अथ आत्मनेपदिनो धातवः
परस्मैपद धातुओं को जानने के बाद अब आत्मनेपद
संज्ञक धातुओं की रूप सिद्धि प्रक्रिया बतायी जा रही है। अनुदात्तङित आत्मनेपदम्
इस सूत्र के अनुसार दो प्रकार की धातुओं को आत्मनेपद होता है। 1. अनुदात्तेत्
अर्थात् अनुदात्त की इत्संज्ञा वाला 2 ङित् अर्थात् जिसमें ङ्कार की इत्संज्ञा हुई
हो। यथासमय इसके अतिरिक्त अन्य आत्मनेपद का विधान करने वाले सूत्रों से
परिचय कराया जाएगा ।
आप परस्मैपद प्रक्रिया में तिप् आदि 18 प्रत्ययों के बारे में जान चुके हैं। इसमें से तिप्, तस् आदि 9 परस्मैपद संज्ञक प्रत्ययों की रूप सिद्धि भी कर चुके हैं। इस अध्याय में लकार के स्थान पर आदेश होने वाले त-आताम्-झ,थास्-आथाम्-ध्वम्,इट्-वहि-महिङ् ये 9 प्रत्ययों को पुन: स्मरण कर लें। ये आत्मनेपदी धातुओं से होते हैं।
एध वृद्धौ। एध् धातु बढ़ना अर्थ में है। इस में धकारोत्तरवर्ती अकार की
उपदेशेऽजनुनासिक इत् से इत्संज्ञा होती है। अकार अनुदात्त स्वर वाला है,
अत: यह धातु अनुदात्तेत् हुआ। इसलिए अनुदात्तङित आत्मनेपदम्
सूत्र के नियम से इस धातु से आत्मनेपद का विधान हुआ। जिस धातु से आत्मनेपद का
विधान होता है, वह धातु आत्मनेपदी होता है। अत: एध् धातु आत्मनेपदी है।
सूत्रार्थ- टित् लकार के आत्मनेपद प्रत्ययों के
टि के स्थान पर एकार आदेश हो।
जिनके टकार की इत् संज्ञा होती है, उन्हें टित् कहते हैं। अचोऽन्त्यादि टि से अन्त्य अच् की
टिसंज्ञा होती है। लकारों में लट्, लिट्, लुट्, लृट्, लेट् तथा लोट् के टकार की इत् संज्ञा होती है अतः ये टित्
लकार कहलाते हैं।
अब आत्मनेपदी धातु का कथन किया जा रहा है। 'एध' का अर्थ है- वृद्धि। 'एध' धातु में धकारोत्तरवर्ती अकार की उपदेशेऽजनुनासिक इत् से
इत्संज्ञा हुई और तस्य लोपः से लोप हुआ। एध् बचा। एध् का अकार अनुदात्त तथा
इत्संज्ञक है। अत: यह आत्मनेपदी धातु है।
एधते। एध् से कर्ता अर्थ में लट् के स्थान पर आत्मनेपदसंज्ञक 'त' प्रत्यय आया। तिङ्शित्सार्वधातुकम् के द्वारा 'त' की सार्वधातुक संज्ञा हुई। 'शप्' होकर 'एध् + शप् + त' ऐसी स्थिति बनी। अनुबन्धलोप होने पर
एध् + अ + त हुआ। वर्णसम्मेलन करने पर एधत हुआ।
एधत में तकारोत्तरवर्ती अन्त्य अच् अकार की अचोऽन्त्यादि टि
से टिसंज्ञा हुई और टित आत्मनेपदानां टेरे से उसके स्थान पर एकार आदेश होकर एधते
सिद्ध हुआ।
सूत्रार्थ- अदन्त अङ्ग से परे
ङित्-प्रत्ययों के आकार के स्थान पर इय् आदेश हो।
यह सूत्र
आताम् और आथाम् के आकार के स्थान पर इय् आदेश करता है। यकार का लोपो व्योर्वलि से
लोप हो जाता है।
एधेते। एध् + आताम् में तिङ्
शित् सार्वधातुकम् से आताम् की सार्वधातुक संज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + आताम् हुआ। आताम् की सार्वधातुकरमपित् से ङिद्वद्भाव
करके आतो ङितः से आताम् के आकार के स्थान पर इय् आदेश हुआ एध् + अ + इय् + ताम्
बना। यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप हुआ। वर्णसम्मेलन हुआ। एध + इ + ताम् बना। अ इ
में आद्गुणः से गुण हुआ, ए बना। एध् ए ताम् बना । ताम् के आम् की अचोऽन्त्यादि टि से
टिसंज्ञा हुई वर्णसम्मेलन होकर और टि के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे: से एत्व
होकर एधेते बना।
एधन्ते। एध् + झ में झ के स्थान पर झोऽन्तः से अन्त् आदेश हुआ। एध् + अन्त् + अ बना। वर्णसम्मेलन होकर अन्त बना। अन्त की सार्वघातुकसंज्ञा करके शप् हुआ, शप् में शकार तथा पकार का अनुबन्धलोप, एध् + अ + अन्त बना। अ + अन्त में अतो गुणे से पररूप होकर अन्त हुआ। एध् + अन्त में वर्णसम्मेलन और अन्त्य अच् तकारोत्तरवर्ती अकार की टिसंज्ञा और उसके स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे एत्व होकर एधन्ते सिद्ध हुआ।
सूत्रार्थ- टित् लकार वाले थास् के स्थान पर से
आदेश हो।
थास् के स्थान पर होने वाला से आदेश अनेकाल् है अतः अनेकाल् परिभाषा के अनुसार
यह थास् के स्थान पर होता है।
