इस संस्कृतभाषी ब्लॉग पर अनेक भाग में
विविध प्रकार की पूजा विधि दी गई है। प्रायः प्रत्येक संस्कार, व्रतोद्यापन, हवन, यज्ञ यज्ञादि में
पञ्चाङ्ग पूजन का विधान है। षोडशोपचार या पञ्चोपचार अर्चन का क्रम सामान्यतः
प्रचलित है। पुरुषसूक्त के षोडश
मंत्र और रूद्रसूक्त के नमस्ते रुद्र आदि षोडश मंत्रों से भी सभी देव पूजन करने
की सामान्य विधि है। देव पूजा तथा अन्य कृत्य के सम्पादन में यजमान की सहायता करने वाले पुरोहित पूजन में बार-बार प्रयोग होने वाले मंत्रों को शुद्ध तथा सस्वर याद कर लें।
ध्यातव्य है कि पूजन के इस
प्रकरण का अभ्यास हो जाने पर विविध पूजा के आयोजन में संकल्प विशेष का परिवर्तन
करके तत्तद् विधियाँ करायी जा सकती हैं।
प्रत्येक पूजा के आरंभ से पहले निम्नांकित
आचार-अवश्य करने चाहिये- आत्मशुद्धि, आसन शुद्धि, पवित्र धारण, पृथ्वी पूजन, संकल्प, दीप पूजन, शंख पूजन, घंटा पूजन और स्वस्तिवाचन । इसके बाद ही देव पूजन
प्रारम्भ करना चाहिए।
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शुभ मूहूर्त में शुद्ध वस्त्र धारण करके यजमान पूजा के लिए मण्डप में आये। यथासंभव शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करना उत्तम होता है। पूजन कार्य में पति के दक्षिण ओर पत्नी को बैठाया जाय। इस सम्बन्ध में शास्त्रादेश है-
आशीर्वादेऽभिषेके च पादप्रक्षालने तथा। शयने भोजने चैव पत्नी तूत्तरतो भवेत्।।
ग्रन्थिबन्धन
इसके बाद अधोलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए यजमान के वस्त्र तथा उसकी पत्नी की चुनरी या साड़ी का ग्रन्थि बन्धन करें। चुनरी या साड़ी में अक्षत (अरवा चावल), जौ, हरिद्राचूर्ण (हल्दी का चूर्ण) फूल, सुपारी और द्रव्य डाल कर,गांठ लगा दें।
ॐ मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं
गरुडध्वजः।
मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मङ्गलाय तनोहरिः।।
पुनः उस चुनरी को यजमान
की चादर से जोड़ कर ग्रन्थिबन्धन करें।
जलपात्र स्थापन
अब पूजन कार्य के लिए जलपात्र स्थापित करे। यथा—तांबे के जलपात्र में फूल,अक्षत,सुपारी,दूर्वा (दूब), द्रव्य और आम्रपल्लव वा कुश डाल कर निम्नांकित
मन्त्रोच्चारण पूर्वक जल को चलायें-
ऊँ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धुकावेरी जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।
दीप प्रज्जवलन
इसके बाद दाहिने और सामने एक-एक दीप प्रज्जवलित कर,
जल अक्षत पुष्प द्रव्यादि लेकर साक्षी दीप और रक्षा दीप
को विधिवत् स्थापित करें-
भो दीप! देवरूपस्त्वं कर्म-साक्षी ह्यविघ्नकृत् ।
यावत्कर्म समाप्तिः स्यात् तावत्त्वं सुस्थिरो भव। ।
प्रसन्नो
भव।वरदा भव।
(सामने या दायीं ओर साक्षी दीप घी का, और बायीं और रक्षादीप तिल तैल का होना चाहिए। तिल तैल के अभाव में घी का प्रयोग किया जा
सकता है,किन्तु सरसो तेल का प्रयोग कदापि नहीं करें।)
तदनन्तर आत्म शुद्धि के लिए आचमन करें।
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः। तीन बार आचमन कर आगे दिये मंत्र पढ़कर हाथ धो लें। ॐ हृषीकेशाय नमः ।।
भूतोत्सारण
पुनः जल लेकर विनियोग मन्त्र बोलें- अपसर्पन्त्विति मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः,
शिवो देवता,अनुष्टुप छन्दः,भूतादिविघ्नोत्सादने विनियोगः।–
सामने जल गिरा दें।
अब,अक्षत वा पीला सरसो एवं मौली (एक लच्छी) दोने में,
बायें हाथ में लेकर दाहिने हाथ से ढक कर दिग् रक्षा व
भूतोत्सरण मन्त्र बोले-
ॐ गणाधिपं नमस्कृत्य नमस्कृत्य पितामहम्।
विष्णुं रुद्रं श्रियं देवीं वन्दे भक्त्या सरस्वतीम्।।
स्थानाधिपं नमस्कृत्य ग्रहनाथं निशाकरम्।
धरणीगर्भसम्भूतं शशिपुत्रं बृहस्पतिम्।।
दैत्याचार्यं नमस्कृत्य सूर्यपुत्रं महाबलम्।
राहुं केतुं नमस्कृत्य यज्ञारम्भे विशेषतः।।
शक्राद्या देवताः सर्वाः मुनीं चैव तपोधनान्।
गर्गं मुनिं नमस्कृत्य नारदं मुनिसत्तमम्।।
वशिष्ठं मुनिशार्दूलं विश्वामित्रं च गोभिलम्।
व्यासं मुनिं नमस्कृत्य सर्वशास्त्रविशारदम्।।
विद्याधिका ये मुनयः आचार्याश्च तपोधनाः।
तान् सर्वान् प्रणमाम्येवं यक्षरक्षाकरान् सदा।।
दिग् रक्षण
अब, इस अभिमन्त्रित अक्षत/सरसो को थोड़ा-थोड़ा ले-लेकर आचार्य
के निर्देशानुसार विभिन्न दिशाओं में छींटे—
पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुडध्वजः।
दक्षिणे पद्मनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः।।
पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः।
उत्तरेश्रीपतिःरक्षेत् ईशाने तु महेश्वरः।।
ऊर्ध्वं रक्षतु धाता वोऽधोऽनन्तश्च रक्षतु।
