व्याकरण शास्त्र के प्राचीन आचार्य-
भरद्वाज-
भरद्वाज अंगिरस वृहस्पति के पुत्र तथा इन्द्र के शिष्य थे। युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार ये विक्रम सं. से 9300 वर्ष पूर्व उत्पन्न हुए। भरद्वाज काशी के राजा दिवोदास का पुत्र प्रतर्दन के पुरोहित थे।
व्याडि-
आचार्य व्याडि
प्राचीन वैयाकरण है। पतंजलि के महाभाष्य से पता चलता है कि व्याडि ने 'संग्रह' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की । आचार्य शौनक ने ऋक् प्रातिशाख्य में इनके अनेक
मत को उद्धृत किया है । इससे सिद्ध होता है कि व्याडि शौनक के पूर्ववर्ती थे।
ऋक् प्रातिशाख्य में ही शौनक ने शाकल्य और गार्ग्य के साथ
ही व्याडि का भी उल्लेख किया है। महाभाष्य (६-२-३६) में आपिशलि और पाणिनि के
शिष्यों के साथ व्याडि के शिष्यों का भी उल्लेख है। काशिका से व्याडि के दाक्षायण
और दाक्षि है इन अन्य दो नाम का पता चलता है । इनकी बहिन दाक्षी थी। पाणिनि
दाक्षीपुत्र होने से इनकी बहिन के पुत्र है।
'संग्रह' का प्रतिपाद्य विषय व्याकरण दर्शन ग्रन्थ था। इसमें
व्याकरण का दार्शनिक विवेचन था। पतंजलि (महा० १-२-६४ ) में व्याडि को
द्रव्यपदार्थवादी बताया है। 'द्रव्याभिधान व्याडिः' । नागेश और वाक्यपदीय के टीकाकार पुष्यराज ने संग्रह ग्रन्थ
का परिमाण एक लाख श्लोक माना है ।
पाणिनि ने अपने अष्टाध्यायी में जिन 10 आचार्यों के नाम का उलेलेख किया है,
उनमें आपिशलि मुख्य हैं। आपिशलि बहुत प्रसिद्ध वैयाकरण थे,
अतः उस समय व्याकरण की पाठशालाओं को आपिशलि शाला कहते थे।
पदमंजरीकार हरदत्त के लेख से ज्ञात होता है कि पाणिनि से ठीक पहले आपिशलि का ही
व्याकरण प्रचलित था। महाभाष्य (४-१-१४) से ज्ञात होता है कि कात्यायन और पतंजलि के
समय में भी आपिशल व्याकरण का पर्याप्त प्रचार था। पाणिनि ने वा सुप्यापिशलेः सूत्र
में आचार्य आपिशलि का उल्लेख किया है । इसके अतिरिक्त महाभाष्य ( ४-२-४५ ) मे
आपिशलि का मत प्रमाण के रूप में उद्धृत किया गया है। वामन,
कैयट आदि ने इसके अनेक सूत्र उद्धृत किए हैं। पाणिनि से कुछ
वर्ष ही प्राचीन ज्ञात होते हैं।
पाणिनीय व्याकरण का प्रधान उपजीन्य ग्रन्थ आपिशल व्याकरण है ।
पाणिनि ने इससे अनेक संज्ञाएँ,
प्रत्यय प्रत्याहार आदि लिए हैं। इसके व्याकरण में भी ८
अध्याय थे । इसके कुछ सूत्र उदाहरणार्थ ये हैं - १. विभक्त्यन्तं पदम्,
२. मन्यकर्मण्यनादरे उपमाने विभाषा प्राणिषु,
३. करोतेश्च ४. भिदेश्च ।
व्याकरण ग्रन्थ के अतिरिक्त इन्होंने अन्य ग्रन्थ ये हैं :-धातुपाठ,
गण पाठ, उणादिसूत्र, आपिशलशिक्षा तथा अक्षरतन्त्र की रचना की थी।
नोट- इस अधोलिखित भाग का सम्पादन तथा विस्तार करना शेष है।
व्याकरण ग्रन्थ परम्परा
कात्यायन 3000
वार्तिककारों में कात्यायन सब से श्रेष्ठ हुए। और निम्न लिखित वार्तिक लक्षणों से सर्वथा पूर्ण है उनका वार्तिक –
उक्तानुक्तदुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्तते ।
तं ग्रन्थं वार्तिकं प्राहुवर्तिकज्ञा मनीषिणः ॥
कात्यायन का वार्तिक पाणिनि व्याकरण का एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है, क्योंकि वार्तिक विना पाणिनि व्याकरण अधूरा रह जाता, वार्तिक इस व्याकरण में लिखा गया जिस के कारण इस व्याकरण के आलोक में दूसरा व्याकरण पनप नहीं रहा है। महामुनि कात्यायन का ही दूसरा नाम वररुचि है। ये स्मृतिकार और वार्तिककार के साथ-साथ महाकवि भी थे। इन के 'स्वर्गारोहण' नामक काव्य की प्रशंसा अनेक ग्रन्थों में भी की गयी है।
पतञ्जलि
शेषावतार भगवान् पतञ्जलि द्वारा विरचित व्याकरण महाभाष्य की सभी ग्रन्थों में प्राथमिकता है, सभी व्याकरण इसके सामने घुटना टेक देता है। व्याकरण शास्त्र ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण वाङ्मय का यह उदधि है। वाक्यपदीयकार भर्तृहरि ने भी लिखा है कृतोऽथ पतञ्जलिना गुरुणा तीर्थदशिता । सर्वेषां न्यायबीजानां महाभाष्ये निबन्धनम् ॥ भगवान् पतञ्जलि द्वारा विरचित तीन प्रमुख ग्रन्थ है -
