पातंजल योग एक परिचय

     पातञ्जल योगसूत्र में चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहा गया हैं। अन्तः करण की वृत्तियाँ योगक्रिया द्वारा क्रमशः शान्त होते-होते जब पूर्णतः शान्त हो जाती हैं, उस अवस्था का नाम योगयुक्त अवस्था हैं। उसी अवस्था में द्रष्टा अपने यथार्थ स्वरूप में प्रकट होता हैं। साधकों में दृश्यमान विभेद के कारण विज्ञान भिक्षु प्रणीत योगसार संग्रह के द्वतीयोंश में योग के साधन को कहते हुए उत्तम, मध्यम तथा अधम के भेद से तीन प्रकार के योगाधिकारी का वर्णन आया है । ये तीन योगाधिकारी हैं-
1. आरुरुक्ष
2. युञ्जान और 
3. योगारूढ।
          उत्तम अधिकारी वे होते हैॆ, जिन्होंने पूर्व जन्म में ही बहिरंग साधनों को सिद्ध कर लिया है, अतः उनकी अपेक्षा के विना ही वे योग मार्ग पर आगे बढ जाते हैं। उनकी योग सिद्धि में अभ्यास एवं वैराग्य ही
मुख्य साधन है। इसी प्रकार ‘‘क्रियायोग’’ मध्यम अधिकारियों के लिए तथा ‘‘अष्टांग योग’’ अधम अधिकारियों के लिए हैं। क्रियायोग के अन्तर्गत तप, स्वाध्याय एवं ईश्वरप्रणिधान- इन तीन साधनों का विधान हैं। अष्टांग योग के अन्तर्गत यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि-इन आठ योगांगों की चर्चा हैं। ये आठ अंग की आठ सीढि़याँ हैं, जिन पर योग-सिद्धि में सहायक होते है। जिस प्रकार किसी वस्तु को रखने से पूर्व बर्तन को साफ करना पड़ता हैं, उसी प्रकार यम-नियम के पालन से अन्तःकरण के जन्म जन्मान्तरों से दूषित संस्कारों को दूर कर उसे निर्मल  बनाना होता है। प्रणायाम आदि योग-सिद्धि के साक्षात् साधन हैं। अतः इन्हें अन्तरंग साधन माना गया है। कुछ विद्वानों के अनुसार यम से लेकर प्रत्याहार तक योग के बहिरंग साधन हैं और धारणा, ध्यान, समाधि अन्तरंग। परन्तु सर्वसम्मति है कि ये आठ अंग ही योग के आधार हैं।

 पातज्जल योगसूत्र-

महर्षि पतञ्जलि विरचित योगसूत्र योगविषयक एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसका प्रारम्भ ‘अथ योगानुशासनम्’ सूत्र से होता है। यह सूत्र इस बात का प्रतीक है कि महर्षि पतज्जलि योग के आदि प्रणेता नहीं थे। उन्होंने तो अपने से पूर्व प्रचलित समस्त साधना-पद्धतियों को समन्वित करके उनकी दार्शनिक समीक्षा की है तथा यत्र-तत्र बिखरे हुए योग-सम्बन्धी विचारों, सिद्धान्तों तथा पद्धतियों को एक व्यवस्थित रूप प्रदान किया है। इस ग्रन्थ में उन्होंने संक्षेप से योग के महत्व को प्रकट करते हुए उसकी सांगोपांग प्ररूपणा की हैं।
योगसूत्र का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को सुख-दुःख रूप कर्मबन्धन और उसके और उसके परिणामस्वरूप जन्म-मुत्यु के चक्र से छुटकारा दिलाकर आत्म-कल्याण का सीधा, सच्चा और क्रियात्मक मार्गदर्शन कराना है।
165 सूत्रों में निबद्ध यह ग्रन्थ समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य नामक पाद-चतुष्टय में विभक्त हैं। प्रथम समाधिपाद में योग का लक्षण, लक्षणस्थ पदों का विवेचन, योग का उद्देश्य चित्तवृत्तियों का निरूपण, योग की प्राप्ति के उपायों तथा समाधि के भेदों आदि का वर्णन हैं। साधन पाद नामक द्धितीय अध्याय में क्रियायोग, क्लेश, कर्म, कर्मों के भेद, करण, स्वरूप, कर्मविपाक, दुःख, दुःख हेतु, हान और हानोपाय का विवेचन है। विभूतिपाद नामक तृतीय अध्याय में धारणा, ध्यान और समाधि -इन तीन अंतरंग योगांगों के स्वरूप का एक-एक सूत्र में निर्देश दिया गया है। कैवल्यपाद नामक चतुर्थ अध्याय में पूर्व वर्णित सिद्धियों को जन्म, औषधि, मंत्र, तप और समाधि-इन पाँच निमित्तों से उत्पन्न होने वाली बताया गया हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ विज्ञानवाद के निराकरण पूर्वक, निर्माण-चित्त, धर्ममेघसमाधि एवं कैवल्य-प्राप्ति की प्रक्रिया तथा कैवल्य के स्वरूप का वर्णन हैं।
पातञ्जलयोगसूत्र का अक्षरशः अनुकरण करके जैन और बौद्ध सम्प्रदायों में अभ्यास और वैराग्य के स्तम्भ खड़े किये गये हैं। योग के यमनियमादि आठ अंग प्रायः सभी दर्शनों में मान्य हैं। इस ग्रन्थ के सर्वप्रिय होने में एक विशेषता यह भी है कि यह राजयोग के अन्तर्गत आता है। इसमें हठयोग व्यर्थ समझा जाता है। राजयोग का यह सिद्धान्त है कि हठयोग राजयोग की प्राप्ति के लिए आवश्यक नहीं, वरन् किंचित् बाधक है।

