पहले आवश्यक नित्यकर्म समाप्त कर, स्नानादि से शुद्ध होकर, भस्म त्रिपुण्ड्र, रुद्राक्ष माला तथा यथासम्भव श्वेतवस्त्र
धारण कर उत्तर दिशा में जाकर शमी, पीपल, विमोर आदि शुद्ध स्थान की पत्थर,
बाँस, कीड़े, केश, हड्डी आदि दोषों से रहित पवित्र मिट्टी देखकर वहाँ
ॐ सर्वाधारधरे देवि त्वद्रूपां मृत्तिकामिमाम् ।
ग्रहीष्यामि प्रसन्ना त्वं लिंगार्थं भव सुप्रभे ।।
पढ़कर पृथिवी की प्रार्थना करे। फिर 'ॐ ह्रां पृथिव्यै नमः' इस षडक्षर मन्त्र से अभिमन्त्रित कर दे,
'ॐ हराय नमः'
इस मन्त्र से चन्दन आदि से पूजा करे। फिर ईशान कोण की
मिट्टी खन्ती आदि से ८ अंगुल तक खोदकर फेंक दे।
फिर ॐ उद्धृताऽसि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना।
मृत्तिके त्वाञ्च गृह्णामि प्रजया च धनेन च।
तक पढ़कर इसी मन्त्र से स्निग्ध मृत्तिका आवश्यकतानुसार ग्रहण करे। अन्त्यज का स्पर्श बचाकर मौनपूर्वक उसे घर में ले आवे; फिर कूटकर शुद्ध करे तब तांबे या अन्य धातु के पात्र में उसे रखे।
पार्थिव पूजन - सर्वप्रथम प्रातः अपने नित्यक्रिया से निवृत्त होकर शुभ मुहूर्त में शिवालय में या किसी पवित्र स्थान में जाकर स्थान की शुद्धि कर शुद्ध आसन पर उत्तरमुख बैठे। फिर भस्म से त्रिपुण्ड्र धारण करे। लिङ्गार्चन चन्द्रिका में कहा गया है कि त्रिपुण्ड्र और रुद्राक्ष की माला धारण किये बिना किया गया महादेव का पूजन फलदायक नहीं होता। इसलिये भस्म सुलभ न हो तो मिट्टी से भी तिलक (त्रिपुण्ड्र) धारण करना चाहिये। इसके बाद ॐ नमः शिवाय इस मन्त्र से आचमन करके स्वस्तिवाचन कर हाथ में कुश, अक्षत, जल, द्रव्य लेकर ॐ अद्येत्यादि देशकालौ संकीर्त्य अमुकगोत्रोऽमुकशर्मा मम यजमानस्य वा श्रुतिस्मृति-पुराणोक्तफलावाप्तये अमुककामनासिद्ध्यर्थं श्रीभवानीशंकरप्रसन्नतार्थं श्रीपार्थिवेश्वरलिंगपूजां करिष्ये (अथवा ) अमुककामोऽमुकसंख्यया एतावन्तं कालं पार्थिवलिङ्गानि स्वयं ब्राह्मणद्वारा वा पूजयिष्ये तदङ्गतया भूतशुद्धिं प्राणप्रतिष्ठादिकं कर्म च करिष्ये । पर्यन्त पढ़कर जल आदि जमीन में रखे किसी पात्र पर छोड़ दे। इसके बाद आसान शुद्धि करें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वम् विष्णुना धृता।
त्वञ्च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् ॥
भूमि-प्रार्थना- सर्वाधारे धरे देवि त्वद्रूपां मृत्तिकामिमाम्।
ग्रहीष्यामि प्रसन्ना त्वं लिङ्गार्थं भव सुप्रभे।।
मन्त्र पढ़ते हुए पृथ्वी की प्रार्थना करे।
चन्दन, पुष्पादि से भूमि का पूजन करे हाथ में पीली सरसों लेकर मन्त्र पढ़ते हुए भूतोत्सरण करें-
भूतोत्सरण - अपसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः।
ये भूता विध्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।
सरसों को पूजास्थान पर छिड़क कर भूतादि का उत्सारण करे।
ॐ सर्वभूतनिवारका शार्ङ्गय सशरास्त्रराजाय सुदर्शनाय हुँ फट् । मन्त्र का उच्चारण करते हुए चुटकी से तीन ताली बजा कर दिग्बन्धन करे। तब ॐ नमः शिवाय इस मन्त्र का जप करे। फिर भूतशुद्धि, प्राणप्रतिष्ठा, न्यास, अंग-करन्यास करना चाहिये। कुम्भपूजा करके ध्यान करे ।
ॐ ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसम्,
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं,
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।। १ ।।
ॐ नमो भगवते रुद्राय- इस मन्त्र का न्यास इस प्रकार है- ॐ कहकर दाहिने हाथ के अंगूठा मध्यमा अनामिका से
शिर का स्पर्श करे। इसी प्रकार न से नासिका के अग्रभाग का,
मो से ललाट का, भ से मुख के मध्य का, ग से कण्ठ का,
व से हृदय का, ते से दक्षिण कर का, रु से बायां हाथ का, द्रा से नाभि देश का एवं य से दोनों चरणों का स्पर्श करे
एवं न्यासविधानेन निष्पापात्मा भवेन्नरः ।। ३ ।। इस प्रकार न्यास करने से मनुष्य
निष्पाप होता है। न्यास करके एक पात्र में फूल, दूर्वा, जल, चन्दन आदि मिलाकर ऐहि सूर्य इत्यादि मन्त्र पढ़कर सूर्य
भगवान् को अर्घ देवे। फिर ताँबा आदि पात्र में रखी मिट्टी को ठीक से देखकर 'ॐ वं' इस अमृत बीज से मिट्टी का सिञ्चन करे। उसका पिण्ड बनाकर
सामने रख दे; फिर उसी में से ॐ ह्रीं ग्लौं गं गणपतये ग्लौं गं ह्रीं इस ग्यारह अक्षर का
गणेश मन्त्र पढ़ते हुए बाल गणपति की मूर्ति बनावे, उसकी हार्थे वर अभय अंकुश आदि से अलंकृत होनी चाहिये। पीठ
पर गणेश जी को रख दे, फिर महादेव की रचना करे।
