पंचक में मृत्यु होने पर वंश के लिए अनिष्ट कारक होता है इसलिए जहाँ पर शव
जलाना हो वहां भूमि शुद्धकर कुश से मनुष्याकृति की पाँच प्रतिमा बनाकर यव के आटे
से उनका लेपन कर, अपसव्य हो पूजन संकल्प करें-
अद्योत्यादि॰ अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य धनिष्ठादि पंचकेभरण-
सूचितवंशानिष्ट विनाशार्थं पंचकशान्ति करिष्ये।
प्रतिमाओं को स्थापित कर पूजन करे -
1.
प्रेतवाहाय नमः।। 2.
प्रेतसखायै नमः।।
3.
प्रेतपाय नमः।। 4.
प्रेतभूमिपाय नमः।।
5.
प्रेत हत्र्रो नमः।।
नाम मंत्र से प्रत्येक प्रतिमा को गन्ध,
अक्षत, पुष्प, धूप,
दीपक और नैवेद्य से पूजन कर दाह से पहले शव के ऊपर रख दें-
पहली प्रतिमा-शिर पर। दूसरी दक्षिण कुक्षी पर। तीसरी बांयी कुक्षी पर। चौथी
नाभी के ऊपर। पांचवी पैरों के ऊपर रख घी को आहुति दें।
1-
प्रेतवाहाय स्वाहा।। 2-
प्रेतसखायै स्वाहा।।
3-
प्रेतपाय स्वाहा।। 4-
प्रेत भूमिपाय स्वाहा।।
5-
प्रेत हत्र्रो स्वाहा।।
उपर्युक्त आहुति देकर पूर्व प्रकार से शव का दाह कर अशौचान्तर (ग्यारहवें, बारहवे दिन पंचक शान्ति करे।।
कर्मकर्ता नदी, तालाब तीर्थ आदि के पास जाकर
श्राद्ध भूमि को साफ कर गोबर से लीप स्नान के बाद नया यज्ञोपवीत वस्त्र धारण करे।
होम के लिए वेदी बनावे। कलश स्थापन पूर्व, दक्षिण, पश्चिम उत्तर तथा चारों के मध्य में करे। गणेश नवग्रह आदि का पूजन कर
अपसव्य हो संकल्प करे-
अद्येत्यादि॰ अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य धनिष्ठादिपंचक जनित दुर्भरण
दोष-निवृत्यर्थं (सव्य हो) मम गृहे सपरिवाराणामायुरारोग्य सुख प्राप्तर्थं
विष्णुपूजनपूर्वकं पंचक शांतिकर्माहं करिष्ये।
संकल्प कर भगवान विष्णु (शालिग्राम) का पूजन षोडशोपचार से कर पुनः संकल्प
करे -
अद्येत्यादि॰ अमुकप्रेतस्य पंचकशांतिकर्मांगतया विहितं कलशपंचक देवतानां
स्थापनं प्रतिष्ठापूजनं च करिष्ये।
मुख्यतः श्राद्ध तीन प्रकार का होता है। 1. नित्य 2. नैमित्तिक तथा 3. काम्य। इस अन्त्येष्टि संस्कार में नैमित्तिक श्राद्ध की विधि वताई गयी है। यह मृत व्यक्ति के निमित्त किया जाने वाला श्राद्ध है।
नित्यं
नैमित्तिकं काम्यं वृद्धिश्राद्धं सपिंडनम्।।
पार्वणं
चेति विज्ञेयं गोष्ठशुद्ध्यर्थमुत्तमम्।।
कर्मांगं
नवमं प्रोक्तं वैदिकं दशमं स्मृतम् ।।६।। भविष्यपुराणम् / (ब्राह्मपर्व)/अध्यायः
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Sarva mahiti chhan aahe,upayogi aahe,Dhanyavad sir.
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