संस्कृत शिक्षा के प्रसार में सोशल मीडिया का योगदान

वास्तविक दुनिया के इतर आभासी दुनिया का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हो चला है। वास्तविक जीवन में जहाँ हमारे मित्रों की संख्या जहाँ 100 के आसपास होती है, वही आभासी दुनियां में यह संख्या हजारों तक पहुँच जाती है। समान विचारधारा के लोग अन्तर्जाल या अन्य संसाधनों के माध्यम से आपस में जहाँ जुडते हैं, उसे सामाजिक नेटवर्किंग साइट कहा जाता है। अन्तर्जाल के माध्यम से हम यूट्यूब पर चलचित्र अपलोड करते हैं। संदेश सेवा के लिए वाट्सअप का उपयोग तथा फेसबुक, ट्विटर के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान करते हैं। साहित्यिक, सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक अभिरुचि के लोग ब्लाग लेखन करते हैं। इन्हें ब्लागर कहा जाता है। भारत में चुनाव प्रबन्धन एवं प्रचार में भी इसका उपयोग किया जाता है।  यहाँ हम बेरोकटोक अपनी बात कहते हैं। यहाँ लिखी बातें आसानी से सभी तक पहुँच जाती है। आज के युग में यह सूचना प्राप्ति और प्रसार का सशक्त माध्यम है। इसकी खामी इतनी भर है कि इसपर उपलब्ध सूचना पूर्णतः विश्वसनीय नहीं होती।  आपको जबतक सूचना निर्माता और प्रदाता के बारे सही जानकारी नहीं हो सूचना को अन्तिम सत्य मानना भूल होगी। नव प्रवेशियों एवं किशोरों को यह समय बर्वाद करने का अंतहीन अवसर देता है। फिर भी यह संसाधन उतना बुरा भी नहीं है, जितना कि कुछ लोग इसे समझते हैं। वास्तविक दुनिया की तरह ही सोशल मीडिया का उपयोगकर्ता कोई अच्छा गुरु यदि आपको मिल जाय तो इसके गुणों का आप भरपूर लाभ ले सकते हैं। हमें इस बात पर गर्व है कि संस्कृत प्रेमियों ने लोगों को संस्कृत सिखाने के लिए विना किसी प्रकार का पारिश्रमिक लिये भरपूर सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने जीवन का बडा भाग लगा दिया है, ताकि हम संस्कृत सीख सकें। कई लोग इसका उपयोग पत्रकारिता के लिए करते हैं तो कई लोग विज्ञापन के द्वारा उत्पाद बेचने के लिए। यहाँ हर आयु ,वर्ग,  लिंग आदि के लिए सामग्री उपलब्ध है। फेसबुक को भारत में  सर्वाधिक लोग पसन्द करते हैं।
         सोशल नेटवर्किंग साइट या सोशल मिडिया का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में भी किया जाता है। इस लेख में फेसबुक,ट्विटर, यूट्यूब तथा ब्लाग के माध्यम से संस्कृत शिक्षा के प्रचार प्रसार की दिशा में किये जा रहे कार्यों की एकत्र जानकारी दी जाएगी। सभी के लिंक भी दिये जा रहे हैं, ताकि उसपर चटका लगाकर सम्बन्धित सामग्री तक सीधे पहुँचा जा सके। 
   फेसबुक 
     संस्कृत से जुडा हर युवा सोशल मिडिया पर है। चाहे वह महिला हो या पुरुष। वे किसी न किसी ग्रुप से जुडे हैं। कुछ लोग यहाँ अपना स्वतंत्र पेज निर्मित किये हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय से शोध कर रही संस्कृत छात्रा  कु. पूजा जायसवाल से मैंने पूछा। क्या तुम संस्कृत शिक्षा के लिए फेसबुक का उपयोग करती हो? उसने कहा कि मैं  Sanskrit Sahitya Parishat  नामक ग्रुप से जुडी हूँ। यहाँ पर संस्कृत साहित्य से सम्बन्धित अच्छी जानकारी मिलती है।  