दीपावली के दिन बालक, वृद्ध, रोगी को छोड़कर घर के अन्य सदस्य उपवास करें। (क्योंकि
उपवास रहते हुए प्रदोष के समय पूजन कर सकें) प्रदोषकाल में गणेश,
लक्ष्मी, कुबेर, इन्द्रसहित दीपमाला की पूजा करे। घर के भीतर शुद्ध आसन पर
बैठकर आचमन पवित्र धारण शिखा बन्धन आसन शुद्धि आदि करके स्वस्तिवाचन मंगलश्लोक
पढ़कर संकल्प करें- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुस्तत्सदद्येह मासोत्तमे मासे
कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायां तिथौ महापर्व्वणि
अमावस्यायाम् अमुक वासरादिसंयुतायाम् अमुकगोत्रोमुक शर्म्माहं/वर्मा
श्रुति-स्मृति-पुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायवाङ्मनःकृतसकलपापनिवारणोत्तरस्थिरलक्ष्मीप्राप्तिद्वारा श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं सर्वारिष्टनिवृत्तिपूर्वकसर्वाभीष्टफलप्राप्त्यर्थम् आयुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धîर्थं व्यापारे लाभार्थं च गणपतिनवग्रह- कलशादिपूजनपूर्वकं लक्ष्मीपूजनमहं करिष्ये, तदङ्गत्वेन कुबेरेन्द्रलेखन्यादीनां पूजनञ्च करिष्ये ।कहकर जल छोड़े।
इस प्रकार संकल्प करके यथाशक्ति सुपारी,
अक्षतपुञ्ज पर गणपति, गौरी और नवग्रहादि की पूजा करके फिर लक्ष्मीपूजा के
अंग होने से कुबेर आदि की पूजा करें।
कुबेर पूजा - ॐ कुविदं गवयमन्तो यवचिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूथ इह हैषां कृणुहि भोजनानि
ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति । अक्षत पर उपलब्ध पूजन सामग्री से कुबेर की पूजा
करके प्रार्थना करें – 
ॐ धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च। 
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ।। 
अथ इन्द्रपूजन मन्त्र – पूर्व दिशा में अष्टदल से इन्द्र का आवाहन तथा पूजन करें- ॐ
त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवे सुहव ॐ शूरमिन्द्रः ह्वयामि शक्रं
पुरुहूतमिन्द्र स्वस्तिनो मघवा धात्विन्द्रः । 
इन्द्र की प्रार्थना - ॐ शचीपते गजारूढ वज्रहस्त सुराधिप।
पुत्रपौत्रसमृद्ध्यर्थं व्यवहारे निधिं कुरु ।। 
लक्ष्मीपूजा 
महालक्ष्मी की प्रतिमा को अग्न्युत्तारण कर लें। तदनन्तर अपने सामने रख कर ध्यान
करें-
ध्यान-ॐ या सा
पद्मासनस्थाविपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
            गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता
शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।
            या लक्ष्मीर्दिव्य-
रूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
            सा नित्यं पद्महस्ता मम
वसतु गृहे सर्वमाङ्ल्ययुक्ता।।
ॐ अक्षस्त्रक् परशुं गदेषु कुलिशं पद्मं धनुः कण्डिकां ।
दण्डं शक्तिमसिञ्च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् । 
शूलं पाशसुदर्शनं च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां ।
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।। 
 
आवाहन-ॐ सर्वलोकस्य
जननीं शूलहस्तां त्रिलोचनाम्।
            सर्वदेवमयीमीशां
देवीमावाहयाम्यहम्।। दुर्गायै नमः, आवाहयामि।
आसन-ॐ तप्तकाञ्चनवर्णाभं
मुक्तामणिविराजितम्।
               अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।। आसनं
समर्पयामि।
पाद्य-  ॐ गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम्।
                पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते।।
पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्य-  ॐ अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम्।
                अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु
ते।। अर्घ्यं  समर्पयामि।
आचमन-ॐ सर्वलोकस्य
या शक्तिब्र्रह्मविष्ण्वादिभिः स्तुता।
            ददाम्याचमनं तस्यै
महालक्ष्म्यै मनोहरम्।। आचमनं समर्पयामि।
स्नान-ॐ मन्दाकिन्याः
समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः। 
            स्नानं कुरुष्व देवेशि!