ॐ हराय नमः यह मन्त्र पढ़कर बहेड़ा के फल बराबर मिट्टी लें। ॐ बं अमृताय नमः जल को अभिमन्त्रित करें। फिर महेश्वराय नमः इस मन्त्र से अंगूठा के बराबर बित्ता तक बड़े शिवलिङ्ग बनावे। फिर उस पर गुटिका क्रम से एक, तीन, पाँच, तीन, दो रखने से शुभ होता है। वैसे रख दे। इस विधि से रचना करने से तत्काल समस्त पाप-ताप नष्ट होते हैं।
फिर अपने सामने ॐ शूलपाणये नमः पढ़कर पूजन पात्र पीठासन पर अथवा वस्त्र मूर्ति स्थापित करें। इसी क्रम से और भी लिङ्ग संकल्प के अनुसार बनावे। 'ॐ ऐं हुँ भुं क्लीं कुमाराय नमः तक मन्त्र पढ़कर स्कन्द
(कार्तिकेय) की मूर्ति बनाकर स्थापित करे।
अब आचमन कर प्राणायाम कर ले तब, विनियोग-
ॐ अस्य श्रीसदाशिवमन्त्रस्य वामदेवऋषिः, पंक्तिश्छन्दः, श्रीसदाशिवो देवता, ॐ बीजं, नमः शक्तिः, शिवाय कीलकं, मम साम्बसदाशिवप्रीत्यर्थे पार्थिवलिङ्गपूजने विनियोगः । पढ़कर संकल्प छोड़े।
पुनः अङ्न्यास करें- ॐवामदेवाय ऋषये नमः शिरसि। ॐअनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। ॐ सदाशिवदेवतायै नमः हृदि। ॐ बीजाय नमः गुह्ये। ॐ शक्तये नमः पादयोः। ॐ शिवाय कीलकाय नमः सर्वांगे। ॐ नं तत्पुरुषाय नमो हृदये। ॐ मं अघोराय नमः पादयोः। ॐ शिं सद्योजाताय नमः गुह्ये। ॐ वां वामदेवाय नमः मूध्र्नि। ॐ यं ईशानाय नमः मुखे। ॐ अङ्घष्ठाभ्यां नमः। ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ मं मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ वां कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ यं करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्। ॐ हृदयाय नमः। ॐ नं शिरसे स्वाहा। ॐ मं शिखायै वषट्। ॐ शिं कवचाय हुम्। ॐ वां नेत्राभ्यां वौषट्। ॐ यं अश्राय फट्।। पढ़ते हुए अंगन्यास, करन्यास करे।
देवन्यास - ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि । ॐ ऋग्यजुः सामच्छन्दोभ्यो
नमो मुखे । ॐ प्राणाख्यदेवतायै नमः हृदि । ॐ आं बीजाय नमः गुह्ये। ॐ ह्रीं शक्तये
नमः पादयोः । ॐ क्रौं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे ।
प्राण प्रतिष्ठा -ॐ आं ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ वँ सँ हँ सः सोहँ शिवस्य
प्राणा इह प्राणाः ।। ॐ आं ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षँ सँ हँ सः सोहँ शिवस्य
जीव इह स्थितः। आं ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ धँ सँ हँ सः सोहँ शिवस्य
सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मनस्त्वक्चक्षुश्श्रोत्रघ्राणजिह्वापाणि पादपायूपस्थानि
इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ।। इसे मन से पढ़ते हुए करे।
मन ही मन इस प्रकार पढ़कर लिङ्ग के ऊपर अक्षत समर्पित करे । इस तरह
प्राणप्रतिष्ठा करके फिर हाथ जोड़कर ध्यान करे - ॐ दक्षोत्सङ्ग निषण्णकुञ्जरमुखं
प्रेम्णा करेण स्पृशन, वामोरुस्थितवल्लभाङ्कनिलयं स्कन्दं परेणामृशन् ।
इष्टाभीतिमनोहरं करयुगं बिभ्रत् प्रसन्नाननो, भूयान्नः शरदिन्दुसुन्दरतनुः श्रेयस्करः शङ्करः ।। ध्यान
नमस्कार करते हुए आगे दिये मंत्र को पढ़े ।
नमोऽस्तु स्थाणुरूप ज्योतिर्लिङ्गामृतात्मने । चतुर्मूर्तेश्च पुंशक्त्या
भासितांगाय शम्भवे। सर्वज्ञज्ञानविज्ञान प्रदानैकमहात्मने। नमस्ते देवदेवेश
सर्वभूतहितेरत।।
नमन कर स्थापित लिङ्ग का स्पर्श करके आवाहन करे । ॐ भूः पुरुषं
साम्बसदाशिवमावाहयामि ।। ॐ भुवः पुरुषं साम्बसदाशिवमावाहयामि । ॐ स्वः पुरुषं
साम्बसदाशिवमावाहयामि । इस प्रकार आवाहन करके पुष्पाञ्जलि दे। पुष्पाञ्जलि- ॐ
स्वामिन् सर्वजगन्नाथ यावत्पूजावसानकम् । तावत्त्वं प्रीतिभावेन लिङ्गेऽस्मिन्
सन्निधौ भव ।। पुष्पाञ्जलि देकर ॐ ह्रीं ग्लौं गं गणपतये ग्लौं गं ह्रीं ।। इस एकादशार्ण
मन्त्र से गणपति की पूजा करे। पुनः 'ॐ ऐं हुँ भुँ क्लीं कुमाराय नमः'
इस दशाक्षर मन्त्र से स्कन्द कुमार की पूजा करे।
शिवपूजनम्
ध्यान - ॐ दक्षांकस्थं गजपतिमुखं प्रामृशन् दक्षदोष्णा,
वामोरुस्थां नगपतनयांके ग्रहं चापरेण। इष्टाभीती परकरयुगे
धारयन्निन्दु कान्तिमव्यादस्मांस्त्रिभुवननतो नीलकण्ठस्त्रिनेत्रः ।।
पाद-प्रक्षालनार्थ जल - ॐ नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्त्राक्षाय मीदुषे अथो
येऽअस्य सत्वानो हन्तेभ्यो करन्नमः ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः पाद्यं समर्पयामि इति
पाद्यं दद्यात् ।। १ ।।
ॐ गायत्रीत्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप् पंक्त्या सह।। बृहत्युष्णिहा ककुप्सूचीभि
