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संगणकीकृतं बौद्धसंस्कृतत्रिपिटकम्
http://www.dsbcproject.org/

ई पीजी पाठशाला (संस्कृत)
http://epgp.inflibnet.ac.in/Home/ViewSubject?catid=36

पाणिनीय-व्याकरणम् नवीना दृष्टिः
https://sites.google.com/site/samskritavyakaranam/


यहाँ पर Resources तथा Tools मीनू बटन अच्छा है।
http://learnsanskrit.org/

संस्कृत संसाधनों के लिए पोर्टल
https://sanskrit.inria.fr/portal.html

संस्कृत पुस्तकालय एक डिजिटल पुस्तकालय है। यह  डिजिटल प्राथमिक शिक्षा और कम्प्यूटरीकृत अनुसंधान और अध्ययन उपकरणों तक पहुँच प्रदान करने और उनकी उपयोगिता को अधिकतम करने के लिए संस्कृत में शिक्षा और अनुसंधान की सुविधा के लिए समर्पित है।
https://sanskritlibrary.org/


इसका डीसीएस कॉर्पस मीनू शोधार्थियों के लिए उपयोगी है।

http://www.sanskrit-linguistics.org/dcs/index.php

Digital South Asia Library
https://dsal.uchicago.edu/

sanskritworld इस लिंक में देवनागरी यूनिकोड प्रारूप में वैदिक साहित्य के 46, महाकाव्य के 10, पुराणों के 25, धार्मिक साहित्य के 229, काव्य के 82, शास्त्रों के 253 पुस्तकें उपलब्ध हैं। यहाँ अलंकार ,समास आदि पर भी सामग्री उपलब्ध है। लेखक के नाम से भी पुस्तकों को खोजने की सुविधा उपलब्ध है।

https://www.sanskritworld.in/


इस लिंक पर xml टैग किया हुआ 44 संस्कृत की पुस्तकें उपलब्ध हैं।

http://showcases.exist-db.org/exist/apps/sarit-pm/works/

इस लिंक में सप्त ककार के माध्यम से अनेक पुस्तकों की व्याख्या मिलती है। यहाँ दाक्षिणात्य देवताओं के विडियो भी है।
https://nivedita2015.wordpress.com/

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति का यूट्यूब चैनल

https://www.youtube.com/c/RSVidyapeethaTirupatiAadhikarikam/videos


https://vedicscriptures.in/ वेद की इस वेबसाइट पर चारों वेदों के सम्पूर्ण 20,380 मन्त्र भाग उपलब्ध हैं। चारों वेदों के मन्त्रों का स्वरुप स्वर-चिन्हों सहित भी उपलब्ध है। मन्त्रों के पद-पाठ भी स्वर-चिन्हों सहित भी उपलब्ध है। प्रत्येक वेद के भाष्य विभन्न भाषाओँ में उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। इस वेबसाइट की डाटाबेस में अलग-अलग 30 विद्वानों के 56 भाष्य उपलब्ध हैं।


संस्कृत वल्ड । इस लिंक में वैदिक साहित्य के 46 महाकाव्य के 10, पुराण के 21, धार्मिक साहित्य के 229, काव्य  के 82,  शास्त्र के 253 पुस्तकें यूनीकोड में है। यहाँ लेखक क्रम से भी पुस्तकें खोज सकते हैं।

चारों वेद (संहिता), इसकी शाखा, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, सभी वेदांग, उपवेद, धार्मिक संस्कार सहित इन विषयों से सम्बन्धित अन्य अनेक प्रकार की सामग्री को इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने डिजिटल रूप दिया है। इसके माध्यम से हम अलग-अलग संहिताओं के अलग- अलग पाठ  प्रणाली को सुन सकते हैं। यहाँ बैदिक साहित्य के विभिन्न विषयों पर व्याख्यान भी उपलब्ध है, जो हमें इन साहित्यों को ठीक से समझने में मदद करता है। संस्कृत विद्या को समझने के लिए आज हमारे आसपास डिजिटल रूप में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।

http://vedicheritage.gov.in/hi/

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान। यहाँ सभी प्रकार के पाठ्यक्रमों का निःशुल्क ऑनलाइन पाठ्यक्रम उपलब्ध है।

https://www.nios.ac.in/

ई- भारती सम्पत्   इस जालपुट पर 1263 पुस्तकें यूनीकोड में स्थापित है। यहाँ इनके PDF भी है। पुस्तक खोज सुविधा होम पेज पर दिया गया है। कुछ पुस्तकों के यूनीकोड संशोधन का कार्य चल रहा है।
https://ebharatisampat.in/

Reading  the Vedic Literature in Sanskrit  महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय के इस जालपुट पर वेद, उपवेद, वेदाङ्ग, स्मृति, पुराण, इतिहास आदि की PDF पुस्तकें उपलब्ध हैं।

https://vedicreserve.miu.edu/

यहाँ पर जैन शिक्षा से जुड़ी सामग्री मिलती है। BROWESE मीनू पर जाने पर अनेक प्रकार की पुस्तकों का संग्रह मिलता है।
https://jainqq.org/

द जैन फाउन्डेशन पर जैन साहित्य, पत्रिकाएं, पर्व, मुनि, योग यात्रा आदि पर डिजिटल सामग्री उपलब्ध है।
https://www.jainfoundation.in/

महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान (मध्य प्रदेश शासन, स्कूल शिक्षा विभाग) पूर्वमध्यमा तथा उत्तर मध्यमा की शिक्षा हेतु गठित। इसकी स्थापना वर्ष 2008 में की गयी।

इसमें फान्ट परावर्तक से सम्बन्धित अनेक उपयोगी लिंक संग्रहीत हैं।

ऑनलाइन संस्कृत शब्दकोश। इस Cologne Digital Sanskrit Dictionaries लिंक पर मोनियर विलियम, शब्दकल्पद्रुम, वाचस्पत्यम् आदि अनेक शब्दकोश को ऑनलाइन किया गया है।

Learn Sanskrit Online : vyoma-samskrta-pathasala इस यूट्यूब लिंक पर व्याकरण, गीता, साहित्य, सुभाषित, कवि परिचय, दर्शन आदि विषयों पर प्रभूत मात्रा में विडियो उपलब्ध है।

https://www.wisdomlib.org/ इस वेबसाइट पर पुराण, वेद, बौद्ध साहित्य आदि अंग्रेजी में उपलब्ध है। यहाँ अनेक टूल्स तथा उपयोगी वेबसाइट का लिंक भी प्राप्त होता है।

