देव पूजा विधि Part-6 नवग्रह-स्थापन एवं पूजन

     वेदी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर ग्रहों की स्थापना के लिये ईशानकोण में चार खड़ी पाइयों और चार पड़ी पाइयों का चैकोर मण्डल बनाये। इस प्रकार नौ कोष्ठक बन जायेंगे। बीच वाले कोष्ठक में सूर्य, अग्निकोण में चन्द्र, दक्षिण में मङ्गल, ईशानकोण में बुध, उत्तर में बृहस्पति, पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शनि, नैर्ऋत्यकोण में राहु और वायव्यकोण में केतु की स्थापना करनी चाहिए। इसके बाद हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर संकल्प करें। देशकाल का संकीर्तन कर ‘‘अमुककर्मणः निर्विघ्नसमाप्तये सदङ्गतया सूर्यादिनवग्रहणामधिदेवता प्रत्यधिदेवता पञ्चलोकपालानां चावाहनं स्थापनं पूजनं च करिष्ये।’’
तदनन्तर नीचे लिखे मन्त्र बोलते हुए उपरिलिखित क्रम से दाहिने हाथ से अक्षत छोड़कर ग्रहों का आवाहन एवं स्थापन करे।
1. सूर्य (मध्य में गोलाकर, लाल) सूर्य का आवाहन (लाल अक्षत, जल, पुष्प लेकर)-  
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मत्र्यं च। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।। 
    जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्। 
    तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम् ।। 
ॐ भूर्भुवः स्वः कलिङ्गदेशोद्भव काश्यपगोत्र-रक्तवर्ण-भो सूर्य! इच्छागच्छ, इह तिष्ठ ॐ सूर्याय नमः, श्रीसूर्यमावाहयामि, स्थापयामि।
2. चन्द्र (अग्निकोण में, अर्धचन्द्र आकृति वाले, श्वेत) चन्द्र का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्प से) करें- 
ॐ इमं देवा असपत्न ँ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।। 
    दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्। 
    ज्योत्स्नापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ।। 
ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रोयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ सोमाय नमः, सोममावाहयामि, स्थापयामि।
3. मंगल (दक्षिण में, त्रिकोण, लाल) मङ्गल का आवाहन (लाल फूल और अक्षत लेकर) 
ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्। अपा रेता सि जिन्वति।।
    धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्तेजस्समप्रभम्। 
    कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम्।। 
ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ भौमाय नमः, भौममावाहयामि, स्थापयामि।
4. बुध (ईशानकोण में, हरा, धनुष) बुध का आवाहन (पीले, हरे, अक्षत-पुष्प लेकर)-
ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स सृजेथामयं च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत।। 
    प्रियङ्गुकलिकाभासं रूपेणाप्रतिं बुधम्। 
    सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम्। 
ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रोयगोत्र पीतवर्ण भो बुध! इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ बुधाय नमः, बुधमावाहयामि, स्थापयामि।
5. बृहस्पति (उत्तर में पीला, अष्टदल) बृहस्पति का आवाहन (पीले अक्षत-पुष्प से)-
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। 
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। 
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा।। 
    देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम्। 
    वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम्।। 
ॐ भूर्भुवः स्वः सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि, स्थापयामि।
6. शुक्र (पूर्व में श्वेत, पञ्चकोण) शुक्र का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्प से)-
ॐ अन्नात्परिश्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। 
    हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। 
    सर्वशास्त्राप्रवक्तारं शुक्रमावाहयाम्यहम्।। 
ॐ भूर्भुवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो  शुक्र ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ शुक्राय नमः, शुक्रमावाहयामि, स्थापयामि।
7. शनि (पश्चिम में, काला मनुष्य) शनि का आवाहन (काले अक्षत पुष्प से) -
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि श्रवन्तु नः।। 
    नीलाम्बुजसमाभासं रविपुत्रां यमाग्रजम्। 
    छायामार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम्।। 
ॐ भूर्भुव स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः, शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि।
8. राहु (नैर्ऋत्यकोण में काला मकर) राहु का आवाहन (काले पुष्प से)-
ॐ कया नश्चित्रा आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता। 
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्। 
सिंहिकागर्भसम्भूतं राहुमावाहयाम्यहम्।।
ॐ भूर्भुव स्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ राहवे नमः, राहुमावाहयामि, स्थापयामि।
9. केतु (वायव्यकोण में, कृष्ण खड्ग) केतु का आवाहन (धूमिल अक्षत पुष्प लेकर)-
ॐ केतुं कृण्वन्न्केतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः।। 
    पलाशधूम्रसङ्काशं तारकाग्रहमस्तकम्। 
    रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम्।। 
ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूमवर्ण भो केतो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ केतवे नमः, केतुमावाहयामि, स्थापयामि।

नोटः-केवल नवग्रह पूजन कराना हो तो दिक्पाल आवाहन के बाद इसकी शेष विधियाँ दी गयी है। इससे नवग्रह पृथक् कर पूजन करा लें।
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