मृत्यु समय निकट देखकर पुत्र अथवा सम्बन्धी लोग भक्ति का उपदेश, भगवान के नामों का उच्चारण, गायत्री मंत्र का जाप, ॐकार का जाप, गंगा, राम, कृष्ण का स्मरण
करवायें या जिसकी मृत्यु निकट आ गयी हो उसे गीता, विष्णु सहस्रनाम, गंगा सहस्रनाम का पाठ सुनावें, जिससे अन्तकाल में प्राणी
भगवान के नाम को स्मरण अथवा श्रवण कर मुक्त हो सके। प्राण प्रयाण के समय मृतक के
मुख में गंगाजल, तुलसीदल, सुवर्ण अथवा
पंचरत्न भी देना चाहिये। इस समय कुटुम्बीजन जमीन कोॊ गोबर से लीपकर तिल बिखेर देवे। कुशा
डालकर उसके ऊपर ऊन का वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर मरणासन्न व्यक्ति को लिटा देवे। यदि
सुवर्ण न हो तो सुवर्ण के अभाव में मुख में घृत की बूंद भी दे सकते हैं।
दशदान
पुत्र पिता या माता की मृत्यु निकट जानकर उससे पहले दश दान शान्ति हेतु दशदान
एवं गोदान संकल्प पूर्वक करा देवे।
गोभूतिलहिरण्याज्यवासोधान्य गुडानि च।
रौप्यं
लवणमित्याहुर्दशदानान्यनुक्रमात्।। निर्णयसिन्धु।
विष्णु देवता के निमित्त भूमि- सर्वभूताश्रया भूमिर्वराहेण समुद्धृता। अनन्तसस्यफलदा ह्यतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
पुनः विष्णु देवता के लिए तिल- महर्षे गोत्र सम्भूताः कश्यपस्य तिला स्मृता।
तस्मादेषां प्रदानेन सर्वपापं व्यपोहतु।।
अग्निदेवता के लिए सोना- हिरण्यगर्भगर्भस्थं
हेमबीजं विभावसो।
अनन्तं पुण्यं फलदमतः शान्ति प्रयच्छ मे।।
विष्णु देवता के लिए घी- कामधेनु समुद्भूतं सर्व यज्ञेषु संस्थितम्।। देवनामाज्यमाहारोदानेनास्या
सुखं स्थिरम्।।
शीतवातोष्णसंत्राणं
लज्जाया रक्षकं परम्। देहालंकरणं वस्त्रां
दानेनास्यास्तु मे सुखम्।।
प्रजापति के लिए धान्य- सर्वदेवमयं धान्यं सर्वोत्पत्ति करं परम्।
प्राणिनांजीवनोपायो दानादस्य सुखं मम।।
सोम देवता के लिए गुड़- गुडमिक्षुरसोद्भूतं मंत्रणां प्रणवो यथा।
दानेनास्य सदाशान्तिर्भवत्वीश प्रसादतः।।
चन्द्रदेवता के लिए रौप्य- रजतः प्रीतिश्च पितृणां विष्णुशंकरयोस्तथा।
शिवनेत्रोतद्भवरौप्यमस्य दानेन मे सुखम्।।
सोमदेवता के लिए नमक- यस्मादन्ये रसाः सर्वे नोत्कृष्टाः लवणं बिना।
सोमः प्रीतिकरा यस्माद्दानेनास्य सदा सुखम्।।
गोदान- धेनुदान-पाप धेेनुदान,
ऋण धेनुदान, प्रायाश्चित्त धेनुदान तथा वैतरणी धेनु दान
चार गाय दान पुत्र,
पिता माता से करवाये। मरण समय उक्त पापों को दूर करने के लिए इन
धेनुदान को करे, धेनु के अभाव में यथाशक्ति गाय का मूल्य
रखकर मुंह पूर्व या उत्तर की ओर कर पृथक्-पृथक् संकल्प करें-
1-पापधेनुदान- पाप धेनवे नमः सम्पूज्य श्वेत गाय का पूजन कर ब्राह्मण का पूजन
कर लेवे। फिर संकल्प करें- अद्येत्यादि0 अमुकोऽहं मम सर्व
क्षय पाप पूर्वकं स्वर्गलोकावाप्तये इमां सुपूजितां श्वेतां गां रुद्र दैवतां वा
तन्निष्क्रयीभूतद्रव्यं चन्द्रादिदैवतं अमुकगोत्रय अमुकशर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यं
सम्प्रददे नमम।
पुनः गाय की प्रार्थना करे- आजन्मोपार्जितं पापं मनोवाक् कायकर्मभिः।
तत्सर्वनाशमायातु पापधेनुप्रदानतः।।
2-ऋण धेनुदान-ऋण धेनवे नमः सम्पूज्य। रक्त गौ का पूजन कर फिर ब्राह्मण पूजन
कर संकल्प करे-
अद्येत्यादि. अमुकोऽहं अनेकजन्मार्जितपापप्रशमन
पूर्वकसद्गतिप्राप्तये सूपूजितामिमाऋणधेनुरक्तांब्रह्मदैवतां अमुकगोत्रय अमुक शर्मणे
ब्राह्मणाय तुभ्यं सम्प्रददे।
पुनः प्रार्थना- एैहिकामुष्मिकं
यच्च सप्तजन्मार्जितं मम।
विजयं तदृणं यातु गामेतां प्रदतो मम।।
3-प्रायश्चित धेनुदान-प्रायश्चित धेनवे नमः-गाय का पूजन कर ब्राह्मण का पूजन
कर लेवें। पुनः संकल्प-अद्येत्यादि अमुकोऽहं सप्तजन्मार्जितज्ञाताज्ञात
अनेकविधप्रायश्चित्तोपयोगीसमस्तदुरितदूरीकरणीपूर्वकसद्गतिप्राप्तये इमां
सुपूजितां प्रायश्चित्तधेनुम् अमुक गोत्रया अमुक शर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यं
सम्प्रददे।
प्रार्थना- प्रायश्चित्ते समुत्पन्ने निष्कृतिर्न कृता मया।
सर्वपाप
शान्त्यर्थं धेनुर्येषार्पिता मया।।
4-
वैतरणी धेनुदान-वैतरणी धेनवे नमः-कृष्ण गाय का पूजन कर ब्राह्मण का
पूजन करे।
पुनः संकल्प-अद्येत्यादि. अमुकोऽहं ममजन्मजन्मान्तर्जितपापापनोदन
पूर्वकशतयोजनविस्तृर्णां वैतरणीनदीं तर्तुकामाय सुपूजितां वैतरणीय-
धेनुमिमां यमराजदेवतां अमुकगोत्रय अमुकशर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यं सम्प्रददे।
प्रार्थना- यमद्वारे पथे घोरे घोरां
वैतरणीनदीम्।
तर्तुकामः
प्रयच्छामि कृष्णां वैतरणीं चगाम्।।
मोक्ष धेनुदानम्- गो पूजन-आवाहन-
आवाहयाम्यहं
देवीं गां त्वां त्रायलोक्यमातरम्।
यस्या
स्मरणमात्रोण सर्वपापैः प्रमुच्यते।।1।।
त्वं देवी त्वं जगन्माता त्वमेवासि वसुन्धरा।
गायत्री
त्वं च सावित्री गंगा त्वं च सरस्वती।।2।।
तृणानि
भक्ष्यसे नित्यं अमृतं श्रवसे प्रभो।
भूतप्रेत
पिशाचांश्च पितृदेवर्षि मानुषान्।।3।।
सर्वास्तारयते
देवीनरकात्पापसंकटात्।।
गाय का पूजन गन्ध, अक्षत, पुष्प,
धूप, दीप, नैवेद्य,
दक्षिणा से कर ब्राह्मण पूजन कर फिर संकल्प करें-अद्येत्यादि.
