संस्कृत का स्वरूप और भेद
अक्सर लोग आकर कहते हैं- मैं संस्कृत पढ़ना चाहता हूं। मैं पूछता हूं - आप संस्कृत क्यों पढ़ना चाहते हैं? उनका उत्तर होता है, ताकि मैं हिंदू धर्म ग्रंथों को पढ़ सकूँ। कुछ लोग कहते हैं- मुझे प्राचीन ज्ञान- विज्ञान को जानने की उत्सुकता है। जैसे- गीता, रामायण, पुराण, वेद,उपनिषद् आदि। कितने उत्साह के साथ लोग संस्कृत सीखने आते हैं। थोड़े दिनों में उनका उत्साह कम पड़ जाता है। कारण कि वे संस्कृत भाषा की बनावट को नहीं समझे होते हैं। उन्हें यह नहीं पता कि संस्कृत भाषा किन- किन प्रक्रियाओं से गुजर कर अपने स्वरूप को पाती है। किस प्रकार की तैयारी चाहिए? कितना समय लग सकता है? संस्कृत सीखने के लिए वर्तमान में कौन-कौन संसाधन उपलब्ध है? क्या घर बैठे विना किसी व्यक्ति की सहायता से संस्कृत सीखी जा सकती है? संस्कृत सीखने के लिए कहाँ से आरम्भ किया जाय? प्रश्न अनेक तो उत्तर भी अनेक हैं। भाषा शिक्षण की कोई भी एक सुनिश्चित विधि नहीं होती। आयुवर्ग के आधार पर सीखने तथा सिखाने की प्रक्रिया बदल सकती है। निश्चित पुस्तक पढ़ने तथा अनिश्चित पुस्तक पढ़ने के लिए संस्कृत सीखने की प्रक्रिया बदल जाती है। संस्कृत सिखाने की अनेक विधियाँ प्रचलन में आ चुका है। सबका समाधान यहाँ प्रस्तुत है।
निश्चय ही संस्कृत सीखना बहुत ही आनन्दप्रद है। यदि थोड़ा भी संस्कृत आ जाय तो हम इससे बहुत आनन्द ले सकते हैं। जानकारी जुटा सकते हैं । भारतीय ज्ञान परम्परा को ठीक से समझ सकते हैं। जीवन में आने वाले हर संकट का समाधान ढूंढ सकते है। विना अधिक खर्च किये स्वरोजगार कर सकते है। लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं, आदि।
निश्चय ही संस्कृत सीखना बहुत ही आनन्दप्रद है। यदि थोड़ा भी संस्कृत आ जाय तो हम इससे बहुत आनन्द ले सकते हैं। जानकारी जुटा सकते हैं । भारतीय ज्ञान परम्परा को ठीक से समझ सकते हैं। जीवन में आने वाले हर संकट का समाधान ढूंढ सकते है। विना अधिक खर्च किये स्वरोजगार कर सकते है। लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं, आदि।
भाषा और उसमें निहित ज्ञान दोनों अलग- अलग परन्तु परस्पर संबद्ध है।
आइए, पहले यह स्पष्ट कर लें कि आप संस्कृत में निहित विषयों को जानना चाहते हैं या भाषा? अधिकांश लोग इस भाषा में निहित ज्ञान सम्पदा को ही जानना चाहते हैं। विषयों तक की यात्रा का साधन भाषा है। प्रत्येक भाषा अपने परिवेश को समेटते हुए आगे की यात्रा करती है। अतएव उसमें वहाँ का इतिहास एवं संस्कृति स्वतः देखी जा सकती है। हम संस्कृत भाषा के माध्यम से संस्कृत ग्रन्थों में लिखे अपार ज्ञान को पा सकते हैं, जिसमें भारतीय इतिहास, आचार, संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। विषयों को समझने के लिए प्रौढ़ भाषा, जबकि व्यवहार में उपयोग के लिए सामान्य संस्कृत की जानकारी चाहिए। इसे बहुत कम समय में सीखा जा सकता है।
आइए, पहले यह स्पष्ट कर लें कि आप संस्कृत में निहित विषयों को जानना चाहते हैं या भाषा? अधिकांश लोग इस भाषा में निहित ज्ञान सम्पदा को ही जानना चाहते हैं। विषयों तक की यात्रा का साधन भाषा है। प्रत्येक भाषा अपने परिवेश को समेटते हुए आगे की यात्रा करती है। अतएव उसमें वहाँ का इतिहास एवं संस्कृति स्वतः देखी जा सकती है। हम संस्कृत भाषा के माध्यम से संस्कृत ग्रन्थों में लिखे अपार ज्ञान को पा सकते हैं, जिसमें भारतीय इतिहास, आचार, संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। विषयों को समझने के लिए प्रौढ़ भाषा, जबकि व्यवहार में उपयोग के लिए सामान्य संस्कृत की जानकारी चाहिए। इसे बहुत कम समय में सीखा जा सकता है।
संस्कृत में वाक्य की संरचना
