद्
अभ्राम्यताम्
/ अभ्रमताम् अभ्राम्यन् / अभ्रमन्
Second Person अभ्राम्यः / अभ्रमः, अभ्राम्यतम्
/ अभ्रमतम्, अभ्राम्यत / अभ्रमत
First Person अभ्राम्यम् / अभ्रमम्, अभ्राम्याव / अभ्रमाव, अभ्राम्याम /
अभ्रमाम
(ख)
परह्यः तौ नगरे आस्तम् ।
असँ (आङ् +
अस्)भुवि - अदादिः अथवा अस् भुवि – अदादिः का लङ् लकार में रूप
Third Person आसीत् / आसीद्, आस्ताम्, आसन्
Second Person आसीः, आस्तम्, आस्त
First Person आसम्, आस्व, आस्म
(ग)
गतवर्षे अहं त्वां न अजानीव ।
ज्ञा अवबोधने –
क्रयादिः का लङ् लकार में रूप
Third Person अजानात् / अजानाद्, अजानीताम्, अजानन्
Second Person अजानाः, अजानीतम्, अजानीत
First Person अजानाम्, अजानीव, अजानीम
इसी प्रकार
अन्य धातुओं के लङ् लकार का रूप देखें।
(घ) गतदिने ते
मधुरम् अनृत्यतम्।
(ङ) गतसप्ताहे
युवां कुत्र आस्व?
(च) किं गतमासे युवां गृहकार्यम् अकुर्व ?
(छ) आवां तत्र न अगच्छम् ।
(ज) तौ
किमर्थं न अधावतम् ?
(झ) आवाम् अद्य प्रातःकाले पञ्चवादने उदतिष्ठम् ।
(ब) तौ मां न अजानीतम् ।
भूतकालः
(बहुवचनम्)
क्रिया में कः
कौ के/ का के काः/ किम् के कानि (कौन/
क्या) प्रश्न लगाकर कर्ता की पहचान करें। कर्ता जिस वचन का होगा, क्रिया भी उसी
वचन की होगी। जैसे- ह्यः किं आसीत् । उत्तर आएगा जन्मदिनम्। यहाँ जन्मदिनम् कर्ता
है तथा एकवचन है अतः क्रिया आसीत् भी एकवचन में है। के आगच्छन् । बालकाः।
संस्कृत में क्रिया पद से ही कर्ता का बोध हो जाता है अतः नद्याः तीरे सानन्दम्
अभ्रमन् में अभ्रमन् क्रिया प्रथम पुरुष, बहुवचन का है अतः यहाँ प्रथम पुरुष, बहुवचन
कर्ता ते या बालकाः / बालिकाः लुप्त है।
ह्यः मम जन्मदिनम्
आसीत् । मम विद्यालयस्य केचन बालकाः मम गृहम् आगच्छन् । मम गृहे
परिवारस्य सर्वे सदस्याः अपि आसन् । मम विद्यालस्य एते बालकाः
मिलित्वा एकं सुन्दरम् उपहारम् आनयन् । ते बालकाः मया सह मातुलगृहम्
अगच्छन् । तत्र ते बहुविधानि फलानि अखादन् । मम मातुलगृहस्य
पुरतः एकं बृहत् क्रीडाङ्गणमस्ति । तत्र ते बहु अखेलन् ।
तत्रस्थ नद्याः तीरे सानन्दम् अभ्रमन् । सायङ्काले सर्वे मम गृहे भोजनं
कृत्वा स्व-स्व-गृहं प्रत्यगच्छन्।
निम्नलिखित
वाक्यों में कर्ता तथा क्रिया के पुरुष तथा वचन की पहचान करें।
ह्यः वयं फलरसम्
अपिबाम ।
किं यूयं ह्यः
फलरसम् अपिबत?
हाः बालकाः
फलरसम् अपिबन्।
किं यूयं ह्यः
क्रीडाङ्गणे अखेलत?
किं यूयं ह्यः
समुद्रतीरे अभ्रमत?