एवं दशदिशो रक्षेद् वासुदेवो जनार्दनः।।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक्।
यदत्र संस्थितं भूतस्थानमाश्रित्यसर्वदा।
स्थानं त्यक्त्वातु तत्सर्वं यत्रस्थं तत्र गच्छतु।
अपक्रामन्तु ते भूता ये भूता भूतले स्थिताः।।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्।।
सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे।।
शेष बचे अक्षत और मौली को सामने रखकर, तीन बार जोर से ताली बजावे।
पवित्रीकरण
विनियोग करे-
ऊँ अपवित्रःपवित्रोवेत्यस्य वामदेवऋषिः विष्णुर्देवता गायत्री छन्दः हृदि
पवित्रकरणे विनियोगः।। कर्मपात्र से कुश वा कलछी
द्वारा जल लेकर भूमि पर गिरायें।)
पुनः बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर निम्न श्लोक पढ़ते हुए छिड़कें।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
पुनः विनियोग- ॐ पृथ्वीति
मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसने विनियोगः।।-आसन के सामने
जलगिरा दें।
आसन शुद्धि-नीचे लिखा मंत्र पढ़कर आसन पर जल छिड़के-
ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रं कुरु चासनम्।।
शिखाबन्धन- ॐ मानस्तोके तनये मानऽआयुषि मानो गोषु मानोऽअश्वेषुरीरिषः। मानोव्वीरान् रुद्रभामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखाबद्धे तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे।।
कुश धारण- तीन कुशाओं की बंटी हुयी पवित्री अधोलिखित मंत्र से बायें हाथ अनामिका अंगुली में तीन कुश तथा दाहिने हाथ में दो कुशाओं की बंटी हुयी पवित्री धारण करें।
ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम्।
अथवा मात्र ऊँ भूर्भुवः स्वः कह कर पहन लें। (स्त्री को पवित्री धारण करने की आवश्यकता नहीं है,उसे सोने की अंगूठी धारण करनी चाहिए)। पवित्री धारण करने के पश्चात् एक या तीन बार प्राणायाम कर लेना उत्तम होता है।
पुनः दायें हाथ को पृथ्वी पर उलटा रखकर ॐ पृथिव्यै नमः इससे भूमि की पञ्चोपचार पूजा का आसन शुद्धि करें। पुनः आचार्य यजमान के ललाट पर कुंकुम तिलक करें।
यजमान तिलक
ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः।
तिलकन्ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।
थोड़ा सा सिन्दूर ॐ गौर्यैः नमः से मन्त्राभिषिक्त करके यजमान पत्नी के हाथों में दे दे, और उसे स्वयं लगा लेने का निर्देश दें। तिलक की महत्ता के सम्बन्ध में शास्त्र-वचन हैं-
ऊर्ध्वपुण्ड्रं मृदा कुर्याद् भस्मना तु त्रिपुण्ड्रकम्। उभयं चन्दनेनैव अभ्यङ्गोत्सवरात्रिषु।।
ललाटे तिलकं कृत्वा संध्याकर्म समाचरेत्। अकृत्वा भालतिलकं तस्य कर्म निरर्थकम्।।
उसके बाद यजमान आचार्य एवं अन्य ऋत्विजों के साथ हाथ में पुष्पाक्षत लेकर स्वस्त्ययन पढ़े।
ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासोऽ परीतास उद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे।।
दे॒वानां॑ भ॒द्रा सु॑म॒तिर्ऋ॑जूय॒तां
दे॒वाना॑ रा॒तिर॒भि नो॒ निव॑र्त्तताम्।
दे॒वाना॑ स॒ख्यमुप॑सेदिमा व॒यं दे॒वा न॒ऽआयुः॒
प्रति॑रन्तु जी॒वसे॑॥
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रामदितिं दक्षमस्रिधम्।
अर्यमणं वरुण ँ सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।।
तन्नो व्वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्।।
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निर्जिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह।।
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ँ सस्तनुभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः।।
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्।
पुत्रसो यत्रा पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः।।
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वे देवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्।।
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष Ủ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्व्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्मशान्तिः सर्वं Ü शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि।।
यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरू।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुब्भ्यः।। सुशान्तिर्भवतु।।
हाथ में लिए पुष्प और अक्षत को गणेश एवं गौरी पर चढ़ा दें। पुनः हाथ में पुष्प अक्षत आदि लेकर मंगल श्लोक पढ़े।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। उमामहेश्वराभ्यां नमः। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। शचीपुरन्दराभ्यां नमः। मातापितृचरणकमलेभ्यो नमः। इष्टदेवताभ्यो नमः। कुलदेवताभ्यो नमः। ग्रामदेवताभ्यो नमः। वास्तुदेवताभ्यो नमः। स्थानदेवताभ्यो नमः। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम् ।