हम सबसे पहले संक्षेप में इसके वाक्य संरचना के बारे में चर्चा करें । श्लोक, संस्कृत की सबसे पुरानी विधा है। यह पद्यात्मक होता है। आपने सुभाषित का नाम सुना होगा। श्लोकबद्ध नीति वचन या सुभाषित संकेतात्मक होते हैं। शास्त्र ग्रन्थ सूत्रों में कहे गये हैं। शास्त्रों में विभिन्न विषयों को एक सुनिश्चित अनुसाशन में बांधा गया है। आजकल हम गद्य शैली में बोलते हैं। संस्कृत में लिखित गद्य की वाक्य संरचना, इसमें शब्दों की स्थिति पद्य से भिन्न होती है। परन्तु संस्कृत का गद्य ठीक उस रूप में लिखा नहीं मिलता जैसे कि हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का गद्य होता है। यहाँ कारक के कारण गद्य के किसी वाक्य को लिखने का कोई सुनिश्चित क्रम नहीं है। सबसे पहले यह तय करें कि आप किस काम के लिए संस्कृत भाषा सीखना चाहते हैं। यदि आप पहले कहे गये में से किसी भी उद्येश्य के लिए संस्कृत सीखना चाहते हैं तो संस्कृत भाषा में शब्द निर्माण की प्रक्रिया एवं इसके वाक्य विन्यास को समझना होगा। बताता चलूँ कि कुछ मूल शब्दों (प्रकृति), प्रत्ययों (धातु और प्रातिपदिक के अंत में लगने वाले अंश), उपसर्ग तथा निपात के संयोग से संस्कृत में नये शब्द बन जाते हैं । इसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगें।
हम सबसे पहले संक्षेप में इसके वाक्य संरचना के बारे में चर्चा करें । श्लोक, संस्कृत की सबसे पुरानी विधा है। यह पद्यात्मक होता है। आपने सुभाषित का नाम सुना होगा। श्लोकबद्ध नीति वचन या सुभाषित संकेतात्मक होते हैं। शास्त्र ग्रन्थ सूत्रों में कहे गये हैं। शास्त्रों में विभिन्न विषयों को एक सुनिश्चित अनुसाशन में बांधा गया है। आजकल हम गद्य शैली में बोलते हैं। संस्कृत में लिखित गद्य की वाक्य संरचना, इसमें शब्दों की स्थिति पद्य से भिन्न होती है। परन्तु संस्कृत का गद्य ठीक उस रूप में लिखा नहीं मिलता जैसे कि हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का गद्य होता है। यहाँ कारक के कारण गद्य के किसी वाक्य को लिखने का कोई सुनिश्चित क्रम नहीं है। सबसे पहले यह तय करें कि आप किस काम के लिए संस्कृत भाषा सीखना चाहते हैं। यदि आप पहले कहे गये में से किसी भी उद्येश्य के लिए संस्कृत सीखना चाहते हैं तो संस्कृत भाषा में शब्द निर्माण की प्रक्रिया एवं इसके वाक्य विन्यास को समझना होगा। बताता चलूँ कि कुछ मूल शब्दों (प्रकृति), प्रत्ययों (धातु और प्रातिपदिक के अंत में लगने वाले अंश), उपसर्ग तथा निपात के संयोग से संस्कृत में नये शब्द बन जाते हैं । इसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगें।
संस्कृत भाषा का विकासक्रम
हिंदी तथा अन्य भाषाओं की तरह संस्कृत भाषा अलग-अलग कालखंडों में अलग-अलग स्वरूप को धारण करती रही है। कालखण्ड तथा प्रकृति को देखते हुए संस्कृत भाषा के दो स्वरूप हैं-
1- वैदिक संस्कृत 2- लौकिक संस्कृत
वैदिक संस्कृत का व्याकरण और शब्दकोश लौकिक संस्कृत से पृथक् है। वेद से लेकर ब्राह्मण और उपनिषद् की भाषा वैदिक है।
वाल्मीकि रामायण, पुराण एवं बाद के अन्य साहित्य ग्रंथों की रचना लौकिक संस्कृत में की गई है। लौकिक संस्कृत में रामायण की भाषा सरल जबकि परवर्ती लेखकों की भाषा कठिन होती चली गयी। जैसे रामायण की अपेक्षा श्रीमद्भागवत की भाषा कठिन है। अश्वघोष की अपेक्षा श्रीहर्ष की भाषा कठिन है।
साहित्यिक भाषा बनाम बोलचाल की भाषा
लौकिक संस्कृत का लिखित तथा मौखिक दो स्वरूप हैं। दोनों प्रकार की भाषा में मौलिक अन्तर यह है कि लिखित में व्याकरण का तथा अप्रचलित या प्रौढ भाषा का प्रयोग बहुतायत किया जाता है। इसको सीखने के लिए आपको ज्यादा मेहनत करनी होगी। मौखिक संस्कृत या बोलचाल में प्रयोग आने वाले संस्कृत के लिए कम से कम शब्दों एवं व्याकरण की आवश्यकता है। इसके लिए ज्यादा बोलने के अभ्यास की आवश्यकता है। इसे सीखने की पद्धति भी अलग है। संस्कृत साहित्य को जानने के लिए मौखिक संस्कृत सीखना प्रवेश द्वार हो सकता है।
संस्कृत कैसे सीखें
संस्कृत भाषा को सीखने के लिए अनेक आयाम हो सकते हैं। न्यायसिद्धान्तमुक्तावली-शब्दखंड का यह श्लोक हमेशा याद रखना चाहिए। शब्द के अर्थ को बताने वाली प्रक्रिया को शक्तिग्रह के नाम से कहा गया है। इसमें अनेक साधनों में लोक व्यवहार के द्वारा शब्दों के अर्थ को समझना प्रधान साधन कहा गया है।
