आप कई ऐसे स्वतंत्र पत्रकार को जानते
होगें,
जो सोशल मीडिया पर अपनी पत्रकारिता करते हैं। सोशल मीडिया पर संगठनात्मक
या वैयक्तिक संस्कृत पत्रकारिता का स्वरूप कम ही देखने को मिलता है। अन्य भाषा के
पत्रकार समसामयिक मुद्दों पर गंभीर चर्चा करते हैं। उपयोगी जानकारी देते हैं। इससे
हमारा ज्ञान बढ़ता है। संस्कृत पत्रकारिता के क्षेत्र में इसकी भारी कमी देखी जाती
है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हम संस्कृत से जुड़े लोगों तक संस्कृत से जुड़े
समसामयिक घटनाक्रम को पहुंचा नहीं पाते। यदि कभी सूचना पहुँचती भी है तो तबतक इतनी
देर हो चुकी होती है कि हमारा उत्साह ठंढ़ा पड़ चुका होता है। अधिकांश सूचनायें
लोगों तक पहुंच नहीं पाती । इससे सूचना से
सम्बन्धित लोग और कार्यक्रम उपेक्षित रह जाते हैं।
सर्वज्ञात है कि संस्कृत भाषा के
माध्यम से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के मांग में भारी कमी है। विद्यालयों में
संस्कृत माध्यम से पठन पाठन का नहीं होना इसका मुख्य कारण है। शैशव काल से ही लोगों
में यदि रुचि उत्पन्न की जाय तो कुछ हद तक सफलता पाई जा सकती है। इसके लिए पाठकों
तक निरन्तर पत्रिकाओं को पहुँचाना होगा। उनकी रूचि के अनुसार पत्रिकाओं का प्रकाशन
करना होगा। सभी भाषा- भाषी क्षेत्र में संस्कृत
का विकल्प उपलब्ध है। वह जनसम्पर्क की भाषा में व्यवहृत है, अतः संस्कृत के समाचार
पत्र संस्कृत के लोगों के लिए भी अरूचिकर होती है। विषय वस्तु की दृष्टि से
संस्कृतभाषी लोगों के लिए संस्कृत के पत्र अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं। संस्कृत से
जड़े जो समाचार अन्य जगह उपेक्षित होते हैं, वे यहाँ प्रमुखता से छापे जाते हैं।
धनाभाव के कारण यहाँ सम्वाददाता नहीं होते। इस कारण से सभी प्रकार के समाचार यहाँ
देखने को नहीं मिलता। संस्कृत की संस्थायें तथा आयोजक भी संस्कृत की पत्रिकाओं तक
समाचार प्रेषित करने में उत्सुकता नहीं दिखाते। समाचार मांगे जाने पर हिन्दी या
अन्य भाषा में समाचार उपलब्ध करा दिया जाता है। संस्कृत की संस्थायें और लोग चर्चा
में नहीं होते। आजकल चर्चा में खिलाड़ी, अभिनेता, नेता, धार्मिक नेता होते हैं।
शिक्षा तथा भाषा के क्षेत्र के लोग इनके आगे नहीं टिक पाते।
एक बार मैंने प्रयोग के तौर पर
फेसबुक पर एक पोस्ट किया, जिसे यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ।
कोई व्यक्ति या संस्था मात्र 500
रूपये प्रतिमाह खर्च कर अपना सोशल मीडिया संचालित करा सकते है । इसके तहत प्रदान
की जाने वाली सेवाएं होंगी-
1. फेसबुक पेज या ग्रुप पर प्रतिदिन
एक ऐसा पोस्ट डाला जाएगा, जो आपके व्यक्तित्व का दर्पण हो। संस्थाओं की
नीतियां, कार्यक्रमों एवं योजनाओं का प्रचार प्रसार।
2. इसके लिए टेलीफोन पर आप हमें
अनुदेश दे सकते हैं या लिखित सामग्री मुहैया करा सकते हैं, जिसे हम स्वयं टंकित
करेंगे।
3. अनुवाद सेवा भी उपलब्ध कराएंगे
इसके लिए अतिरिक्त भुगतान करना होगा।
सोशल मीडिया संचालित कराने के लाभ
1. इससे समाज में आपकी प्रतिष्ठा
बढ़ेगी। अधिक से अधिक लोगों तक आपकी पहुंच होगी।
2. आपका मासिक आय ₹50000 है, उसमें
से मात्र ₹500 प्रतिमाह खर्च करने का आशातीत परिणाम कुछ ही माह में दिखेगा । इज्जत
के लिए लोग लाखों खर्च करते हैं । उसके आगे यह धनराशि राशि नगण्य है।
3. यदि आपकी कोई संस्था है। उसके
प्रचार के लिए आप मुद्रित सामग्रियों का उपयोग करते होंगे, जिस
पर भारी खर्च आता है। उससे बहुत ही कम खर्च में यहां अच्छे परिणाम मिलेंगे।
4. यहाँ लिखी सामग्री कभी मिटती नहीं
