Learn Hieratic in Hindi Part -4 अन्त्येष्टि -2, सपिण्डन श्राद्ध

सपिण्डन श्राद्ध (द्वादशाह्न कृत्य)


द्वादशाहे त्रिपक्षे वा षण्मासे वत्सरेऽपि वा।

सपिण्डीकरणं प्रोक्तं मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः॥२८॥

मया तु प्रोच्यते तार्क्ष्य शास्त्रधर्मानुसारतः।

चतुर्णामेव वर्णानां द्वादशाहे सपिण्डनम् ॥२९॥

अनित्यत्वात्कलिधर्माणां पुंसां चैवायुषः क्षयात् ।

अस्थिरत्वाच्छरीरस्य द्वादशाहे प्रशस्यते॥३०॥

व्रतबन्धोत्सवादीनि व्रतस्योद्यापनानि च ।

विवाहादि भवेन्नैव मृते च गृहमेधिनि॥३१॥

भिक्षुर्भिक्षां न गृह्णाति हन्तकारो न गृह्यते ।

नित्यं नैमित्तिकं लुप्येद्यावत्पिण्डो न मेलितः॥३२॥

कर्मलोपात् प्रत्यवायी भवेत्तस्मात्सपिण्डनम् ।

निरग्निकः साग्निको वा द्वादशाहे समाचरेत्॥३३॥

यत्फलं सर्वतीर्थेषु सर्वयज्ञेषु यत्फलम् ।

तत्फलं समवाप्नोति द्वादशाहे सपिण्डनात्॥३४॥

अतः स्नात्वा मृतस्थाने गोमयेनोपलेपिते।

शास्त्रोक्तेन विधानेन सपिण्डी कारयेत् सुतः॥ ३५॥ अध्याय 13 गरुडपुराण।

कलियुग में धर्म की अनित्यता, पुरुष की आयु कम होने से, शरीर के स्थिर न होने से विष्णु भगवान ने धर्म शास्त्रा के अनुसार चारों वर्णों को बारहवें दिन सपिण्डन कहा है। द्वादशाह के दिन प्रातः स्नानादि नित्यक्रियाकर मध्याद्द में कर्मकर्ता श्वेतवस्त्र धारण कर श्राद्ध भूमि को गोबर से लीपकर कर्मपात्र को जल से भर उसमें गन्ध तिल पुष्प डालकर कुशा से हिला देवे-ॐअपवित्र0 मंत्र से अपने शरीर तथा श्राद्धवस्तु को छींटा देवे-ॐपुण्डरीकाक्षः पुनातु।।
श्राद्ध भूमि का पूजन कर लेवे-ॐभगवत्यैगयायै नमः।। ॐभगवत्यै गदाधराय नमः।। ॐश्राद्धस्थलभूम्यै नमः।।
तीन कुश, तिल, जल हाथ में लेकर कर्मकर्ता संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तये सद्गतिप्राप्तर्थे सपिण्डीकरणश्राद्धमहं करिष्ये।।
पितृगायत्री स्मरण तीन बार करें-
                        ॐदेवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्यएव च।
                        नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।
अपसव्य होकर दिशाओं में यव बिखेर दें-
                        ॐनमो नमस्ते गोविन्द! पुराणपुरुषोत्तम!।
                        इदं श्राद्धं हृषीकेश! रक्षतां सर्वतो दिशः।।
कर्मकर्ता बायें कमर भाग में सुपारी, कुश, पैसा अंट में दबा ले, एक कुशा आसन पर तथा एक कुशा शिखा में रख बायें हाथ में तीन कुशा तथा दांयें हाथ में दो कुशा की पवित्री पहन कर-एक दोने में जल रख कुशा से हिला लेवें-
                        ॐयेद्दवा देवहेडनं देवासश्चकृमा वयम्।
                        अग्निर्मातस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्व˜हसः।।1।।
                        ॐयदि दिवा यदि नक्ततमेना˜सिचकृमा वयम्।
                        वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चव˜हसः।।2।।
                        यदिजाग्रद्यदिस्वप्न एनासि चकृमा वयम्।
                        सूर्यो मातस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चन्त्व˜हसः।।3।।
जल के छीटे पाक सामग्री एवं पूजन सामग्री पर देवें-
            ॐउदक्यादि दुष्टदृष्टिपातात् शूद्रादि।
            संपर्कदोषाच्च पाकादीनां  पवित्रातास्तु।।
उत्तर मुंह कर कर्मकर्ता विश्वेदेवा के लिए आसन हेतु तीन कुश, जल, तिल ले संकल्प करें-
अद्यास्मत्पितामहादित्रायश्राद्धसंबधिनः कामकाल संज्ञकान् विश्वान्देवा- नावाहयिष्ये।। जल विश्वेदेवा वेदी में छोड़ यव बिखेर दें-
            ॐविश्वेदवा स ऽ आगत श्रुणुताम्ऽ इम˜हवम्।
            एदंवर्हिर्निषीदत।। ॐयवोऽसियवयास्मद्वेषोयव यारातीः।।
विश्वेदेवा आवाहान