सलिलैः सुगन्धिभिः।। स्नानं समर्पयामि।
(दुग्ध,
दधि, घृत, मधु, तथा शर्करास्नान विधि करायें।)
पञ्चामृतस्नान-ॐ
पञ्चामृतसमायुक्तं जाह्नवी सलिलं शुभम्। 
            गृहाणविश्वजननि
स्नानार्थं भक्तवत्सले!।। पंचामृतस्नानं समर्प0।
शुद्धोदकस्नान-ॐ
तोयं तव महादेवि! कर्पूरागरुवासितम्।
       तीर्थेभ्यः सुसमानीतं स्नानार्थं
प्रतिगृह्यताम्।। शुद्धोदकस्नानं सम0।
वस्त्र-ॐ दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्।
              दीयमानं मया देवि! गृहाण जगदम्बिके!।। वस्त्रं
समर्पयामि।
उपवस्त्र-ॐ कञ्चुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम्।
                        गृहाण त्वं
मया दत्तं मङ्ले जगदीश्वरि!।। उपवस्त्रं समर्पयामि।
मधुपर्क-ॐ कपिलं
दधि कुन्देन्दुधवलं मधुसंयुतम्।
            स्वर्णपात्र स्थितं
देवि! मधुपर्कं गृहाण भोः।। मधुपर्कं समर्पयामि।
आभूषण-ॐ स्वभावसुन्दराङ्गायै
नानादेवाश्रये शुभे!। 
            भूषणानि विचित्राणि
कल्पयाम्यमरार्चिते!।। आभूषणं समर्पयामि।
गन्ध-ॐ श्रीखण्डागरुकर्पूरमृगनाभिसमन्वितम्।
                        विलेपनं
गृहाणाशु नमोऽस्तु भक्तवत्सले!।। गन्धं समर्पयामि।
रक्तचंदन-ॐ रक्तचन्दनसम्मिश्रं
पारिजातसमुद्भवम्। 
            मया दत्तं गृहाणाशु
चन्दनं गन्धसंयुतम्।। रक्तचंदनं समर्पयामि।
सिन्दूर-ॐ सिन्दूरं
रक्तवर्णञ्च सिन्दूरतिलकप्रिये!।
            भक्त्या दत्तं मया देवि! सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।। सिन्दूरं समर्पयामि।
कुङ्कघमं-ॐ कुङ्कुमं
कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम्। 
            अखण्ड कामसौभाग्यं कुङ्कुमं
प्रतिगृह्यताम्।। कुंकुमं समर्पयामि।
अक्षत-ॐ अक्षतान्निर्मलाछुद्धान्
मुक्तामणिसमन्वितान्।
            गृहाणेमान् महादेवि!
देहि मे निर्मलां धियम्।। अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प-     ॐ मन्दारपारिजाताद्याः पाटली केतकी तथा।
                   मरुवा
मोगरं चैव गृहाणाशु नमो नमः।। पुष्पाणि समर्पयामि।
पुष्पमाला-ॐ पद्मशंखजपुष्पादि शतपत्रैर्विचित्रिताम्।
                        पुष्पमालां
प्रयच्छामि गृहाण त्वं सुरेश्वरि!।। पुष्पमाल्यां सम0।
दूर्वा-     ॐविष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां
सर्वसुशोभनाम्।
                  क्षीरसागरसम्भूते! दूर्वां स्वीकुरु सर्वदा।। दुर्वां समर्पयामि।
सुगन्धतैल-ॐ स्नेहं
गृहाण स्नेहेन लोकेश्वरि ! दयानिधे !।
            सर्वलोकस्य जननि !