 

http://ignca.nic.in/coilnet/hitop102.htm  हितोपदेश

 

https://archive.org/details/1_20210709_20210709_1152/1/ ऋग्वेद सायण भाष्य

 

https://adishila.com/fonts/ इस लिंक पर कुछ उपयोगी फान्ट तथा यूनीकोड टेक्स्ट है। सुभाषित, रघुवंश आदि।

https://vmlt.in/ इस वेबसाइट पर ऋग्वेद मंत्र की ध्वनि उपलब्ध है। Library मीनू में हजारों की संख्या में पुस्तकें हैं । यहाँ ocr द्वारा भी पुस्तक की text को पाया जा सकता है। पुराण आदि किसी पुस्तक का चयन कर उसे व्याकरण की दृष्टि से अर्थ किया जा सकता है।  


https://www.sanskritdigitalschool.in/ बच्चों तथा संस्कृत सीखने वालों के लिए रुचिकर तथा प्रभावी संस्कृत शिक्षण में उपयोगी है।

http://arunmishra-rashmirekh.blogspot.com/ इस ब्लॉग पर हजारों गीतों का विडियो लिंक तथा गीतों का आलेख उपलब्ध है। इसमें संस्कृत स्तोत्रों, गीतों को भी स्तान दिया गया है।
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Best Websites for Sanskrit Books

इस लेख में आपको संस्कृत की पुस्तकों से जुड़ी सर्वश्रेष्ठ वेबसाइट से परिचय कराने जा रहा हूँ। आप इनपर जाकर संस्कृत की पुस्तकों फ्री में डाउनलोड कर सकते है। कुछेक वेबसाइट पर संस्कृत ग्रन्थों को यूनीकोड में टंकित कर मूल रूप में रखा गया है। चुनिंदा लिंक उपलब्ध कराने के पीछे उद्येश्य यह है कि आज कई ऐसे वेबसाइट हैं, जहाँ से आप पुस्तकें पढ़ सकते हैं अथवा डाउनलोड कर सकते हैं, परन्तु उन स्थानों पर आपको लगभग यही पुस्तकें मिलेंगी। आपकी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए ये पर्याप्त होंगें। इन वेबसाइट का परिचालन तथा सामग्री खोज की सुविधा और की अपेक्षा अधिक सुगम है। यहाँ से आप विन SING UP किये पुस्तकें ले सकते हैं।

1.   ईपुस्तकालय से संस्कृत की पुस्तकों को PDF में फ्री डाउनलोड कर सकते हैं।


2. इस भारतविद्या वेबसाइट पर योग, षड्दर्शन, उपनिषद्, जैन, बौद्ध आदि विषयों पर संस्कृत की पुस्तकें उपलब्ध हैं।


3. संस्कृत विकिस्रोत पर वेद, पुराण, स्मृति , उपनिषद् , आगम, साहित्य, दर्शन, आदि विषयों पर मूल पुस्तकें उपलब्ध हैं। इसे आप पढ़ सकते हैं।

4. आर्काइव से  संस्कृत की पुस्तकें डाउनलोड कर सकते हैं। यहाँ संस्कृत पुस्तकों का भी विशाल संग्रह है। 

5.  राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली के विभिन्न परिसरों द्वारा 116 पुस्तकों को ई- बुक के रूप में परिणत किया गया। इन्हें आप ऑनलाइन पढ़ सकते हैं। इसके नीचे डिजिटलाइज्ड पुस्तकों का लिंक दिया गया है। इन पुस्तकों को आप डाउनलोड कर सकते हैं।

6. संस्कृत डाक्युमेंट पर मुख्य पुस्तकें, स्कैन की हुई पुस्तकें तथा संस्कृत से सम्बन्धित ढ़ेर सारी सामग्री मिलती है। यह एक वेबसाइट नहीं होकर एग्रीगेटर है, जो हमें विभिन्न वेबसाइट का लिंक उपलब्ध कराता है। इसके बारे में हम विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगें।


7. संस्कृत ईबुक्स इस लिंक पर वर्णक्रम से पुस्तकों की सूची दी गयी है। यहाँ से पुस्तकें डाउनलोड की जा सकती है। PDF सेक्शन में पुस्तकों को खोजने में थोड़ी असुविधा हो सकती है।

8. Indian Manuscripts इस लिंक पर जाकर पाण्डुलिपियों को पढ़ा जा सकता है। इसके अतिरिक्त यहाँ Books मीनू में संस्कृत में लिखित साहित्य, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि विषयों पर पुस्तकें उपलब्ध है।  Bshnoi Manuscripts , वेद वेदान्त की पुस्तकें, सन्तकबीर तथा जैन पाण्डुलिपि भी यहाँ उपलब्ध है। 

आप नीचे दिये गये विडियो को देखें । इसमें मैंने उपर्युक्त सभी लिंक को खोलकर कहाँ क्या सामग्री है और उससे पुस्तकें कैसे डाउनलोड की जाती है अथवा वहीं पढ़ी जा सकती है आदि के बारे में प्रायोगिक रूप से विस्तार से समझाया है। यदि आपको इस वेबसाइट के परिचालन या उपयोग करते समय किसी तरह की समस्या हो रही हो तो टिप्पणी में अपनी समस्या लिखें। 
9. हैदराबाद विश्वविद्यालय के   Department of Sanskrit Studies, Digital Resources ने संस्कृत के अनेक ग्रन्थों को यूनीकोड में परिवर्तित कर उपलब्ध कराया है।



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श्रीमद्भागवत की टीकायें


श्रीमद्भागवत महापुराण महर्षि  वेदव्यास द्वारा रचित ग्रन्थ है।  इसमें 12 स्कन्ध 335 अध्याय और 18 हजार श्लोक हैं। दशम स्कन्ध सबसे बड़ा है, जिसके पूर्वार्ध तथा उत्तरार्थ दो विभाग हैं। द्वादश स्कन्ध सबसे छोटा है। इस पुराण में वेदों, उपनिषदों व दर्शन शास्त्र की विस्तारपूर्वक व्याख्या की गई है। इसे सनातन धर्म तथा संस्कृति का विश्वकोष भी कहा जाता है। इसकी भाषा ललित तथा भाव कोमल व कमनीय हैं । ज्ञान तथा कर्मकाण्ड की संततसेवा से ऊपर बने मानस में भी यह ग्रंथ भक्ति की अमृतमयसरिता बहाने में समर्थ सिद्ध होता है। व्यास द्वारा अपने पुत्र शुक को यह महापुराण कथन किया गया तथा के मुख से राजा परीक्षित ने उसे श्रवण किया। इसके पश्चात् सर्वसाधारण जनता में उसका प्रचारण हुआ। इसमें कृष्णभक्ति (अर्थात विष्णु-भक्ति) का प्रतिपादन किया गया है।

