गृह प्रवेश से पहले किया जाने वाला कार्य-
जिस नवीन भवन
में गृह प्रवेश करना हो, उसके मुख्य द्वार के दोनों ओर केले का पेड़ (अभाव में
पत्तियां मात्र) स्थापित करें। घर के मुख्य द्वार तथा अन्य कक्ष के द्वार पर आम और
अशोक की पत्तियों के साथ-साथ उपलब्ध फूलों से निर्मित वन्दनवार लगा दें। दो
द्वारपालों की स्थापना तथा द्वारमात्रिक की पूजा के लिए द्वार के दोनों ओर अष्टदल
कमल (रंगोली) बना कर वहाँ दो मांगलिक
कलश स्थापित करें। नवीन भवन के मध्य स्थान में अथवा घर के पूर्व/ ईशान/अग्निकोण
क्षेत्र में स्थित किसी बड़े कक्ष में गृहप्रवेश सम्बन्धी वास्तु पूजा के लिए पूजा
मण्डल को चावल/गेहूँ के आंटे और हल्दी चूर्ण के सहयोग से सजा लें। वास्तुपूजा के
लिए कक्ष के आकार को देखते हुए वास्तुमण्डल का निर्माण करे। आकार इतना बड़ा हो कि उसपर
गणेशाम्बिका, रुद्र कलश, प्रधान कलश, षोडशमात्रिका,
सप्तघृतमात्रिका, पंचलोकपाल, क्षेत्रपाल, नवग्रह, चौंसठ पद वास्तु मंडलदेव की
स्थापना तथा पूजन किया जा सके। यह आकार ५×७ से लेकर ११×१६ फीट तक का हो
सकता है। यदि कक्ष में एक स्थान पर इतनी बड़ी बेदी निर्माण करना सम्भव नहीं हो तो
कक्ष के ईशान कोण में रूद्र कलश, अग्निकोण में षोडश मातृका, ईशानकोण से उत्तर
नवग्रह बेदी आदि अलग-अलग बना लें, जिसका विवरण आगे दिया गया है।
वास्तुमण्डल
के निर्माण में नयी ईटों से अथवा चौकी पर इन्द्र,अग्नि आदि दसों दिक्पालों की वेदी बना लें । वेदियों को नवीन वस्त्र से ढ़ककर मौली
धागे से बांध दें। अब इसपर स्वस्तिक या अष्टदल कमल बनाकर, छोटे-छोटे पल्लव से अलंकृत ढक्कन सहित कलश को सजा दें।
अब इस बेदी
के ईशान कोण में रुद्र कलश, मध्य में प्रधान
कलश हेतु ईटों की वेदी बनावें। रुद्रकलश हेतु एकलिंगतोभद्र वेदी एवं प्रधान कलश
हेतु सर्वतोभद्रवेदी भी बनाया जा सकता है। ईशान क्षेत्र में, रुद्र कलश के समीप ही नौ कोष्ठकों वाले मण्डल में सूर्यादि
नवग्रहों की वेदी बनावें। इसी भांति अग्नि कोण में षोडशमात्रिका की तथा वायु कोण
में क्षेत्रपाल एवं नैऋत्य कोण में चौंसठ पद वास्तु मंडलदेवों के लिए वेदी बनावें।
इस नैऋत्य कोण वाली वेदी पर ही मध्य भाग में (मध्य के आठ कोष्ठकों पर)अष्टदल बनाकर
जौ का छिड़काव कर वास्तुकलश की स्थापना करें। पूजामंडल के मध्य में प्रधान कलश के
आगे दोने/ पत्रावली या काष्ठपीठिका पर क्रमशः गणेशाम्बिका, और उनके दायें-बायें पंचलोकपाल तथा घृतमिश्रित पीले सिन्दूर
से कपड़े पर सप्तघृतमात्रिका को बनाकर स्थापित करना चाहिए। यहीं पर एक ओर
चतुःषष्ठीयोगिनी को भी स्थापित करें। नवग्रहादि विभिन्न वेदियों को रंगीन चावल या
सुविधानुधार रंगों की सहायता से बनाना चाहिए। इन सभी की वेदी लकड़ी के चौकी को
वस्त्र से आच्छादित करके भी बनाया जा सकता है।
हवन वेदी का निर्माण
अग्निकोण
में वास्तुपूजामण्डल के बाहर उसी कमरे में अथवा भवन के अग्नि कोण या अग्निक्षेत्र