है। इसे वर्षों तक लोग पढ़ते रहते हैं, जबकि मुद्रित सामग्री नष्ट
हो जाती है।
नोट - संस्कृत की संस्थाओं तथा
व्यक्तियों को वरीयता दी जाएगी।
इसपर एक दो संस्था के लोगों ने
दिलटचस्पी ली परन्तु एक भी प्रतिष्ठित संस्था की प्रतिक्रिया नहीं आयी।
मैंने संस्कृत पत्रिकाओं मैं छपे
लेखों पर शोध किया, जिस से ज्ञात हुआ कि संस्कृत की पत्र
पत्रिकाओं में समसामयिक मुद्दों की चर्चा बहुत कम मिलती है। देश से प्रकाशित गिनी
चुनी पत्रिका है, जहाँ हमें देश दुनियाँ की खबर पढ़ने को मिल जाती है। देहरादून से
प्रकाशित पाक्षिक संस्कृत वार्ता पत्र वाक् , सूरत से प्रकाशित दैनिक
संस्कृत समाचार पत्र विश्वस्य वृत्तान्तम् जैसे कुछ पत्र- पत्रिका में सामयिक
समाचार देखने को मिलता है। वाक् के 24 अगस्त 2018 के अंक में विद्वद्भयः राष्ट्रपतिपुरस्काराः
उद्घोषिताः शीर्षक से एक कॉलम का समाचार प्रकाशित हुआ, जिसमें चयनित विद्वानों के
नाम दिये गये हैं। नागपुर से प्रकाशित संस्कृत- भवितव्यम् संस्कृत साप्ताहिक पत्र
में यदा कदा कुछ समाचार देखने को मिलता है। कुछ दिन पहले फेसबुक पर मैंने 5
ऐसे संस्कृत विद्वानों का नाम बताने को कहा, जिन्हें पद्म पुरस्कार
से अलंकृत किया गया। इसी प्रकार साहित्य अकादमी से पुरस्कृत एक विद्वान् का फोटो
फेसबुक पर डालकर उन्हें पहचानने को कहा था। दोनों पोस्ट में मुझे निराशा हाथ लगी।
आखिर ये परिस्थितियां क्यों है? संस्कृत पत्रिकाएं तथा सोशल
मीडिया पर ऐसे लोगों के बारे में अधिकाधिक जानकारी क्यों नहीं मिल पाती है? साहित्य अकादमी 24 भाषाओं में
रचित क्रितियों को पुरस्कार देती है। वर्ष 2018 में संस्कृत भाषा में रचित मम
जननी कृति के लेखक डॉ. रमाकान्त शुक्ल को प्रशस्ति देने का समाचार
सम्भाषण-सन्देशः के मार्च 2019 के अंक में प्रकाशित हुआ। इस प्रकार कुछ पत्रिकायें
संक्षिप्त समाचार दे देती है। किसी भी संस्कृत की पत्रिका में इनपर या इनकी
कृतियों पर व्यापक विमर्श होते नहीं पाया। किसी शीर्षस्थ विद्वान के दिवंगत होने
पर उनके कृतित्व पर विमर्श भी होते नहीं दिखता। अभी कल ही एक संस्कृत की संस्था ने
पुरस्कारों की घोषणा की। फेसबुक पर उन पुरस्कृत विद्वानों के बारे में, संस्कृत के संवर्धन में उनके अवदान के बारे में कुछ भी लिखा नहीं मिल
पाया। ऐसे विषयों पर कम से कम पुरस्कृत विद्वानों के शिष्यों को आगे आना चाहिए। वे
सभी सोशल मीडिया पर हैं। अभी तक पुरस्कार प्राप्त किसी भी कृति के बारे समीक्षा
नहीं मिली , जिसे पढ़ने के बाद लोगों में उस कृति को पढ़ने
की ललक उत्पन्न हो सके। पुरस्कृत कृतियों का विषय वस्तु, कुछ
उद्धरण सामने आना चाहिए था। वेद पंडितों के सस्वर वेद पाठ का नमूना भी देखने को
मिलता तो हमारा उत्साह और अधिक बढ़ जाता।
मैंने फेसबुक पर लिखा-
आशा है विश्वसंस्कृतकुटुंबकम् समूह
समसामयिक मुद्दों पर व्याख्यान कराएगा। पुरस्कृत विद्वानों और उनकी कृतियों पर
धारावाहिक रूप से चर्चा कराएगा। आने वाले दिनों में यहां सकारात्मक परिणाम देखने
को मिलेगा।
इसपर संज्ञान लेते हुए विश्वसंस्कृतकुटुंबकम्
फेसबुक समूह के संचालक डॉ. चन्द्रकान्त दत्त शुक्ल ने दिनांक 05-02-2019 को
शिवरात्री के दिन इसी समूह पर संस्कृत कवि सम्मेलन कराया। इस कवि सम्मेलन का
संयोजन डॉ. अरविन्द कुमार तिवारी तथा अध्यक्षता वाल्मीकि, साहित्य अकादमी,
पद्मश्री आदि सम्मानों से अलंकृत डॉ. रमाकान्त शुक्ल ने किया। इसमें पुरस्कृत अनेक
कवियों ने काव्यपाठ किया।
लेखक- जगदानन्द झा
yogi ji working on sanskrit city
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