१ पातञ्जलयोगसूत्रम् ।
२ व्याकरणमहाभाष्यम् ।
३ चरकसंहिता । जैसा कि कैयट ने महाभाष्य की टीका के मङ्गलाचरण में लिखा है –
योगेन चितस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि ।
आचार्यों के कथनानुसार यह सिद्ध होता है कि पाणिनि और कात्यायन उपवर्षाचार्य नामक एक ही गुरु के दोनों शिष्य थे । अध्ययन के समय कात्यायन की बुद्धि अति प्रखर थी, कात्यायन के सामने पाणिनि हतप्रभ हो जाया करते थे। अतः पाणिनि प्रयाग में अक्षय वट के नीचे जहाँ सनक सनन्दन आदि ऋषिगण तप करते थे, वहीं जाकर तपस्या करने लगे । इनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर नटराज भगवान् शङ्कर ने ताण्डव नृत्य करते हुए चौदहवार डमरू बजाकर तपस्त्रियों का मनोकामना को सिद्ध किया। इसका प्रमाण नन्दिकेश्वर विरचित काशिका में लिखा गया है, जो श्लोक से मिलता है।
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम् ।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धा नैतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥
इन्हीं चौदह माहेश्वर सूत्रों के आधार पर पाणिनि ने व्याकरण की रचना की है । पाणिनि द्वारा विरचित वैयाकरण ( अष्टाध्यायी ) सिद्धान्त कौमुदी में छुटे हुए अंर्शों को पुनः वार्तिक बना कर पूरा किया—
उक्तानुक्तदुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्तते ।
तं ग्रन्थं वार्तिकं प्राहुः प्राज्ञया यन्मनीषिणः ॥
संस्कृत व्याकरण के ग्रन्थों
को पुनः इस प्रकार
से देखें-
अष्टाध्यायी – पाणिनिः
वार्तिकम् – वररुचिः (कात्यायनः)
महाभाष्यम् – पतञ्जलिः
1. प्रदीपः –
कैयटः (महाभाष्यव्याख्यानम्)
2. उद्योतः –
नागेशः (महाभाष्यव्याख्यानम्)
सूत्रक्रमेण व्याख्यानम्
काशिका – वामनः, जयादित्यः
1. न्यासः –
जिनेन्द्रबुद्धिः (काशिकाव्याख्यानम्)
2. पदमञ्जरी –
हरदत्तः (काशिकाव्याख्यानम्)
शब्दकौस्तुभः - भट्टोजिदीक्षितः
प्रक्रियाक्रमेण व्याख्यानम्
प्रक्रियाकौमुदी – रामचन्द्राचार्यः
1. प्रसादः – विट्ठलाचार्यः
(व्याख्यानम्)
सिद्धान्तकौमुदी – भट्टोजिदीक्षितः
1. बालमनोरमा – वासुदेवदीक्षितः (सिद्धान्तकौमुदीव्याख्यानम्)
2. तत्त्वबोधिनी –
ज्ञानेन्द्रसरस्वती (सिद्धान्तकौमुदीव्याख्यानम्)
3. प्रौढमनोरमा –
भट्टोजिदीक्षितः सिद्धान्त (कौमुदीव्याख्यानम्)
4. लघुमञ्जूषा,
परमलघुमञ्जूषा - नागेशभट्टः
(क) बृहच्छब्दरत्नम्, लघुशब्दरत्नम् – हरिदीक्षितः (भट्टोजिदीक्षितस्य पौत्रः, नागेशभट्टस्य
अयं ग्रन्थः इति केचित्)
(ख) रत्नप्रभा – सभापत्युपाध्यायः
(ग) सरला – नेनेपण्डितगोपालशास्त्री
(घ) प्रभा
– भाण्डारिमाधवशास्त्री
(ङ) बृहच्छन्देन्दुशेखरः, लघुशब्देन्दुशेखरः – नागेशभट्टः
(व्याख्यानम्, स्वतन्त्रविचाराश्च । भट्टोजिदीक्षितानां
पौत्रस्य शिष्यः)
i. चन्द्रकला – भैरवमिश्रः (शेखरग्रन्थस्य व्याख्यानम्)
ii. चिदस्थिमाला – पायगुण्डेवैद्यनाथः (शेखरग्रन्थस्य व्याख्यानम्)
iii. दीपकः – नित्यानन्दपन्तः (शेखरग्रन्थस्य
व्याख्यानम्)
लघुसिद्धान्तकौमुदी - वरदराजभट्टाचार्यः
व्याकरणस्य दार्शनिकाः अन्ये च ग्रन्थाः –
वाक्यपदीयम् – भर्तृहरिः
1. अम्बाकर्त्री – रघुनाथ शर्मा
परिभाषेन्दुशेखरः – नागेश भट्टः
1. गदा – पायगुण्डे वैद्यनाथः
2. हैमवती – यागेश्वर-ओझा
वैयाकरणभूषणकारिका – भट्टोजि दीक्षितः
वैयाकरणसिद्धान्तभूषणम्/ वैयाकरणसिद्धान्तभूषणसारः – कौण्डिभट्टः (भट्टोजिदीक्षितस्य
भ्रातुष्पुत्रः)
1. काशिका –
हरिरामकेशव काले
2. दर्पणम् -
हरिवल्लभशर्मा
उत्तम प्रयास
जवाब देंहटाएंज्ञान वर्धक लेख जब भी किसी विषय वस्तु की गूढ़ व शास्त्रीय प्रमाणिक जानकारी चाहिये तो सदैव आपका ब्लॉक हम् सभी पर परोपकार करता है🙏🙏🙏💝 हम् सभी सदैव कृतज्ञ रहेंगे
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
sundaroayam lekhah
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