एध् धातु की रूप सिद्धि

पुन: स्मरण  

      तिङन्त प्रकरण की परस्मैपद प्रक्रिया में आप तिप् आदि 18 प्रत्ययों के बारे में जान चुके हैं तथा भू, अत्, गद्, सिच्, अर्च, व्रज, क्षि, तप्, क्रमु आदि परस्मैपद धातुओं से तिप्, तस् आदि 9 परस्मैपद संज्ञक प्रत्ययों का प्रयोग कर रूप सिद्धि भी कर चुके हैं।

     परस्मैपद प्रक्रिया को जानने के बाद अब आत्मनेपद संज्ञक धातुओं की रूप सिद्धि प्रक्रिया बतायी जा रही है। अनुदात्तङित आत्मनेपदम् इस सूत्र के अनुसार दो प्रकार की धातुओं को आत्मनेपद होता है। 1. अनुदात्तेत् अर्थात् अनुदात्त की इत्संज्ञा वाला 2. ङित् अर्थात् जिसमें ङकार की इत्संज्ञा हुई हो। इसके अतिरिक्त अन्य आत्मनेपद का विधान करने वाले सूत्रों से भी यथासमय परिचय कराया जाएगा ।

    आप इस अध्याय में लकार के स्थान पर आदेश होने वाले त, आताम् आदि शेष 9 आत्मनेपदी प्रत्ययों को पुन: स्मरण कर लें। यहाँ आप एध धातु में त, आताम् आदि प्रत्ययों का प्रयोग करना सीखेंगें।

एध वृद्धौ। एध् धातु बढ़ना अर्थ में है। इस में धकारोत्तरवर्ती अकार की उपदेशेऽजनुनासिक इत् से इत्संज्ञा होती है। अकार अनुदात्त स्वर वाला है, अत: यह धातु अनुदात्तेत् हुआ। इसलिए अनुदात्तङित आत्मनेपदम् सूत्र के नियम से इस धातु से आत्मनेपद का विधान हुआ। जिस धातु से आत्मनेपद का विधान होता है, वह धातु आत्मनेपदी होता है। अत: एध् धातु आत्मनेपदी है।

एधते

 'एध् + त'     एध् धातु से कर्ता अर्थ में लट् के स्थान पर आत्मनेपदसंज्ञक '' प्रत्यय आया। 

'एध् + त'      तिङ् शित् के द्वारा '' की सार्वधातुक संज्ञा हुई। 

'एध् + शप् + त कर्तरि शप् से 'शप्' । 

एध् + अ + त  अनुबन्धलोप होने पर एध् + अ + त हुआ। 

एधत          वर्णसम्मेलन । 

एधते          अचोऽन्त्यादि टि से तकारोत्तरवर्ती अन्त्य अच् अकार की टिसंज्ञा हुई और टित आत्मनेपदानां टेरे से                   उसके  स्थान पर एकार आदेश होकर एधते सिद्ध हुआ।  

एधेते

एध् + आताम्                तिङ् शित् सार्वधातुकम् से आताम् की सार्वधातुक संज्ञा

एध् + अ + आताम्          शप्, अनुबन्धलोप । 

एध + इय् + ताम्  आताम् की सार्वधातुकरमपित् से ङिद्वद्भाव करके आतो डितः से आताम् के आकार के स्थान 

                                पर इय् आदेश, वर्णसम्मेलन। 

एध + इ + ताम्          यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप। 

एधे + ताम्             अ इ में आद्गुणः से गुण हुआ। 

एधेते             ताम् के आम् की अचोऽन्त्यादि टि से टिसंज्ञा हुई और टि के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे: से                       एत्व  होकर एधेते बना।

एधन्ते

एध् + झ में  झ के स्थान पर झोऽन्तः से अन्त् आदेश हुआ अन्त् अ बना। वर्णसम्मेलन हुआ तो अन्त बना। अन्त की सार्वघातुकसंज्ञा करके शप् हुआ, अनुबन्धलोप, एध् + अ + अन्त बना। अ + अन्त में अतो गुणे से पररूप होकर अन्त ही हुआ। एध् अन्त में वर्णसम्मेलन और अन्त्य अच् तकारोत्तरवर्ती अकार की टिसंज्ञा और उसके स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे एत्व होकर एधन्ते सिद्ध हुआ।

एधसे

एध् से मध्यमपुरुष एकवचन थास्, सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, एथ् अ थास् बना। थासः से से थास् के स्थान पर से आदेश हुआ, वर्णसम्मेलन करके एधसे सिद्ध हुआ।

एधेथे

एध् + आथाम्     -           तिङ् शित् सार्वधातुकम् से आथाम् की सार्वधातुक संज्ञा,

एध् + अ + आथाम् -        कर्तरि शप् से शप्, शप् में शकार तथा पकार का अनुबन्धलोप ।

एध् + अ + इय् + थाम् आथाम् की सार्वधातुकमपित् से ङिद्वद्भाव करके आतो ङितः से आथाम् के आकार के

स्थान पर इय् आदेश ।

एध + इ + थाम् -            इय् के यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप । वर्णसम्मेलन ।

एध् + ए + थाम् -            अ + इ में आद्गुणः से गुण ।

एधेथे -                          थाम् के आम् की अचोऽन्त्यादि टि से टिसंज्ञा और टि के स्थान पर टित आत्मनेपदानां

