१. व्याकरण की व्युत्पत्ति- वि+आङ्+कृ+ल्युट् ।
२. व्याक्रियन्ते
व्युत्पाद्यन्ते शब्दाः अनेन इति व्याकरणम्
३. व्याकरण को
"शब्दानुशासन" भी कहा जाता है ।
४.
स्वर-व्यंजन, संधि-समास, शब्द-धातु, प्रकृति-प्रत्यय व स्फोट सिद्धांत व्याकरण के प्रमुख विभाग है ।
५. रक्षा,
ऊह, आगम, लाघव व संदेहनिवारण इसके पञ्च प्रयोजन है ।
६. वेदांगों
में व्याकरण को "मुख" की संज्ञा दी गई है ।
७. व्याकरण के
बिना व्यक्ति को " अंधे" की संज्ञा दी गई है ।
८ . व्याकरण
के महत्त्व को गोपथ ब्राह्मण में स्पष्ट किया गया है- ओम्कारं पृच्छामः- को धातु:,
किं प्रतिपादिकं,
किं
नामाख्यातं, किं लिंगं, किं वचनं, का विभक्तिः, कः प्रत्ययः, कः स्वरः, उपसर्गोनिपात:, किं वै व्याकरणम्...।
९. ऋक्तंत्र
के अनुसार व्याकरण का प्रवर्तन-
प्रथम वक्ता [
ब्रह्मा ] -
बृहस्पति -
इंद्र - भारद्वाज- ऋषियों- ब्राह्मणों- समाज
१०. पाणिनि से
परवर्ती प्रमुख वैयाकरण-
गार्ग्य,
काश्यप, गालव, चाक्रवर्मन् ( ३१०० ईस्वी पूर्व),
आपिशलि, काश्यप, भारद्वाज, शाकटायन ( ३००० ईस्वी पूर्व), सेनक, स्फोटायन ( २९५० ईस्वी पूर्व )
११. व्याकरण
के भेद
छान्दस् (
प्रातिशाख्य )
लौकिक
( कातंत्र [ प्राचीनतम ],
चांद्र,
जैनेन्द्र, सारस्वत
लौकिक-छान्दस्
- पाणिनीय व्याकरण
१२. वोपदेव ने
" कविकल्पद्रुम " में संस्कृत व्याकरण के ८ सम्प्रदायों का उल्लेख किया
है-
इन्द्रश्चंद्र:
काश्कृत्स्नापिश्ली शाकटायन: ।
पाणिन्यमरजैनेन्द्रा:
जयन्त्त्यष्टौ च शाब्दिका: ।।
● पाणिनीय व्याकरण (नव्य व्याकरण)
१. युधिष्ठिर
मीमांसक के अनुसार पाणिनीय व्याकरण शैव संप्रदाय से सम्बंधित है..
२. इसका आधार
१४ माहेश्वर सूत्र है ।
३ पुरुषोत्तम
देव ने "त्रिकांड कोष" में पाणिनि के ६ नाम बताये हैं-
पाणिनिरत्त्वारहिको
दाक्षीपुत्रो शालांकि पाणिनौ ।
शालोत्तरीय....।
४.
शालातुरीयको दाक्षीपुत्र: पाणिनिराहिक: (वैजयंती कोष)
५. पाणिनि के
पिता का नाम शलंक (दाक्षी) था ।
६. ये शालातुर
(लाहौर) के निवासी थे ।
७. राजशेखर के
अनुसार इनके गुरु पाटलिपुत्र (पटना) निवासी "वर्षाचार्य" थे ।
८. युधिष्ठिर
मीमांसक के अनुसार "कात्यायन" इनके साक्षात शिष्य थे ।
९. एक कथा के
अनुसार "त्रयोदशी" के दिन एक शेर द्वारा इनकी हत्या कर दी गई थी,
इसलिए इस दिन व्याकरण पाठ निषेध है।
१०. पाणिनि की
रचनायें-
√अष्टक (अष्टाध्यायी, (शब्दानुशासन)
√ गण पाठ
√ धातुपाठ
√ लिंगानुशासन
√ पाणिनीय शिक्षा
* कुछ विद्वान् "उणादि सूत्रों" को भी इनकी रचना मानते है ।
११. इनकी
रचनाओं को व्याकरण का "पंचांग" कहा जाता है,
क्योंकि यह व्याकरण के पांच प्रमुख अंग है।
१२.अष्टाध्यायी
में कुल ३९९६ सूत्र है जो आठ अध्यायों में विभक्त है ।
१३. SirHunter
- सर हंटर के अनुसार-
अष्टाध्यायी मानव मस्तिष्क का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आविष्कार है,
इसकी वर्ण शुद्धता, धातु अन्वय सिद्धांत व प्रयोजन विधि अद्वितीय है।
वस्तुत:
"पाणिनीय व्याकरण" विश्व की सर्वोत्कृष्ट व्याकरण है ।
१४. प्रो टी शेरावातास्की
के अनुसार - पाणिनि व्याकरण मानव मस्तिष्क की सर्वोत्तम रचना है
●कात्यायन-
१. यह पाणिनि
के साक्षात् शिष्य माने जाते हैं ।
२. इन्होंने
अष्टाध्यायी के सूत्रों को आधार कर "वर्तिकों" की रचना की ।
३.
महाभाष्यकार इनको दक्षिणात्त्य मानते हैं-
√प्रियतद्धिता दाक्षिणात्या
४.
