त्रिखल शान्ति प्रयोग

 सूतक की समाप्ति पर शुभ दिन सपत्नीक यजमान बालक-सहित शुद्ध आसन पर बैठ आचमन प्राणायाम कर स्वस्तिवाचन कराकर हाथ में द्रव्याक्षत कुश, जल लेकर संकल्प करे- ॐ अद्येत्यादि देशकालौ संकीर्त्य अमुकगोत्रोऽमुकशर्मा श्रुत्याद्युक्त- फलावाप्तिकामोऽवगतानवगतसकलदुरितध्वंसपूर्वकत्रिखलसुतजन्म (कन्याजन्म त्रयानन्तरं ) अथवा (सुतत्रयजन्मान्तरकन्याजननं) सूचितैतत्कुमारैरेतत्सम्बन्धि पित्रद्यारिष्टोपशमनपूर्वक श्रीमद्ब्रह्मादिपूजनरूपां त्रिखलशान्तिमहं करिष्ये। तदङ्गत्वेन निर्विघ्नतासिद्ध्यर्थं श्रीमद्गणपत्यादिपूजनं च करिष्ये ।

इसके बाद पूजा प्रकार में उक्त विधि से गणेश गौरी नवग्रह पूजन नान्दीश्राद्ध तक करे। नान्दीश्राद्ध के बदले में सुवर्ण दान करे। उसमें हाथ में सुवर्ण, कुश, जल लेकर संकल्प करे - ॐ अद्ये० अमुकगोत्रस्यात्मजस्यामुक शर्मणः त्रिखलजन्मशान्त्यङ्गभूतकर्तव्याभ्युदयिक श्राद्धजन्यफलसम्प्राप्त्यर्थममुं यथाशक्तिसुवर्णमग्निदैवतं यथानामगोत्राय दातुमहमुत्सृजे ।

पश्चात् ईशान कोण में धान्य पर कलश स्थापन की विधि से वरुण कलश स्थापित कर उसमें चन्दन, फूल, अगर, कुमकुम आदि छोड़कर वरुण देवता का आवाहन कर पूजा करे।  । इसके बाद वरुण कलश के समीप गेहूँ के आटा से अष्टदल कमल का आकार बनाकर उसमें रंगे चावल रखकर, मध्य में छेद रहित रुद्र कलश, पूर्व में ब्रह्मा, दक्षिण में विष्णु, पश्चिम में इन्द्र और उत्तर में ईशकलश स्थापित करे।  ये सभी कलश स्थापन विधि के अनुसार स्थापित करें । ततः पूर्वदिशि कलशोपरि ताम्रपात्रस्थस्वर्णमयमूर्ती श्रीब्रह्माणं पूजयेत् ।

फिर पूर्व दिशा में कलश पर ताम्रपात्र में ब्रह्मा की सुवर्ण प्रतिमा स्थापित कर संकल्प करे- ॐ अद्येत्यादि पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्ध्यर्थं क्रियमाणत्रिखलशान्त्यङ्गत्वेन पूर्वस्यां दिशि रक्तवस्त्रद्वयावेष्टितकलशोपरि ताम्रपात्रस्थस्वर्णमयमूर्ती ब्रह्मपूजनमहं करिष्ये। पढ़कर संकल्प छोड़े।

पुनः हाथ में अक्षत लेकर ब्रह्माजी का ध्यान करे। हाथ में अक्षत लेकर ध्यान करे।

ध्यान - ॐ पद्मपत्रासनस्थश्च ब्रह्मकायश्चतुर्मुखः ।

         अक्षमाला श्रुवं बिभ्रत् पुस्तकं च कमण्डलुम् ।।

आवाहन -  चतुर्मूर्ते वेदव्यास पितामह ।

            आयाहि ब्रह्मलोकात्त्वं तस्मै ब्रह्मात्मने नमः ।

पूजन- ॐ ब्रह्मयज्ञानं प्रथम्मपुरस्ताद्विसीमतः सुरुचोवेनऽआवः।। सबुन्ध्याऽउपमाऽअस्य विष्टाः सतश्च योनिमसतश्च व्विवः। मन्त्र से पाद्यादि से विधिवत् पूजन कर प्रार्थना करें-