एधसे। एध् से मध्यमपुरुष एकवचन थास्, सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + थास् बना। थासः से से थास् के स्थान पर से आदेश हुआ,
वर्णसम्मेलन करके एधसे सिद्ध हुआ।
एधेथे। एध् + आथाम् में तिङ् शित् सार्वधातुकम् से आथाम् की
सार्वधातुक संज्ञा, कर्तरि शप् से शप्, शप् में शकार तथा
पकार का अनुबन्धलोप, एध् + अ + आथाम् हुआ। आथाम् की सार्वधातुकमपित् से ङिद्वद्भाव
करके आतो ङितः से आथाम् के आकार के स्थान पर इय् आदेश हुआ एध् + अ + इय् + थाम्
बना। इय् के यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप हुआ। वर्णसम्मेलन हुआ। एध + इ + थाम्
बना। अ + इ में आद्गुणः से गुण होकर ए बना। एध् + ए + थाम् बना । थाम् के आम् की अचोऽन्त्यादि
टि से टिसंज्ञा और टि के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व होकर एधेथे रूप
सिद्ध हुआ।
एधध्वे। एध् + ध्वम् में तिङ् शित् सार्वधातुकम् से ध्वम् की
सार्वधातुक संज्ञा, कर्तरि शप् से शप्, शप् में शकार तथा
पकार का अनुबन्धलोप, एध् + अ + ध्वम् हुआ। ध्वम् में अम् की टिसंज्ञा और टि के
स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व करके एध् अ ध्वे हुआ। वर्णसम्मेलन करके
एधध्वे रूप सिद्ध हुआ।
एधे। एध् + इट् में इट् के टकार की हलन्त्यम् से इत्संज्ञा, तस्य लोपः से लोप होने
पर इ शेष बचा। पूर्वप्रक्रिया के अनुसार शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + इ में टिसंज्ञक इ के स्थान पर एत्व करके एध् + अ
+ ए बना। अए में अतो गुणे से पररूप एकादेश होकर ए हुआ। वर्णसम्मेलन करके एधे रूप
सिद्ध हुआ।
एधावहे। एध् + वहि में शप् करने के बाद अनुबन्धलोप, एध् + अ + वहि बना। वहि में इकार की टिसंज्ञा, उसके स्थान
पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व करने पर एध् + अ + वहे बना। अतो दीर्घो
यञि से वहे के वकार के पूर्व अत् को दीर्घ आकार हुआ। एध् + आ
+ वहे बना। वर्णसम्मेलन करने पर एधावहे सिद्ध हुआ ।
एधामहे। एध् + महिङ् में ङकार की की हलन्त्यम् से इत्संज्ञा, तस्य लोपः से लोप । कर्तरि
शप् से शप्,
शप् में शकार तथा
पकार का अनुबन्धलोप, एध् + अ + महि हुआ। टित आत्मनेपदानां टेरे से टिसंज्ञक हि
का इकार के स्थान पर एत्व होकर एध् + अ + महे बना। अतो दीर्घो
यञि से महे के मकार के पूर्व अत् को दीर्घ आकार हुआ। एध् + आ
+ महे बना। वर्णसम्मेलन करने पर एधामहे सिद्ध हुआ ।
विशेष- महिङ् का ङकार ङित्करण के लिए नहीं है, अपितु तिङ् प्रत्याहार बनाने के लिए है।
एध्
धातु लट् लकार का रूप-
एक. द्वि.
बहु.
एधते,
एधेते, एधन्ते
एधसे,
एधेथे, एधध्वे
एधे,
एधावहे, एधामहे
सूत्रार्थ- ऋच्छ धातु को छोड़कर जो गुरु वर्ण से
युक्त इजादि धातु, उससे परे आम् प्रत्यय होता है लिट् के परे होने पर।
विशेष-
आप सिद्धान्तकौमुदी के संज्ञा प्रकरण में संयोगे गुरु (1-4-11) संयोग पर होने
पर ह्रस्व की गुरुसंज्ञा होती है तथा दीर्घं च (1-4-12) दीर्घ वर्ण की गुरुसंज्ञा होती
है ये दो सूत्र पढ़ेंगें। अत: जिस धातु में दीर्घवर्ण या संयोग वर्ण हो वह धातु गुरुसंज्ञक
वर्ण वाला होगा। ऋच्छ् धातु में च्छ् का संयोग है, अत: यह भी गुरुमान् हुआ। ऋच्छ् धातु से आम् प्रत्यय अभीष्ट
नहीं था,
जिसके निषेध करने के लिए सूत्र में अनृच्छ: पढ़ा गया। आम्
के मकार की इत्संज्ञा नहीं होती है। अत: पूरा आम् धातु से परे होता है। लिट् परे
रहते विहित होने से धातु और लिट् के बीच में बैठ जाता है। इच् एक प्रत्याहार है,
वह आदि में है जिस धातु के, वह धातु इजादि हुआ।
सूत्रार्थ- जिस धातु से आम्-प्रत्यय
होता है,
ऐसी आम् प्रकृतिभूत धातु के समान अनुप्रयोग की जाने वाली
कृ-धातु से भी आत्मनेपद ही होता है।
आम्-प्रत्ययो यस्मात् इति - सूत्र में आम्प्रत्यवत् शब्द आया है। इसका अर्थ स्पष्ट करने के लिए यहाँ विग्रह दिखाया गया है। आम्प्रत्यय में अतद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि समास है। सूत्र में वत् प्रत्यय इव (समान, तुल्य) के अर्थ में आया है।
