बौद्ध तन्त्र
बुद्ध के उपदेशों को तीन
भागों में विभक्त किया जाता है।
1-पालि साहित्य
2-महायानी साहित्य
3-तन्त्र साहित्य।
परवर्ती काल में बुद्ध के उपदेशों का प्रचार दो
धाराओं में हुआ।
1.स्थविरवादी परम्परा
2-महायानी
परम्परा।
महायानी परम्परा में ही मंत्रयान सम्मिलित
है।
आरम्भ में मन्त्रनय को प्रज्ञापारमितानय के अन्तर्गत ही स्वीकार किया जाता था
।
बाद में इसके दो भाग हुए। 1-तन्त्रयान 2-वज्रयान।
राजगीर के गृहकूट पर्वत
पर महायान सिद्धान्त का प्रवर्तन किया गया तथा मंत्रयान का प्रवर्तन धान्यकटक में
किया गया।
बौद्ध तन्त्रों के आचार्य एवं उनके ग्रन्थ
1-नागार्जुन
2-आर्यदेव
3-असंग
बौद्ध तन्त्र को चार भागों में विभक्त
किया जाता है।
1-क्रियातन्त्र
2-चर्यातन्त्र
3-योगतन्त्र
4-अनुन्तर तन्त्र।
द्वितीय प्रकार का विभाजन
हैं-
1-पितृतन्त्र
2-मातृ
तन्त्र
3-अद्वयतन्त्र।
गुह्समाज पितृतन्त्र के
अन्तर्गत, हेव्रज चक्रसंवर आदि मातृतन्त्र के अन्तर्गत एवं कालचक्र अद्वयतन्त्र
के अन्तर्गत आते हैं।
गुह्यसमाज तन्त्र के ग्रन्थ एवं टीकाएँ
1-पिण्डीक्रम
2-पंचक्रम
क्रमशः-------------
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