अभिनवगुप्त और उनकी कृतियाँ

       भारत में जब-जब कश्मीर की चर्चा होगी, परममाहेश्वर शैवाचार्य अभिनवगुप्त याद आते रहेंगे। इनके पिता का नाम नरसिंहगुप्त तथा माता का नाम विमलकला था। उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर कन्नौज के राजा यशोवर्मन् (730-740 ई.) के राज्य में इस कश्मीरी ब्राह्मण के जन्म से 200 वर्ष पूर्व इनके पूर्वज अत्रिगुप्त का जन्म गंगा और यमुना की मध्यभूमि अन्तर्वेदी नाम से विख्यात क्षेत्र में हुआ था।  वहीं से इनके पूर्वज को विद्या प्रेमी तत्कालीन कश्मीर नरेश ललितादित्य ने ससम्मान कश्मीर लाया था।
तमथ ललितादित्यो राजा निजं पुरमानयत्।
प्रणयरभसात् कश्मीराख्यो हिमालयमूर्धगम्।। तन्त्रालोकआह्निक 37 श्लोक 39
इसके बाद का वंश वर्णन करते हुए अभिनवगुप्त कहते हैं कि इनके वंश में वराहगुप्त पैदा हुए । वराहगुप्त अभिनवगुप्त के पितामह तथा नरसिंहगुप्त पिता थे।
       तस्यान्वये महति कोऽपि वराहगुप्तनामा बभूव भगवान् स्वयमन्तकाले ।
       गीर्वाणसिन्धुलहरीकलिताग्रमूर्धा यस्याकरोत् परमनुग्रहमाग्रहेण।। तन्त्रालोकआह्निक 37 श्लोक 53
       
