Learn Hieratic in Hindi Part -4 अन्त्येष्टि-3,एकोद्दिष्ट श्राद्ध

         प्रातः स्नान कर श्वेत धुले वस्त्र पहन नित्यकर्माेपरान्त श्राद्धभूमि को गोबर से लीप उसके ऊपर जलता हुआ तृण घुमाकर पिण्ड के लिए चावल पकाकर, वेदी के ऊपर पितृरुप कुशा रख श्राद्ध के लिए तिल के तेल से दीपक जलाकर कर्मकर्ता पूर्व मुंह आचमन लेकर दोनों हाथों में पवित्री धारण कर प्राणायाम कर बाँयें हाथ में जल ले दाहिने हाथ से ॐअपवित्रः 0 मन्त्र से अभिमंत्रित करे-
ऐसा कह जल के छींटे श्राद्ध सामग्री तथा शरीर को लगावे, भूमि का पूजन कर ले-
ॐश्राद्धस्थलभूम्यै नमः।। ॐ भगवत्यै गयायै नमः।। ॐ भगवते गदाधरायः।। पूजन कर प्रार्थना करे-
                        पृथिवी त्वयाधृता0 कुश तिल जल हाथ में रख संकल्प बोले-
देशकालौ संकीर्त्य ॐअद्यामुकगोत्रस्य असमत्पितुः अमुकशर्मणो वसुरूपस्य सांवत्सरिकैकोद्दिष्टश्राद्धं करिष्ये।।
पूर्वमुख हो तीन बार गायत्री स्मरण करे-
                        ॐदेवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
                        नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।।
दक्षिणमुख अपसव्य हो तिल सरसो दिशाओं में फेंके-
                        ॐनमो नमस्ते गोविन्द! पुराण पुरुषोत्तम!।
                        इदं श्राद्धं हृषीकेश! रक्षतां सर्वतो दिशः।।1।।
                        अग्निष्वाताः पितृगणाः प्राची रक्षंतुमेदिशम्।
                        तथाबर्हिषदः पातु याम्यां ये पितरस्थिताः।।2।।
                        प्रतीचीमाज्यपास्तद्वदुदीचीमपि सोमपाः।
                        अधोध्र्वमपिकोणेषु हविष्यन्तश्च सर्वदा।।3।।
                        रक्षोभूत पिशाचेभ्यस्तथैवासुर दोषतः।
                        सर्वतश्चाधिपस्तेषां यमोरक्षां करोतु वै।।4।।
सव्य हो श्राद्ध कर्ता दक्षिण मुख दीपक का पूजन करे-
                        भो देव दीप रूपस्त्वं कर्मसाक्षीह्यविघ्नकृत्।
                        यावत् श्राद्धसमाप्तिः स्यात्तावदत्रा स्थिरोभव।।
ब्राह्मण का भी पूजन करे-
                        यदर्चनं कृतं विप्र! तवविष्णुस्तद् रूपिणः।
                        प्रार्थना मम दीनस्य विष्णवेतु समर्पणम्।।
ब्राह्मण कर्मकर्ता को तिलक लगावे-
                        आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
                        तिलकं ते प्रयच्छन्तु इष्टकामार्थसिद्धये।।
अपसव्य हो कर्मपात्र में कुश छोड़े-
ॐपवित्रोस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसव उत्पनाम्यच्छिद्रेण पवित्रोण सूर्यस्य रश्मिभिः।। जल छोड़े-
ॐशन्नोदेवीरभिष्टयऽआपोभवन्तु पीतये। शंय्यो रभि श्रवन्तु नः।। तिल छोड़े-
ॐतिलोसि सोमदैवत्यो गोसवो देव निर्मितः। प्रत्नमभि पृक्तः
स्वधयापितृन्लोकान् प्रिणाहिनः स्वधा।
पात्र में गन्ध पुष्प छोड़कर तीन कुश से हिला देवे-
                        ॐयद्देवा देवहेडन देवासश्चकृमा वयम्।
                        अग्निर्मा तस्मादेनसो विश्वान्मुंचत्व˜हसः।।1।।
                        ॐयदि दिवा यदिनक्त मेना˜सिचकृमावयम्।
                        वायुर्मातस्मादेनसो विश्वान्मुंचत्व˜सहः।।2।।
                        ॐयदिजाग्रद्यदि स्वप्न एना˜सिचकृमावयम्।
                        सूर्योमा तस्मादेन सो विश्वान्मुंचत्व˜हसः।।3।।
श्राद्ध सामग्री के छीटे लगाकर संकल्प तिल, जल, कुश हाथ में लेकर अपसव्य हो बोले-
अद्यामुकगोत्रस्य वसुस्वरूपस्यास्मत्पितुरमुकशर्मणः सांवत्सरिकैकोद्दिष्ट श्राद्धे इदमासनं ते स्वधा।।
कुश आसन को पितृरूप कुश के पास रख वेदी पर तिल बिखेर दे-
