गीता में वर्णित मानसिक पर्यावरणः आधुनिक परिप्रेक्ष्य में उपादेयता

 आज मानव जाति पर्यावरण असन्तुलन, आर्थिक संकट, जातिवाद, आतंकवाद, बढ़ती जनसंख्या, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद आदि समस्याओं का सामना कर रही है; यदि ये समस्याएँ हल न हुयीं तो मनुष्यता को सामूहिक विनाश की ओर बढ़ने से नहीं रोका जा सकता। ये सारी स्थितियाँ मानसिक रोगों को जन्म दे रही है। आधुनिक काल में नैतिकता का अत्यधिक पतन हो रहा है, मनुष्य के नैतिक मूल्यों की गिरावट चरम सीमा तक आ पहुँची है और जैसा कि हम जानते हैं कि हमारी मानसिक प्रवृत्तियाँ जड़ चेतन सभी को प्रभावित करती हैं इस प्रकार पर्यावरण के प्रदूषित होने की प्रक्रिया हमारे कलुषित मन से ही प्रसूत हो रही है।
      भगवद्‌गीता हमें यह शिक्षा देती है कि हमें इस कलुषित चेतना को शुद्ध करना है,शुद्ध चेतना होने पर हमारे सारे कर्म ईश्वर की इच्छानुसार होंगे और इससे हम सुखी हो सकेंगे। परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि हमें अपने सारे कर्म बन्द कर देने चाहिए, अपितु हमें अपने कर्मो को शुद्ध करना चाहिए और शुद्ध कर्म भक्ति कहलाते हैं। भक्ति में कर्म सामान्य होते हुए भी कलुषित नहीं होते- इसी बात का वर्णन गीता के तृतीय अध्याय में इस प्रकार किया गया है-
         यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।
    कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते॥ 3/ 7
इस संसार में मनुष्य जानवरों के समान लड़ने के लिए नहीं है। मनुष्यों को मनुष्य जीवन की महत्ता समझकर सामान्य पशुओं की भाँति आचरण करना बन्द कर देना चाहिए। एक पशु दूसरे पशु का वध करे तो कोई पाप नहीं लगता लेकिन यदि मनुष्य अपनी अनियन्त्रित स्वादेन्द्रियों की तुष्टि के लिए पशु-वध करता है तो वह प्रकृति के नियम को तोड़ने के लिए उत्तरदायी है। जहाँ भौतिक तत्व की गतियाँ, वनस्पतियों की वृद्धि और पशुओं के कार्य कहीं अधिक पूर्णतया नियन्त्रित रहते हैं, वहीं मनुष्यों में समझ है, जो उसे संसार के कार्य में विवेकपूर्वक सहयोग करने में समर्थ बनाती है।
आज के भौतिकवादी युग में प्रत्येक व्यक्ति भाँति-भाँति की चिंताओं एवं मानसिक अशांति से ग्रस्त है। पति-पत्नी, पिता-पुत्र ही नहीं मानव जाति एवं प्रकृति के संबंधों में भी कड़वाहट और दरार पड़ती जा रही है। पूरे सामाजिक वातावरण में बिखराव आ रहा है, इन सभी के मूल कारणों एवं उनके सही समाधान को यह भगवद्‌गीता अपने अन्दर समाहित किए हुए है गीता की दृष्टि में व्यक्ति के स्वभाव में सुधार ही सामाजिक पर्यावरण के सुधार का उपाय है। भगवद्‌गीता में स्पष्ट रूप से प्रकृति के गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्मों का उल्लेख है- सात्विक, राजसिक, तामसिक इसी प्रकार आहार के भी तीन भेद किये गये है; क्योंकि शरीर खाए हुए भोजन से ही बनता है, इसीलिए भोजन के प्रकार का बहुत महत्व है, इनका विशद्‌ विवेचन 17वें अध्याय में किया गया है। और यदि हम इन उपदेशों का ठीक से पालन करें। तो हमारा सम्पूर्ण जीवन शुद्ध एवं सात्विक हो जायेगा और यह भौतिक जगत भी अत्याधिक पावन हो जायेगा।
भगवद्‌गीता के 15वें अध्याय में सम्पूर्ण भौतिक पर्यावरण के ईश्वरत्व की ओर संकेत किया गया हैं1 यथा-
         यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्‌।
          यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्‌॥15/12
    इन वाक्यों से हम ये समझ सकते हैं कि, सूर्य सम्पूर्ण और मण्डल को प्रकाशित कर रहा है,सूर्य का प्रकाश परमेश्वर के आध्यात्मिक तेज के कारण है। सूर्योदय के साथ ही मनुष्य के कार्यकलाप प्रारम्भ हो जाते हैं वे भोजन पकाने के लिए अग्नि जलाते हैं और फैक्ट्रियाँ चलाने के लिए भी अग्नि जलाते हैं, अग्नि की सहायता से अनेक कार्य किये जाते है अतएव सूर्य,चन्द्रमा और अग्नि की सहायता के बिना कोई जीव नहीं रह सकता। चन्द्रमा समस्त वनस्पतियों का पोषण करता है, चन्द्रमा के प्रभाव से फल एवं सब्जियाँ सुस्वादु बनती हैं। चन्द्रमा के प्रकाश के बिना फल एवं सब्जियाँ न तो बढ़ सकती हैं और न स्वादिष्ट हो सकती हैं। वास्तव में मानव-समाज भगवत्‌ कृपा से काम करता है,सुख से रहता है और भोजन का आनन्द लेता है अन्यथा मनुष्य जीवित न रहता-
      पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः॥  15/13