      तस्यात्मजश्चुखलकेति जने प्रसिद्धश्चन्द्रावदातधिषणो नरसिंहगुप्तः ।
      यं सर्वशास्त्ररसमज्जनशुभ्रचित्तं माहेश्वरी परमलंकुरुते स्म भक्तिः।। तन्त्र.,आ.37, श्लोक53।।
तन्त्रालोक के अध्ययन से इनकी जीवनी तथा सगे सम्बन्धियों का पूर्ण ज्ञान हो जाता है। इनका घर श्रीनगर में वितास्ता के तट पर था। उन्होंने अपने तंत्र ग्रंथ तन्त्रालोक में इसका सविस्तार वर्णन किया है।
            काव्यप्रकाश के टीकाकार वामचार्य ने अपनी बालबोधिनी में अध्यापकों द्वारा अभिनवगुप्त नाम रखे जाने का निर्देश दिया है। इदमत्र रहस्यं पुरा किल क्वचिद्वलभो पठतां बहूनां ब्राह्मणबालकानां----- तन्नाम अभिनवगोपानसीगुप्तपाद इति वेदग्ध्यमुखेनाभिव्यनक्ति।
अभिनवगुप्त तथा इनकी रचनाओं का समय
अभिनवगुप्त ने अपने तीन पुस्तक क्रम स्तोत्र, भैरव स्तोत्र तथा ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविवृत्ति विमर्शिनी में इन ग्रन्थों के रचनाकाल का उल्लेख किया है। तदनुसार इनका समय 950 ई. से लेकर 1025 तक माना जा सकता है।
षट्षष्टिनामके वर्षे नवभयामसितेऽहनि।
मयाभिनवगुप्तेन मार्गशीर्षे स्तुतः शिवः।। क्रम स्तोत्र
ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविवृत्ति विमर्शिनी के अनुसार इस पुस्तक का रचनाकाल 4115 सम्वत्सर बीत जाने पर मार्गशीष के अंत में 90 सम्वत्सर में हुआ।
इति नवतितमेऽस्मिन् वत्सरान्ये युगांशे,
तिथिशशिजलधिस्थे मार्गशीर्षावसाने।
जगति विहितबोधां ईश्वरप्रत्यभिज्ञां
व्यवृणुत परिपूर्णा प्रेरितः शम्भुपादैः।।
अभिनवगुप्त ने राजा यशस्कर के मंत्री पुत्र कर्ण को तंत्र सिद्धांतों को समझने के लिए मालिनी विजयवार्तिक की रचना किया था। इसमें उन्होंने  कर्ण और भद्र को सत्शिष्य के रूप में सम्बोधित किया है। तन्त्र सिद्धान्त को समझने के लिए कर्ण और भद्र को युवा होना चाहिए। यशस्कर की मृत्यु 948 ई. में हुई थी। क्षेमेन्द्र ने बृहत्कथा मंजरी और भारत मंजरी में लिखा है कि साहित्य का अध्ययन उन्होंने अभिनवगुप्त से किया था। क्षेमेन्द्र ने समयमातृका की रचना 1050 ईस्वी में तथा दशावतारचरित की रचना 1066 ई. में की थी, अतः इनकी साहित्य रचना का समय 1030 से 1060 समझा जाना चाहिए। अभिनवगुप्त इनसे निकट पूर्व में हुए थे। इस दशा में उनकी साहित्य रचना का समय 900 ईस्वी से 1010 ईस्वी माना जाना चाहिए। इस कालखण्ड में इनका जीवन शैव भक्ति तथा साहित्य साधना में व्यतीत हुआ। लोकश्रुति के अनुसार मगन नामक स्थान की विश्रुत भैरव गुफा में इन्होंने समाधि ली । 
विद्यार्जन
अभिनवगुप्त ने उस विषय के आधिकारिक विद्वानों से विद्या अर्जित किया था। इनके अलग-अलग शास्त्रों के अलग-अलग गुरु थे। कश्मीर से निकलकर वे जालन्धर भी गये तथा शम्भुनाथ से कौल शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की।  इन्होंने अपनी कृतियों में बडे ही सम्मान के साथ अपने गुरुओं का उल्लेख किया है, जिनके विवरण निम्नानुसार हैं-
1.    व्याकरण शास्त्र के गुरु - नरसिंह गुप्त
नरसिंह गुप्त अभिनवगुप्त के पिता थे। इनका दूसरा नाम चुलुखक था।
2.    ध्वनि सिद्धांत के गुरु - भट्ट इंदुराज
ध्वन्यालोक की लोचन टीका के आरम्भ में अभिनवगुप्त ने अपना नाम लेकर स्मरण किया।
भट्टेन्दुराजचरणाब्जकृताधिवासहृद्यश्रुतोभिनवगुप्तपादाभिधोहम्।  
3.    द्वैतवादी शैव सम्प्रदाय के गुरु- भूतिराज तनय
वाक्यपदीय के टीकाकार हेलाराज ने अपना नाम भूतिराज तनय हेलाराज का उल्लेख अनेकवार किया है। सम्भव है कि ये वही भूतिराज तनय हों।
नाट्यशास्त्र के गुरु- भट्टतौत
इस प्रकार अभिनवगुप्त अनेक शास्त्रों के निष्णात विद्वान थे। अलंकार, न्याय, वैशेषिक, वेदांत, शैव, तंत्र, आदि शास्त्रों के सिद्धांतों का इन्होंने अपने अनेक गुरुओं से अध्ययन किया था। अपने ईश्वर प्रत्यभिज्ञा विवृत्ति विमर्शनी में लिखा है कि उन्होंने  नानागुरुप्रवरपादनिपात-जात संवत्सरीरुहविकासनिवेशित- श्रीः। अनेक गुरुओं के चरणों में बैठकर विद्या प्राप्त की।
अभिनवगुप्त की कृतियां
आचार्य अभिनवगुप्त ने अपने गुरुओं का अनुसरण करते हुए अनेक साहित्यों का प्रणयन किया। इन्होंने प्रत्यभिज्ञा दर्शन और त्रिक संप्रदाय की स्थापना की थी। मूल रूप से अभिनवगुप्त दार्शनिक थे परंतु साहित्य शास्त्र पर भी इनका असाधारण अधिकार था।
अभिनव गुप्त की साहित्यिक एवं दार्शनिक विचारों से संबंधित ग्रंथ बहुतायत में प्राप्त होते हैं।  इन्होंने कुल 44 ग्रंथों की रचना की थी, जिसमें से बहुत सारी रचनाएं अब नष्ट हो गई है। तंत्रालोक से लेकर भैरव स्थल जैसे छोटे ग्रंथ को को चार भागों में बांटा जा सकता है।
1.    काव्यशास्त्रीय कृतियां
2.    स्तोत्र
3.    तंत्र
4.    प्रत्यभिज्ञा दर्शन
आचार्य मम्मट अभिनवगुप्त के गुरु थे, जिसे सरस्वती का अवतार कहा जाता है। इनकी लोचन टीका संस्कृत क्षेत्र में अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है इन्हें दुनिया लोग के एक-एक आकार के रूप में ही नहीं अपितु ध्वनि संप्रदाय के संस्थापक एवं प्रवर्तक के रुप में देखा जाता है यह आनंदवर्धन के समकालीन थे आचार्य अभिनवगुप्त आलोचना शास्त्र के इतिहास में गौरव में स्थान रखते हैं इनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलते हुए भारत में आलोचना विषयक चिंतन प्रादुर्भूत हुआ यह अभिनव गुप्त कश्मीर के सेव आचार्य में अनन्यतम थे तथा प्रत्यभिज्ञा दर्शन के मौलिक आचार्य होने के कारण परम महेश्वर आचार्य पदवी से विभूषित किए जाते हैं। यद्यपि अभिनवगुप्त ने स्वतंत्र रुप से किसी काव्यशास्त्र ग्रंथ की रचना नहीं की फिर भी इन्होंने काव्यशास्त्र पर महत्वपूर्ण ग्रंथों टीकाएं लिखी है जिनके विवरण निम्नवत् हैं-