शम्यन्तु त्वा ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि इत्यर्घ्यम् ।। २ ।।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय
मामृतात् ।। ॐ साम्बसदा शिवाय नमः आचमनीयं स० इत्याचमनम् ।। ३ ।।
ॐ मधुव्वाता ऋतायते इति मधुपर्कम् ।। ४ ।।
ॐ साम्बसदाशिवाय नमः इत्याचमनीयम् ॥ ५ ॥
ॐ व्वरुण स्योत्तंभनमसि व्वरुणस्य स्कम्भसर्जनीस्थो व्वरुणस्य ऋतसदत्र्यसि
व्वरुणस्यऽऋत सदनमसि व्वरुणस्य ऋतसदनमासीद ॐ साम्बसदाशिवाय नमः जलस्नानं स० इति
जलस्नानम् ।। ६ ।।
ॐ पय पृथिव्यां पयऽओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः पयस्वती: । प्रदिश सन्तु
मह्यम् । ॐ साम्बसदाशिवाय नमः पयःस्नानं स० इति पयः स्नानम् ।। ७ ।।
ॐ दधि क्राव्णोऽअकारिषं जिष्णोरश्वस्य व्वाजिनः । सुरभिनो मुखाकरत्प्राण
आयूंषि तारिषत् ।।
ॐ साम्बसदाशिवाय नमः दधिस्नानं स० इति दधिस्नानं। पुनर्जलस्नानम् ।। ८ ।।
ॐ घृतं घृतपावानः पिबतांतरिक्षस्य हविरसि स्वाहा दिश: प्रदिशऽअदिशो
व्विदिशऽर्जद्दशो दिग्भ्यः स्वाहा । ॐ साम्बसदाशिवाय नमः घृतस्नानं समर्पयामि।
इतिघृतस्नानं पुनर्जलस्नानम् ।। ९ ।।
ॐ मधुव्वाताऽऋतायते मधुक्षरंति सिन्धवः माध्वीनः सन्त्वोषधीः मधुनक्तमुतोषसो
मधुमत्पार्थिवं रजः मधुद्यौरस्तु नः पिता मधुमान्नो व्वनस्पतिर्म्मधुमाँऽ २ अस्तु
सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तु नः ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः मधुस्नानं स० । इति
मधुस्नानं पुनर्जलस्नानम् ।। १० ।।
ॐ अपाँ रसमुद्रस्यस सूर्य्ये सन्तः समाहितम् आ रसस्य योरसस्तंवो
गृह्णाम्युत्तम मुपयामगृहीतोसीन्द्रायत्वाजुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय
त्वा जुष्टतमम् ॥ ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः शर्करोदकस्नानं स० । इति शर्करोदकस्नानं
पुनर्जलस्नानम् ।। ११ ।।
ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपियन्ति सस्त्रोतसः ।। सरस्वती तु पञ्चधा सोदेशे भवत्सरित् ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः पञ्चामृतस्नानं स० इति पञ्चामृतस्नानम् ।। १२ ।।
ॐ शुद्धवालः सर्व्वशुद्धवालो मणिवालस्तऽआश्विनाः श्येतः श्येताक्षोरुणस्ते
रुद्राय पशुपतये कर्णायामाऽ अवलिप्तारौद्रा नभोरूपाः पार्जन्या: ।। ॐ
साम्बसदाशिवाय नमः शुद्धोदकस्नानं स० । इति शुद्धोदकस्नानम् ।। १३
ततः स्नानान्ते ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतोत इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः ।। १
।।
याते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी। तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि
चाकशीहि ।। २ ।।
यामिषुङ्गिरिशन्त हस्ते विभस्तवे। शिवाङ्गिरित्रतां कुरु माहि ᳪ सीः पुरुषञ्जगत् ।। ३ ।।
शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि । यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्मᳪ सुमना असत् ।। ४ ।।
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्योभिषक् । अहींश्च सर्वाञ्जम्भयन् सर्वांश्च
यातुधान्यो धराची: परासुव ।।५।।
असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रुः सुमङ्गलः ये चैन रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिताः।
सहस्त्रशोऽवैषा हेड ईमहे ।। ६ ।।
असौ योऽव सर्पति नीलग्रीवो विलोहितः उतैनङ्गोपा अदुश्रन्नद् श्रत्रुदहार्यः
सदृष्टो मृडयाति नः ।। ७ ।।
नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्त्राक्षाय मीढुषे । अथो ये अस्य सत्वानोऽहं तेभ्योऽकरन्नः
।। ८ ।।
प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरार्त्न्योर्ज्याम्। याश्च ते हस्त इषवः पराता भगवो
वप ।। ९ ।।
विज्यन्धनुः कपर्दिनो विशल्यो वाणवाँ २ उत। अनेशन्नस्य या इषव आभुरस्य
निषङ्गधिः ।। १० ।।
याते हेतिमदुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः ।। तयास्मान्विश्व-तस्त्वमयक्ष्मया
परिभुज ।। ११ ।।
परिते धन्वनो हेतिरस्मान् वृणक्तु विश्वतः । अथो य इषुधिस्तवारे
अस्मिन्निधेहितम् ।। १२ ।।
अवतत्य धनुष्टव्ᳪ सहस्त्राक्षशतेषुधे। निशीर्यशल्यानाम्मुखा शिवो नः सुमना भव
।। १३ ।।
नमस्त आयुधायानातताय धृष्णवे। उभाभ्भ्यामुत ते नमो बाहुभ्यान्तव धन्वने ।। १४
।।
मानो महान्तमुत मानो अर्भकम्मा न उक्षन्तमुतमानऽउक्षितम्। मानो वधीः पितरन्मोत
मातरम्मानः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ।। १५ ।।
मानस्तोके तनये मान आयुषि मानो गोषु मानो अश्वेषु रीरिषः। मानो व्वीरान्रुद्र
भामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वाहवामहे ।। १६ ।।
इस 16 वेद मंत्रों से शिव के शिर पर तांबे के कलश से गव्य (दूध, दही,घी) तथा दूध
अथला केवल गङ्गा जल से अभिषेक करें ।
इसके बाद कौपीन- ॐ प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरायर्ज्याम्।। याश्च ते हस्तऽइषवः
पराता भगवोव्वप ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः वस्त्रं कौपीनं स० । इति वस्त्रकौपीनम् ।।
१४ ।।
ॐ विज्यं धनुः कपर्दिनो व्विशल्यो वाणवाँ उत।। अनेशन्नस्य याऽइषव आभुरस्य
निषंगधिः ।। साम्बसदाशिवाय नमः आभरणम् स० ।। १५ ।।
ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचोव्वेनऽआवः सबुध्न्या उपमाऽअस्य
व्विष्टा । सतश्च योनिमसतश्चव्विवः ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
इति यज्ञोपवीतम् ।। १६ ।। आचमनं च दद्यात् ।।
ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो भवाय च रुद्राय च नमः शर्वाय च पशुपतये च
नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च नमः कपर्दिने ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः गन्धं स० इति
गन्धम् ।। १७ ।।
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च। ॐ
साम्बसदाशिवाय नमः अक्षतान् समर्पयामि इत्यक्षताः ।। १८ ।।
नमः वार्य्याय चावार्य्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्थ्याय च
कूल्याय च नमः शष्याय च फेन्याय च नमः । ॐ साम्बसदाशिवाय नमः पुष्पं समर्पयामि।
इति पुष्पाणि ।। १९ ।।
ॐ नमो बिल्मिने च कवचिने च वर्मिणे च वरूथिने च नमः । श्रुताय च श्रुतसेनाय च
नमो दुंदुभ्याय चाहनन्याय च नमो धृष्णवे ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः बिल्वपत्रं स० ।
इति बिल्वपत्राणि ।। २० ।।
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवानो दूर्वे प्रतनुसहस्त्रेण
शतेन च ।। ॐ साम्बसदाशिवाय नमः दूर्वा स० । इति दूर्वाम् ।। २१ ।।
एवं पुष्पांतपूजां कृत्वा आवरणार्चनं कुर्यात् ।। तद्यथा
अघोराय नमः ।। १ ।। ॐ पशुपतये नमः ।। २ ।। ॐ शिवाय नमः ।। ३ ।। ॐ विरूपाय नमः
।। ४ ।। ॐ विश्वरूपाय नमः ।। ५ ।। ॐ भैरवाय नमः ।। ६ ।। ॐ त्र्यम्बकाय नमः ।। ७ ।।
ॐ शूलपाणये नमः ।। ८ ।। ॐ कपर्दिने नमः ।। ९ ।। ॐ ईशानाय नमः ।। १० ।। ॐ महेशाय
नमः ।। ११ । ।
इस प्रकार एकादश रुद्रों की पूजा करके शक्ति की पूजा करें-
ॐ भगवत्यै नमः ।। १ ।। ॐ उमादेव्यै
नमः ।। २ ।। ॐ शंकरप्रियायै नमः ।। ३ ।। ॐ पार्वत्यै नमः ॥ ४ ॥ ॐ गौर्यै नमः ।। ५
।। ॐ कालिन्यै नमः ।। ६ ।। ॐ काटिव्यै नमः ।। ७ ।। ॐ विश्वधारिण्यै नमः ।। ८ ।। ॐ
विश्वेश्वर्यै नमः ।। ९ ।। ॐ विश्वमात्रे नमः ।। १० ।। ॐ शिवायै नमः ।। ११ ।।
इस प्रकार गण के साथ रुद्र की विधिवत् पूजा करते पूर्वादि क्रम से अक्षत आदि
से अष्टमूर्ती की पूजा करें ।
पूर्व में- ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः ।। १ ।। ईशान में- ॐ भवाय जलमूर्तये
नमः ।। २ ।। उत्तर दिशा में ॐ रुद्रायाग्निमूर्तये नमः ।।
३ ।। वायव्य कोण में- ॐ उग्राय वायुमूर्तये नमः ।। ४ ।। पश्चिम
दिशा में- ॐ भीमायाकाशमूर्तये नमः ।। ५ ।। नैर्ऋत्य कोण में - ॐ पशुपतये
यजमानमूर्तये नमः ।। ६ ।। दक्षिण दिशा में- ॐ महादेवाय सोममूर्तये नमः ।। ७ ।।
आग्नेय कोण में- ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नमः ।। ८ ।। इस प्रकार विधिवत् पूजा करके
प्रणालिका में- ह्रीं उमायै नमः इस मंत्र से पूजा करें ।
इस प्रकार पूर्वादि दिशाओं में इन्द्रादि दश दिक्पालों की पूजा करें । यहाँ तक
आवरण पूजा सम्पन्न हुई।।
इसके बाद धूप- ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्तकेशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने
च नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मीढुष्टमाय चेषुमते च नमो ह्रस्वाय ।। ॐ
सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः धूपं स० इति धूपम् ।। २२ ।।
ॐ नमऽआशवे चाजिराय च नमः शीघ्राय च शीभ्याय च नमऽऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो
नादेयाय च द्वीप्याय च ।। ॐ सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः दीपं स० इति दीपम् ।। २३ ।।
ॐ नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च नमो मध्यमाय चाप्रगल्भाय
च नमो जघन्याय च बुध्न्याय च नमः सोभ्याय ।। ॐ सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः नैवेद्यं
