हर घर में, हर विद्यार्थी के पास एक शब्दकोश अवश्य होना चाहिए। इसके बिना भाषा को समझना असंभव सा हो जाता है। भाषा और शब्दों पर अधिकार ही हमें अपनी बात सही तरह कहने की शक्ति देता है। शब्दकोश
एक विशेष प्रकार की पुस्तक होती है। इसके द्वारा हम शब्दों का अर्थ जानते हैं। कई
बार पुस्तक में जो शब्द हम पढ़ते हैं, उनमें
से कुछ शब्द का अर्थ हमारी समझ में नहीं आता। उस शब्द का अर्थ या तो हम किसी दूसरे से पूछते हैं, अथवा किसी शब्दकोश की सहायता लेते हैं। पुस्तक को पढ़ते समय हर अपरिचित
शब्द के अर्थ समझना बहुत आवश्यक होता है। तभी पुस्तक पढ़ने का हमें पूरा ज्ञान मिल
पाता है। हिन्दी शब्दकोश में शब्दों को अकारादि क्रम से लिखा गया होता है, जैसे - -
अंक, अंकगणित, अंकुर, अंकुश,अंग,अंगद,अंगार, अग्नि, आगत, आगम, कक्ष, कक्षा, खग, खगोल।
कई
भाषाओं को लिखने के लिए एक ही लिपि का प्रयोग होता है। जिस भाषा की लिपि अलग होगी,
उसके कोश में वर्णों का क्रम अलग होगा । हिन्दी,
संस्कृत, मराठी, पालि, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी आदि
भारतीय भाषाएँ तथा नेपाली भाषा की लिपि देवनागरी है। हिन्दी तथा संस्कृत के शब्दकोश में वर्ण के क्रम में कुछ परिवर्तन
देखा जाता है। इसका मूल कारण वर्ण के पंचम अक्षर ङ,ञ,ण है। संस्कृत में ये वर्ण अपने क्रम के अनुसार होते हैं,जबकि हिन्दी में ङ ञ तथा ण को अनुस्वार के
रूप में प्रदर्शित कर दिया जाता है। संस्कृत के अङ्क, अङ्ग, उलङ्घ्य को हिन्दी में अंक, अंग तथा उलंघ्य लिखा जाता है। इससे वर्णों के क्रम में परिवर्तन हो जाता है। संस्कृत शब्द कोश में अनुस्वार वाले वर्ण सर्व प्रथम आते हैं यथा- अंशः अंशुः, अंहतिः । यहाँ अनुस्वार अपने बाद वाले वर्ण का पाँचवां अक्षर नहीं बनता। संस्कृत व्याकरण के नियम के अनुसार कुछ अनुस्वार वर्ण अपने बाद वाले वर्ण के वर्ग का पांचवां अक्षर बन जाता है। जैसे- अङ्कः, अङ्कुरः, अङ्कुशः, अङ्गः, अङ्गदम्,अङ्गुलिः में अनुस्वार क और ग का वर्ग कवर्ग का पंचम अक्षर ङ बन गया। वर्ण परिवर्तन का यह रहस्य ध्वनि परिवर्तन से जुड़ा है। हम जैसा उच्चारण करते हैं वैसा ही लिखते भी हैं। हिन्दी शब्दकोश में इस नियम का पालन नहीं किया जाता है। वहाँ वर्ग के पंचम अक्षर को अनुस्वार के रूप में लिखा जाने लगा है। अतः संस्कृत एवं हिन्दी के देवनागरी कोश में वर्णों का क्रम अलग- अलग होता है। अस्तु।
संस्कृत में ईसा पूर्व से ही कोश की रचना होने लगी थी। संस्कृत के कोशों में अमरसिंह कृत अमरकोश की रचना 11वीं शती के पूर्व हो चुकी थी । संस्कृत के कोशकारों में मेदिनीकार से लेकर अमर सिंह तक 24 कोशकारों के नाम प्राप्त होते हैं।