इसकी रचना के संबंध में निम्नलिखित कथा प्रचलित है : एक बार व्यास महर्षि अत्यंत खिन्न होकर अपने सरस्वती तीर पर स्थित आश्रम में बैठे हुये थे कि नारद मुनि उनके पास आये। नारद मुनि ने उनसे उनकी खिन्नता का कारण पूछा। व्यास ने कहा, “अनेक पुराणों तथा भारत ग्रंथ की रचना करने पर भी मुझे आत्मशांति का लाभ नहीं हुआ है, इसलिये मैं खिन्न हूं। नारद मुनि विचारमग्न हुये, फिर उन्होंने कहा, "आपने अब तक प्रचंड साहित्य निर्माण कर केवल ज्ञानमहिमा का बखान किया परन्तु भगवान् का भक्तियुक्त गुणगान आपके द्वारा नहीं हुआ है, अतः उस प्रकार की ग्रंथ रचना आप किजिये । इससे आपको आत्मशांति मिलेगी। नारदमुनि के उपदेश पर व्यास मुनि ने भक्ति रस प्रधान भागवत पुराण की रचना की। उससे उन्हें शान्ति मिली।
वैष्णव धर्म के अवांतरकालीन समग्र संप्रदाय 2 भागवत के ही अनुग्रह के विलास हैं, विशेषतः वल्लभ संप्रदाय तथा चैतन्य संप्रदाय, जो उपनिषद्, गीता तथा ब्रह्मसूत्र जैसी प्रस्थानत्रयी मानते हैं। वल्लभ तथा चैतन्य के संप्रदायों को अधिक सरस तथा हृदयावर्जक होने का यही रहस्य है कि उनका मुख्य उपकाव्य ग्रंथ है श्रीमद्भागवत। इसमें गेय गीतियों की प्रधानता है, किन्तु इस ग्रंथ की स्तुतियां आध्यात्मिकता से इतनी परिप्लुप्त हैं कि उनको बोधगम्य करना, विशेष शास्त्रमर्मज्ञों की ही क्षमता की बात है। इसी लिये पंडितों में कहावत प्रचलित है- विद्यावतां भागवते परीक्षा" । 
भागवत के विषय में प्रश्न उठता रहता है कि इसे पुराणों के अंतर्गत माना जाये अथवा उपपुराणों के ?

1) आचार्य बलदेव उपाध्याय ने अपने पुराण-विमर्श नामक ग्रंथ में इस बात का साधार विवेचन करते हुए अपना अभिमत व्यक्त किया है कि भागवत ही अंतिम अठारहवां पुराण है। वैष्णव धर्म के सर्वस्वभूत श्रीमद्भागवत को अष्टादश पुराणों के अंतर्गत ही मानना उचित प्रतीत होता है।

2) द्वैतमत के आदरणीय आचार्य आनंदतीर्थ (मध्वाचार्य) ने, जिनका जन्म 1199 ई. में माना जाता है, अपने भक्तों की भक्ति-भावना की पुष्टि के हेतु श्रीमद्भागवत के गूढ अभिप्राय को अपने भागवत-तात्पर्य-निर्णय" नामक ग्रंथ में अभिव्यक्त किया है। वे भागवत को पंचम वेद मानते हैं।

3) रामानुजाचार्य (जन्मकाल 1017 ई.) ने अपने "वेदान्त तत्त्वसार" नामक ग्रंथ में भागवत की वेदस्तुति (दशम स्कंध, अध्याय 87) से तथा एकादश स्कंध से कतिपय श्लोकों को उद्धृत किया है। इससे भागवत का, 11 वें शतक से प्राचीन होना ही सिद्ध होता है

4) काशी के प्रसिद्ध सरस्वतीभवन नामक पुस्तकालय में वंगाक्षरों में लिखित भागवत की एक प्रति है। इसकी लिपि का काल दशम शतक के आसपास निर्विवाद सिद्ध किया जा चुका है।

5) शंकराचार्यजी द्वारा रचित "प्रबोध-सुधाकर" के अनेक पद्य भागवत की छाया पर निबद्ध किए गए हैं। सबसे प्राचीन निर्देश मिलता है हमें श्रीमदशंकराचार्य के दादा-गुरु अद्वैत के महनीय आचार्य गौडपाद के ग्रंथों में। अपनी पंचीकरण व्याख्या में गौडपाद ने जगृहे पौरुषं रूपम्" श्लोक उद्धृत किया है,जो भागवत के प्रथम स्कंध के तृतीय अध्याय का प्रथम श्लोक है। आचार्य शंकर का आविर्भाव काल आधुनिक विद्वानों के अनुसार सप्तम शतक माना जाता है। अतः उनके दादा गुरु का काल, षष्ठ शतक का उत्तरार्ध मानना सर्वथा उचित होगा।

भागवत, कम से कम दो हजार वर्ष पुरानी रचना है। पहाडपुरा (राजशाही जिला, बंगाल) की खुदाई से प्राप्त राधा-कृष्ण की मूर्ति, जिसका समय पंचम शतक है, भागवत की प्राचीनता को ही सिद्ध करती है। जहांतक भागवत के रूप का प्रश्न है, उसका वर्तमान रूप ही प्राचीन है। उसमें क्षेपक होने की कल्पना का होई आधार नहीं। इसके 12 स्कंध हैं और श्लोकों की संख्या 18 हजार है। इसमें किसी भी विद्वान् का मतभेद नहीं परंतु अध्यायों के विषय में संदेह का अवसर अवश्य है। अध्यायों की संख्या के बारे में पद्मपुराण का वचन है- द्वात्रिंशत् त्रिशतं च यस्य- विलसच्छायाः ।" चित्सुखाचार्य के अनुसार भी भागवत के अध्यायों की संख्या 332 है (द्वित्रिंशत् त्रिशतं) पूर्णमध्यायाः) । परन्तु वर्तमान भागवत के अध्यायों की संख्या 335 है। अतः किसी टीकाकार ने दशम स्कंध में 3 अध्यायों (क्र. 12, 13 तथा 14 ) को प्रक्षिप्त माना है।