समर्पयामि। इति नैवेद्यम् ।। २४ ।।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम् । उर्वारुकमिव
बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।। ॐ सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः आचमनीयं
समर्पयामि । इत्याचमनम् ॥ २५ ॥
ॐ इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहेमतोः । यथाशमसद्विपदे
चतुष्पदे विश्वम्पुष्टं ग्रामेऽअस्मिन्ननातुरम् ।। ॐ सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः
ताम्बूलं स० । इति ताम्बूलम् ।। २६ ।।
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च० ॐ सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः ऋतुफलं स० । इति ऋतुफलम्
।। २७ ।।
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकऽआसीत् ।। सदाधार पृथिवीं
द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ।। ॐ सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः दक्षिणां
समर्पयामि । इति दक्षिणा ।। २८ ।।
इस प्रकार पूजा करके अक्षत तथा जल से तर्पण करायें - ॐ भवं देवं तर्पयामि ।। १
।। ॐ शर्वं देवं तर्पयामि ।। २ ।। ॐ ईशानं देवं तर्पयामि ।। ३ ।। ॐ पशुपतिं देवं
तर्पयामि ।। ४ ।। ॐ उग्रं देवं तर्पयामि ।। ५ ।। ॐ रुद्रं देवं तर्पयामि ।। ६ ।। ॐ
भीमं देवं तर्पयामि ।। ७ ।। ॐ महान्तं देवं तर्पयामि ॥ ८ ॥ ॐ भवस्य देवस्य पत्नीं
तर्पयामि ।। १ ।। ॐ शर्वस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।। २ ।। ॐ ईशानस्य देवस्य
पत्नीं तर्पयामि ।। ३ ।। ॐ पशुपतेर्देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।। ४ ।। ॐ उग्रस्य
देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।। ५ ।। ॐ रुद्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।। ६ ।। ॐ
भीमस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।। ७ ।। ॐ महतो देवस्य पत्नी तर्पयामि ।। ८ ।।
इस प्रकार तर्पण करके कर्पूर मिले हुए ग्यारह वर्तिका (वत्ती) से अथवा केवल
कपूर से आरती करें ।।
नीराजन - ॐ कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ।। १ ।।
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं वन्दे
पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्यशशांकवह्रिनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं वन्दे
भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शंकरम् ।। २ ।।
शान्तं पद्मासनस्थं शशधरमुकुटं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं शूलं
वज्रं च खड्गं परशुमभयदं दक्षभागे वहन्तम् ।
नागं पाशं च घंटां डमरुकसहितं सांकुशं वामभागे नानालंकारयुक्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ।। ३ ।।अथ शिवनीराजनम्-
जय गंगाधर हर जय गिरिजाधीशा।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा। हर हर हर महादेव ।। १ ।।
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने, गुञ्जति मधुकरपुञ्जे कुञ्जवने सुघने,
कोकिलकुञ्जतखेलतहंसावनललिता।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता। हर हर हर महादेव ।। २ ।।
तस्मिन् ललितसुदेशे शालामणिरचिता। तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ।।
क्रीडा रचयति भूषारञ्जित निजमीशम् ।
इन्द्रादिकसुरसेवित नामयते शीशम्।। हर हर हर महादेव ।। ३ ।।
विबुधवधू बहु नृत्यति हृदये मुदसहिता। किन्नरगानं कुरुते सप्तस्वरसहिता ।।
धिनकत थै थै धिनकत मृदङ्गं वादयते।
क्वण क्वण ललिता वेणुः मधुरं नादयते। हर हर हर महादेव।। ४ ।।
रुणरुण चरणे रचयति नुपूरमुज्वलिता। चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिकताम्।
तां तां लुपचुप तां तां वादयते।
अङ्गुष्ठाङ्गुलिनादं लासक्तां कुरुते । हर हर हर महादेव ।। ५ ।।
कर्पूरद्युतिगौरं पञ्चाननसहितम् । त्रिनयनशशधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम् ।
सुन्दरजटाकलापं पावकयुतभालम्।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ।। हर हर हर महादेव ।। ६ ।।
मुण्डे रचयति माला पन्नगमुपवीतम् ।। वामविभागे गिरिजारूपम् अतिललितम् ।
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम् ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणम्। हर हर हर महादेव ।। ७ ।।
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते। नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते।