ह्याः बालकाः
समुद्रतीरे अभ्रमन्।
ह्यः वयं
समुद्रतीरे न अभ्रमाम ।
ह्यः बालकाः
मार्गे अधावन् ।
ह्यः वयं
मार्गेन अधावाम ।
किं यूयं ह्यः
मार्गे अधावत?
हाः बालकाः
संस्कृतगीतम् अशृण्वन् ।
ह्यः वयं
संस्कृतगीतम् न अशृणुम।
किं यूयं ह्यः
संस्कृतगीतम् अशृणुत?
ह्यः बालकाः
पाठन अस्मरन्।
ह्यः वयं पाठम्
अस्मराम ।
किं यूयं ह्यः
पाठम् अस्मरत?
हाः बालकाः
प्रश्नम् अपृच्छन्।
ह्यः वयं
प्रश्नम् अपृच्छाम ।
किं यूयं ह्यः
प्रश्नम् अपृच्छत?
हः बालकाः
वस्त्रं प्राक्षालयन्।
ह्यः वयं
वस्त्रं न प्राक्षालयाम |
किं यूयं ह्यः
वस्त्रं प्राक्षालयत?
हाः बालकाः
गृहस्य पुरतः उदतिष्ठन्।
ह्यः वयं
गृहस्य पुरतः न उदतिष्ठाम।
किं यूयं ह्यः
गृहस्य पुरतः उदतिष्ठत?
हाः बालकाः
शान्तिपूर्वकम् उपाविशन्।
ह्यः वयम्
अपिशान्तिपूर्वकम् उपाविशाम ।
किं यूयं ह्यः
शान्तिपूर्वकम् उपाविशत?
ह्यः बालकाः
बहु अक्रन्दन्।
ह्यः वयं न अक्रन्दाम
।
किं यूयं ह्यः
अक्रन्दत?
स्म, क्त, क्तवतु प्रत्ययों का प्रयोग भूतकालिक क्रिया के स्थान पर किया जाता है। वर्तमानकाल की क्रिया के साथ स्म जोड़ने प वह भूतकाल की क्रिया हो जाती है। जैसे- बालिका जाती थी, बालिका गच्छति स्म। श्याम ने भोजन किया, श्यामः भुक्तवान्। क्त तथा क्तवतु प्रत्यय के प्रयोग अलग से भी दिये गये हैं।
निम्नलिखित कर्ता के पुरुष तथा वचन की पहचान करते हुए उसके
अनुकूल क्रिया का चयन कर एक-एक वाक्य बनायें।
सा, बालकः, ते, बालिका, एते, ते, एताः,
सः,
एषा, ताः, बालकाः,बालिकाः एतौ, तौ,
एते, बालकौ, एषः, बालिके ।
अखादन् अक्षालयन् अपृच्छन् अमिलन् अकरोत् अस्थापयत् अहसत् अनिन्दत् अवदत् अपश्यत् अचोरयत् अस्थापयताम् अहसताम् अनिन्दताम् अवदताम् अपिबत् अखादत् अक्षालयत् अपृच्छत् अमिलत् अस्मरत् अरोदीत् अनयत् अधावन् अकुर्वन् अनिन्दन् अपिबताम् अखादताम् अक्षालयताम् अपृच्छताम् अमिलताम् अस्मरताम् अरोदिताम् अनयताम् अभवन् अपठन् अगच्छन् अलिखन् अभवताम् अपठताम् अगच्छताम् अलिखताम् अधावताम् अकुरुताम् अपश्यताम् अचोरयताम् अवदन् अपश्यन् अचोरयन् अपिबन्. अस्मरन् अरुदन् अभवत् अपठत् अगच्छत् अलिखत् अधावत् अनयन् अस्थापयन् अहसन्।
क्रियापद के लिए ट्रिक