समस्त वेद का सारभूत, ब्रह्म तथा आत्मा की एकता रूप अद्वितीय वस्तु इसका प्रतिपाद्य है और यह उसी में प्रतिष्ठित है। इसी के गूढ अर्थ को सुबोध बनाने हेतु, अत्यंत प्राचीन काल से इस पर टीका ग्रंथों की रचना होती रही है। भारतीय सनातन संप्रदाय के विभिन्न संतों ने श्रीमद्भागवत पर अपने-अपने सिद्धान्त के अनुसार अनेक टीकाओं का निर्माण किया। विशेषतः वैष्णव संप्रदायों के विभिन्न आचार्यों ने अपने मतों के अनुकूल इस पर टीकाएं लिखी हैं और अपने मत को भागवत मूलक दिखलाने का उद्योग किया है। भागवत में पक्ष का प्राधान्य होने पर भी, कला पक्ष का अभाव नहीं है। इसका आध्यात्मिक महत्त्व जितना अधिक है, साहित्यिक गौरव भी उतना ही है । भागवत के अंतरंग की परीक्षा करने से ज्ञात होता है कि उसमें दक्षिण भारत के तीर्थ क्षेत्रों की महिमा उत्तर भारत के तीर्थ क्षेत्रों से अधिक गाई गई है। इसमें पयस्विनी, कृतमाला, ताम्रपर्णी आदि तामिलनाडु प्रदेश की नदियों का विशेष रूप से उल्लेख है, इसके साथ ही यह वर्णन है कि कलियुग में नारायण परायण जन सर्वत्र पैदा होंगे, परंतु तामिलनाडु में वे बहुसंख्य होंगे। इन विधानों से अनुमान किया जाता है कि भागवत की रचना दक्षिण भारत में विशेषतः तामीलनाडु में हुई है। 

 इनमें किसी टीकाकार द्वारा श्रीमद्भागवत का सार प्रतिपादित किया गया तो किसी ने स्कन्ध विशेष की ही व्याख्या की है। इसकी भाषा जटिल है। कहा जाता है कि विद्वानों की परीक्षा भागवत में होती है। विद्यावतां भागवते परीक्षा। अतः कुछ टीकाकारों ने कूट शब्दों को विशिष्ट रूप से व्याख्यायित किया है। भागवत पर की गयी कुछ प्रसिद्ध टीकाओं के विवरण निम्नानुसार हैं-
1- श्रीमद्भागवत की सबसे प्राचीन संस्कृत टीका भावार्थ दीपिकाहै, जो अद्वैत सिद्धान्त पर आधारित प्रसिद्ध
एवं सर्वाधिक प्रमाणिक टीका है। इसके रचयिता श्रीधरस्वामीहैं। इसकी रचना 13 वीं शताब्दी में की गयी। यह सभी सम्प्रदायों में मान्य टीका है। इनके बारे में कहा जाता है कि श्रीधरः सकलं वेत्ति श्रीनृसिंहप्रसादतः।
 2- विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त पर आधारित 14 वीं शती के ‘‘सुदर्शनसूरि’’ विरचित शुकपक्षीया टीकाहै जो अन्य संस्कृत टीकाओं की अपेक्षा संक्षिप्त मानी जाती है।
3- श्री सुर्दशनसूरि के शिष्य राघवाचार्य विरचित ‘‘भागवत चन्द्रचन्द्रिका’’ विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त पर आधारित संस्कृत की टीका है।
4- श्री माधवाचार्य विरचित द्वैत सिद्धान्त पर आधारित ‘‘भागवततत्पर्यनिर्णय’’ टीका ।
5- श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध पर सनातन गोस्वामी के द्वारा दशम स्कन्ध पर ‘‘बृहद्वैष्णवतोषणी / वृत्तितोषिणी’’ लिखित टीका । (गौडीय वैष्णव मत)
6- रूपगोस्वामी तथा सनातन गोस्वामी के भ्रात्रेय जीवगोस्वामी द्वारा विरचित ‘‘क्रमसन्दर्भ/तत्त्वसंदर्भ ’’ नामक टीका ।
7- बृहतक्रमसंदर्भ- ले.- जीवगोस्वामी (गौडीय वैष्णव मत)
8- विश्वनाथ चक्रवती के द्वारा विरचित ‘‘सारार्थ दर्शिनी’’ टीका । ई.18 वीं शती
9- पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक 16वीं शती के बल्लभाचार्य जी के द्वारा लिखित ‘‘सुबोधनी’’ संस्कृत टीका । यह शुद्धाद्वैत मतानुसारणी टीका मानी जाती है। इन्होंने श्रीधर स्वामी कृत भावार्थ दीपिका टीका का खंडन किया है।

10- टिप्पणी (विवृति) -ले. विठ्ठलनाथजी । (शुध्दाद्वैत मत)

11- निम्बार्क सम्प्रदाय के आचार्य शुकदेवजी की ‘‘सिद्धान्त प्रदीप’’ टीका। (द्वैताद्वैत मत)

12- 16वीं शती में माध्व संप्रदाय के आचार्य विजयध्वजतीर्थ  के द्वारा रचित ‘‘पदरत्नावली’’ टीका ।
13- वंशीधर विरचित ‘‘भावार्थ दीपिकाप्रकाश’’
14- गंगासहाय विरचित ‘‘अवन्वितार्थ प्रकाशिका’’
15- राधारमण गोस्वामी (चैतन्यदास) प्रणीत ‘‘दीपिकादीपिनी’’
16- पुरूषोत्तमचरण गोस्वामी विरचित ‘‘सुबोधिनीप्रकाश’’। (शुध्दाद्वैत मत)
17- गोस्वामी श्रीगिरिधर लालकृत ‘‘बालप्रबोधिनी’’, (शुध्दाद्वैतमत)
18- भगवत्प्रसादाचार्य विरचित ‘‘भक्तरंजनी’’, (स्वामीनारायण मत)
19- दशम  स्कन्ध के पूर्वार्द्ध पर पद्यप्रदान टीका श्री हरिविरचित ‘‘हरिभक्तरसायन’’ है।
20- सनातन गोस्वामी कृत ‘‘बृहद्वैष्णवतोषिणी’’ टीका ।
वैष्णवतोषिणी- ले.- जीवगोस्वामी (श्रीधर मत ) 
21- श्री हरि का हरिभक्ति रसायन नामक पद्यमयी टीका।
22- रामनारायण विरचित ‘‘भावभावविभाविका’’ टीका।
23- श्रीरामचन्द्र डोंगरेजी के प्रवचन पर आधारित ‘‘भागवतरहस्य’’,
24- बलदेव विद्याभूषण कृत वैष्णवानन्दिनी। मायावाद एवं विशिष्टाद्वैतवाद का खंडन ।
25- गंगासहाय कृत अन्वितार्थप्रकाशिका। 19 वीं शती 
26- श्रीअखण्डानन्द सरस्वती कृत ‘‘भागवतदर्शन’’ आदि कृतियाँ सुप्रसिद्ध हैं
इसके अतिरिक्त भी विविध टीकाएं हैं। जिनके द्वारा श्रीमद्भागवत के रहस्य को स्पष्ट किया गया।

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वर्तमान परिदृश्य में संस्कृत शिक्षा