में तीन सीढियों वाला हवन वेदी बनायें। इसके प्रथम सीढी से द्वितीय सीढी का आकार तथा
द्वितीय सीढी से तृतीय सीढी का आकार न्यून होना चाहिए। सीढियों को चावल, हल्दी, रोली अर्थात् सफेद, लाल, पीला रंग से
अलंकृत करना चाहिए। सबसे ऊपरी समतल को चतुरस्र, उक्त चूर्णों से अलंकृत करने के पश्चात् मध्य में अधोत्रिकोण बनावें। त्रिकोण
के मध्य में अग्नि का बीज मन्त्र ‘‘रँ’’
को रोली से अंकित करें,जैसा कि
दिये गये चित्र में दर्शाया गया है। हवन-वेदी का निर्माण, पंचभूसंस्कार आदि के लिए
इस ब्लॉग के कुशकण्डिका प्रकरण को देखें।
गोबर से लीये
गये मण्डप के पश्चिम ओर यजमान भूमि पर बैठकर आचमन प्राणायाम देवताओं को नमस्कार कर
संकल्प करे- ॐ अद्येत्यादिज्ञाताज्ञात- कायवाङ्मनःकृतसकलपापक्षयपूर्वकशालाकर्माहं
करिष्ये। ब्राह्मण कहे-कुरुष्व। तदनन्तर गणेशादि की पूजा कर मंडप के ऊपर लाल रंग
की एक ध्वजा स्थापित करे। उसके पूर्वादि दिशाओं में क्रमशः पीली,
लाल, काली, नीली,
सफेद धूंधली हरी, पंच रंगों वाली रक्त और सफेद
पताका स्थापित करे। अनन्तर आचार्य वरण करे। तत्पश्चात् एक हाथ परिमित भूमि को
कुशों से ढककर पहले पञ्चभूः संस्कार कर अग्निस्थापन पूर्वक ब्रह्मा का वरण करे।
पुनः कुशकण्डिका कर प्रज्जवलित अग्नि में श्रुवा से हवन करे। ॐ वास्तोष्पते
प्रतिजानीह्यस्मान्स्वावेशोऽनमीवो भवा नः यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव
द्विपदे शं चतुष्पदे स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये। ॐ वास्तोष्पते प्रतिरणोन एधि
गयस्फानो गोभिरश्वेभिरिन्दो। अजरासस्त्वे सखे स्वामपितेव पुत्रन्प्रति तन्नो
जुषस्व स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये। ॐ वास्तोष्पते शग्मयासं सवाते
सक्षीमहिरण्वद्यागातु मत्वा। पाहि क्षेम उत योगे वरन्नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा
नः स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये। ॐ अमीवहा वास्तोष्पते विश्वारूपाण्याविश्च सखा
सुशेवरग्धिनः स्वाहा। इदं वास्तोष्पतये।
ॐ प्रजापतये
स्वाहा। इदं प्रजापतये। इति मनसा। ॐइन्द्राय स्वाहा, इदमिन्द्राय। इत्याधारौ। ॐ अग्नये स्वाहा, इदमग्नये।
ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय। इत्याज्यभागौ। ॐ अग्निमिन्द्रं
बृहस्पतिं विश्वान्देवानुपधये। सरस्वतीं
वाजीं च वास्तु मे दत्त वाजिनः स्वाहा। इदमग्नये इन्द्राय बृहस्पतये विश्वेभ्यो
देवेभ्यः सरस्वतीवायव्यै च। ॐ सर्प्प देवजनान्सर्वान्हिमवन्तỦसुदर्शनम् बह्नश्च
रुद्रानादित्यानीशानं जगदैः सह एतान् सर्वान् प्रपद्येऽहं वास्तु मे दत्तावाजिनः
स्वाहा। इदं सर्वदेवजनेभ्यो हिमवते सुदर्शनाय वसुभ्यो रुद्रेभ्यः आदित्येभ्य
ईशानाय जगदेभ्यच। ॐ पूर्वाह्ण मपराह्णं चोभौ मध्यन्दिना सह प्रदोषमर्द्धरात्रां च
व्युष्टां देवीं महापथां एतान्सर्वान्प्रपद्येऽहं वास्तु मे दत्तवाजिनः स्वाहा।
इदं पूर्वाह्णायापराह्णाय मध्यन्दिनाय प्रदोषायार्द्धरात्राय व्युष्टायै दैव्यै
