पुण्यदिन में
स्नान किये सपत्नीक सपुत्र यजमान पूर्वाभिमुख बैठकर ब्राह्मण द्वारा किये गये
स्वस्तिवाचन के पश्चात् हाथ में कुश, जल, द्रव्य तथा अक्षत लेकर संकल्प करे। संकल्प - ॐ तत्सत् ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः नमः परमात्मने श्रीब्रह्म पुराण- पुरुषोत्तमाय,
अत्र पृथिव्यां जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते ….. देशैकदेशे……. क्षेत्रे ब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे बौद्धावतारे
वैवस्वतमन्वन्तरे सत्यत्रेताद्वापरान्ते अष्टाविंशयितम-कलियुगस्य प्रथमचरणे ....नाम्नि
संव्वत्सरे.... अयने....ऋतौ....मासे...पक्षे……तिथौ……वासरयुक्तायां...गोत्र:... राशि: शर्म्माहं,
वर्म्माहं, गुप्तोहम् ममात्मनः ज्ञाताज्ञात-काय-वाङ्मनस्कृत-सकल-पापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फलप्राप्तिकामः
सौरकार्तिकमासाधिकरणकैतत्स्वीय- स्त्राीप्रसव-संसूचितैतत्कुमारै-
तत्पित्राद्यरिष्टोपशमन-पूर्वक-श्रीब्रह्मप्रभृति-देवताप्रसादाऽव्यवहितोत्तरकालिकैतद्वाल-
कैतत्पित्रादि-जनाधिकरण-कायुः सुखसम्पद्रक्षादि-सिद्ध्यर्थं श्रीब्रह्मादिपूजनरूपां कार्तिकस्त्री-प्रसूताशान्तिमहं करिष्ये। तदङ्भूतं
गणपत्यादिपूजनञ्च करिष्ये।
इस प्रकार संकल्प कर विधिपूर्वक गौरी, गणेशादि सभी देवताओं
की पूजा करे। पुनः पूर्व दिशा में अनाज के ऊपर कलश स्थापन कर उसके ऊपर ब्रह्मा की
पूजा करें। आवाहन मंत्र-ॐ एह्येहि सर्वामरपूज्यपाद
पितामहाधोक्षज पद्मजात।
चतुर्मुखध्यानरताष्टनेत्र त्वां ब्रह्ममूर्ते भगवन्नमस्ते। आवाहन कर स्थापना करे।
पूजन मंत्र- ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं
पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः।
सु बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च
वि वः।। इस मंत्र से ब्रह्मा की पूजा करे।
पुनः वरण सामग्री लेकर-
ॐ अद्येत्यादि
पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्ध्यर्थं क्रियमाणकार्तिकस्वस्त्री- प्रसूताशान्त्यङ्त्वेन ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचोव्वेनऽआवः सबुध्न्या उपमाऽअस्य व्विष्टा । सतश्च योनिमसतश्चव्विवः ।। मन्त्रेण यथापरिमितं जपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकशर्माणं
ब्राह्मणं जापकत्वेन त्वां वृणे। इस मंत्र से ब्राह्मण का वरण करें।
पुनः दक्षिण दिशा में गेहूँ अन्न पर कलश रखकर श्री विष्णु भगवान की पूजा करे।
आवाहन- ॐ एह्येहि नारायण चक्रपाणे
लक्ष्मीपते दानववंशवह्ने।
सुवर्णपृष्ठासन पद्मनाभ जनार्दनस्त्वं
भगवन्नमस्ते।
इस प्रकार आवाहन कर ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदं
समूढमस्यपा ᳪ सुरे स्वाहा इस मंत्र द्वारा विष्णु की पूजा
करे ।
