नायिका भेद

नायिका तीन प्रकार की होती है-
1. स्वस्त्री =स्वकीय
2. परस्त्री =अन्या=परकीया
3. साधारण स्त्री 
 उत्तर-रामचरितम्की सीता स्वीया है, ‘मृच्छकटिकम्की वसन्तसेना सामान्या है।
1. स्वस्त्री =स्वकीय
        स्वीयाविभाग-गर्व सामान्य लक्षणः- शील सद्वृतम्,  एवं आर्जव (ऋजुता, सरलता) लज्जा, पुरूषोपचार-निपुणता, पातिव्रत्य, अकुटिलता आदि गुणों से युक्त स्वीया के तीन विभाग किये गये है-मुग्धा, मध्या एवं प्रगल्भा। शीलवती स्वीया का उदाहरण देखें -
1.         मुक्ता फलेेषुच्छायायास्तरलत्वमिवान्तरा।
            प्रतिभाति यंदगेषु तल्लावण्यमिहोच्यते।।

2.         एते वयममी दारा कन्येयं कुलजीवितम्।
            बूत येनात्र वः कार्यमनास्था बाह्वस्तुषु।।
बालिकाओं के यौवन, लावण्य, विभ्रम  प्रणयक्रीड़ा,आदि कामचेष्टायें प्रिय के प्रवसित  विदेशस्थ होने पर प्रवसित=दूरीभूत  होते एवं घर आने पर आ जाते हैं। 
  वात्सायन-कामशास्त्र
नायक-नायिका-भेद का सम्बन्ध काम प्रवाह से पृथक नहीं किया जा सकता। कामशास्त्र-विषय-निरूपक ग्रन्थों-कामसूत्र, रतिहस्य और अनंगरंग में नायिका की समीचीन चर्चा है।  यहां आचार्यों ने नायिका का लक्षण नहीं निरूपित किया। अपितु गुण, प्रकृति और कर्म के परिप्रेक्ष्य में संक्षेपतः भेद-कथन से ही विश्रान्ति ले ली है। नायिकास्तिस्त्रः कन्या पुनभूवेश्या च (कामसूत्र-वात्स्यायन/1-45)। नायिका तीन प्रकार की-कन्या, पुनर्भू एवं वेश्या। इन तीनों नायिकाओं के फिर दो-दो भेद-पुत्रफलदा कन्या, सुखफलदा कन्या, उपभुक्ता पुनर्भू, अनुपभुक्ता पुनर्भू तथा रूपजीवा वेश्या, गणिका वेश्या। रतिरहस्य तथा अनंगरंग में पझिनी, चित्रिणी, शंखिनी एवं हस्तिनी संज्ञक नायिकाओं के लक्षण निरूपित किये गये। रहिरहस्य के कर्ता ने गुणानुक्रम में इनका नामोल्लेख किया है-

         पद्मिनीं तदनु चित्रणीं ततः शंखिनीं तदनु हस्तिनीं विदुः।
        उत्तमा प्रथमभाषिता ततो हीयते युवतिरूत्तरोत्तरम्।।

            कामसूत्र में जहां वात्स्यायन ने शश, वृष तथा अश्व तीन प्रकार के नायकों की गणना की वहीं पर उन्होंने मृगी, बडवा तथा हस्तिनी तीन नायिकाएं भी परिगणित की हैं।
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