बहुव्रीहि समास दो प्रकार का होता है- तद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि और अतद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि। सामान्यतः बहुव्रीहि समास अन्य पदार्थ को कहता है । अतद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि में केवल अन्यपदार्थ का ही ग्रहण किया जाता है अर्थात् समस्यमान पदों के अर्थ को छोड़ दिया जाता है । जैसे चित्रा गावो यस्य, रूपवती भार्या यस्य में अन्यपदार्थ (पुरुष) का ग्रहण होता है न कि समस्यमान गौ, भार्या का। अतः क्रिया में समस्यमान पदार्थ का सम्बन्ध न होने से यह अतद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि हुआ। इसी तरह आम् प्रत्ययो यस्मात् सः (आम् प्रत्यय हुआ जिससे वह) में भी आम् प्रत्यय जिससे होता है, ऐसा अन्य पदार्थ प्रकृति (मूल धातु) मात्र को लिया जाता है न कि आम् प्रत्यय को भी। अतः यहाँ भी अतद्गुणसंविज्ञान नामक बहुव्रीहि हुआ है।
तद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि में अन्यपदार्थ के साथ समस्यमान पद के अर्थ का भी ग्रहण होता है । तद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि का उदाहरण पीताम्बरो हरिः है। जिससे आम्-प्रत्यय का विधान होता है, ऐसे धातु को आम्प्रकृतिक कहते हैं।
एधाञ्चक्रे रूप की सिद्धि बतायी जा रही है। एध् + आम् + कृ इस स्थिति में कृ धातु उभयपदी है। अतः यहाँ पर अनुप्रयुज्यमान कृ धातु के विषय में में प्रश्न उठता है कि लकार के स्थान पर होने वाला आदेश तिप् होगा या त। उसके विषय में यह सूत्र निर्णय दिया कि जिस धातु से आम् हुआ हो वह धातु जिस पद से सम्बन्ध रखती है, अनुप्रयुज्यमान के साथ भी उसी पद का प्रत्यय होगा । आम् आत्मनेपदी है अतः एधान्कृ इस स्थिति में त आया।
सूत्रार्थ- लिट् के त और झ के स्थान पर क्रमश: एश् तथा इरेच् आदेश हो।
एधाञ्चक्रे। एध् धातु से लिट् लकार, इजादेश्च
गुरुमतोऽनृच्छः सूत्र से इजादि एध् धातु (एध् का आदि वर्ण एकार इच् है और गुरु
वर्ण वाली भी) के परे लिट् होने के कारण धातु से आम् प्रत्यय हुआ।
एधाम् + लिट् बना। आम: से आम् से परे लिट् का लोप होकर
एधाम् बना। कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि से लिट् को साथ में
लेकर कृ धातु का अनुप्रयोग हुआ, एधाम् + कृ + लिट् बना। आम्प्रत्ययवत्कृञोऽनुप्रयोगस्य से आत्मनेपद
होने के कारण लिट् के स्थान पर त आया । एधाम्
+ कृ + त बना। त के स्थान पर लिटस्तझयोरेशिरेच् से एश् आदेश हुआ,
शकार की हलन्त्यम् से इत्संज्ञा और तस्य लोपः से लोप हुआ।
एधाम् कृ+ए बना। इस स्थिति में इको यणचि से यण् प्राप्त था,
उसका द्विर्वचनेऽचि से निषेध हुआ। कृ का लिटि
धातोरनभ्यासस्य से द्वित्व हुआ, एधाम् + कृ + कृ + ए हुआ। प्रथम कृ की पूर्वोऽभ्यासः से
अभ्याससंज्ञा हुई और उरत् से ऋकार के स्थान अत् आदेश, उरण् रपरः की सहायता रपर
होकर अर् आदेश हुआ, एधाम् कर् कृ ए बना। हलादि शेषः से कर् में ककार का शेष और
रकार का लोप हुआ। एधाम् क कृ ए बना। कुहोश्चुः से अभ्याससंज्ञक ककार के स्थान पर
चवर्ग में च आदेश होकर एधाम् च कृ ए बना। सार्वधातुकार्धधातुकयोः से कृ के ऋकार के
स्थान पर गुण प्राप्त था किन्तु असंयोगाल्लिट् कित् से लिट् लकार कित् बन गया है,
इसलिए क्ङिति च से गुणनिषेध हुआ। एधाम् च कृ ए में इको यणचि
से यण् होकर ऋकार के स्थान पर रकार आदेश होकर एधाम् + च + क्र् + ए बना। एधाम् के मकार के स्थान पर
मोऽनुस्वारः से अनुस्वार और अनुस्वार के स्थान पर वा पदान्तस्य से परसवर्ण होकर तथा
वर्णसम्मेलन होकर एधाञ्चक्रे बना।
विशेष-
आपने एधाञ्चक्रे रूप की सिद्धि प्रक्रिया में मोऽनुस्वारः से एधाम् के मकार को
अनुस्वार होता देखा है। यह सूत्र मान्त पद को अनुस्वार करता है। अब आप सोच रहे
होंगे कि एधाम् एक पद कैसे है? क्या यह सुबन्त है या तिङन्त? तिङन्त पद एधाञ्चक्रे
है अतः यह सुबन्त पद हो सकता है। आइये जानते हैं कैसे?
