देव पूजा विधि Part-22 भागवत पूजन विधि

    प्रातः काल स्नान के पश्चात् अपना नित्य-नियम समाप्त करके पहले भगवत्सम्बन्धी स्तोत्रों एवं पदों के द्वारा मङ्लाचरण और वन्दना करे। इसके बाद आचमन और प्राणायाम करके-
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिररैरङ्गैस्तुष्टुवा ँ सस्तनूभिव्र्यशेमहि देवहितं यदायुः।।
इत्यादि मन्त्रों से शान्तिपाठ करे। इसके पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण, श्रीव्यासजी, शुकदेवजी तथा श्रीमद्भागवत-ग्रन्थ की षोडशोपचार से पूजा करनी चाहिये। यहाँ श्रीमद्भागवत पुस्तक के षोडशोपचार पूजन की मन्त्र सहित विधि दी जा रही है। इसी के अनुसार श्रीकृष्ण आदि की भी पूजा करनी चाहिये। निम्नाङ्कित वाक्य पढ़कर पूजन के लिये संकल्प करना चाहिये। संकल्प के समय दाहिने हाथ की अनामिका-अङ्गुलि में पवित्री पहने और हाथ में जल लिये रहे। संकल्पवाक्य इस प्रकार है-
ॐ तत्सत्। ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः.......... अमुकगोत्रोत्पन्नस्य अमुकशर्मणः (वर्मणः गुप्तस्य वा) मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य श्रीगोवर्धनधरण- चरणारविन्दप्रसादात् सर्वसमृद्धिप्राप्त्यर्थं  भगवदनुग्रहपूर्वक- भगवदीयप्रेमोपलब्धये च श्रीभगवन्नामात्मकभगवत्स्वरूपश्रीभागवतस्य
पाठेऽधिकारसिद्ध्यर्थं श्रीमद्भागवतस्य प्रतिष्ठां पूजनं चाहं करिष्ये।
इस प्रकार संकल्प करके-
            तदस्तु मित्रावरुणा तदग्ने शंयोऽस्मभ्यमिदमस्तु शस्तम्।
            अशीमहि गाधमुत प्रतिष्ठां नमो दिवे बृहते सादनाय।।
यह मंत्र पढ़कर श्रीमद्भागवत की सिंहासन या अन्य किसी आसन पर स्थापना करे। इसके बाद पुरुषसूक्त के एक-एक मन्त्र द्वारा क्रमशः षोडश उपचार अर्पण करते हुए पूजन करे-
आवाहन- ॐ सहस्रशीर्षा0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। आवाहयामि।
इस मंत्र से भगवान् के नामस्वरूप श्रीमद्भागवत को नमस्कार करके आवाहन करे।
आसन- ॐ पुरुष एवेदं0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः।
आसनं समर्पयामि। इस मन्त्र से आसन समर्पण करे।
पाद्य- ॐ एतावानस्य0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। पाद्यं समर्पयामि। इस मंत्र से पाद्य समर्पित करे।
अर्घ्य- ॐ त्रिपादूध्र्व0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। अघ्र्यं समर्पयामि। इस मन्त्र से पैर पखारने के लिये जल समर्पण करे।
आचमन- ॐ ततो विराडजायत0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। आचमनीयं समर्पयामि। इस मन्त्र से आचमन के लिये जल या गङ्गाजल अर्पण करे।
स्नान- ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः सम्भृतं0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। स्नानीयं समर्पयामि। इस मन्त्र से स्नान के लिये जल अर्पण करे।
वस्त्र- ॐ यत्पुरुषेण0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। वस्त्रां समर्पयामि। इस मन्त्र से वस्त्र समर्पण करे।
यज्ञोपवीत-ॐ तं यज्ञं0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। यज्ञोपवीतं समर्पयामि। इस मन्त्र से यज्ञोपवीत अर्पण करे।
चन्दन- ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। चन्दनं समर्पयामि। इस मन्त्र से चन्दन चढ़ाये।
पुष्प-ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। पुष्पं समर्पयामि। इस मंत्र से फूल चढ़ाये।
धूप-ॐ यत्पुरुषं0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः।
धूपमाघ्रापयामि। इस मन्त्र से धूप सुँघाये।