शक्तिग्रहं व्याकरणोपयानकोशाप्ततवाक्याद् व्यवहारतश्च।
वाक्यस्य शेषाद् विवृतेर्वदन्ति सान्निध्यत: सिद्धपादस्य वृद्धा:॥
अर्थात्- 1- व्याकरण, इसके द्वारा शब्दों के लिंग, वचन, पुरूष, शब्दरूप, धातुरूप, प्रत्यय, कारक, सन्धि, समास का ज्ञान करके भाषा सीख सकते हैं। 2- उपमान (व्यक्ति,वस्तु एवं क्रिया आदि का समानार्थी/ विलोम आदि शब्द) 3- कोश (अनेक प्रकार के शब्द कोश) 4- आप्त वाक्य, ऋषियों/ महापुरूषों द्वारा प्रयुक्त शब्द 5- लोक व्यवहार, संसार की अनेक भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है अतः उनमें संस्कृत भाषा के शब्द पाये जाते हैं। मराठी, बंगाली, हिन्दी भाषाओं में 70 प्रतिशत से अधिक शब्द संस्कृत निष्ठ हैं। 6- वाक्य शेष (सम्पूर्ण वाक्य का भावार्थ) 7- विवृत्ति (व्याख्या, वाक्य का कथ्य ) और सिद्ध (जान चुके शब्द) पद के द्वारा (अर्थ) का बोध होता है।
इसीलिए संस्कृत भाषा सीखने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रतिदिन संस्कृत की पुस्तकों, पत्रिकाओं को पढ़े। संस्कृत में दिये गये व्याख्यान या बातचीत को सुनें।
यहाँ मैं लिखित संस्कृत सीखने हेतु टिप्स दे रहा हूँ।
अध्ययन के सहायक उपकरण--
1. संस्कृत भाषा में लिखे ग्रंथों को पढ़ने के लिए सबसे पहले आपके पास एक शब्दकोश होना चाहिए, ताकि आप संस्कृत का अर्थ जान सकें।
2. संस्कृत एक संश्लिष्ट भाषा है, जिसमें प्रत्येक अक्षर, प्रत्येक पद आपस में जुड़ जाते हैं। आपस में जुड़े शब्दों को कभी-कभी तो पहचाना जा सकता है, परंतु कभी-कभी वह अपने मूल स्वरुप से इतने भिन्न हो जाते हैं कि पहचान करना कठिन होता है। इसके लिए आपको सरल से कठिन की ओर बढ़ना है।
3. प्रारम्भ में आप कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए लिखी गयी संस्कृत की पाठ्य पुस्तकें लें। ये पुस्तकें बहुत अधिक उपयोगी हो सकती है । इसे आद्योपान्त पढ़ें। इसके अभ्यास को ठीक उसी तरह पूरा करें, जैसे कोई बच्चा करता है। अपनी योग्यता का आकलन करते हुए आगे बढ़ें।
4. यदि आप संस्कृत भाषा का उच्चारण करना भी सीखना चाहते हैं तो संस्कृत के स्तोत्रों, गीतों को सुनें तथा वैसा ही उच्चारण करने का अभ्यास भी करें। अब इन्टरनेट पर इस विषय में प्रभूत सामग्री मिलने लगी है। इस ब्लॉग पर सस्वर आलवन्दार स्तोत्र, रघुवंशम् द्वितीय सर्ग जैसे कई माध्यम हैं, जहाँ ध्वनि जोड़ा गया है। मेरे यूट्यूब चैनल पर भी वाल्मीकि रामायण, अनेक संस्कृत गीत तथा स्तोत्रों के पाठ हैं। संस्कृतभाषी ब्लॉग पर Audio books नामक मीनू बटन दिया गया है। इससे अभ्यास करें।
4. यदि आप संस्कृत भाषा का उच्चारण करना भी सीखना चाहते हैं तो संस्कृत के स्तोत्रों, गीतों को सुनें तथा वैसा ही उच्चारण करने का अभ्यास भी करें। अब इन्टरनेट पर इस विषय में प्रभूत सामग्री मिलने लगी है। इस ब्लॉग पर सस्वर आलवन्दार स्तोत्र, रघुवंशम् द्वितीय सर्ग जैसे कई माध्यम हैं, जहाँ ध्वनि जोड़ा गया है। मेरे यूट्यूब चैनल पर भी वाल्मीकि रामायण, अनेक संस्कृत गीत तथा स्तोत्रों के पाठ हैं। संस्कृतभाषी ब्लॉग पर Audio books नामक मीनू बटन दिया गया है। इससे अभ्यास करें।
5. बाजार में कई ऐसी पुस्तकें आ चुकी है, जो संस्कृत सीखाने में सहायक है। पुस्तक खरीदते समय यह ध्यान रखें कि उसमें अभ्यास करने की व्यवस्था हो। लेख के अंत में पुस्तकों की सूची उपलब्ध करा दी गयी है। संस्कृत सीखने की सहायक सामग्रियां जैसे- आडियो, विडियो, चित्र पद कोश संस्कृत सीखने के रुचिकर साधन हैं। 10 वर्ष तक के आयुवर्ग के बच्चे इस ओर अधिक आकर्षित होते हैं।
6. रामायण, पुराण या संस्कृत भाषा में प्रकाशित होने वाली साप्ताहिक, पाक्षिक या दैनिक पत्रिका प्रतिदिन पढ़ें। इसी ब्लॉग में संस्कृत पत्रिकाओं के नाम एवं पता के लिंक पर जायें।