संस्कृत शिक्षा की स्थिति को लेकर आज सभी लोग चिंतित हैं। माध्यमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय  तक के अध्यापक विद्यालयों में अपेक्षा से कम नामांकन को लेकर काफी परेशान है। कुछ अध्यापक नामांकन के समय सक्रिय होकर कार्यसाधक संख्या जुटा लेते हैं। अधिकारी भी संस्कृत अध्ययन केन्द्रों की लचर व्यवस्था तथा छात्र संख्या की कमी से अवगत है। दुर्भाग्य से समाज में भी इन विद्यालयों को लेकर नकारात्मक संदेश जा रहा है। संस्कृत विषय लेकर पढ़ने वालों की लगातार गिरती संख्या को लेकर कुछ लोग रोजगार पर ठीकरा फोड़ते हैं। कुछ लोग अंग्रेजी शिक्षा को कोसकर चुप हो जाते हैं।

 सबसे बड़ी समस्या सकारात्मक सोच का अभाव

वस्तुतः संस्कृत के समक्ष बहुमुखी समस्या है । उसमें सबसे बड़ी समस्या है, सकारात्मक सोच का अभाव। यदि हम शिक्षा को रोजगार से जोड़कर देखते हैं तो बहुत हद तक भ्रम में है। धनार्जन से शिक्षा का बहुत अधिक संबंध नहीं होता, क्योंकि हम यह देखते हैं कि अधिकांश धनिक कम पढ़े लिखे होते हैं। कुछ लोग कार्य विशेष में योग्यता रखने के के कारण धन अर्जित करते हैं, परंतु उन्हें शिक्षित नहीं कहा जा सकता। शिक्षित व्यक्ति को समसामयिक समस्या, जीवन जीने की कला तथा जीवन से जुड़े हर मुद्दे की समझ होती है। शिक्षा वह तत्व है, जो व्यक्ति को जीवन की प्रत्येक विधा में पारंगत बना देती है। समस्या यह है कि हम शिक्षा का उद्येश्य नौकरी पाना मान बैठे हैं। आज विश्व में कोई भी शिक्षा शतप्रतिशत रोजगार की गारंटी नहीं देती।

संस्कृत शिक्षा का उद्येश्य

हम यहाँ आगे विचार करेंगें कि वर्तमान संस्कृत शिक्षा का उद्येश्य क्या है? नौकरी के लायक  संस्कृत शिक्षा में सुधार करने के खतरे क्या है?  संस्कृत का सामाजिक योगदान या प्रासंगिकता क्या हैं।

आज भी संस्कृत विद्यालयों का पाठ्यक्रम ऐसा है कि इसे पढ़कर शिक्षा क्षेत्र को छोड़कर अन्य क्षेत्र में रोजगार पाना मुश्किल होता है। शिक्षा क्षेत्र में भी रोजगार के बहुत ही कम अवसर उपलब्ध हैं। देश में पारंपरिक संस्कृत विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना शास्त्र संरक्षण को ध्यान में रख कर की गई। हजारों वर्षों से सिंचित ज्ञान संपदा को हम यूं ही भुला नहीं सकते। यह मानव सभ्यता के विकास का सबसे प्रामाणिक लिखित साक्ष्य हैं। कोई भी देश केवल आर्थिक उन्नति से ही महान नहीं होता, बल्कि जिसका गौरवमय अतीत हो, गर्व करने लायक संपदा उसे उपलब्ध हो। जिस प्रकार हम अपने भौतिक धरोहरों की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आचार - व्यवहार, कला, सांस्कृतिक विकास आदि ज्ञानरूपी धरोहर की सुरक्षा करने के लिए संस्कृत विद्यालयों की स्थापना की गई। संस्कृत शिक्षा केवल भाषा बोध तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें भारतीय सामाजिक ताना-बाना, यहां की परंपरा, रिश्ते, आचार-व्यवहार को समझने में मदद करती है । भारतीयों की जीवन पद्धति संस्कृत ग्रंथों की भित्ति पर ही खड़ी है। संस्कृत ग्रंथों ने हमें सदियों से पाप- पुण्य की सीख देकर सद्मार्ग पर चलना सिखाया। यहाँ व्यक्ति किसी राजदण्ड के भय से नहीं अपितु अन्तरात्मा तक पैठ बना चुका पाप के भय से नियंत्रित रहते हैं। यह विद्या उच्च नैतिक मानदंड के पालन हेतु प्रेरित करता आया है, जिसके फलस्वरूप हमारे जीवन में पुलिस और न्यायालय का हस्तक्षेप अत्यल्प रहा। संस्कृत के ग्रंथों ने ही सदियों से ललित कलाओं द्वारा मानव को मनोरंजन का साधन भी उपलब्ध कराया। आरोग्य हो या विधि-व्यवस्था सभी क्षेत्र में संस्कृत ग्रंथों का अतुलनीय योगदान रहा है। भाषा विज्ञान, ध्वनि विज्ञान, तर्क पूर्वक निर्णायक स्थिति तक पहुंचाने में संस्कृत ग्रंथ ने नींव का कार्य किया है, जिसके बलबूते हम आज इस स्थिति तक पहुंच सके हैं। जिस दिन संस्कृत का अध्ययन और अध्यापन बंद होगा, उसी दिन भारतीय देवी-देवता, तीर्थ आदि की अस्मिता खतरे में पड़ जाएगी। यह एक ऐसी विद्या है, जो भले ही उत्पादक न दिख रही हो, परंतु सामाजिक ताना बाना को बनाए रखने और उसे सुदृढ़ करने में इसकी महती आवश्यकता है।

संस्कृत शिक्षा प्रणाली में आधुनिक विषयों के समावेश के खतरे

पारंपरिक संस्कृत विद्यालयों में विशेषतः शास्त्रों का शिक्षण होता है। यदि हम वर्तमान प्रतियोगी परीक्षा पर आधारित पाठ्यक्रम को विद्यालयों में लागू करते हैं तो शास्त्र शिक्षण का पक्ष गौण हो जाएगा। धीरे धीरे इन विद्याओं से शास्त्रों की शिक्षा समाप्त हो जाएंगी। ज्ञान आधारित शिक्षा को सूचना आधारित शिक्षा में परिवर्तित होते देर नहीं लगेगी। ज्ञानार्जन के स्थान पर रोजगार प्राप्ति मात्र लक्ष्य शेष बचेगा। उतना और वही अध्ययन लक्ष्य होगा, जितने से रोजगार मिल जाय। इस प्रकार हम अपने पूर्वजों द्वारा संचित और प्रवर्तित विशाल बौद्धिक संपदा से वंचित हो जाएंगे। किसी भी राष्ट्र के लिए यह शुभ नहीं कहा जा सकता कि वह अपने गौरवमय अतीत को बोध कराने वाली, मानव मन में सौन्दर्य की सृष्टि करने वाली तथा अपनी दार्शनिक ज्ञान संपदा को खो दे ।