आम् अंत वाला एधाम् मान्त और लिट् लकार की धातु से विहित होने के कारण
कृत्संज्ञक भी है। अत: एधाम् को कृदन्त मानकर कृत्तद्धितसमासाश्च से
प्रातिपदिकसंज्ञा करके स्वादि प्रत्यय आते हैं। एधाम् का कृन्मेजन्तः से अव्ययसंज्ञा
होने से सु आदि प्रत्ययों का अव्ययादाप्सुपः से लोप हो जाता है । सु आदि के लोप
होने पर भी एकदेशविकृतमनन्यवत् न्याय से पूर्व में की हुई पदसंज्ञा रहती है। अतः एधाम्
एक सुबन्त पद है।
एधाञ्चक्राते। एध् धातु से लिट् लकार, इजादेश्च
गुरुमतोऽनृच्छः सूत्र से इजादि एध् धातु (एध् का आदि वर्ण एकार इच् है और गुरु
वर्ण वाली भी) के परे लिट् होने के कारण धातु से आम् प्रत्यय हुआ।
एधाम् + लिट् बना। आम: से आम् से परे लिट् का लोप होकर
एधाम् बना। कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि से लिट् को साथ में
लेकर कृ धातु का अनुप्रयोग हुआ, एधाम् + कृ + लिट् बना। आम्प्रत्ययवत्कृञोऽनुप्रयोगस्य से आत्मनेपद
होने के कारण लिट् के स्थान प्रथमपुरुष द्विवचन का आताम् आया । एधाम् + कृ + आताम् बना। इस स्थिति में इको यणचि
से यण् प्राप्त था, उसका द्विर्वचनेऽचि से निषेध हुआ। कृ का लिटि
धातोरनभ्यासस्य से द्वित्व हुआ, एधाम् + कृ + कृ + ए हुआ। प्रथम कृ की पूर्वोऽभ्यासः से
अभ्याससंज्ञा हुई और उरत् से ऋकार के स्थान अत् आदेश, उरण् रपरः की सहायता रपर
होकर अर् आदेश हुआ, एधाम् कर् कृ आताम् बना। हलादि शेषः से कर् में ककार का शेष
और रकार का लोप हुआ। एधाम् क कृ आताम् बना। कुहोश्चुः से अभ्याससंज्ञक ककार के स्थान
पर चवर्ग में च आदेश होकर एधाम् च कृ आताम् बना। सार्वधातुकार्धधातुकयोः से कृ के
ऋकार के स्थान पर गुण प्राप्त था किन्तु असंयोगाल्लिट् कित् से लिट् लकार कित् बन
गया है,
इसलिए क्ङिति च से गुणनिषेध हुआ। एधाम् च कृ आताम् में इको यणचि
से यण् होकर ऋकार के स्थान पर रकार आदेश होकर एधाम् + च + क्र् + आताम् बना। एधाम् के मकार के स्थान पर
मोऽनुस्वारः से अनुस्वार और अनुस्वार के स्थान पर वा पदान्तस्य से परसवर्ण होकर एधाञ्
+ च + क्र् + आताम् बना। आताम् में टिसंज्ञक आम् के स्थान पर टित
आत्मनेपदानां टेरे से एत्व हुआ, वर्णसम्मेलन होकर एधाञ्चक्राते रूप सिद्ध हुआ।
एधाञ्चक्रिरे। एध् + लिट्, आम्, इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छः सूत्र से इजादि एध् धातु (एध् का आदि
वर्ण एकार इच् है और गुरु वर्ण वाली भी) के परे लिट् होने के कारण धातु से आम्
प्रत्यय हुआ। एधाम् + लिट् बना। आम: से आम् से परे लिट् का लोप होकर
एधाम् बना। कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि से लिट् को साथ में
लेकर कृ धातु का अनुप्रयोग हुआ, एधाम् + कृ + लिट् बना। आम्प्रत्ययवत्कृञोऽनुप्रयोगस्य से
आत्मनेपद होने के कारण लिट् के स्थान प्रथमपुरुष बहुवचन का झ आया । एधाम् + कृ + एधाञ्चक्र् बना। कृ का लिटि
धातोरनभ्यासस्य से द्वित्व हुआ, एधाम् + कृ + कृ + झ हुआ। प्रथम कृ की पूर्वोऽभ्यासः से
अभ्याससंज्ञा हुई और उरत् से ऋकार के स्थान अत् आदेश, उरण् रपरः की सहायता रपर
होकर अर् आदेश हुआ, एधाम् + कर् + कृ + झ बना। हलादि शेषः से कर् में ककार का
शेष और रकार का लोप हुआ। एधाम् + क + कृ + झ बना। कुहोश्चुः से अभ्याससंज्ञक ककार
के स्थान पर चवर्ग में च आदेश होकर एधाम् + च + कृ + झ बना। सार्वधातुकार्धधातुकयोः
से कृ के ऋकार के स्थान पर गुण प्राप्त था किन्तु असंयोगाल्लिट् कित् से लिट् लकार
कित् बन गया है, इसलिए क्ङिति च से गुणनिषेध हुआ। एधाम् + च + कृ + झ में कृ के ऋकार को इको
यणचि से यण् होकर होकर एधाम् + च + क्र् +
झ बना। एधाम् के मकार के स्थान पर मोऽनुस्वारः से अनुस्वार और अनुस्वार के स्थान
पर वा पदान्तस्य से परसवर्ण होकर एधाञ् + च
+ क्र् + झ बना। झ के स्थान पर लिटस्तझयोरेशिरेच् से इरेच् आदेश और अनुबन्धलोप
करके एधाञ्चक्र् + इरे बना । वर्णसम्मेलन होकर एधाञ्चक्रिरे रूप सिद्ध हुआ।
एधाञ्चकृषे। एध् + थास् में एधाम् + च + कृ + थास् तक की प्रक्रिया पूर्ववत् ही होगी । एधाम्
के मकार के स्थान पर मोऽनुस्वारः से अनुस्वार और अनुस्वार के स्थान पर वा
पदान्तस्य से परसवर्ण होकर एधाञ् + च + कृ
+ थास् बना। यहाँ थासः से के द्वारा थास् के स्थान से आदेश होकर एधाञ्चकृसे बना ।