ध्वन्यालोक लोचन
आनंदवर्धन कृत ध्वन्यालोक पर अभिनवगुप्त की लोचन टीका प्राप्त होती है। इसे सहृदय लोक लोचन, काव्यालोक लोचन और ध्वन्यालोक लोचन नाम दिया जाता है। इसी टीका के कारण साहित्यकार इन्हें लोचनकार नाम से भी पुकारते हैं। काव्यशास्त्र के क्षेत्र में इस टीका का अतिशय महत्व है। इसमें ध्वनि और रस निष्पत्ति के तथ्यों की विशेष विवेचना की गई है तथा ध्वनिविरोधी मतों का दृढ़तापूर्वक खंडन किया गया है। अभिनव गुप्त ने अपने इस टीका में अपने से पूर्ववर्ती टीकाकारों के मतों को भी उद्धृत किया है।
          किं लोचनं विना लोके भाति चंद्रिकया  हि।
         तेनाभिनवगुप्तोयं लोचननोन्मीलनं व्यधात्।।
ध्वन्यालोक लोचन पर भी एक टीका कोल के विद्वान् उदयोतुग ने लिखी थी, जिसे कौमुदी नाम से जाना जाता है।
अभिनवभारती
भरत के नाट्यशास्त्र पर अभिनव भारती नामक टीका प्राप्त होती है। इसका दूसरा नाम नाट्यवेद विवृत्ति भी है। नाट्यशास्त्र पर प्राचीन काल में अनेक टीकाएं लिखी गई, परंतु आज केवल यही टीका उपलब्ध है। नाट्यशास्त्र के विषयों की जानकारी के लिए यह टीका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। इसमें प्राचीन भारत की नाट्यकला (अभिनय,नृत्य संगीत) आदि विषयों की जानकारी बहुत ही गहराई से दी हुई है। देखा जाए तो अभिनव गुप्त द्वारा नाट्यशास्त्र पर लिखा गया यह एक स्वतंत्र और मौलिक रचना की भांति है, परंतु दुर्भाग्य है कि यह टीका पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है।
काव्यकौतुक विवरण
इस ग्रंथ के रचनाकार अभिनवगुप्त के गुरु भट्टतोत हैं। अभिनवगुप्त ने इस पर विवरण नामक टीका लिखी है। आज यह ग्रंथ और टीका दोनों उपलब्ध नहीं होते हैं। अभिनव भारती तथा ध्वन्यालोक लोचन में कहीं-कहीं उसके उद्धरण प्राप्त होते हैं।
2. स्तोत्र
आचार्य अभिनवगुप्त ने अनेक स्तोत्र ग्रंथों की रचना की। इनमें कुछ स्तोत्र बड़े हैं तथा कुछ छोटे हैं। भैरवस्तवकर्म स्तोत्र आदि वृहदाकार में है और बोधपंचाशिका आदि छोटे आकार के हैं। उनके द्वारा रचित स्तोत्रों के विवरण निम्नानुसार हैं-
देवी स्तोत्र विवरण शिव शक्ति बिना भाव स्तोत्र प्रकरण स्तोत्र इत्यादि
क्रमस्तोत्र
त्रिक विद्या की प्रशंसा में लिखा गया यह ग्रंथ है।
भैरवस्तोत्र
शिव की दार्शनिक स्तुति की गई है, जो कि कश्मीर में बहुत ही प्रसिद्ध है।
देहस्थदेवताचक्र स्तोत्र
अनुभवनिवेदन स्तोत्र
क्रमकेलि
यह ग्रंथ  अनुपलब्ध है।
मालिनी तंत्र पर पूर्वपंञ्चिका अनुपलब्ध है।
अनुत्तराष्टिका स्तोत्र
3 तंत्र
आचार्य अभिनव गुप्त की कृतियों में एक भाग तंत्रों से संबंधित है इनका तंत्रालोक अत्यंत ही प्रसिद्ध ग्रंथ है। मालनी विजय भारती परात ऋषि का विवरण तथा तंत्रालोक सार भी तंत्र ग्रंथ हैं।
तंत्रालोक
अभिनव गुप्त की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति तंत्रालोक है। यह अनेक प्रकाशकों के द्वारा अनेक खंडों में प्रकाशित किया जा चुका है। इसमें कुल, तंत्र, क्रम तथा प्रत्यभिज्ञा आदि सभी विचारधारा के समस्त पक्षों का विस्तारपूर्वक व्याख्या प्रस्तुत है। इसमें कर्मकांड और दर्शन दोनों का व्यवस्थित विवेचन किया गया है। शैव दर्शन का यह सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। चंद्रलोक पर जयरथ ने विवेक नामक टीका लिखी है। आज इस पुस्तक पर अनेकों टीकाएं प्राप्त होती है। इसमें कुल चौदह आह्निक और 30059 श्लोक हैं।
तंत्रसार
यह तंत्रालोक की शिक्षाओं का गद्यात्मक सारांश ग्रंथ है।
मालिनीविजयवार्तिक
यह ग्रन्थ परमार्थ विद्या और दर्शन के बहुत सारे रहस्यपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालता है। त्रिक संप्रदाय का गहन ग्रंथ है। इस पर अभी तक कोई भी टीका उपलब्ध नहीं हो सकी है।
परात्रिंशिकाविवरण
यह एक आगम का ग्रंथ है, जिस पर मातृका मालिनी और कश्मीर शैवदर्शन के दूसरे रहस्यपूर्ण और गुढ व्यावहारिक सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया है।
5.प्रत्यभिज्ञा दर्शन
शिवदृष्ट्यालोचन
यह शिव दृष्टि पुस्तक पर लिखी गई टीका है, परंतु यह अभी उपलब्ध नहीं होती।
आचार्य अभिनवगुप्त ने प्रत्यभिज्ञा दर्शन विवाद वित्त से संबंधित की भी रचना की इस दर्शन पर मूल रूप से कार्यक्रम और व्यक्ति की रचना उत्पल गुप्त ने किया था जोकि अभिनवगुप्त के दादागुरु थे अर्थात अभिनवगुप्त के गुरु लक्ष्मण गुप्त तथा उनके गुरु उत्पल गुप्त थे कार्य का ग्रंथ का नाम ईश्वर प्रत्यभिज्ञा और व्यक्ति का नाम ईश्वर प्रत्यभिज्ञा निवृत्ति है इस पर अभिनवगुप्त में विस्तृत टीका लिखी है जो कि ईश्वर प्रत्यभिज्ञा विवर्त यूनिवर्सिटी के नाम से प्राप्त होती है अभिनवगुप्त ने प्रतिज्ञा दर्शन पर दो विमर्श में लिखी है इनमें से एक प्रत्यभिज्ञा विमर्श नी है जिसे लघु वृत्ति भी कहा जाता है तथा दूसरी गाड़ी का वृद्धि पर विमर्श नी प्राप्त होती है जो कि ईश्वर प्रत्यभिज्ञा व्यक्ति विमर्श नी है है इस ग्रंथ के अंत में अभिनव गुप्ता ने लिखा है कि भगवान शिव के उस मार्ग को सरल और सार्वजनिक सुलभ बनाया है जिसे गुरुओं ने निरूपित किया जो इस मार्ग का अनुसरण करता है वह पूर्ण हो कर शिव रूप हो जाता है।
ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी
परमार्थसार
 इस पर छह में राज केसीसी योग राजनीति का लिखी है।
परमार्थचर्चा
इसमें शैवाद्वैत को दर्शाया गया है।
बोधपञ्चदशिका
इसमें वह कश्मीरी शैव दर्शन पर संक्षिप्त में चर्चा की गई है।
गीतार्थसंग्रह