मानव को संस्कारित करने, लोकहितकारी कला, योग, आयुर्वेद जैसी असंख्य विद्याएं हैं जो हमारे अंतर्मन को विकसित करती ही है, साथ में जीवन को भी सुगम बनाती है।

वर्तमान में ज्ञानार्जन और रोजगार के बीच समन्वय स्थापित करने हेतु किये जा रहे प्रयास

विगत कुछ वर्षों में संस्कृत शिक्षा को सरल और रोजगारोन्मुख बनाने के उद्देश्य से कई राज्यों में माध्यमिक संस्कृत शिक्षा बोर्ड का गठन किया गया। इसके पाठ्यक्रम भी निर्धारित किए गए। कक्षा 10 तक तीन प्रश्न पत्र (संस्कृत व्याकरण, साहित्य आदि) विषयों के साथ गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि आधुनिक विषयों का समावेश किया गया है, ताकि वहां से उत्तीर्ण छात्र विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित होकर नौकरी पा सकें। उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद् का पाठ्यक्रम अत्यंत पुराना है। इसमें भी बदलाव किए जा रहे हैं। कोमल मति के बालक दृश्य श्रव्य उपकरणों के माध्यम से संस्कृत सीख सकें इसके भी अनेक प्रकार की पाठ्यचर्या निर्मित की जा रही है। इन संस्थाओं को तकनीक से समुन्नत किया जा रहा है, ताकि छात्र वेबसाइट के माध्यम से परीक्षा परिणाम को जान सकें। सूचनाओं का आदान प्रदान सुलभ हो सके। उपाधि की समकक्षता, परीक्षा की मान्यता आदि की सूचना रोजगार प्रदाता को आसानी से उपलब्ध हो ताकि रोजगार के अवसर अधिक से अधिक संस्थाओं में उपलब्ध हो सकें। प्राविधिक संस्कृत शैक्षिक उपकरण निर्माण कार्यशाला कानपुर से आरंभ होकर देश के विभिन्न भागों में आयोजित की जा रही है। अणुशिक्षण का निर्माण हुआ है। संस्कृत व्याकरण के लिए अनेक संसाधन निर्मित किये गये तथा किये जा रहे हैं।लघु चलचित्र, गीत संगीत द्वारा संस्कृत भाषा को जन जन तक पहुँचाया जा रहा है।

क्या हम बदलाव के लिए तैयार हैं?

कई बार हम कार्य करने में असफल होते हैं फिर भी वह असफलता दूसरों के लिए मार्गदर्शिका होती है। हमें शिक्षा सुधार तथा रोजगार के अवसर सृजित करने हेतु नित्य नये प्रयोग को करते रहने की आवश्यकता है। बमें स्वयं के ज्ञान को अद्यतन रखना होगा। इस क्षेत्र में कार्य करने वोलों की संख्या अल्प है, जबकि लक्ष्य विस्तृत। हमें अपने हितों की सुरक्षा के लिए सजग रहना होगा। अतः कुछ लोग शिक्षण, कुछ लोग संगठन और कुछ लोग प्रबोधन का कार्य करें। सभी लोगों में सामंजस्य हो। इससे परिणाम पाना सरल होगा। कई बार हम अंग्रेजी तथा तकनीकी शिक्षा के बढ़ते दायरे को देखकर समय को कोसते हैं। हमें उनके सांगठनिक स्वरूप तथा कार्य पद्धति से सीख लेने की आवश्यकता है। वे योजनाबद्ध तरीके से कार्य करते हैं। वे बढ़ती नगरीय संस्कृति, गांव से शहर की ओर पलायन को  ध्यान में रखकर नई आवासीय कॉलोनियों के इर्द-गिर्द अपने विद्यालय हेतु भूमि की व्यवस्था कर लेते हैं। उस क्षेत्र में अनेक संगठन कार्यरत हैं। एक संगठन अपने विद्यालयों की शाखा का विस्तार अनेकों शहर में करते हैं। वहां सामूहिक चेतना कार्य करती है। संस्कृत क्षेत्र में भी जिन शिक्षण संस्थाओं का संचालन संगठन द्वारा किया जा रहा है, उनकी स्थिति अच्छी है। जैसे आर्य समाज द्वारा संचालित विद्यालय। जब हम किसी समूह या संगठन के तहत विद्यालयों का संचालन करते हैं तो उसकी एक भव्य रूपरेखा होती है, भविष्य की चिंता होती है, जिसमें प्रचार, शिक्षा सुधार, प्रतिस्पर्धा,पूंजी निवेश होते रहता है। संगठित संस्था द्वारा विद्यालयों की श्रृंखला शुरु करने से दीर्घकालीन नीति बनाने, समसामयिक समस्या का हल ढूंढने, सामाजिक परिवर्तन लाने में सुविधा होती है। कुल मिलाकर केवल संस्कृत शिक्षा के पाठ्यक्रम मात्र में सुधार  कर देने से रोजगार के अवसर नहीं बढ़ सकते। संस्थाओं को सांगठनिक रूप देने, प्रतिस्पर्धी माहौल तैयार करने एवं पूंजी निवेश के उपाय ढूंढने से काफी हद तक बदलाव देखा जा सकता है।
                                                                                                ईमेल-  jagd.jha@gmail.com
                                                                                                            फोन- 7388883306

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जलवायु परिवर्तन के कारण एवं इसके दुष्परिणाम