महापन्थायै च। ॐ कर्तारं च विकर्तारं विश्वकर्माणमौषधीश्च वनस्पती। एतान्सर्वान्प्रपद्येऽहं
वास्तु मे दत्त वाजिनः स्वाहा। इदं कत्र्रो विकत्र्रो,
विश्वकम्र्मणे ओषधीभ्यो वनस्पतिभ्यश्च। ॐ धातारं च विधातारं
निधीनाझ् पतिं सह। एतान् सर्वान्प्रपद्येऽहं वास्तु दत्त्वाजिनः स्वाहा। इदं
धात्रो विधात्रो निधीनां पतये च। ॐ स्योनỦ शिवमिदं वास्तु मे
दत्त ब्रह्मप्रजापती सर्वाश्च देवताः स्वाहा। इदं ब्रह्मणे प्रजापतये सर्वाभ्यो
देवताभ्यश्च। ॐअग्नये स्विष्टकृते स्वाहा इदमग्नये स्विष्टकृते। ॐ भूःस्वाहा
इदमग्नये। ॐ भुवः स्वाहा इदं वायवे। ॐ स्वः स्वाहा इदं सूर्याय।
ॐ प्रजापतये
स्वाहा इदं प्रजापतये। इसके बाद संश्रवप्राशन तथा आचमन करें। ब्रह्मा को पूर्णपात्रदान करें। ब्रह्म ग्रन्थि को खोल दें। इसके बाद इस मंत्र से शिर पर जल छिड़कें-
ॐ सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु । इति पवित्राभ्यां जलमानीय तेन
शिरः सम्मृज्य ॐ दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योस्मान् द्वेष्टि यझ् वयं द्विष्मः
इत्यैशान्यां प्रणीतान्युब्जीकरणम्। तत आस्तरणक्रमेण बर्हिरानीय घृतेनाभिघार्य
हस्तेनैव जुहुयात्। तत्र मन्त्रः
ॐ गातु विदो
गातु वित्वा गातुमितमनसस्पत। इमं देवयज्ञ Ủ स्वाहा व्वातेधाः
स्वाहा। इति वर्हिर्होमः।
वास्तुपूजन-संकल्प- ॐ
अद्य शुभगुणविशिष्टायां पुण्यतिथौ गृहप्रतिष्ठाङ्भूतवास्तुपूजनं
सकलकम्र्मसमृध्यर्थमीशानादिरुद्रदासपर्यन्तानां पञ्चचत्वारिंशत्वास्तुदेवतानां
पूजनमहं करिष्ये। तदनन्तर चन्दन और पुष्प लेकर ईशानाय नमः से रुद्रपर्यन्त
इदमावाहनं कहते हुए आवाहन करे अत्रागच्छन्तु वरदा भवन्तु पञ्चचत्वारिंशद्देवताभ्य
इदमासनम्। एवं पाद्यार्घाचमनीयस्नानीय- वस्त्रयज्ञोपवीतोत्तरीयं,
गन्धं, पुष्पं, धूपं,
दीपं, ताम्बूलं नमस्कारः पञ्चचत्वारिंशद्देवताभ्यो नमः। दध्योदनेन बलिदानम्। ॐ ईशानाय नमः पूजानैवेद्यं
दध्योदनं च ईशानाय स्वाहा। ॐ पर्जन्याय नमः पूजानैवेद्यं दध्योदनं
पर्जन्याय स्वाहा। एवं जयन्ताय पीतध्वजाय ॐ इन्द्राय नमः। पूजानैवेद्यं दध्योदनं
च इन्द्राय स्वाहा। ॐ सूर्याय0 ॐ सत्याय0
ॐभृशाय0 ॐ अन्तरिक्षाय0 ॐ
वायवे0 ॐ पूष्णे0 ॐ वितथाय0 ॐ गृहक्षेत्राय0 ॐ यमाय0
ॐ गन्धर्वाय0 ॐ भृङ्राजाय0 ॐ मृगाय0 ॐ पितृगणाय0 ॐ दौवारकाय0
ॐ सुग्रीवाय0 ॐ पुष्पदन्ताय0 ॐ वरुणाय0 ॐ असुराय0 ॐ शेषाय0 पापयक्ष्मणे0 रोगाय0 नागाय0 उरव्याय0 मल्लाटाय0 सोमाय0 भुजङ्पतये0 अदितये0, दितये0।
कोणेषु ब्रह्मणे, अर्यम्णे, विवस्वते,
मित्राय। ततो मध्यात् पृथ्वीधराय, अपाय,
आपवत्साय, सवित्रो, सावित्राय,
जयन्ताय, विबुधाधिपाय, रुद्राय।
रुद्रदासाय। वास्तुप्रीतये धेनुदानं। पूजितोऽसि उमामहेश्वरदानं च। ॐ उमा
महेश्वराभ्यां नमः। सप्तधान्यदानम्। पूजितोऽसि मया वास्तो हेमाद्यैरर्चनैः शुभैः।
प्रसीद याहि विश्वेश! देहि मे गृहजं सुखम्।। इति प्रार्थना।
तदनन्तर घर अन्दर
