अकबर का संस्कृत-प्रेम और संस्कृत-वाङ्मय को इस मुग़ल सम्राट् का विशिष्ट योगदान बहुत संदर्भों में आश्चर्यचकित कर देने वाला है। मध्यकालीन इतिहास से परिचित और प्राच्य विद्या में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को तो नहीं लेकिन इनसे अपरिचित और अल्पपरिचित व्यक्तियों को तो यकायक इस तथ्य पर यकीन ही नहीं होगा कि अकबर के आदेश, निर्देश या उसकी रुचि को महत्ता देते हुए समकालीन संस्कृत-पण्डितों, जैन आचार्यों तथा विविध दरबारी संस्कृत-सेवियों ने इतनी संख्या में संस्कृत-ग्रन्थों की भी रचना की।
अकबरी दरबार में प्रणीत इन संस्कृत ग्रन्थों
की इदमित्त्थं संख्या अभी न तो ज्ञात है और न ही बताई जा सकती है। सौभाग्य से
इनमें अधिकांश ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है लेकिन दुर्भाग्य यह भी यह है कि
प्रकाशित संस्करण अप्रकाशित के समान ही दुर्लभ एवं विरल हैं।
गुप्त-साम्राज्य, अन्तिम मौखरी-सम्राट् और इसके बाद के
ज्ञात भारतीय इतिहास में परमार भोज के बाद लगभग छः सौ वर्षों बाद संस्कृत-साहित्य
का स्वर्ण-युग पुनः एक बार मुग़ल-साम्राज्य और मुग़ल-सम्राट् अकबर के राजत्व में ही
परिलक्षित होता है। इसे भी संयोग ही कहा जा सकता है कि गुप्त-सम्राटों, हर्षर्द्धन शीलादित्य और स्वयं भोजराज के विपरीत अकबर निरक्षर था लेकिन
साहित्य, संगीत और कला को उपर्युक्त हिन्दू सम्राटों के किसी
भी प्रकार के दाय से अकबर का योगदान कम नहीं आँका जा सकता। यूं विदेशी और
अन्यद्धर्मी होने के बावजूद संस्कृत भाषा, वाङ्मय, साहित्य और इसके सेवियों को जो उदार संरक्षण और समृद्धि के प्रभूत साधन इस
सम्राट् ने उपलब्ध कराए; इसके सापेक्ष इन हिन्दू साम्राज्यों
और सम्राटों के समानान्तर होते हुए भी अकबर अपने आप में विशिष्ट हो जाता है।
भारतीय संगीत और
कला (चित्र एवं वास्तु) के संदर्भों में अकबर और उसके प्रदेय रूपायित भी हो चुके
हैं और व्याख्यायित भी। संस्कृत वाङ्मय के इतिहास ने आज तक अपने संरक्षण या
संवर्धन में इस सम्राट् के योगदान को व्यवस्थित रूप से रेखांकित नहीं किया है।
अकबरी दरबार द्वारा संरक्षित संस्कृत-पण्डितों पर समकालीन साक्ष्यों में बहुत ही
बारीक सूचनाएं उपलब्ध हैं जिनके समानान्तर अन्य समकालीन किन्तु बिखरी हुई सूचनाओं
तथा परवर्ती उद्धरणों के सापेक्ष उनकी कृतियों के गंभीर विश्लेषण से मुग़ल-सम्राट्
एवं साम्राज्य के द्वारा संस्कृत वाङ्मय के संरक्षण, संवर्धन
एवं योगदान का व्यवस्थित आकलन प्रस्तुत किया जा सकता है।
मूल स्रोत-
मुगल सम्राट् अकबर और संस्कृत