अमुकोऽहं मम ज्ञाताज्ञात मनोवाक्काय कर्मजन्य पाप-प्रशमन-पूर्वकं मुक्ति हेतवे
सुपूजितां कपिलां मोक्षधेनुमिमां रुद्रदेवतां मोक्षप्राप्तये अमुकगोत्रय
अमुकब्राह्माणाय तुभ्यं सम्प्रददे।
प्रार्थना- मोक्षं देहि
जगन्नाथ! मोक्षं देहि जनार्दनः।
मोक्षधेनुप्रदानेन श्री विष्णुः प्रीयतां मम।।
देह त्याग होने के बाद का कृत्य-
पिता आदि की मृत्यु के बाद कर्मकर्ता दक्षिण मुख हो
मुण्डन करावे, स्नान कर शुद्ध नवीन सफेद वस्त्र पहन लेवे तथा मृतक के शरीर को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान करा, वस्त्र पहनाकर
गोपीचन्दन का तिलक तथा शरीर में सुगन्धित द्रव्य लगाकर पुष्पों की माला पहना देवे।
अरथी बनाकर पैर आगे, सिर पीछे रख अरथी उठाकर श्मशान के लिए
प्रस्थान करे।
पिण्डदान-जौ के आटे में तिल घी मिलाकर गंगाजल से रांधकर छः पिण्ड बना लेवें।
पहला पिण्ड मृतक स्थान में अपसव्य होकर जल तिलकुश सहित (स्थान पिण्ड) देवें
ब्राह्मण संकल्प कहे -
1. अद्य अमुकगोत्रः शवनामप्रेतमृतस्थाने एष ते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम्। पिण्ड को कर्मकर्ता
मृतक के हाथ में अंगूठे की ओर से दें। पिण्ड के ऊपर तिल और जल डाल दें। तिलकुश जल
सब पिण्डों के साथ रखकर संकल्प करें।
2.
द्वार पिण्ड-अद्यामुकगोत्रः अमुक प्रेतद्वार देशे पान्थनिमित्त
एषते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
3.
चौराहे पर- अद्य अमुक गोत्राः अमुकप्रेतचत्वरे खेचर निमित्त एष ते
पिण्डो मयादीयते तपोपतिष्ठताम्।
पूर्ववत् पिण्ड के ऊपर तिलजल छोड़कर रख देवें।
4.
विश्राम स्थान पर या जहां से श्मशान नजर आए- अद्य अमुक गोत्राः
अमुकप्रेत विश्रान्तो भूतनाम्ना एषते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
मृतक के हाथ में पिण्ड रखकर तिल जल डाल देवे। यहां से मृतक की अरथी का सिर
बदल देवें अर्थात् मृतक का सिर आगे और पैर पीछे कर दें। श्मशान में चिता बनाकर-
5. पांचवा पिण्ड- मुर्दे को चिता में रखकर
दें। संकल्प अद्यामुकगोत्राः साधकनामप्रेतः एषः चित्रागुप्तदैवतः चितापिण्डस्ते मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।
6. कर्मकर्ता शव के दक्षिण में
बैठकर पूर्ववत् संकल्प लेकर पिण्ड को शव के हाथ (या अस्थि संचय के समय) में
दे-अद्येत्यादि अमुकगोत्रः अमुकप्रेतशवहस्ते प्रेतदेवतो एषपिण्डो मयादीयते
तवोपतिष्ठताम्।।
पुनः अवनेजन (जल तिल) पिण्ड पर डाल दें। पश्चात् शव के मस्तक की दूसरी तरफ
भूमि को शुद्ध कर पंच भू संस्कार कर क्रव्यादान नाम से अग्नि को जलावें पूजन कर
निम्न आहुति देवें -
ॐलोमेभ्यः स्वाहा।।1।। ॐत्वचे स्वाहा।।2।।
ॐलोहिताय स्वाहा।।3।। ॐमेदेभ्यः स्वाहा।।4।।
ॐमा˜ सेभ्य स्वाहा।।5।। ॐस्नावभ्यः स्वाहा।।6।।
ॐअस्थिभ्यः स्वाहा।।7।। ॐमज्जभ्यः स्वाहा।।8।।
ॐरेतसे स्वाहा।।9।। ॐपायवै
स्वाहा।।10।।
ॐआयासाय स्वाहा।।11।। ॐप्रायासाय स्वाहा।।12।।
ॐसंयासाय स्वाहा।।13।। ॐवियासाय स्वाहा।।14।।
ॐउद्यासाय स्वाहा।।15।। ॐशुचे स्वाहा।।16।।
ॐशोचते स्वाहा।।17।। ॐशोचमानाय स्वाहा।।18।।
ॐशोकाय स्वाहा।।19।। ॐतपसे स्वाहा।।20।।
ॐतप्यते स्वाहा।।21।। ॐतप्यमानाय स्वाहा।।22।।
ॐतप्ताय स्वाहा।।23।। ॐधम्र्माय स्वाहा।।24।।
ॐनिष्कृत्यै स्वाहा।।25।। ॐप्रायश्चित्यै
स्वाहा।।26।।
ॐभेषजाय स्वाहा।।27।। ॐयमाय स्वाहा।।28।।
ॐअन्तकाय स्वाहा।।29।। ॐमृतवे स्वाहा।।30।।
ॐब्रह्मणे स्वाहा।।31।। ॐब्रह्महत्यायै स्वाहा।।32।।
ॐविश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा।।33।।ॐद्यावापृथिवीभ्या˜ स्वाहा।।34।।
हवन के बाद जलती हुई अग्नि हाथ में लेकर मुंह दक्षिण रख ये मंत्र कहें-
ॐकृत्वासुदुष्कृतं
कर्म जानता वाप्यजानता।
मृत्यु कालवशं प्राप्य नर पंचत्वमागतः।।
धर्माधर्मसमायुक्तः
लोभमोहसमावृतः।
देहेयं
सर्वगात्राणि दिव्यान् लोकान् सगच्छतु।।
हाथ की अग्नि को लेकर चिता की परिक्रमा कर सिर की तरफ से चिता में अग्नि
लगा देवे।
कपाल क्रिया- शव के अर्धदग्ध होने पर कर्मकर्ता बांस के डंडे से कपाल बेधन कर घी को उसमें डाले। शव पूर्ण जल जाने पर सब लोग जलाशय नदी में स्नान
करें। चाहे तो स्नान के पूर्व कर्मकर्ता अस्थि संचय करे। चिता को गो दुग्ध से ठंडी
कर अस्थि संचय करना श्रेष्ठ है। कोई लोग अस्थिसंचय के निमित्त एकोद्दिष्ट समान
श्राद्ध भी करते हैं।
यह भी मत है कि यदि दाह गंगा या उसकी सहायक नदियों में किया हो तो अस्थि
संचय न करें क्योंकि गंगा तो सबको पवित्र करने वाली है।
अस्थि संचय कर्म-
प्रथमेऽह्नि
तृतीये वा सप्तमे नवमे तथा ।
अस्थिसंचयनं
कार्यं दिने तद्गोत्रजैः सह ॥ गरुडपुराण २,५.१५ ॥
प्रथम दिन से दस दिन के अन्दर मृतक की अस्थियों को गंगा
आदि तीर्थों में छोड़ दे। चिता भस्म को ठंडी होने के बाद पहले या तीसरे दिन एक
मटकी या ताम्बे के बर्तन को शुद्ध कर ले,
अपसव्य होकर कर्मकर्ता अनामिका अगुष्ठ से मृतक की अस्थियोें को चुने
(छठवां पिण्ड पहले न दिया हो तो दे देवें)। पिण्ड देकर अस्थियों को गंगाजल व दूध
से धोकर कलश में रखें, रेशमी वस्त्र से ढककर तीर्थ में
भेजने की व्यवस्था करें अथवा बाद में भेजना हो तो अस्थि कलश को सुरक्षित स्थान में
रख देवें।
पुनः चिता की भस्म को बहाकर अन्य लोग (पुत्र आदि बान्धव) दक्षिण मुखकर
मुण्डन कर लें। अर्थि ले जाने वाले स्नान कर दक्षिणमुख कर अपसव्य हो (सगोत्री)
तिलाञ्जलि दें-ॐअद्यामुकगोत्रमुकप्रेततच्चिता दाहोपशमनार्थं एषा तिलतोयाञ्जलिस्ते
मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
पुनः घर के लिए प्रस्थान करे। आधे मार्ग में कांटे को रखकर उसका उल्लंघन करे। घर में गोमूत्र आदि का स्पर्श कर अन्य सम्बन्धी अपने घर जायें। कर्मकर्ता ब्रह्मचर्य हो एक समय भोजन कर