                        आगच्छतु महाभाग विश्वेदेवा महाबलाः।
                        ये यत्र विहिताः श्राद्धे सावधाना भवन्तु तेे।।
एक पत्ते पर कुश, जल छोड़कर निम्न मंत्र पढ़े।
            ॐशन्नोदेवीरभिष्टय ऽ आपोभवन्तुपीतये। शंय्योरभिश्रवंतुनः।।
             पत्ते पर जौ डाल दें-ॐयवो ऽसि यवयास्मद्वेषो यवयारातीः।।
यव डालकर चुपचाप उसमें गन्ध पुष्प तुलसीदल भी डाल दे। कुश से अध्र्यपात्र को अभिमंत्रित करे-
ॐयादिव्याऽ आपः पयसासंबभूवुर्या ऽ आन्तरिक्षा ऽ उत पार्थिवीर्याः। हिरण्यवर्णा यज्ञियास्तानऽ आपः शिवाः श˜स्योनाः सुहवा भवंतु।। अर्घ्यपात्र अभिमंत्रित कर दाहिने हाथ में तिल, जल, कुश लेकर-
ॐअद्यास्मत्पितामहादित्रायश्राद्धसंबंधिनः कामकालसंज्ञका विश्वेदेवा एषवोहस्तार्घः स्वाहानमः।।
दाहिने हाथ से देवतीर्थ द्वारा अर्घ्य विश्वेदेवा को देवे। विश्वेदेवा को वस्त्रा,
गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य, दक्षिणा आदि चढ़ाकर तीन कुश, जल एवं यव लेकर संकल्प करें-
ॐअद्यास्मत् पितामहादि त्रायश्राद्ध संबधिनः कामकालसंज्ञकाविश्वेदेवाः एतानि गन्धपुष्प धूपदीप तांबूलयज्ञोपवीतवासांसि वो नमः।। अनेन पूजनेन विश्वेदेवा प्रीयन्ताम्।।
पित्रोश्वरों का आवाहन तिल बिखेर कर करें। पित्रों के लिए आसन दक्षिण में, प्रेत के लिए पश्चिम में वेदी के ऊपर आसन रखे। दक्षिण मुंह कर बायां घुटना मोड़ अपसव्य हो पत्ते पर दो कुश रख संकल्प बोले-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरण श्राद्धे इदमासनमुपतिष्ठताम्।।
प्रेत के लिए आसन रख पितरों के लिए भी तीन आसन पत्ते पर तीन कुशा जल तिल हाथ में रख कहें-
1.         अमुकगोत्रस्य पितामहस्य अमुकशर्मणः वसुरूपस्य इदमासनं
स्वधानमः।।
2.         अमुकगोत्रस्य प्रपितामहस्य अमुकशर्मणो रुद्ररूपस्य इदमासनं
स्वधा नमः।।
3.         अमुकगोत्रस्य वृद्धप्रपितामहस्य अमुकशर्मण आदित्यस्वरूपस्य इदमासनं स्वधा नमः।।
आसनों को दक्षिण की वेदी के ऊपर रख-पितरों का आवाहन करें-
                        ॐउशन्तस्त्वानिधी मह्य सन्तः समिधीमहि।
                        अशन्नुशत  आवह  पितृन हविष  अत्तवे।।
पितरों की वेदी के ऊपर तिल बिखेर दे-
            ॐआयन्तु नः पितरः सोम्यासो अग्निष्वाता पथिभिर्देवयानैः।
            अस्मिन्     यज्ञे    स्वधया    मदन्तौधिबु्रवन्तुतेऽवन्त्वस्मान्।।
अब प्रेत के लिए अर्घ्य बनावे-दोने पर-शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंयोरभिश्रवन्तु नः।। मंत्र से जल डालकर उसमें तिल, पुष्प, गन्ध भी छोड़े। अर्घ्य उठाकर तिल, जल, कुश हाथ में ले अपसव्य हो संकल्प करें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्व विमुक्तये सपिण्डीकरण श्राद्ध एषते हस्ताघ्र्यो मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
अर्घ्य पात्र से थोड़ा जल प्रेत कुश के ऊपर रख पितरों के लिए तीन अर्घ्य बनावे। ॐशन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तुपीतये। शंयोरभिःश्रवन्तु नः।। जल डालकर उसमें तिल, पुष्प, गन्ध, भी डालकर संकल्प करे-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकपितृत्वप्राप्तये पितामह- प्रपितामह-बृद्धप्रपितामह-अमुक शर्मन् सपिण्डिकरणश्राद्धे एष हस्ताघ्र्यस्ते स्वधा।
ऐसा कहकर अंगूठे की तरफ से पितामह प्रपितामह बृद्धप्रपितामह को थोड़ा-थोड़ा जल दें। अब प्रेत पितरों के अर्घ्य मिलाने के लिए संकल्प कहें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्यर्थं सद्गति प्राप्त्यर्थं तत्पितृपितामह प्रपिताहानामध्र्यैः सह अर्घ्यसंयोजनं करिष्ये।।
प्रेत और पितरों के अर्घ्य को मिलाते हुए ये मंत्र बोले-
                        ये  समानाः  समनसो जीवा  जीवेषु  मामकाः।

