गदाधर त्रिपाठी कृत वाग्विलास काव्य की समीक्षा

 
नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में आधुनिक संस्कृत साहित्य को रखा गया है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी के एम. ए. संस्कृत साहित्य, चतुर्थ सेमेस्टर में डॉ. गदाधर त्रिपाठी की पुस्तक "वाग्विलास" का 1 से 25 श्लोक पाठ्यक्रम में है। मुझे इस विश्वविद्यालय के पाठ्यचर्या को देखकर महान आश्चर्य हुआ कि पाठ्यचर्या के संयोजक ने बिना पुस्तक देखे ही पुस्तक के 1 से 25 श्लोक को पाठ्यक्रम में रखा दिया। तथ्य यह है कि वाग्विलास के किसी भी  विलास में 1 से 25 श्लोक नहीं मिलते हैं। इस संबंध में मैंने पुस्तक के लेखक डॉ. त्रिपाठी से भी बात किया। उन्होंने इस संबंध में अभिज्ञता प्रकट की है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यहां का पाठ्यक्रम बनाते समय पुस्तक के लेखक गदाधर त्रिपाठी अथवा मूल पुस्तक को क्यों नहीं देखा गया?

यह पाठ्यक्रम बनाने वाले की त्रुटि है । आशा है विश्वविद्यालय इस त्रुटि को सुधार करेगा।



अग्निः

सृष्टेरादिशब्दस्त्वग्निरेव हि स्वीकृतः।

तेनैव ऋग्वेदे चाग्निमीडे पुरोहितम् ।।1।।

अग्निरेव च ऊर्जाया आदिस्रोतश्च स्वीकृतः ।

व्याप्तोऽयं सर्वक्षेत्रेषु प्रकाशकोऽपि च सर्वदा।।2।।

अर्थ- अग्नि ही ऊर्जा का मूल स्रोत माना जाता है। वह सभी क्षेत्रों में व्याप्त है और सदैव वस्तु को प्रकाश में लाता है।

टिप्पणी- लेखक ने प्रस्तुत श्लोक में अग्नि को ऊर्जा का मूल स्रोत कहा है। वस्तुतः अग्नि को ही ऊर्जा कहा जाता है। पार्थिव तत्व, जल से जिस तरह ऊर्जा उत्पन्न किया जाता है, वैसे अग्नि से ऊर्जा उत्पन्न नहीं होता। अग्नि से ऊर्जा को उत्पन्न नहीं किया जा सकता। पञ्च महाभूतों (पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश) में अग्नि (तेज) एक महाभूत है। वैशेषिक दर्शन के अनुसार ऊर्जा का दो रूप है। 1. नित्य 2. अनित्य । नित्य ऊर्जा परमाणु रूप है। विषय रूप में स्थित  अनित्य ऊर्जा (अग्नि) के 4 भेद अथवा स्रोत हैं। भौम, दिव्य, उदर्य तथा आकरज । भौम अर्थात् भूमि तत्व से उत्पन्न अग्नि। भौम को ही भौतिक विज्ञान में जीवाश्म इंधन कहा जाता है। वायोमास भी भौम इंधन है। जलीय इंधन को दिव्य कहा है। दिव आकाश का नाम है। वैशेषिक दर्शन में बादलों के टकराने से उत्पन्न ऊर्जा को दिव्य तेज कहा गया। जल विद्युत भी दिव्य तेज के अन्तर्गत आता है। भोजन को पचाने वाली आग उदर्य है। स्वर्ण आदि धातुओं में विद्यमान चमक आकरज है। लकड़ी, कोयला, पेट्रोल की तरह स्वर्ण को जलाने या तपाने पर यह नष्ट नहीं होता।  भौतिक विज्ञान में ऊर्जा के स्रोत में रसायनिक, चुम्बकीय, जीवाश्म इंधन, तापीय विद्युत, जल विद्युत, पवन, सूर्य, ज्वार भाटा, नाभकीय, भूतापीय आदि ऊर्जा है।

इस तरह हमने जाना कि ऊर्जा का स्रोत जीवाश्म, सूर्य, जल, परमाणु आदि है । जिस स्रोत का उपभोग कर ऊर्जा उत्पन्न होती है, उस स्रोत का पुनः उपभोग नहीं किया जा सकता अतः अग्नि ऊर्जा का स्रोत नहीं है। इस तरह लेखक द्वारा स्थापित सिद्धान्त पोषणीय नहीं है।

सृष्टौ पञ्चभूता येऽग्निस्तेष्वपि समन्वितः।

अग्निना पच्यते सर्वं सृष्टिश्चलति सर्वदा।।3।।

अर्थ- सृष्टि में जो पांच तत्व हैं, उनमें अग्नि भी जुड़ी हुई है। आग से हर चीज़ पकती है और सृष्टि हमेशा गतिशील रहती है।

सर्वेभ्यश्च देवेभ्यः कार्यमेकं सुनिश्चितम्

अग्निदेवस्त्वेको हि प्रकाशकः पाचकस्तथा ।।4 ।।

अर्थ- और सभी देवताओं के लिए एक कार्य निश्चित है। एकमात्र अग्नि देवता हैं जो प्रकाश देते हैं और भोजन पकाते हैं।

बडवानलो हि व्याप्तोऽस्ति सागरे नु वै चोर्मिषु।

जठरानलश्च य उदरे पाचकः स्वास्थ्यवर्धकः ।।5।।

यज्ञाद्भवन्ति पर्जन्यः पर्जन्यादन्न सम्भवः।

अग्निं विना न यज्ञस्य हि कल्पना भवति कदाचन ।।6 ।।

हुतं प्राप्नुवन्ति देवा वै अग्निर्वहति सर्वदा।

सुरक्षितमस्ति देवानां देवत्वं सर्वथा हि वै।।7।।

प्रकाशकैश्च किरणैश्चोर्ध्वं गच्छति सर्वथा।

तेजस्विनाञ्च गमनं ह्योर्ध्वं भवति निश्चितम् ।।8।।

शास्त्रेषु त्रिविधोऽग्निर्वर्णितः विद्वद्भिस्तदा ।

गृहेषु स्थापनीयो हि कल्याणप्राप्तये सदा।। 9 ।।

स्वाहाग्नेः पत्नी खलु भारतनाम्ना प्रतिष्ठितः ।

त्रयो पुत्रा अभवन् वै प्रचलिताग्नेः परम्परा ।।10।।

यज्ञाद्भवन्ति पर्जन्यः पर्जन्यादन्न सम्भवः।

अग्निं विना न यज्ञस्य हि कल्पना भवति कदाचन ।।11।।
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