ददामि स्नेहमुत्तमम्।। सुगन्धतैलं समर्पयामि।
अथाङ्पूजा।
ॐ चपलायै नमः
पादौ पूजयामि। ॐ चझ्लायै नमः जानुनी पूजयामि। ॐ कमलायै नमः कटिं (कमर) पूजयामि। ॐ कात्यायिन्यै
नमः नाभिं (नाभि) पूजयामि। ॐ जगन्मात्रे नमः जठरं पूजयामि। ॐविश्ववल्लभायै नमः
वक्षस्थलं पूजयामि। ॐ कमलवासिन्यै नमः भुजौ (दोनों भुजायें) पूजयामि। ॐ पद्मकमलायै
नमः मुखं (मुख) पूजयामि। ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः नैत्रत्रायं (तीनों नेत्रं)
पूजयामि। ॐ श्रियै नमः शिरः (मस्तक) पूजयामि। अंग पूजा समाप्त।
पूर्वादिक्रम
से आठों दिशाओं में अष्टसिद्धि की पूजा करें-ॐ अणिम्ने नमः। ॐ महिम्ने नमः। ॐ गरिम्णे
नमः। ॐ लघिम्ने नमः। ॐ प्राप्त्यै नमः। ॐ प्राकाम्यै नमः। ॐ ईशितायै नमः। ॐ वशितायै
नमः।। इति अष्टसिद्धिपूजन।
उसी प्रकार
पूर्वादिक्रम से अष्ट लक्ष्मी पूजन ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः। ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः। ॐ
सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः। ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः। ॐ कामलक्ष्म्यै नमः। ॐ सत्यलक्ष्म्यै
नमः। ॐ भौगलक्ष्म्यै नमः। ॐ योगलक्ष्म्यै नमः।।                                 इति
अष्टलक्ष्मीपूजन।
धूप-     ॐ वनस्पतिरसोत्पन्नो
गन्धाढ्यः सुमनोहरः। 
            आघ्रेयः सर्वदेवानां
धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।। इति अष्टलक्ष्मीपूजन।
दीप-     ॐ कार्पासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्। 
                        तमोनाशकरं
दीपं गृहाण परमेश्वरि।। दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य-   ॐ नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्।
                        षड्रसैरन्वितं
दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तु ते।। 
                        नैवेद्यं
निवेदयामि। मध्ये पानीयं जल समर्पयामि।
ऋतुफल-ॐ फलेन
फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्। 
            तस्मात्फलप्रदानेन
पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।। ऋतुफलं समर्पयामि।
आचमन-ॐ शीतलं
निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम्।
              आचम्यतामिदं देवि प्रसीद त्वं महेश्वरि!।।
आचमनीयं जलं सम0।
अखण्ड ऋतुफल-ॐ इदं
फलं मयाऽनीतं सरसं च निवेदितम्।
               गृहाण परमेशानि प्रसीद प्रणमाम्यहम्।।
अखण्डऋतुफलं सम0।
ताम्बूल पूगीफल-ॐ
एलालवङ्कर्पूरनागपत्रादिभिर्युतम्।
            पूगीफलेन संयुक्तं
ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।। ताम्बूलपूगीफलं सम0।
दक्षिणा-ॐ हिरण्यगर्भगर्भस्थं
हेमबीजं विभावसोः। 
              अनन्तपुण्यफलदमतः
शान्तिं प्रयच्छ मे।। द्रव्यदक्षिणां सम0।
प्रार्थना- ॐ सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं
सदा यत्तवपादपङ्कजम्। 
            परावरं पातु वरं सुमङ्लं नमामि भक्त्या तव कामसिद्धये।।
                                    भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनि!। 
                                    सुपूजिता प्रसन्नस्यान्महालक्ष्मि! नमोऽस्तु ते।। 
                                    नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
                                    या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात्।।
वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना –
          ॐ आहूतासि मया देवि पूजितासि यथाविधि। 
           अद्य प्रभृति मातस्त्वं तिष्ठात्रैव यथारुचि ।। 
          ईश्वरि कमले देवि शरणं च भवानघे। 
         विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं नित्यं चात्र स्थिरा भव ।। 
          रूपं देहि यशो देहि भाग्यमायुर्ददस्व मे । 
         पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।। 
इस प्रकार प्रार्थना कर फिर द्रव्य बांधने वाली थैली में स्वस्तिक लिखकर उसमें
हल्दी ५ गाँठ, करञ्जा ५, अक्षत, दूब, द्रव्य रखकर उसी में लक्ष्मी को भी रखकर यह मंत्र पढ़कर
भण्डार में रख दे – 
        ॐ महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं प्रसन्ना भव मङ्गले । 
        स्वर्णवित्तादि रूपेण मद्गृहे त्वं चिरं वस। 
       मम व्यापारे वृद्धिपूर्वकं लक्ष्मि सुस्थिरा भव ।
महाकाली-पूजन
उक्त विधि करने के बाद मसी पात्र (दवात) सामने रखकर कुंकुम से स्वस्तिक बनायें।
मंगल सूत्र से लपेट कर उसे फल, अक्षत पर रखे। श्री महाकाल्यै नमः कहकर आवाहन से
पुष्पाञ्जलि तक यथाशक्ति पूजन करे। इसके बाद नीचे लिखा मंत्र से ध्यान करें।
                        ॐ मसि त्वं लेखनीयुक्ता चित्रगुप्ताशयस्थिता।
                        सदक्षराणां पत्रे च लेख्यं कुरु सदा मम।।
                        या मया प्रकृतिः शक्तिर्चण्डमुण्डविमर्दिनी।
