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भवतः रूप की सिद्धि भी पूर्वोक्त भवति के समान ही होती है। प्रक्रिया यहाँ प्रदर्शित है-
भ् + अव् + अ + तः सकार का ससजुषो रुः से रुत्व विसर्जनीयस्य सः से विसर्ग
भवसि भवथः भवथ में युष्मद्युपपदे समानाधिकरणे स्थानिन्यपि मध्यमः
से मध्यम पुरुष का विधान होगा। शेष प्रक्रिया पूर्ववत् होगी।
भवामि
भू + मिप् अस्मद्युत्तमः से उत्तम पुरूष में मिप् हुआ।
भू + मि प् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ।
अदन्त अंग भव के अ का दीर्घ हुआ।
भवा + मि परस्पर वर्ण संयोग।
बभूव
भू +
लिट् धातु से कर्ता अर्थ में परोक्ष, अनद्यतन, भूत
अर्थ में परोक्षे लिट् से लिट् आया।
भू +
ल् लिट्
में इकार टकार का अनुबन्धलोप, ल् शेष रहा।
भू +
तिप् ल् के स्थान पर तिप् आदि आदेश प्राप्त हुए। तिप् आदि आदेश की परस्मैपद संज्ञा, तिङस्त्रीणि
त्रीणि प्रथममध्यमोत्तमाः से तिप् की
प्रथमपुरुषसंज्ञा, प्रथमपुरुष का एकवचन तिप्
आया।
भू + ति अनुबन्धलोप होकर भू + ति बना।
भू + ति सार्वधातुकसंज्ञा को बाधकर लिट् लकार
की आर्धधातुकसंज्ञा हो जाती है।
भू + णल् ति के स्थान पर परस्मैपदानां णलतुसुस्-
थलथुस-णल्वमाः से णल् आदेश हुआ।
भू + अ णल् में लकार को हलन्त्यम् से
इत्संज्ञा और णकार को चुटू से इत्संज्ञा तथा दोनों का तस्य लोपः
से लोप ।
भू + वुक् + अ भुवो वुग् लुङ्लिटोः से वुक् का आगम
हुआ।
भू + व् + अ वुक् में उकार तथा ककार का अनुबन्धलोप
होकर व् शेष बचा। वुक् कित् है अतः भू के अन्त्य
का अवयव होगा।
भूव् + भूव् + अ लिटि धातोरनभ्यासस्य से
भूव् को द्वित्व ।
भू + भूव् + अ पूर्वोऽभ्यासः से पहले वाले भूव् की
अध्यास संज्ञा और हलादि शेष: से अभ्याससंज्ञक भूव् में जो
आदि हल् भकार हैं, वह शेष रहा तथा अन्य हल् वकार का लोप
हो गया।
भु + भुव + अ ह्रस्वः से अभ्याससंज्ञक भू के ऊकार
को ह्रस्व होकर भु हुआ ।
भ + भूव् + अ भवतेरः से भु के उकार के स्थान पर
अकार आदेश हुआ।
बभूव् + अ अभ्यासे चर्च से झश् भकार के स्थान पर जश् बकार
आदेश हुआ।
वर्णसम्मेलन होकर बभूव रूप सिद्ध हुआ।
बभूवतुः
भू +
लिट् धातु से परोक्षे लिट् से लिट् आया।
भू + ल् अनुबन्धलोप।
भू +
तस् ल् के स्थान पर प्रथमपुरुष का द्विवचन तस् आया ।
भू + अतुस् तस् के स्थान पर परस्मैपदानां णलतुसुस्-
थलथुस-णल्वमाः से अतुस् आदेश ।
भूव् + अतुस् भुवो वुग् लुङ्लिटोः से वुक् का
आगम, अनुबन्धलोप व् शेष बचा। भूव् + अतुस् हुआ ।
भूव् + भूव् + अतुस् लिटि धातोरनभ्यासस्य से भूव् को द्वित्व।
भू + भूव् + अतुस् पूर्वोऽभ्यासः से पहले वाले भूव् को अभ्याससंज्ञा और हलादि
शेष: से अभ्याससंज्ञक आदि हल्
शेष रहा और अन्य हल् वकार का लोप ।
भु + भूव् + अतुस् ह्रस्व: से अभ्याससंज्ञक भू के ऊकार को ह्रस्व ।
भ + भूव् + अतुस् भवतेरः से भु के उकार के स्थान पर अकार आदेश ।
बभूव् + अतुस् अभ्यासे चर्च से झश् भकार के स्थान पर
जश् बकार आदेश ।
बभूवतुस् वर्णसम्मेलन ।
बभूवतुः सकार के स्थान पर रुत्व
विसर्ग ।
बभूवः
बहुवचन में भू उस्, भूव् उस्, भूव् भूव् उस्, भू भूव् उस्, भु भूव् उस्, भ
भूव् उस् होकर बभूवुः रूप सिद्ध हुआ।यहाँ झि के स्थान पर उस् आदेश होकर बभूवुः
बनता है।
भविष्यत् काल में लृट् लकार - लृटः शेषे च
भू + तिप् तिप् आदेश, तिप् की सार्वधातुक संज्ञा, प् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ ।
