आचार्य को उत्तराभिमुख या पूर्वाभिमुख बैठाकर यजमान अपने दाहिने हाथ में गन्ध, पुष्प, ताम्बूल,
कमण्डलु, अङ्गूठी, आसन,
माला तथा वस्त्रों को लेकर देश-काल का उच्चारण करके ॐ तत्सत् अमुकगोत्र
प्रवरशाखान्वितयजमानोऽहम् अमुकगोत्रप्रवरशाखाध्यायिनममुकनामाचार्यम् अस्मिन् कर्तव्ये
अमुकयागाख्ये कर्मणि दास्यमानैः एभिर्वरणद्रव्यैः आचार्यत्वेन त्वामहं वृणे। कहकर ब्राह्मण का वरण करे। ब्राह्मण को वृतोस्मि' कहकर यजमान को प्रतिवचन देना चाहिये। फिर यजमान ब्राह्मण से या ब्राह्मणों से 'यथाविहितं कर्म कुरु' ऐसा कहे। फिर ब्राह्मण 'यथाज्ञानं करवाणि' ऐसा प्रतिवचन कहे। प्रतिवचन के अनन्तर ब्राह्मण को गन्धादि देकर पूजित करे।
पुनः आचार्य के हाथ में निम्नलिखित मंत्र पढ़कर वरण
हेतु मंगल सूत्र बांधे।
ॐ व्रतेन
दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया
सत्यमाप्यते।।नवरात्री दुर्गामहापूजा में
ब्राह्मणों के वरण हेतु संकल्प - 'अद्यामुकगोत्रो
शर्माहं (वर्माहम् गुप्ताहं वा) चतुर्विधपुरुषार्थसिद्ध्यर्थं संवत्सरसुखप्राप्तिकामो
दुर्गाप्रीतिकामो वा अद्यप्रभृति महानवमीपर्यन्तं प्रत्यहं वार्षिकशरत्कालीन (वा
वासन्तीयकालीन) दुर्गामहापूजापूर्वकं नवार्णमन्त्रजपसहितं
चण्डीसप्तशतीपाठकरणार्थं एभिर्गन्ध -
पुष्प, ताम्बूल, कमण्डलु, मुद्रिकासनमालावासोभिरमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणं भवन्तं वृणे' यह संकल्प करे।
पुनः वरण द्रव्य लेकर निम्न संकल्प पूर्वक ऋत्विक् का वरण करें। ॐ तत्स.
अस्मिन् अमुककर्मणि ऋत्विग्त्वेन त्वामहं वृणे। ऋत्विक् कहे-वृत्तोऽस्मि।
पुनः
प्रार्थना-
अस्य यागस्य निष्पत्तौ भवन्तोऽभ्यर्चिता मया।
सुप्रसन्नैः प्रकर्तव्यं
कर्मेदं विधिपूर्वकम्।।
पुनः ऋत्विक् के साथ आचार्य अपने आसन पर बैठकर आचमन,
प्राणायाम कर सङ्कल्प करें। ॐ तत्स. अस्मिन् कर्मणि यजमानेन वृतोऽहं
आचार्य-(ऋत्विक्)-कर्म करिष्ये।
दिग् रक्षण
बायें हाथ में
पीली सरसों अथवा अक्षत लेकर दाहिने हाथ से छिड़कते हुए दिग्रक्षण करे। (यदि स्वस्तिवाचन के समय दिग्रक्षण तथा भूतोत्सरण कर लिया गया हो तो इसकी आवश्यकता नहीं है।)
फिर बायें हाथ में श्वेत सरसों लेकर 'ॐ अपसर्पन्तु ये भूताः' इत्यादि श्लोक कहकर सब दिशाओं में सरसों बिखेर कर
'सूर्यः
सोमो यमः कालः सन्ध्ये भूतान्यहः क्षपाः।
पवनो दिक्पतिर्भूमिराकाशं खेचरामराः ।
ब्रह्मशासनमास्थाय कुरुध्वमिह सन्निधिम्'
अथवा
ॐ पूर्वे रक्षतु
गोविन्द आग्नेय्यां गरुडध्वजः।
याम्ये रक्षतु वाराहो
नारसिंहस्तु नैऋते।।
केशवो वारुणीं रक्षेद्
वायव्यां मधुसूदनः।
उत्तरे
श्रीधरोरक्षेदीशाने च गदाधरः।।
ऊर्ध्वं गोवर्द्धनो
रक्षेदधस्तात्तु त्रिविक्रमः।
एवं दश दिशो
रक्षेद्वासुदेवो जनार्दनः।।
यज्ञाग्रे पातु मा शंखः
पृष्ठे पद्मन्तु रक्षतु।
वामपाश्वे गदा
रक्षेद्दक्षिणे च सुदर्शनः।।
उपेन्द्रः
पातु ब्राह्मणमाचार्यं पातुवामनः।
अच्युतः
पातु ऋग्वेदं यजुर्वेदमधोक्षजः।।
कृष्णो
रक्षतु सामाख्यमथर्वाणन्तु माधवः।
विप्रा ये
चोपदेष्टारस्तांश्च दामोदरोऽवतु।।
यजमानं
सपत्नीक पुण्डरीकविलोचनः।
रक्षाहीनन्तु
यत्स्थानं तत्सर्वं रक्षताद्धरिः।।
यह श्लोक बोलकर सरसों या
अक्षत सभी दिशाओं में छींट कर दिग्बन्ध करना चाहिये।
भूतोत्सारण
ॐ अपसर्पन्तु
ते भूता ये भूृता भूमि संस्थिताः।
ये भूता
विध्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।
अपक्रामन्तु भूतानि