ॐअपहता असुरा रक्षा˜सिवेदिषदः।।
एक दोने में अध्र्य बनाकर हाथ में तिल जल कुश रखकर कहे-
ॐअमुकगोत्राः अस्मत्पितः अमुक शर्मन् वसुरूप एष ते हस्ताध्र्यः
स्वधा।। कह कर दोने के जल को पितृ कुश पर छोड़ वेदी के बाँये रख दे, नीवि बन्धन कर पितृ पूजन करे-
ॐपितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः। पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः
स्वधानमः। प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः।। अक्षन्पितरो मीमदन्तपितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः सुन्धध्वम्।।
पितृरूप कुश का गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य, दक्षिणा, वस्त्रादि से पूजन कर संकल्प बोले-
अद्यामुकगोत्रस्य वसुस्वरूपास्मत्पितः अमुकशर्मन् साम्वत्सरिकैकोद्दिष्टश्राद्धे एतानि गन्धाक्षतपुष्पधूपदीपनैवेद्यताम्बूलदक्षिणावासांसि ते स्वधा।।
अन्न में मधु मिलाकर दक्षिण में जल पात्र, घी रख दाहिनें हाथ से अन्न पर हाथ रख पितृ को अर्पण करें-
ॐमधुव्वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः संत्वोषधीः।।1।।
मधुनक्तमुतोषसो  मधुमत्पार्थिव˜रजः  मधुद्यौरस्तुनः  पिता।।2।।
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमां ऽ  अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः।।3।।
मधु मधु मधु।। बांया हाथ जमीन पर रख दाहिना हाथ उसके नीचे रख अन्न दिखावे-
                        ॐपृथिवी ते पात्रां द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य।
                        मुखे ऽअमृते ऽअमृतं जुहोमि स्वधा।।
सव्य हो भगवान विष्णु का पूजन भी कर ले-
            ॐइदं विष्णु र्विचक्रमेत्रोधा निदधे पदम्। समूढमस्य पा˜सुरे।।
पूजन कर प्रार्थना करे-
                        कृष्ण कृष्ण! कृपालो! त्वं अगतिर्नाम गतिर्भव।
                        संसार भव मग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम!।।1।।
                        अन्नहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यभवेत्।
                        तत्सर्व क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर।।2।।
पिण्ड के लिए प्रादेश मात्रा की वेदी बनाकर रक्षोघ्न सूक्त पढ़कर तिल वेदी के ऊपर बिखेर दे-
ॐकृष्णुष्वपाजः प्रसितिं न पृथ्वी याहि राजेवामवां 2 ऽ इमेन। तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानो ऽ स्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठै।।1।। तव भ्रमास ऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः। तपू˜ष्यग्ने जुह्ना पतúान सन्दितो विसृज विष्वगुल्काः।।2।। प्रतिष्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशोऽ अस्या
अदब्धः। यो नो दूरे ऽ अघस˜सो यो अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिराद
धर्षीत्।।3।। उदग्ने तिष्ठ प्रत्यातनुष्व न्यमित्रां 2ऽ ओषतात्तिग्म हेते। यो नोऽआराति˜समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यतसं न शुष्कम्।।4।। ऊध्र्वो भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृप्णुष्व दैव्यान्यग्ने। अवस्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिं प्रमृणीहि शत्राून्। अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि।।5।। अग्निमूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या ऽअयम्। अपा˜रेता˜सि जिन्वन्ति। इन्द्रस्य त्वौजसा सादयामि।।6।। भुवो यज्ञस्य रजसश्च नेता यत्रा नियुद्भिः सचसे शिवाभिः। दिवि मूद्र्धानं दधिषे स्वर्षां जिह्नामग्ने च कृषे हव्यवाहम्।।7।। ध्रुवासि