अतः मनुष्यों को इस प्राकृतिक सम्पदा को उस परमसत्ता की देन समझकर इसकी सुरक्षा करनी चाहिए एवं इसके प्रति श्रद्धा भाव से युक्त होना चाहिए जिससे हमारा सम्पूर्ण पर्यावरण चक्र सुन्दरतम रूप को धारण कर सकेगा। श्रद्धा को गीता में इस प्रकार विवेचित किया गया है-
         सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
      श्रद्धामयोऽयं पुरूषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः ॥   17/3
श्रद्धा मानवता पर पड़ने वाला आत्मा का दबाव है। यह वह शक्ति है, जो मानवता को न केवल ज्ञान की दृष्टि से अपितु आध्यात्मिक जीवन की समूची व्यवस्था की दृष्टि से उत्कृष्टतर की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है।
प्रकृति समस्त भौतिक कारणों तथा कार्यों की हेतु कही जाती है और जीव इस संसार में विविध सुख-दुख के भोग का कारण कहा जाता है, इस प्रकार जीव प्रकृति के तीनों गुणों का भोग करता हुआ प्रकृति में ही जीवन बिताता है।2
यदि जीव प्रकृति की अलौकिकता से परिचित हो जाए,तो प्रकृति पर प्रभुत्व जताने की चिर-अभिलषित आकांक्षा समाप्त हो जाए। और ज्यों-ज्यों वह प्रभुत्व जताने की इच्छा को कम करता जायेगा। त्यों-त्यों उसी अनुपात में वह आनन्दमय जीवन का आस्वादन करेगा।
मानव समाज में समस्त पतनों का मुखय कारण प्राकृतिक नियमों के प्रति लापरवाही है, यह मानव जीवन का सर्वोच्च अपराध है। मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्त्तव्य है और क्या अकर्त्तव्य उसे ऐसे विधि-विधानों के अनुसार कर्म करना चाहिए।3 गीता में स्वयं भगवान्‌ कृष्ण ने भी कहा है कि- यदि मैं नियतकर्म न करू तो ये सारे लोक नष्ट हो जायेंगे।
      उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्‌। 3/24
मनुष्य ने अपने लोभ व उपभोक्तावाद की वृत्ति के वश में होकर विज्ञान द्वारा प्रस्तुत की गई शक्ति से जो प्रकृति के द्वारा उपलब्ध संसाधनों की आवश्यकता से कहीं अधिक दोहन किया है, उससे जिस प्रकार का पर्यावरण का खतरा उत्पन्न हुआ उसने भावी-पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को नरक बना दिया है। भगवद्‌ का उपदेश हमें इस पर्यावरण से उत्पन्न संकट का सामना करने में मदद करता है। पर्यावरण के संकट का सामना करने के लिए आवश्यकताओं को सीमित करना आवश्यक है। गीता का उपदेश हमें अपनी आवश्यकताएँ संतुलित करने में मदद करता है।
 चौथे अध्याय में कहा गया है कि- हे अजुर्न। यह योग न तो बहुत खाने वाले का सिद्ध होता है और न बिल्कुल न खाने वाले का तथा न अति शयन करने के स्वभाव वाले का और न अत्यन्त जागने वाले को ही सिद्ध होता है। यह दुःखों का नाश करने वाला योग तो यथा योग्य आहार और विहार करने वाले का तथा कर्मो में यथा योग्य चेष्टा करने वाले और यथा योग्य शयन करने व जागने वाले का ही सिद्ध होता है4 
इसके अतिरिक्त गीता में यज्ञ के द्वारा प्रकृति में संतुलन लाने का उपदेश किया गया है। गीता में कहा गया है कि- प्रजापति ब्रह्मा ने यज्ञ का विधान करते हुए कहा है कि यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करो और वे देवता लोग तुम लोगों की उन्नति करें। इस प्रकार आपस में कर्त्तव्य समझकर उन्नति करते हुए परम कल्याण को प्राप्त होंगे।5
इस प्रकार गीता में मानसिक प्रवृत्तियों की स्वच्छता व निर्मलता से इस भौतिक पर्यावरण को दूषित होने से बचाने की शिक्षा प्रदान की गई है। गीता में लोकसंग्रह अर्थात्‌ संसार की एकता पर जो बल दिया गया है, उसकी मांग है कि, हम अपने जीवन की सारी पद्धति को बदलें। प्रत्येक व्यक्ति को उस स्थान से ऊपर की ओर उठना होगा। जहाँ कि वह खड़ा है। जो व्यक्ति ऐसा कर लेगा वह किसी से ईर्ष्या नहीं करेगा, न किसी वस्तु की उसे लालसा रहेगी, वह प्रकृति के बन्धनों से छूट जायेगा।6
और वह उस दिव्य स्वभाव को प्राप्त कर लेगा जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है, और इसी शरीर में आध्यात्मिक सुख को प्राप्त कर सकेगा-
      जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते । 14/20
    परन्तु जो उच्चतर गुणों तक ऊपर न उठ कर निरन्तर तमोगुण में ही बने रहते हैं उनका भविष्य अत्यन्त अंधकारमय हो जाता है।
         ऊर्ध्व गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
      जघन्यगुणवृतिस्था अधो गच्छन्ति तामसा ॥ 14/18