संस्कृत में ईसा पूर्व से ही कोश की रचना होने लगी थी। संस्कृत के कोशों में अमरसिंह कृत अमरकोश की रचना 11वीं शती के पूर्व हो चुकी थी । संस्कृत के कोशकारों में मेदिनीकार से लेकर अमर सिंह तक 24 कोशकारों के नाम प्राप्त होते हैं।
मेदिन्यमरमाला च त्रिकाण्डो रत्नमालिका ।
रन्तिदेवो भागुरिश्च व्याडिः शब्दार्णवस्तथा ॥
द्विरूपश्च कलिङ्गश्च रमसः पुरुषोत्तमः ।
दुर्गोऽभिधाममाला च संसारावर्तशाश्वतो॥
विश्वो बोपालितश्चैव वाचस्पतिहलायुधौ।
हारावली साहसाहसाङ्को विक्रमादित्य एव च ॥
हेमचन्द्रश्च रुद्रमाप्यमरोऽयं सनातनः ।
एते कोशाः समास्याता संख्या पशितिः स्मृता ॥
अमरकोष की टीका तथा अन्य स्रोतों से ज्ञात होता है कि संस्कृत में 86 से अधिक कोश की रचना हुई है।
आज हम जिस प्रकार का शब्द कोश देखते हैं, वैसा वर्णक्रम वाला कोश प्राचीनकाल में नहीं होता था। वेदों के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए सर्वप्रथम यास्क ने निघण्टु नाम से एक वैदिक कोश बनाया। इसमें वेद में प्रयुक्त नाम शब्द तथा धातुओं का संग्रह है।
अमरकोश जैसे शब्दकोश में शब्दों की वर्तनी, लिंग और पर्यायवाची शब्द दिये हैं, जबकि वर्णक्रम वाले वामन शिवराम आप्टे एवं अन्य भारतीय विद्वानों के आधुनिक संस्कृत शब्दकोश में शब्दों की व्युत्पत्ति, वर्तनी,लिंग,शब्दार्थ और पर्यायवाची शब्द दिये रहते हैं। यहां हर शब्द के बाद बताया जाता है कि वह शब्द संज्ञा है या सर्वनाम या क्रियाविशेषण आदि। इस जानकारी के बाद उस का अर्थ लिखा जाता है. ‘‘शब्दकल्प द्रुम’’ (1828-58) तथा ‘‘वाचस्पत्यम’’ जैसे बड़े कोशों में शब्द का अर्थ समझाने के लिए उस की परिभाषा भी होती है। इन जानकारियों के लिए शब्दकोश देखने आना चाहिए। कोशकार कोश देखने और समझने के लिए आवश्यक निर्देंश दिये रहते हैं। आधुनिक संस्कृत कोश में शब्दों के लिंग ज्ञान के लिए अलग से लिंग निर्देश दिया रहता है। किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए उसके पर्यायवाची शब्द तथा व्युत्पत्ति भी दिया जाता है। कई बार उदाहरण के द्वारा भी शब्द के अर्थ को स्पष्ट किया जाता है जैसे- वर्षा के अनेक शब्द हमें पता हैं। पावस और वृष्टि जैसे शब्द शायद हमें नए लगें। इन का अर्थ भी वर्षा है। यह कोश ही बताता है।
हर भाषा में एक ही शब्द
के कई अर्थ होते हैं, तब भी संकट हो जाता है। संस्कृत का
एक शब्द अंक ही लीजिए. इस के क्या-क्या
अर्थ हो सकते हैं, यह हमें शब्दकोश से ही पता चलता है. जैसे-