वन्दे काशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ।। 1।।
वक्रतुण्ड ! महाकाय ! कोटिसूर्यसमप्रभ ! ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव ! सर्वकार्येषु सर्वदा ।। 2।।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।। 3।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।। 4।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ।। 5।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।। 6।।
अभीप्सितार्थ-सिद्धयर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः ।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ।। 7।।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ! ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि ! नमोऽस्तु ते ।। 8।।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् ।
येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनो हरिः ।। 9।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव ।
विद्यावलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि।। 10।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।
येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ।। 11।।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्र्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।।12।।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। 13।।
स्मृतेः सकलकल्याणं भाजनं यत्र जायते ।
पुरुषं तमजं नित्यं ब्रजामि शरणं हरिम् ।। 14।।
सर्वेष्वारम्भकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः ।
देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ।। 15।।
हाथ में लिये अक्षत-पुष्प को गणेशाम्बिका पर चढ़ा दें।
दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प और द्रव्य लेकर संकल्प करे।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ स्वस्ति श्रीमन्मुकन्दसच्चिदानन्दस्याज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे एकपञ्चाशत्तमे वर्षे प्रथममासे प्रथमपक्षे प्रथमदिवसे द्वात्रिंशत्कल्पानां मध्ये अष्टमे श्रीश्वेतबाराहकल्पे स्वायम्भुवादिमन्वतराणां मध्ये सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे कृत-त्रोता-द्वापर- कलिसंज्ञानां चतुर्युगानां मध्ये वर्तमाने अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत्प्रथमचरणे तथा पञ्चाशत्कोटियोजनविस्तीर्ण-भूमण्डलान्तर्गतसप्तद्वीपमध्यवर्तिनि जम्बूद्वीपे तत्रापि श्रीगङ्गादिसरिद्भिः पाविते परम-पवित्रे भारतवर्षे आर्यावर्तान्तर्गतकाशी-कुरुक्षेत्र-पुष्कर-प्रयागादि-नाना-तीर्थयुक्त कर्मभूमौ मध्यरेखाया मध्ये अमुक दिग्भागे अमुकक्षेत्रे ब्रह्मावर्तादमुकदिग्भागा- वस्थितेऽमुकजनपदे तज्जनपदान्तर्गते अमुकग्रामे श्रीगङ्गायमुनयोरमुकदिग्भागे श्रीनर्मदाया अमुकप्रदेशे देवब्राह्माणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य-समयतोऽमुक संख्यापरिमिते प्रवर्तमानवत्सरे प्रभवादिषष्ठिसम्वत्सराणां मध्ये अमुकनाम सम्वत्सरे, अमुकायने, अमुकगोले, अमुकऋतौ, अमुकमासे, अमुकपक्षे, अमुकतिथौ, अमुकवासरे, यथांशकलग्नमुहूर्तनक्षत्रायोगकरणान्वित.अमुकराशिस्थिते श्रीसूर्ये, अमुकराशिस्थिते चन्द्रे, अमुकराशिस्थे देवगुरौ, शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशिस्थानस्थितेषु, सत्सु एवं ग्रहगुणविशिष्टेऽस्मिन्शुभक्षणे अमुकगोत्रोऽमुकशर्म्मा वर्मा-गुप्त-दास सपत्नीकोऽहं
काम्य कर्म के लिए आगे यह संकल्प पढ़ें
श्रीअमुकदेवताप्रीत्यर्थम् अमुककामनया ब्राह्मणद्वारा कृतस्यामुकमन्त्रपुरश्चरणस्य सङ्गतासिद्धîर्थ- ममुकसंख्यया परिमितजपदशांश-होम-तद्दशांशतर्पण-तद्दशांश-ब्राह्मण-भोजन रूपं कर्म करिष्ये।
अथवा –
ममात्मनः श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य द्विपदचतुष्पदसहितस्य सर्वारिष्टनिरसनार्थं सर्वदा शुभफलप्राप्तिमनोभि- लषितसिद्धिपूर्वकम् अमुकदेवताप्रीत्यर्थं होमकर्माहं करिष्ये।
नवरात्री
में दुर्गा पूजन / अनुष्ठान तथा सप्तशती पाठ के लिए आवश्यकतानुसार यह संकल्प करें
/ करायें।
ममेह जन्मनि दुर्गाप्रीतिद्वारा
सर्वपापक्षयपूर्वक-दीर्घायुर्विपुलधन-पुत्रपौत्राद्यवच्छिन्न-सन्ततिवृद्धि-स्थिरलक्ष्मी-कीर्तिलाभ-शत्रुपराजय-सदभीष्ट-प्रमुखचतुर्विध-पुरुषार्थसिद्धयर्थं
संवत्सरसुखप्राप्तिकामः नवरात्रे प्रतिपदि विहितं कलशस्थापनं दुर्गापूजां