ऊर्जा आज की आवश्यकता है परन्तु यह ऊर्जा हमारे लिए कल्याण कारक हो। वेद की इस ऋचा को देखें- पावको अस्मभ्यं शिवो भव अग्ने पावका रोचिषा। सन् 2030 तक ऊर्जा की मांग 50 प्रतिशत तक बढ़ सकती है, जिसमें भारत और चीन की जरूरत सबसे ज्यादा होगी। जीवाश्म ईंधन, कोयला,तेल,प्राकृतिक गैस के जलने से वायुमंडल में कार्वन का उत्सर्जन होता है। ग्रीन हाउस में गैस के सघन होने से धरती गर्म होती है तथा वैश्विक ताप में वृद्धि होती है। वैश्विक ताप के कारण जलवायु में परिवर्तन तेजी से हो रहा है। वर्षा, हवा, तापमान में वृद्धि के कारण ऋतु चक्र अनियमित हो उठता है। भारत का 60 प्रतिशत कृषि क्षेत्र वर्षा पर आधारित है। ऋतु चक्र में बदलाव के कारण अर्थव्यवस्था पर गम्भीर प्रभाव पडता है। संसाधनों के दोहन की रफ्तार अगर यही रही तो समुद्रों से मछलियां गायब हो जाएंगी। 250 वर्ष के विश्व इतिहास ने यह सिद्ध कर दिया है कि अत्यधिक भोग ने भूमि का दोहन अंतिम सीमा तक कर लिया है। जिस मशीनी युग का विकास व्यक्ति के सुख के लिए किया गया है, वहीं उसके दुःख का कारण बन गया है।
            ऋतु चक्र में परिवर्तन का प्रभाव दूरदराज तक गांवों, खेत-खलिहानों के कृषि पर पड़ रहा है, कम पानी और रासायनिक खादों के बिना पैदा होने वाली परंपरागत रूप से उत्पादित फसलों का नामो-निशान तक मिट गया है। कई फसलें समाप्त हो चुकी हैं और उसकी जगह नई फसलों ने ले लिया है. इनमें बड़ी मात्रा में रासायनिक खादों, कीटनाशकों, परिमार्जित बीजों और सिंचाई की जरूरत पड़ती है। इससे खेती का खर्च बढ़ा है और खेती के तरीके में बदलाव आया है। इसका सीधा असर ग्रामीण कृषक समाज के जीवन स्तर और रहन-सहन पर पड़ रहा है। खेती घाटे का सौदा बनने के चलते किसान अन्य धंधों की ओर जाने को विवश हुआ है। खेती में उपज तो बढ़ी लेकिन लागत कई गुना अधिक हो गई, जिससे अधिशेष यानी, माजिर्न का संकट पैदा हो गया। गर्मी, जाड़े और बरसात के मौसम में कुछ फेरबदल से फसलों की बुबाई, सिंचाई और कटाई का मौसम बदला और जल्दी खेती करने के दवाब में पशुओं को छोड़ मोटर चालित यंत्रों पर निर्भरता आई. इनका परिणाम हुआ कि खेती घाटे का सौदा हो गया. अब हर परिवार को खेती के अलावा कोई दूसरा काम करना मजबूरी हो गई।
            मानसून के समय में बदलाव की वजह से 51 प्रतिशत तक कृषि भूमि प्रभावित हुई। तापमान के बढ़ने से रबी की फसलों का जब पकने का समय आता है, तब तापमान में तीव्र वृद्धि से फसलों में एकदम बालियां आ जाती है। इससे गेहूँ व चने की फसलों के दाने बहुत पतले होते है व उत्पादकता घट जाती है।
            तापमान में 1 प्रतिशत वृद्धि की से 20 प्रतिशत तक गेहूँ की ऊपज कम हो जाती है। इससे कीटरोधी उपायों को तो झटका लगता ही है, फसल रूग्णता भी बढती है। जलवायु परिवर्तन के चलते विकसित देश आस्ट्रेलिया और स्पेन भी खाद्य सुरक्षा के संकट से दो-चार हो रहे हैं। आस्ट्रेलिया में कुछ साल पहले जो अकाल पड़ा था, उसकी पृष्ठभूमि में औद्योगिक विकास के चलते बड़े तापमान की ही भूमिका जताई गई है। इस वजह से यहां गेहूं का उत्पादन 60 फीसदी तक घट गया है। अर्थात् भारत समेत दुनिया को एक समय बड़ी मात्रा में गेहूं का निर्यात करने वाला देश खुद भुखमरी की चपेट में आ गया है। स्पेन में 40 लाख लोगों पर भूख का साया गहरा रहा है। वैश्विक तापमान के चलते 36 विकासशील और 21 अफ्रीकी देशों पर भूख की काली छाया मंडरा रही है। इन परिस्थितियों को हमारे ऋषि बहुत पहले जानते थे। अतः वे आकाश, अंतरिक्ष, पथ्वी, जल, ओषधि, वनस्पति की शान्ति की बात करते थे। द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।। (यजु. 36/17)
            यदि समय रहते तापमान वृद्धि पर नियंत्रण न पाया गया तो खतरनाक वन आग, बाढ,सूखे जैसे प्राकृतिक दुष्प्रभाव का और सामना करना पड सकता है। ऊर्जा उत्पादन में भारत की प्रथम प्राथमिकता सौर तथा पवन ऊर्जा होनी चाहिए। आशा है पेरिस में 122 देशों का जो सौर गठबंधन हुआ है, वह मिलकर काम करेगा।
पानी
            जलवायु परिर्वतन से शुद्ध पानी का भयानक संकट छा जाएगा। । विश्व का 40 प्रतिशत मीठा पानी वर्तमान में पीने योग्य नहीं रह गया है। नदियों और झीलों से पानी का दोहन सन् 1960 के मुकाबले दो गुना बढ़ चुका है।
            विश्व के दो लाख लोग प्रतिदिन गांवों या छोटे शहरों से बड़े शहरों की ओर जा रहे हैं। इससे भी पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। ताजा पानी का भंडार 55 फीसदी घट चुका है और समुद्री जीवन भी घटकर एक-तिहाई ही रह गया है। ये सभी तथ्य एक खतरनाक भविष्य की ओर इशारा करते हैं,
 वर्षाचक्र में बदलाव, बाढ़, तूफान और भूस्खलन के चलते ज्यादातर शुद्ध जल के स्रोत दूषित होते जा रहे हैं। परिणामतः इस दूषित पानी के उपयोग से डायरिया व आंखों के संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। वैसे भी दुनिया में पानी की कमी से हर दस में चार लोग पहले से ही जूझ रहे हैं। डायरिया से हरेक साल 18 लाख मौतें होती हैं। मौसम में आए वर्तमान बदलावों ने पानी और मच्छर जैसे संवाहकों द्वारा डेंगू और मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियों के खतरे उत्पन्न कर दिए हैं। 2006 में भारत में डेंगू के 10 हजार मामले सामने आए थे, जिनमें से दो सौ लोग मारे भी गए थे। हमारे ग्रन्थ इस समस्या से समाधान का मार्ग दिखाते हैं। अथर्ववेद में पृथिवी पर शुद्ध पेय जल के सर्वदा उपलब्ध रहने की ईश्वर से कामना की गयी है- शुद्धा न आपस्तन्वे क्षरन्तु यो न: सेदुरप्रिये तं नि दध्म:। पवित्रेण पृथिवि मोत् पुनामि॥ यजुर्वैदिक ऋषि शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शन्योरभिस्त्रवन्तु न: कहकर शुद्ध जल के प्रवाहित होने की कामना करते हैं।
अपो याचामि भेषजम्। अथर्ववेद 1.5.4
जल ओषधि है।
ता जीवला जीवधन्याः प्रतिष्ठाः। अथर्ववेद 12.3.25
जल जीवन शक्तिप्रद, जीवहितकारी, और जीवन का आधार है।
समुत्पतन्तु प्रदिशो नभस्वती। अथर्ववेद 4.15.1
जल को किसी भी प्रकार से दूषित होने से बचाना है। पुराणों में गंगा के किनारे दातुवन करने तक को मना किया गया। आज इस पवित्र नही में मानव मल तथा कारखाने का विषैला जल प्रवाहित करने में संकोच नहीं होता। कहाँ से कहाँ आ गये हम।
न दन्तधावनं कुर्यात् गंगागर्भे विचक्षणः।
परिधायाम्बराम्बूनि गंगा स्रोतसि न त्यजेत्।। ब्रह्म पुराण