पृथ्वी पर सोये। दशगात्र में गरुड़ पुराण की कथा श्रवण करें, जिससे मृतक की आत्मा
को शांति पहुँचे।
कर्मकर्ता घर आकर नीम के पत्ते दांतों से काटे ऐसा भी प्रचलन है। सायंकाल
मृतक स्थान में बारहवें दिन तक दीपक जलावें।
दशगात्र विधि-
दशगात्र की सामग्री लेकर ग्राम के बाहर पीपल वृक्ष के पास
नदी तालाब के समीप श्राद्ध भूमि बनाकर पिण्डदान की व्यवस्था कर कर्मकर्ता शिखा
खोलकर स्नान के लिए संकल्प करें। अपसव्य हो कुश तिल जल हाथ में रखें-
अद्येत्यादि अमुकगोत्रस्यामुकप्रेतस्य (स्त्री हो तो) गोत्रयाः प्रेतायाः
ऐसा हर जगह संकल्प में कहें) प्रेतत्वनिवृत्तये उत्तमलोकप्राप्त्यर्थं च करिष्यमाण
प्रथमदिनकृत्यर्थं (जितना दिन हो वैसा कहे) स्नानमहं करिष्ये। स्नान के बाद तिलाञ्जलि
देवें- अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्यामुकप्रेतस्य चितादाहजनिततापशमनार्थं
प्रथमदिनसमन्धि एष तिलतोयाञ्जलिर्मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।
(तिलतोय अंजलि दश दिन तक प्रत्येक दिन एक एक अंजली बढ़ाकर देवें) अंजलि के
पश्चात् चतुर्दश यम तर्पण, कर देवें।
चतुर्दश यम तर्पण- ॐयमाय नमः 3
ॐधर्मराजाय नमः 3 ॐमृत्युवे नमः 3 ॐअन्तकाय नमः 3 ॐवैवश्वताय नमः 3 ॐकालाय नमः 3 ॐसर्वभूतक्षयाय नमः 3 ॐऔदुम्बराय नमः 3 ॐदध्नाय नमः 3 ॐनीलाय नमः 3 ॐपरमेष्ठिने नमः 3 ॐवृकोदराय नमः 3 ॐचित्राय नमः 3 ॐचित्रागुप्ताय नमः 3 इस प्रकार अपसव्य हो कुशतिल
सहित यम तर्पण देवें।
चितानल विधि- यह कार्य प्रथम दिन से दश दिन तक का है। जहां पिण्ड देना हो
वहां भूमि लेपन कर यव का चूर्ण लेकर उसमें तिल डालकर पिण्ड बना देवे यह कार्य
चतुर्थ दिन से दशम दिन तक करना है,
यदि चौथा दिन हो तो चार अथवा जितने दिन मृतक के हो गये हो उतने ही
पिण्ड का निर्माण करे। सिर्फ दसवें दिन उड़द की दाल के चूर्ण का पिण्ड बनाना।
घण्ट दीप-
यथा सम्भव पीपल वृक्ष की शाखा पर शरीर की संकल्पना करते हुए जल
पूर्ण मिट्टी का घड़ा लटका कर घड़े में नीचे छिद्र कर ऐसी व्यवस्था करे, जिससे जल बूंद-बूंद टपकता रहे। घट के ऊपर
दीपक स्थापित करें। अथवा त्रिकाष्ट के ऊपर घट को स्थापित कर उसमें दूध और जल डाल
दें-जिसकी जल धारा नीचे रखे चिता भस्म
अथवा कुश के बनाये प्रेत पर बूँद.बूँद पड़ती रहे-
घट पूजन- अकामेतु निरालम्बो
वायुभूत निराश्रय।
प्रेतघंटो मयादत्तस्तवैष उपतिष्ठताम्।।
चितानल प्रदग्धोऽसि परित्यक्तोऽसिबान्धवैः।
इदं नीरमिदं क्षीरं
अत्र स्नाहि इदं पिब।।
प्रेत स्थापित करने के लिए पूर्व से पश्चिम दिशा में वेदी बनायें।
कर्मकर्ता कुशा के आसन पर बैठे, कर्मकर्ता के ब्राह्मण गंगा की मिट्टी से ललाट, हृदय,
नाभि, कंठ, पृष्ठ,
दोनों भुजा पीठ, दोनों कानों, मस्तक पर तिलक लगा लेवें। ब्राह्मण मंत्र भी बोले।
तिलकं च
महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम्।
आपदां हरते
नित्यं ललाटे हरिचन्दनम्।।
अब कर्मकर्ता दो कुशा की पवित्री दाहिने हाथ की अनामिका तथा तीन कुशा की
पवित्री बायें हाथ की अनामिका में पहन लें। नीवी बन्धन कर ले शिखा तथा आसन में भी
कुशा रख ले, आचमन शिखाबन्धन प्राणायाम कर
बांये हाथ में जल लेकर ॐअपवित्रः 0 मन्त्र से शरीर में
छीटें देवें-
भूमि पूजन अब जल लेकर कर्मकर्ता श्राद्ध हेतु संकल्प करें-
देशकालौ संकीर्त्य अमुकवासरे अमुकगोत्रस्य
अमुकप्रेतस्य प्रेतत्व विमुक्तये सद्गतिप्राप्त्यर्थे प्रथमदिवसादारम्य
दशमाद्दिक-श्राद्धमहं करिष्ये।
चितानल पूजन हेतु संकल्प करे- अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्यामुकप्रेतस्य
चितादाहोपशमनार्थं प्रेतत्वविमुक्तये दशगात्रनिष्पत्यर्थंञ्च प्रथमदिन सम्बन्धि
रौरवनामनरकोत्तारणाय विष्णुस्वरूपचितानलपूजनं करिष्ये।।
कर्मकर्ता पूर्व मुंह हो हाथ जोड़ के पितृगायत्री का स्मरण करे-
ॐदेवताभ्यः
पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वाहायै
स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।।
अपसव्य होकर बांया घुटना मोड़कर दातुन हाथ में लेकर दक्षिण मुंह हो घड़े
में डाल दें-ॐअद्यामुकगोत्रमुकप्रेतशौचार्थे प्रथमदिनसम्बन्धितदन्तधावनं
काष्ठमेतन्मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।
थोड़ी मिट्टी भी घड़े में छोड़ दें। सव्य होकर चितानल का पूजन कर दें-
विष्णुस्वरूप-चितानलाय नमः गन्धाक्षतं पुष्पाणि धूपदीपनैवेद्यं दक्षिणा च
समर्पयामि। ॐइदं विष्णुर्विचक्रमे त्रोधानिदधे पदम्। समूढमस्य पा प्र सुरे स्वाहा।
विष्णवे नमः।
पूजन कर प्रार्थना कर दें- ॐअनादि निधनो देवः शंखचक्रगदाधरः। अक्षयः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्ष
प्रदोभव।।
ॐअयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती ज्ञेया सप्तैता मोक्ष
दायिकाः।।
प्रार्थना कर अपसव्य होकर दक्षिण मुख कर बांया घुटना टेककर तिल जल से घड़े
के ऊपर तर्पण दें- ॐयमाय नमः 3 ॐधर्मराजाय नमः 3 ॐमृत्युवे नमः 3 ॐअन्तकाय नमः 3 ॐवैवस्वताय नमः3 ॐकालाय नमः 3 सर्वभूतक्षयाय नमः 3 ॐऔदुम्बराय नमः 3 दध्ने नमः 3 ॐनीलाय
नमः 3 ॐपरमेष्ठिने नमः 3 ॐवृकोदराय नमः3
ॐचित्राय नमः 3 ॐचित्रागुप्ताय नमः 3।। चितानल पूजन कर पिण्ड बेदी के पास आ जाये।
दशगात्र श्राद्ध
पिण्डदान (मलिनषोडशी)
प्रेत शरीर पिण्ड निर्माण प्रक्रिया के दौरान 10 दिन के अशौचकाल में जो पिण्डदान/श्राद्ध
कर्म अनिवार्यतः किये जाते है, वह मलिन षोडशी के अन्तर्गत
किया जाता है। वह सभी मृतकों के लिए अनिवार्य है। इसी के द्वारा प्रेत के पिण्ड
निर्माण के दशगात्र के रूप में सम्पूर्ण दश पिण्ड से पिण्ड शरीर निर्माण को