कुमारीपूजादिकर्म करिष्ये।
अक्षत सहित जल भूमि पर छोड़ें।
पुनः जल आदि लेकर- तदङ्गत्वेन निर्विध्नतासिद्धîर्थं श्रीगणपत्यादिपूजनम् आचार्यादिवरणञ्च करिष्ये। तत्रादौ दीपशंखघण्टाद्यर्चनं च करिष्ये इस संकल्प को पढ़े।
इसके बाद कर्मपात्र में थोड़ा गंगाजल छोड़कर गन्धाक्षत, पुष्प से पूजा कर प्रार्थना करें।
ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि! सरस्वति!।
नर्म्मदे! सिन्धु कावेरि! जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
अस्मिन् कलशे सर्वाणि तीर्थान्यावाहयामि नमस्करोमि।
कर्मपात्र का पूजन करके उसके जल से सभी पूजा वस्तुओं को सींचे।
घृतदीप-(ज्योति) पूजन-
वद्दिदैवत्याय दीपपात्राय नमः- इस मंत्र से पात्र की पूजा कर ईशान दिशा में घी का दीपक जलायें। इसे अक्षत के ऊपर रखकर ॐ अग्निर्ज्ज्योतिज्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्ज्योतिज्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा । अग्निर्व्वर्च्चो ज्ज्योतिर्व्वर्च्चः स्वाहा सूर्योव्वर्चोज्ज्योतिर्व्वर्च्चः स्वाहा ।। ज्ज्योतिः सूर्य्यः सूर्य्यो ज्ज्योतिः स्वाहा।
भो दीप देवरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत्।
यावत्पूजासमाप्तिः स्यात्तावदत्र स्थिरो भव।।
ॐ भूर्भुवः स्वः दीपस्थदेवतायै नमः आवाहयामि सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि।
गन्ध, अक्षत तथा पुष्प से दीपक की पूजा करें।
शंखपूजन
शंख को चन्दन से लेपकर तथा उसमें प्रणव मंत्र से जल भरें। देवता के वायीं ओर पुष्प पर रखकर
ॐ शंखं चन्द्रार्कदैवत्यं वरुणं चाधिदैवतम्।
पृष्ठे प्रजापतिं विद्यादग्रे गङ्गासरस्वती।।
त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया।
शंखे तिष्ठन्ति वै नित्यं तस्माच्छंखं प्रपूजयेत्।।
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे।
नमितः सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य! नमोऽस्तुते।।
पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शंखः प्रचोदयात्। ॐ भूर्भवः स्वः शंखस्थदेवतायै नमः शंखस्थदेवतामावाहयामि सर्वोपचारार्थे गन्धपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि।
इस मंत्र को पढ़कर आवाहन करें, सभी उपचार के लिए चन्दन, अक्षत तथा पुष्प अर्पित करके प्रणाम करें। शंख मुद्रा दिखायें।
शंख मुद्रा
दाहिने हाथ की मुट्ठी से बायें हाथ का
अंगूठा पकड़ कर मुष्टि को उत्तान कर अँगूठा फैलायें एवं दाहिने अंगूठा से स्पर्श
करने पर शंखमुद्रिका होती है।
गरुडमुद्रा
घण्टा पूजन-ॐ सर्ववाद्यमयीघण्टायै नमः,
आगमार्थन्तु देवानां गमनार्थन्तु रक्षसाम्।
कुरु घण्टे वरं नादं देवतास्थानसन्निधौ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः घण्टास्थाय गरुडाय नमः गरुडमावाहयामि सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि। गरुडमुद्रा दिखाकर घण्टा बजाऐं। दीपक के दाहिनी ओर स्थापित कर दें। ॐ गन्धर्वदैवत्याय धूपपात्राय नमः इस प्रकार धूपपात्र की पूजा कर स्थापना कर दें।
गणेश गौरी पूजन
हाथ में अक्षत लेकर-भगवान् गणेश का ध्यान करें-
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।
श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरतरुविमले
रत्नसिंहासनस्थम्।
दोर्भिः पाशाङ्कुशेष्टाभयधृतिविशदं चद्रमौलिं त्रिनेत्रं
ध्यायेच्छांत्यर्थमीशं गणपतिममलं
श्रीसमेतं प्रसन्नम्॥
गौरी का ध्यान -
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।
श्री गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि।
गणेश का आवाहन-
हाथ में अक्षत लेकर ॐ गणानां त्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ँ हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र ! समस्तविघ्नौघविनाशदक्ष !।
माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् ! नमस्ते।।
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
हाथ के अक्षत को गणेश जी पर चढ़ा दें। पुनः अक्षत लेकर गणेशजी की दाहिनी ओर गौरी जी का आवाहन करें।
गौरी का आवाहन -
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्।।
हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शङ्करप्रियाम्।
लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम्।।
ॐभूर्भुवः स्वः गौर्यै नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि,
पूजयामि च।
प्रतिष्ठा-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँ समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो 3 म्प्रतिष्ठ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