पातज्जल योगसूत्र से सम्बन्धित साहित्य

महर्षि पतज्जलि प्रणीत योगसूत्र से सम्बन्धित साहित्य में उन सभी भाष्यों, टीकाओं, उपटीकाओं वृत्तियों का समावेश होता है जो योगदर्शन  के निगूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करने के लिए समय पर लिखे गये। योगसूत्र पर तीन भाष्य उपलब्ध होते हैं-
1. व्यास भाष्य
2. ज्ञानानन्द भाष्य
3. स्वामिनारायण भाष्य।
इनमें से सबसे प्रामाणिक भाष्य व्यास मुनि का है, जिसमें सूत्रों के अर्थों को अत्यन्त सारगर्भित शैली में समझाया गया है। पातज्जलयोग सूत्रों के रहस्यों को समझने के लिए व्यासभाष्य प्रवेश द्वार के तुल्य है।
व्यासभाष्य के गहन तत्वों के स्पष्टीकरण हेतु वाचस्पति मिश्र ने तत्ववैशारदी, विज्ञानभिक्षु ने योगवार्तिक तथा हरिहरानन्द आरणयक ने भास्वती नामक टीकाएँ लिखी हैं। योगसूत्र के मर्म को समझने के लिए ये टीकाएँ अत्यन्त उपयोगी हैं। तत्ववैशारदी के कठिन शब्दों एवं वाक्यों को सुबोध बनाने के लिए राघवानन्द सरस्वती ने ‘पातज्जलरहस्य’ नामक उपटीका की रचना की है। सूत्रों के भावार्थ को समझने के लिए भाष्यकारों एवं टीकाकारों के साथ-साथ अनेक वृत्तिकारों ने भी अपना-अपना योगदान दिया है, जिनमें से कुछ वृत्तियाँ प्रकाशित हैं और कुछ अप्रकाशित। उदाहरणतः भोजदेव कृत राजमार्तण्ड, नारायणतीर्थ कृत सूत्रार्थबोधिनी, अनन्तदेव पण्डितकृत पदचन्द्रिका, नागेशभट्टकृत योगसूत्र-लध्वीवृत्ति, नागेशभट्ट कृत योगसूत्र-बृहतीवृत्ति, भावगणेशकृत योगसूत्रवृत्ति (योगदीपिका), नारायणतीर्थकृत योगसिद्धान्तचन्द्रिका, रामानन्द सरस्वती कृत योगसुधाकर, यशोविजयकृत योगसूत्रवृत्ति, उदयंकर कृत योगसूत्रवृत्ति (अप्रकाशित), रामानन्द सरस्वती मणिप्रभा, क्षेमानन्द दीक्षित कृत नवयोगकल्लोलवृत्ति अप्रकाशित, ज्ञानानन्द कृत योगसूत्रवृत्ति, भवदेव कृत अभिनव भाष्य अप्रकाशित, भवदेवकृत योगसूत्रटिप्पण, महादेवकृत योगसूत्रवृत्ति, शंकर भगवत्पाद कृत पातज्जलयोगसूत्रभाष्य-विवरणम्, राधानन्दन कृत पातज्जलरहस्यप्रकाश, उमापति मिश्र प्रणीत योगसूत्रवृत्ति अप्रकाशित, स्वामी हरिप्रसाद कृत  योगसूत्र-वैदिकवृत्ति, बलदेव मिश्र कृत योगप्रदीपिका, स्वामी तुलसीराम कृत योगसूत्रभाष्य, तथा वृदानन्द शुक्लकृत वृत्ति आदि।

Share:

1 टिप्पणी:

  1. आपका यह प्रयास हम संस्कृत के छात्रों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हो रहा है। गुरुजी आभार

    जवाब देंहटाएं

अनुवाद सुविधा

ब्लॉग की सामग्री यहाँ खोजें।

लोकप्रिय पोस्ट

जगदानन्द झा. Blogger द्वारा संचालित.