 प्रार्थना- ॐ कृष्णाजिनाम्बरधर पद्मासन चतुर्मुख।

जटाधर जगद्धातः प्रसीद कमलोद्भव ।।

इसके बाद वरण सामग्री लेकर ब्राह्मण वरण के लिए संकल्प करें- ॐ अद्येत्यादि पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्धयर्थं क्रियमाणत्रीतरशान्त्यङ्गत्वेन शुभफलप्राप्त्यर्थं ॐ ब्रह्मयज्ञानमितिमन्त्रस्य ब्राह्मणद्वारा युग्मसहस्त्रजपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणं त्वामहं वृणे। ब्राह्मण वरण सामग्री लेकर वृतोऽस्मि बोले।

इसके बाद दक्षिण कलश में विष्णु का पूजन करे।

संकल्प - ॐ अद्येत्यादि क्रियमाणत्रीतरशान्त्यङ्गत्वेन दक्षिणदिशि पीतवस्त्रावेष्टितैतत्कलशोपरि ताम्रपास्थ स्वर्णमयमूर्ती विष्णुपूजनमहं करिष्ये।

इसके बाद अक्षत लेकर 

ध्यान

ॐ सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।

वक्षःस्थलकौस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ।

आवाहनम्- ॐ एहोहि नीलाम्बुजपादपद्म श्रीवत्सवक्षः कमलाविधेय।

सर्वामरैः पूजितपादपद्म गृहाण पूजां भगवन्नमस्ते ।

पाद्यादि से पूजन- ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्। समूढमस्यपा सुरे।।

प्रार्थना - ॐ योऽसावनन्तरूपेण ब्रह्माण्डं सचराचरम्। पुष्पवद्धरते नित्यं तस्मै नित्यं नमो नमः ।।

इसके बाद वरण द्रव्य, कुश, जल, अक्षत लेकर ब्राह्मण का वरण करे - ॐ अद्येत्यादि कृतैतत् त्रीतर शान्त्यङ्गत्वेन ॐ विष्णोरराटमसि इत्यनेन मन्त्रेण ब्राह्मणद्वारा युग्मसहस्रं जपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकर्माणं ब्राह्मणं जापकत्वेन त्वामहं वृणे। ब्राह्मण 'वृतोऽस्मि' बोले । 

इसके बाद पश्चिम दिशा में कलश पर इन्द्र की प्रतिमा रखकर इन्द्र की पूजा करे ।

संकल्प – ॐ अद्येत्यादि क्रियमाणत्रीतरशान्त्यंगत्वेन पश्चिमदिशि चित्रविचित्रवस्त्रावेष्टितैतत्कलशोपरि ताम्रपात्रस्थस्वर्णमयमूर्ती श्रीइन्द्रपूजनमहं करिष्ये।

हाथ में अक्षत लेकर ध्यान करें –

चतुर्दन्तो गजारूढो वज्रपाणिः पुरन्दरः ।

शचीपतिस्तु ध्यातव्यो नानारत्नविभूषितः ।।

आवाहन- एह्येहि सर्वामरसिद्धसाध्यैरभिष्टुतो वज्रधरामरेश।

संवीज्यमानोऽप्सरसां गणेन रक्षाध्वरन्नो भगवन्नमस्ते ।।

पूजन- ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे सुहव शूरमिन्द्रं ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रं स्वस्तिनो मघवा धात्विन्द्रः ।।

