जय मैकाले, जय शिक्षक दिवस


यदि मैकाले नहीं होता तो भारत में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस भी नहीं होता। आज करोड़ों लोगों को शिक्षा का अधिकार नहीं मिलता। हर गाँव, गली में स्कूल नहीं खुलता। बनिया, कुर्मी, धोवी, हलवाई, नाई, जुलाहे आदि को विद्या का मंदिर स्कूल में प्रवेश दिलाता? कौन ऐसे लोगों को शिक्षा में समान अवसर दिलाता? अर्थात् आज की तरह सर्वसमाज में शिक्षक दिवस की धूम नहीं होती। मेरे जैसे लाखों लोगों ने जो स्कूली शिक्षा पायी उसमें मैकाले का बहुत बड़ा योगदान है। जात-पात से ऊपर उठे हुए संतों का योगदान है। मेरे जैसे लाखों लोगों ने जो नौकरी पायी और पायेंगें उसका श्रेय आधुनिक शिक्षा पद्धति के जनक व कर्ता-धर्ता श्रीमान् मैकाले महाशय को जाता है। आज यही मैकाले लाखों लोगों को रोजगार में समान अवसर दिलाते हुए रोजी रोजी का प्रबन्ध कर गये। हर स्कूल में शिक्षक हर बच्चे को आज कमोवेश यही तो सिखा रहा है। आज ऐसी शिक्षा किसे नहीं चाहिए? यह एक अलग विषय है कि जिसे उपाधि नहीं चाहिए, वह भी ज्ञानार्जन कर सकता है। ऐसे महान् ज्ञानियों से ही देश चलता है।
स्कूली शिक्षा के बाहर भी एक विशाल शिक्षा जगत् है, यहाँ के गुरु शुक्राचार्य और कैकेयी की भूमिका में होते हैं। ऐसे व्यक्ति समय-समय पर अनुभवी व योग्य व्यक्ति को भी यह सीख देने में सफल होते हैं कि तुम नितान्त असफल व्यक्ति हो। तुमने आज तक जो भी किया वह मूल्य विहीन है। तुलसी दास के शब्दों में ऐसे पूज्य गुरु को शिक्षक दिवस पर सादर वन्दन।
सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि इस शिक्षा पद्धति ने गुरु पत्नी की इज्जत बक्श दी,अन्यथा मनु, याज्ञवल्क्य जैसे स्मृतिकार दण्ड तथा प्रायश्चित्त का विधान करते-करते थक गये। यह महान् पातक रोके नहीं रूक रहा था। आश्चर्यजनक यह है कि मनुस्मृति में कहीं भी गुरु पुत्री से व्यभिचार का वर्णन नहीं मिलता। या तो उस समय स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं रहा होगा या बाल विवाह की प्रथा रही होगी। याज्ञवल्क्य के समय गुरुकुल में गुरु जी की पत्नी के साथ बेचारी गुरु जी की पुत्री भी सुरक्षित नहीं थी। देखिये यह उद्धरण-
पितुः स्वसारं मातुश्च मातुलानीं स्नुषामपि ।
मातुः सपत्नीं भगिनीं आचार्यतनयां तथा ।। याज्ञवल्क्य 3.232
आचार्यपत्नीं स्वसुतां गच्छंस्तु गुरुतल्पगः ।
लिङ्गं छित्त्वा वधस्तस्य सकामायाः स्त्रिया अपि ।। याज्ञवल्क्य 3.233

अर्थ- बुआ, माता,मामी,पतोहू,सौतेली माता,बहन, आचार्य की पुत्री,आचार्य की पत्नी,अपनी पुत्री से सम्भोग करने पर गुरुपत्नी भोगी के समान होता है।
बाद के समय में प्रव्रजिता और साध्वी तक यह दायरा फैल गया। कालिदास तथा परवर्ती संस्कृत साहित्य ऐसे आख्यानों से भरा मिलता है।
माता मातृष्वसा श्वश्रूर्मातुलानी पितृष्वसा ।
पितृव्यसखिशिष्यस्त्री भगिनी तत्सखी स्नुषा ॥
दुहिताचार्यभार्या च सगोत्रा शरणागता ।
राज्ञी प्रव्रजिता धात्री साध्वी वर्णोत्तमा च या ॥
आसामन्यतमां गच्छन्गुरुतल्पग उच्यते ।
शिश्नस्योत्कर्तनात्तत्र नान्यो दण्डो विधीयते ॥ नारद- 12.73-75

ऐसे समाज में शिक्षा जगत् की माता व बहन शिक्षा का अधिकार पाये विना जाने कहाँ चली जाती थी। मैकाले ने स्त्रियों के लिए न केवल शिक्षा के द्वार खोला वरन् शिक्षा क्षेत्र में सुधार भी किया।
मैकाले ने ही भारतीय विधि व्यवस्था को सुदृढ़ करने की आधार शिला रखी। यही प्रथम विधि आयोग का अध्यक्ष था,जिसने विधि के संहिताकरण करने पर जोर दिया। भारतीय दण्ड विधान संहिता उसकी ही देन है। अन्यथा हम याज्ञवल्क्य के इस घन चक्कर में पड़े रहते।
भृतादध्ययनादानं भृतकाध्यापनं तथा ।
पारदार्यं पारिवित्त्यं वार्धुष्यं लवणक्रिया ।। 3.235 । ।
वेतन लेने वाले अध्यापक से पढ़ना तथा वेतन लेकर पढ़ाना उपघातक होता है। समझो कि इस मैकाले के कारण ही आप शिक्षक लोग समाज तथा अपने प्रिय शिष्य के सम्मुख निंदित होने से बच गये। अन्यथा तो वेतन लेकर पढ़ाने पर बच्चे कभी भी आपको हेप्पी टिचर्स डे नहीं कहते।
लेखक- जगदानन्द झा

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3 टिप्‍पणियां:

  1. मैकाले के बिना बेहतर शैक्षिक प्रगति होती।

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  2. मैकाले कौन था और शिक्षा के पद्धति में उन्होंने क्या किया था?

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रश्न - भारत में शिक्षक दिवस डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन या मैकाले की वजह से मनाया जाता है स्पष्ट करें?

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