संस्कृत शिक्षा के प्रसार, जिज्ञासा पूर्ति, शोध तथा अध्ययन  आदि अलग अलग उद्येश्यों के साथ लगभग 200 ग्रुप से अधिक ग्रुप संचालित हैं। कुछ ग्रुप बच्चों में संस्कृत के प्रसार के उद्येश्य से भी निर्मित हैं यथा-  शिशु-संस्कृतम्   प्रत्येक ग्रुप का अलग-अलग उद्येश्य हैं। इस कार्य के लिए किसी ने ग्रुप निर्माता के लिए आदेश जारी नहीं किया। यहाँ एक स्वस्थ कार्य संस्कृति दिखती है। लोग स्वेच्छा से अपना ज्ञान बांटने में लगे हैं। हिन्दी के कई मेरे फेसबुक मित्र अपनी पूरी रचनायें पाठकों के लिए उपलब्ध कराते हैं। वे नियमित अंतराल पर पाठकों के लिए अपनी कविता, कहानी या समीक्षा प्रकाशित करते हैं। ऐसे प्रिय लेखकों के पोस्ट को पढने के लिए लोग प्रतीक्षा करते हैं। संस्कृत में उस परम्परा का अभाव दिखता है। Arvind Kumar Tiwary जैसे  संस्कृत के स्थापित युवा कुछ लेखकों  को छोडकर शेष लेखक अपनी पूरी रचनायें पाठकों के लिए उपलव्ध नहीं कराते। यह आवश्यक नहीं कि संस्कृत कवि सम्मेलन सुनने के लिए आप किसी कार्यक्रम स्थल तक जायें। जागरूक मित्र फेसबुक लाइब के माध्यम से हमें घर बैठे ही वह सुविधा दे देते है।मैं कई अवसरों पर संस्कृत का श्लोक या कोई उद्धरण खोजता हूँ। कुछ सामग्री सिर्फ फेसबुक पर ही मिल पाती है। सोशल मीडिया दो तरह के लोगों से चलता है। 1- विषय सामग्री निर्माता 2- सामग्री के वाहक। निश्चित रुप से इनमें सामग्री निर्माता श्रेष्ठ है। कुछ लोग यहाँ शैक्षिक सामग्री का निर्माण करते हैं।  प्रो.मदन मोहन झा जैसे लोग  संस्कृत सिखाने के लिए अनेक प्रकार के चार्ट, व्यंग चित्र आदि का निर्माण करते हैं। मैं फेसबुक पर संस्कृत से जुडे विभिन्न मुद्दों को उठाता हूँ। अपने चिंतन को जनता के समक्ष विचार के लिए प्रस्तुत करता हूँ। कुछ मित्र संस्कृत का वाक्याभ्यास कराने में जुटे रहते हैं। आवश्यकता है, ऐसे मित्रों को पहचान कर मित्रता करने की। संस्कृत प्रेमी मित्र को पहचानने का सरल तरीका यह है कि आप उसके टाइमलाइन पर लगे चित्र को देखें, यदि वह संस्कृत से जुडा कोई चित्र लगाया है, तब उसे संस्कृत प्रेमी समझना चाहिए। मेरे अनेक मित्र संस्कृत से जुडी बौद्धिक सम्पदा को विभिन्न संचार प्रविधि के माध्यम से प्रचारित करते हैं। फेसबुक ग्रुप को निम्नलिखित 9 श्रेणी में बांटा जा सकता है। 
1- संस्कृत भाषा सिखाने के उद्येश्य से।
2- विभिन्न संस्कृत विश्वविद्यालयों / संस्थाओं /  संस्कृत विभागों का समूह।
3- प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए।
4- संस्कृत पत्र पत्रिकाओं के प्रचार के लिए।
5-  शास्त्रीय चर्चा के लिए।
6- संस्कृत द्वारा मनोरंजन पाने के लिए।
7- संस्कृत क्षेत्र से जुडी सभी प्रकार की सूचना उपलब्ध कराने के लिए।
8- संस्कृत में लिखी जा रही नयी रचनाओं के लिए।
9- संस्कृत शिक्षण के लिए।
          यहाँ पर संक्षेप में मैं कुछ ग्रुप का परिचय दूँगा ताकि आप इसका लाभ ले सकें। मैं भी फेसबुक पर कुछ ग्रुप का प्रबन्धन करता हूँ। विभाजित ग्रुप का विवरण अधोलिखित है-
           संस्कृत भाषा सिखाने के उद्येश्य से निर्मित  ग्रुप                                                           
1- संस्कृतं भारतम् SANSKRITAM BHARATAM     इसके 01 लाख सदस्य हैं। इसका  उद्येश्य  संस्कृत शिक्षा
 का प्रसार करना है। यहाँ पर उसी पोस्ट को प्रसारित किया जाता है, जो संस्कृत शिक्षा के लिए उपयोगी हो।  इस ग्रुप के प्रबन्धक -  प्रो.मदन मोहन झा एवं जगदानन्द झा   हैं।
2- || आओ संस्कृत सीखे ||  इसके 23.5 हजार सदस्य हैं। इसका  उद्येश्य  संस्कृत भाषा सिखाना है। यहाँ पर उसी पोस्ट को प्रसारित किया जाता है, जो संस्कृत शिक्षा के लिए उपयोगी हो।  इस ग्रुप के प्रबन्धक -  राजकुमार गुप्ता   हैं। इन्होंने अपने साथ 4 अन्य प्रबन्धक को  जोडा है। इसकी लोकप्रियता में गिरावट आयी है।
3- सरलसंस्कृतशिक्षणम् इसके 19.8 हजार सदस्य हैं तथा पांच प्रबन्धकों द्वारा संचालित है।
4 - LEARN SANSKRIT   इसके 05 हजार सदस्य हैं। इसके Admin Dr-Praful Purohit हैं।