प्रार्थना - ॐ भगवन्तो गजारूढ़ा वज्रहस्ताः सुराधिपाः ।

पूर्वावकाशा युष्माभिः रक्षणीया प्रयत्नतः ।।

इसके बाद हाथ में वरण जल, अक्षत तथा वरण सामग्री लेकर संकल्प करें-ॐ अद्येत्यादि पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्धौ क्रियमाणत्रीतरशान्त्यंगत्वेन ॐ त्रातारमिन्द्रमितिमन्त्रस्य ब्राह्मणद्वारा युग्मसहस्त्रं जपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणं जापकत्वेन त्वामहं वृणे। ब्राह्मण वरण सामग्री लेकर 'वृतोऽस्मि' ऐसा बोले।

इसके बाद उत्तर दिशा में शिव की पूजा करे। कलश पर प्रतिमा रखकर संकल्प करे - ॐ अद्येत्यादि ० पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्ध्यर्थं क्रियमाणत्रीतरशान्त्यंगत्वेन उत्तरदिशि शुभ्रवस्त्रावेष्टितै तत्कलशोपरि ताम्रपात्रस्थस्वर्णमयमूर्ती ईशपूजनमहं करिष्ये।

अक्षत लेकर ध्यान-  शुद्धस्फटिकसंकाशं गौरीशं वृषवाहनम् ।

वरदाभयशूलाक्षसूत्रधृक्परमेश्वरम् ।।

आवाहन - ॐ एह्येहि विश्वेश्वर नस्त्रिशूलनिस्त्रिंशखट्वांगधरेण सार्धम्।

लोकेश यज्ञेश्वर यज्ञसिद्ध्यै गृहाण पूजां भगवन्नमस्ते।

पूजन - ॐ तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियं जिन्वमवसे हूमहे वयं। पूषा नो यथावेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।।

प्रार्थना - रक्षां मे कुरु देवेश त्रिनेत्राय त्रिशूलिने ।

वृषभध्वजाय यज्ञाय नक्षत्रपतये नमः ।

इसके बाद हाथ में वरण जल, अक्षत तथा वरण सामग्री लेकर संकल्प करें - ॐ अद्येत्यादि० क्रियमाणत्रीतर शान्त्यङ्गत्वेन ॐ तमीशानमितिमन्त्रस्य ब्राह्मणद्वारा युग्ममहस्त्रजपं कारयितुमे भिर्वरणद्रव्यैरमुकगोत्रममुकशर्माणं ब्राह्मणं जापकत्वेन त्वामहं वृणे । ब्राह्मण भी वरण सामग्री लेकर 'वृतोऽस्मि' बोले।

इसके बाद मध्य कलश पर महादेव की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा करे। सर्वप्रथम जलाक्षत कुश लेकर 

संकल्प करे- ॐ अद्येत्यादि० क्रियमाणत्रीतरक्षान्त्यङ्गत्वेन मध्यकलशोपरि ताम्रपात्रस्थस्वर्णमयमूर्त्ती श्रीरुद्रपूजन करिष्ये।

अक्षत लेकर ध्यान- ॐ दक्षोत्सङ्गनिषण्णकुञ्जरमुखं प्रेम्णा करेण स्पृशन् वामोरुस्थितवल्लभांकनिलयं स्कन्दं परेणामृशन्। इष्टाभीतिमनोहरं करयुगं बिभ्रत्प्रसन्नाननो भूयान्नः शरदिन्दुसुन्दरतनुः श्रेयस्करः शङ्करः ।।

आवाहन - एह्येहि शम्भो करशूलपाणे गंगाधर श्रीधन नीलकण्ठ, उमापते भस्मविभूषितांग महेश्वर त्वं भगवन्नमस्ते ।

पूजन - ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतोत इषवे नमः । बाहुभ्यामुतते नमः ।