सम्पन्न कराये। कर्म पात्र स्थापित कर उसमें जल दूध आदि निम्नलिखित मन्त्रों से
छोड़े।
जल-ॐशन्नोदेवि रभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंयोरभिश्रवन्तु नः।
दूध- ॐपयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः पयस्वतीः प्रदिशः
सन्तु मह्यम्।।
तिल-ॐतिलोसि सोमदैवत्यो गोसवो देव निर्मितः। प्रत्नमभि पृक्तः
स्वधयापितृलोकान्प्रीणाहि नः।।
यव- ॐयवोऽसियवयास्मद्वेशोयवयारातीः
कुश-ॐपवित्रोस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसवः।। उत्पुनाम्यच्छिद्रेण
पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः
पुनेतच्छकेयम्।।
कुशा से जल को हिला लेवे-ॐयद्देवादेवहेडनं देवाशश्चकृमाव्ययम्।
अग्निर्मा तस्मादेनसो विश्वान्
मुञ्चत्वं हसः।।1।।
यदि दिवा यदि नक्तमेनांसि च कृमा
वयम्।
वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान मुञ्चत्वं हसः।।2।।
यदि जाग्रद्यपि स्वप्न एनांसि च
कृमा वयम्।
सूर्यो मा तस्मादेनसो विश्वान
मुञ्चत्वं हसः।।3।।
इस जल से कुशा के द्वारा सब सामग्री पर छीटा देकर संकल्प करें, तिल जल कुशा हाथ में लेवें।
अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वविमुक्तये प्रथमदिन
सम्बन्धि रौरवनाम नरकोत्तारणाय मूर्धावयवनिष्पत्यै शिरः पूरक पिण्ड
दानं करिष्ये।
अपसव्य होकर बांये पैर को जमीन पर टेक कर दक्षिण मुंह हो तिल जल हाथ में
लेकर संकल्प करे- अद्यामुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रथमदिनसम्बन्धि शिरः पूरक
पिण्डस्थाने इदमासनं मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
प्रेत के लिए एक कुश पर गांठ बांध कर प्रेत को स्थापित करे-
गतोऽसि
दिव्यलोकांस्त्वं कर्मणा प्राप्त सत्पथः।
मनसा वायु
रूपेण कुशे त्वां विनियोजये।।
प्रेत के पैर धोने के लिए कर्म कर्ता जल तीन बार देवे-एतत्ते पाद्यं
पदावनेजनं पादयोः। पादप्रक्षालनम्।
एक पत्ते में जल लेकर दूध, तिल, पुष्प से अर्घ्यपात्र बनाये कुशा की चट पर
डालें। अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य इदं
हस्तायमुपतिष्ठताम्।
स्नान के लिए जल चढ़ावें- स्नानमुपतिष्ठताम्।।
तीन सूत का तागा चढ़ावें-एतत्ते वासः उपतिष्ठताम्।।
ऊर्ण सूत्र चढ़ावे-एतत्ते ऊर्णसूत्राः उपतिष्ठताम्।।
तर्जनी अंगुली से चन्दन चढ़ावे-चन्दनमुपतिष्ठाम्।।
तिल अक्षत-एतानि अक्षतानि
उपतिष्ठताम्।।
राल का धूप दे एवं दीप
दिखावे-एतत्ते धूपमुपतिष्ठाम्।
एतत्ते दीपमुपतिष्ठाम्।।
नैवेद्य चढ़ा देवे- नैवेद्यमुपतिष्ठताम्।
दक्षिणा चढ़ा देवे- दक्षिणामुपतिष्ठताम्।
ताम्बूल चढ़ा देवे- ताम्बूलमुपतिष्ठताम्।
जल चढ़ा देवें- पिण्डस्थाने
अवनेजनं तवोपतिष्ठताम्।
पहले दिन का पिण्ड तिल कुश जल के साथ हाथ में लेकर संकल्प-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य शिरः पूरकः एषः।
प्रथमदिवसीयः
पिण्डोमयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
ऐसा कहकर अंगूठे की तरफ से पिण्ड को वेदी के कुश के ऊपर रख दें। फिर एक
दोने में जल लेकर पिण्ड के ऊपर अंगूठे की ओर से जल धारा दें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य तेऽवनेजनं मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।।
पिण्ड पूजन-पिण्ड के ऊपर पूजन के लिए निम्न सामग्री चढ़ा दे-
स्नानीय जल- पिण्डोपरि स्नानीयजलं उपतिष्ठताम्।
कार्पास
सूत्र-पिण्डिोपरि कार्पाससूत्रां उपतिष्ठताम्।
ऊर्ण सूत्र- पिण्डोपरि
ऊर्णसूत्रांम् उपतिष्ठताम्।
चन्दन- पिण्डोपरि चन्दन
उपतिष्ठताम्।
तिलाक्षत- पिण्डोपरि
तिलाक्षतम् उपतिष्ठताम्।
पुष्प- पिण्डोपरि
पुष्पम् उपतिष्ठताम्।
भृंगराजपत्रा-
पिण्डोपरि भृगराजम् दीयते तवोपतिष्ठताम्
रालधूप- पिण्डोपरि
रालधूपमुपतिष्ठताम्।
दीप- दीपमुपतिष्ठताम्।
नैवैद्य -एतत्ते
नैवेद्यमुपतिष्ठताम्।
दक्षिणा-
दक्षिणाचोपतिष्ठाताम्।
हल्दि- चर्मपूरक
हरिद्राग्रन्थिः तवोपतिष्ठताम्।
मजीठ- रक्तपूरितं
मंजिष्ठा तवोपतिष्ठताम्।
खस- नासाजालोत्पादकं
खशं तवोपतिष्ठताम्।
कमलगट्टा-षट्चक्रपूरकं
कमलबीजं तवोपतिष्ठताम्।
आंवला- वीर्यपूरकधात्राीफलं तवोपतिष्ठताम्।
शतावरी- दन्तोत्पादकानिशतावरीमूलानि उपतिष्ठताम्।
तिलतोय पात्र हाथ में लेकर निम्न मंत्र से पिण्ड के ऊपर देवे-
अमुकगोत्राः अमुकप्रेतः चितादाहजनिततापतृषोपशमनाय प्रथमदिन-
सम्बन्धित एतत् तिलतोयं मद्दतं तवोपतिष्ठताम्।
तिलतोयाञ्जलि प्रथम दिन एक-दूसरे दिन दो के क्रम से दें।
प्रार्थना- ॐअनादि निधनो
देवः शंखचक्र गदाधरः।
अक्षय पुण्डरीकाक्षः! प्रेतमोक्ष प्रदोभव।।
ॐअतसी
पुष्प संकाशं पीतवास समन्वितम्।
धर्मराज! नमस्तुभ्यं प्रेतमोक्षप्रदो भव।।
पिण्ड देकर कर्मकर्ता ‘प्रेताप्यायनमस्तु’ कहकर पिण्ड जल में डालकर स्नान
कर ले और घर आकर स्वयं भोजन बनाकर तीन बलि अपसव्य होकर दक्षिणमुख हो देवे-
कागग्रास- काकोसि
यम दूतोसि गृहाण बलिमुत्तमाम्।
ममद्वारगतं प्रेतं त्वमाप्यायितुमर्हसि।।
गोग्रास- सौरभे या
सर्वहिता पवित्रा पुण्यराशयः।
प्रतिगृहणन्तु में ग्रासं गावस्त्रौलोक्य मातरः।।
श्वानग्रास- द्वौ
श्वानौ श्यामशबलौ वैवश्वतकुलोभवौ।।
ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि स्यातामेतावहिंसकौ।।
तीनों ग्रास देकर जल छोड़ दें। अब कमकर्ता स्वयं भी भोजन कर ले सायंकाल को
मृतक के लिए एक दीप जलाकर कहे-अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य प्रथमदिननिमित्त-
प्रेतलोकादित्यवद् द्यौतनकामः इमं दीपं विष्णु दैवतं न मम।।
दीप देकर प्रार्थना करे-
ॐशान्ताकारं
भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं
गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं
कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यम्
वन्दे
विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
इस प्रकार प्रथम दिन का पिण्ड,
चितानल पूजन पूर्ण हुआ, दसवें दिन तक इसी क्रम
में पिण्ड दान देना है प्रत्येक दिन पिण्ड देने में असुविधा हो तो यह कार्य दशवें
दिन ही किया जा सकता है, ऐसा विद्वानों का मत है। दूसरे दिन
से शरीर पूरक तथा नरक तारण के लिए संकल्प अलग-अलग है। दूसरे दिन से दस दिन तक के
संकल्प इस प्रकार है। अलग-अलग दे रहें है। जितना दिन हो उसका संकल्प पिण्डदान में
कहे-
दूसरे दिन से दस दिन के पिण्डदान संकल्प
2.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य द्वितीयदिने योनिपुंसनाम
नरकोत्तारणाय चक्षुश्रोत्रानासिकासम्भूत्यै एषः पिण्डस्ते मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्।।
3.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनाम प्रेतस्य तृतीयदिने महारौरव नाम
नरकोत्तारणाय भुजवक्षोग्रीवामुखावयव निष्पत्यर्थं एषः पिण्डस्ते मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्।
4.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य चतुर्थदिने तामिश्र नाम
नरकोत्तारणाय उदरनाभि गुदवस्थि मेढ्î सम्भूत्यै एषः
पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
5.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य पंचमदिने अन्धतामिश्र नाम
नरकोत्तारणाय गुल्फउरुजानुजंघाचरणसम्भूत्यै एषः पिण्डस्ते मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्।
6.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य षष्ठे दिने संभ्रमनामनरकोत्तारणाय
सर्वमर्म सम्भूत्यै एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
7.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य सप्तमे दिने अमेढ्îक्रमीनाम नरकोत्तारणाय अस्थिमज्जाशिरा पूरणाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्।
8.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य अष्टमे दिने पुरीषभक्षणनामनरकोत्तारणाय
नखदन्तरोमकेशपूर्णाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
9.
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य नवमे दिने
स्वमांसभक्षणनामनरकोत्तारणाय वीय्र्यपूर्णाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्।
10.
उड़द पिण्ड-अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य दशमे दिने
कुम्भीपाकनामनरकोत्तारणाय क्षुत्पिपासापूर्णाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्।
घट आदि का विसर्जन-दसवें दिन का कार्य पूर्ण होने पर दशगात्र के पहने हुए
वस्त्रा, यज्ञोपवीत कर्मकर्ता छोड़ कर
नये वस्त्र पहन लें कुम्भ तथा वेदी, पिण्ड को जल में
विसर्जन कर दे। अपने देशाचार द्वारा कर्मकर्ता पुनर्मुण्डन भी करा लेवे घर की
शुद्धि भी कर दें दधि दुर्वा का स्पर्श करे तथा कर्म कर्ता ब्राह्मण हो तो अग्नि
का, क्षत्रिय हो तो वाहन या आयुध का, वैश्य
हो तो सोने का, तथा शूद्र हो तो वृषभ का स्पर्श कर लें।
एकादशाह कृत्य-
शास्त्र प्रमाण के अनुसार एकादशाह को दम्पती पूजन, शय्यादान, गोदान,
कुम्भदान, वृषोत्सर्ग करने के बाद एकादशाह का
पिण्ड श्राद्ध करें। जैसे जिनके यहाँ प्रचलन हो वैसा भी करना श्रेयस्कर है। हम
यहाँ पर निम्न प्रमाण के अनुसार एकादशाह कर्म लिख रहे हैं-
आदौ च दम्पती पूज्यौ
शय्या देया ततः परम्।
पश्चाच्च
कपिला देया उद्कुम्भांस्तथैव च।।
वृषोत्सर्गस्ततः कार्यः पश्चादेकादशाहिकम्।।
एकादशाह के दिन कर्मकर्ता प्रातः काल उठकर स्नान कर एकादशाह की सामग्री
रखकर पूर्व मुख या उत्तर मुख हो सव्य से द्विजदम्पती का पूजन करे हाथ में तिल जल
कुश लेकर संकल्प करे-अद्येत्यादि अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकं अक्षयस्वर्गप्राप्तर्थं द्विजदम्पत्योः पूजनमहं करिष्ये।
द्विज दम्पति के अभाव में कुश वट का पूजन कर ले गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीपक नैवद्य
तथा दक्षिणा भी चढ़ा देवे।
कांचनपुरुष दान-
शय्यादान-
प्रेत के लिए उपयुक्त शय्या दक्षिण उत्तर रख शिर की तरफ कुम्भ रख
दें, आभूषण आदि रखकर चतुर्मुख दीप
जला देवें शय्या के ऊपर सप्तधान्य रख उसकें ऊपर सुवर्ण की प्रतिमा (कांचन पुरुष)
को पंचामृत से धोकर स्थापित कर दें शय्या के ऊपर सुवर्ण (कांचन पुरुष) की प्रतिमा
का पूजन कर तथा चारों दिशाओं का पूजन कर परिक्रमा करें पूजन कुश वट ब्राह्मण का भी
करके तिलकुश जल हाथ में लेकर संकल्प करे-अद्येत्यादि अमुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य
सकलनरकयातना शीतादिबाधा याम्य पुरुष प्रहार निवृत्ति पूर्वक
अनेकानेककल्पान्तपुरन्दरादि सकललोकप्रात्यर्थं
घृतकुंभजलकलशताम्बूलदीपिकापादुका- छत्र आसनचामरनानाविधिभोजन-सुवर्णाभूषणऊर्णकार्पासवस्त्र हैममयकांचनपुरुषप्रतिमायुतामिमां शय्याप्रजापतिदैवतां युवाभ्यां सम्प्रददे।
दक्षिणा संकल्प-अद्यकृतस्य शय्यादानस्य प्रतिष्ठासिद्धयर्थं इदं निष्क्रय
द्रव्यं वा युवाभ्यां सम्प्रददे।
प्रार्थना- प्रेतस्य
प्रतिमा सैषा विष्णुसानिध्यदायिनी।
स्यातामस्याः प्रदानेन सन्तुष्टौ द्विजदम्पती।।
।। इति शय्यादान।।
कपिलादान-
गाय के लिए स्वर्णसींग,
चांदी के खुर, ताम्र पीठ, कांस्य पात्र दुहने के लिए, माला आदि रख संकल्प करे-अद्येत्यादि
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकतदङ्गत्वेन गवादिपूजनं च
करिष्ये। गो का पूजन गन्ध अक्षत वस्त्र फूल धूप दीप से कर नैवेद्य देवें । गाय का
मुंह धो दे, दक्षिणा भी देवे। पूजन कर कुश तिल जल हाथ में
लेकर संकल्प करे-
अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वक उत्तमलोकप्राप्तर्थं इमां कपिला गां रुद्रदैवतां यथालंकारैः
अलंकृतां यथानामगोत्राय अमुकशर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यं सम्प्रददे।।
प्रतिष्ठा देकर गाय की प्रार्थना भी कर लें-
कपिले सर्व
देवानां पूजनीयासि रोहिणी।
अर्थधेनुमयी
यस्माद्दत्तः शान्ति प्रयच्छ मे।।
गाय ब्राह्मण को देकर कर्मकर्ता गाय की परिक्रमा कर लें।
उदकुम्भ दान-
जितने दिन वर्ष में होते हैं उतने घड़े जल के और अधिक मास वर्ष
के अन्दर आ जाय तो तीस घट अधिक रख,
घट का पूजन गन्ध, अक्षत, पुष्प से कर के तथा इस संख्या के बराबर दीप दान तथा दन्त धावन को रखकर
पूर्व मुख ब्राह्मण का पूजन कर संकल्प करें-अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्य
अमुकप्रेतस्य मरण-दिनमारभ्य तिथिवृद्धिचान्द्रमानेन संवत्सरपूर्तिपर्यन्तं जायमान
प्रात्यहिक क्षुतपिपासानिवृत्यर्थं षष्ठ्यधिकत्रिंशतसंख्याकान् सान्तान् सदीपान्
सदन्तधावनान् उद्कुम्भान् ब्राह्मणाय दास्ये।
वृषोत्सर्ग-
प्रायः आजकल एक आध ही लोग वृषोत्सर्ग करते है तथापि क्रिया का
लोप न हो इसलिए वृषोत्सर्ग क्रिया वर्णित है। वृषोत्सर्ग में बछड़ा बछड़ी का पूजन
कर त्याग करने का विधान है। यदि न हो सके तो मेनफल को ही नाला बांधकर कुशा लपेट कर
सात फेरे करवाकर सूर्य चन्द्रमा की पूजा कर दें। विद्वानों ने वृषोत्सर्ग से पूर्व
ग्रहशान्ति विधान के अनुसार गणपति का पूजन करने का विधान बताया है।
विस्तृत विधि श्राद्ध विवेक प्रेत मञ्जरी के अनुसार करावें। अतः गणपति पूजन स्मरण कर के तिल कुश जल लेकर यह संकल्प
करे-अद्येत्यादि. अमुकमासे अमुकपक्षे तिथौ वासरे अमुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य
विमुक्तिपूर्वकाक्षयस्वर्गलोक प्राप्तिकामः एकादशेऽहनि वृषोत्सर्ग कर्माहं
करिष्ये।
एकादशाह श्राद्ध-
नारायण बलि (मध्यमषोडशी)
मध्यमषोडशी नारायण बलि का अंग है। यह षोडशी अपमृत्यु की स्थिति (महामारी, संदिश, दुर्घटनामृत्यु,
पञ्चकमृत्यु, आत्महत्या में षोडशी की जाती रही
है किन्तु आजकल जिनके लिए नारायण बलि अपेक्षित नहीं है उनके लिए आजकल की प्रक्रिया
में ‘शतार्धिमेलयेत’ इस वाक्य के
अनुसार कहीं-कहीं सभी के लिए मध्यम षोडशी कराई जा रही है।
ग्यारहवें दिन कर्मकर्ता स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर श्राद्ध भूमि को
गोबर से लीप कर मध्यमषोडशी के लिए वेदी का निर्माण कर तिल के तेल से दीपक जलाकर
पूर्व मुख हो कुश पवित्री धारण कर के आचमन प्राणायाम कर ले। कर्मपात्र में जलभर गन्ध, पुष्प, जौ,
तीन कुशा उसमें डालकर बाँये हाथ में जल लेकर दाहिनें हाथ की अनामिका
अंगुष्ठ से उसको हिलावे।
शेष कृत्य प्रेतमञ्जरी श्राद्धविवेक के अनुसार सम्पादित करें।
उत्तम षोडशी
यह कर्म पन्द्रहवें दिन से लेकर वार्षिक श्राद्ध तक का है परन्तु वर्ष भर के बन्धन अथवा मनुष्य की अनेक प्रकार की परेशानियों को देखते हुए पूर्वाह्ण
में यह श्राद्ध द्वादश दिन को करने का भी विधान मानते हैं।
15वे दिन पाक्षिक, 30वे दिन मासिक, 45वें दिन त्रैपाक्षिक, 60वें दिन द्विमासिक,
90वें दिन त्रिमासिक,
120वें दिन चतुर्थ मासिक, 150वें दिन पञ्चमासिक,
165वें दिन उन्षाण्मासिक, 180वें दिन
षाण्मासिक, 210वें दिन सप्त मासिक, 240वें
दिन अष्टम मासिक, 270वें दिन नवम मासिक, 300वें दिन दशममासिक, 330वें दिन एकादशमासिक,
345वें दिन उनाब्दिक, 360वें दिन एक तन्त्रोण भी किया जाता है।
कर्मकर्ता श्राद्ध के लिए भूमि साफ कर पूर्व में विष्णु भगवान की पूजा के
लिए वेदी बनाकर उसके ऊपर तीन कुशाओं में गाँठ लगाकर विष्णु भगवान की कल्पना करे, घी का दीपक भी जला दें। एक बड़ी वेदी बनाकर
16 चट स्थापित करे प्रेत के लिए वेदी बनाकर (दक्षिण में) तेल
का दीपक भी जला दे । पिण्ड के लिए खीर की व्यवस्था कर पूजन, सामग्री
रख श्राद्ध कर्म प्रारम्भ करे-
आचमन प्राणायम कर बायें हाथ में जल ले दक्षिण व बाँये हाथों में पवित्री पहन कर अनामिका अंगुठा से ॐअपवित्रः0 मंत्र द्वारा जल अभिमंत्रित करे-
आसन, शिखा में कुशा रख कर्मकर्ता
बाँये हाथ में कुशा सुपारी पैसा रख भूमि का पूजन करें-
श्राद्धस्थलभूम्यै नमः। भगवते गयायै नमः। भगवते गदाधराय नमः।
तिल सरसों दिशाओं में बिखरे दे-
ॐनमो
नमस्ते गोविन्द! पुराण पुरुषोत्तम !।
इदं
श्राद्धं ऋषिकेश ! रक्षतां सर्वतो दिशः।।
दीपक को भी गंध अक्षत-चढ़ाकर ब्राह्मण का भी पूजन कर ले-
नमोस्त्वनंताय सहश्रमूर्तये
सहश्रपादाक्षिशिरोरुवाहवे
सहश्रनाम्ने पुरुषाय
सास्वते सहश्रकोटीयुगधारिणे नमः।।
ब्राह्मण भी कर्मकर्ता को तिलक कर दे।
कर्मकर्ता अपसव्य हो संकल्प करे-
अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य प्रेतत्वविमुक्तये सद्गति प्राप्तये
अक्षयस्वर्गलोक गमनकामनया षोडशश्राद्धान्तर्गतपञ्चदशदिवसीयाद्य
श्राद्धमारभ्यवार्षिकश्राद्धपर्यन्तं षोडशाहश्राद्धमहं करिष्ये।
सव्य हो पूर्व मुंह कर पितृगायत्री का स्मरण तीन बार करे-
देवताभ्यपितृभ्यश्च महायोगीभ्य
एव च।
नमः
स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।
विष्णु भगवान का पूजन कर लेवें-
ॐइदं
विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्।
समूढमस्य
पा˜सुरे स्वाहा।।
भगवान विष्णु को गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य दक्षिणा चढ़ा देवे।
दक्षिण में प्रेत वेदी के ऊपर कुश रख प्रेत का आवाहन भी कर लें।
आवाहान
इहलोकं
परित्यज्य गतोऽसि परमां गतिम्।
मनसावायु रूपेण
चटेत्वाहं निमंत्रये।।
प्रेत पूजन हेतु अपसव्य होकर प्रार्थना करे-
अनादि
निधनो देव शंखचक्र गदाधरः!।
अक्षयः
पुण्डरीकाक्ष ! प्रेतमोक्षप्रदोभव।