गणेशाम्बिके ! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्।
आसन-
ॐ सुमुखाय नमस्तुभ्यं गणाधिपतये नमः ।
गृहाणासनमीश त्वं विघ्नपुञ्जं निवारय ।।
प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।
प्रतिष्ठा करने के बाद आसन के लिए अक्षत अर्पित कर प्रणाम करें।
(देवता के बायीं ओर आसन देना चाहिये । फूल, काष्ठ, अक्षत, वस्त्र, कुश, चाँदी अथवा सुवर्ण में से किसी एक चीज का आसन अर्पण करे। द्रव्य के अभाव में अक्षत
अर्पण करे, किसी
भी उपचार के लिए अपेक्षित वस्तु नहीं मिलने पर फूल अर्पित करें)।
पाद्य, अर्ध्य, आचमनीय, स्नानीय और पुनराचमनीय हेतु जल
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।।
एतानि पाद्यार्घ्याचमनीय-स्नानीयपुनराचमनीयानि समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।
दुग्धस्नान-ॐ पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः पयस्वतीः। प्रदिशः सन्तु मह्यम्।।
कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पयः स्नानं समर्पयामि।
दधिस्नान - ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः।
सुरभि नो मुखाकरत्प्रण आयू ँ षि तारिषत्।।
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देव! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दधिस्नानं समर्पयामि।
(पुनः जल स्नान करायें।)
घृत स्नान - ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम।
अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम्।।
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, घृतस्नानं समर्पयामि।
(पुनः जल स्नान करायें।)
मधुस्नान -ॐ मधुव्वाताऽऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः मधुनक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ँ रजः।
मधुद्यौरस्तु नः पिता मधुमान्नो व्वनस्पतिर्म्मधुमाँऽ2 अस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तु नः।।
पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मधुस्नानं समर्पयामि।
(पुनः जल स्नान करायें।)
शर्करास्नान - ॐ अपा ँ रसमुद्वयस Ü सूर्ये सन्त ँ समाहितम्।
अपा Ủ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्।।
इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शर्करास्नानं समर्पयामि।
(पुनः जल स्नान करायें।)
पञ्चामृतस्नान - ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सश्रोतसः।
सरस्वती तु पञ्चधा सोदेशेऽभवत्सरित्।।
पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु।
शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि।
शुद्धोदकस्नान-ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्तऽआश्विनाः
श्येतः श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये
कर्णायामा अवलिप्तारौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः।।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोकस्नानं समर्पयामि।
आचमन - शुद्धोकदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(आचमन के लिए जल दें।)
वस्त्र-ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः।
तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो3 मनसा देवयन्तः।।
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहालङ्करणं वस्त्रामतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, वस्त्रां समर्पयामि।
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र के बाद आचमन के लिए जल दे।
उपवस्त्र-ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः।
वासो अग्ने विश्वरूप ँ सं व्ययस्व विभावसो।।
यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किञ्चिन्न सिध्यति।
उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मापकारकम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि।
उपवस्त्र न हो तो रक्त सूत्र अर्पित करे।
आचमन -उपवस्त्र के बाद आचमन के लिये जल दें।
यज्ञोपवीत -ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रां प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीततेनोपनह्यामि।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्।
उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर !।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
आचमन -यज्ञोपवीत के बाद आचमन के लिये जल दें।
चन्दन -ॐ त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः।
त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।।