क्रियापद का धातुरूप याद करना नये छात्रों के लिए जटिल होता है। उन क्रियापद में आस्पद, भाजन, स्म, क्त, क्तवतु प्रभृति जोड़कर वाक्य निर्माण करना सरल हो जाता है। जैसे:- मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। अर्थात् तुम मेरे स्नेहभाजन हो । “त्वं मे स्नेहभाजनम्” । “शिक्षक तुमसे स्नेह करते हैं"; "त्वं शिक्षकस्य प्रेमपात्रम्” । माता तुमसे स्नेह करती है, “मातुः त्वं स्नेहास्पदम्” । "सेवक प्रभु की भक्ति करता है"; सेवकः भृत्यस्य भक्तिभाजनम्” । “मैं तुम पर विश्वास करता हूँ"; "यूयं मे विश्वासपात्रम्” "तुम मेरे साक्षी हो"; "यूयं मे प्रमाणम्” । “हाय ! गरीबी सब आपत्तियों की जड़ है, "निर्धनता सर्वापदाम् आस्पदम्" । अविवेक परम दुःख का स्थान है"; "अविवेकः परमापदं पदम्" " लोभ पाप का कारण कारण है, लोभः पापस्य कारणम्" ।
संस्कृत कथा
एकदा शशक-कच्छपयोः विवादः जातः यद् एतयोः
कः अस्ति श्रेयान्। शशकः कच्छपम् अवदत्, "भवतः अति मन्द-गतिः च अस्ति । मां पश्य, अहं तु अति- स्फूर्तिमान् अस्मि ।"
कच्छपः अवदत्, "यः यादृशः अस्ति सः तु तादृश एव वर्तते
। अहं तु त्वादृशः भवितुं किंचिद् अपि कर्तुं न शक्नोमि ।'
शशकः- "पश्य! अहम् कीदृग्-वेगेन धावामि, कतिपय-क्षणेषु एव यावद् अहं धावामि, त्वं तु सकले दिने एव तावद् धाविष्यसि
।''
कच्छप: - साम्प्रतम् एव ।" "धावन्-कार्ये
तु अहं तव प्रतियोगी अस्मि । धाव मया सह
शशकः कच्छपस्य मूर्खता-पूर्ण वचनं
श्रुत्वा अहसत् अकथयत् च, "यदि त्वं पराजेतुम् इच्छसि एव, तर्हि आवाम् एकत्र धावावः।"
तदा तौ एकं वृक्षम्
अभीष्ट-गन्तव्य-रूपेण नियतवतौ, लोमशं च एतस्याः प्रतियोगितायाः निर्णयकम् अघोषयताम्। तदनन्तरं
प्रतियोगिता आरब्धा जाता ।
शशकः अधावत्, अल्पे एव समये च असौ अतिदूरम् अगच्छत्
। वराकः कच्छपः द्रुत-गत्या धावने प्रायतत, परम् असौ उच्छलन् एव अवर्तत ।
शशकः वेगेन धावन्, मार्गे स्व-मित्राणि दृष्ट्वा एकं
हस्तम् उत्थाप्य तान् अभिवादयते स्म, कुत्रचित् च स्वादु हरितं च घासम्
अवलोक्य किंचित्-समय-पर्यन्तं स्थित्वा खादति स्म ।
ग्रीष्म-कालः आसीत् । शशकेन साम्प्रतम्
एव एकस्मिन् क्षेत्रे अति- मधुरं मृदु च गर्जरं खादितम् आसीत्। सः ऐच्छत् यद् असौ
एकस्मिन् सघने गुल्ये संकुच्य उपविशेत् विश्राम्येत् च । मनसा अमन्त्रयत् च, "अहं तु विश्रामं कृत्वा द्वि-प्लवनयोः
एव गन्तव्यम् उपगच्छामि ।" तदा सः अशेत, गहन-निद्राम् च उपागच्छत् ।
यदा सः निद्रायाः उत्थितः तदा अति वेला संजाता आसीत् । गन्तव्य-स्थानं च उपगम्य तेन दृष्टं यद् कच्छपः तु तत्र पूर्वम् एव आगतः आसीत् । लोमशः अपि तयोः एतत् कौतुकं पश्यन् तत्र आगतः । सः कच्छपं विजेतारम् अघोषयत्, तस्मै पुरस्कारं च अयच्छत् ।
उपरोक्त कथा में आये हुए क्रिया पदों की पहचान करें।
अधोलिखित वाक्यों को पढ़ें-
जाने सः कुत्र अस्ति? न जाने सः किमर्थं त्वं न सूचितवान् ?