7. एक ऐसा जानकार व्यक्ति जो आवश्यकता पड़ने पर फोन या अन्य द्वारा आपको मदद कर सके।
8. प्रतिदिन संस्कृत की पुस्तक या पत्रिका के लेख से एक पृष्ठ लिखें।
9. संस्कृत व्याकरण की आरम्भिक जानकारी के लिए संस्कृतभाषी ब्लॉग पर जायें। लेखानुक्रमणी में दिये 16 फरवरी 2019 से 10 अप्रैल 2019 के मध्य के पोस्ट को पढ़ें। इसमें लघुसिद्धान्तकौमुदी का सभी प्रकरण को सरल हिन्दी अनुवाद के साथ उपलब्ध कराया गया है। यह आपके लिए उपयोगी होगा है।
8. प्रतिदिन संस्कृत की पुस्तक या पत्रिका के लेख से एक पृष्ठ लिखें।
9. संस्कृत व्याकरण की आरम्भिक जानकारी के लिए संस्कृतभाषी ब्लॉग पर जायें। लेखानुक्रमणी में दिये 16 फरवरी 2019 से 10 अप्रैल 2019 के मध्य के पोस्ट को पढ़ें। इसमें लघुसिद्धान्तकौमुदी का सभी प्रकरण को सरल हिन्दी अनुवाद के साथ उपलब्ध कराया गया है। यह आपके लिए उपयोगी होगा है।
10. केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, संस्कृतभारती तथा अन्य अनेक संस्थायें पत्राचार द्वारा संस्कृत सिखाने का कोर्स चलाती है, जो दो वर्ष से लेकर 4 वर्ष तक की होती है।
11. केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली देश भर में अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण केन्द्र स्थापित किया है। यहाँ प्रत्येक कार्यदिवसों में दो- दो घंटे की कक्षा लगती है। जिसके माध्यम से संस्कृत सीखना आसान है।
12. बोलचाल में प्रयोग होने वाली संस्कृत भाषा को सीखाने के लिए संस्कृतभारती का प्रशिक्षण केन्द्र देश के लगभग प्रत्येक जनपद में स्थापित है। दिल्ली में सालों भर 15-15 दिनों की आवासीय कक्षा सतत संचालित होते रहती है। संस्कृतभारती के प्रान्त कार्यालयों द्वारा वर्ष में एक बार आवासीय संस्कृत प्रशिक्षण शिविर लगाया जाता है,जहाँ आप मात्र 10 दिनों में कार्यसाधक संस्कृत बोलना सीख जाते हैं। संस्कृत सीखने की उपयोगी पुस्तकें तथा अनेक शैक्षणिक गतिविधि भी यहाँ संचालित होते हैं।
13. उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ, वाराणसी में आवासीय संस्कृत प्रशिक्षण शिविर का संचालन करता है। यह ऑनलाइन माध्यम से भी संस्कृत सिखाता है। इसके लिए आप https://www.sanskritsambhashan.com/ इस वेबसाइट पर जाकर अपना पंजीकरण कर सकते हैं।यहाँ आप अपनी सुविधा के अनुसार सीखने के समय का चयन कर सकते हैं। उत्तरांचल आदि राज्यों में स्थापित संस्कृत अकादमी तथा अन्य स्वयंसेवी संस्था भी समय समय पर संस्कृत सीखाने हेतु अल्पकालीन कक्षाओं का संचालन करती है।
14. इस ब्लॉग के HOME बटन पर क्लिक करें। HOME मीनू बटन के निकट ही संस्कृत शिक्षण पाठशाला का मीनू बटन है। इसके सबमीनू में संस्कृत शिक्षण ट्यूटोरियल, सोशल मीडिया द्वारा संस्कृत शिक्षण, संस्कृत शिक्षण पाठशाला के चारों भाग तथा अभ्यास दिये गये हैं। कम्प्यूटर पर यह लेख पढ़ने वाले को इस प्रकार चित्र दिखेगा।
इसमें आप संस्कृत शिक्षण पाठशाला 1 से पढ़ना आरम्भ करें। यह व्याकरण के माध्यम से संस्कृत सिखाने की विधि है। इसे अपने 30 वर्षों का शैक्षणिक अनुभव के साथ संस्कृत सीखने की सैकड़ों पुस्तकों पढ़ने के बाद तैयार किया गया है। इसके माध्यम से वे व्यक्ति भी संस्कृत भाषा में पारंगत हो सकते हैं, जिन्होंने अपने जावन में कभी भी संस्कृत नहीं सीखा हो। इसमें वर्ण परिचय से आरम्भ करके वाक्य निर्माण करने तक की शिक्षा की गयी है। प्रत्येक पाठ में नियम तथा उाहरण दिये गये हैं। इसके बाद अभ्यास भी दिया गया है। यहाँ अभ्यास करने लिए प्रत्येक पाठ में लिंक भी जोड़े गये हैं। इसके माध्यम से घर बैठे संस्कृत सीखा जा सकता है। डिजिटल माध्यम द्वारा संस्कृत सीखने का यह सर्वोत्तम मंच है। जो लोग मोबाइल पर संस्कृतभाषी के माध्यम से संस्कृत सीखना चाहते हैं, उन्हें यह ब्लॉग इस तरह दिखेगा।