भू + स्य + ति कर्तरि शप् से शप् की प्राप्ति हुई, स्यतासी लृलुटोः से स्य प्रत्यय ।
भू + स्य + ति आर्धधातुकं शेषः से स्य की आर्धधातुक संज्ञा
भू +इ+ स्य + ति आर्धधातुकस्येड्वलादेः से इट् का आगम,ट् की इत्संज्ञा एवं लोप
भ् +अव् +इ+ स्य + ति एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ ।
भ् +अव् +इ+ ष्य + ति आदेशप्रत्ययोः से स्य के स् को ष् हुआ।
भविष्यसि। भविष्यथः। भविष्यथ।
भविष्यामि भविष्यावः भविष्यामः रूप सिद्ध करना चाहिए।
भवतु भवतात्
भ् + अव् + अ + तु एरुः से लोट् लकार के इकार का उ आदेश हुआ।
आशीर्वाद देने के अर्थ में भवतु के तु को तुह्योस्तातङ्ङाशिष्यन्यतरस्याम् से विकल्प से तातङ् आदेश होगा। तातङ् के अ तथा ङ् का अनुबन्ध लोप होने पर तात् शेष रहता है। इस प्रकार भू धातु लोट् लकार प्रथमा एकवचन में भवतु तथा भवतात् दो रूप बनेंगें।
भवताम्
भू + लोट् अनुबन्ध लोप,भू + ल् हुआ
भ् + अव् + अ + तस् लोटो लङ्वत् लोट् लकार सम्बन्धी तस् को ङित्वद्भाव
(ङित् के समान)
भ् + अव् + अ + ताम् ङित्वात् तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः से तस् के स्थान पर
ताम् आदेश हुआ।
भवन्ति की तरह भू + झि भव + अन्ति इ को एरुः के उ कर भवन्तु रूप सिद्ध करना चाहिए।
भवतात् भव
सिप् की सार्वधातुक संज्ञा।
तातङ् आदेश हुआ।
भवतम् तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः से थस् को तम् ।
शेष प्रकिया भवताम् की तरह होगी।
भवत तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः थ के स्थान पर त आदेश ।
भवानि
मि की सार्वधातुक संज्ञा।
भू + अ + आ + नि आडुत्तमस्य पिच्च से लोट् लकार के नि के पूर्व आट् का आगम,
ट् का अनुबन्ध लोप।
भू + आ + वस् आडुत्तमस्य पिच्च से नि के पूर्व आट् का आगम,
ट् का अनुबन्ध लोप।।
इसी प्रकार भवाम रूप बनेंगें।
अभवताम् । भू धातु से अनद्यतन भूतकाल अर्थ में अनद्यतने लङ् से लङ् लकार, लङ् के ङकार का अनुबन्धलोप, भू + ल हुआ। लुङ्लङ्लृङ्क्ष्वडुदात्तः से धातु को अट् का आगम, अनुबन्धलोप, ल के स्थान पर प्रथमपुरुष के द्विवचन का तस् आदेश, अनुबन्धलोप होकर अभू + तस् बना। तस् की सार्वधातुकसंज्ञा, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, अभू + अ + तस् बना। सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उकार का गुण ओकार हुआ। अभो + अ + तस् बना। ओकार के स्थान पर अवादेश होकर अभवतस् बना। तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः से तस् के स्थान पर ताम् आदेश होकर अभवताम् रूप सिद्ध हुआ।
अभवन्। भू धातु से अनद्यतन भूतकाल अर्थ में अनद्यतने लङ् से लङ् लकार, लङ् के ङकार का अनुबन्धलोप, भू + ल हुआ। लुङ्लङ्लृङ्क्ष्वडुदात्तः से धातु को अट् का आगम, अनुबन्धलोप, ल के स्थान पर प्रथमपुरुष का बहुवचन झि आदेश, झि की सार्वधातुकसंज्ञा, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, अभू + अ + झि बना। सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उकार का गुण ओकार हुआ। अभो + अ + झि बना। ओकार के स्थान पर अवादेश होकर अभव् + अ + झि बना। झोऽन्तः से झ् को अन्त् आदेश होकर अभव + अन्त् + इ बना। अभव + अन्त् में अतो गुणे से पररूप होकर अभवन्ति बना, ति के इकार का इतश्च से लोप और तकार का संयोगान्तस्य लोपः से लोप होकर अभवन् रूप सिद्ध हुआ।