आवयोः पार्थक्यविषये मम मातृगृहे सर्वे जानन्ति । त्यजतु
मातुल! एतादृशानां कथानां नायम् अवसरः । भवान् मातरं पृच्छतु सः कतिदिनेभ्यः तया
सह वार्तां न कृतवानस्ति? कृतवानस्ति चेत् केन दूरभाषक्रमाङ्के?
सम्पर्कसाधनस्य प्रयासं करोतु?
इति कथयन्ती अनुराधा वार्तां समापितवती! दिनद्वयानन्तरम्
यदा सा चिकित्सालये रोगिणां परिचर्या कुर्वन्ती आसीत्,
तदैव पुनः तस्या दूरभाषयन्त्रस्य घण्टिका ध्वनिता। तस्या
चिकित्सासहायिका पृष्टवती "भारततः कोऽपि सम्भाषणं कर्तुमिच्छति,
किं भवती वार्तां कर्तुं शक्नोति?"
अनुराधा तां निर्दिष्टवती तस्य नाम दूरभाषसंख्यां च पृच्छतु,
अहम् कार्यं समाप्य तेन सह वार्तां करिष्यामि,
इति विज्ञापयतु। रोगिणां परीक्षणकालेऽपि सा चिन्तयन्ती
आसीत् "कः भवितुं शक्नोति? मम पितरौ कदापि कार्यालयसमये वार्तां न कुरुतः तर्हि ?
किम् आनन्दः ? न, न सः अमेरिकायां नास्ति फ्रैंकपर्टमध्ये अस्ति,
इति तु अहं जानामि, परं तत्र कुत्र वसति? कुत्रास्ति तस्य आवासः ? का वा तस्य दूरभाषसंख्या? अहं किमपि न जानामि। किमर्थं ज्ञास्यामि ?
कः सम्बन्धः तेन सह? परं तस्य माता? किम् अहितं कृतं तया?
सौविध्यानि सन्ति, प्रचुरं धनमस्ति। अत्र किमस्ति?
निर्धनता, साधनहीनता, सर्वत्र राजनीतिः, भ्रष्टाचारः । अपरतश्च मम मनसि विदेशे वासं कुर्वतः वरस्य
एव स्वप्नः विद्यते। अतएव यदि भवन्तौ प्रयासं कुरुतः एतदर्थमेव कुरुताम्। एकेनैव
पथा उभावपि कार्ये साधयिष्येते। पुत्र्याः स्पष्टं वचः आकर्ण्य पितरौ तुष्णीम्
अतिष्ठताम्। पुनः विवाहसंस्थामाध्यमेन आनन्दस्य प्रस्तावः आगतः। सः
अमेरिकादेशे वसति स्म, वृत्तित: चिकित्सकः अस्ति, तस्य पिता भारते एव महाविद्यालये पाठयति,
वंशश्चापि कुलीनः । इतोऽधिकं किं वाञ्छति । कापि कन्या
यथासंभव -परीक्षणं कृत्वा अनुराधायाः सम्मत्या विवाहसम्बन्धः निश्चितः। मासद्वयाभ्यन्तर्गतमेव
आनन्देन सह अनुराधायाः परिणयः सम्पन्नः। मासमेकं सुखस्य दोलायां दोलन्ती सा पत्या
सह अमेरिकां प्रति प्रस्थिता। तत्र एकमासाभ्यन्तरमेव तत्र चिकित्सकीयमहाविद्यालये हृदयरोगक्षेत्रे
विशिष्टाध्ययनाय प्रवेशं लब्धवती। तदनन्तरं तस्याः दिनचर्या गृहात्
महाविद्यालयगमनम्, गृहमागत्यापि गहनमध्ययनम् एव अभवत्। आनन्दः मितभाषी आसीत्।
सोऽपि स्वकार्ये व्यापृतः तिष्ठति स्म। प्रति रविवासरं सा स्वपितृभ्यां सार्द्धं
दूरभाषेण न जल्पति स्म। परम् आनन्दः कदा स्वपितृभ्यां साकं वार्ता करोतिस्म सा