अतिमृदुचरणसरोजं हृदि कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशम् ईशम् अभिनत्वा। हर हर हर महादेव ।। ८ ।।
ध्यान के बाद नीराजन करें ।
प्रदक्षिणा - ॐ ये तीर्थानि प्रचरंति सृकाहस्ता निषङ्गिणः । तेषा सहस्त्रयोजने
वधन्वानि तन्मसि ।। १ ।।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च । तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे
पदे ।।
ॐ साम्बसदाशिवाय नमः प्रदक्षिणं समर्पयामि । यह पढ़ते हुए तीन बार प्रदक्षिणा
करें ।।
प्रदक्षिणा के सम्बन्ध में लिङ्गार्चन चन्द्रिका का निर्देश इस प्रकार है- चण्डी
भगवती की एक, सूर्य की सात, गणेशजी की तीन, विष्णु की चार एवं शिव की तीन प्रदक्षिणा करनी चाहिये। शंकर
की ३,
५, १०, ८, १२ अथवा इनसे अधिक प्रदक्षिणा शक्ति के अनुसार करनी चाहिये।
किन्तु एक परिक्रमा भगवान् शंकर की नहीं करनी चाहिये। एक करने से पुण्य क्षीण होता
है। भगवान् शिव की तीन प्रदक्षिणा पूजन के बाद अवश्य करनी चाहिये,
न करे तो पूजा का फल नहीं होता। भक्तिपूर्वक उमा-महेश्वर की
प्रदक्षिणा कोई यदि करता है तो उसने ही सम्पूर्ण पूजा सम्पन्न किया है।
चण्ड-सोमसूत्रादि सहित शिवपूजा में तो प्रदक्षिणा का क्रम शंकर भगवान् की आधा ही
प्रदक्षिणा कही गयी है। यति को बायीं परिक्रमा, ब्रह्मचारियों को दायीं एवं गृहस्थों को दाहिनी बायीं दोनों
परिक्रमा शंकर की करनी चाहिये। सव्य का अर्थ यह है कि प्रदक्षिणा में नाली पार न
करे।
पुष्पाञ्जलि मन्त्र - ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्म्माणि प्रथमा
न्यासन् । तेह नाकम्महिमानः सचन्त यत्र पूर्व्वे साध्याः सन्ति देवाः ।। १ ।। ॐ
सांगाय साम्बसदाशिवाय नमः मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
पुष्पाञ्जलि देकर साष्टांग प्रणाम करें- 'ॐ प्रपन्नं पाहि मामीश भीतं मृत्युग्रहार्णवात् । इसके बाद यथाशक्ति पञ्चाक्षर मन्त्र का जप करें।
जपं समर्पण - गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु
मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥
अपराध समर्पण करें-
अथ अपराधक्षमापनस्तोत्रम्-
आदौ कर्मप्रसङ्गात् कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां
विण्मूत्रामेध्यमध्ये क्वथयति नितरां जाठरो जातवेदाः।
यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। १ ।।
बाल्ये दुःखातिरेकान्मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासा,
नो शक्त श्चेन्द्रियेभ्यो भवगुणजनिता जन्तवो मां तुदन्ति।
नानारोगादिदुःखाद्रुदनपरवशः शङ्कर न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। २ ।।
प्रौढोऽहं यौवनस्थो विषयविषधरैः पञ्चभिर्मर्मसंधौ
दष्टो नष्टो विवेकः सुतधनयुवतिस्वादुसौख्ये निषण्णः।
शैवीचिन्ता विहीनं मम हृदयमहो मानगर्वाधिरूढं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ॥ ३ ॥
वार्धक्ये चेन्द्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापैः
पापै रोगैर्वियोगैस्त्वनवसितवपुः प्रौढिहीनं च दीनम् ।
मिथ्यामोहाभिलाषैर्भ्रमति मम मनो घूर्जटेर्ध्यानिशून्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। ४ ।।
नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं
श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्ममार्गेऽसुरारे।
ज्ञातो धर्मो विचारैः श्रवणमननयोः किं निदिध्यासितव्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। ५ ।।
स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपन विधिविधौ नाहृतं गांगतोयं
पूजार्थं वा कदाचिद्बहुतरगहनात्खण्डबिल्वीदलानि ।
नानीता पद्ममाला सरसि विकसिता गन्धपुष्पैस्त्वदर्थं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। ६ ।।
दुग्धैर्मध्वाज्ययुक्तैर्दधिसितसहितैः स्नापितं नैव लिङ्गं
नो लिप्तं चन्दनाद्यैः कनकविरचितैः पूजितं न प्रसूनैः ।
धूपैः कर्पूर-दीपैर्विविधरसयुतैर्नैव भक्ष्योपहारैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। ७ ।।
ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचुरतनधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो
हव्यं ते लक्षसंख्यैर्हुतवहवदने नार्पितं बीजमन्त्रैः ।
नो तप्तं गांगतीरे व्रतजपनियमैः रुद्रजाप्यैर्न वेदैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।।८।।
स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुण्डले सूक्ष्ममार्गे
शान्ते स्वान्ते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरूपे पराख्ये।