धरुणास्तृता विश्वकर्मणा। मात्वासमुद्रऽद्वधीन्मासुपर्णो ऽ व्यथमाना पृथिवीं ट्ट˜ह।।8।। प्रजापतिष्ट्वा सादयत्वपां पृष्ठेसमुद्रस्येमन्। व्यचस्वतींप्रथस्वतिं प्रथस्व पृथिव्यासि।।1।। ॐअंगिरसोनः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः तेषां वय˜ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम।।10।। ॐएनः पूर्वे पितरः सोम्यासोऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः। तेभिर्यमः ˜स रराणो हवी˜ष्युशन्नु शभि प्रतिकाममत्तु।।11।।
पिण्ड निर्माण
कर्मकर्ता दोनों हाथों से विल्वफल प्रमाण का पिण्ड पायस से बनावे पिण्ड निर्माण समय ब्राह्मण पुरुष सूक्त के 16 मंत्र, आशुः शिशानो के 17 मंत्र, कृष्णष्वपाजः प्रसिति0 के 5 मंत्र, तथा निम्न मंत्र को कहे-
            ॐउदीरतामवर ऽ उत्परास ऽ उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
            असंुय  ऽईयुरवृकाऽऋतज्ञास्ते   नोऽवन्तु   पितरो   हवेषु।।
निम्न गाथा का गान भी करे-
                        सप्तव्याधा दशार्णेषु मृगाः कालंजरे गिरौ।
                        चक्रवाका सरद्वीपे हंसा सरसि मानसे।।1।।
                        तेभिजाता कुरुक्षेत्रो ब्राह्मणावेद पारगाः।।
                        प्रस्थितादूरमध्वानं यूयन्तेभ्योऽवसीदत।।2।।
पिण्ड स्थापन पूजन
पिण्ड निर्माण कर थाली में रख अपसव्य हो बांया जंघा नवाकर तीन कुशाओं को लेकर वेदी के पश्चिम भाग में रख दें-
                        असंस्कृतप्रमीतानां त्यागिनां कुलभागिनाम्।
                        आच्छिष्ट  भाग  धेयानां दर्भेषुविकिरासनम्।।
कुछ पका अन्न पत्ते पर उठाकर जल घुमाकर खड़े हो तीन कुशाओं के ऊपर रख दें-
            ॐअग्निदग्धाश्च ये जीवा ये ऽप्यादग्धा कुलेमम।
            भूमौ  दत्तेन  चान्नेन  तृप्तायान्तु  परा   गतिम्।।
सव्य हो भगवान का स्मरण करें-
            ॐदेवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
            नमः  स्वाहायै  स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः।।
पुनः अपसव्य हो बांया घुटना नवाकर कुशा से वेदी के ऊपर दक्षिण से उत्तर को रेखा खींचे-ॐअपहता असुरा रक्षा सिवेदिषदः।
अब जलता हुआ अंगार लेकर कुशा से वेदी की रेखा के ऊपर घुमाकर दक्षिण की तरफ रख दे-
            ॐये रूपाणि प्रतिमंुचमाना ऽअसुराः संतः स्वध्याचरन्ति।
            परा  पुरोनिपुरो  ये  भरन्त्यनिष्टां  लोकात्प्रणुदात्यस्मात्।।
पुनः वेदी में जल छिड़क दें। दोनें में निम्न जलादि डाल दे-
                        शन्नोदेवीतिजलम्।। तिलोसीति तिलान्।।
                        गंधाक्षतपुष्पाणि  तूष्णी  निक्षिप्य।।
दोने को बांये हाथ में रख उसमें रखे कुश को वेदी में रख, कुश तिल जल हाथ में रख संकल्प कहे-
आद्यामुकगोत्र वसुस्वरूपास्मत्पितरमुकशर्मन् सांवत्सरिकैकोद्दिष्ट श्राद्धे पिण्डस्थाने ऽत्रावनेनिक्ष्व ते स्वधा।
दोने के थोडे़ जल को वेदी के कुशा के ऊपर छोड़ दोनें को पास रख पिण्ड पर घी, शहद लगा तिल, जल, कुश के साथ हाथ में रख संकल्प कहे-
आद्यामुकगोत्रमुकवसुस्वरूपो अस्पत्पितरमुकशर्मन् सांवत्सरिकश्राद्धे एष ते पिण्डः स्वधा नमः।।
वेदी के मध्य कुशासन के ऊपर पिण्ड को रख थाली में पिण्ड के शेष अन्न को पिण्ड के पास छोड़ दें-लेपभागभुजस्तृप्यन्तु
कुश मूल से हाथ पोंछ हाथ धो सव्य हो आचमन लेकर गायत्री स्मरण करे।
निश्वास ध्यान-कर्मकर्ता उत्तर की ओर मुंह कर प्राणायाम रीति से श्वास ले, दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का ध्यान करते हुए श्वास ले और छोड़े-
मंत्र-      ॐ  अत्रा    पितर्मादयस्व  यथाभागमावृषायस्व।। श्वास ले।।