इसके बाद वरण द्रव्य लेकर संकल्प वाक्य पूर्ववत् पढ़ें। तदनन्तर पश्चिम दिशा में
चावल पर कलश स्थापित कर रुद्र की पूजा करे।
आवाहन- ॐ एह्येहि भो शंकर शूलपाणे गंगाधर
श्रीकर नीलकण्ठ,
उमापते भस्मविभूषितांग महेश्वर त्वं
भगवन्नमस्ते।
इस प्रकार आवाहन कर ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतोत इषवे नमः बाहुभ्यामुत
ते नमः इस मंत्र द्वारा पाद्यादि द्वारा रुद्र की पूजा करे।
पुनः वरण सामग्री लेकर
पूर्ववत् संकल्प करे। पुनः उत्तर दिशा में धान के ऊपर कलश रखकर उसके ऊपर श्री
सूर्य की पूजा करे।
आवाहन मन्त्र-ॐ दिवाकरं सहस्रांशुं ब्रह्माद्यैरमरैःस्तुतम्।
लोकनाथं जगच्चक्षुः सूर्यमावाहयाम्यहम्।
ॐ भूर्भुवः स्वः कलिङ्देशोद्भव काश्यपगोत्र
श्रीसूर्य इहागच्छ। इस मंत्र से आवाहन करें।
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् मंत्र से पाद्यादि द्वारा सूर्य की पूजा करे।
पुनः वरण
सामग्री लेकर -
ॐ अद्येत्यादि पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्ध्यर्थं क्रियमाणकार्तिकस्वस्त्रीप्रसूताशान्त्यंगत्वेन ॐ आकृष्णेति मंत्रेण
यथापरिमितं जपं कारयितुं एभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणं जापकत्वेन
त्वामहं वृणे।
पुनः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।। इस मंत्र का जप ब्राह्मण द्वारा यथाशक्ति कराये।
संकल्प-ॐ अद्येत्यादि
पूर्वंप्रतिज्ञातार्थसिद्धîर्थं क्रियमाणकार्तिकमास-
स्त्रीप्रसूताशान्त्यङ्त्वेन त्र्यम्बकमिति मन्त्रस्य लक्षं वा पञ्चाशत् सहस्रं अयुतं वा जपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रान् अमुकामुकशर्मणो
ब्राह्मणान्जापकत्वेन युष्मानहं वृणे। इस प्रकार वरण करे। इस प्रकार ली गयी वरण
सामग्रियों से चार ही ब्राह्मण यथादिष्ट दिशाओं में जाकर जप करें। जप के बाद बैठे
हुए आचार्यों में प्रमुख आचार्य विधिवत् अग्निस्थापन, कुशकण्डिका
कर हवन करे (क्लिक करें-/कुशकण्डिका /होम) ॐप्रजापतये स्वाहा से आरम्भ कर ॐउदुत्तमं वरुण पाशम् तक घी से हवन करें। इसके बाद तत्तत् देवों के लिए शाकल से 40 आहुति दें-
ॐ सूर्याय स्वाहा।।1।।
ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।।2।।
ॐ विष्णवे स्वाहा।।3।।
ॐ रुद्राय स्वाहा।।4।।
ॐ शम्भवे स्वाहा।।5।।
ॐ ईशाय स्वाहा।।6।।
ॐ पशुपतये स्वाहा।।7।।
ॐ शिवाय स्वाहा।।8।।
ॐ शूलिने स्वाहा ।।9।।
ॐ महेश्वराय स्वाहा।।10।।
ॐ ईश्वराय स्वाहा।। 11।।
ॐ सर्वाय स्वापहा।।12।।
ॐ ईशानाय स्वाहा।।13।।
ॐ शंकराय स्वाहा।।14।।
ॐ चन्द्रशेखराय स्वाहा।।15।।
ॐ भूतेशाय स्वाहा।।16।।
ॐ खण्डपरशवे स्वाहा।। 17।।
ॐ गिरीशाय स्वाहा।।18।।
ॐ मृडाय स्वाहा।।19।।
ॐ मृत्युंजयाय स्वाहा।।20।।
ॐ कृत्त्विाससे
स्वाहा।।21।।
ॐ पिनाकिने स्वाहा।।22।।