संख्या, क्रोड, चिह्न, नाटक का एक भाग।अमरकोश जैसे शब्दकोश में शब्दों की वर्तनी, लिंग और पर्यायवाची शब्द दिये हैं, जबकि वर्णक्रम वाले वामन शिवराम आप्टे एवं अन्य भारतीय विद्वानों के आधुनिक संस्कृत शब्दकोश में शब्दों की व्युत्पत्ति, वर्तनी,लिंग,शब्दार्थ और पर्यायवाची शब्द दिये रहते हैं। यहां हर शब्द के बाद बताया जाता है कि वह शब्द संज्ञा है या सर्वनाम या क्रियाविशेषण आदि। इस जानकारी के बाद उस का अर्थ लिखा जाता है. ‘‘शब्दकल्प द्रुम’’ (1828-58) तथा ‘‘वाचस्पत्यम’’ जैसे बड़े कोशों में शब्द का अर्थ समझाने के लिए उस की परिभाषा भी होती है। इन जानकारियों के लिए शब्दकोश देखने आना चाहिए। कोशकार कोश देखने और समझने के लिए आवश्यक निर्देंश दिये रहते हैं। आधुनिक संस्कृत कोश में शब्दों के लिंग ज्ञान के लिए अलग से लिंग निर्देश दिया रहता है। किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए उसके पर्यायवाची शब्द तथा व्युत्पत्ति भी दिया जाता है। कई बार उदाहरण के द्वारा भी शब्द के अर्थ को स्पष्ट किया जाता है जैसे- वर्षा के अनेक शब्द हमें पता हैं। पावस और वृष्टि जैसे शब्द शायद हमें नए लगें। इन का अर्थ भी वर्षा है। यह कोश ही बताता है।
शब्दकोश कई तरह के होते
हैं। संस्कृत से संस्कृत शब्दकोश, संस्कृत से हिन्दी शब्दकोश, हिन्दी से संस्कृत शब्दकोश। इस प्रकार के कोश को द्वैभाषिक कोश कहा जाता है। विद्यार्थियों के लिए कोशों में शब्दों की संख्या सीमित होती ही है। किसी में
दो हजार तो किसी में दस हजार। इनमें आयु और उनकी आवश्कता के अनुसार जो जानकारी दी
जाती है, वह उतनी ही दी जाती है जितनी से उनका काम चल जाए।
छात्रों के लिए बनाया गया शब्दकोश में व्याख्याएँ या परिभाषाएँ बहुत आसान शब्दों
में लिखी जाती हैं। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, वैसे वैसे
शब्दकोशों का स्तर भी ऊँचा होता जाता है। शब्दकोश अलग-अलग विषयों के लिए भी बनाए
जाते हैं। विज्ञान के छात्रों के कोशों में वैज्ञानिक शब्दावली का संकलन होता है। संस्कृत भाषा में भी अनेक विषय हैं। प्रत्येक विषय के अलग - अलग पारिभाषिक कोश होते हैं।
विद्यार्थियों का भाषा
ज्ञान बढ़ाने के लिए विद्यालयों में पर्याय शब्द सिखाए जाते हैं, ताकि वे अपनी बात कहने के लिए सही शब्द काम में ला सकें। उनकी सहायता के
लिए पर्याय कोश बनाए जाते हैं।
यहाँ
सामान्य शब्दकोश और पर्याय कोश का अंतर समझाना जरूरी है। शब्दकोश को हम शब्दार्थ
कोश कह सकते हैं। उनमें किसी शब्द का अर्थ बताने लिए एक दो शब्द ही लिखे जाते हैं.