आदेशप्रत्यययोः से एधाञ्चकृसे के सकार को षत्व होकर एधाञ्चकृषे रूप सिद्ध हुआ।
एधाञ्चक्राथे। एध् + आथाम् (मध्यमपुरुष के द्विवचन) में एधाम् + च + कृ + आथाम् तक की प्रक्रिया पूर्ववत् ही होगी । यहाँ टित
आत्मनेपदानां टेरे से आथाम् में टिसंज्ञक आम् के स्थान पर एत्व होकर एधाम् + च + कृ
+ आथे बना । इको यणचि से यण् होकर एधाम् + च + क्र् + आथे बन गया। एधाम् के मकार के स्थान पर अनुस्वार
और परसवर्ण, वर्णसम्मेलन होकर एधाञ्चक्राथे रूप सिद्ध हुआ।
५१६ इणः षीध्वंलुङि्लटां धोऽङ्गात्
सूत्रार्थ- इणन्त अङ्ग से परे षीध्वम्, लुङ् एवं लिट् लकार से सम्बन्धित धकार के स्थान पर ढकार आदेश हो।
एधाञ्चकृढ्वे । एध् + ध्वम् (मध्यमपुरुष के बहुवचन) में पूर्ववत् प्रक्रिया होगी । ध्वम् के धकार के स्थान पर इणः षीध्वंलुङ्लिटां धोऽङ्गात् से ध्वम् के धकार को ढकार आदेश करके एधाञ्चकृ ढ्वम् बना । ढ्वम् में टिसज्ञंक अम् के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व होकर एधाञ्चकृढ्वे रूप बना ।
एधाञ्चक्रे। एध् + इट् में इट् प्रत्यय के टकार का अनुबन्धलोप करके अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्
कर लें। यहाँ टिसंज्ञक इ के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व होकर ए होकर एधाञ्चक्रे
बना।
एधाञ्चकृवहे। एधाञ्चकृमहे। एध् + वहि और एध्
+ महिङ् में टिसंज्ञक वहि और महि के इकार
के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व होकर वहे और महे बन जाता है। इस तरह एधाञ्चकृवहे। एधाञ्चकृमहे दोनों रूप सिद्धि होता
है।
एध्-धातु के लिट् लकार में भू के अनुप्रयोग में 'एधाम्बभूव' आदि और अस् के अनुप्रयोग में एधामास । एधामासतुः। एधामासुः।
एधामासिथ आदि रूप बनते हैं।
एधाञ्चक्रे, एधाञ्चक्राते, एधाञ्चक्रिरे
एधाञ्चकृषे, एधाञ्चक्राथे, एधाञ्चकृढ्वे
एधाञ्चक्रे, एधाञ्चकृवहे,
एधाञ्चकमहे
लुट् लकार के प्रथमपुरूष में परस्मैपदी धातुओं के समान रूप बनते हैं- एधिता एधितारौ,
एधितारः।
एधिता। एध् धातु से अनद्यतने लुट् से लुट् लकार हुआ। लुट् में उकार तथा टकार का
अनुबन्धलोप हुआ। एध् + ल् हुआ। लकार के स्थान पर त आदेश,
अनुबन्धलोप होने पर एध् + त बना। त की तिङ्शित्सार्वधातुकम्
से सार्वधातुकसंज्ञा, कर्तरि शप् से शप् प्राप्त हुआ,
उसे बाध कर स्यतासी लृलुटोः से तासि प्रत्यय हुआ। तासि में
इकार की उपदेशेऽजनुनासिक इत् से इत्संज्ञा और तस्य लोपः से लोप हुआ। एध् + तास् +
त बना। तास् धातु से विहित है, तिङ् और शित् से भिन्न भी है। अत: इसकी आर्धधातुकं शेष: से
आर्धधातुकसंज्ञा हुई और आर्धधातुकस्येड्वलादेः से तास् को इट् का आगम हुआ। एध् + इ
+ तास् + त हुआ। एधितास् + त में त के स्थान पर लुट: प्रथमस्य डारौरसः से डा आदेश
हुआ। डकार की चुटू से इत्संज्ञा और तस्य लोपः से लोप,
एधितास् + आ बना। एधितास् + आ में अचोऽन्त्यादि टि से आस् की अचोऽन्त्यादि टि से टिसंज्ञा हुई । डा
आदेश डित् है, जिसके बल पर भसंज्ञा न होने पर भी टे: इस सूत्र से टिसंज्ञक आस् का लोप
हुआ। एधितास् + आ में वर्णसम्मेलन होने पर
एधिता रूप सिद्ध हुआ।
भवितारौ, भवितारः आदि के समान एधितारौ, एधितारः, एधितासे, एधितासाथे बनाता है। लिंक पर क्लिक करें।
सूत्रार्थ- धकारादि प्रत्यय के परे होने पर सकार
का लोप हो।
एधिताध्वे। एध् + लुट्, एध् + ध्वम्, एध् + तास् + ध्वम्, आर्धधातुकस्येड्वलादेः से तास् को इट् का आगम हुआ। एध् + इतास् +ध्वम् । एधितास् + ध्वम् में धकारादि प्रत्यय के परे होने पर धि च से सकार का लोप हुआ
एधिता + ध्वम् बना। ध्वम् में टिसंज्ञक अम् के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से
एत्व करके एधिताध्वे सिद्ध हुआ।
सूत्रार्थ- तास् और अस् धातु के सकार के स्थान
पर हकार आदेश हो, एकार परे रहने पर ।
एधिताहे। एध् धातु से अनद्यतने लुट् से लुट् लकार हुआ। लुट् में उकार तथा टकार का
अनुबन्धलोप हुआ। एध् + ल् हुआ। लकार के स्थान पर इट् आदेश,
अनुबन्धलोप होने पर एध् + इ बना। स्यतासी लृलुटोः से तासि
प्रत्यय हुआ। तासि में इकार की उपदेशेऽजनुनासिक इत् से इत्संज्ञा और तस्य लोपः से
लोप हुआ। एध् + तास् + इ बना। तास् की आर्धधातुकं शेष: से आर्धधातुकसंज्ञा और
आर्धधातुकस्येड्वलादेः से इट् का आगम हुआ। एध् + इ + तास् + इ हुआ। टिसंज्ञक इ को
टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व करके एधितास् + ए बना,
एकार के परे होने पर ह एति से सकार के स्थान पर हकार आदेश
हुआ, एधिताह् + ए बना, वर्णसम्मेलन करके एधिताहे रूप सिद्ध हुआ।
एधितास्वहे। एध् धातु से लुट् लकार, अनुबन्धलोप एध्
+ ल् हुआ। लकार के स्थान पर वहि आदेश, स्यतासी लृलुटोः से तासि प्रत्यय, अनुबन्धलोप, एध् + तास् +
वहि बना। तास् की आर्धधातुकं शेष: से आर्धधातुकसंज्ञा और आर्धधातुकस्येड्वलादेः से
इट् का आगम हुआ। एध् + इ + तास् + वहि हुआ। टिसंज्ञक इ को टित आत्मनेपदानां टेरे
से एत्व करके एधितास् + वहे, वर्णसम्मेलन एधितास्वहे रूप सिद्ध हुआ।
एधितास्महे। उत्तमपुरुष बहुवचन महिङ् में अनुबन्धलोप, तासि प्रत्यय, इट् का आगम, महि में इकार को टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व करके एधितास्महे रूप बनता है।
एध् धातु के लुट् लकार के रूप -
एधिता, एधितारौ,
एधितारः
एधितासे, एधितासाथे, एधिताध्वे
एधिताहे, एधितास्वहे, एधितास्महे
एधिष्यते । एध् धातु से सामान्य भविष्यत् अर्थ में लृट् शेषे च से लृट् लकार,
अनुबन्धलोप, त आदेश एध् + त हुआ।
स्यतासी लृलुटोः से स्य प्रत्यय, एध् + स्य + त बना। स्य की आर्धधातुकं शेषः से
आर्धधातुकसंज्ञा, आर्धधातुकस्येड्वलादेः से इट् का आगम,
इट् में टकार का अनुबन्ध लोप, टित् होने के कारण स्य के आदि में आया,
एध् + इ + स्य + त बना। वर्णसम्मेलन करने पर एधिस्यत बना। इ
से परे स्य के सकार का आदेशप्रत्यययोः से षत्व हुआ, एधिष्यत रूप बना। टित आत्मनेपदानां टेरे से लृट् के स्थान
पर आये त प्रत्यय के टिसंज्ञक अकार को एत्व करके एधिष्यते रूप सिद्ध हुआ।
एधिष्येते। एध् धातु से लृट् लकार, अनुबन्धलोप, लकार के स्थान पर आताम् आदेश एध् + आताम् हुआ। स्यतासी लृलुटोः से स्य प्रत्यय,
एध् + स्य + आताम् बना। स्य की आर्धधातुकं शेषः से
आर्धधातुकसंज्ञा, आर्धधातुकस्येड्वलादेः से इट् का आगम,
इट् में टकार का अनुबन्ध लोप, टित् होने के कारण स्य के आदि में आया,
एध् + इ + स्य + आताम् बना। आताम् की सार्वधातुकरमपित् से
ङिद्वद्भाव करके आतो ङितः से आताम् के आकार के स्थान पर इय् आदेश हुआ एध् + इ + स्य+
इय् + ताम् बना। यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप हुआ। वर्णसम्मेलन हुआ। वर्णसम्मेलन
करने पर एधिस्य + इ + ताम् बना। अ तथा इ में गुण ए हुआ, एधिस्येताम् बना। इ से परे
स्य के सकार का आदेशप्रत्यययोः से षत्व हुआ, एधिष्येताम् रूप बना। टित आत्मनेपदानां टेरे से लृट् के स्थान
पर आये आताम् प्रत्यय के टिसंज्ञक आम् को एत्व करके एधिष्येते रूप सिद्ध हुआ।
इसी प्रकार थास् में थास् को से आदेश हो कर एधिष्यसे
। आथाम् में एधिष्येथे । वहि और महिङ् में अतो दीर्घो यञि से दीर्घ होकर एधिष्यावहे, एधिष्यामहे रूप बनता है। पूर्व प्रक्रिया के अनुसार लृट् लकार के अन्य रूपों की
सिद्धि होगी।
एधिष्यते, एधिष्येते, एधिष्यन्ते,
एधिष्यसे, एथिष्येथे, एधिष्यध्वे,
एधिष्ये, एधिष्यावहे, एधिष्यामहे
सूत्रार्थ- लोट् के एकार के स्थान पर आम् आदेश हो।
एधताम्। एध् धातु से लोट् लकार की रूप सिद्धि लट् लकार के समान होती है। आमेतः जैसे
विशेष सूत्र यहाँ लगा लें। एध् + ल्, एध् + त हुआ। तिङ् शित् सार्वधातुकम् से त की
सार्वधातुक संज्ञा, कर्तरि शप् से शप्, शप् में शकार का लशक्वतद्धिते से तथा पकार का
हलन्त्यम् से इत्संज्ञा, तस्य लोपः से लोप, अ शेष रहा। एध् + अ + त हुआ । त के टि को टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व और वर्णसम्मेलन
करके एधते बना । एधते में ते के एकार के स्थान पर आमेतः से आम् आदेश होकर एधताम्
रूप सिद्ध हुआ।
एधेताम्। एध् + आताम् में सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + आताम् बना, आतो ङितः से आताम् के आकार के स्थान पर इय् आदेश, एध् + अ +
इय् + ताम् बना। यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप हुआ। एध् + अ + इ + ताम् बना। अ +
इ में आद्गुणः से गुण होकर ए बना। एध् ए ताम् में वर्णसम्मेलन होकर एधेताम् रूप बना।
एधेताम् में आम् की अचोऽन्त्यादि टि से टिसंज्ञा तथा टित आत्मनेपदानां टेरे से
एत्व होकर एधेते बना। एधेते में ते के एकार के स्थान पर आमेतः से आम् आदेश होकर