प्रार्थना - ॐ शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले 

            महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन्। 

            त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप 

            प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ।।

इसके बाद हाथ में वरण जल, अक्षत तथा वरण सामग्री लेकर संकल्प करें - ॐ अद्येत्यादि० पूर्वप्रतिज्ञातार्थसिद्ध्यर्थे क्रियमाणत्रीतर शान्त्यङ्गत्वेन ॐ नमस्ते रुद्रमन्यव इति मंत्रस्य ब्राह्मणद्वारा युग्मसहस्त्रजपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकशर्माणं ब्राह्मणं त्वामहं वृणे। ब्राह्मण भी वरण सामग्री लेकर ' ॐ वृतोऽस्मि' बोले।

इसके बाद आचार्य अग्नि स्थापना और कुशकण्डिका करके अग्नि के उत्तर भाग में केवल घी से आहुति दें - ॐ प्रजापतये स्वाहा । इसे मन से बोले। इदं प्रजापतये न मम इसे ऊँचे स्वर में बोलकर प्रोक्षणी में छोडें । अग्नि के  दक्षिण भाग में- अग्नये स्वाहा, इदमग्नये न मम । ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय न मम । यह आज्य भाग है । ॐ भूः स्वाहा, इदमग्नये न मम । ॐ भुवः स्वाहा, इदं वायवे न मम । ॐ स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम, इतना महाव्याहृति हवन है ।

इसके पश्चात् आचार्य -ॐ यथा बाणप्रहाराणां कवचं वारकं भवेत् ।

तद्वद्दैवोपघातानां शान्तिर्भवति वारिका ।। शान्तिरस्तु पुष्टिरस्तु यत्पापं रोगम्, अकल्याणं तद्दूरे प्रतिहतमस्तु, द्विपदे चतुष्पदे सुशान्तिर्भवतु, पढ़ते हुए यजमान के शिर पर अभिषेक करे।

सर्वप्रायश्चित्तसंज्ञक पञ्चवारुण होम

अब ॐ त्वन्नो अग्ने से वरुणाय न मम तक पढ़ते हुए पाँच मन्त्र तक प्रत्येक मन्त्र के बाद हवन करता जाय।

 ॐ त्वन्नो अग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवियासि सीष्ठाः। यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषा सि प्रमुमुग्ध्यस्मत्स्वाहा । इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम ।। १ ।। ॐ स त्वन्नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ । अवयक्ष्व नो वरुणचं रराणो वीहि मृडीक सुहवो न एधि स्वाहा । इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम ।। २ ।। ॐ अयाश्चाग्नेऽस्य नभिशस्तिपाश्च सत्यमित्वमया असि। अयानो यज्ञं वहास्ययानो धेहि भेषज स्वाहा । इदमग्नये न मम ।। ३ ।। ॐ ये ते शतं वरुण ये सहस्त्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः । तेभिर्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा । इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यश्च न मम ।। ४ ।। ॐ उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यम श्रथाय। अथा वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा । इदं वरुणाय न मम ।। ५ ।। यहाँ पर जल स्पर्श करें। इतना पञ्च वारुणी (प्रायश्चित्त संज्ञक) होम है।

इति पञ्च वारुणी (प्रायश्चित्तसंज्ञक) होमः ।

फिर चन्दन, फूल, अक्षत से वायु कोण में बाहर अग्नि की पूजा कर ग्रहहोम के साथ प्रधान होम करे। अब गणपति, नवग्रह, अधिदेवता, पञ्च लोकपालों का हवन होता है।

गणपति के लिए प्रथम आहुति देनी चाहिये; (अन्यथा आरम्भ किया कार्य विफल होता है।) गणेशजी को दश या एक आहुति प्रदान करे- ॐ गणानान्त्वा गणपति  हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति  हवामहे निधीनान्त्वा निधिपति हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् स्वाहा। इदं गणपतये न मम।