जैसे-- जल के लिए- अम्ब, अम्बु, तोय, नीर, पय, वारि, सलिल। संस्कृत का अमरकोष, हलायुध कोश आदि पर्याय कोश हैं।
पर्याय कोश से भी आगे
थिसारस होते हैं। थिसारस में पर्यायवाची
तो होते ही हैं, उनसे संबद्ध और उनके विपरीत शब्द भी दिए
जाते हैं। जैसे सुंदर का विपरीत कुरूप, अदर्शनीय, अप्रियदर्शन, असुन्दर, कुदर्शन
आदि।
हमारे पास अब चित्रित
शब्दकोश हैं। हमलोग चित्र देखकर वस्तु को पहचान लेते हैं। कक्षा में हमें
विपरीतार्थवाची भी पढ़ाया जाता है।
आज कम्प्यूटर और
इंटरनेट का युग है। अब अनेक विद्यार्थियों के पास मोबाईल हो गया है। वे इंटरनेट पर
भी सक्रिय रहकर तरह-तरह की जानकारी बटोरते हैं। यहाँ बहुत सारे कोश और थिसारस भी
मिलने लगे हैं। शब्दकल्पद्रुम तथा वाचस्पत्यम् जैसे विशालकाय कोश के लिए ऐप बनाया जा चुका है। यह गूगल प्ले स्टोर पर निःशुल्क उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त हिन्दी से संस्कृत तथा संस्कृत से हिन्दी शब्दकोश के ऐप भी बन चुके हैं। अब ऑनलाइन बहुभाषी कोश की मदद से संस्कृत शब्दों का अर्थ जानना अधिक आसान हो गया है। यहाँ खोजे जा रहे किसी शब्द का किस किस कोश में क्या अर्थ लिखा है, यह जानना भी सुलभ हो गया है। ऑनलाइन संस्कृत कोश में फॉन्ट परावर्तक की सुविधा दी गयी होती है। यहाँ विकल्प भी उपलब्ध होता है कि आप यूनीकोड देवनागरी के द्वारा किसी शब्द को ढ़ूंढ़ना चाहते हैं अथवा IAST (Diacritics)
SLP1, HARVARD – KAYOTO ,HK (ASCII)
द्वारा लिप्यन्तरण की सुविधा चाहते हैं।
मुद्रित संस्कृत शब्दकोश में इच्छित शब्द ढूढने की विधि अत्यन्त सरल है। इसके लिए देवनागरी लिपि का वर्णक्रम याद रहना चाहिए। इसमें पहले स्वर वर्ण है पश्चात् व्यंजन वर्ण। अयोगवाह को अर्ध स्वर मानकर मूल स्वर के बाद इस अक्षर को रखा जाता है। जैसे-
मुद्रित संस्कृत शब्दकोश में इच्छित शब्द ढूढने की विधि अत्यन्त सरल है। इसके लिए देवनागरी लिपि का वर्णक्रम याद रहना चाहिए। इसमें पहले स्वर वर्ण है पश्चात् व्यंजन वर्ण। अयोगवाह को अर्ध स्वर मानकर मूल स्वर के बाद इस अक्षर को रखा जाता है। जैसे-
स्वर-
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
अयोगवाह
अं अः
व्यंजन
कवर्ग से पवर्ग तक
अंतस्थ
और उष्म (य----------ह)
शब्दकोश
के वर्ण-क्रम
स्वरवर्ण-
स्वरयुक्त
व्यंजनवर्ण यथा-
कः
कं क का कि की कु कू के कै को कौ क्
(संयुक्ताक्षर)
इस वर्णक्रम में वैज्ञानिकता और तार्किकता है। जैसा कि ऊपर में वर्णों का क्रम बताया गया है। मोटे तौर पर पहले स्वर वर्ण, पश्चात् अयोगवाह, उसके बाद व्यंजन वर्ण आते हैं। शब्दकोश में अ अक्षर के बाद अं अक्षर से वर्ण का आरम्भ होता है, क्योंकि स्वर अ के बाद अयोगबाह अनुस्वार वर्ण आएगा। आदि के स्वर वर्ण वाले अक्षरों के बाद आदि व्यंजन वाले वर्ण शुरु होते हैं।
इस वर्णक्रम में वैज्ञानिकता और तार्किकता है। जैसा कि ऊपर में वर्णों का क्रम बताया गया है। मोटे तौर पर पहले स्वर वर्ण, पश्चात् अयोगवाह, उसके बाद व्यंजन वर्ण आते हैं। शब्दकोश में अ अक्षर के बाद अं अक्षर से वर्ण का आरम्भ होता है, क्योंकि स्वर अ के बाद अयोगबाह अनुस्वार वर्ण आएगा। आदि के स्वर वर्ण वाले अक्षरों के बाद आदि व्यंजन वाले वर्ण शुरु होते हैं।
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