अब कर्मकर्ता किसी ताम्र पात्र में जल दूध एवं कुशा डालकर कुशा से उन्हें
हिलाता जाये।
मंत्र- ॐयद्देवा देव हेडनं
देवासश्च कृमावयम्।
आग्निर्मा
तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्व ᳫ हसः।।1।।
ॐयदि दिवा
यदि नक्तमेनां˜सिचकृमा वयम्।
वायुर्मा
तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्व ᳫ हसः।।2।।
ॐयदि
जाग्रद्यदि स्वप्न एनांसि चकृमा वयम्।
सूर्य्योमा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्व ᳫ हसः।।3।।
जब श्राद्ध सामग्री पर कुशा से जल के छींटे देवें-
स्वानादि दुष्ट दृष्टि निपातात् दूषितं पाकादि पूतं भवत्वित्युक्त्वा तेन
पाकं प्रोक्षयेत्।।
16 टुकड़े कुशा के आसन हेतु हाथ में रख संकल्प करें-
ॐअद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य प्रेतत्वविमुक्तये अभीष्टलोकप्राप्तये
उत्तमषोडशश्राद्धान्तर्गतश्राद्धे इदमासनं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।।
कुश तिल जल के वेदी के ऊपर आसन के लिए छोड़ कुश आसनों को ऊपर तिल भी बिखेर
दे-ॐअपहता असुरा रक्षांसि वेदिषदः।।
16 पत्तों के ऊपर जल रख अर्घ्य बना देवे-
ॐशन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये। शंयोरभि श्रवन्तुनः।। पत्ते के जल
में तिल कुश मिलाकर संकल्प कहे-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वविमुक्तये उत्तमलोकावाप्तये एकादश
श्राद्धे एषोऽघ्र्यस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।।
अंगूठे की तरफ से चटों के ऊपर जलधारा देवे। अर्घ्य पात्रों को उलट दें। जो
पहले 16 कुश चट रखे थे उनका पूजन
करै-चटो पर गन्ध, अक्षत, पुष्प,
धूप, नैवेद्य, दीपक,
ताम्बूल, अंगूठे की तरफ से चढ़ाकर संकल्प
करें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य पे्रतत्वविमुक्तये अभिष्टलोकावाप्तये एकादशाह
श्राद्धादारभ्य द्वादशमासिकश्राद्धपर्यन्तं एकादशाहश्राद्धे मया गन्धादि दीयते
तवोपतिष्ठताम्।। थोड़ा अन्न सब चटों के पास रख जल छोड़कर संकल्प करें-अमुक- गोत्रस्यअमुकप्रेतस्य
पे्रतत्वविमुक्तये अभीष्टलोकावाप्तये एकादशाहश्राद्धादारभ्य द्वादशमासिक
श्राद्धपर्यन्तं एकादशाह श्राद्धे इदमन्नोदकं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।।
पिण्ड निर्माण पूजन
पिण्ड के आटे (या खीर) में घी,
शहद, तिल मिलाकर विल्वफल के समान 16 पिण्ड बनाकर प्रथम पिण्ड (पाक्षिक) को अपसव्य हो (सब पिण्ड अपसव्य हो कर
देने हैं।) तिल, जल, कुशा, हाथ में, रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
आद्यश्राद्धे प्रथमपक्षनिमित्तं एष ते पिण्डो मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।।
पिण्ड को अंगूठे की तरफ से वेदी पर आसन के ऊपर रख दूसरा पिण्ड लेवे- (तिल, कुश, जौ, जल, सब पिण्डों के साथ लें) अमुकगोत्रस्य
अमुकप्रेतस्य प्रथममासिकश्राद्धनिमित्तः एवं द्वितीयः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।।
वेदी के कुशासन में पूर्ववत् रख तीसरा पिण्ड तिल, जौ, कुश, जल के साथ लेकर संकल्प करे-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य त्रिपाक्षिकश्रराद्ध
निमित्तं एष पिडस्ते मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
पिण्ड को कुश आसन के ऊपर रख,
जौ, तिल, जल, कुश के साथ चैथा पिण्ड हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
द्वितीयमासिकश्राद्ध निमित्तं एष
पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को वेदी के आसन पर रख,
जौ, तिलकुश, जल सहित
पांचवां पिण्ड हाथ में रख संकल्प करे-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
तृतीयमासिकश्राद्धनिमित्तं एष पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पांचवे पिण्ड को वेदी के कुश आसन पर रख,
छठवां पिण्ड, जौ, तिलकुश
जल सहित हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
चतुर्थमासिकश्राद्ध निमित्तं एष पिण्डस्ते
मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पूर्ववत् छठे आसन पर रख, जौ, तिल, कुश, जल सहित सातवां पिण्ड हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
पंचममासिकश्राद्धनिमित्तं
एषपिण्डस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को पूर्ववत् सातवें आसन पर रख आठवां पिण्ड जौ, तिल, कुश, जल के साथ हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
ऊनषाण्मासिकश्राद्ध-निमित्तं
एषपिण्डस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
आठवें पिण्ड को वेदी के आसन के ऊपर पूर्ववत् रख, नवां पिण्ड जौ, तिल,
कुश, जल सहित हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य
अमुकप्रेतस्य षाण्मासिक श्राद्धनिमित्तं एषपिण्डस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
नवां पिण्ड पूर्ववत् आसन पर रख,
तिल, कुश, जल, जौ, सहित दशवां पिण्ड हाथ में रख संकल्प करे-अमुकगोत्रस्य
अमुकप्रेतस्य सप्तममासिकश्राद्धनिमित्तं एष पिण्डस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
दसवां पिण्ड आसन के ऊपर पूर्ववत्,
रख, ग्यारहवां पिण्ड जौ, तिल, कुश, जल सहित हाथ में रख
संकल्प करें- अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य अष्टममासिकश्राद्ध निमित्तं
एषपिण्डस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को आसन के ऊपर पूर्ववत् रख बारहवां पिण्ड जौ, तिल, जल, कुशा के साथ हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
नवममासिकश्राद्ध निमित्तं एषपिण्डस्तेमया
दीयते तवोपतिष्ठताम्।
बारहवें पिण्ड को आसन के ऊपर रख तेरहवां पिण्ड जौ, तिल, जल, कुश के साथ हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