फिर गायत्री ॐकार आदि मण्डलदेवताओं का पूजन क्रम से हवन करे।

नवग्रह होम

प्रादेश मात्र (अंगूठा तथा तर्जनी अंगुली को फैलाकर बनी दूरी के समान) तर्जनी के अग्रभाग के समान मोटी लकड़ी को दही, दूध, घी से भिगो कर चरु साकल्यसहित अर्क आदि समिधा से सूर्यादि नवग्रहों का हवन करे। आठ संख्या अथवा एक-एक कर हवन करे। आक (मदार), पलाश, खैर (खदिरम्), अपामार्ग (चिचिरा), पीपल (अश्वत्थम्),  गूलर ( उदुम्बरम्), शमी, दूब, कुश (दर्भम् ) ये सभी क्रम से ग्रहों की समिधायें हैं।

(अर्कम्) ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् स्वाहा । इदं सूर्य्याय न मम ।। १ ।।

(पलाशम्) ॐ इमं देवाऽअसपत्नः सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विशऽएष वोमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा स्वाहा। इदं चन्द्रमसे न मम ।। २ ।।

(खदिरम्) - ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्याऽयम् अपा रेता सि जिन्वति स्वाहा । इदं भौमाय न मम ।। ३ ।।

(अपामार्गम्) ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्ठापूर्ते स सृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थेअध्युत्तरस्मिन्विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत स्वाहा।' मम ।। ४ ।।

(अश्वत्थम्) ॐ बृहस्पतेऽअतियदर्य्योऽअर्हाद्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु यद्दीदयच्छवसऽऋत-प्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्र स्वाहा । इदं गुरवे न बुधाय न मम ।। ५ ।।

(उदुम्बरम्) - ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्त्रं पयः सोमम्प्रजापति: ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानः शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु स्वाहा। इदं शुक्राय न मम ।। ६ ।।

(शमीम्) ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु नः स्वाहा । इदं शनैश्चराय न मम ।। ७ ।।

(दूर्वाम् ) कयानश्चित्रऽआभुवदूता सदावृधः सखा । कया शचिष्ठया बृता स्वाहा। इदं राहवे न यम ।। ८ ।।

(दर्भम्) ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्य्या अपेशसे समुषद्भिरजायथाः स्वाहा। इदं केतवे न मम ।। ९ ।। इति नवग्रहाणां होमः ।।

इस प्रकार नवग्रह के हवन के बाद हाथ में जल लेकर अनेन समिधादिकृतेन होमेन सूर्य्यादयो ग्रहाः प्रीयन्तां न मम पढ़कर जल छोड़ें।

 अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता होम

ईश्वरादि होम के लिए पलाश की समिधा, मिष्ठान्न - मिश्रित चरु घी आदि द्रव्य से ॐ त्र्यम्बकं से ते पारमशीय स्वाहा तक पढ़कर उन-उन देवताओं के लिए चार-चार आहुति दें।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वाहा । इदमीश्वराय० ।। १ ।।

ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणमुम्मऽषाण सर्वलोकम्मऽइषाण स्वाहा इदमुमायै० ।। २ ।।

ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमानः उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात् । श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहूऽउपस्तुत्यं महिजातन्ते अर्व्वस्वाहा । इदं स्कन्दाय० ।। ३ ।।

ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोश्नप्त्रेस्त्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोध्रुवोसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा स्वाहा । इदं विष्णवे० ।। ४ ।।

ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः । सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठा सतश्च योनिमसतश्च विवः स्वाहा । इदं ब्रह्मणे० ।। ५ ।।

ॐ सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमम्पिब वृत्रहा शूर विद्वान् जहि शत्रूरपमृधो नुदस्वाथाभयकृणुहि विश्वतो नः स्वाहा । इदमिन्द्राय० ।। ६ ।।

ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्म्मः पित्रे स्वाहा । इदं यमाय० ।। ७ ।।

ॐ कार्षिरस समुद्रस्य त्वाक्षित्याऽउन्नयामि समापोऽअद्भिरग्मतसमोषधीभिरोषधी: स्वाहा । इदं कालाय० ।। ८ ।।