पिशाचाः सर्वतो दिशम्।
सर्वेषामविरोधेन
शान्तिकर्म समारभेत्।।
उपर्युक्त
श्लोक पढ़कर बायें हाथ, पाँव को तीन बार भूमि पर पटकें एवं भूतों को भगायें।
रक्षाबन्धन
यजमान तीन
धागा वाला लाल सूत्र एवं थोड़ा द्रव्य बायें हाथ में लेकर एवं दाहिने हाथ से ढककर
‘ॐ हुं फट्’ यह मंत्र तीन बार
करके उस सूत्र को गणपति के चरणों में निवेदित करें। पुनः गन्ध पुष्प से उसकी पूजा
करें। फिर यह सूत्र गणपति के अनुग्रह से प्राप्त हुआ ऐसा समझते हुए अन्य देवों को
भी निवेदित करें। पुनः आचार्य सहित अन्य विप्रों के सीधे दाहिने हाथ में निम्न मंत्र
से बांधे -
ॐ व्रतेन
दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया
सत्यमाप्यते।।
उसके बाद
आचार्य बायें हाथ में
अक्षत,
पुष्प, द्रव्य तथा मौली लेकर दाहिने हाथ से ढ़ककर नीचे लिखे मन्त्र
से अभिमन्त्रित करें ।
ॐ गणाधिपं
नमस्कृत्य नमस्कृत्य पितामहम् । विष्णुं रुद्रं श्रियं देवीं वन्दे भक्त्या
सरस्वतीम् ॥
स्थानक्षेत्रं
नमस्कृत्य दिननाथं निशाकरम् । धरणीगर्भसम्भूतं शशिपुत्रं बृहस्पतिम् ॥
दैत्याचार्य
नमस्कृत्य सूर्यपुत्रं महाग्रहम् । राहुं केतुं नमस्कृत्य यज्ञारम्भे विशेषत: ॥
शक्राद्याः
देवता: सर्वा नस्कृत्य मुनीन् तथा । गर्गं मुनिं नमस्कृत्य नारदं मुनिसत्तमम् ॥
वसिष्ठं मुनिशार्दूलं
विश्वामित्रं च महामुनिम् । व्यासं मुनिं नमस्कृत्य सर्वशास्त्रविशारदम् ।
विद्याधिका ये
मुनय आचार्याश्च तपोधना: । ते सर्वे मम यज्ञस्य रक्षां कुर्वन्तु विघ्नतः॥
प्राचीं
रक्षतु गोविन्द आग्नेय्यीं गरुडध्वज: । यामीं रक्षतु वाराहो नारसिंहस्तु
नैर्ऋतिम्।
केशवो वारुणीं
रक्षेद् वायवीं मधुसूदनः । उदीचीं श्रीधरो रक्षेदेशानीं तु गदाधरः ।।
ऊर्ध्वं
गोवर्धनधरो ह्यधस्ताद्धरणीधरः । एवं दशदिशो रक्षेद् वासुदेवो जनार्दनः ।।
यज्ञाग्रे
रक्षताच्छङ्खः पृष्ठे पद्मं तथोत्तरम् । वामपार्श्वे गदा रक्षेद् दक्षिणे तु
सुदर्शनः ।।
उपेन्द्रः
पातु ब्रह्माणमाचार्यं पातु वामनः । अच्युतः पातु ऋग्वेदं यजुर्वेदमधोक्षजः ।।
कृष्णो रक्षतु
सामानि ह्यथर्वं माधवस्तथा । उपविष्टाश्च विप्रास्तेऽनिरुद्धेन सुरक्षिताः ।
यजमानं
सपत्नीकं पुण्डरीकविलोचनः । रक्षाहीनं तु यत् स्थानं तत् सर्वं रक्षताद्धरिः ।।
रक्षा सूत्र
को अभिमन्त्रित करने के पश्चात् यजमान के दाहिने हाथ में और यजमान पत्नी के बांयें हाथ में निम्न मंत्र
पढ़ते हुए अभिमन्त्रित रक्षा सूत्र बांधें।
मन्त्र- ॐ यदाबध्नं
दाक्षायणा हिरण्य Ủ शतानीकाय सुमनस्यमाना। तन्म आवध्नामि शतशारदायायुष्मांजरदष्टिर्यथासम्।।
ॐ येन
बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन
त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल
मा चल।।
वरुण कलश स्थापन
हाथ में गन्ध,
अक्षत और पुष्प लेकर पृथ्वी की पूजा करें-
ॐ भूरसि
भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ Ủ
ह पृथिवीं माहि Ủ सीः।
कलश स्थापित
किये जाने वाली भूमि पर रोली से अष्टदल कमल बनाकर उत्तान हाथों से भूमि का स्पर्श
करें-
ॐ महीद्यौः पृथिवी चन इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतान्नो भरीमभिः।।
पुनः धान्यमसि
मंत्र से जौ रखें-
ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान्प्राणायत्त्वोदानायत्वा व्यानायत्वा
दीर्घानुप्रसितिमायुषेन्धान्देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृभ्णात्वच्छिदे्रेण