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठ ! चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, चन्दनानुलेपनं समर्पयामि।
अक्षत -ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत।
अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी।।
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्पमाला -ॐ ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः।
अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्णवः।।
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयाहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पुष्पमालां समर्पयामि।
दूर्वा -ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि।
एवा नो दूर्वे प्रतनुसहश्रेण शतेन च।।
दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान्।
आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक !।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि।
सिन्दूर-ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः।।
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, सिन्दूरं समर्पयामि।
अबीर गुलाल आदि नाना परिमल द्रव्य-
ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परि पातु विश्वतः।।
अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम्।
नाना परिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वर!।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि।
सुगन्धिद्रव्य-ॐ अहिरिव0 इस पूर्वोक्त मंत्र से चढ़ाये
दिव्यगन्धसमायुक्तं महापरिमलाद्भुतम्।
गन्धद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं वै परिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि।
धूप- ॐ धूरसि धूर्व्व धूर्व्वन्तं धूर्व्वतं योऽस्मान् धूर्व्वति तं धूर्व्वयं वयं धूर्व्वामः। देवानामसि वद्दितम ँ सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम्।।
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, धूपमाघ्रापयामि।
दीप- ॐ अग्निर्ज्योतिज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा।
अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च स्वाहा।।
ज्योर्ति सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा।।
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वद्दिना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रौलौक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, दीपं दर्शयामि।
हस्तप्रक्षालन -‘ॐ हृषीकेशाय नमः’ कहकर हाथ धो ले।
नैवेद्य-पुष्प चढ़ाकर बायीं हाथ से पूजित घण्टा बजाते हुए।
ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष Ủ शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्राँत्तथा लोकाँ2 अकल्पयन्।।
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ समानाय स्वाहा।
ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा।
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्यं निवेदयामि।
नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
ऋतुफल - ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ँ हसः।।
इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि।
फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। जल अर्पित करे।
ॐ मध्ये-मध्ये पानीयं समर्पयामि।
उत्तरापोशनं समर्पयामि हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि मुखप्रक्षालनं समर्पयामि।
करोद्वर्तन-ॐ अ ँ शुना ते अ ँ शुः पृच्यतां परुषा परुः।
गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः।।
चन्दनं मलयोद्भुतं कस्तूर्यादिसमन्वितम्।
करोद्वर्तनकं देव गृहाण परमेश्वर।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, करोद्वर्तनकं चन्दनं समर्पयामि।
ताम्बूल -ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः।।
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, मुखवासार्थम् एलालवंगपूगीफलसहितं ताम्बूलं समर्पयामि।
(इलायची, लौंग-सुपारी के साथ ताम्बूल अर्पित करे।)
दक्षिणा-ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि। (द्रव्य दक्षिणा समर्पित करे।)
विशेषार्घ्य-ताम्रपात्र में जल भरकर चन्दन, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा और दक्षिणा रखकर अर्घ्यपात्र को हाथ में लेकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ेंः-
ॐ रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षक।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्।।
द्वैमातुर कृपासिन्धो षाण्मातुराग्रज प्रभो!।