                        तेषां श्रीर्मयी कल्पतामस्मिन् लोके शतं समाः।।

प्रेत के अर्घ्यपात्र को उठाकर कुश से पितामह प्रपितामह, बृद्धप्रपिताह के अर्घ्यपात्र में जल छोड़ दें। प्रेत के अध्र्य पात्र को प्रेत वेदी के पास उल्टा रख पितर वेदी के पास तीनों अर्घ्य पात्र को भी उल्टा कर रख दें। एक आचमन जल छोड़ दें।
अनेन अर्घसंयोजनेनप्रेतस्य सद्गत्युत्तम लोक प्राप्तिः।।
पिण्ड निर्माण
पकाये हुए चावलों में घी, तिल, शहद, गंगाजल मिलाकर, पुरुष सूक्त का स्मरण करते हुए पिण्ड बनावें-एक प्रेतपिण्ड लम्बा, पितरों के लिए तीन पिण्ड गोल, एक पिण्ड (विकर पिण्ड) छोटा। प्रेत वेदी पर एक कुशा गाँठ लगाकर प्रेत निमित्त रख, तीन कुशा इसी प्रकार पितर वेदी पर पितरों के निमित्त रख गन्धादि से पहले प्रेत का पूजन कर संकल्प करे-अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरणश्राद्धे एतानि
गंधपुष्पधूपदीपताम्बूलयज्ञोपवीतवासांसि ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।। पितरों का पूजन भी गंधादि से कर संकल्प करें।
अमुकगोत्रस्मत् पितामहप्रपिताहमबृद्धप्रपितामह अमुकशर्मन् एतानि
गंधपुष्पधूपदीपताम्बूलयज्ञोपवीतवासांसितुभ्यं स्वधा।।
कर्म कर्ता कहे पितृणामर्चनं सम्पूर्णमस्तु।
अब कर्मकर्ता प्रेत आसन के दक्षिण की तरफ एक पत्ता रख विकिर पिण्ड को हाथ में रख वंश में जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो उनकी तृप्ति के लिए पिण्ड देते हुए कहे-
                        अग्नि दग्धाý ये जीवा येऽपयदग्धा कुले मम।।
                        भूमौ दत्तेन तृप्यन्तु तृप्ता यांतु परां गतिम्।।
अब चार पत्तों पर अर्घ्य बनावे उसमें कुशा के एक-एक टुकड़े डालकर जल भरें-
ॐशन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तुपीतये। शंय्योरभिश्रवन्तु नः।। अर्घ्य पात्रों में पुष्प, गन्ध, तिल डालकर अर्धपात्रसंपत्तिरस्तुऐसा कहे। एक अध्र्यपात्र उठाकर अपसव्य होकर प्रेत के लिए संकल्प करे-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य अघ्र्येऽवनेजनं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
ऐसा कहकर अर्घ्य को प्रेत के आसन के ऊपर रख अर्घ्य के जल को प्रेत के आसन के पास रख दे। दूसरा अर्घ्य उठाकर संकल्प बोले-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरण श्राद्ध निमित्तक अमुकगोत्र पितामह-अमुकशर्माणं पिण्डस्थाने कुशोपरिअर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा।
ऐसा कहकर अर्घ्य का थोड़ा जल पितामह के आसन वाले पत्ते पर छोड़ अर्घ्य को आसन के पास रख तीसरे अर्घ्य को हाथ में उठाकर संकल्प करे-
अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरणश्राद्धे अमुकगोत्रप्रपितामह अमुकशर्मन् पिण्डस्थाने कुशोपरि अर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा।
ऐसा कह थोड़ा अर्घ्य का जल प्रपितामह के आसन के पत्ते पर छोड़ अर्घ्य पात्र को प्रपितामह के आसन के पास रख चैथा अर्घ्य हाथ में ले संकल्प करे-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरण श्राद्धे अमुकगोत्र वृद्धप्रपितामह अमुकशर्मन् पिण्डस्थाने कुशोपरि अर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा।।
ऐसा कह थोड़ा जल वृद्ध प्रपितामह के आसन पर छोड़ अघ्यपात्र को वृद्ध प्रपितामह के आसन के पास रख दें।
पिण्डदान
