देव पूजा विधि Part-5 नान्दीश्राद्ध (आभ्युदयिक) प्रयोग

         आचमन, प्राणायाम कर सङ्कल्प ॐ अद्येत्यादि देशकालौ संकीत्र्य कर्तव्यामुककर्माङ्गत्वेन साङ्कल्पिकेन विधिना ब्राह्मणयुग्म-भोजन-पर्याप्तान्न निष्क्रयीभूत-यथाशक्ति-हिरण्येन नान्दीमुखश्राद्धमहं करिष्ये। हाथ जोड़कर तीन बार निम्नोक्त का पाठ करें-ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः। श्राद्धकाले गयां ध्यात्वा ध्यात्वा देवं गदाधरम्। मनसा च पितृन्ध्यात्वा नान्दीश्राद्धं समारभे।
एक पत्तल पर पूर्व से दक्षिण, प्रदक्षिण क्रमानुसार सीधे कुशाओं को बिछाकर उन पर सव्य होकर सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर ॐ सत्यवसुसंज्ञकाः विश्वेदेवाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं वः पाद्यं पादावनेजनं पादप्रक्षालनं वृद्धिः।तक वाक्य पढ़कर अपने हाथ से लिये जल को अंगूठे से पत्तल पर रखे गये आसन रूप कुश पर विश्वेदेव के पादप्रक्षालन के लिए जल को गिरा दें। इसी प्रकार प्रदक्षिण क्रम से मातृ-पितामहि-प्रपितामह्यः नान्दीमुख्यः भूर्भुवः स्वः इदं वः पाद्यं पादावनेजनं पादप्रक्षालनं वृद्धिः।तक उच्चारण कर मातामह-प्रमातामह-वृद्धाप्रमातामहाः सपत्नीकाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं वः पाद्यं पादावनेजनं पादप्रक्षालनं वृद्धिः’ ‘मातृ-पितामही और प्रपितामही, पितृ पितामह तथा प्रपितामह एवं सपत्नीक मातामह, प्रमातामह एवं वृद्धप्रमातामहको पादप्रक्षालन के लिए अध्र्य जल दे। पुनः
ॐ सत्यवसुसंज्ञकाः विश्वेदेवाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इमे आसने वो नमो नमः। मातृ-पितामहि-प्रपितामह्यः नान्दी मुख्यः भूर्भुवः स्वः इमे आसने वो नमो नमः। पितृ-पितामह प्रपितामहाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इमे आसने वो नमो नमः। द्वितीयगोत्राः-मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहाः सपत्नीकाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इमें आसने वो नमो नमः। पढ़कर विश्वेदेव को कुशरूप आसन प्रदान करे।
         गन्धादिदान-तत्पश्चात् उन चारों स्थानों पर क्रम से ॐ सत्यवसुसंज्ञकाः विश्वेदेवाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं गन्धाद्यर्चनं स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। मातृ-पितामहि-प्रपितामह्यः नान्दीमुख्यः भूर्भुवः स्वः इदं गन्धाद्यर्चनं स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। पितृ-पितामह-प्रतिपतामहाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं गन्धाद्यर्चनं स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। द्वितीयगोत्राः-मातामह-प्रमातामह- वृद्धप्रमातामहाः सपत्नीकाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं गन्धाद्यर्चनं स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। तक वाक्य पढ़कर विश्वेदेव से लेकर सपत्नीक मातामह-प्रमातामह एवं वृद्धप्रमातामह तक के लिए जल, वस्त्र, यज्ञोपवीत चन्दन (रोरी), अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पान तथा सुपारी आदि से पूजन करे।