वरदस्त्वं वरं देहि वाञ्छितं वाञ्छितार्थद।।
गृहाणार्घ्यमिमं देव सर्वदेवनमस्कृतम्।
अनेन सफलार्घ्येण फलदोऽस्तु सदा मम।
ॐ रक्षरक्ष से सदा मम तक पढ़कर गौरी गणेश जी
को विशेषार्घ अर्पण करें।
आरती-ॐ इद ँ हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर ँ सर्वगण ँ स्वस्तये।
आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि।
अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त।।
ॐ आ रात्रि पार्थिव ँ रजः पितुरप्रायि धामभिः।
दिवः सदा ँ सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः।।
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, अरार्तिकं समर्पयामि।
(कर्पूर की आरती करें, आरती के बाद जल गिरा दें।)
मन्त्र पुष्पांजलि-अंजली में पुष्प लेकर खड़े हो जायें।
ॐ मालतीमल्लिकाजाती- शतपत्रादिसंयुताम्।
पुष्पाञ्जलिं गृहाणेश तव पादयुगार्पितम्।।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च।
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।
अनेन गणेशः अम्बिका च प्रयेताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। (पुष्पाञ्जलि अर्पित करे।)
प्रदक्षिणा -ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः।
तेषा ँ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि।
(प्रदक्षिणा करे।)
प्रार्थना।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय। निर्विविघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
अनया पूजया सिद्धि-बुद्धि-सहितः श्रीमहागणपतिः साङ्गः सपरिवारः प्रीयताम्।। श्रीविघ्नराजप्रसादात्कर्तव्यामुककर्मनिर्विघ्नसमाप्तिश्चास्तु।
ब्लॉग लेखक- जगदानन्द झा, लखनऊ
इसके आगे आचार्य वरण, भूतोत्सरण तथा रक्षाबन्धन करें। आगे की विधि कलश स्थापन पर चटका लगाकर इन विधियों को देखें।
Radhey radhey
जवाब देंहटाएंBhut hi achcha
जवाब देंहटाएंसुऩ्दर
जवाब देंहटाएंAti sundar
हटाएंAti sundar
हटाएंअच्छा लगा
हटाएंअति सुंदर एवं स्पष्ट
हटाएंBahut Sundar prastuti
हटाएंबहुत सुन्दर, वाह
जवाब देंहटाएंGuru ji audio kese2 sune
जवाब देंहटाएंBhai ji youtube se he mill pyaga sunne ko tooo. Hryom bhai ji
हटाएंबहोत ही सुंदर और महत्वपूर्ण विधी मंत्रोच्चार के साथ बताया बहोत धन्यवाद जी
जवाब देंहटाएंsubhashitm
जवाब देंहटाएंVery nice ji aap hame aise hi margdarshan karte rahe
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंwonderful ji pl call 8770300255
जवाब देंहटाएंSuperb guru dev
जवाब देंहटाएंअद्भुत पूजनं
जवाब देंहटाएंGuru ji bahut hi sunder vidhi apne batai ha
जवाब देंहटाएंBahut achha laga jha ji
जवाब देंहटाएंआप के पास देवपूजा विधि के सभी पार्ट की pdf हो तो प्रदान करने की कृपा करे मेरे 9755216599 व्हाट्सएप में भेज दीजिये।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंPunya air dharm ka kàam
जवाब देंहटाएंJitna varnan kiya jaye kam hai bahut sundar
जवाब देंहटाएंकृपया इसे पीडीएफ के रूप में अपलोड करें धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसत्यनारायण स्वामी का संपूर्ण पूजन विधि यदि पीडीएफ में हो तो देने की कृपा करें. साथ में हिन्दी में टिप्पणी हो सके तो देने की भी कृपा करें.
जवाब देंहटाएंVery good bahut sunder
जवाब देंहटाएंjabr jast guru dev
जवाब देंहटाएंVery good post
जवाब देंहटाएंBahut hi Achcha aisa hi Puja Vidhi Vidhan PDF Jarur Karen dhanyvad sir
जवाब देंहटाएंSubh vivah Bihar ka vidhi vidhan mantra ke saath PDF jarur Mera no.7020873904 par bheje
जवाब देंहटाएंPDF mai भेजने की kripya kare mera नो hai 8057422189
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर....
जवाब देंहटाएंSir shiv ji ko bhashm arpit krne ka mantra btaye
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।।।।मुझे कृपया षोडश मातृमण्डल के ऋषिछन्द कहिहे
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंउत्तम
जवाब देंहटाएंआपका सादर आभार
जवाब देंहटाएंजय हो बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंनमस्ते
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
श्रीमानजी यदि आपके पास देवपूजा विधि के पार्टों का pdf हो तो कृपा करके मेरे व्हाट्सएप नंबर 8416944049 पर भेजने की कृपा करें ।
जवाब देंहटाएंआपकी मुझपर महान कृपा होगी।
बहुत सुन्दर 🙏🙏
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंगूरू जी अगर शंकरभगवान और माँ दूर्गा की पूरी पूजा विधी अभीषेक तक पीडीएफ है तो भेजने का कष्ट करे.