मोबाइल से लिये गये इस चित्र में आपको Memu लिखा दिख रहा होगा, जिसके आगे एक ड्राप डाउन बटन दिख रहा है। ब्लॉग पर उपलब्ध सामग्री को पढ़ने के लिए इस बटन के आगे ड्रापडाउन पर क्लिक करने के उपरान्त आपको नीचे दिये गये चित्र के समान दिखने लगता है। इस ब्लॉग की सामग्री पढ़ने अथवा संस्कृत सीखने में असुविधा होने पर 7388 8833 06 पर मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं।
इसे नीचे खिसकाते हुए अन्य लेख को भी देख सकते हैं। यहाँ सम्बन्धित पोस्ट पर क्लिक करके पढ़ा व सीखा जा सकता है। इसकी सहायता से आप आरम्भिक संस्कृत सीखने से लेकर प्रौढ़ संस्कृत सीख सकते हैं। यहाँ सन्धि, समास, कारक, सुबन्त और तिङन्त की प्रक्रिया, सुबन्त और तिङन्त का प्रत्यय भी दिये गये हैं। क्रिया को तिङन्त तथा शेष को सुबन्त कहा जाता है। इसको पढ़ने के बाद आपको किसी व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता नहीं होगी।
नोट--देवनागरी लिपि का ज्ञान होने से इस लिपि में पाठ्यसामग्री तथा पाठ्योपकरण अधिक मात्रा में मिलते है। इंटरनेट का उपयोग करने वाले मित्रों के लिए लेख के अंत में संस्कृत बोलने तथा पढने में मददगार लिंक दिये गये हैं। संस्कृत का शुद्ध उच्चारण सीखने के लिए किसी दोस्त का मदद लें।
संस्कृत पत्रिका या पुस्तक पढ़ना शुरु करें-
अब आपके पास संस्कृत सीखने का सहायक उपकरण मौजूद है। अपना पाठ्यपुस्तक खोलें।
बालकः,बालिका,पुष्पम् आदि शब्दकोष के आगे बढें। फिर कर्ता के साथ क्रिया पदों के प्रयोग का अभ्यास शुरु करें। पिकः कूजति। बालकौ पठतः। तीनों पुरुष तथा तीनों वचन का अभ्यास करें।
अब सर्वनाम के साथ क्रिया का प्रयोग आरम्भ होता है। सः कौशलः पठति( वर्तमान काल ), सा लता गायति, धीरे-धीरे तीनों काल तथा तीनों लिंग के प्रयोग मिलेंगें। एषः बालकः। एषा बालिका अस्ति। एतत् पुष्पम्।
इसके बाद विभक्ति प्रयोग सीखें । जैसे- अहं लेखं लिखामि। सः दूरभाषेण वार्तां करोति। पिता मोहनाय पुस्तकं क्रीणाति। आदि। यहाँ समस्या हर विभक्ति के पदों में परिवर्तन होते रहने की है। हमलोग हिंदी में राम ने कहा, राम का भाई है आदि वाक्य लिखते हैं। यहां राम शब्द में कभी भी परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब हम संस्कृत में किसी विभक्ति का प्रयोग करते हैं तो वहां प्रत्येक पद पर शब्द के स्वरुप में परिवर्तन हो जाता है। हमें यहां कठिनाई होती है। इस परिवर्तन को समझने के लिए हमें विभक्तियों को समझना पड़ेगा।यह विल्कुल आसान है। संस्कृत के शब्दों की संरचना दो विधियों से हुई है। 1. उत्सर्ग अर्थात् सामान्य नियम 2. अपवाद अर्थात् जो सामान्य नियम के अन्तर्गत नहीं आते। सामान्य नियम के अनुसार तीनों वचन तथा सात विभक्ति मिलाकर संस्कृत में सु औ जस् आदि कुल 21 विभक्तियाँ होती है। इस प्रकार पुल्लिंग और स्त्रीलिंग के 21-21 रूप देखने को मिलते है। यदि सम्बोधन को भी जोड़ दिया जाय तो कुल संख्या 24 हो जाएगी। प्रत्येक स्वर वर्ण वाले अक्षरों के स्वरुप में अलग अलग ढंग का परिवर्तन हो जाता है। राम,हरि और पितृ के स्वरुप में अलग अलग परिवर्तन हो जाता है। हिंदी या अन्य भाषाओं में स्त्रीलिंग या पुलिंग शब्द के स्वरूप (विभक्ति) में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता, जबकि संस्कृत में हो जाता है। आपको यदि शब्द रूप के निर्माण प्रक्रिया की थोडी जानकारी हो जाती है तो शब्दरूप याद करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। यदि आपने सामान्य और विशेष नियम को जान लिया तब यह विल्कुल आसान है। राम की तरह प्रत्येक अकार अंत वाले शब्द बनते हैं। इसी प्रकार इकार अंत वाले। कहीं -कहीं थोड़ा परिवर्तन होता है, उसे पुस्तकों को पढ़कर दूर किया जा सकता है। पुस्तकों, पत्रिकाओं को पढ़ते रहने से वे शब्द बार-बार आपके पास आयेंगें और हिन्दी की तरह आप इसका अर्थ समझने लगेगें। मनुष्यस्य शरीरे, मानवस्य शरीरे, मम शरीरे, भ्रातुः अंगे अलग-अलग शब्द वाले वाक्य होने के बाबजूद अर्थ समझने में कठिनाई नहीं होगी। अभ्यास मुख्य है। यही स्थिति क्रिया पदों के भी साथ है। यहां पर एक लकार (काल ) का यूं तो तीनों पुरूष तथा तीनों वचन मिलाकर 9 भेद होते हैं, जबकि आत्मनेपद और परस्मैपद के रूप अलग अलग होते हैं। कभी-कभी प्रत्यय लगने से क्रिया पदों के अनंत भेद हो जाते हैं। आरम्भ में वर्तमान काल, भूत काल, भविष्यत् काल के लिए क्रमशः लट् लकार, लङ् लकार तथा लृट् लकार का अभ्यास करें। पुनः कुछ और लकार। इसे समझने के लिए अभ्यास की आवश्यकता है।