 सन्दर्भ-
1- श्रीमद्‌भगवद्‌गीता    -    15/12, 13, 14
2- श्रीमद्‌भगवद्‌गीता    -    13/21, 22
3- श्रीमद्‌भगवद्‌गीता    -    16/24
4- श्रीमद्‌भगवद्‌गीता    -    4/16, 17
5- श्रीमद्‌भगवद्‌गीता    -    3/10, 11
6- श्रीमद्‌भगवद्‌गीता    -    14/25
श्रीमद्‌भगवद्‌गीता  -    गीता प्रेस, गोरखपुर।
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उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान पुस्तकालय :- परिचय तथा इतिहास

 
उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान पुस्तकालय :-परिचय तथा इतिहास

Jayesh

      पुस्तकालय की स्थापना 1978 में  विधिवत्‌ की गई। रायल होटल, लखनऊ के एक छोटे से कक्ष से प्रारम्भ होकर आज यह बहुत ही विशालकाय हो चुका है। न्यू हैदराबाद में यह पुस्तकालय सन्‌ 1983 से संचालित हुआ। अनेक पुस्तकदाताओं के सहयोग, क्रय, पुरस्कार द्वारा प्राप्त तथा विभिन्न संस्थाओं से निःशुल्क प्राप्त पुस्तकों से समृद्ध इस पुस्तकालय में सम्प्रति लगभग 21,000 पुस्तकें हैं। पुस्तकालय के सुलभ संचालन हेतु इसे तीन भागों में विभक्त किया गया है।