ॐ प्रमथाधिपाय स्वाहा।।23।।
ॐ उग्राय स्वाहा।।24।।
ॐ कपर्दिने स्वाहा।।25।।
ॐ श्रीकण्ठाय स्वाहा।।26।।
ॐ शितिकण्ठाय
स्वाहा।।27।।
ॐ कपालभृते स्वाहा।।28।।
ॐ
वामदेवाय स्वाहा।।29।।
ॐ विरूपाक्षाय स्वाहा।।30।।
ॐ त्रिलोचनाय स्वाहा।।31।।
ॐ कृशानुरेतसे
स्वाहा।।32।।
ॐ सर्वज्ञाय स्वाहा।।33।।
ॐ धूर्जटये स्वाहा।।34।।
ॐ नीललोहिताय स्वाहा।।35।।
ॐ स्मरहराय स्वाहा।।36।।
ॐ भर्गाय स्वाहा।।37।।
ॐ त्रयम्बकाय स्वाहा।।38।।
ॐ त्रिपुरान्तकाय
स्वाहा।।39।।
ॐ गंगाधराय स्वाहा।।40।।
इसके बाद ‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।’ मंत्र के द्वारा घी युक्त विल्वपत्र से दशांश हवन करे। उसके बाद सपत्नीक यजमान शिशु को गोद में लेकर बैठे। आचार्य
वेदोक्त मंत्रों तथा पुराणोक्त मंत्रों द्वारा तीन कुश से अभिषेक करे।
मन्त्र-
सुरास्त्वामभिषिञ्चन्तु ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ।
वासुदेवो जगन्नाथस्तथा संकर्षणो विभुः ॥
प्रद्युम्नश्चानिरुद्धश्च भवन्तु विजयाय ते ।
आखण्डलोऽग्निर्भगवान्यमो वै निर्ऋतिस्तथा ॥
वरुणः पवनश्चैव धनाध्यक्षस्तथा शिवः ।
ब्रह्मणा सहिताः सर्वे दिक्पालाः पान्तु ते सदा ॥
कीर्तिर्लक्ष्मीर्धृतिर्मेधा पुष्टिः श्रद्धा क्रिया मतिः ।
बुद्धिर्लज्जा वपुः शान्तिः कान्तिस्तुष्टिश्च मातरः ॥
एतास्त्वामभिषिञ्चन्तु देवपत्न्यः समागताः ।
आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधजीवसितार्कजाः ॥
ग्रहास्त्वामभिषिञ्चन्तु राहुः केतुश्च पूजिताः
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ॥
ऋषयो मुनयो गावो देवमातर एव च ।
देवपत्न्यो द्रुमा नागा दैत्याश्चाप्सरसां गणाः ॥
अस्त्राणि सर्वशस्त्राणि राजानो वाहनानि च ।
औषधानि च रत्नानि कालस्यावयवाश्च ये ॥
सरितः सागराः शैलास्तीर्थानि जलदा नदाः ।
एते त्वामभिषिञ्चन्तु सर्वकामार्थसिद्धये ॥ अग्नितो मे भयं मास्तु रोगाच्च व्याधिबंधनात्।
सशस्त्रविषतोयौघात् भयं नाशय मे सदा।
योऽसौ पशुपतिर्देवः पिनाकी वृषवाहनः ।
कार्तिकस्त्रीप्रसूतायाः दोषमाशु व्यपोहतु।
अभिषेक के बाद प्रार्थना-
रक्ष मां पुत्रपौत्रांश्च
रक्ष मां पशुबन्धनात्।
रक्ष पत्नीं पतिं चैव पितरं मातरं धनम्।।
तदनन्तर छायापात्र
दान, आवाहित देवताओं की उत्तर पूजा, सूर्यार्घ्य दान आदि कृत्य करें।
क्षमा प्रार्थना- ॐ प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।
स्मरणादेव तद्विष्णो: सम्पूर्ण स्यादिति श्रुति: ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥ इस श्लोक को
पढ़ें।
इति कार्तिकस्त्रीप्रसूताशान्ति।।
वाह वाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंBhaut acha love kha hai
जवाब देंहटाएंthank you...
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