ॐ चित्रावसो स्वस्ति ते पारमशीय स्वाहा । इदं चित्रगुप्ताय० ।। ९ ।।

अनेन सघृत-तिल-यव चरुसमिद्धोमेन ईश्वराधिदेवताः प्रीयन्तां न मम। यह कहकर जल छोड़ें । यथा बाणप्रहाराणां कवचं वारकं भवेत् । तद्वद्देवोपघातानां शान्तिर्भवति वारिका ।। मन्त्र से यजमान के ऊपर जल छिड़के।

प्रत्यधिदेवता होम –

अग्नि को आहुति- ॐ अग्निंदूतं पुरो दधे हव्यवाहमुपब्रुवे देवाँ ऽआसादयादिह स्वाहा । इदमग्नये० ।। १ ।।

जल को आहुति- ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवस्तानऽऊर्जे दधातन महेरणाय चक्षसे यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयेतह नः उशतीरिव मातरः । तस्माऽअरङ्गमामवो यस्य क्षयाय जिन्वथ आपो जनयथा च नः स्वाहा । इदमद्भ्यः ० ।। २ ।।

पृथ्वी को आहुति - ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म स प्रथाः स्वाहा । इदं पृथिव्यै० ।। ३ ।।

विष्णु को आहुति-  ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्, समूढमस्य पा सुरे स्वाहा । इदं विष्णवे० ।। ४ ।।

इन्द्र को आहुति- ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवे सुहव शूरमिन्द्रम्, हृयामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः स्वाहा। इदमिन्द्राय० ।। ५ ।।

इन्द्राणी को आहुति-  ॐ आदित्यैरास्नासीन्द्राण्या उष्णीयपूषासि धर्मायदीष्व स्वाहा। इदमिन्द्राण्यै० ।। ६ ।।

प्रजापति को आहुति- ॐ प्रजापते नत्वदेतान्यन्यो विश्वारूपाणि परिता बभूव । यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोऽस्तु वय स्याम पतयो रयीणाम् स्वाहा । इदं प्रजापतये० ।। ७ ।।

सर्पों को आहुति- ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु येऽअन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा । इदं सर्पेभ्यः ० ।। ८ ।।

ब्रह्मा को आहुति - ॐ ब्रह्म यज्ञानम्प्रथमम्पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः सबुध्न्याऽउपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः स्वाहा । इदं ब्रह्मणे० ।। ९ ।।

अनेन समिधादिकृतेन होमेन अग्न्यादिप्रत्यधि-देवताः प्रीयन्तां न मम यह पढ़कर जल छोड़े।

पञ्चलोकपाल देवता होम - 

अब विनायकादि पञ्च लोकपालों को दो-दो आहुति प्रदान करे।

गणेश जी को आहुति - ॐ गणानान्त्वा गणपति हवामहे प्रियाणान्त्वां प्रियपति हवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिर्ठ० हवामहे व्यवसो मम आहमजानिगर्भधमात्त्वमजासि गर्भधं स्वाहा। इदं गणपतये० ।। १ ।।

दुर्गा जी को आहुति - ॐ अंबेऽ अंबिकेऽम्बालिके न मानयति कश्चन ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पील वासिनी स्वाहा । इदं दुर्गायै० ।। २ ।।

वायु को आहुति - ॐ आ नो नियुद्धिः शतिनीभिरध्वर सहस्त्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्, वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्य यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः स्वाहा । इदं वायवे० ।। ३ ।।

आकाश को आहुति - ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसाम्ब्वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा दिशः प्रदिशऽआदिशो विदिशऽउद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा । इदमाकाशाय० ।। ४ ।।

अश्विनीकुमारों को आहुति- ॐ यावांकशा मधुमत्यश्विनासूनृतावती तथा यज्ञम्मिमिक्षताम् स्वाहा । इदमश्विभ्याम्० ।। ५ ।।