वायु
आज वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा जैसे अनेक रोग बढ़ते जा रहे हैं। इंधन के अंधाधुंध प्रयोग हमें मौत के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। आक्सीजन कन्सीटेचर, आक्सीजन सेलेंडर से बाजार पट चुका है। हम जिस नारकीय जीवन की सृष्टि में लगे हैं उसके हम ही दोषी हैं। यदि हम ऋग्वेद के इस मंत्र का मनन किये होते तो आज हमारी यह दुर्दशा नहीं होती।
'वात आ वातु भेषजं शंभू, मयोभु नो हृदे। प्राण आयुंषि तारिषत्'- ऋग्वेद (10/186/1)
शुद्ध ताजी वायु अमूल्य औषधि है जो हमारे हृदय के लिए दवा के समान उपयोगी है, आनन्ददायक है। वह उसे प्राप्त कराता है और हमारे आयु को बढ़ाता है।

जंगल
            कार्बन डाइऑक्साइड सोखने वाले सारे जंगल उजड़ते जा रहे हैं। सन् 1970 से 2002 के बीच पृथ्वी पर से जंगल का प्रतिशत 12 फीसदी कम हो गया है। 
जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव मौसम की अतिशय घटनाओं खासकर लू, बाढ़, सूखे और आंधी की बढ़ती आवृति और तीव्रता की वजह से पड़ रहा है। संक्रामक रोगों के स्वरूपों में बदलाव, वायु प्रदूषण, खाद्य असुरक्षा एवं कुपोषण, अनैच्छिक विस्थापन और संघर्षों से अप्रत्यक्ष प्रभाव भी पैदा हो रहे हैं।
प्राकृतिक आपदा
बढ़ते तापमान से हिमखंडों में जो पिघलने की शुरुआत हो चुकी है, उसका खतरनाक दृश्य भारत, बंगलादेश आदि देशों में देखने को मिल रहा है। बांग्लादेश तीन नदियों के डेल्टा पर आबाद है। बांग्लादेश वर्ष 2080 तक इस देश के समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले पांच से 10 करोड़ लोगों को अपना मूलक्षेत्र छोड़ना होगा। बांग्लादेश के ज्यादातर भूखंड समुद्र तल से महज 20 फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं, बर्फ की शिलाओं के पिघलने से समुद्र का जलस्तर उपर उठेगा तो सबसे ज्यादा जलमग्न भूमि इसी देश की होगी। यहां आबादी का घनत्व भी सबसे ज्यादा है, इसलिए मानव त्रासदी भी इस देश को ही ज्यादा झेलनी होगी। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक बांग्लादेश में धान की पैदावार 10 प्रतिशत और गेहूं की 30 प्रतिशत तक घट जाएगी।
बांग्लादेश के समुद्र तटीय बाढ़ के कारण कृषि भूमि में खारापन बढ़ रहा है। नतीजतन धान की खेती  बर्बाद हो रही है। ऐसे अनुमान हैं कि इस सदी के अंत तक बांग्लादेश का एक चैथाई हिस्सा पानी में डूब जाएगा। मोजांबिक से तवालू और मिश्र से वियतमान के बीच भी जलवायु परिवर्तन से ऐसे ही हालात निर्मित हो जाने का अंदाजा है।
दुनियाभर में 2050 तक 25 करोड़ लोगों को अपने मूल निवास स्थलों से पलायन के लिए मजबूर होना पड़ेगा। जलवायु बदलाव के चलते मालद्वीप और प्रशांत महासागर क्षेत्र के कई द्वीपों को समुद्र लील लेगा। इसी आसन्न खतरे से अवगत कराने के लिए ही मालद्वीप ने कॉर्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिए समुद्र की तलहटी में एक परिचर्चा आयोजित की थी। समुद्र के भीतर यह आयोजन इस बात का संकेत था कि दुनिया नहीं चेती, तो मालद्वीप जैसे अनेक छोटे द्वीपों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। आश्चर्य की बात है, जिस भारतीय समाज में पृथ्वी आदि पंचमहाभूतों को देवता की उपाधि से विभूषित कर वर्षो तक पूजा की गयी तथा जिन संस्कृत के ग्रन्थों ने हरे पेड़ को काटना पाप कहा, वह भी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। अथर्ववेद का ऋषि पृथिवी पर शुद्ध पेय जल के सर्वदा उपलब्ध रहने की ईश्वर से कामना की गयी है-शुद्धा न आपस्तन्वे क्षरन्तु यो नः सेदुरप्रिये तं निदध्मः। पवित्रेण पृथिवि मोत् पुनामि।। आवश्यकता है समय रहते संस्कृत के ग्रन्थों से प्रेरणा लेकर हमें अपनी जीवन पद्धति को बदल लेने की। अंत में मध्य देश में बहने वाली सरस्वती पवित्र बनाने वाली, पोषण देने वाली बुद्धिमत्तापूर्वक ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी सरस्वती ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को सफल बनायें ।
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं वष्टु धियावसुः ॥ ऋग्वेद 

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Recognition/ Equivalence of Sanskrit Degree, Diploma and Certificate

                             संस्कृत के डिग्री, डिप्लोमा तथा सर्टिफिकेट की मान्यता/ समकक्षता


आये दिन राज्य सरकारों की विभिन्न एजेंसियों द्वारा विधि द्वारा स्थापित संस्कृत के बोर्ड/ विश्वविद्यालय की डिग्री को नौकरी तथा अन्य प्रयोजनों के लिए अनर्ह माना जाता है। इस प्रकार का समाचार हमें समाचार पत्रों से ज्ञात होते रहता है। इस प्रकार वे आम जनमानस में संस्कृत संस्थाओं के विरूद्ध कुप्रचार में शामिल हो जाते हैं। इससे संस्कृत पढ़े हुए युवा के मन में भ्रान्ति फैलती है। लोग संस्कृत पढ़ने से कतराने लगते हैं। वास्तव में अज्ञानियों के अज्ञान का दुखद परिणाम संस्कृत की संस्थाओं व छात्रों को झेलना पड़ता है। यहाँ मैं केन्द्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के कार्यालय ज्ञाप (Office memoraidum) की प्रति दे रहा हूँ। इसमें मान्यता के विषय में स्पष्ट उल्लेख है।





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