1 संस्कृत, पाली तथा प्राकृत भाषा की पुस्तकें।
2. राजा राम मोहनराय पुस्तकालय प्रतिष्ठान द्वारा पुस्तकीय सहायता प्राप्त बाल पुस्तकालय
3. शोध पत्रिका
4. पाण्डुलिपि विभाग
इस पुस्तकालय में पाण्डुलिपियों का एक अलग विभाग है, जिसमें लगभग 8000 दुर्लभ पाण्डुलिपियाँ संरक्षित है। इनमें से लगभग 5,000 पाण्डुलिपियों की विवरणिका तैयार कर 'पाण्डुलिपि विवरणिका' नाम से प्रकाशित किया गया है।
यह पुस्तकालय शोधार्थियों के लिए अद्यतन सामग्री उपलब्ध कराता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता अधुनान्त प्रकाशित मौलिक साहित्यों का संकलन तथा संस्कृत भाषा पर आधारित कम्प्यूटर द्वारा पुस्तक खोज प्रणाली का साफ्टवेयर है। इस पुस्तकालय में देश के विभिन्न भाग से शोधार्थी जन आते रहते हैं। विशेषतः लखनऊ के आस-पास स्थित विश्वविद्यालयों के शोधार्थी, प्रबुद्ध नागरिक, विशिष्ट विद्वान्‌ लाभान्वित होते हैं। इस पुस्तकालय में दो कर्मचारी कार्यरत हैं। 1. सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष -श्री जगदानन्द झा तथा 2. जेनीटर -
2. उद्‌देश्य
         उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान पुस्तकालय, न्यू हैदराबाद, राय बिहारी लाल रोड, लखनऊ.226007 में अवस्थित है। यह पुस्तकालय संस्कृत, पाली तथा प्राकृत भाषा के प्रचार-प्रसार, सरंक्षरण एवं सम्वर्द्धन हेतु निरन्तर प्रयत्नशील है।
      यह पुस्तकालय सामान्य जिज्ञासुओं से लेकर बुद्धिजीवियों तक के लिए अध्ययन सामग्री प्रचूर मात्रा में उपलब्ध करता है । संस्कृत भाषा को जन-जन तक पहॅुचाने हेतु संस्थान द्वारा पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जाता है। इन पुस्तकों के निर्माण हेतु संस्थान को एवं प्रकाशन से जुडे़ हुए विद्वानों को संदर्भ सेवा पुस्तकालय द्वारा प्राप्त कराया जाता है।
यह पुस्तकालय संस्कृत, पालि एवं प्राकृत भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। आपमें यदि 5000 वर्षों तक के चिन्तन परम्परा के समृद्ध रूप को एकत्र देखने और पढने की ललक हो, भारत के प्राचीन साहित्य, धर्म, संस्कृति, रंगकर्म, शिल्प, गणित, आयुर्विज्ञान, भाषायी तथा साहित्यिक इतिहास के प्रति जिज्ञासा हो तो ये पुस्तकालय आपके लिए उपयुक्त होगें। यहां बैठकर संस्कृत भाषा सीख सकते हैं तथा इसके द्वारा तमाम ग्रन्थों को मूल रूप में पढ भी सकते हैं
3-पुस्तकालय के नियम
सार्वजनिक अवकाश को छोड़कर प्रत्येक कार्य दिवस में पाठकों के लिए प्रातः 10.30 से सायं 4.00 तक पुस्तकालय खुला रहता है।
ग्रन्थालय में प्रवेश के पूर्व पाठक व्यक्तिगत सामान द्वारपाल के पास रखेंगें। पुस्तकालय में कापी और कलम के अतिरिक्त अन्य कोई सामग्री नहीं ले जायेंगें।
प्रत्येक आगन्तुक, आगन्तुक पंजिका पर अपना नाम व पता सहित वांछित विवरण देते हुए अपना हस्ताक्षर अवद्रय कर देंगें।
सदस्यता के नियम-
एक सप्ताह से अधिक समय तक पुस्तकालय में पढ़ने के इच्छुक व्यक्ति को पुस्तकालय की सदस्यता ग्रहण करना अनिवार्य है।
पुस्तकालय की सदस्यता हेतु संस्थान के निदेशक के नाम आवदेन पत्र तथा परिचय पत्र प्रपूरित कर प्रतिभूति स्वरूप किसी प्रतिष्ठत व्यक्ति की अनुप्रशंसा आवश्क है, जबकि  शोधार्थियों को अपने निर्देशक से अनुशंसा प्राप्त करनी होगी। सदस्यता प्राप्त करने हेतु संस्थान के निदेशक का निर्णय अंतिम और सभी को मान्य होगा।
पुस्तक निर्गमन के नियम -
पाठकों के लिये निर्गत प्रति पुस्तक की प्रतिभूति धनराशि रू0 500.00 है। 15 दिन के पश्चात्‌ विलम्ब शुल्क प्रति दिन रू0 1 देय होगा। एक पाठक को 2 से अधिक पुस्तकें निर्गत नहीं की जायेगी।
प्रतिभूति धनराशि वर्ष में एक बार ही जमा व आहरित किया जा सकेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ, पत्रिकाऍ, 30 वर्ष पूर्व प्रकाशत ग्रन्थ, अनेक भाग वाले ग्रन्थ, एक प्रति ग्रन्थ तथा अन्य निषिद्ध सामग्री निर्गत नहीं की जाएगी।
लौटाई गई पुस्तक पुनः निर्गत कराने हेतु प्रथम बार सहायक निदेशक तथा द्वितीय बार अति आवश्यक होने पर निदेशक की स्वीकृति से निर्गत की जाएगी।
पालनीय नियम -
किसी पुस्तक की चोरी करने, चित्र एवं पृष्ठ फाड़ने, मोड़ने, निशान लगाने, लिखने तथा पुस्तकालय सम्पत्ति को क्षति पहॅुचाने पर पाठक को पुस्तक की नवीन प्रति या उसका मूल्य देना होगा तथा अर्थ दण्ड आरोपित करने के अतिरिक्त ऐसे पाठक को स्थाई रूप से पुस्तकालय में आने से रोका जा सकता है।
पुस्तकालय में शोरगुल करना अवांछनीय है तथा अन्य आपत्तिजनक कार्य करना आपराधिक कृत्य माना जायेगा।
किसी भी पुस्तक का प्रतिलिपिकरण कराने या न कराने के आदेश देने का अधिकार निदेशक को होगा।
नियमों की अवज्ञा करने पर सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष बिना कारण बताये निदेशक की अनुमति से पाठकों को पुस्तकालय में आने से रोक सकाता है।
अन्य किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में निदेशक का निर्णय अन्तिम व मान्य होगा। विषम परिस्थिति में नियम 6, 7, 9 को शथिल करने का अधिकार निदेशक को होगा।
आवश्यकतावश पाठक पुस्तकालय में सन्दर्भ सेवा प्राप्त कर सकते है।          
                                                     