जवाब देंहटाएंआपका शिष्य
बहुत सुंदर, आभार
जवाब देंहटाएंजय श्री राम
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति आपके दाओरा
नारायण जी। याद नहीं हो पा रहा है
कुछ इसके लिए आप मार्ग दरसन्न करे।।
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंसंस्कृत समाज आपका ऋणी रहेगा आदरणीय🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पूजा विधि धन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएंइस कि pdf मिल जाये सोने पे सुहागा
जवाब देंहटाएंpdf डाउनलोड करने के बाद खो सकता है। मेरा ब्लॉग याद रखें यहाँ अन्य पूजाओं की विधियां भी दी गयी है।
हटाएंAti uttam sabhar dhanyvad
हटाएंshri man ji kya on line laptop par padh kar pooja karen
हटाएंबहुत ही सुन्दर लेखन व संपादन
जवाब देंहटाएंAtii sundr guru ji
जवाब देंहटाएंAti sundar
जवाब देंहटाएंगुरु जी ईसका उच्चारण करते हुवे एक पीडिएफ बना कर डालिए। जिससे उच्चारण में गलती न हो ।
जवाब देंहटाएंगुरु जी नमस्कार इसका पिडिएफ है तो उसे भी भेजने की कृपा करें जिससे उच्चारण में गलती नहीं हो । और सभी,जो इक्छुक है उन्हें आसानी हो आपकी कृपा होगी
जवाब देंहटाएंबहु शोभनम् महोदय !
जवाब देंहटाएंअच्छा है
जवाब देंहटाएंVery good
जवाब देंहटाएंइस पुस्तक को केसे प्राप्त करे महोदय
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंक्या हम आपके ब्लॉग के पूजा विधि को अपने ब्लॉग या website पे उपयोग कर सकते हैं ?
आपका बहुत बहुत आभार होगा अगर आप हमें इसको इस्तेमाल करने दे ।
धन्यवाद
मेरे ब्लॉग के लिंक का प्रयोग कर लें। यह अच्छा होगा,क्योंकि समय समय लेख को संशोधित एवं परिवर्धित किया जाता है। कॉपी करने पर मूल स्रोत का उल्लेख करें।
हटाएंBahut sundar sikhne ka avasar
जवाब देंहटाएंBahut sundar aapne to samast kitab hi yaha jaise vidhi sahit di ho ..sadar dhanyawad ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा '
जवाब देंहटाएंसर ! क्या आप मुझे "देव पूजाविधि " के सभी भाग की PDF
भेजने की कृपा करेंगे तो आपका में आभारी रहुंगा ।
प्रश्न: किसी भी भी पूजा में संकल्प क्यों ले अगर मन ही संकल्पित हो श्रद्धा भक्ति हो विस्तृत जानकारी दें?
जवाब देंहटाएंसंकल्प के प्रारंभ में विष्णु शब्द तीन बार क्यों बोला जाता है एक बार क्यों नहीं विस्तृत एवं सटीक उत्तर दें
जवाब देंहटाएंक्योंकि विष्णु ही तीनों कालों में सत्य हैं, वे ही थे, वे ही हैं और वे ही रहेंगे |
हटाएंइसलिए 3 बार उच्चारण करके उन्हें तीनों कालों के लिए साक्षी बनाया जाता है|
Very good knowledge
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंएक कार्य हेतु दो दो मंत्र लिखकर सभी के लिए आसान बना दिया है
बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंजो पूजा विधि नहीं जानता हो, और पूजा को विधि से करना चाहता हो, उनके लिए आसान हो गया।
बहुत-बहुत धन्यवाद
वैवाहिक जीवन मे कलह व संबंध विच्छेद से बचने के उपाय बताए।
जवाब देंहटाएंSadar naman
जवाब देंहटाएंAti sunder vyakhya ki hai aap ne.
धन्यवाद जी
जवाब देंहटाएंपार्थिव शिवलिंग पूजन विधि मंत्र सहित उपलब्ध करावे,धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंशिव पूजन तथा पार्थिव शिव पूजन दोनों इस ब्लॉग में विस्तार पूर्वक दिया गया है। ब्लॉग के सर्च इंजन द्वारा खोजें अथवा गूगल में पौरोहित्यम् संस्कृतभाषी लिखकर खोजें।
हटाएंआप का प्रयास श्लाघनीय है श्रीमन
जवाब देंहटाएंउत्तम , यदि आप चाहें तो मैं भी कुछ लेख-सामग्री आपके ब्लॉग में भेज सकता हूँ।
जवाब देंहटाएंbhupeshinformative@gmail.com
भेजिये।
हटाएंAcchi bidhi he par stort nHi he isme koe
जवाब देंहटाएंसर ये वाला पूजन मंत्र सब और विधि हमको आप से चाहिए इसे डाउनलोड करने का ऑप्शन नहीं है तो कृपया कर के आप हमें प्रदान करें 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय कार्य
जवाब देंहटाएंSir, please create your own youtube channel and add this as a video. You will get huge support.
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंजी नमस्कार, यदि pdf हो तो भेजने का कष्ट करें, मेरा email skhitechled@gmail.com
जवाब देंहटाएंअद्भुत संग्रह ।
जवाब देंहटाएं