सूत्रार्थ-जुहोत्यादि गणपठित धातुओं से विहित‘शप्’का श्लु (लोप) हो।
६०८श्लौ
धातोर्द्वे स्तः । जुहोति । जुहुतः ।
सूत्रार्थ-धातु को द्वित्व हो‘श्लु’के परे (श्लु के विषय में)।
जुहोति ।'हु धातु से वर्तमान काल में लट् लकार आया। लट् के स्थान पर
प्रथम पुरुष एकवचन का तिप् प्रत्यय हुआ। तिप् की सार्वधातुक संज्ञा हुई। पकार का
अनुबन्ध लोप। 'हु + ति' इस अवस्था में 'कर्तरि शप्' से 'शप्' आया। 'हु + शप् + ति' हुआ। 'जुहोत्याऽऽदिभ्य: श्लु:' से शप् का 'श्लु' अर्थात् लोप हुआ। 'हु + ति' हुआ। श्लौ से धातु को द्वित्व हुआ। । 'हुहु + ति' हुआ। पूर्वोभ्यासः से पूर्व के हु की अभ्यास संज्ञा, कुहोश्चुः
से अभ्यास संज्ञक हु के हकार को चुत्व होकर झकार हुआ।झु + हु + ति बना। अभ्यासे चर्च से अभ्यास संज्ञक झु के
झकार को जश्त्व जकार हुआ। जु+हु +ति बना। 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' से सार्वधातुक ति परे रहने पर हु के उकार को गुण ओकार होकर जुहोति
रूप सिद्ध हुआ।
जुहुतः
। 'हु धातु से वर्तमान काल
में लट् लकार आया। लट् के स्थान पर प्रथम पुरुष द्विवचन का तस् प्रत्यय हुआ। तस्
की सार्वधातुक संज्ञा हुई। 'हु + तस्' इस अवस्था में 'कर्तरि शप्' से 'शप्' आया। 'हु + शप् + तस्' हुआ। 'जुहोत्याऽऽदिभ्य: श्लु:' से शप् का 'श्लु' अर्थात् लोप हुआ। 'हु + तस्' हुआ। श्लौ से धातु को द्वित्व हुआ। 'हुहु + तस्' हुआ। पूर्वोभ्यासः से पूर्व के हु
की अभ्यास संज्ञा, कुहोश्चुः से अभ्यास संज्ञक हु के हकार को
चुत्व होकर झकार हुआ।झु + हु + तस् बना। अभ्यासे चर्च
से अभ्यास संज्ञक झु के झकार को जश्त्व जकार हुआ। जु+हु +तस् बना। तस् अपित्
प्रत्यय है अतः 'सार्वधातुकमपित्' से ङित् होने से क्ङिति च से गुण का निषेध हो गया। 'जुहुतस् में सकार को रुत्व विसर्ग होकर जुहुतः रूप सिद्ध हुआ।
जुह्वति । हु + लट्, हु + झि, झि की सार्वधातुक संज्ञा
हुई। 'हु + झि' इस अवस्था में 'कर्तरि शप्' से 'शप्' आया। 'हु + शप् + झि' हुआ। 'जुहोत्याऽऽदिभ्य: श्लु:' से शप् का 'श्लु' अर्थात् लोप हुआ। 'हु + झि' हुआ। श्लौ से धातु को द्वित्व हुआ। 'हुहु + झि' हुआ। पूर्वोभ्यासः से पूर्व के हु
की अभ्यास संज्ञा, कुहोश्चुः से अभ्यास संज्ञक हु के हकार को
चवर्गादेश होकर झकार हुआ।झु + हु + झि बना। अभ्यासे
चर्च से अभ्यास संज्ञक झु के झकार को जश्त्व जकार हुआ। जु+हु + झि बना।झि यह सार्वधातुक प्रत्यय पित् नहीं है अतः 'सार्वधातुकमपित्' से
ङित् के समान हो गया। झि को ङित् के समान होने से क्ङिति च सूत्र 'सार्वधातुकार्धधातुकयो:' से होने वाले गुण का निषेध तक दिया। जुहु की उभे अभ्यस्तम् से अभ्यस्तसंज्ञा हुई। जुहु + झि में झि को 'झोऽन्तः' से अन्त आदेश प्राप्त हुआ। 'झोऽन्तः' को बाधकर 'अदभ्यस्तात्' सूत्र से झकार के स्थान पर 'अत्' आदेश किया। जुहु + अत् + इ हुआ । अब जुहु + अत् में इको
यणचि से यण् प्राप्त था, उसे बाधकर अचि श्नुधातुभ्रुवां य्वोरियङुवङौ से उवङ्
प्राप्त हुआ, उसे भी बाधकर हुश्नुवोः सार्वधातुके से द्वितीय हु के उकार को यण् होकर व्
आदेश हुआ,
जुह्व् अति बना, वर्णसम्मेलन होकर जुह्वति रूप सिद्ध हुआ।
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