अभिनवगुप्त में भगवत् गीता पर गीतार्थ संग्रह नामक गीता भाष्य भी लिखा था, जिसकी शिक्षा उन्होंने भट्टेन्दु राज से प्राप्त की थी।  
शैव दर्शन पर लिखित पुस्तक की जानकारी के लिए यहाँ चटका लगायें।
 इस लेख से यदि आपको थोडी भी सहायता मिलती है तो मैं अपना लेखन सार्थक समझूँगा।यथासमय इस लेख को और विस्तृत करने का प्रयास करुँगा। अभी बस इतना हीं।
आपका स्नेही ब्लागर
जगदानन्द झा, लखनऊ
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8 टिप्‍पणियां:

  1. काश्मीर शैवदर्शन पर आपका संक्षिप्त लेख अति सराहनीय एवं ज्ञानप्रद है।

    जवाब देंहटाएं
  2. और जानकारी की अपेक्षा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. समय मिलते ही अशुद्धि परिमार्जन तथा लेख का विस्तार करूँगा।

      हटाएं
  3. आपके इस विद्वत्तापूर्ण आलेख ज्ञानवर्धक है. इसके लिए मैं आपका आभाऋ हूँ. आपको श्रध्दापूर्वक सादर प्रणाम.

    जवाब देंहटाएं
  4. Sir isse kripya sanskrit m likhe please ...mujhe sanskrit m dena h. Clg m...

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रणाम 🙏🏻
    आपका यह शोध एवं शुद्धतम कार्य अत्यंत सराहनीय है ।।
    सहृध्य धन्यवाद ।।

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