पहले प्रेत पिण्ड जो लम्बे आकार में बनाया था अपसव्य होकर कर्मकर्ता उसे उठाकर तिल, कुश, जल हाथ में ले संकल्प करें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतसपिंडीकरणश्राद्धे एष ते पिण्डो मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
ऐसा कह पिण्ड को प्रेत के पास आसन के ऊपर अंगूठे की ओर रख पितामह के लिए दूसरे पिण्ड का संकल्प करे।
अमुकगोत्राः पितामहः अमुकशर्मन् वसुरूप एष ते पिण्डः स्वधा नमः।। पिण्ड को पितामह के पास आसन के ऊपर रख तीसरा पिण्ड लेकर संकल्प करे-
अमुकगोत्राः प्रपितामहः अमुकर्शन् आदित्यरूप एष ते पिण्डः स्वधा नमः।। पिण्ड को वृद्ध प्रपितामह के पास आसन पर रख प्रेत के अर्घ्य से थोड़ा जल प्रेत के पिण्ड पर छोड़े-
अमुकगोत्रअमुकप्रेतसपिंडीकरणश्राद्धे प्रत्यवने अवनेजनं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। अब पितामह, प्रपितामह, वृद्धप्रपितामह के अर्घ्यों  से भी पिण्ड पर जल छोड़े-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरणश्राद्धनिमित्तं अमुकगोत्रणां पितामह-प्रपितामह वृद्धप्रपितामहानां पिण्डोपरि अवनेजनं तेभ्यः स्वधा नमः।।
पिण्ड देने के बाद पके हुए चावलों का शेष जो हाथ पर रहे बांये हाथ में कुश लेकर दाहिने हाथ को साफ करे और कहे-
ॐनमो वः पितरो रसायनमो वः पितर शोषाय नमो वः पितरः
जीवाय नमो वः पितरो स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः नमो वः पितरो नमो वः गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो द्वैष्मै तद्वः पितरो वास आधत।।
अपसव्य हो कर्मकर्ता प्रेतपिण्ड का पूजन करे-पिण्ड का पूजन गन्ध, यव अक्षत, पुष्प, तुलसीपत्रा, धूप, दीपक, नैवेद्य, ताम्बूल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर पितामह, प्रपिताह और वृद्धपितामह के पिण्डों का पूर्ववत् पूजन कर कर्मकर्ता उत्तर मुँह कर प्राणायाम रीति से बाँये नांक से श्वास ले दक्षिण की दिशा की तरफ श्वास छोड़ते हुए पितरों व सूर्य का ध्यान करे।
पिण्ड संयोजन
अपसव्य हो कर्मकर्ता सुवर्ण या रजत शलाका (अभाव में कुश) से प्रेत पिण्ड के तीन समान भाग करे तथा तिल, जल, कुश हाथ में लेकर संकल्प करे-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकपितृसमप्राप्त्यर्थं वस्वादिलोक प्राप्त्यर्थं च अमुकगोत्रणां तत्पितृपितामहप्रपितामहानां पिण्डैः सहप्रेतस्य पिण्ड संयोजनं करिष्ये।।
प्रेतपिण्ड का पहला भाग बाँये हाथ में लेकर संकल्प-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रथमं पिण्डशकलं अमुकपितामहस्यामुकशर्मणो वसुरूपस्य पिण्डेन सह संयोजयिष्ये।। प्रेतपिण्ड के पहले भाग के साथ पितामह के पिण्ड के साथ मिला दे-
                        ॐये समानाः समनसः पितरोयमराज्ये।
                        तेषां लोकः स्वधा नमो यज्ञो देवेषु कल्पताम्।।1।।
                        ये समानाः समनसो जीवाजीवेषु मामकाः।
                        तेषां श्रीर्मयि कल्पतामस्मिन् लोके शतं समाः।।2।।
पिण्ड गोलकर पितामह के आसन पर रख पुनः प्रेत पिण्ड का दूसरा भाग उठाकर संकल्प बोले-
अमुक  गोत्रस्य  अमुकप्रेतस्य  द्वितीयपिण्डशकलं   अमुक प्रपितामहस्यामुकशर्मणः रुद्ररूपस्य पिण्डेन सह संयोजयिष्ये। ऐसा कह ये समानाः॰के दोनों मंत्र कहते हुये प्रेत पिण्ड के दूसरे भाग के साथ प्रपितामह के पिण्ड को गोलाकार बनाकर प्रपिताह के आसन के ऊपर रख दे। प्रेत पिण्ड के तीसरे भाग को उठाकर संकल्प बोले-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य तृतीयं पिण्डशकलं अमुक वृद्धपितामहस्यामुक शर्मणः आदित्यरूपस्य पिण्डेनसह संयोजयिष्ये।।