4. विशिष्ट वाङ्‌मय संग्रह
पुस्तकालय में संस्कृत विषय पर विभिन्न भाषाओं में अनुदित तथा हिन्दी व अंग्रजी भाषाओं में 21,0000 पुस्तकें उपलब्ध है। पाठकों की सुविधा को देखते हुए प्राचीन इतिहास, मानविकी, पुस्तकालय विज्ञान, हिन्दी साहित्य सहित अनेक विषयों की पुस्तकें भी अध्ययनार्थ रखी गई है।
0प्र0 संस्कृत संस्थान के पुस्तकालय की मुखयतः दो विशिष्टताएं हैं
(क) संस्कृत वाङ्‌मय के अद्यतन प्रकाशित ग्रन्थ
(ख) मूल साहित्य पर प्रचूर मात्रा में उपलब्ध द्वितीयक स्रोत।
राद्गट्रीय खयातिप्राप्त प्रकाशकों द्वारा प्रकशित विच्च्वकोशों एवं शब्दकोशों के संस्कृत हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषाओं में उत्कृष्ट सन्दर्भ ग्रन्थों तथा कुछ महत्वपूर्ण  कृतियों  का विशाल संग्रह है।
सूची यहाँ दी जा रही है -
शब्द कोश :-
 अभिधान राजेन्द्रकोश,  हलायुध कोष,  अमरकोश,  पालि हिन्दी कोश, आदर्श  हिन्दी संस्कृत कोश, संस्कृत हिन्दी कोश,     बृहत्‌ परिभाषिक शब्द संग्रह, मङ्‌खकोशः, मेदनीकोशः, तेलगु हिन्दी शब्द कोश, कन्नड हिन्दी शब्द कोश,  मानक हिन्दी कोश,  मानक अंग्रेजी हिन्दी कोश,  उर्दू - हिन्दी शब्द कोश, चैम्बर्स अंग्रेजी हिन्दी कोश,  अंग्रेजी हिन्दी कोश, , पंजाबी संस्कृत शब्दकोश, प्रमाणिक हिन्दी कोश, हिन्दी अंग्रेजी थेरारस समानान्तर कोश,
विश्वकोश :-
 हिन्दी विश्वकोश, इनसाइकलोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका, वाचस्पत्यम्‌, हिन्दू धर्मकोश, सामान्य विज्ञान विश्व कोश, संस्कृत वाङ्‌मय कोश, राजनीति विचारक विश्वकोश, सचित्र विश्वकोश, संस्कृत साहित्य कोश, शब्दकल्पद्रुम आदि
जीवनी कोश-
भारतीय प्राचीन चरित्र कोश, चरित्र कोश, अन्तरराष्ट्रीय व्यक्ति कोश,
विषयगत वाङ्‌मय कोश-
पुस्तकालय विज्ञान कोश, भारतीय दर्शन परिभाषा कोश, उपनिषद्‌ वाक्यकोश, सर्व धर्म कोश, शाङ्‌करवेदान्त कोश, विशिष्टाद्वैत कोश, मनोविज्ञान परिभाषा कोश,  हस्तरेखा विज्ञान विश्वकोश, वैदिक कोश, महाभारत कोशः, पौराणिक आखयान कोश, पौराणिक कोश, पुराण गाथा एवं प्रतीक कोश, , वामनपुराण विषयानुक्रमकोश, , अभिधर्म कोश,  धम्मपदं कोश, शिक्षा परिभाषा कोश, समाज कार्य परिभाषा कोश, प्राचीन भारतीय संस्कृृति कोश, मुहावरा एवं लोकोक्ति कोश, बृहत मुहावरा कोश, , भारतीय संस्कृति कथा कोश, हिन्दुस्तानी कहावत कोश, कहावत कोश, साहित्यिक मुहावरा लोकोक्ति कोश, व्‌हद विश्व सूक्ति कोश, सुभाषितरत्नभाण्डागारम्‌, अंग्रेजी हिन्दी पारिभाषिक कोश, भाषा शास्त्र का पारिभाषिक शब्द कोश, क्रिया कोश,  भौतिकी परिभाषा कोश, प्राणि विज्ञान परिभाषा कोश, रसायन परिभाषिक शब्द कोश, भूविज्ञान परिभाषा कोश, सचित्र पर्यावरण संचय कोश,, भूगोल परिभाषा कोश, आयुर्वेदीय विश्व कोश, चिकित्सा विज्ञान कोश, बेदी वनस्पति कोश, , वस्तुरत्नकोश,कलातत्व कोश, भारतीय साहित्य कोश, कालिदास कोश,कालिदास क्रियापद कोश, संस्कृत साहित्य कोश,नाटक लक्षणरत्नकोश, संस्कृत नाट्‌यकोश, भरत कोश,  अलंकार कोश,साहित्यदर्पण कोश, हिन्दी साहित्य अन्तर्कथा कोश, हिन्दी साहित्य कोश, भारतीय शिखर कथा कोश, हिन्दी उच्चारण कोश,भारतीय इतिहास कोश,  राजरंगिणी कोश ,आदि।
 विभिन्न विषयों के महत्वपूर्ण इतिहास ग्रन्थः-
लेखक
पुस्तक नाम
विषय
बलदेवउपाध्याय
भारतीय दर्शन
दर्शन
एस0एन0दासगुप्ता               
भारतीय दर्शन  का इतिहास