भोजन निष्क्रयदान-तदनन्तर क्रमशः चारों स्थान पर ॐ सत्यवसुसंज्ञकाः विश्वेदेवाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं युग्मब्राह्मण-भोजन- पर्याप्तमामान्न-निष्क्रयभूतं द्रव्यममृतरूपेण स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। मातृ- पितामहि-प्रपितामह्यः नान्दीमुख्यः भूर्भुवः स्व इदं युग्म-ब्राह्मणभोजन- पर्याप्तमामान्न-निष्क्रयभूतं द्रव्यममृतरूपेण स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। पितृ-पितामह-प्रपितामहाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं युग्म-ब्राह्मण- भोजन-पर्याप्तमामान्ननिष्क्रयभूतं द्रव्यममृतरूपेण स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। द्वितीयगोत्राः-मातामह प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहाः सपत्नीकाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः इदं युग्मब्राह्मण- भोजनपर्याप्तमामान्न-निष्क्रयभूतं द्रव्यममृतरूपेण स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः। विश्वेदेव के निमित्त दो ब्राह्मण, जितना आमान्न भोजन कर सकें, उसका निष्क्रय (मूल्य) भूत दक्षिणा दे। इसी प्रकार माता, पितामही एवं प्रपितामही तथा पिता, पितामह, एवं प्रपितामह और द्वितीयगोत्र वाले सपत्नीक मातामह, प्रमातामह और वृद्धप्रमातामह को भी विश्वेदेव की भांति दक्षिणा प्रदान करे।
         दुग्ध-मिश्रित जलादिदान-तत्पश्चात् चारों स्थान पर क्रम से दूध, यव और जल को एक में मिलाकर दाहिने हाथ में लेकर अंगूठे से ॐ सत्यवसुसंज्ञकाः विश्वेदेवाः नान्दीमुखाः प्रीयन्ताम्। मातृपितामहि-प्रपितामह्यः नान्दीमुख्यः प्रीयन्ताम्। पितृ-पितामह-प्रपिता महाः नान्दीमुखाः प्रीयन्ताम्। (द्वितीयगोत्राः) मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहाः सपत्नीकाः नान्दीमुखाः प्रीयन्ताम्। वाक्य उच्चारण कर विश्वेदेव के साथ सपत्नीक पिता, पितामह, प्रपितामह एवं सपत्नीक मातामह, प्रमातामह तथा वृद्धप्रमातामह के निमित्त अलग-अलग देवे।
जल-पुष्प-अक्षत प्रदान-पुनःचारों स्थानों पर ॐ शिव आपः सन्तुपढ़कर दाहिने हाथ के अंगूठे से जल, ‘ॐ सौमनस्यमस्तुइससे पुष्प, ‘ॐ अक्षतं चारिष्टं चास्तुसे अक्षत, विश्वेदेव से सपत्नीक-पिता, पितामह एवं प्रपितामह तथा मातामह, प्रमातामह एवं वृद्ध्रप्रमातामह पर क्रमशः पृथक्-पृथक् चढ़ावें।
जलधारा दान-पुनः अंजलि में जल लेकर अघोराः पितरः सन्तु यह वाक्य पढ़कर चारों स्थानों पर क्रमशः सभी पितरों के लिए अंगूठे कीओर से पूर्वाग्र जलधारा प्रदान करे।
आशीग्र्रहणम्-यजमान-ॐ गोत्रां नो वर्द्धताम् ब्राह्मणाः-ॐ वर्द्धतां वो गोत्रम्। यज. ॐ दातारो नोभिवर्द्धन्ताम्, ब्रा0-ॐ वर्द्धन्तां वो दातारः। यज0-ॐ वेदाश्च नोऽभिवर्द्धन्ताम्, ब्रा-ॐ वर्द्धन्तां वो वेदाः। यज-ॐ सन्ततिर्नोऽभिवर्द्धन्तां। ब्रा.-ॐ वर्द्धतां वः सन्ततिः। यज.-ॐ श्रद्धा च नो मा व्यपगमत्, ब्रा.-ॐ मा व्यपगमद्वः श्रद्धा। यज.-ॐ बहु देयं च नोऽस्तु, ब्रा.-ॐ अस्तु वो बहु देयम्। यज. अन्नं च नो बहु भवेत्, ब्रा.-ॐ बहु भवेद्वोऽन्नम्। यज.-ॐ अतिथींश्च लभामहै, ब्रा.-ॐ लभन्तां वोऽतिथयः। यज-ॐ याचितारश्च नः सन्तु, ब्रा.-ॐ सन्तु वो याचितारः। यज. ॐ एता आशिषः सत्याः सन्तु, ब्रा. ॐ सन्त्वेताः सत्या आशिषः।