ऐसा कह ये समानाः॰ के दोनों मंत्र कहते हुए प्रेतपिण्ड के तीसरे भाग के साथ वृद्ध पितामह का पिण्ड मिला के आसन के ऊपर रखे। अब शेष अर्घ्य के जल को हाथ में लेकर संकल्प-
अमुकगोत्रणां पितामह-प्रपितामह-वृद्धप्रपितामहानां पिण्डोपरि अवनेजनं तेभ्यः स्वधा नमः।।
जल देकर नीवी मोचन (अंट में रखे पैसा कुशा सुपारी) पिण्डो के पास रख सव्य होकर प्रार्थना करे-ॐनमो वः पितरो रसायनमो वः पितर शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वः गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो द्वैष्मै तद्वः पितरो वास आधत।।
पिण्डों का पूजन पुनः वस्त्राः तीन सूत्रा, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि से कर कर्मकर्ता उत्तर की दिशा को मुंह कर प्राणायाम की रीति से श्वास चढ़ाकर दक्षिण की तरफ छोड़े।
भगवान् विष्णु को पकवान चढ़ावे-
                        ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
                         पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्राँत्तथा लोकाँ2 अकल्पयन्।।
विश्वेदेवा को भी पकवान का भोग लगावे-
कालकाम संज्ञक विश्वेदेवानां पक्वान्ननैवेद्यं अहमुत्सृजे।।
कर्मकर्ता हाथ जोड़कर पितरों से आशीर्वाद मांगे-
            ॐगोत्रां नो वर्द्धतां दातारो नोऽभिवर्द्धन्ताम्।
            वेदाः संततिरेव च। श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं सदास्तुनः।
            अन्नंचनो बहु भवेदतिथींश्चलभामहे।
            याचितारश्च नः सन्तु मा च याचिष्म कंचन।।
अब पिण्डों पर दूध की धारा देकर पितरों को प्रणाम कर बीच के पिण्ड को हिला देवे। अब अपसव्य हो पिण्डों को उठाकर सूघं ले और पिण्डों को विसर्जन के लिए थाली में रख सव्य हो थाली को रुपये से बजा देवे।
मंत्र
            ॐवाजे वाजेऽवत वाजिनो नो धनेषु विभा अमृता ऋतज्ञाः।
            अस्य  मध्वः  पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयान्यैः।।
ब्राह्मण को दक्षिणा संकल्प-
ॐविष्णुः 3 देशकालौ संकीर्त्य पितृअमुक गोत्रपित्रादित्रयश्राद्धसम्बन्धिनां कालसज्ञकानां विश्वेषां देवानां प्रीतये कृतस्य सपिण्डीकरण श्राद्धान्तर्गतविश्वदैविककर्मणः सांगतासिद्धयर्थं साद्गुणार्थं च इमां सुवर्णदक्षिणातन्निष्क्रयद्रव्यं वा ब्राह्मणाय दास्ये।।
कर्मकर्ता ब्राह्मण को दक्षिणा देकर अपसव्य से दीपक बुझा पितरों को उठाये-
ॐउत्तिष्ठन्तु पितरः।। देवताओं का विसर्जन अक्षत चढ़ाकर करे-देवाः स्वस्थानं यान्तु।। प्रदक्षिणा भी कर लें-
            ॐअमावाजस्य प्रसवो जगम्यादेमेद्यावा पृथिवी विश्वरूपे।
            आमा गन्तां पितरा मातरा वामा सोमो अमृतत्वेन  गम्यात्।।
            प्रार्थना-             प्रमादात् कुर्वतां कर्म  प्रत्यवेताध्वरेषु  यत्।
                                    स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णंस्यादिति श्रुति।।
कर्मकर्ता पिण्ड वेदी को साफ कर पिण्डों को जल में डाल दे या गाय को खिला देवे। गौ, श्वान, काक बजि।
तीन पत्तो पर बने हुए आहार से ग्रास निकाल कर निम्न प्रकार दे- गो ग्रास सव्य होकर-
सौरभेय सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः। 