टेरे से एत्व ।

एधध्वे

एध् + ध्वम्

एध् + शप् + ध्वम्           तिङ् शित् सार्वधातुकम् से ध्वम् की सार्वधातुक संज्ञा, कर्तरि शप् से शप्,

एध् + अ + ध्वम्  -          शप् में  शकार तथा पकार का अनुबन्धलोप।

एध् + अ + ध्वे                ध्वम् में अम् की टिसंज्ञा और टि के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व।

एधध्वे               वर्णसम्मेलन ।

एधे

एध् + इट्

एध् + इ -                      इट् के टकार की हलन्त्यम् से इत्संज्ञा, तस्य लोपः से लोप।

एध् + शप् + इ               कर्तरि शप् से शप्,

एध् + अ + इ                  शप् का अनुबन्धलोप,

एध् + अ + ए                 टिसंज्ञक इ के स्थान पर एत्व ।

एध् + ए                        अ ए में अतो गुणे से पररूप एकादेश ।

एधे                               वर्णसम्मेलन ।

एधावहे

एध् + वहि

एध् + अ + वहि              शप् करने के बाद अनुबन्धलोप ।

एध् + अ + वहे               वहि में इकार की टिसंज्ञा, उसके स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व ।

एध् + आ + वहे              अतो दीर्घो यञि से वहे के वकार के पूर्व अत् को दीर्घ आकार ।

एधावहे                                     वर्णसम्मेलन ।

एधामहे

एध् + महिङ्

एध् + महि                     ङकार की की हलन्त्यम् से इत्संज्ञा, तस्य लोपः से लोप ।

एध् + शप् + महि            कर्तरि शप् से शप्,

एध् + अ + महि              शप् में  शकार तथा पकार का अनुबन्धलोप।

 एध् + अ + महे              टित आत्मनेपदानां टेरे से टिसंज्ञक हि का इकार के स्थान पर एत्व ।

एध् + आ + महे              अतो दीर्घो यञि से महे के मकार के पूर्व अत् को दीर्घ आकार हुआ ।

एधामहे                         वर्णसम्मेलन ।

पुन: स्मरण  

      एध वृद्धौ। एध् में धकारोत्तरवर्ती अकार की उपदेशेऽजनुनासिक इत् से इत्संज्ञा तथा तस्य लोपः से लोप होता है। एध में अकार का लोप हो जाने पर अकार रहित एध् शेष रह जाता है। चुंकि एध का अकार अनुदात्त स्वर वाला है, अत: यह एध् धातु अनुदात्तेत् हुआ। अनुदात्तङित आत्मनेपदम् सूत्र से अनुदात्तेत् धातु आत्मनेपद वाला होता है। आत्मनेपदी धातु से तङ् प्रत्यय अर्थात् त, आताम् झ आदि प्रत्यय होते हैं। यही प्रक्रिया सभी लकारों होती है। एध के अकार की इत्संज्ञा लोप हो जाने के बाद तङ् प्रत्यय आता है। अब एध् से रूप सिद्धि की प्रक्रिया देखें-

सामान्य भविष्यत् अर्थ में लृट् लकार - लृट् शेषे च

एधिष्यते । 

एध् + लृट्

एध् +  

एध् + स्य +  = स्यतासी लृलुटोः से स्य प्रत्यय 

एध् + स्य + त = स्य की आर्धधातुकं शेषः से आर्धधातुकसंज्ञा

एध् + इ + स्य + त = आर्धधातुकस्येड्वलादेः से इट् का आगम

एधिस्यत = वर्णसम्मेलन ।

एधिष्यत = इ से परे स्य के सकार का आदेशप्रत्यययोः से षत्व ।  

एधिष्यते = टित आत्मनेपदानां टेरे से त प्रत्यय के टिसंज्ञक अकार को एत्व ।

एधिष्येते। 

एध् + लृट् लकारअनुबन्धलोप, लकार के स्थान पर आताम् आदेश 

एध् + आताम् 

एध् + स्य + आताम्  = स्यतासी लृलुटोः से स्य प्रत्यय

 एध् + इ + स्य + आताम् = आर्धधातुकस्येड्वलादेः से इट् का आगम 

एध् + इ + स्य+ इय् + ताम्   = आतो ङितः से आताम् के आकार के स्थान पर इय् आदेश 

एधिस्य + इ + ताम्   = यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप ।  

एधिस्येताम् = अ तथा इ में गुण ए हुआ, वर्णसम्मेलन । 

एधिष्येताम् =  इ से परे स्य के सकार का आदेशप्रत्यययोः से षत्व । 

एधिष्येते =   टित आत्मनेपदानां टेरे से आताम्  के  आम् को एत्व करके एधिष्येते ।

इसी प्रकार थास् में थास् को से आदेश हो कर धिष्यसे  आथाम् में एधिष्येथे । वहि और महिङ् में अतो दीर्घो यञि से दीर्घ होकर एधिष्यावहेएधिष्यामहे रूप बनता है। पूर्व प्रक्रिया के अनुसार लृट् लकार के अन्य रूपों की सिद्धि होगी।

आत्मनेपदी एध् धातु की अन्य रूपों की सिद्धि जानने  के लिए यहाँ क्लिक करें।

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