एधेताम् रूप सिद्ध हुआ।
एधन्ताम्। एध् धातु से लट् लकार के समान लोट्
लकार में झ आदेश, झ के स्थान पर झोऽन्तः से झ् के स्थान पर अन्त् आदेश,
एध् अन्त बना। सार्वधातुकसंज्ञा,
शप्, अनुबन्धलोप, एध् अ अन्त बना। अ+अन्त में अतो गुणे से पररूप करके एधन्त
हुआ। अन्त में टिसंज्ञक अकार के स्थान पर टित आत्मनेपदानां टेरे से एत्व होकर एधन्ते
बना। अब यहाँ एधन्ते के एकार के स्थान पर आमेतः से आम् आदेश होकर एधन्ताम् रूप बना ।
सूत्रार्थ- स और व से परे लोट् लकार के एकार के स्थान पर स्थान पर क्रमशः व और अम् आदेश हो।
एधस्व। एध् + लोट्, एध् + थास्, सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्ध लोप, एध् + अ + थास् बना
। अब थासः से के द्वारा थास् के स्थान पर से आदेश हुआ, एध् + अ + से हुआ । सवाभ्यां
वामौ के द्वारा से के एकार के स्थान पर व
आदेश होकर एध् + अ + स् + व हुआ। वर्णसम्मेलन होकर एधस्व रूप सिद्ध हुआ।
एधेथाम्। एध् + लोट्, एध् + आथाम्, सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्ध लोप, एध् + अ + आथाम्
बना । आतो ङितः से आथाम् के आकार के स्थान पर इय् आदेश, एध् + अ + इय् + आथाम्
बना। यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप होने पर एध् + अ + इ + थाम् बना। अ + इ में
आद्गुणः से गुण, एध् + ए + थाम् में वर्णसम्मेलन होकर एधेथाम् रूप बना। एधेथाम् के
अन्त्य अच् आम् की अचोऽन्त्यादि टि से टिसंज्ञा हुई तथा टि के स्थान पर टित
आत्मनेपदानां टेरेः से एत्व होकर एधेथे बना। आमेतः से थे के एकार के स्थान पर आम्
आदेश होकर एधेथाम् रूप सिद्ध हुआ ।
एधध्वम्। एध् + लोट्, एध् + आथाम्, सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्ध लोप, एध् + अ + ध्वम् बना। ध्वम् में अम् की टिसंज्ञा, टित आत्मनेपदानां टेरे से टिसंज्ञक अम् को एत्व करके एध् + अ + ध्वे बना। सवाभ्यां वामौ से ध्वे में वकार से परे एकार के स्थान पर अम् आदेश, वर्णसम्मेलन होकर एधध्वम् रूप सिद्ध हुआ।
सूत्रार्थ- लोट् लकार के उत्तमपुरुष के एकार को ऐकार आदेश हो।
एधै। एध् + लोट्, एध् + इट्, अनुबन्धलोप, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + इ बना। वर्णसम्मेलन होकर एध + इ बना । अब टित
आत्मनेपदानां टेरे से टिसंज्ञक इ को एत्व करके एध + ए बना। अब एध + ऐ एकार के
स्थान पर एत ऐ से ऐकार आदेश हुआ एध + ऐ बना। आडुत्तमस्य पिच्च से आट् का आगम, टकार
का अनुबन्धलोप, एध + आ + ऐ बना। आटश्च से आ + ऐ के मध्य वृद्धि होकर ऐ हुआ। अब वृद्धिरेचि से अ + ऐ के मध्य वृद्धि होकर
एधै रूप सिद्ध हुआ ।
विशेष- लोटो लङ्वत् सूत्र के अनुसार लोट् लकार में लङ् लकार के समान कार्य होते हैं। अतः यहाँ आडुत्तमस्य पिच्च आडागम तथा आटश्च से वृद्धि का कार्य होता है।
एधावहै। एधामहै। एध् + लोट्, एध् + वहि, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + वहि बना। वर्णसम्मेलन होकर एध + वहि बना । अतो
दीर्घो यञि से एध के अकार को दीर्घ और टि को एत्व करने के बाद एधा + वहे बना।
एत ऐ से एकार के स्थान ऐकारादेश करने पर एधावहै रूप सिद्ध हुआ।
एधामहै । एधावहै की तरह प्रक्रिया कर एध् +
महि , एधामहै रूप सिद्ध होता है ।
एध् धातु के लोट् लकार में रूप -
एधताम्, एधेताम्, एधन्ताम्
एधस्व, एधेथाम्, एधध्वम्
एधै,
एधावहै,
एधामहै
ऐधत। एध् + लङ्, एध् + त आदेश, अजादि धातु होने के कारण धातु के पहले लुङ्लङ्लृङ्क्ष्वडुदात्तः
को बाधकर आडजादीनाम् से आट् का आगम हुआ। आ + एध् + त बना। त को सार्वधातुकसंज्ञा,
शप्, अनुबन्धलोप करने पर आ + एध् + अ + त बना। आ + एध् में आटश्च
से वृद्धि, वर्णसम्मेलन होकर ऐधत रूप सिद्ध हुआ।
ऐधेताम् । एध् + लङ् , एध् + आताम् आदेश, आतो ङितः से आताम् के आ के स्थान पर इय् आदेश और यकार का लोपो व्योर्वलि से
लोप होने पर एध् + इताम् बना। आडजादीनाम् से आट् का आगम हुआ। आ + एध् + य + आताम्
बना। त को सार्वधातुकसंज्ञा, शप्, अनुबन्धलोप करने पर आ + एध् + अ + इताम् बना। आ + एध् में
आटश्च से वृद्धि, ऐध + इताम् बना। अ + इ में गुण होने पर ऐधेताम् रूप सिद्ध हुआ। इसी प्रकार आथाम् में एधेथाम्
रूप बनता है।
ऐधन्त । एध् + झ में झोऽन्तः से झकार को अन्त आदेश, आट् का आगम, आटश्च से वृद्धि, शप्,