            ॐअमीमदन्तपितर्यथा भागमाबृषयिषत्।। स्वास छोड़े।।
अर्घ्य के पात्र को हाथ में लेकर अपसव्य हो जल को पिण्ड पर छोड़े-
अद्यामुकगोत्र वसुस्वरूपास्मत् पितर अमुक शर्मन् सांवत्सरिकैकोद्दिष्ट श्राद्धे पिण्ड प्रत्यवने निक्ष्वते स्वधा।
नीवी कुशा आदि को पिण्ड के पास रख सव्य होकर आचमन लेव पुनः अपसव्य होकर बांया जंघा नवा कर कपास सूत्रा हाथ में लेकर दक्षिण मुख हो पिण्ड पर चढ़ावे-
ॐनमस्ते पितरो रसाय नमस्ते पितः शोषाय नमस्ते पितर्जीवाय पितः स्वधायै नमस्ते पितर्घोराय नमस्ते पितर्मन्यवे नमस्ते पितः पितर्नमस्ते गृहान्नः पितर्देहि नमस्ते पितर्देष्म।। हाथ जोड़कर पिण्ड पर सूत्रा रख दें-ॐएतत्ते पितर्वासः।।
हाथ में तिल, कुश, जल रख संकल्प कहे-
अद्यामुकगोत्राः वसुस्वरूपास्पात्पितरमुक शर्मन् सांवत्सरिकैको श्राद्धे पिण्डे एतत्तेवासः स्वधा।
पिण्ड पर गंध, अक्षत, पुष्प तुलसी, धूप, दीप, ताम्बूल, दक्षिणा चढ़ा वस्त्र से ढक दे पिण्ड का शेष अन्न पिण्ड के पास छोडें़।
ॐशिवा आपः सन्तु। जल छोडे़। सौमनस्यमस्तु। पुष्प छोड़े।। अक्षतंचारिष्टं चास्तु। ऐसा कह यव और तिल को अन्न पर छोड़े। दोनें पर जल में तिल रख अक्षयोदक देवे-
अद्यामुक गोत्रस्यवसुस्वरूपस्यास्पत्पितर अमुक शर्मणः सांवत्सरिकैकोद्दिष्टः श्राद्धे प्राणाप्यापन कामनायै दत्तै तदन्नपानादिकं अक्षयं अस्तु।।
सव्य होकर पूर्वमुख हो आशीष ग्रहण करे-
ॐअघोरः पिताऽ स्तु।। ऐसा कह पुनः कहे-ॐगोत्रांनो वर्द्धतां दातारोनोभिवर्द्धंतां वेदा सन्ततिरेव च। श्रद्धा चनोमा व्यगमद्वहुदेयंचनोऽस्तु।। अन्नंचनो बहुभवेदतिथिंश्चलभेमहि। याचितारश्च नः संतुमाचयाचिष्म कंचन।। एताः सत्या आशिषः सन्तु।।
पुनः अपसव्य हो पिण्ड़ के ऊपर तीन कुशा रखे तथा जल धारा दें-
ॐउर्जं वहंती रमृतं घृतं पयः कीलालं परिश्रुतम्। स्वधास्थतर्पयतमे पितरम्।।
अर्घ्यपात्र को उल्टा कर दे। यथा शक्ति सुवर्ण दक्षिणा हाथ में लेकर संकल्प कहे-
ॐअमुकगोत्रस्यास्मत्पितुरमुक शर्मणो वसुरूपस्य कृतैतत्सांवत्स- रिकैकोद्दिष्ट श्राद्धप्रतिष्ठार्थमिदं रजतचन्द्र-दैवतममुक गोत्रयामुकशर्मणे ब्राह्मणाय दक्षिणात्वेन दातुमहमुत्सृजे।। ब्राह्मण को दक्षिणा दे नम्र हो पिण्ड को उठाकर सूंघ ले तथा थाली में रखे, कुश से जलते अंगार को अग्नि में डाल दीपक को बुझाकर हाथ पैर धो सव्य हो प्रार्थना करे-
                        प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषुयत्।
                        स्मरणादेवतद्विष्णो संपूर्णं स्यादिति श्रुतिः।।
                        देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
                        नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।
पितृरूप कुश को भी उठाकर पिण्ड के साथ रख जल में विसर्जन कर दे। एकोद्दिष्ट श्राद्ध में शय्यादान, वस्त्र, अन्न, आमान्न, गायदान, देकर प्रार्थना करे-
            कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मनावाऽनु सृतः स्वभावात्।
            करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि।।
कमकर्ता पके हुए अन्न को तीन पत्तों पर रख अपसव्य हो काक को, जनेंऊ मालाकर कर श्वान को, सव्य हो कर गाय को खिलावे। ब्राह्मण से तिलक आशीष ग्रहण करें ब्राह्मण को भोजन देकर दक्षिणा से सन्तुष्ट करे स्वयं परिवार के साथ भोजन करें।

।। इति एकोद्दिष्ट श्राद्ध सम्पूर्ण ।।
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1 टिप्पणी:

  1. प्रणाम देव मुझे नारायण बलि के बारे में पीडीएफ उपलब्ध कराने की कृपा करें आभारी रहूंगा

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