संस्कृत भाषा के गुण

संस्कृत भाषा में समानार्थी शब्दों की प्रचूरता है। अँग्रेजी भाषा में cloud के समानार्थी नहीं मिलता है।

संस्कृत भाषा में जल के समानार्थी शब्द नीर , अम्बु , वारि , तोय , पय:, सलिल, उदक आदि हैं।

जल के समानर्थी शब्दों के पीछे आप लगाते चले जाइए और आप बादलके समानार्थी बना लेंगे जैसे नीरद , अम्बुद , वारिद , तोयद ,

क्योंकि का अर्थ है देना , देने वाला बादल हमें पानी देते हैं अतः पानी के संस्कृत शब्दों के पीछे लगाईए और बादल के समानार्थी बनाइये।

जल के समानर्थी शब्दों के पीछे आप लगाते चले जाइए और आप कमल के समानार्थी बना लेंगे जैसे नीरज , अम्बुज , वारिज , तोयज ,

क्योंकि का अर्थ है पैदा होना कमल पानी में पैदा होता है अतः पानी के संस्कृत शब्दों के पीछे लगाईए और कमल के समानार्थी बनाइये।

जल के समानर्थी शब्दों के पीछे आप धिया "निधि:" लगाते चले जाइए और आप सागरके समानार्थी बना लेंगे जैसे अम्बुधि , वारिधि , जलधि ,पयोधि ,उदधि , नीरनिधि, तोयनिधि आदि

क्योंकि धिका अर्थ है धारण करना समुद्र जल को धारण करता है और निधि अर्थात खजाना है अतः पानी के संस्कृत शब्दों के पीछे धिलगाईए और समुद्र के समानार्थी बनाइये।

संस्कृत से प्यार करिए ।

ऐसे कुछ अंग्रेज थे जिन्होंने हमारे शास्त्रों, हमारे ज्ञान और देवभाषा को आत्मसात किया और अपने देश ले गए, उसे सिखा,सिखाया और अपनाया-

कालिदास से उनको प्रेरणा मिली, कणाद से परमाणु का सिद्धांत, महाभारत से बड़ा कोई काव्य नहीं,

ना वेद से पुराने ग्रन्थ...

ना गीता से बड़ा कोई नीति,रीति,राजनीति और प्रबंधन का शास्त्र है..

ऐसे कुछ यूरोपियन्स की सूची जो भारतीय प्राच्य विद्या के विशेषज्ञ माने गए--

1. दुपरोन( Anquetil Duperron) ये फ्रांस के थे, इन्होंने दाराशिकोह द्वारा फ़ारसी में अनूदित उपनिषदों का लैटिन "औपनिखत(Oupnekhat) नामक अनुवाद किया।

2. जोहान फ़िकटे और पॉल दूसान ने वेदांत को सबसे बड़ा सच माना।

3. 1875 में सर चार्ल्स विलकिन्स ने गीता का इंग्लिश अनुवाद किया।

विलियम जोन्स पेशे से जज थे 1784 में इन्होंने एशियाटिक सोसाइटी बनाई,अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अनुवाद और ऋतुसंहार का संपादन किया,1786 में कहा कि-

संस्कृत परम अद्भुत भाषा है। यह यूनानी से अधिक पूर्ण तथा लातिनी से अधिक सम्पन्न है।

जोन्स ने ही सर्वप्रथम यह कहा था कि-

गॉथिक और केल्टिक दोनों परिवार की भाषाओं का उद्गम स्तोत्र संस्कृत है।

जोन्स फ्रांज बाप,मेक्समूलर और ग्रीम के आदर्श रहे है, ये तीनों संस्कृत व भारतीय संस्कृति के प्रमुख यूरोपियन जानकार माने जाते है।

संस्कृत के संपर्क से पूर्व यरोपियनों को फोनेटिक्स तथा उच्चारण प्रक्रिया का ज्ञान नहीं था, निरुक्त और अष्टाध्यायी के अध्ययन के बाद यूरोपियन विद्वानों ने इन विषयों पर शोध तथा लिखना प्रारम्भ किया।

41805 में कोलब्रुक ने वेदों का प्रामाणिक विवरण दिया दर्शन,व्याकरण,ज्योतिष और धर्म शास्त्र पर शोध किया।

5. यूजीन बनार्फ़ ये मेक्समूलर के गुरु थे।

6. मेक्समूलर ने 30 वर्षों तक सायण भाष्य पर शोध कर वेद भाष्य लिखा।

7.गेटे ने शाकुन्तलम् की प्रशंसा में कविता लिखी।

8.शीलर ने मेघदूत को आधार बना "मेरिया स्टुअर्ट" नामक कविता लिखी।

9. विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता "ओड ऑन इन्टीमेशन्स ऑफ़ इमोर्टिलिटी" आत्मा के पुनर्जन्म सिद्धान्त पर आधारित है।

10. शैली की कविता एडोनायज( Adonai's) उपनिषदों पर आधारित है।

11.अमरीकी कवि एमसर्न ने "ब्रह्म" तथा जे.जी. व्हिटियर ने "सोम" नामक कविता लिखी है।

12. आयरलैंड के कवि जार्ज रसेल ने (Over Soul, Krishna,The veils of maya,Om और Indian Song) जैसी शुद्ध भारतीय भाव की कविताये लिखी है।

13. डब्लू.बी.येट्स ने भी शुद्ध भारतीय पृष्ठभूमि पर आधारित कवितायेँ लिखी है- Anushay and Vijay,The Indian upon God और The Indian to his love.

14. स्टुअर्ट बेल्क़ि ने "त्रिमूर्ति" नामक कविता लिखी।

जब सम्पूर्ण पाश्चात्य ज्ञान,विज्ञान और साहित्य का आधार भारत और संस्कृत है तो भारत में संस्कृत को ये सम्मान क्यों नहीं...?

ये आंकड़े हमें ये बताने के लिए काफी है की भारतवर्ष और सनातन धर्म इतना गौरवशाली क्यों है...?

हमें हमारे देश,सभ्यता,संस्कृति,संस्कृत और सनातन धर्म पर गर्व करना चाहिए, इसका संरक्षण,पोषण और विकास करना चाहिए।

जिस से भारत का विकास हो,वापस भारत अपने वैभव,गौरव को प्राप्त करे तथा विश्व का नेतृत्व करें।।

पाइथागोरस प्रमेय " या " बोधायन प्रमेय " कल्पसूत्र ग्रंथों के अनेक अध्यायों में एक अध्याय " शुल्ब सूत्रों " का होता है। " वेदी " नापने की रस्सी को " रज्जू अथवा शुल्ब " कहते हैं। इस प्रकार " ज्यामिति " को " शुल्ब या रज्जू गणित " भी कहा जाता था। अत: " ज्यामिति " का विषय " शुल्ब सूत्रों " के अन्तर्गत आता था।

भिन्न आकारों की वेदी‌ बनाते समय ऋषि लोग मानक सूत्रों (रस्सी) का उपयोग करते थे ।

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