राधाकृष्णन्‌
भारतीय दर्शन

जदुनाथसिन्हा
भारतीय दर्शन

जयदेववेदालंकार
भारतीय दर्शन

उमेशमिश्रा
भारतीय दर्शन

नन्दकिशोरदेवराज
भारतीय दर्शन

शशिवालागौड
दर्शनशास्त्रेतिहासः            

चक्रधरबिजल्वान
भारतीय न्यायशास्त्र
न्याय
गजानन शास्त्री
मीमांसा दर्शन का विवेचनात्मक इतिहास
मीमांसा
उदयवीर शास्त्री                
वेदान्त दर्शन का इतिहास
वेदान्त
नेमिचन्द्र शास्त्री              
भारतीय ज्योतिष
ज्योतिष
शिवनाथझारखण्डी
भारतीय ज्योतिष

जयदेववेदालंकार
वैदिक साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास
वेद
जयदेववेदालंकार
वैदिकदर्शन

कुन्दनलाल शर्मा
वेदांग, वैदिक वाङ्‌मय का इतिहास

गिरिधर शर्माचतुर्वेदी
पुराण परिशीलन
पुराण
बलदेवउपाध्याय                
पुराणविमर्श

पी0 वी0 काणे
धर्मशास्त्र का इतिहास
धर्मशास्त्र
व्रजवल्लभ द्विवेदी
भारतीय तंत्र शास्त्र
तंत्र
युधिष्ठिरमीमांसक
संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास
व्याकरण
सत्यकामवर्मा
संस्कृत व्याकरण का उद्भव और विकास

रमाकान्तमिश्र
व्याकरण शास्त्र का संक्षिप्त इतिहास

रामाज्ञापाण्डेय
व्याकरण दर्शन भूमिका

ब्रह्मानन्द त्रिपाठी
व्याकरणशास्त्रेतिहासः

विद्याधर शुक्ल
आयुर्वेद का इतिहास एवं परिचय
आयुर्वेद
अत्रिदेवविद्यालंकार
आयुर्वेद का वृहत्‌ इतिहास

जोगेन्द्र सिंह वावरा
भारतीय संगीत की उत्पत्ति एवंविकास
संगीत
0 बी0 कीथ
संस्कृत साहित्य का इतिहास
संस्कृतसाहित्य
राधावल्लभ त्रिपाठी
संस्कृत साहित्य का अभिनव इतिहास

रामजीउपाध्याय                
संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास

पी0 वी0 काणे
संस्कृतकाव्यशास्त्र का इतिहास

राधावल्लभ त्रिपाठी
संस्कृतसाहित्य बीसवीं शताब्दी

दयानन्दभार्गव
आधुनिक संस्कृत साहित्य

हीरालाल शुक्ल
आधुनिक संस्कृत साहित्य

0 बी0 कीथ
संस्कृत नाटक

श्रीकिशोरमिश्र
छन्दश्शास्त्र का उद्‌भव एवं विस्तार

रमेशचन्द्र घुसींगा
अलंकार शास्त्र का बृहद्‌ इतिहास

रामजीउपाध्याय
मध्यकालीन संस्कृत नाटक

रामजीउपाध्याय
आधुनिक संस्कृत नाटक

पारसनाथ द्विवेदी
नाट्‌यशास्त्र का इतिहास

भरत सिंह उपाध्याय            
पालि साहित्य काइतिहास

जगदीशचन्द्रजैन
प्राकृत साहित्य का इतिहास


संस्कृत वाङ्‌मय का वृहद इतिहास ग्रन्थ विषयानुसार अनेक खण्डों में प्रकाशित है ।
विशिष्ट लेखकों के ग्रन्थः-(प्राचीन)
     वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, अश्वघोष, बाणभट्‌ट, भारवि, कुमारदास, भट्टि, माघ, भरत, भामह, दण्डी, रुय्यक, वामन, आनन्दवर्धन, सुश्रुत, पाणिनी, पतंजलि, मनु, याज्ञवल्क्य, पाराशर, वात्स्यायन, कौटिल्य, मय,  अमर सिंह,
विशिष्ट लेखकों के ग्रन्थः-(आधुनिक) :
गोपीनाथ कविराज, वासुदेव द्विवेदी, बलदेव उपाध्याय, अभिराज राजेन्द्र मिश्र, करपात्री, राधावल्लभ त्रिपाठी, रामकरण शर्मा, जयमन्तमिश्र, नवलता,आदि
इस पुस्तकालय में विभिन्न विषयों के विशिष्ट ग्रन्थ, ग्रन्थावली, तथा ग्रन्थों की टीकायें उपलब्ध हैं। शोध कार्य हेतु विभिन्न विषयों के सन्दर्भ तथा इतिहास ग्रन्थ,प्रकाशकों की सीरीज सम्पूर्ण पुराण तथा श्रीराम शर्मा, निराला, विवेकानन्द, हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि की ग्रन्थावली पूर्ण रूप से उपलब्ध हैं।
5. विषय
विषय एवं वर्गाक के अनुसार उपलब्ध पुस्तकों की संख्या का विवरण -     
कृत्रिम सं0 (वर्गांक)
विषयों के नाम
संस्कृत संस्थान में उपलब्ध पुस्तकों की संख्या
10
हस्तलिखित ग्रन्थसूची
28
20
पुस्तकालय विज्ञान
24
40
अभिनन्दन ग्रन्थ
29
52-55
संस्कृत पत्रिका
80
55
हिन्दी पत्रिका (कल्याण विशेषांक)
25
122
उपनिषद्‌
172
129
गीता
163
131
सांख्य
56
132
योग
92
133
न्याय
191
134
वैशेषिक
41
135
मीमांसा
121
136
वेदान्त
565
140-149
वैष्णव दर्शन
144
150-155
बौद्ध दर्शन, बौद्ध न्याय
155
158-159
जैनदर्शन, जैनन्याय
53
160-164
शैव शाक्त दर्शन
162
165
प्रत्यभिज्ञा दर्शन
165
183
ज्योतिष
516
221
वैदिक धर्म
324
221.1
ऋग्वेद
60
221.2
यजुर्वेद
50
221.3
सामवेद
71
221.4
अथर्ववेद
55
221.5
ब्राह्मण ग्रन्थ
57

221.7
कल्पसूत्र
(श्रौत, गृह्‌य, धर्म, शुल्व)
100
221.8
प्रातिशाख्य, निरुक्त, शिक्षा
183
222
रामायण
166
223
महाभारत
117
224
भक्ति साहित्य, भागवत
182
225
पुराण
630
226
तन्त्र
545
227
स्तोत्र
215
228
कर्मकाण्ड
211
229
स्मृति, धर्मशास्त्र
275
230.39
हिन्दू धर्म, मध्यकालीन
176
240-249
हि0 0 वर्तमान
172
250-259
बौद्ध धर्म, साहित्य
264
260-269
जैन धर्म, साहित्य
58
300
सामाजिक शास्त्र
500
410
भाषाविज्ञान
50
423
कोश
109
425
संस्कृत व्याकरण
675
430
पालि भाषा
32
440
प्राकृत भाषा
31
520
गणित ज्योतिष
200
600
व्यावहारिक विज्ञान (आयुर्वेद)
500
700
ललित कला
85
821
संस्कृत काव्य
1258
821.1
संस्कृत आधुनिक काव्य
1000
822
संस्कृत नाटक
635
822.01
नाट्‌यशास्त्र
232
823
संस्कृत कथा साहित्य
440
828
काव्यशास्त्र
654
829.1
सुभाषित/नीति
108
829.2
चम्पूकाव्य
60
830-49
पालि प्राकृत साहित्य
34
850
हिन्दी साहित्य
730
900
प्राचीन इतिहास भूगोल
140
अन्य
भाषा कोश आदि अन्य
3400


6. पत्रिका
पुस्तकालय में संस्कृत तथा हिन्दी भाषा के 11 पत्रिकायें क्रय के द्वारा तथा 30 पत्र-पत्रिकायें विनिमय के माध्यम से आती है।
क्रय द्वारा आने वाली पत्र-पत्रिकाओं के विवरण निम्नलिखित है-

दैनिक समाचार पत्र                         भाषा

1. दैनिक जागरण (लखनऊ संस्करण)          हिन्दी
2. हिन्दुस्तान (लखनऊ संस्करण)              हिन्दी
साप्ताहिक पत्र-पत्रिकायें               भाषा
1. रोजगार समाचार                 हिन्दी
2. इण्डिया टुडे                     हिन्दी

पाक्षिक पत्रिकायें           भाषा
1. गृहशोभा              हिन्दी
2. सरिता                हिन्दी

मासिक पत्रिकायें                 भाषा
1. प्रतियोगिता दर्पण             हिन्दी
2. आउट लुक                  हिन्दी
3. सम्भाषण सन्देश            संस्कृत
4. कादम्बिनी                 हिन्दी