                        सा पूज्या सर्वदेवै ह्यस्माकं वरदा भव।।
ॐ श्री महाकाल्यै नमः। पूजन कर नीचे लिखी प्रार्थना करें।
                        ॐ या कालिका रोगहरा सुवन्द्या वैश्यैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः।
                        जनैर्जनानां भयहारिणी च सा देवमाता मयि सौख्यदात्री।।
                       कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे। 
                        उत्पन्ना
त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ।।लेखनी-पूजन
कलम, दबात को अपने सामने रखकर उसपर कुंकुम से स्वस्तिक बनायें। उसे मौली से लपेट कर फल, अक्षत पर रखें। नीचे लिखा ध्यान करके पूजन करें।
            ॐ शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
            वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
            हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
            वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
          लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना । 
          लोकानाञ्च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् । 
ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः । गन्ध, पुष्प, अक्षत,मङ्गलसूत्र आदि से र्लेखनी का पूजन कर नीचे लिखी प्रार्थना करें।
            ॐ कृष्णानने! द्विर्जिी! च चित्रगुप्तकरस्थिते!।
            सदक्षराणां पत्रे च लेख्यं कुरु सदा मम।।
           शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः । 
          अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥ 
पञ्जिका, बही, वसना आदि में सरस्वती की पूजा-
केशर या रोली से स्वस्तिक बनाकर नीचे लिखा ध्यान करके पूजन करें।
                        ॐ या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या
                        वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
                        या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
                        सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
                     ॐ पञ्जिके सर्वलोकानां निधिरूपेण वर्तसे । 
                     अतस्त्वां पूजयिष्यामि व्यवहारस्य सिद्धये ।। 
ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै नमः। इस मंत्र से आवाहन कर स्वस्तिका गणपत्यादि नाम लिखकर पुष्पाञ्जलि तक यथा शक्ति पूजनकर नीचे लिखी प्रार्थना करें।
                        ॐ शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे।
                        सर्वदा सर्वदाऽस्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्।।
                   ॐ धनं धान्यं पशून्देहि भाग्यं भगवति देहि मे। 
                        व्यवहारे निधिं देहि गृहे पुत्रांस्तथैव च ।। 
संदूक आदि में सिन्दूर से स्वस्तिक बना, आवाहन करके पूजन करे।
                        आवाहयामि देव त्वमिहायाहिकृपां कुरु।
                        कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर!।।
प्रार्थना-             ॐ धनाध्यक्षाय देवाय नरयानोपवेशिने।
                        नमस्ते राजराजाय कुबेराय महात्मने।।
तुला तथा मान-पूजन
सिंदूर से स्वस्तिक बनाकर पूजन करें, उसके बाद नीचे लिखी प्रार्थना करें।
                        नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिते।
                        साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।। तुलाधिष्ठातृदेवताभ्यो नमः ।
ततो देहली में विपणि पूजन- ॐ विपण्यधिष्ठातृदेवतायै नमः इस मंत्र से पूजन कर
प्रार्थना करे-
          ॐ विपणि त्वं महादेवी धनधान्यप्रवर्द्धिनी। 
         मद्गृहे सुयशो देहि धनधान्यादिकं तथा।
          आयुः पशून्प्रजां देहि सर्वसम्पत्करी भव ।। 
दीपावली-पूजन
ॐ दीपावल्यै नमः इस मंत्र से दीपक जलाकर पात्र में रख धूप, गन्ध आदि के द्वारा पूजा कर प्रार्थना करें –
          त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका। 
           सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिः - दीपावल्यै नमो नमः । 
                         भो दीप त्वं ब्रह्मरूप अन्धकारनिवारक।
                        इमां मया कृतां पूजां गृह्णँस्तेजः प्रवर्धय।।
                        ॐ दीपेभ्यो नमः।। इति।।
इसके बाद यथा शक्ति श्री सूक्त, अन्नपूर्णा स्तोत्र आदि का पाठ करें। इसके बाद बोलें-
ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी प्रसीदतु । ॐ प्रमादात् आदि मंत्र पढ़ें
। 
आचार्य को दक्षिणा देकर ध्रुव को अर्घ्यदान करे। तदनन्तर लक्ष्मी का प्रसाद
स्वर्ण, रजत आदि का दर्शन करे एवं चरणामृत पान कर प्रसाद ग्रहण करे।
 
 
 
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