संस्कृत की सूक्तियाँ बनाम हिंदी कहावतें


अलभ्यं हीनमुच्यते।
अंगूर खट्टे हैं।

अल्प आयो व्ययो महान्।
अस्सी की आमद चौरासी का खर्च।

अन्धस्यान्धानुलग्नस्य विनिपातः पदे पदे।
अन्धा गुरु बहरा चेला दोनों नरक में ठेलम ठेला।

अन्धस्य वर्तकीलाभः।
अन्धे के हाथ बटेर।

अर्धोघटो घोषमुपैति शब्दम् ।
अधजल गगरी छलकत जाए ।

इन्द्रोपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः।
अपने मूँह मियाँ मिट्ठू बनना।

एका क्रिया द्वयर्थकरी प्रसिद्धा।
एक पंथ दो काज ।

कायः कस्य न वल्लभः।
अपनी देह किसे प्यारी नहीं?

गुणान्वसन्तस्य न वेत्ति वायसः।
अन्धा क्या जाने वसन्त की बहार।

गते शोको निरर्थकः।
अब पछताये होत क्या? जब चिड़िया चुग गयी खेत।

ज्ञानेन हीनोपि सुबोधसंज्ञः।
आँखों को अंधे नाम नयनसुख।

न हि कश्चिन्निजं तक्रमम्लमित्यभिधीयते।
अपनी दही को कोई खट्टा नहीं कहता।

निजाधीनं स्वगौरवम्।
अपनी इज्जत अपने हाथ।

निज सदननिविष्टः श्वा न सिंहायते किम्?
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है।

निरस्तपादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते।
अंधों में काना राजा ।

निःसारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्।
ऊँची दूकान फीके पकवान।

नृपे मूढ़े कुतो नयः।
अन्धेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा।

पयो गते किं खलु सेतुबन्धनम्।
का बरखा जब कृषि सुखाने।

परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् ।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।

बुभुक्षितः किं न करोति पापम्।
भूखा क्या नहीं करता।

बहूनामप्यसाराणां संहतिः कार्यसाधिका।

बहुत निबल मिलि बल करै, करें जु चाहैं सोइ । 


भिक्षार्थं भ्रमते नित्यं नाम किन्तु धनेश्वरः।
 आंख का अंधा नाम नयनसुख।

मतिरेव बलाद् गरीयसी।
अकल बड़ी या भैंस?

मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना ।
 अपनी डफली अपना राग ।

यदभावि न तद् भावि। भावि चेन्न चदन्यथा।
अनहोनी होती नहीं, होनी होवनहार।

यत्र विद्वज्जनो नास्ति श्लाघ्यस्ताल्पधीरपि। निरस्तपादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते।।
अन्धों में काना राजा।

यो यद् वपति बीजं लभते तादृशं फलम्।
जैसी करनी वैसी भरनी।

विषकुम्भं पयोमुखम्।
मुंह में राम बगल में छुरी।

विवेकरहितः खलु पक्षपाती।
अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों दे।

शठे शाठ्यं समाचरेत्। भद्रो भद्रे खलः खले।
जैसे को तैसा।

श्वः कर्तव्यानि कार्याणि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

शीलं परं भूषणम् ।

न हि शील सम गहना दूजा ।


सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।
अपयश से मौत भली।

सुखमूलं सुसन्ततिः। संततिः शुद्धवंश्या हि परत्रेह च शर्मणे।
अच्छी संतान सुख की खान।

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