महाकवि बिल्हण मेरे प्रिय कवि
हैं। संस्कृत अध्ययन के आरम्भिक वर्षों में मुझे इनकी एक कृति विक्रमांकदेवचरितम्
पढ़ने को मिली। इस ग्रन्थ का प्रभाव ऐसा पड़ा कि शेष कवि इतने रूचिकर नहीं लगे।
मैं बिल्हण को पढ़ने को व्यग्र हो उठा। विक्रमांकदेवचरितम् के
अतिरिक्त कर्णसुन्दरी नाटक, शिवस्तुति...
संस्कृत और समाज
संस्कृत
भाषा में निबद्ध साहित्य में एकता के सूत्र प्राप्त होते हैं- सहनाववतु सह नौ
भुनक्तु। यही सूत्र सामाजिक एकता एवं समरसता का मूलाधार है। देश में अनेक भाषाएँ
बोली जाती हैै। इन भाषाओं की जननी संस्कृत ही है। संस्कृत ही सभी भाषाओं को बांधकर
रखी है। यह समाज को जोड़ने वाली भाषा है। सूत्र ग्रन्थों और स्मृतियों ने समाजवाद
की...
संस्कृत का वैश्वीकरण एवं व्यावसायिकता
आज विश्व के समक्ष वैश्वीकरण का सूत्रपात हो चुका है। ऐसी दशा में हमें
संस्कृत को एक नये रूप में प्रस्तुत करना होगा। हमें आधुनिक दृष्टि से वैदिक विज्ञानों के अनेक पहलुओं को सर्वाधिक परिष्कृत
रूप में प्रस्तुत करना होगा। हम विभिन्न कालों में संस्कृत भाषा में निहित
ज्ञानविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान को अपने अध्ययन,...