कदापि नावगच्छत्। शीघ्रमेव तया ज्ञातं यत् आनन्दस्य द्वे रूपे वर्तेते- तया सह निवसन्
आनन्दः अपेक्षते परंपरां पालयतु ।
विधिलिङ्
का प्रयोग विधि, सम्भावना, इच्छा 'चाहिए' अर्थ में किया
जाता है।
गम्
धातु के विधिलिङ् प्रथम पुरुष में गच्छेत्, गच्छेताम्, गच्छेयुः रूप होता है,
जिसका अर्थ 'जाना चाहिए'
होता है। यह गच्छेत् पद किसी कार्य का विधान (निर्देश) देने , सम्भावना व्यक्त करने अथवा इच्छा प्रकट करने के अर्थ में होता है। अन्य
पुरुष एक वचन की क्रिया गच्छेत् का कर्त्ता भी अन्य पुरुष एक वचन का होगा। जैसे-
सः अथवा रामः, कृष्णः, अश्वः पथिकः,
सीता आदि संज्ञायें होंगी । 'सः गच्छेत्'
का अर्थ है उसे जाना चाहिए। वह जाए । वह जा सकता है। रामः गच्छेत्
का अर्थ है राम को जाना चाहिए ।
जब
हम विधिलिङ् की क्रिया का कर्ता को हिन्दी के वाक्य में लिखते हैं तब उससे कर्म
कारक का वाक्य बनने लगता है। उसको या राम को जाना चाहिए । वस्तुतः संस्कृत में उस
कर्ता को कर्ता कारक में ही रखते हैं। उदाहरण देखें-
(
१ ) छात्र को पाठशाला जाना चाहिए = छात्रः
पाठशालां गच्छेत् ।
(२) उसको पुस्तक पढ़नी चाहिए = स पुस्तकं पठेत् ।
(३) सत्य से जीतना चाहिए = सत्येन जयेत् ।
(४)
प्रातः काल उठकर नहाना चाहिए = प्रातःकाले उत्थाय स्नायात् ।
(
५ ) परिश्रम से धन कमाना चाहिए = परिश्रमेण धनम् अर्जेत् ।
( ६ ) विपत्ति में व्याकुल नहीं होना चाहिए = विपत्तौ व्याकुलः न भवेत् ।
(
७ ) हरि को नगर में नहीं
आना चाहिए = हरिः नगरे नागच्छेत् ।
शुद्ध वाक्य पहचानें-
अशुद्ध वाक्य
शुद्ध वाक्य
किं ताः मधुराणि फलानि ? किं तानि मधुराणि फलानि ?
सः कदलीफलं अस्ति। तत् कदलीफलं अस्ति।
एतत् करवस्त्राणि सन्ति। एतानि करवस्त्राणि सन्ति।
सः गुरुं नमन्ति
सः गुरुं नमति ।
मधु पुष्पेषु भवसि
मधु पुष्पेषु भवति ।
त्वं कथं क्रीडति? त्वं कथं क्रीडसि ?
यूयं कुत्र गच्छति?
यूयं कुत्र गच्छथ ?
फलानि के ददाति?
फलानि के ददति?
अहं गच्छति ।
अहं गच्छामि ।
इदं महा वैज्ञानिकः अस्ति
अयं महान् वैज्ञानिकः अस्ति ।
धेनवः कदा गच्छति ।
धेनवः कदा गच्छन्ति ।
अहं प्रतिदिनं भोजनं करोति। अहं प्रतिदिनं भोजनं करोमि।
के आगच्छति
के आगच्छन्ति ?
इतने पाठ पढ़ लेने के बाद आगे के पाठ के लिए संस्कृत शिक्षण पाठशाला 3 पर चटका लगाकर उस लिंक को खोलें।
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