प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावोत्रैल्यमातरः।। श्वान बलि (जनेऊ मालाकार कर)
                        द्वौ श्वानौ श्याम शवलौ वैवश्वतकुलोभ्वौ।
                        ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि स्यातामेतावहिंसकौ।।
काकबलि (अपसव्य) होकर-
                        ऐन्द्रवारुण वायव्याः सौम्या वै नैर्ऋतास्तथा।
                        वायसाः प्रतिगृहणन्तु भूमावन्नं मयार्पितम्।।
शय्यादान
पलंग पर गद्दा चद्दर तकिया आदि बिछाकर शैय्या उत्तर दक्षिण रख सुन्दर ढंग से शैय्या को सजाकर मृतक को जो वस्तुयें जीवनकाल में प्रिय लगती थी उनको भी शैय्या के पास रख, घृत कुंभ, जल कुंभ, बर्तन, वस्त्रा आदि रख, शैय्या के ऊपर सुवर्ण से बनी लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा एवं शालग्राम को दूध जल से धोकर प्रतिष्ठापित करे-
                        ॐएतन्त्ते देव सवितुर्यज्ञं प्राहुर्बृहस्पतये ब्रह्मणे।
                        तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव।।1।।
मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ˜समिमं दधातु। विश्वेदेवास ऽइह मादयन्तामो 3म्प्रतिष्ठ।।
प्रतिष्ठापन कर-
            नमोस्त्वनंतायसहश्रमूर्तये, सहश्रपादाक्षिशिरोरुवाहवे।
            सहश्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहश्रकोटी युग धारिणे नमः।।
            नमः कमलनाभाय नमस्तेजलशायिने।
            नमस्ते केशवानन्त वासुदेव नमोस्तुते।।
लक्ष्मीनारायण को पुष्प अर्पण कर पूजन पुरुष सूक्त से कर ब्राह्मण का पूजन कर दें-
                        नमो  ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मण हिताय च।
                        जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः।।
कर्मकर्ता ब्राह्मण के मौली बांध शय्या के ऊपर बिठाकर हाथ में तिल, जल, कुशा रख यह संकल्प कहे-ॐविष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्येत्यादि अमुकगोत्रस्या अमुकनामाहं मम  पितुः  विष्णुलोके  सुखशयनार्थं  इमां  शय्यां  सोपस्करां श्री लक्ष्मीनारायणकांचनप्रतिमासहितां विष्णुदैवत्यां अमुकगोत्रय अमुकशर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं संप्रददे।।
हाथ के जलतिलकुश को ब्राह्मण के हाथ में दे शय्या को हिला देवे, ब्राह्मण को प्रणाम करें-
                        यदर्चनं कृतं विप्रं तव विष्णुस्तद् रूपिणः।
                        प्रार्थना मम दीनस्य विष्णवेतु समर्पणम्।।
ब्राह्मण संकल्प हाथ में लेकर स्वस्तिकह दे। दाता शय्यादान सांगतासिद्धि के लिए स्वर्ण या रजत द्रव्य हाथ में रख यह संकल्प कहे-
अद्यकृतैतत्सोपकरणशय्यादानकर्मणः सांगता-सिद्धîर्थमिदं हिरण्यमग्निदैवतं अमुकगोत्रयामुकशर्मणे ब्राह्मणाय दक्षिणात्वेन तुभ्यमहं सम्प्रददे।।
दाता शय्या की प्रदक्षिणा करें-
                        यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
                        तानि  तानि  विनश्यन्ति  प्रदक्षिण पदे पदे।।
प्रार्थना वाक्य कहे-
                        यथा न कृष्णशयनं शून्यं सागरजातया।
                        शय्याममाप्यशून्याऽस्तु तथा जन्मनिजन्मनि।।
                        यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
                        न्यूनं सम्पूणर््तां  याति  सद्यो वन्दे  तमच्युतम्।।
इति शय्यादान