दशममासिकश्राद्ध निमित्तं एषपिण्डस्तेमया
दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पूर्ववत् तेरहवें पिण्ड को आसन के ऊपर रख, चैदहवां पिण्ड तिल, जौ, कुशा के साथ हाथ में रख संकल्प करें- अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
एकादशमासिक श्राद्धनिमितं एषपिण्डस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को पूर्ववत् आसन के ऊपर रख,
पन्द्रहवां पिण्ड तिल, जौ, कुश सहित हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
उनद्वादशमासिकश्राद्धनिमित्तं एषपिण्डस्तेमया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पूर्ववत् पिण्ड को आसन के ऊपर रख,
सोलहवां पिण्ड तिल, जल, जौ,
कुश के साथ हाथ में रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
द्वादशश्राद्धनिमित्तं एषपिण्डस्तेमया
दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पूर्ववत् सोलहवें पिण्ड को आसन के ऊपर रख देवे। सव्य होकर अर्घ्यपात्र
बनाकर निम्न मंत्र पढ़े-ॐया दिव्याऽ आपः पयसासंबभूवुय्र्या ऽआन्तरिक्षाऽ उत
पार्थीवीर्याः हिरण्यवर्णा यज्ञियास्तान् ऽआपः शिवा स˜स्योनाः सुहवा भवन्तु।।
ऐसा पढ़ कर तीन कुश, जल, तिल
अपसव्य हो अर्ध्य हाथ में लेकर संकल्प करें- अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य
आद्यादिद्वादशमासिक श्राद्धनिमित्तं षोडशापिण्डेषु एषते हस्तेर्घ्यो मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्।।
ऐसा कह अर्घ्यों को पिण्डों के ऊपर
छोड़कर अर्घ्य पात्रों को उल्टा रख दें।
अवनेजन जल
एक दोने में तिल, जल, पुष्प,
गन्ध रख संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्व विमुक्तये
अभीष्टलोकप्राप्त्यर्थं षोडशश्राद्धान्तर्गत आद्यश्राद्धादारभ्य द्वादशमासिक
श्राद्धपर्यन्तं षोडशपिण्डो परिप्रत्यवनेजन जलानि मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
पिण्डों पर जल छोड़ दें-
पिण्ड पूजन
पिण्डेषु जलं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (जल)
पिण्डेषु वासांसि मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (वस्त्रा)
पिण्डेषु कार्पाससूत्रां मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (सूत्र)
पिण्डेषु ऊर्णसूत्रां मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (ऊर्णसूत्र)
पिण्डेषु गन्धं मयादीते तवोपतिष्ठताम्।। (गन्ध)
पिण्डेषु यवाक्षतं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (यव अक्षत)
पिण्डेषु पुष्पं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (पुष्पं)
पिण्डेषु भृंगराजपत्रां मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (भृंगराज)
पिण्डेषु तुलसीदलं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (तुलसी)
पिण्डेषु धूपं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (धूप)
पिण्डेषु दीपं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (दीपक)
पिण्डेषु नैवेद्यं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (नैवेद्य)
पिण्डेषु ताम्बूलं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (ताम्बूल)
पिण्डेषु दक्षिणां मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। (दक्षिणा)
उपरोक्त सामग्री पिण्डों पर चढ़ाकर नीवी विसर्जन कर संकल्प करें-
अमुकगोत्रस्य
अमुकप्रतेस्य आद्यादि षोडश
श्राद्ध पिण्डेषु
यद्दतंगंधाद्यर्चनं तवोपतिष्ठताम्।।
ऐसा कह कर जल छोड़ दे। पुनः एक पत्ते पर जल रखें।
ॐशिवा आपः सन्तु। पुष्प रखे- सौमनस्य मस्तु।। यव, तिल रखे- अक्षतं चारिष्टं चास्तु।। तिल,
जल, कुश तीनों हाथ में रख संकल्प करें-
ॐअमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य आद्यश्राद्धे यद्दत्तमन्नपानादिकं
तदुपतिष्ठताम्।। ऐसा कहकर पत्ते के जल को पिण्डों पर छोड़ दें। कर्मकर्ता सव्य ही
आचमन लेकर दक्षिणा संकल्प करें-
अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वविमुक्तये कृतैतदाद्यादिद्वादश-
मासिकान्तषोडशश्राद्धप्रतिष्ठासिद्धयर्थं इदं रजतं चन्द्रदैवतं अमुकगोत्रय
अमुकशर्मणे ब्राह्मणाय दक्षिणात्वेन दातुमहमुत्सृजे।। ब्राह्मण को दक्षिणा देकर
प्रार्थना करें-
अनादिनिधनोदेवः
शंखचक्रगदाधरः!।
अक्षयः
पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्ष प्रदोभव।।1।।
अतसीपुष्पसंकाशं
पीतवाससमच्युतम्।
ये
नमस्यन्ति गोविन्दं न तेषां विद्यते भयम्।।2।।
प्रमादात्
कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्।
स्मरणादेव
तद्विष्णोः संपूर्ण स्यादिति श्रुतिः।।3।।
अपसव्य होकर दीपक बुझा देवें। देवता विसर्जन कर पिण्डों को जल में छोड़
दें।।
अश्वत्थ पूजन
पीपल के वृक्ष के पास जाकर संकल्प लेवे-
अद्येत्यादिमुकगोत्रोऽमुकशर्माहं सपरिवारस्य ममोत्तरणशुभफलप्राप्तर्थं तथाऽ
मुकगोत्रस्यामुकशर्मणोऽस्मतपितुरऽक्षयतृप्तिकामनायै विष्णुस्वरुपस्य अश्वत्थस्य पूजनं
षष्ट्यधिकशतत्रायसंख्याकजलकुम्भै अभिषेचनं च करिष्ये।।
पुष्प लेकर अश्वत्थ में विष्णु भगवान का ध्यान करें-
एकादशात्मक
रुद्रोऽसि वसूनांच शिरोमणिः।
नारायणोऽसिदेवानां
वृक्षराज नमोऽस्तु ते।।
पुष्प अर्पण कर तीन सूत के धागे से वेष्ठित कर तीन सौ साठ दन्त धावन देकर
तीन सौ साठ बार पीपल को जल प्रदान कर गन्ध,
अक्षत, पुष्प, धूप,
दीपक, नैवेद्य, दक्षिणा,
अर्पण कर प्रार्थना करें-
यं
दृष्ट्वा मुच्यते रोगैः स्पृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंचैदहमासिका और सपिण्डन का भी उल्लेख करने की कृपा करें
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