प्रवेश कर कोषागार के दक्षिण कोण में श्री लिखकर ॐ अद्य पूर्वोक्तगुणविशिष्टायां
तिथौ वास्तुपूजनगृह-प्रवेशाद्यङ्भूतश्री- स्थापनादि कर्माहं करिष्ये। पञ्चामृत,
आरती नैवेद्य समर्पण आवाहन आदि पूर्ववत् करनी चाहिए। एक पात्र में
धान्य सरसों, चांदी युक्त दूब अक्षत, गंध
पुष्प आदि सामग्री लेकर स्वस्तिवाचन करे। ॐ स्थिरो भव वीड्वङ्ग आशुर्भव वाज्यर्वन्
पृथुर्भव सुखदस्त्वमग्नेः पुरीषवाहनः इस मंत्र से गड्ढे के मध्य में उपर्युक्त
सामग्री रखकर उस पर मिट्टी डाल दे। स्वस्तिक का चिन्ह बना दे। तदनन्तर सूत से
लिपटे गूलर के पत्ते को दूध के साथ, दूब, गोबर दधि मधु, घी, कुश और जौ
इन सभी को कांस्य के बर्तन में एकत्रा कर जल सहित एक पात्र में रखकर पूर्वादि
दिशाओं के क्रम से घर के मध्य में अभिषेक एवं आसन आदि का सिंचन करे।
गृह शेष
वास्तु पूजा- दक्षिणद्वारे धात्रो नमः, वामद्वारे
विधात्रो नमः। गणेशाय नमः। पट्टशालायै नमः। मण्डपदेवताभ्यो नमः। कण्डनीभ्यो नमः।
पेषिण्यै नमः। इसके अनन्तर इस मंत्र से चुह्लादि बलिदान करे।-ॐ धर्माय नमः इससे।
पुनः धर्माय नमः वामवाहौ ॐ स्वरस्वरपरिवर्तनीयाय नमःकिं धान्यादि
भाण्डेषु। ॐ जलामृताय वरुणाय नमः जलभाण्डेषु। ॐ महाविघ्नराजाय
नमः गृहप्रधानाधारे। ॐ महाशुभांगाय नमः, पेषिण्यां।
ॐ रुद्रकोटिगिरिकायै नमः इत्युलूखले। ॐ बलभद्रप्रियाय प्रहरणाय नमः इति मुशले। ॐ मृत्यवे
देवीचोदिते नमः इति संमार्जन्यां। ॐ कामार्थंकुसुमायुधाय नमः इति
शयनीय-शिरसि। ॐ स्कन्दाय गृहाधिपतये नमः मूत्रा पुरीषयुक्त गोशाला में बलिदान करें,
मार्ग-मार्ग में-देवताभ्यो नमः। मध्यस्तंभाधस्तात्।
गृहप्रवेश- उसके
बाद गृहनक्षत्रों के अनुकूल पवित्र दिनों में गृह पूजा सम्बन्धी कृत्य समाप्त हो
जाने पर मातृ पूजा आदि आभ्युदयिक कृत्य कर ब्राह्मणों के साथ स्वस्ति वाचन करते
हुए मांगलिक गाजे-बाजे के साथ जलपूर्ण कलश एवं गो ब्राह्मण के साथ,
स्नान कर श्वेत वस्त्र एवं माला से युक्त सपरिवार तोरण युक्त
मुख्यद्वार से प्रवेश करें। ॐ धर्मस्थूणा राजा Ủ श्रीस्तूयमहोरात्रोद्वारफलके
इन्द्रस्य गृहावसमतो वरूथिनहं प्रपद्ये सह प्रजया पशुभिः सह यन्मे किझ्दिस्युपहतः
सर्वगणः सखायः साधु संमतः
तां त्वा शालेदिष्टपीठा गृहान्नः सन्तु सर्वतः।। तदनन्तर गृहदेव की दोष निवारण
हेतु प्रार्थना करें -
प्रार्थयामीत्यहं देवं शालायामधिपस्तु यः।
प्रायश्चित्तप्रसंगेन गृहार्थे यन्मया कृतम्।
मूलच्छेदं तृणच्छेदं कृमीणां च
निपातनम्।
हननं जलजीवनां भूमेः शस्त्रोण पातनम्।
अनृतं भाषितं यच्च किंचिदर्थस्य
पातनम्।
तत्सर्वं ही क्षमस्व त्वं यन्मया दुष्कृतं कृतम्।
गृहार्थे यत्कृतं
पापमज्ञानेनाथ चेतसा।
तत्सर्व क्षम्यतां देवि! शाले! मम क्षमां कृरु।।
कोई सरल विधि हैं
जवाब देंहटाएंकर्मकांड की पीडीएफ कैसे प्राप्त होगी
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही श्लाघ्य श्रम किया है, हृदय से साधुवाद आदरणीय श्री जी!
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