पाणिना चक्षुषे त्वां महीनां पयोसि।।
कलश में
स्वस्तिक का चिह्न बनाकर तीन धागेवाली मौली को उसमें लपेंटे। पुनः धातु या मिट्टी
के कलश को जौ के ऊपर ‘आ जिघ्र’ इस मंत्र को पढ़कर
स्थापित करें।
ॐ आजिघ्र कलशं
मह्या त्वा विशत्विंदवः।
पुनरूर्ज्जा निवर्तस्वसानः। सहश्रन्धुक्ष्वोरुधारा
पयस्वती पुनर्म्मा विशताद्रयिः।।
कलश में जल डालें -
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि
वरुणस्य स्कम्भसर्जनीस्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद।
इसके बाद कलश में क्रमशः मंत्र पढ़ते हुए अधोलिखित पूजा सामग्री को डालें।
कलश में गन्ध (रोरी) डालें -
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां
तामिहोपह्नये श्रियम्।
चन्दन लेपकर
सर्वौषधि डालें।
ॐ या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रिायुगं पुरा।
मनै नु
बभ्रूणामहँ शतं धामानि सप्त च।।
धान्य डालें-
ॐ धान्यमसि धिनुहि। इस पूर्वोक्त मंत्र से।
दूर्वा डालें-
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि।
एवानो दूर्वे प्रतनु सहश्रेण
शतेन च।।
पंचपल्लव डालें-
ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता गोभाज इत्किला सथ यत्सनवथ
पूरुषम्।।
सप्तमृत्तिका डालें-
ॐ स्योना पृथिविनो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म्म सप्रथाः।
पूगीफल डालें-
ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः।
बृहस्पति प्रसूतास्ता नो
मुञ्चन्त्व Ủ हसः।।
पंचरत्न डालें-
ॐ परिवाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् दधद्रत्नानि दाशुषे।।
दक्षिणा डालें-
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
सदाधार पृथिवीं
द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
पवित्र कुश डालें-
ॐ पवित्रोस्थो वैष्णव्यौ सविर्तुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण
सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्।
मौन रहकर
पुष्प डालें।
लाल वस्त्र या मौली कण्ठ में लपेटें-
ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स
उश्रेयान् भवति जायमानः।
तं धीरासः कवय उन्नयन्ति साध्यो मनसा देवयन्तः।।
चावल से भरा
पूर्ण पात्र कलश के ऊपर रखें
ॐ पूर्णादर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत।
वस्नेव
विक्रीणावहा इषमूर्ज र्ठ. शतक्रतो।।
रक्त वस्त्र
से लिपटा नारियल-ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहो रात्रो पार्श्वे नक्षत्राणि
रुपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणामुम्म इषाण सर्वलोकम्म इषाण।।
वरुण का आवाहन-
ॐ तत्वायामि
ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः।
अहेडमानो वरुणेह बोद्ध्युरुश र्ठ. समान आयुः प्रमोषीः।।
ॐ भूर्भुवः स्वः अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकम् आवाहयामि स्थापयामि।
ध्यानम्- वरुणः पाशभूत्सौम्यः
प्रतीच्यां मकराश्रयः।
पाशहस्तात्मको देवो जलराश्यधिपो महान्।।
हाथ में अक्षत
पुष्प लेकर प्रतिष्ठा करें-
प्रतिष्ठा-ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं
यज्ञ र्ठ. समिमं दधातु।
विश्वेदेवा स इह मादयन्तामों प्रतिष्ठ।
ॐ वरुणाय नमः
सुप्रतिष्ठितो वरदो भव।यह पढ़कर कलश में वरुण का
आवाहन कर पुनः ॐ भूर्भुवः
स्वः अपां पतये वरुणाय नमः इस मंत्र से पञ्चोपचार या षोडशोपचार पूजन करें।
पुष्पाञ्जलि
ॐ तत्त्वायामि