अभवः। भू धातु से अनद्यतने लङ् से लङ् लकार, अट् आगम, अनुबन्धलोप, लङ् के स्थान पर मध्यमपुरुष का एकवचन सिप् आदेश, अनुबन्धलोप, सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, गुण, अवादेश होकर अभव + सि बना इकार का इतश्च से लोप होकर अभवस् बना। सकार का रुत्वविसर्ग होकर अभवः रूप सिद्ध हुआ।
अभवतम्। भूधातु से अनद्यतने लङ से लङ्लकार, अट् आगम, अनुबन्धलोप, लङ् के स्थान पर मध्यमपुरुष के द्विवचन का थस् आदेश हुआ। थस् की सार्वधातुकसंज्ञा, शप् आदेश, अनुबन्धलोप, गुण, अवादेश होकर अभव + थस् बना। तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः से थस् के स्थान पर तम् आदेश होकर अभवतम् रूप सिद्ध हुआ।
अभवत। भूधातु से अनद्यतने लङ से लङ्लकार, अट् आगम, अनुबन्धलोप, लङ् के स्थान पर मध्यमपुरुष के बहुवचन का थ आदेश हुआ। थस् की सार्वधातुकसंज्ञा, शप् आदेश, अनुबन्धलोप, गुण, अवादेश होकर अभव+ थ बना। तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः से थ के स्थान पर त आदेश होकर अभवत रूप सिद्ध हुआ।
अभवम् । भू धातु से अद्यतने लङ से लङ् लकार, अट् आगम, लङ् के स्थान पर उत्तम पुरुष का एकवचन मिप्, अनुबन्धलोप, अट् का आगम, सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, गुण, अवादेश, तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः से मि के स्थान पर अम् आदेश, अभव + अम् बना। अतो गुणे से पररूप होकर अभवम् रूप सिद्ध हुआ।
अभवाव। भू धातु से अनद्यतने लङ् से लङ् लकार, लुङ्लङलृङ्क्ष्वडुदात्त: से धातु को अट् आगम, अनुबन्धलोप, लङ् के स्थान पर उत्तममपुरुष का द्विवचन वस् आदेश होकर अभू वस् बना। सि की सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, अभू अ वस् में सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू को गुण, अवादेश होकर वर्णसम्मेलन हुआ अभव वस् बना। अतो दीर्घो यञि से दीर्घ होकर अभवावस् बना। सकार का नित्यं ङितः से लोप होकर अभवाव रूप सिद्ध हुआ।
अभवाम। भू धातु से अनद्यतने लङ से लङ् लकार, लुङ्लङ्लुङ्क्ष्वडुदात्त: को अट् आगम, लङ् के स्थान पर अनुबन्धलोप, उत्तमम पुरुष का बहुवचन मस् आदेश होकर अभू + मस् बना। सि की सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, अभू + अ + मस् में सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू को गुण, अवादेश होकर अभव + मस् बना। अतो दीर्घो यञि से अदन्त अङ्ग को दीर्घ होकर अभवामस् बना। सकार का नित्यं ङितः से लोप होकर अभवाम रूप सिद्ध हुआ।
2. तिप् सिप् मिप् के प् की, इट् में ट् की तथा महिङ् में ङ् की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है। आताम् आथाम् एवं ध्वम् के म् की इत्संज्ञा प्राप्त होती है, परन्तु न विभक्तौ तुस्माः से निषेध हो जाता है।
3. पित् को मानकर होने वाले स्वरविधान एवं गुण के लिए इत्संज्ञक प् का विधान किया गया। इट् में ट् का विधान स्पष्टता के लिए महिङ् के ङ् की इत्संज्ञा तिङ् एवं तङ् प्रत्याहार बनाने के लिए किया गया।
4. भू झि इस दशा में चूटू सूत्र से झ् की इत्संज्ञा प्राप्त थी, परन्तु झोऽन्तः से झ् को अन्त आदेश हुआ।
5. यहां आत्मनेपद का विधान नहीं है, अतः शेषात् कर्तरि परस्मैपदम् से भू धातु से परस्मैपद पद अर्थात तिप् आदि प्राप्त हुए। लः परस्मैपदम् से तिङ् को परस्मैपदम् प्राप्त होता है, जबकि तङानावात्मनेपदम् से तङ् को आत्मनेपद संज्ञा होती है। शेषात्कर्तरि परस्मैपदम् तङ् को छोड़कर शेष को परस्मैपद संज्ञा हुई।
