नाटकों का उद्गम स्थल वेद है।
ऋग्वेद के सूक्तों में अथवा एक से अधिक पात्रों द्वारा संवादात्मक योजना देखी जा
सकती है। इन्द्र द्वारा सोमपान का अभिनय, पुरुरवा उर्वशी संवाद, यम यमी संवाद आदि
ऐसे अनेक ऐसे उद्धरण हैं, जो अपनी कथोपकथन शैली से नाटकों के मूल को पुष्ट करता है।
यहाँ उषा को एक सुंदर नर्तकी के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। इस प्रकार वैदिक
वाङ्मय...