दीप-ॐ चन्द्रमा0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः  दीपं दर्शयामि। इस मन्त्र से घीका दीप जलाकर दिखाये और उसके बाद हाथ धो ले।
नैवेद्य-ॐ नाभ्या0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। नैवैद्यं निवेदयामि। इस मन्त्र से नैवेद्य अर्पण करे।
                        श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय  नमः।
                        एलालवङ्पूगीफलकर्पूरसहितं ताम्बूलं समर्पर्यामि।
ताम्बूल-ॐ सप्तास्यासन्, 0 इस मन्त्र से पानका बीड़ा अर्पण करे।
श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः।
दक्षिणा-हिरण्यगर्भः0 दक्षिणां समर्पयामि।
प्रदक्षिणा-धाता पुरस्ताद्यमुदाजहार शक्रः
            प्रविताद्यमुदाजहार शक्रः प्रविद्वान् प्रदिशदृतश्रः।
            तमेवं विद्वानमृत इह भवति नान्यः पन्था अयनाय विद्यते।।
श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः।
प्रदक्षिणां समर्पयामि। इस मन्त्र से प्रदक्षिणा करे।
मंत्र पुष्पाञ्जलि-ॐ यज्ञेन0 श्रीभगवन्नामात्मकस्वरूपिणे श्रीभागवताय नमः। मन्त्रपुष्पं समर्पयामि। इस मन्त्र से मन्त्रपाठपूर्वक पुष्पाञ्जलि अर्पण करे।
प्रार्थना-             वन्दे श्रीकृष्णदेवं मुरनरकभिदं वेदवेदान्तवेद्यं
                        लोके भक्तिप्रसिद्धं यदुकुलजलधौ प्रादुरासीदपारे।
                        यस्यासीद् रूपमेवं त्रिभुवनतरणे भक्तिवच्च स्वतन्त्रं
                        शास्त्रं रूपं च लोके प्रकटयति मुदा यः स नो भूतिहेतुः।।

जगत में भक्ति से ही प्राप्त होने वाले, वेद और वेदांत के द्वारा ही जानने योग्य मुर और नरकासुर को मारने वाले, अपार यादवरूपी समुद्र में प्रकट हुए, भगवान् श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूं। इस संसार में अपने स्वरूप तथा शास्त्र को प्रसन्नता पूर्वक प्रकट किया करते हैं तथा सचमुच ही जिनका स्वरूप इस त्रिभुवन को तारने के लिए भक्ति के समान स्वतंत्र नौका रूप है, वे भगवान् श्रीकृष्ण हम लोगों का कल्याण करें।

                        श्रीभागवतरूपं तत् पूजयेद् भक्तिपूर्वकम्।
                        अर्चकायाखिलान् कामान् प्रयच्छति न संशयः।।
विनियोग-दाहिने हाथ की अनामिका में कुश की पवित्राी पहन ले। फिर हाथ में जल लेकर नीचे लिखे वाक्य को पढ़कर भूमिपर गिरा दे-
ॐ अस्य श्रीमद्भाद्गवताख्यस्तोत्रमन्त्रस्य नारद ऋषिः। बृहती छन्दः। श्रीकृष्णः परमात्मा देवता। ब्रह्म बीजम्। भक्तिः शक्तिः। ज्ञानवैराग्ये कीलकम्। मम श्रीमद्भगवत्प्रसादसिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः।
न्यास-विनियोग में आये हुए ऋषि आदि का तथा प्रधान देवता के मन्त्राक्षरों का अपने शरीर के विभिन्न अङ्गों में जो स्थापन किया जाता है, उसे न्यासकहते हैं। मन्त्र का एक-एक अक्षर चिन्मय होता है, उसे मूर्तिमान् देवता के रूप में देखना चाहिये। इन अक्षरों के स्थापन से साधक स्वयं मन्त्रमय हो जाता है, उसके हृदय में दिव्य चेतना का प्रकाश फैलता है, मन्त्र के देवता उसके स्वरूप होकर उसकी सर्वथा रक्षा करते हैं।  ऋश्षि आदिका न्यास सिर आदि कतिपय अङ्गों में होता है मन्त्र पदों अथवा अक्षरों का न्यास प्रायः हाथ की अँगुलियों और हृदयादि अङ्गों में होता है। इन्हें क्रमशःकरन्यासऔर अङ्न्यासकहते हैं। किन्हीं-किन्हीं मन्त्रों का न्यास सर्वाङ्में होता है। न्यास से बाहर-भीतर की शुद्धि, दिव्य बलकी प्राप्ति और साधना की निर्विघ्र पूर्ति होती है। यहाँ क्रमशः ऋष्यादिन्यास, करन्यास और अङ्न्यास दिये जा रहे हैं-