त्रयोदश पद दान
तेरह पददान में निम्न द्रव्य वस्तु यथा शक्ति रखे-1-आसन। 2-उपानह। 3- छत्र। 4- मुद्रिका। 5-जलपात्र। 6- आमान्न 7- जल। 8-पाँच बर्तन। 9-वस्त्र। 10- यज्ञोपवीत। 11- घी। 12- दण्ड। 13- ताम्बूल।
उक्त वस्तुयें रख कर्मकर्ता हाथ में जल, तिल, कुश, रख यह संकल्प कहे-
ॐविष्णुर्विष्णुः अद्यः अमुकगोत्रोत्पन्नो अमुकशर्माहं अमुकगोत्रय मम पितुः अमुकनाम्नः शुद्धश्राद्धान्तरे परलोके सुखप्राप्तर्थं असद्गतिनिवारणार्थं इमानि आसनोपानहच्छत्रामुद्रिका-कमण्डल्वन्नजलभाजन-वस्त्राज्ययज्ञो- पवीतदण्डताम्बूलानित्रायोदश-पदानि नानादैवतानि नानानामगोत्रोभ्यो ब्राह्मणेभ्यो दातुमहमुत्सृजे। कर्मकर्ता अलग-अलग ब्राह्मणों को अलग-अलग वस्तुयें देकर सन्तुष्ट करें।
गोदान
कर्मकर्ता ब्राह्मण से आचमन लेकर आसन पूजन भूशूद्धि कर गाय के ऊपर तिल छोड़े-ॐआयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः। पितरं च प्रयन्त्स्वः।।
पूजन क्रम-
आवाहन-           आवाहयाम्यहं देवीं गां त्वां त्रैलोक्यमातरम्।
                        यस्या  शरणमाविष्टः  सर्वपापैः प्रमुच्यते।।
पाद्य-                त्वं देवी त्वं जगन्माता त्वमेवासि वसुन्धरा।
                        गायत्री त्वं च सावित्री गंगा त्वं च सरस्वती।।
                        तृणानि भक्षसे नित्यं अमृतं श्रवसे प्रभो।
                        भूतप्रेतपिशाचांश्च पितृदैवतमानुषान्।
                        सर्वांस्तारयसे देवि नरकात् पापसंकटात्।।
वस्त्र-                आच्छादनं सदाशुद्धं मयादत्तं सुनिर्मलम्।
                        सुरभिर्वस्त्रदानेन प्रीता भव सदा मयि।।
आभूषण-           स्वर्णश्रृंगद्वयं रौप्यं खुराचातुष्कमुत्तमम्।
                        ताम्रपृष्टं मुक्तपुच्छं स्वर्णबिन्दु च शोभितम्।।
                        यत्तेमयार्पितं शुद्धं घण्टा चामरसंयुतम्।
                        धेनोर्गृहाण सततं मयादत्तं नमोऽस्तुते।।
चन्दन-  सर्वदेव प्रियं देवि चन्दनं चन्द्रकान्तिदम्।
                        कस्तूरीकुुंकुमाढ्यं च गोगन्धः प्रतिगृहîताम्।।
अक्षत-   अक्षतान्धवलान्देवि रक्तचनदनसंयुतान्।
                        गृहाण परयाप्रित्या यतस्त्वं त्रिदशार्चिता।।
पुष्प-                 पुष्पमाला तथाजाति पाटली चम्पकानि च।
                        सुपुष्पाणि गृहाणत्वं सर्वविघ्नं प्रणाशिनी।।
अंगपूजन-          ॐआस्यायनमः।। ॐश्रृगाभ्यांनमः।।
                        ॐपृष्ठाभ्यांनमः।। ॐपुच्छाय नमः।।
                        ॐअग्रपादाभ्यां नमः।। ॐपृष्ठपादाभ्यांनमः।।
धूप-                  वनस्पतिरसोभूतो गंधाढ्योगन्धउत्तमः।
                        आघ्रेयः सर्वतोधेनो धूपोऽयं प्रतिगृहयताम्।।
दीप-                 साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वद्दिना योजितं मया।
                        दीपं गृहाण सुरभे! मयादत्तं हि भक्तितः।।
नैवेद्य-               सुरभि वैष्णवी माता नित्य विष्णु पदे स्थिते।
                        नैवेद्यंहिमयादतं गृह्यतां पापहारिणी।।
जल-                 सर्वपापहरं दिव्यं गागेयं निर्मलं जलम्।
                        आचमनं मयादत्तं गृह्यतां परमेश्वरि।।
गोपुच्छ तर्पण
पूर्व मुख हो कर्मकर्ता हाथ में यव, कुश, जल, तिल, हाथ में रख गो की पूँछ पकड़ सव्य हो देवतीर्थ से तर्पण करे-
                        गणपतिस्तथा ब्रह्मा माधवो रुद्र देवता।
                        लक्ष्मी सरस्वती चैव कार्तिकश्च नवग्रहाः।।
                        देवाधिदेवताः सर्वास्तथा प्रत्यधि देवता।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।