इसके साथ प्रश्न वाचक शब्दों का प्रयोग सीखें। यथा- त्वं किं करोषि। इयं राधा कुत्र गच्छति। विद्यालये अवकाशः कदा भविष्यति। आदि।
संख्यावाची, विशेष्य- विशेषण तथा कुछ अधः, उच्चैः.शनैःयदा-तदा जैसे अव्यय शब्दों के प्रयोग सीख लेने पर आप संस्कृत लिख सकते हैं। आपको वाच्य परिवर्तन भी सीखना चाहिए। इसके कुछ सामान्य नियम है। कर्तृ, कर्म और भाववाच्य में कर्ता के अनुसार क्रिया में परिवर्तन हो जाता है। पठति की जगह पठ्यते आदि। आप इतना कुछ मात्र एक माह में सीख सकते हैं। मूल संस्कृत इतना ही है। प्रतिदिन संस्कृत में लिखी कथा पढनी चाहिए। हितोपदेश जैसे पुस्तक की भाषा सरल है। इस प्रकार की पुस्तक को पढते रहने से शब्दकोष में निरन्तर बृद्धि होती है। शब्दों का संस्कार मस्तिष्क में आकार लेगा।
सन्धि, समास, उपसर्ग तथा तद्धित, कृदन्त, णिजन्त, धात्ववयव आदि प्रत्यय से संस्कृत भाषा जटिल हो जाती है। परन्तु जब उसे अलग-अलग कर दिया जाता है तो वही सरल हो जाती है। मूल संस्कृत का अभ्यास करना आसान है। अब आगे-
संस्कृत पुस्तकों को पढने के लिए अब दो अन्य सहायक उपकरण का और सहयोग लें। वह है रेडियो और टेलीविजन। DD न्यूज पर संस्कृत में प्रतिदिन समाचार आता है। शनिवार तथा रविवार को DD न्यूज पर वार्तावली कार्यक्रम। रेडियो चैनल पर भी संस्कृत में प्रतिदिन समाचार आता है। आप नियमित सुनना शुरु करें। इससे आपमें शब्द संस्कार बढेंगें। नित्य नये शब्दों से परिचय होगा। चुंकि रेडियो और टेलीविजन पर जो समाचार आता है,उसकी भाषा प्रौढ होती है। वह पहले लिखा जाता है फिर उसे समाचार वाचक पढता है। संस्कृत वाचन अभ्यास सम्बन्धित लेख पढने के लिए लिंक पर चटका लगायें।
साहित्यिक या प्रौढ संस्कृत भाषा
आखिर संस्कृत में ऐसा क्या होता है कि हम पुस्तक में लिखे शब्दों को डिक्शनरी में ढूंढने की कोशिश करते हैं, परंतु वैसा शब्द डिक्शनरी में बहुत ही कम मिल पाता है। इसका कारण है संधि, समास तथा प्रत्ययों के प्रयोग। अस्य महोदयस्य के स्थान पर महोदयस्यास्य प्रयोग मिलने लगता है। इस प्रकार से संधि और समास के द्वारा बने नये शब्द शब्दकोष में नहीं होते। वहाँ मूल शब्द दिये होते हैं। अब पुस्तकों की सहायता से यह समझने की कोशिश करें कि संधि में दो वर्ण आपस में कैसे मिल जाते हैं? जैसे तस्य अर्थस्य = तस्यार्थस्य, रघुवंशस्यादावेव = रघुवंशस्य आदौ एव इसमें विद्या अलग है आलय अलग है। सन्धि अर्थात् दो शब्दों के मेल को समझने में लगभग 15 दिन लगता है। कभी कभी कुछ अप्रचलित शब्द मेरे शब्द सामने आते हैं, संधि होने के कारण हम उसे नहीं पाते हैं जैसे बटवृक्षः धावति। अब आप सोच रहे होंगे कहीं भला वटवृक्ष दौड़ सकता है। नहीं बट वृक्ष तो दौड ही नहीं सकता। यहां कुछ और खेल हो गया है। बटो ऋक्षः दोनों मिलकर वटवृक्ष शब्द बन गया है। इस प्रकार कई वर्णों को एक साथ जोड़ कर जब नया शब्द बनता है तो हमें कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसके लिए हमें मूल शब्द को पहचानना होगा और उसके बाद संधि की जानकारी करनी होगी। दो सार्थक पद के आपस में मिलने,आपस में जुड़ने को समास कहा जाता है। समास में भी कभी-कभी तो मूल शब्द को पहचानना आसान होता है, लेकिन कहीं कहीं कुछ शब्द या तो बीच के गायब हो जाते या आरंभ के गायब हो जाते हैं। इस प्रकार संस्कृत एक कठिन भाषा के रुप में हमारे सामने उपस्थित हो जाती है। जब तक हम क्रमिक अध्ययन नहीं करेंगे । संस्कृत को समझना हमारे लिए कठिन होगा। अब बाल्मीकि रामायण जैसे सरल काव्य को पढ़ना चाहिए