"कथासरित्सागर" में इनको कौशाम्बी निवासी तथा वास्तविक नाम
"वररुचि" बताया गया है-
√ततः सः मर्त्यवपुष्पा पुष्पदंत: परिभ्रमन् ।
नाम्ना
वररुचि: किञ्च कात्यायन इति श्रुतः ।।
५.
समुद्रगुप्त ने "कृष्णचरित काव्य" में इनको "स्वर्गारोहण
काव्य" कर्ता वररुचि व वैयाकरण कात्यायन बताया है ।
६.कालक्रम-
√युधिष्ठिर मीमांसक- २९००-३००० ई०पू०
√लोकमणि दहल- २००० ई०पू०
√सत्यव्रत शास्त्री-२३५० ई०पू०
√मैक्समूलर-३०० ई०पू०
√कीथ- २५० ई०पू०
७. इनकी रचना
"वार्तिक" सम्प्रति स्वतंत्र रूप से अप्राप्त है परन्तु महाभाष्य में
संरक्षित अवश्य है ।
८. वार्तिक-
√उक्तानुक्तादुरक्तचिंता वार्तिकम (राजशेखर)
√ उक्तानुक्तादुरक्तचिंता यत्र प्रवर्तते ।
तं ग्रंथं वर्तिकं प्राहुवार्तिक्ज्ञा मनीषिण:
।। (पराशर पुराण)
९. वार्तिक
वस्तुतः पाणिनीय सूत्रों की समिक्षा, परिष्कार व परिवर्धन है ।
●पतंजलि
१. इनका जन्म
कश्मीर के गोनर्द जनपद में हुआ था ।
२. इनको
"शेषनाग" का अवतार माना जाता है ।
३. वस्तुतः ये
योग व आयुर्वेद के आचार्य थे ।
४. अपर नाम-
√गोणिकापुत्र
√नागनाथ
√अहिपति
√फणी
√शेष
√गोनार्दीय
६. इनका
स्थितिकाल ई०पू० १५० माना जाता है ।
७.रचनायें-
√महाभाष्य [ पाणिनीय सूत्रों व कात्यायन के वर्तिकों का भाष्य ]
√योगसूत्र
√चरक परिष्कार
√महानंद काव्य
८. भाष्य
लक्षण-
" सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र पदै:सूत्रानुसारिभि: ।
स्वपदानि च
वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदु: ।।
९. पाणिनीय
व्याकरण के त्रिमुनियों में इनको सर्वोच्च स्थान प्राप्त है " यथोत्तरम्
मुनीनां प्रमाण्यम् उक्ति इनको पाणिनि व कात्यायन से अधिक प्रमाणिक घोषित करती
है ।
१०. महाभाष्यं
वा पठनीयं महाराज्यं वा पालनीयं इति।
भाषा सरला,
सरसा प्रान्जला च ।अनुपमा हि तत्र संवाद शैली।
३.. भर्तृहरि
- इनको कुछ विद्वान् अवन्ति नरेश विक्रमादित्य अनुज,
कुछ कश्मीर
निवासी,
कुछ चुनार
दुर्ग निवासी बताते हैं ।
- राजस्थान के अलवर जिले में आई सिलीसेढ़ झील के आस-पास का क्षेत्र इनकी तपस्थली
मानी जाती है, यहाँ इनकी गुफा व मंदिर है ।
- कुछ विद्वान् इनको बौद्ध मतावलंबी मानते है ।
- बलदेव उपाध्याय इनका स्थितिकाल ४५० ईस्वी मानते है ।
- √रचनायें-
√महाभाष्यदीपिका
● महाभाष्य की प्राचीनतम टीका
● वर्तमान ने तीन पाद ही उपलब्ध
√वाक्यपदीयं
● तीन कांडों में विभक्त
१.ब्रह्म
(आगम)
२.वाक्य
३. प्रकीर्ण
√वाक्यपदीय टीका
√भट्टिकाव्य
√भागवृत्ति
√शतकत्रय
√ मीमांसाभाष्य
√वेदांतसूत्रवृत्ति
√शब्दधातुसमीक्षा
४.जयादित्य-वामन(८००-५०
ईस्वी)
- आप दोनों विद्वानों ने अष्टाध्यायी का प्रमुख वृतिग्रंथ √काशिका लिखा ।
- आप का जन्मस्थान काशी माना जाता है तथा यही रचित होने के कारण आपका ग्रन्थ
"काशिका" कहलाया
√काशिका देशतो अभिधानं, काशीषु भवा
- इसके
प्रारम्भिक पांच भाग जयादित्य तथा अंतिम तीन वामन ने लिखे है ।
६. कैयट (
१०००-५० ईस्वी)
- आप कश्मीर
निवासी थे, आप के पिता का नाम जैयट था ।
- आप के गुरु
महेश्वेराचार्य थे ।
- आप ने
महाभाष्य पर √प्रदीप नामक टीका लिखी है ।
७. धर्मकीर्ति
( १२००-५० ईस्वी )
- इतिहासकार
वे.वरदाचार्य आप को श्रीलंका निवासी मानते है ।
- आपने √रूपावतार नामक प्रक्रिया ग्रन्थ लिखा ।
८. विमल
सरस्वती (१३०० ईस्वी)
- आपने √रूपमाला नामक प्रक्रिया ग्रन्थ लिखा ।
९. रामचंद्र
(१४०० ईस्वी)
- आप
आंध्रप्रदेश के निवासी थे ।
- आप के पिता
का नाम जनकाचार्य है ।
- आप ने √प्रक्रिया कौमुदी नामक दो भागों में विभक्त प्रक्रिया
ग्रन्थ लिखा।
स्रोत- संकलन
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