अतो गुणे से पररूप होकर ऐधन्त रूप बना। इसी प्रकार अन्य रूप भी बना लें।
ऐधत,
ऐधेताम्,
ऐधन्त
ऐधथा:, ऐधेथाम्, ऐधध्वम्
ऐधे,
ऐधावहि,
ऐधामहि
सूत्रार्थ- लिङ् लकार को सीयुट् आगम हो।
एधेत। एध् + लिङ् लकार, एध् + त आदेश, शप्, अनुबन्ध लोप, एध् + अ + त बना। लिङ: सीयुट् से सीयुट् आगम, उकार का उपदेशेऽजनुनासिक इत् से तथा टकार का हलन्त्यम् से इत्संज्ञा तस्य लोपः से लोप, एध्+ अ + सीय् + त बना। सीय् में सकार का लिङ: सलोपोऽन्त्यस्य से तथा यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप होने पर एध् + अ + ई + त बना। अ+ई में आद्गुणः से गुण तथा वर्णसम्मेलन करने पर एधेत रूप सिद्ध हुआ।
एधेयाताम्। एध् + लिङ् लकार,
एध् +
आताम् आदेश, शप्, अनुबन्ध लोप, एध् + अ +आताम् बना। लिङ: सीयुट् से सीयुट् आगम, उकार का उपदेशेऽजनुनासिक इत् से
तथा टकार का हलन्त्यम् से इत्संज्ञा तस्य लोपः से लोप, एध्+ अ + सीय् + आताम् बना। लिङ: सलोपोऽन्त्यस्य से सीय् में सकार का लोप
होकर एध् + अ + ईय् + आताम् बना। अ+ई में आद्गुणः से गुण तथा वर्णसम्मेलन करने पर एधेयाताम्
रूप सिद्ध हुआ।
एधेथाः। एध् + लिङ् लकार, एध् + थास् आदेश, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + थास् बना। लिङ: सीयुट् से सीयुट् का आगम, उकार का उपदेशेऽजनुनासिक इत् से तथा टकार का हलन्त्यम् से इत्संज्ञा तस्य लोपः से लोप, सीय् में सकार का लिङ: सलोपोऽन्त्यस्य से तथा यकार का लोपो व्योर्वलि से लोप होने पर एध् + अ + ई +थास् बना। अ + इ में गुण, थास् के सकार को रुत्वविसर्ग तथा वर्णसम्मेलन करने पर एधेथाः रूप सिद्ध हुआ।
एधेयाथाम्। एध् + लिङ् लकार, एध् + आथाम् आदेश, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + आथाम् बना। लिङ: सीयुट् से सीयुट् का आगम, उकार का उपदेशेऽजनुनासिक इत् से तथा टकार का हलन्त्यम् से इत्संज्ञा तस्य लोपः से लोप, सीय् में सकार का लिङ: सलोपोऽन्त्यस्य से लोप होने पर एध् + अ +ईय् + आथाम् बना। अ + ई में गुण, एध् + एय्+ आथाम् में वर्णसम्मेलन करने पर एधेयाथाम् रूप सिद्ध हुआ।
एधेध्वम् । एध् + लिङ् लकार,
एध् +
ध्वम् आदेश, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + ध्वम् बना। लिङ: सीयुट् से सीयुट् का आगम,
उकार का उपदेशेऽजनुनासिक इत् से तथा टकार का हलन्त्यम् से
इत्संज्ञा तस्य लोपः से लोप, सीय् में सकार का लिङ: सलोपोऽन्त्यस्य से तथा यकार का लोपो
व्योर्वलि से लोप होने पर एध् + अ + ई + ध्वम् बना। अ + इ में गुण,
वर्णसम्मेलन करने पर एधेध्वम् रूप सिद्ध हुआ।
लिङ् के स्थान पर आदेश हुए इट् के स्थान पर अत् आदेश हो।
एधेय। एध् + इट् में अनुबन्धलोप, शप् अनुबन्धलोप करके एध् + अ + इ हुआ। लिङ: सीयुट् से
सीयुट् का आगम, उकार का उपदेशेऽजनुनासिक इत् से तथा टकार का हलन्त्यम् से इत्संज्ञा तस्य लोपः
से लोप,
सीय् में सकार का लिङ: सलोपोऽन्त्यस्य से लोप होने पर एध् +
अ + ईय् + इ बना । इ के स्थान पर इटोऽत् से अकार आदेश होकर
एध् + अ + ईय् + अ हुआ। अ+इय् में गुण और वर्णसम्मेलन करके
एधेय रूप सिद्ध हुआ ।
एधेवहि। एध् + लिङ् लकार, एध् + वहि, कर्तरि शप् से शप्, अनुबन्धलोप, एध् + अ + वहि बना। लिङ: सीयुट् से सीयुट् का आगम,
उकार का उपदेशेऽजनुनासिक इत् से तथा टकार का हलन्त्यम् से
इत्संज्ञा तस्य लोपः से लोप, सीय् में सकार का लिङ: सलोपोऽन्त्यस्य से लोप तथा यकार का
लोपो व्योर्वलि से लोप होने पर एध + ई + वहि बना । गुण और वर्णसम्मेलन करके एधेवहि रूप
सिद्ध हुआ ।
एधेवहि की तरह ही एधेमहि में एध् + लिङ्
लकार, एध् + महिङ् आदि प्रक्रिया करके रूप सिद्ध होता है।
एध् धातु विधिलिङ् का रूप
एधेत,
एधेयाताम्, एधेरन्
एधेथाः, एधेयाधाम्, एधेध्वम्
एधेय,
एधेवहि,
एधेमहि
सर्वप्रथम आपको मेरा सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंमुझे एध धातु के लिट् लकार की सिद्धि मे लगने वाले समस्त छोटे व बजे सूत्रों की जानकारी दे तो बडी क्रिया होगी |
यद्यपि यहाँ लिट् लकार के सूत्र लिखे हैं परन्तु मूल भाग आपको समझने में कठिनाई आ रही होगी। मैं क्रमशः व्याख्या कर रहा हूँ तथापि आपके जिज्ञासा का प्राथमिकता के आधार पर पूरा कर दे रहा हूँ। 10 दिनों तक प्रतीक्षा करें।
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