मास्तु प्रतिलिपिः

इस ब्लॉग के बारे में

संस्कृतभाषी ब्लॉग में मुख्यतः मेरा
वैचारिक लेख, कर्मकाण्ड,ज्योतिष, आयुर्वेद, विधि, विद्वानों की जीवनी, 15 हजार संस्कृत पुस्तकों, 4 हजार पाण्डुलिपियों के नाम, उ.प्र. के संस्कृत विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि के नाम व पता, संस्कृत गीत
आदि विषयों पर सामग्री उपलब्ध हैं। आप लेवल में जाकर इच्छित विषय का चयन करें। ब्लॉग की सामग्री खोजने के लिए खोज सुविधा का उपयोग करें

समर्थक एवं मित्र

सर्वाधिकार सुरक्षित

विषय श्रेणियाँ

ब्लॉग आर्काइव

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 1

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 2

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 3

Sanskritsarjana वर्ष 2 अंक-1

Recent Posts

लेखानुक्रमणी

लेख सूचक पर क्लिक कर सामग्री खोजें

अभिनवगुप्त (1) अलंकार (3) आधुनिक संस्कृत गीत (14) आधुनिक संस्कृत साहित्य (5) उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (1) उत्तराखंड (1) ऋग्वेद (1) ऋषिका (1) कणाद (1) करवा चौथ (1) कर्मकाण्ड (47) कहानी (1) कामशास्त्र (1) कारक (1) काल (2) काव्य (16) काव्यशास्त्र (27) काव्यशास्त्रकार (1) कुमाऊँ (1) कूर्मांचल (1) कृदन्त (3) कोजगरा (1) कोश (12) गंगा (1) गया (1) गाय (1) गीति काव्य (1) गृह कीट (1) गोविन्दराज (1) ग्रह (1) छन्द (6) छात्रवृत्ति (1) जगत् (1) जगदानन्द झा (3) जगन्नाथ (1) जीवनी (6) ज्योतिष (20) तकनीकि शिक्षा (21) तद्धित (10) तिङन्त (11) तिथि (1) तीर्थ (3) दर्शन (19) धन्वन्तरि (1) धर्म (1) धर्मशास्त्र (14) नक्षत्र (2) नाटक (4) नाट्यशास्त्र (2) नायिका (2) नीति (3) पतञ्जलि (3) पत्रकारिता (4) पत्रिका (6) पराङ्कुशाचार्य (2) पर्व (2) पाण्डुलिपि (2) पालि (3) पुरस्कार (13) पुराण (3) पुस्तक (1) पुस्तक संदर्शिका (1) पुस्तक सूची (14) पुस्तकालय (5) पूजा (1) प्रत्यभिज्ञा शास्त्र (1) प्रशस्तपाद (1) प्रहसन (1) प्रौद्योगिकी (1) बिल्हण (1) बौद्ध (6) बौद्ध दर्शन (2) ब्रह्मसूत्र (1) भरत (1) भर्तृहरि (2) भामह (1) भाषा (1) भाष्य (1) भोज प्रबन्ध (1) मगध (3) मनु (1) मनोरोग (1) महाविद्यालय (1) महोत्सव (2) मुहूर्त (1) योग (5) योग दिवस (2) रचनाकार (3) रस (1) रामसेतु (1) रामानुजाचार्य (4) रामायण (3) रोजगार (2) रोमशा (1) लघुसिद्धान्तकौमुदी (45) लिपि (1) वर्गीकरण (1) वल्लभ (1) वाल्मीकि (1) विद्यालय (1) विधि (1) विश्वनाथ (1) विश्वविद्यालय (1) वृष्टि (1) वेद (6) वैचारिक निबन्ध (26) वैशेषिक (1) व्याकरण (46) व्यास (2) व्रत (2) शंकाराचार्य (2) शरद् (1) शैव दर्शन (2) संख्या (1) संचार (1) संस्कार (19) संस्कृत (15) संस्कृत आयोग (1) संस्कृत कथा (11) संस्कृत गीतम्‌ (50) संस्कृत पत्रकारिता (2) संस्कृत प्रचार (1) संस्कृत लेखक (1) संस्कृत वाचन (1) संस्कृत विद्यालय (3) संस्कृत शिक्षा (6) संस्कृत सामान्य ज्ञान (1) संस्कृतसर्जना (5) सन्धि (3) समास (6) सम्मान (1) सामुद्रिक शास्त्र (1) साहित्य (7) साहित्यदर्पण (1) सुबन्त (6) सुभाषित (3) सूक्त (3) सूक्ति (1) सूचना (1) सोलर सिस्टम (1) सोशल मीडिया (2) स्तुति (2) स्तोत्र (11) स्मृति (12) स्वामि रङ्गरामानुजाचार्य (2) हास्य (1) हास्य काव्य (2) हुलासगंज (2) Devnagari script (2) Dharma (1) epic (1) jagdanand jha (1) JRF in Sanskrit (Code- 25) (3) Library (1) magazine (1) Mahabharata (1) Manuscriptology (2) Pustak Sangdarshika (1) Sanskrit (2) Sanskrit language (1) sanskrit saptaha (1) sanskritsarjana (3) sex (1) Student Contest (2) UGC NET/ JRF (4)