संस्कृत पत्र पत्रिकाओं के प्रचार के लिए निर्मित ग्रुप का लिंक नीचे दिया गया है।

 विभिन्न संस्कृत विश्वविद्यालयों / संस्थाओं /  संस्कृत विभागों का समूह।

प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए।

शास्त्रीय चर्चा के लिए।
1-   Sanskrit Sahitya Parishat

संस्कृत द्वारा मनोरंजन पाने के लिए।

संस्कृत क्षेत्र से जुडी सभी प्रकार की सूचना उपलब्ध कराने के लिए।

संस्कृत में लिखने वाले रचनाकारों का ग्रुप  

शैक्षणिक ग्रुप
उपर्युक्त समूह में से कुछ समूह पर निरंतर पाठ्यसामग्री प्राप्त होते रहती है। सामग्री की गुणवत्ता प्रबन्धक पर निर्भर है। एक व्यक्ति एक से अधिक ग्रुप का प्रबन्धन करते हैं। ग्रुप की अच्छाई यह है कि कोई भी प्रबन्धक सीधे आपको अपने समूह में जोड सकता है। ग्रुप से जुडने के लिए आपको प्रबन्धक से अनुमति लेनी पड सकती है।  लोगों को पेज से जुडने के लिए प्रबन्धक को आमंत्रण भेजना होता है, क्योकि पेज व्यक्तिगत होता है। आप स्वयं भी किसी Page को Like कर सकते हैं। पेज को Like करने के लिए मित्रों को आमंत्रित कर सकते हैं। यहाँ Event नामक सुविधा है जिससे अपने मित्रों को  जानकारी एवं आमंत्रण भेज सकते हैं।  मैंने संस्कृतसर्जना त्रैमासिकी ई-पत्रिका के प्रचार- प्रसार के लिए sanskritsarjana नामक ग्रुप बनाया है। पत्रिका का लिंक है- http://sanskritsarjana.in/  संस्कृत के नये रचनाकारों को यह समूह समेकित मंच उपलब्ध कराता है।
         फेसबुक के अनेक पेज के माध्यम से भी संस्कृत का प्रचार एवं शिक्षण के कार्य किये जा रहे हैं। कई लोग अपने टाइमलाइन पर संस्कृत से जुडे मुद्दे की ही चर्चा करते हैं। वे संस्कृत के सामाजिक सरोकारों से जुडे होते हैं। उनसे मित्रता पाने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। वे सभी प्रकार की सूचना भी उपलब्ध कराते हैं।


 संस्कृत के लिए निर्मित फेसबुक पर महत्वपूर्ण पेज


1- प्राची प्रज्ञा अन्तर्जालपत्रिका
2- संस्कृत - बालसंवाद:
3- Jagdanand Jha                      1574 लोगों ने Like किया है तथा 1900 Follows हैं।
4- Sanskritjagat
5- Learn The Easy Way Sanskrit
6- Mukta swadhyaya Peetham (Institute of Distance Education )
7- संस्कृतशिक्षणम् लाइव - प्रसारणम्
8- Sanskrit Newspaper Sajal Sandesh - News Paper in Sanskrit Language
9- Sanskrit Wikipedia
10- Sanskrit Sarjana E-Magazine           3,018  Like तथा 3106 Follows हैं।
11-  Universal Sanskrit Shlokas & Subhashitas
12- Sanskrit Daily Newspaper
13- Samskrita Baalasahitya Parishad
14- संस्कृतं जनभाषा स्यात्
15- Computational Linguistics at Depa
16- Shodh Navneet
17- गुरुकुल प्रभात आश्रम
18- Sanskritsarjana              इसे 2,124 लोगों ने Like किया है तथा 2,109 Follows हैं।
19- Jahnavi Sanskrit E-Journal
20- करंट अफेयर्स & सामान्य ज्ञान एवम रोचक 
21- श्रीनाट्यम् The group of sanskrit drama

फेसबुक पर इस प्रकार के अनेक पेज निर्मित हैं। प्रत्येक पेज श्रेणीबद्ध होता है। आप अपनी जरुरत के अनुसार Like कर दें। इससे आपको समय -समय पर नये पोस्ट की सूचनायें मिलती रहेगी।