विनिमय/निःशुल्क आने वाली पत्र-पत्रिकायें

साप्ताहिक पत्र-पत्रिकायें         भाषा
1. संस्कृत भवितव्यम्‌          संस्कृत

2. गाण्डीवम्‌                 संस्कृत
पाक्षिक पत्रिकायें              भाषा
2. वाक्‌                     संस्कृत

मासिक पत्रिकायें             भाषा

1. सत्यानन्दनम्‌             संस्कृत-बंगाली
2. लोकभाषा सुश्रीः           संस्कृत
3. गीर्वाण सुधा              संस्कृत
4. दिव्य ज्योति              संस्कृत
5. भारतोदय                 संस्कृत

द्वैमासिक पत्रिकायें         भाषा

1. भारत मुद्रा            संस्कृत

त्रैमासिक पत्रिकायें         भाषा

1.स्वर मड्रला             संस्कृत
2. संस्कृत मंजरी          संस्कृत
3. संगमनी                संस्कृत
4. गुज्जारवः              संस्कृत

षाण्मासिक पत्रिकायें         भाषा
1. आरण्यकम्‌                संस्कृत
2. छन्दस्वती                 संस्कृत
3. परिशीलनम्‌                संस्कृत

वार्षिक पत्रिका स्मारिका         भाषा

1. नन्दन वन कल्पतरू         संस्कृत

7- पुस्तकालय में पुस्तकों का व्यवस्थापन -
पुस्तकालय में पुस्तकों का वर्गीकरण दशमलव वर्गीकरण पद्धति (21वां संस्करण) में आंशिक संशोधन करते हुए किया गया।
8. पुस्तकालय के उपयोग की विधि             
      पुस्तकों के विशिष्ट विषय को एक कृत्रिम भाषा में अनुवाद करने से समान पुस्तकें एक स्थान पर एकत्रित हो जाती है। इसे वर्गीकरण कहते हैं। पुस्तकालयों में अनेक प्रकार की वर्गीकरण पद्धतियाँ ज्ञान जगत को विभाजित करने हेतु प्रयुक्त की जाती है । लखनऊ के अधिकांश पुस्तकालय में डी.डी.सी. पद्धति को अपनाया गया है तथा उसका विभाग बनाकर सामान्य कृति, दर्शन, धर्म, समाजशास्त्र, भाषाशास्त्र, शुद्ध विज्ञान, व्यावहारिक विज्ञान, ललित कलाएँ, साहित्य तथा इतिहास के विषयों को कृत्रिम अंक 000 से 900 तक प्रदान किये जाते हैं। इन्हीं अंकन (विषय) के आधार पर दोनों पुस्तकालय के आलमारियों में क्रमबद्ध पुस्तकें रखी गयी है।
      अक्सर यह देखा गया है कि अधिकांश पाठक शिक्षकों द्वारा बतायी गयी पुस्तकों को ही पुस्तकालय में ढूढ़ता हैं। निर्दिष्ट अध्ययन सामग्री के न मिलने पर आपका बहुमूल्य समय नष्ट  हो जाता है। अतः सलाह दी जाती है कि प्रामाणिक, सटीक एवं आवश्यक प्रलेख प्राप्त करने हेतु उन्हें पुस्तकालय के कर्मचारी से सम्पर्क करना चाहिए। पुस्तकालय के कर्मचारी उनकी आवश्यकता को समझकर अन्य लेखकों की पुस्तकें दे सकता है तथा यह भी सूचना प्राप्त की जा सकती है कि इस विषय पर अन्य कौन-कौन सी पुस्तकें प्राप्त हो सकती है। अध्येताओं की समस्या खोज की होती है अतः इन पुस्तकालयों में उपयोग में ली जाने वाली वर्गीकरण प्रणाली तथा सूचीकरण से परिचित कराया जा रहा है। इससे पुस्तकों के व्यवस्थापन की जानकारी प्राप्त हो जाएगी। सूचीपत्रक तथा कम्प्यूटर से पाठ्‌यसामग्री का खोज आसान हो जाएगा।
      संस्कृत संस्थान के सूची पत्रक (कैबिनेट कार्ड) पुस्तकों को ढूढ़ने के लिए आपको हिन्दी शब्दकोश का अभ्यास आवश्यक है जिसमें वर्णक्रम से शब्दों का संयोजन होता है। यहाँ के कैबिनेट में मुख्यतः चार प्रकार से पुस्तकों की सूचना दी हुई है -
(क) पुस्तक नाम       (वर्णानुक्रम)      (ख) लेखक के (उपाधि) नाम से (वर्णानुक्रम)
(ग) कृत्रिम संखया द्वारा (वर्गानुक्रम)      (घ) विषयानुक्रम           (वर्णानुक्रम)
   

 
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