        दक्षिणा दान-पुनः सत्यवसुसंज्ञकाः विश्वेदेवाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः कृतैतन्नान्दीश्राद्धस्य फलप्रतिष्ठासिद्धîर्थं द्राक्षामलक-यवमूल-निष्क्रयिणीं दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे। पढ़कर मुनक्का आवंला, यव एवं अदरक आदि क्रमशः संकल्प करके चारों स्थानों पर विश्वेदेव सहित सपत्नीक पितृ, पितामह, प्रपितामह तथा सपत्नीक मातामहादि के निमित्त देव और इन वस्तुओं के अभाव में निष्क्रयभूत द्रव्य-दक्षिणा दान करे। मातृ-पितामहि-प्रपितामह्यः नान्दीमुख्यः भूर्भुवः स्वः कृतैतन्नान्दी श्राद्धस्य फलप्रतिष्ठासिद्धîर्थं द्राक्षाऽऽमलक-यवमूल-निष्क्रयिणीं दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे। पितृ-पितामह-प्रपितामहाः नान्दीमुखाः भूर्भूवः स्वः कृतैतन्नान्दीश्राद्धस्य फलप्रतिष्ठासिद्ध्यर्थं द्राक्षा-ऽऽमलक-यवमूल-निष्क्रयिणीं दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे। (द्वितीयगोत्राः) मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहाः सपत्नीकाः नान्दीमुखाः भूर्भुवः स्वः कृतैतन्नान्दीश्राद्धस्य फलप्रतिष्ठासिद्ध्यर्थं द्राक्षाऽऽमलकयवमूल-निष्क्रयिणीं दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे।
इसके बाद यव, पीली सरसों, ऋतुफल, दूर्वा, दुग्ध, जल, कुश, चन्दन एवं पुष्प सहित अर्घ्यपात्र को दाहिने हाथ में लेकर ॐ उपास्मै गायता नरः पवमानायेन्दवे। अभि देवाँ 2 इयक्षते।।1।। ॐ इडामग्ने पुरुदसनिङ्गोंः शश्वम र्ठ हवमानाय साध। स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाऽग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मेइन दो मन्त्रों से चारों स्थानों पर अर्घ्य प्रदान करे।
      तत्पश्चात् यजमान हाथ में जल लेकर नान्दीश्राद्ध की सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करते हुए अनेन नान्दीश्राद्धं सम्पन्नम्कहकर भूमि पर जल छोड़ दे। ब्राह्मणगण सुसम्पन्नं नान्दीश्राद्धम्ऐसा कह दें।
पुनः यजमान ॐ वाजे वाजे वत वाजिनो नो धनेषु विप्रा अमृताऽऋतज्ञाः। अस्य मध्वः पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयानैः।। आ मा वाजस्य प्रसवो जगम्यादेमे द्यावापृथिवी विश्वरूपे। आ मा गन्तां पितरा मातरा चामा सोमोऽमृतत्वेन गम्यात्।तक दो मन्त्रा तथा विश्वेदेवाः प्रीयन्ताम्ऐसा वाक्य कहकर विसर्जन करे। हाथ में जल लेकर ॐ मयाचरितेऽस्मिन् सांकल्पिकनान्दीश्राद्धे न्यूनातिरिक्तो यो विधिः स उपविष्ट-ब्राह्मणानां वचनाच्छीनान्दीमुख- पितृप्रसादाच्च सर्वः परिपूर्णोऽस्तु। अस्तु परिपूर्णः ऐसा ब्राह्मण कहे। उसके बाद प्रमादात्0 पढकर ॐ विष्णवे नमो विष्णवे नमो विष्णवे नमः इति प्रणमेत्।
सांकल्पिक नान्दी-श्राद्ध समाप्त।
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