देव पूजा विधि Part-8 शालग्राम-पूजन

         शालग्राम तथा प्रतिष्ठित मूर्तियों में आवाहन न करें, केवल पुष्प छोडे़।
आवाहन- ॐ सहश्रशीर्षा01 आवाहयामि
आसन- ॐ पुरुषऽ एवेद Ủ0 आसनं समर्पयामि
पाद्य- ॐ एतावानस्य0 पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्य- ॐ त्रिपादूध्र्व0 अघ्र्यं समर्पयामि।
आचमन- ॐ ततो विराडजायत0 आचमनं समर्पयामि।
स्नान- ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः0  स्नानं समर्पयामि। (दुग्ध, दधि, घृत, मधु और शर्करास्नान के बाद शुद्धोदकस्नान कराएँ।)
दूध स्नान-ॐ पयः पृथिव्यां पयऽ ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्।। दुग्धस्नानं समर्पयामि।
दही स्नान-ॐ दधिक्राव्णोऽ अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः। सुरभिनो मुखा करत्प्रणऽ आयू षि तारिषत्।। दधिस्नानं समर्पयामि।
घृत स्नान-ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिशः प्रदिशऽ आदिशो विदिशऽ उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा।। घृतस्नानं समर्पयामि।
मधु स्नान-ॐ मधुवाताऽ ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः
सन्त्वोषधीः।। मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव Ủ  रजः। मधुद्यौरस्तु नः पिता।। मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँऽ2 अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः।।
मधुस्नानं समर्पयामि।
शर्करा स्नान-ॐ अपा रसमुद्वयस सूर्ये सन्त समाहितम्। अपा रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तमपुपयाम गृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्।। शर्करास्नानं स.।
पञ्चामृत स्नान- ॐ पझ्नद्यः सरस्वतीमपियन्ति सश्रोतसः। सरस्वती तु पझ्धा सो देशेऽभवत्सरित्।। पञ्चामृतस्ना. सम.।
शुद्धोदक स्नान-ॐ कावेरी नर्मदा वेणी तुङ्गभद्रा सरस्वती।
                                    गङ्गा च यमुना चैव ताभ्यः स्नानार्थमाहृतम्।।
गृहाण त्वं रमाकान्त स्नानाय श्रद्धया जलम्।। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
वस्त्र-ॐ तस्माद्यज्ञात्0 वस्त्रोपवस्त्रंा समर्पयामि।
यज्ञोपवीत- ॐ तस्मादश्वा0  यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
मधुपर्क-ॐ दधि मध्वाज्यसंयुक्तं पात्रयुग्म-समन्वितम्।
                        मधुपर्कं गृहाण त्वं वरदो भव शोभन।। मधुपर्कं स0,
आचमनीयं जलं समर्पयामि
गन्ध-ॐ तं यज्ञं0 गन्धं समर्पयामि।
अक्षत- (श्वेत तिल चढ़ाएं चावल नहीं) ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रियाऽ
अधूषत। अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती यो जान्विन्द्र  ते हरी।। अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प-ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रोधा निदधे पदम्। समूढमस्य पा सुरे स्वाहा।। पुष्पं समर्पयामि।
पुष्पमाला-ॐ ओषधीः प्रतिमोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अश्वाऽ इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्णवः।।
 पुष्पमाल्यां समर्पयामि।
तुलसीपत्रा-ॐ यत्पुरुषं0 तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम्।                                             
भवमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि हरिप्रियाम्।।
ॐ विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे। इन्द्रस्य युज्यः सखा।। तुलसीपत्रां समर्पयामि।
दूर्वा-विष्ण्वादिसर्वदेवानां दूर्वे त्वं प्रीतिदा सदा।
                        क्षीरसागरसम्भूते ! वंशवृद्धिकरी भव।। दूर्वां समर्पयामि।
शमीपत्रा-शमी शमयते पापं शमी शत्रुाविनाशिनी।
                        धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी। शमीपत्रां समर्पयामि।
आभूषण-रत्नकङ्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः।। आभूषणानि समर्पयामि। अबीर और गुलाल-नानापरिमलैर्द्रव्यैर्निर्मितं चूर्णमुत्तमम्।
                        अबीर नामकं चूर्णं गन्धं चारु प्रगृह्यताम्।। अबीरं समर्पयामि।
सुगन्धतैल-तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च।
                        मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वर।। सुगन्धतैलं समर्पयामि।