                        किन्नराश्चपिशाचाश्च यक्षगंधर्वराक्षसाः।।
                        दैत्याश्च दानवाश्चैव ये चान्येऽप्सरसांगणाः।।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
जनेंऊ कण्ठी कर उत्तरमुख कार्यतीर्थ से तिल, यव, कुश, जल हाथ में रख तर्पण करे-
                        सनकः सनन्दनश्चैव सनातनस्तथैव च।
                        कपिलश्च सुरैश्चैव बोढुपंचशिखस्तथा।।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
अपसव्य हो दक्षिण मुँह, पितृतीर्थ से तिल, यव, कुश जल हाथ में रख तर्पण करे-
                        पिता पितामहश्चैव तथैव प्रपितामहः।
                        मातामहस्तत्पिता च वृद्धमातामहस्तथा।।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
                        माता पितामहीचैव तथैव प्रपितामही।
                        मातामह्यादयः सर्वास्तथैवान्याश्च गोत्रजाः।।
                        ता सर्वा तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
                        पितृवंशेमृतायेच मातृवंशे तथैव च।
                        गुरुश्वसुर बन्धूनां ये चान्ये बांधवाः स्मृताः।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
सव्य हो कर्मकर्ता आचमन लेकर प्रार्थना वाक्य कहे-
                        या लक्ष्मीः सर्वभूतानां या च देवेष्ववस्थिता।
                        धेनुरूपेण सादेवी मम पापं व्यपोहतु।।
गोदान संकल्प
पूर्व मुख गाय, उत्तरमुख ब्राह्मण हो, कर्मकर्ता गो की पूँछ की तरफ, गोपुच्छ, तीन कुशा, जल, तिल, हाथ में रख संकल्प कहे-
अद्येत्यादि॰ अमुकगोत्रस्य अस्मत्पितुरमुक नाम्नः स्वर्गकाम इमां गां सवत्सां सुपूजितां पयस्विनीं सुवर्णश्रृंगीरौप्यखुरां ताम्रपृष्ठां वस्श्रयुगच्छनां कांस्यपानीयपात्रां पैत्तिलदोहां रुद्रदैवताममुक-गोत्रयामुकशर्मणे ब्राह्मणायतुभ्यमहं सम्प्रददे।।
हाथ में रखे तिल, जल आदि को ब्राह्मण के हाथ में देवें पश्चात् सुवर्ण दक्षिणा हाथ में रख निम्न संकल्प कहे-
अद्यकृतैतद्गोदानप्रतिष्ठार्थं   इमां   सुवर्णदक्षिणामग्निदैवता- ममुकगोत्रयाकशर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं सम्प्रददे।।
ब्राह्मण दक्षिणा लेकर ॐस्वस्तिऐसा कहे। कर्मकर्ता चार बार गो प्रदक्षिणा करे-
                        यानिकानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
                        तानि नाशय धेनो त्वं प्रदक्षिणा पदे पदे।।
ब्राह्मण तर्पण जल से कर्मकर्ता को सपरिवार छीटे दे कर्मकर्ता प्रार्थना वाक्य कहे-
                        नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च।
                        जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः।।

।। इति गोदान ।।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. बारहवें दिन अगर ग्रहण हो तो क्या सपिण्डिकरण करना चाहिये या नहीं

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    उत्तर
    1. क्यों नहीं, हो सकता है यह नैमित्तिक कर्म है और समय पर ही होगा।वैसे भी ग्रहण पर पिंडदान का निषेध नहीं है ।

      हटाएं
  2. यदि बारहवें दिन ग्रहण हो तो सपिंडिकरण ग्रहण के पूर्व कर सकते है
    क्योंकि ग्रहण के पूर्व सभी अनुष्ठान होते है

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर । क्या इन सब की pdf उपलब्ध हो सकती है । कृपया बताइये ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर,सरल सारगर्भित लेख

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर,सरल सारगर्भित लेख

    जवाब देंहटाएं

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