अनेन होमेन पञ्चलोकपालदेवताः प्रीयन्ताम् न मम । यह  पढ़कर जल छोड़े और यथा बाणप्रहाराणामिति मन्त्र से यजमान के शिर पर जलाभिषेक करे।

दशदिक्पाल होम –

अब दश दिक्पालों को दो-दो आहुति प्रदान करें।

ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवे सुहव शूरमिन्द्रं ह्वयामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः स्वाहा । इदमिन्द्राय० ।। १ ।।

त्वन्नोऽअग्ने तव पायुभिर्म्मघोनो रक्ष तन्वश्च बन्ध। त्राता तोकस्य तनये गवामस्य निमेष रक्षमाणस्तवव्व्रते स्वाहा । इदमग्नये० ।। २ ।।

ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्मे: पित्रे स्वाहा । इदं यमाय० ।। ३ ।।

ॐ असुन्वन्तमयजमानमिच्छस्तेनस्येत्यामन्विहितस्करस्य अन्यमस्मदिच्छसात ऽइत्यानमो देवि निरृते तुभ्यमस्तु स्वाहा । इदं निरृतये० ।। ४ ।।

ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः अहेडमानो वरुणेह बोध्युरु समानऽआयुः प्रमोषी: स्वाहा । इदं वरुणाय० ।। ५ ।।

ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वरः सहस्त्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम् । वायोऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा न स्वाहा । इदं वायवे ।। ६ ।।

ॐ वय सोम व्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः प्रजावन्तः सचेमहि स्वाहा । इदं कुबेराय० ।। ७ ।।

ॐ तमीशानञ्जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयं । पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये स्वाहा। इदमीशानाय० ।। ८ ।।

ॐ अस्मे रुद्रा ज्येष्ठाऽअस्माँऽअवन्तु देवाः स्वाहा । इदं ब्रह्मणे० ।। ९ ।।

ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरानिवेशनी यच्छा नः सर्वसप्रथाः स्वाहा । इदमनन्ताय० ।। १० ।।

अनेन होमेन इन्द्रादयो दिक्पालदेवताः प्रीयन्तां न मम । यह  पढ़कर जल छोड़े और यथा बाणप्रहाराणामिति मन्त्र से यजमान के शिर पर जलाभिषेक करे। । इति दिक्पालहोमः । 

पितामहादि देवताओं के लिए एक- एक आहुति से होम करें-

ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेनऽआवः । सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः स्वाहा । इदं ब्रह्मणे० ।। १ ।।

ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्, समूढमस्य पा सुरे स्वाहा । इदं विष्णवे० ।। २ ।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे० इदं शिवाय० ॥ ३ ॥

गणानान्त्वा० स्वाहा । इदं गणपतये० ।। ४ ।।

ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च० स्वाहा । इदं लक्ष्म्यै० ।। ५ ।।

ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपियन्ति सस्त्रोतसः सरस्वती तु पञ्चधा सो देशे भवत्सरित् स्वाहा । इदं सरस्वत्यै० ।। ६ ।।

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनी स्वाहा । इदं दुर्गायै ० ।। ७ ।।

ॐ नहि स्पर्शमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुरऽएतारमग्नेः एमे नम वृधन्नमृता अमर्त्यवैश्वानरं क्षैत्रजित्याय देवाः स्वाहा । इदं क्षेत्रपालाय० ।। ८ ।।

ॐ भूताय त्वानारातये स्वरभिविख्ये यन्दृ हंतादुर्याः पृथिव्यामुर्वन्तरिक्षमन्वेमि पृथिव्या स्त्वानाभौ सादयाम्यदित्या ऽउपस्त्थे ऽग्नेहव्य रक्ष स्वाहा । इदं भूतेभ्यः ० ।। ९ ।।

ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान्त्स्वावेशोऽअनमीवो भवाः नः यस्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भवद्विपदे शञ्चतुष्पदे स्वाहा । इदं वास्तोष्पतये ।। १० ।।

ॐ विश्वकर्म्मन्हविषा वर्द्धनेनत्रातारमिन्द्रमकृणोरवद्व्यम् तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्योषथासत् स्वाहा । इदं विश्वकर्मणे० ।। ११ ।। 

इसके बाद ब्रह्मा विष्णु इन्द्र रुद्र प्रत्येक देवता को चरु तिल से अष्टोत्तर शत आहुति देवे। इसके बाद जप का दशांश हवन और स्विष्टकृत होम भी करे। इसके बाद भूः से प्रजापति पर्यन्त हवन करे। दिक्पाल आदि को बलिदान आदि समस्त कार्य करके कलश से जल लेकर ब्राह्मण यजमान परिवार को भद्र आसन पर बिठाकर तीन कुश से सभी का अभिसेवन करे।

अभिषेक के बाद प्रार्थना- ॐ विघ्नेशः क्षेत्रपो दुर्गा पिनाकी वृषवाहनः ।

त्रिखलजातशिशोर्दोषं व्यपोहतु यमस्तथा ।।

ॐ योऽसौ शक्तिधरो देवो हुतभुङ्मेषवाहनः ।

सप्तजिह्वः स देवोऽग्निस्त्रिखलदोषं व्यपोहतु ।। 

अभिषेक की समाप्ति पर यजमान तीर्थोदक से स्नान करे। इसके बाद मिट्टी के घड़े को पैर से तोड़े। अन्य वस्त्र धारण कर भीगे वस्त्र नाऊ को दे दे। आचमन करे। इसके बाद शान्तिपाठ पूर्वक अधोद्वार से बालक का निष्कासन करे। सुवर्ण या लकड़ी के हाथी पर रखकर बालक को स्नान करावे एवं उसके शिर पर छत्र धारण करावे।

छत्र धारण का मंत्र - ॐ आतपत्र पवित्राणां नृपाणां कीर्तिवर्धन।

पाहि मां सुदृढच्छत्र सागरामृतसंभव ।। 

इसके बाद तीन बार बालक का चुम्बन कर अन्न आदि दान करे। कांसे की कटोरी में गोघृत भरकर छायापात्र दान करे। ।

तीन अन्न दान का संकल्प-ॐ अद्य कृतैतत् त्रीतरशान्त्यङ्गत्वेन श्रीब्रह्मविष्णुइन्द्रेशरुद्र प्रीतये इदं कुडवादिपरिमितं गोधूमाद्यन्नत्रयं विश्वेदेवदेवताकं यथानाम० ।

तीन वस्त्र दान का संकल्प- ॐ अद्य कृतैतत् त्रीतरशान्त्यङ्गत्वेन श्रीब्रह्मविष्णुइंद्रेश रुद्रप्रीतये वस्त्रत्रयं वृहस्पतिदैवताकं यथानामगोत्राय० ।

तीन धातु दान का संकल्प- -ॐ अद्य कृतैतत् त्रीतरशान्त्यङ्गत्वेन श्रीब्रह्मविष्णुइंद्रेश रुद्रप्रीतये इदं यथाशक्ति स्वर्णरजतताम्रं अग्निरुद्रविष्णुदैवताकं यथानाम० ।

तीन तिल पात्र दान का संकल्प- -अद्य कृतैतत् त्रीतरशान्त्यङ्गत्वेन श्रीब्रह्मविष्णुइन्द्रेश रुद्रप्रीतये इदं तिलपात्रं विष्णुदैवत्यं यथानाम्ने गोत्राय० ॥ इसके बाद आवाहित देवताओं की उत्तर पूजा करके सूर्य को अर्ध्य देकर प्रमादात् से अच्युतं तक पढ़ कर पूजा सम्पन्न करे।

 इति त्रीतर( त्रिखल) शान्तिः ।। 

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