और वहां पर पद परिवर्तन को ध्यान रखना चाहिए। इस प्रकार धीरे- धीरे कर शब्दकोश बढता जाता है और हम व्याकरण के नियमों से परिचित होते जाते हैं। जैसे-जैसे हम व्याकरण तथा शब्दों के समूह से परिचित होते हैं। संस्कृत हमारे लिए सरल हो जाती है। संस्कृत के साथ यही है यह अनेकों संस्कारों से अनेकों प्रक्रियाओं से गुजर कर सामने आती है। यही इसकी खूबी भी है और यही खामी भी। इसमें एक शब्द को कहने के लिए सैकड़ों शब्द मौजूद है। काव्य लिखने वाले साहित्यकार तमाम पर्यायवाची शब्दों के प्रयोग करते हैं और हमें नए पाठकों को उसे पढने में कठिनाई आने लगती है। एक और समस्या है। जब हम पढ़ना शुरु करते हैं संस्कृत पद्य को पढ़ते हैं। संस्कृत का अधिकांश साहित्य पद्य में लिख है। मुझे उसका अर्थ जल्दी से समझ में नहीं आता, क्योंकि संस्कृत में किसी पद को आगे पीछे कहीं भी रखा जाए उसके अर्थ में परिवर्तन नहीं होता। पद्यकार किसी शब्द को कहीं भी रखकर संधि समास युक्त कर देते हैं। उसे समझना आसान नहीं रह जाता। इसीलिए संस्कृत अध्ययन आरंभ करते समय यह ध्यान रखना चाहिए पद्य के अपेक्षा गद्य को आरंभ में पढ़ा जाए, ताकि हम आसानी से समझ सकें। पुराण,रामायण तथा महाभारत जैसे ऐतिहासिक किंवा धार्मिक पुस्तक पढ़ने के लिए तद्धित तथा भूतकालिक लकारों का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। यहाँ रावण के लिए पौलस्त्य (पुलस्य का नाती) शब्द का प्रयोग भी देखने को मिलेगा। तद्धित प्रत्यय यद्यपि अत्यन्त सरल है, फिर भी इसके ज्ञान के विना पौराणिक साहित्य पढ़ने में असफलता मिलेगी।
संस्कृत में एक अच्छा यह है कि यहां जो भी शब्द है और जिसके लिए प्रयोग हुआ है, वह उस वस्तु के गुण और धर्म को देखकर नामकरण होता है। शब्द का अर्थ जानते ही उस वस्तु के बारे में सारी जानकारी मिल जाता है। पुनः उस वस्तु को समझने के लिए किसी अलग से व्याख्या की आवश्यकता नहीं पड़ती। यही अच्छाई है। लेकिन यदि किसी में समान गुण धर्म हो तो उसके लिए भी वही शब्द प्रयोग में आते हैं। प्रसंग के अनुसार हमें इसका अर्थ समझना पड़ता है। जैसे जो दो बार जन्म लेता है, उसे द्विज कहते हैं। यह ब्राह्मण के लिए और चिड़ियों के लिए भी प्रयुक्त होता है। हिन्दी की तरह संस्कृत में व्यक्ति या वस्तु के आधार पर लिंक निर्धारित नहीं होते,अपितु प्रत्येक शब्द के लिए लिंग निर्धारित है। जैसे स्त्रीलिंग शब्द पत्नी का पर्यायवाची दारा है, परन्तु यह शब्द पुलिंग है। इस प्रकार हम आपसे चर्चा करते रहेंगे और सलाह देते रहेंगे कि संस्कृत को आसानी से कैसे समझा जाए। पढा जाए। इसके वाक्य विन्यास कैसे होते हैं। शब्दों का निर्माण कैसे होता है? यदि यह समझ में आ गया तो समझिए संस्कृत भाषा आ गयी .
संस्कृत सीखने के लिए अधोलिखित ऑनलाइन लिंक उपयोगी है-
संस्कृतशिक्षणम्
संस्कृत में एक अच्छा यह है कि यहां जो भी शब्द है और जिसके लिए प्रयोग हुआ है, वह उस वस्तु के गुण और धर्म को देखकर नामकरण होता है। शब्द का अर्थ जानते ही उस वस्तु के बारे में सारी जानकारी मिल जाता है। पुनः उस वस्तु को समझने के लिए किसी अलग से व्याख्या की आवश्यकता नहीं पड़ती। यही अच्छाई है। लेकिन यदि किसी में समान गुण धर्म हो तो उसके लिए भी वही शब्द प्रयोग में आते हैं। प्रसंग के अनुसार हमें इसका अर्थ समझना पड़ता है। जैसे जो दो बार जन्म लेता है, उसे द्विज कहते हैं। यह ब्राह्मण के लिए और चिड़ियों के लिए भी प्रयुक्त होता है। हिन्दी की तरह संस्कृत में व्यक्ति या वस्तु के आधार पर लिंक निर्धारित नहीं होते,अपितु प्रत्येक शब्द के लिए लिंग निर्धारित है। जैसे स्त्रीलिंग शब्द पत्नी का पर्यायवाची दारा है, परन्तु यह शब्द पुलिंग है। इस प्रकार हम आपसे चर्चा करते रहेंगे और सलाह देते रहेंगे कि संस्कृत को आसानी से कैसे समझा जाए। पढा जाए। इसके वाक्य विन्यास कैसे होते हैं। शब्दों का निर्माण कैसे होता है? यदि यह समझ में आ गया तो समझिए संस्कृत भाषा आ गयी .