अथवा लघुसिद्धान्तकौमुदी (विसर्गसन्धिपर्यन्तम्) इस लिंक पर चटका लगायें।
संस्कृत व्याकरण में रूचि रखने वाले इस लिंक पर भी जायें। यहाँ भी आपको हिन्दी में सरल भाषा में रूप सिद्धि के साथ सूत्रों का विवेचन प्राप्त होगा। आप इस नाम से मेरे ब्लॉग पर लेख खोज सकते हैं।
जवाब देंहटाएंलघुसिद्धान्तकौमुदी (विसर्गसन्धिपर्यन्तम्)
https://sanskritbhasi.blogspot.com/2018/05/blog-post.html
लघुसिद्धान्तकौमुदी ( अजन्तपुल्लिंगतः अजन्तनपुंसकलिंगपर्यन्तम्)
शेष भाग की सरल हिन्दी व्याख्या की जा रहा है।
अत्युत्तमं कार्यमिदम्।
जवाब देंहटाएंमयानन्दमनुभूयते श्रीमन्।
प्रणमामि🙏🏻🙏🏻
भवति की सिद्धि में शप् में श और प की इत्संज्ञा होती है लेकिन आपने वहां अ और प् की इत्संज्ञा लिखा हुआ है।
जवाब देंहटाएंअसावधानी के कारण उसे सही कर ले।।
प्रणाम।।
आपने सूक्ष्मता के साथ पाठ का अवलोकन किया। अशुद्धि परिमार्जित कर दी गयी।
हटाएंभू शब्द से कन्या के नाम बताये। नाम दो शब्दों का हो तो श्रेष्ठ होगा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
भूमि, भूमा,
हटाएंप्रश्न- भवती सिद्ध करने के लिए हमें क्या चीजें याद करनी पड़ेगी
जवाब देंहटाएंभवत् शब्द से ङीप् प्रत्यय करने पर भवती बनता है। आपके लिए यह स्त्रीप्रत्यय का विषय है। विशेष यह कि भा दीप्तौ धातु से डवतु प्रत्यय करके भवत् शब्द बनता है। इस भवत् से ङीप् कर भवती बना लें अथवा सर्वादिगण में 'भवतु' यह प्रातिपदिक शब्द पढ़ा गया है। इस प्रातिपदिक भवतु में उकार की इत्संज्ञा होने से यह उगित् है। स्त्रीत्व की विवक्षा में उगितश्च इस सूत्र से भवत् से ङीप् होकर 'भवती' यह रूप सिद्ध होता है।
हटाएंहम आपका आभार कैसे प्रकट करें गुरु जी बहुत सुंदर लेख मुझे पहली बार व्याकरण में कुछ समझ आया
जवाब देंहटाएंराजपुरुष:य महात्मा की सूत्रोल्लेख पूर्वक सिद्धि कीजिए
जवाब देंहटाएंराजपुरुषः में दो पद हैं। महात्मन् शब्द के प्रथम एकवचन में महात्मा रूप बनता है। यह प्रश्न लघुसिद्धान्तकौमुदी के हलन्तपुल्लिंग प्रकरण से सम्बन्धित है। कृपया वहाँ दी गयी रूप सिद्धि को देखो या फोन कर अपने प्रश्न को स्पष्ट करें।
हटाएंभोक्तुम शब्द की साधनिका सिद्ध करिए
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंलुट् लकार भू धातु भविता की सिद्धि कैसे होगी कृपया बताएं
जवाब देंहटाएंयहाँ भू धातु के अन्य रूपों की सिद्धि के लिए लिंक दिया गया है। आप ध्यान देकर लिंक पर क्लिक करें। वहाँ भविता रूप की सिद्धि मिल जाएगी। अथवा मीनू बटन के माध्यम से लघुसिद्धान्तकौमुदी भ्वादि प्रकरण पर जायें। यहाँ सम्पूर्ण लघुसिद्धान्तकौमुदी का आडियो, व्याख्या तथा विडियो उपलब्ध है।
हटाएंभावयति
हटाएंNamonmah
जवाब देंहटाएंश्रीमान् जी, प्रत्ययेक लकारों मे सिद्ध करनें की अवधारित विधि है जैसे लट् लकार मे लट् तिप् शप् गुण अवादेश वेैसे ही सभी लकारों की मिल सकती है क्या।
जवाब देंहटाएंआप इस ब्लॉग के संस्कृत शिक्षण पाठशाला 2 तथा संस्कृत शिक्षण पाठशाला 3 पर जायें। इसका लिंक Page वाले स्थान पर मिल जाएगा। यहाँ पर क्रियापदों (धातुओं) पर चार्ट तथा लेख के माध्यम से विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला गया है। सभी लकार तथा गण के विकरण आदि को जान सकेगें।
हटाएंश्रीमान जी सादर प्रणाम! नाम आख्यात् उपसर्ग एवं निपात के विषय मे भी कुछ लिखें।
जवाब देंहटाएं