ऋष्यादिन्यास-नारदर्षये नमः शिरसि।।1।। बृहतीच्छन्दसे नमो मुखे।।2।। श्रीकृष्णपरमात्मदेवतायै नमोहृदये।।3।। ब्रह्मबीजाय नमो गुह्ये।।4।। भक्तिशक्तये नमः पादयोः।।5।। ज्ञानवैराग्यकीलकाभ्यां नमो नाभौ।।6।। विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।।7।।
पहला वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ की अङ्गुलियों से सिरका स्पर्श करे, दूसरा वाक्य पढ़कर मुखका, तीसरे वाक्य से हृदयका, चौथे से गुदाका, पाँचवें से पैरों का, छठे से नासिका और सातवें वाक्य से सम्पूर्ण अङ्गोका स्पर्श करना चाहिये।
करन्यास-इसमें ॐ नमो भगवते वासुदेवायइस द्वादशाक्षर मन्त्र के एक-एक अक्षर प्रणव से सम्पुटित करके दोनों हाथों की अङ्गुलियों में स्थापित करना है। मन्त्र नीचे दिये जा रहे हैं-
ॐ ॐ ॐ नमो दक्षिणतर्जन्याम्ऐसा उच्चारण करके दाहिने हाथ के अँगूठे से दाहिने हाथ की तर्जनी का स्पर्श करे। 
ॐ नं ॐ नमो दक्षिणमध्यमायाम्-यह उच्चारण कर दाहिने हाथ के अँगूठे से दाहिने हाथ की मध्यमा अङ्गुलिका स्पर्श करे। 
ॐ मों ॐ नमो दक्षिणानामिकायाम्-यह पढ़कर दाहिने हाथ के अँगूठे से दाहिने हाथ की अनामिका अङ्गुलिका स्पर्श करे। 
ॐ भं ॐ नमो दक्षिणकनिष्ठिकायाम्-इससे दाहिने हाथ के अँगूठे से दाहिने हाथ की कनिष्ठिका अङ्गुलिका स्पर्श करें। 
ॐ गं ॐ नमो वामकनिष्ठिकायाम्-इससे बायें हाथ के अँगूठे बायें हाथ की कनिष्ठिका अङ्गुलिका स्पर्श करे। 
ॐ यं ॐ नमो वामानामिकायाम्-इससे बायें हाथ के अँगूठे से बाये हाथ की अनामिका अङ्गुलिका स्पर्श करे। 
ॐ तें ॐ नमो वाममध्यमायाम्-इस से बायें हाथ के अँगूठे से बायें हाथ की मध्यमा अङ्गुलिका स्पर्श करे। 
ॐ वां ॐ नमो वामतर्जन्याम्-इससे बायें हाथ के अँगूठे से बायें हाथ की तर्जनी अङ्गुलिका स्पर्श करे। 
ॐ सुं ॐ नमः ॐ दें ॐ नमो दक्षिणाङ्ष्ठपर्वणोः-इसको पढ़कर दाहिने हाथ की तर्जनी अङ्गुलि से दाहिने हाथ के अँगूठे की दोनों गाँठों का स्पर्श करे। 
ॐ वां ॐ नमः ॐ यं ॐ नमो वामाङ्ष्ठपर्वणोः-इसका उच्चारण करके बायें हाथ की तर्जनी अङ्गुलिसे बायें हाथ के अँगूठे की दोनों गाँठों का स्पर्श करे।
अङ्न्यास-
यहाँ द्वादशाक्षर मन्त्र के पदों का हृदयादि अङ्गों में न्यास करना है-
ॐ नमो नमो हृदयाय नमः-इसको पढ़कर दाहिने हाथ की पाँचों अङ्गुलियों से हृदय का स्पर्श करे। 
ॐ भगवते नमः शिरसे स्वाहा-इसका उच्चारण करके दाहिने हाथ की सभी अङ्गुलियों से सिरका स्पर्श करे। 
ॐ वासुदेवाय नमः शिखायै वषट्-इसके द्वारा दाहिने हाथ से शिखा कर स्पर्श करे। 
ॐ नमो नमः कवचाय हुम्-इसको पढ़कर दायें हाथ की अङ्गुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अङ्गुलियों से दायें कंधे का स्पर्श करे। 
ॐ भगवते नमः नेत्रत्रयाय वौषट्-इसको पढ़कर दाहिने हाथ की अङ्गुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों तथा ललाट के मध्यभाग में गुप्तरूप से स्थित तृतीय नेत्रा (ज्ञानचक्षु) का स्पर्श करे। 
ॐ वासुदेवाय नमः अस्स्त्राय फट्-इसका उच्चारण करके दाहिने हाथ को सिरके ऊपर से उलटा अर्थात् बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की हथेली पर ताली बजाये।
अङ्न्यास में आये हुए स्वाहा’, ‘वषट्’, ‘हुम्’, ‘वौषट्और फट्’-ये पाँच शब्द देवताओं के उद्देश्य से किये जाने वाले हवन से सम्बन्ध रखने वाले हैं। यहाँ इनका आत्मशुद्धि के लिये ही उच्चारण किया जाता है।
ध्यान-
किरीटकेयूरमहार्हनिष्कैर्मण्युत्तमालङ्कतसर्वगात्राम्।
पीताम्बरं काञ्चनचित्रनद्धं मालाधरं  केशवमभ्युपैमि।।
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