लिंगज्ञे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शंकरं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। ९ ।।
नग्नो निःसंगशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहांधकारो
नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्टः कदाचित् ।
उन्मन्यावस्थया त्वां विगतकलिमलं शंकरं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भोः श्रीमहादेव शंभो ।। १० ।।
चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे
सर्पैर्भूषितकण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थवैश्वानरे ।
दन्तित्वक्कृतसुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्यसारे हरे
मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमखिलामन्यैस्तु किं कर्मभिः ।। ११ ।।
किंवाऽशेन धनेन वाजिकरिभिः प्राप्तेन रांज्येन किं
किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम् ।
ज्ञात्वैतत्क्षणभङ्गुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरतः
स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज भज श्रीपार्वतीवल्लभम् ।। १२ ।।
आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं
प्रत्यायान्ति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्धक्षकः ।
लक्ष्मीस्तोयतरङ्गभङ्गचपला विद्युच्चलं जीवितं
तस्मान्मां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना ।। १३ ।।
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ।। १४ ।।
गात्रं भस्मसितं सितञ्च हसितं हस्ते कपालं सितं
खट्वाङ्गञ्च सितं सितञ्च वृषभं
कर्णे सिते कुण्डले ।
गंगाफेनसितं जटापयसितं चन्द्रः सितो मूर्द्धनि
सोऽयं सर्वसितो ददातु विभवं
पापक्षयं शङ्करः ।। १५ ।।
भञ्जनादि स्तोत्र पाठ -
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् ।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गांगवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ।। १ ।।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यंगभूषम् ।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ।।
२ ।।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्रादिरूढं गुणातीतरूपम् ।
भवं भास्वरं भस्मना भूषितांगं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।। ३ ।।
शिवाकान्त शम्भो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन् ।
त्वमेको जगद् व्यापको विश्वरूप प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥ ४ ॥
परात्मानमेकं जगद्वीजमाद्यं निरीहं निराकारमोङ्कारवेद्यम् ।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥ ५ ॥
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा ।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न
वेषो न यस्यास्ति मूर्त्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ।। ६ ।।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम् ।
तुरीयं तमः पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥ ७॥
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते! नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ।। ८ ।।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ! महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे! त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ।। ९ ।।
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे! गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्!।
काशीपते करुणया जगदेतदेगस्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ।। १० ।।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे! त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृडविश्वनाथ ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश! लिङ्गात्मकं हर चराचर विश्वरूपिन् ।।११।।
इति
वेदसारस्तोत्रम् ।।
इस प्रकार क्षमा प्रार्थना करके यह मंत्र पढ़ते हुए शिव को साष्टाङ्ग प्रणाम
करें-
ॐ स्तुतिं करोमि कां प्रभो मतिस्तु कुण्ठिता मम ।
भवद्गुणानुवादपारमेति किं चतुर्मुखः ।
ततः प्रणाममेव ते करोमि दण्डवद्विभो ।
क्षमस्व मेऽपराधरूपदोषजालमीश्वर ।।
इसके बाद यथाशक्ति शिवमहिम्न आदि स्तोत्र, पुराणोक्त स्तुतियों से स्तुति करके
देवता की प्रार्थना करें-
प्रार्थना - ॐ अंगहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं महेश्वर।