इस पूर्वोक्त मन्त्र से पुष्पाञ्जलि अर्पित करे।
ॐ अनेन पूजनेन वरुणः प्रीयताम् जल छोड़ दें।
गङ्गा आदि नदियों का आवाहन-ॐ
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं
दुरितक्षयकारकाः।।
इस श्लोक को पढ़कर कलश में सभी तीर्थों
का आवाहन करें।
पुनः कलश पर
अक्षत छींटें।-ॐ ऋग्वेदाय नमः। ॐ यजुर्वेदाय नमः। ॐ सामवेदाय नमः। ॐ अथर्ववेदाय
नमः। ॐ कलशाय नमः। ॐ रुद्राय नमः। ॐ समुद्राय नमः। ॐ गङ्गायै नमः। ॐ यमुनायै नमः। ॐ
सरस्वत्यै नमः। ॐ कलशकुम्भाय नमः।
अनामिका से
कलश का स्पर्श कर प्रार्थना करें।
ॐ कलशस्य
मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले
त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।
कुक्षौ तु
सागराः सप्त सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ
यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः।।
अंगैश्च
सहिताः सर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री
सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।
आयान्तु
यजमानस्य दुरितक्षयकारकाः।।
ततः
गायत्र्यादिभ्यो नमः इस मंत्र से पञ्चोपचार पूजन करें।
अधोलिखित श्लोक पढ़ते हुए कलश को प्रणाम करें-
ॐ देवदानवसम्वादे
मथ्यमाने महोदधौ।
उत्पन्नोसि
तदा कुम्भ विघृतो विष्णुना स्वयम्।।
त्वत्तोये
सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः।
त्वयि
तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः।।
शिवः स्वयं
त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः।
आदित्या
वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः।।
त्वयि
तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदः।
त्वत्प्रसादादिदं
कर्म कर्तुमीहे जलोद्भव।
सान्निध्यं
कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा।।
नमो नमस्ते
स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्लाय।
सुपाशहस्ताय
झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते।।
जल लेकर-ॐ अनया
पूजया कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्ताम् यह पढ़कर जल छोड़ दें।
इति
कलशपूजाविधि।
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंइसे डाउनलोड करने योग्य बनाने की विधि बता दें। क्या इसका पीडीएफ बनाकर उपलब्ध कराना होगा?
हटाएंPdf ki subidha rakhein ... Please taki hum download kar sakein. Sahi jankari ke liye shukriya.
हटाएंअति सुन्दर भाई अपनी पोस्ट को डाउनलोड के योग्य बनाएं
जवाब देंहटाएंपंडित जी बहुत बढ़िया लिखा है आपने इसने वाले के लिए बहुत बढ़िया की कृपया इसका पीडीएफ बनाकर डालें
जवाब देंहटाएंक्या इसका पुस्तक उपलब्ध है।
जवाब देंहटाएंइसका पुस्तक नहीं है। पुस्तक ही बनाना होता तो यहाँ नहीं लिखता ।
हटाएंशुद्ध लिखावट के साथ बहुत ही उपयोगी है यह
जवाब देंहटाएंBahi shiv pooja nahi likhi.aur shuru se ghanta shankh poojan nahi diyA isme kyipa karke wo bhi add kare
जवाब देंहटाएंयहाँ शिव पूजा भी लिखी गयी है। दो चार दिन धैर्य पूर्वक पूजा से सम्बन्धित पोस्ट को
जवाब देंहटाएंखोजें तथा पढ़ें। आपको शिव पूजा से लेकर सभी तरह की पूजा पद्धति यहाँ मिलेगी। इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य शास्त्र ग्रन्थों का अध्ययन अध्यापन है। उसके आनुषंगिक रूप में पूजा विधि को यहाँ लिख दिया गया है। अतः यह गौण है।