संस्कृत सीखने के लिए अधोलिखित ऑनलाइन लिंक उपयोगी है-
संस्कृतशिक्षणम्
प्रकाशक/लेखक पुस्तक नाम
1- राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली दीक्षा
2- उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ सरल संस्कृतम्
3- संस्कृतभारती सरला,सुगमा
5- इन्द्रपति उपाध्याय संस्कृत सुबोध
6- उमेश चन्द्र पाण्डेय संस्कृत रचना
7- ए0 ए0 मैग्डोनल संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका
8- कपिलदेव द्विवेदी प्रौढ़ रचनानुवाद कौमुदी
9- कपिलदेव द्विवेदी संस्कृत शिक्षा
10- कमलाकान्त मिश्र संस्कृत गद्य मन्दाकिनी
11- कम्भम्पाटि साम्बशिवमूर्ति संस्कृत शिक्षणम्
12- कृष्णकान्त झा सन्धि प्रभा
13- के0 एस0 पी0 शास्त्री संस्कृत दीपिका
14- गी0 भू0 रामकृष्ण मोरेश्वर माला संस्कृत येते गमक दुसरे
15- चक्रधर नौटियाल नवीन अनुवाद चंद्रिका
16- चक्रधर नौटियाल बृहद् अनुवाद चन्द्रिका
17- जगन्नाथ वेदालंकार सरल संस्कृतसरणिः
18- जयन्तकृष्ण हरिकृष्ण दवे सरल संस्कृत शिक्षक
19- जयमन्त मिश्र संस्कृत व्याकरणोदयः
20- अरविन्द आन्ताराष्ट्रिय शिक्षा केन्द्र संस्कृतं भाषामहै
21- लोकभाषा प्रचार समिति, पुरी संस्कृत शब्दकोषः
22- भागीरथि नन्दः विलक्षणा संस्कृतमार्गदर्शिका
23- भि0 वेलणकर संस्कृत रचना
24- यदुनन्दन मिश्र अनुवाद चन्द्रिका
25- रमाकान्त त्रिपाठी अनुवाद रत्नाकरः
26- रवीन्द्र कुमार पण्डा संलापसरणिः
27- राकेश शास्त्री सुगम संस्कृत व्याकरण
28- राजाराम दामोदर देसाई संस्कृत प्रवेशः
29- राम बालक शास्त्री वाणी वल्लरी
30- राम शास्त्री संस्कृत शिक्षण सरणी
31- रामकृष्ण मोरेश्वर धर्माधिकारीमला संस्कृत येते (मराठी भाषी के लिए )
32- रामचन्द्र काले हायर संस्कृत ग्रामर
33- रामजियावन पाण्डेय व्यावहारिक संस्कृतम्
(पत्र,समाचार,कार्यालय टिप्पणी,प्रारूपण आदि लिखने हेतु)
34- रामदेव त्रिपाठी संस्कृत शिक्षिका
35- रामलखन शर्मा संस्कृत सुबोध
36- वाचस्पति द्विवेदी संस्कृत शिक्षण विधि
37- वात्स्यायन धर्मनाथ शर्मा बिना रटे संस्कृत व्याकरण बोध
38- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री कौत्सस्य गुरुदक्षिणा
39- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री दो मास में संस्कृत
40-वासुदेव द्विवेदी शास्त्री बाल कवितावलिः
41- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री बाल निबन्ध माला
42- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री बाल संस्कृतम्
43- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री बालनाटकम्
44- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री भारतराष्ट्रगीतम्
45- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री संस्कृत क्यों पढ़ें ? कैसे पढें
46- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री संस्कृत गौरव गानम्
47- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री संस्कृत प्रहसनम्
48- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री सरल संस्कृत गद्य संग्रह
49- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री सरल संस्कृत पद्य संग्रह
50- वासुदेव द्विवेदी शास्त्री सुगम शब्द रूपावलिः
51- वेणीमाधव शास्त्री जोशी बाल संस्कृत सारिका
52- शिवदत्त शुक्ल संस्कृत अनुवाद प्रवेशिका
53- शैलेजा पाण्डेय संस्कृत सुबोध
54- श्यामचन्द्र संस्कृत व्याकरण सुप्रभातम्
55- श्रीपाद दामोदर सातवलेकर संस्कृत पाठ माला
56- श्रीपाद दामोदर सातवलेकर संस्कृत स्वंय शिक्षक
नोट- संस्कृत सीखने के लिए संस्कृत शिक्षण पाठशाला पर क्लिक करें।
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ATI sunder sansrkit shikne ke liye yah blog sarvottam hai
जवाब देंहटाएंVery good
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास रहा
जवाब देंहटाएंBahut badhiya sir
जवाब देंहटाएंThank you for your efforts.
जवाब देंहटाएंअच्छा है परन्तु परिमार्जित किया जा सकता है। सुधार सदैव गुंजाइश बनी रहती है। कहा भी गया है sky is limit, never ending.
जवाब देंहटाएंइस लेख को समय-समय पर परिमार्जित किया जाता रहा है। आप भी कुछ सुझाव दें। जो अंश छूट गया हो उसे संलग्न किया जा करे।
हटाएंअच्छा लगा
जवाब देंहटाएंWell
जवाब देंहटाएंअध्भुत ज्ञान है
जवाब देंहटाएंthanku!!
जवाब देंहटाएंआपको प्रणाम।अत्यन्त सरल भाषा में अपने संस्कृत के नियमों और वर्तनी , वाक्य विन्यास को समझाया है। आपका यह लेख पढ़ कर संस्कृत सीखने की इच्छा और भी बलवती ही रही है और मनोबल चरम पर पहुंच गया है।
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंcan i get word by word meaning of few sanskrit stotra
जवाब देंहटाएंअतीव सुन्दरम्।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लोग को फोलो कैसे करुं, कोई फंक्शन दिख नहीं रहा।
बहुत सुंदर रूप से आपने इस विषय को रखा धन्यवाद सर्
जवाब देंहटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सरल भाषा मे समझाया आपने। मेरी भी एक ऐसी ही website है आपसे नम्र अनुरोध है एक बार जरूर देखे।
जवाब देंहटाएंBeti par shayari
उत्तममं
जवाब देंहटाएंआपने सरल भाषा में समझाया हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
🙏
जवाब देंहटाएंBahut Achha
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंWe are foodies and we are travellers. In our journeys we have come across many hidden recipies that are handed down one generation to the next. They are pure and honest. They are not available outside these families.
Pickle Monk is an attempt to bring these hidden wonders to you, the descerning, appreciative connosier of great food.