पूजितोऽसि महादेव तत् क्षमस्व भ्रमात्कृतम् ।। १ ।।
यद्यप्युदाहृतैः पुष्पैरपास्तैर्भावदूषितैः ।
केशकीटापविद्धैश्च पूजितोऽसि मया प्रभो ॥ २ ॥
अन्यत्रासक्तचित्तेन क्रियाहीनेन वा प्रभो।
मनोवाक्कायदुष्टेन पूजितोऽसि त्रिलोचन ।। ३ ।।
यच्चोपहतपात्रेण कृतमर्थ्यादिकं मया।
तामसेन च भावेन तत्क्षमस्व मम प्रभो ॥ ४ ॥
मन्त्रेणाक्षरहीनेन पुष्पेण विफलेन च ।
पूजितोऽसि महादेव तत्सर्वं क्षम्यतां मम ।। ५ ।।
व्रतं सम्पूर्णतां यातु फलं चाक्षयमश्नुते।
अज्ञानयोगादुपचारकर्म यत्पूर्वमस्माभिरनुष्ठितं ते।
तदैव सोद्वासनकं दयालो पितेव पुत्रान्प्रतनो जुषस्व ।। ६ ।।
अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं भवानेव दाता त्वदन्यं न याचे ।
भवद्भक्तिमन्तः स्थिरां देहि मह्यं कृपाशील शम्भो
कृतार्थोऽस्मि यस्मात् ।। ७ ।।
ॐ नमः ओंकाररूपाय नमोऽक्षरवपुर्धृते ।
नमो नादात्मने तुभ्यं नमो बिन्दुकलात्मने ।। ८ ।।
अलिंगलिङ्गरूपाय रूपातीताय ते नमः ।
त्वं माता सर्वलोकानां त्वमेव जगतः पिता ।। ९ ।।
त्वं भ्राता त्वं सुहृन्मित्रं त्वं प्रियः प्रियरूपधृक् ।
त्वं गुरुस्त्वं गतिः साक्षात्त्वं पिता त्वं पितामहः ।। १०
।।
नमस्ते भगवन् रुद्र भास्करामिततेजसे।
नमो भवाय रुद्राय रसायाम्बुमयाय च ।। ११ ।।
शर्वाय क्षितिरूपाय सदा सुरभिणे नमः ।
पशूनां पतये तुभ्यं पावकामिततेजसे ।। १२ ।।
भीमाय व्योमरूपाय शब्दमात्राय ते नमः।
महादेवाय सोमाय अमृताय नमोऽस्तु ते ।। १३ ।।
उग्राय यजमानाय नमस्ते कर्मयोगिने।
पार्थिवस्य च लिङ्गस्य यन्मया पूजनं कृतम् ।। १४ ।।
तेन मे भगवान् रुद्रो वांछितार्थं प्रयच्छतु ।
उपरोक्त से करबद्ध प्रार्थना करके अर्घ्योदक लेकर देवता के चरणों
में समर्पित करें –
मंत्र- ॐ इतः पूर्वं प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतो
जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्यवस्थासु मनसा वाचा कर्म्मणा हस्ताभ्यां पट्ट्यामुदरेण शिश्ना
यत्कृतं यदुक्तं तत्सर्वं ब्रह्मार्पणं भवतु ।
ॐ साधु वाऽसाधु वा कर्म यद्यदाचरितं मया । तत्सर्वं कृपया
देव गृहाणाराधनं मम ।। १ ।। इससे अर्ध्य का कुछ जल देवता पर छिड़कर पुष्पाञ्जलि
लेकर यह मंत्र पढें-
" ॐ रश्मिरूपा महादेवा अत्र पूजितदेवताः । सदा
शिवांगलीनास्ताः सन्ति सर्वाः सुखावहाः "।। १ ।। पुष्पाञ्जलि को देवता पर समर्पित कर उनके तेज रूप का ध्यान
करके वसर्जन करें-
ॐ गच्छ गच्छ परं
स्थानं स्वस्थानं परमेश्वर। यत्र ब्रह्मादयो देवा न विदुः परमं पदम् ।। १ ।।
ॐ नमो महादेवदेवाय यह पढ़तक संहार मुद्रा कर विसर्जन करें। इसके बाद गणपति तथा स्कन्द का विसर्जन कर ईशान
कोण में जल से मण्डल बनाकर ॐ व्यापकमण्डलाय नमः । इससे पूजा करके –
ॐ चण्डेश्वराय नमः इससे निर्माल्य नैवेद्य आदि रखकर ध्यान
करें-
चंडेश्वरं रक्ततनुं त्रिनेत्रं रक्तांशुकाढ्यं हृदि भावयामि
।
ढंकं त्रिशूलं स्फटिकाक्षमालां कमंडलुं बिभ्रतमिन्दुचूडम्
।।
ॐ चण्डेश्वराय । इस मंत्र से निर्माल्य से पूजा कर 'ॐ बूं फट् चण्डेश्वर इमं बलिं गृह्ण स्वाहा'
इससे तत्त्वमुद्रा के द्वारा चरणोदक धारा देकर-
ॐ बलिदानेन सन्तुष्टश्चण्डेशः सर्वसिद्धिदः ।
शान्तिं करोतु मे नित्यं शिवभक्तिं ददातु च ।। १ ।।
लेह्यचोष्यान्नपानादि ताम्बूलं स्त्रग्विलेपनम् ।।
निर्माल्यं भोजनं तुभ्यं ददामि श्रीशिवाज्ञया ।। २ ।।
इससे निर्माल्य का पुष्पाञ्जलि समर्पण कर नाराचमुद्रा
दिखाकर इस मन्त्र से विसर्जन करें
ॐ हरो महेश्वरश्चैव शूलपाणिः पिनाकधृक्।
शिवः पशुपतिश्चैव महादेव-विसर्जनम्।।
निमाल्य जल को पीकर प्रणाम करें- ॐ
बाणरावणचण्डीशनंदिभृंगिरिटादयः ।
शंकरस्य प्रसादोऽयं सर्वे गृह्णन्तु शांभवा ।। १ ।।
निर्माल्यसलिलं पीत्वा देवदेवस्य शूलिनः ।
क्षयापस्मारकुष्ठाद्यैस्सद्यो मुच्येत पातकैः ।। २ ।।
अकालमृत्युहरणं ब्रह्महत्याविनाशनम्।
व्याधिघ्नं भक्तकायस्य शिव-निर्णेजनोदकम् ।। ३ ।।
पुन र्निर्माल्य पुष्पादि लिङ्ग को नदी आदि में विसर्जित
करें । इस प्रकार यथाशक्ति एर लाख संख्या या प्रधान संकल्प में कही संख्या के
अनुसार उसके दशांश (दसवां भाग) तिल घी तथा
अन्य द्रव्यों से हवन करें ।
इति श्रीपार्थिवेश्वरचिन्तामणिपूजाप्रयोगः ।
इतनी अच्छी तरह से पहले कभी पुजन विधि ना देखी सदैंव आपकी जय हो ,,,,जय श्री राम
जवाब देंहटाएंVery nice detailed and knowledgeable post hai thanks bhole baba AAP par apni kripa kare
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