संस्कृत नाट्य प्रशिक्षण क्यों और कैसे?

संस्कृत भाषा के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए नाट्यकला प्रबलतम साधन है। संस्कृत भाषा को जनभाषा बनाने के लिए अभी तक भाषा के स्तर पर ही प्रयास किया जाता रहा है। जबसे सूचना एवं संचार का तकनीक जन सुलभ हुआ तब से इसका भी उपयोग बढ़ा है,परन्तु इसमें भी रोचकता का अभाव रहा है। संस्कृत के पाठ्यक्रमों में नाट्य शास्त्र का अध्ययन -अध्यापन किया जाता है, परन्तु कहीं भी इसके प्रायोगिक प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं हैं। फलतः इसका प्रदर्शन भी नहीं हो पाता। संस्कृत नाटकों के अभिनय प्रशिक्षण के द्वारा एक साथ दो कार्य पूर्ण किये जा सकते हैं। पहला सामाजिकों एवं रंगकर्मियों का संस्कृत के प्रति अभिमुखीकरण। दूसरा कलात्मक कौशल विकास। संस्कृत नाट्य प्रशिक्षण में मञ्चीय शिल्प, अभिनय कला, ध्वनि संयोजन, संवाद, आहार्य (वेशभूषा एवं साजसज्जा) आदि का गहन प्रशिक्षण के द्वारा संस्कृत नाट्यकला को पुनः जीवन्त किया जा सकता है।
          संस्कृत नाट्य प्रशिक्षण का चातुर्मासिक पाठ्यक्रम या स्वरूप निम्नानुसार बनाया जा सकता है।
मूल विषय
1.     अभिनेता की तैयारी।
2.    मंचीय शिल्प का विधिवत् ज्ञान।
3.    नाट्यकला का उद्भव और विकास का समुचित ज्ञान।
4.    प्रायोगिक प्रदर्शन

अभिनेता की तैयारी
1.     वाणी
(क)  श्वसन प्रणाली ।
(ख) स्वर यंत्र । (शुद्ध, स्पष्ट एवं संतुलित उच्चारण)
(ग) ध्वनि को शब्द में बदलने की प्रक्रिया और उन अंगों पर काम करना।

2.    शरीर पर नियंत्रण (ऊर्जा, संतुलन, लचीलापन)
(क)  करण
(ख) आसन
(ग)  शारीरिक गति और अभिनटन
3.    मस्तिष्क की तैयारी
(क)  धैर्य
(ख) एकाग्रता
(ग) चिन्तनशीलता
(घ)  विश्लेषण शक्ति
(ङ)  तर्क शक्ति
(च)  कुशाग्रता
4.    मन
(क)  सम्वेदनशीलता
(ख) कल्पनाशीलता

मंचीय शिल्प
(क)  रंग स्थापत्य (भारतीय, पाश्चात्य, आधुनिक)
(ख) दृश्य अभिकल्पना (Theatre set designing)
(ग)  वेश अभिकल्पना (costume designing)
(घ) प्रकाश अभिकल्पना या रंगदीपन (light designing)
(ङ)  मुख सज्जा (make up)
(च)  मंच प्रबन्धन (stage management)

नाट्यकला का उद्भव और विकास
(क)  मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण
(ख) यूनानी दृष्टिकोण
(ग) भारतीय दृष्टिकोण

चातुर्मासिक पाठ्यक्रम की समय सारिणी
प्रथम माह -      संस्कृत भाषा के प्रति उन्मुखीकरण ।
दूसरा माह -      अभिनेता की तैयारी ।
तीसरा माह -     नाट्यकला से सम्बन्धित अन्य विषयों का परिचयात्मक ज्ञान तथा प्रस्तुति की तैयारी।
चौथा माह -      प्रस्तुति की तैयारी और मंचन

प्रशिक्षण हेतु अपेक्षित स्थान और संसाधन
30 x 25 फीट का स्थान, 1 कुर्सी, 1 टेबल, 1 आलमारी, हारमोनियम, ढ़ोलक, नगाड़ा, झांझ

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