धूप-ॐ ब्राह्मणोऽस्य0 ॐ धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान् धूर्वति तं धूर्वयं वयं धूर्वामः। देवानामसि वह्नितम सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम्।। धूपमाघ्रापयामि।
दीप-ॐ चन्द्रमा0 दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य-तुलसीदल डालकर आगे लिखी पाँच ग्रास-मुद्राएँ दिखाएँ।
प्राणाय स्वाहा-कनिष्ठा, अनामिका और अंगूठा मिलाएँ।
अपानाय स्वाहा- अनामिका, मध्यमा और अंगूठा मिलाएँ।
व्यानाय स्वाहा-मध्यमा, तर्जनी और अंगूठा मिलाएँ।
उदानाय स्वाहा-तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और अंगूठा मिलाएँ।
समानाय स्वाहा-सभी अंगुलियां अंगूठे से मिलाएँ।
ॐ नाभ्या0 नैवेद्यं निवेदयामि।
पानीयजल एलोशीरलवङ्गादि कर्पूरपरिवासितम्।
प्राशनार्थ कृतं तोयं गृहाण परमेश्वर।। मध्ये पानीयं जलं समर्पयामि। 
ऋतुफल-बीजपूराम्र- मनस-खर्जुरी-कदली-फलम्।
नारिकेल फलं दिव्यं गृहाण परमेश्वर।। ऋतुफलं समर्पयामि।
आचमन-कर्पूरवासितं तोयं मन्दाकिन्याः समाहृतम्।
आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं हि भक्तितः।। आचमनीयं जलं समर्पयामि।
नारियल-फलेन फलितं सर्वं त्रौलोक्यं सचराचरम्।
तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।। अखण्डं ऋतुफलं सम0
ताम्बूल-पूगीफल-ॐ यत्पुरुषेण0 ताम्बूलं समर्पयामि। दक्षिणा-पूजाफलसमृद्धîर्थं दक्षिणा च तवाग्रतः।
स्थापिता तेन मे प्रीतः पूर्णान् कुरु मनोरथान्।। दक्षिणां समर्पयामि।
आरती-  कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरन्तु प्रदीपितम्।
                        आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मां वरदो भव।।
पुष्पांजलि
ॐ यज्ञेन यज्ञ0 ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् काम कामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः। ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुष आन्तादापरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति। तदप्येषश्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे। आवीक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।। ॐ विश्तश्चक्षुरुत विश्तोमुखो विश्तोबाहुरुत विश्वतस्पात्। सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रौद्र्यावाभूमी जनयन् देवऽ एकः।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे नारायणाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।।
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वाऽनुसृतस्वभावात्।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पये तत्।। पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।।
प्रदक्षिणा-          ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः।
                                    तेषां सहश्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि।।
क्षमा-प्रार्थना-      मन्त्राहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन!।
                                    यत्पूजितं मया देव! परिपूर्णं तदस्तु मे।।
                                    यदक्षरपदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
                                    तत्सर्वं क्षम्यतां देव! प्रसीद परमेश्वर!।।
विसर्जन-            यजमानहितार्थाय पुनरागमनाय च।
                                    गच्छन्तु च सुरश्रेष्ठाः! स्वस्थानं परमेश्वराः!।।
यजमान-आशीर्वाद-मन्त्र -अक्षतान् विप्रहस्तात्तु नित्यं गृह्णन्ति ये नराः।
                                    चत्वारि तेषां वर्धन्ते आयुः कीर्तिर्यशो बलम्।।
                                    मन्त्रार्थाः सफलाः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
                                    शत्रूणां बुद्धिनाशोस्तु मित्राणामुदयस्तव।।
                                    ॐ श्रीर्वचस्वमायुमायुष्यमारोज्ञमाविधात्
                                    पवमानं महीयते। धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं
                                    शतसम्वत्सरं दीर्घमायुः।।।। इति।।
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