वाट्सअप
            भारत में संदेश सेवा तथा समूह से जुडने के लिए वाट्सअप को बहुत पसन्द किया जाता है। इसका संचालन बहुत ही आसान है। एक समूह (ग्रुप) में आप अधिकतम 250 लोगों को जोड़ सकते हैं। फेसबुक के मैसेंजर सेवा की ही तरह आप आडियो, विडियो तथा फाइल भेज सकते हैं। फेसबुक और इसमें अन्तर यही है कि यह एक संदेश सेवा है, जबकि ट्विटर, ब्लाग और फेसबुक एक साइट। ट्विटर, ब्लाग और फेसबुक पर की सामग्री को आप वर्षों बाद भी पा सकते हैं। सर्च इंजन द्वारा इस सामग्री को खोजा जा सकता है परन्तु गोपनीयता नीति के कारण वाट्सअप की सामग्री को खोजा नहीं जा सकता। संस्कृत प्रचारक सभी के लिए खुले तौर पर लिखते हैं, परन्तु जो लोग फेसबुक का प्रयोग नहीं करते, उनतक संस्कृत से जुडी सामग्री पहुँचाने के लिए वाट्सअप का भी प्रयोग करते है। यहाँ समूह का नाम दिये जाने का कोई लाभ नहीं है। जबतक आपका कोई परिचित मित्र किसी समूह का प्रबन्धक नहीं हो, तबतक आप सीधे समूह से जुड नहीं सकते। ग्रुप प्रबन्धक के पास यदि आपका फोन नं. है तब वह आपको आपसे विना पूछे भी जोड सकता है। आप अन्य सोशल मीडिया पर अपना दूरभाष संख्या देकर समूह से जोडने का अनुरोध कर सकते हैं। 

यूट्यूब चैनल

संस्कृत के उच्चारण एवं भाषा शिक्षण में यूट्यूब सशक्त माध्यम है। किसी भी बेवसाइट से इसे जोडा जा सकता है। पाठ्यक्रम शिक्षण के लिए एक अध्यापक यहाँ अपना एकाउन्ट बना सकते हैं। अपने चैनल पर पाठ्यक्रम का विडियो अपलोड कर सकते हैं। संस्कृत भाषा से सम्बन्धित यूट्यूब चैनल को 8 श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
1. शास्त्रशिक्षण परक या विशिष्ट व्याख्यान परक
2. संस्कृतभाषा शिक्षण
Spoken Sanskrit Series (कोलंबिया यूनिवर्सिटी के छात्र अभिनव सीतारमण ने एक अनोखी पहल)
Learn The Easy Way Sanskrit (सरलसंस्कृतशिक्षणम्)


3. संस्कृत कवि सम्मेलन, स्तोत्र पाठ तथा वेद पाठ,
 4. संस्कृत गीत, नाटक या मनोरंजन
5. प्रतियोगी परीक्षा तैयारी कराने वाला
6. हायर सेकेंड्री तक के पाठ्यक्रमों के लिए
SANSKRIT CLASS MADE EASY (Aradhna Srivastava, a Sanskrit  teacher, Started this channel in October 2018)
Dr. Vasudev Prasad (learn Sanskrit  K-12 education through Videos as per CBSE, ICSE and NCERT syllabi for Sanskrit)
7. पत्रकारिता से सम्बन्धित
8. आध्यात्मिक

आदि के विडियो यहाँ प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है, जिससे आप आंशिक रूप से संस्कृत सीख सकते हैं। जनसामान्य को बोलचाल का संस्कृत सिखाने से लेकर साहित्य,व्याकरण, दर्शन आदि विविध शास्त्रों की शिक्षा देने के लिए यहाँ पर विडियो उपलब्ध हो जाते हैं। यहाँ मैं कुछ शैक्षिक विडियो का लिंक दे रहा हूँ। 
 
  इस लिंक पर वर्णोच्चारण से लेकर लेखन नियम, व्याकरण, प्रहेलिका, सूक्ति आदि के लगभग 240 विडियो हैं।
इस लिंक पर संस्कृत के विविध विषयों पर विद्वानों के व्याख्यान, संस्कृत गीत आदि के लगभग 150 विडियो हैं।
संस्कृतसर्जना  पत्रिका के इस लिंक पर अनेक शैक्षिक विडियो के लिंक का संग्रह किया गया है।
3- Quick way to Learn Sanskrit Online
 यहाँ पर CBSC बोर्ड में चलने वाले संस्कृत व्याकरण का विडियो उपलब्ध हैं। Ces Ugc का कार्यक्रम learn sanskrit be modern पर संस्कृत सिखाया जाता है। यहाँ डॉ. बलदेवानन्द सागर का शिक्षणात्मक व्याख्यान सुनने को मिलता है। श्रृंखला का नाम है संस्कृतं पठ आधुनिको भव। 

ब्लॉग
        संस्कृत के कई शुभेक्षु गूगल की सेवा ब्लाग पर संस्कृत विषय पर नियमित लेखन करते हैं। यहाँ उनकी संस्कृत रचनायें,निबन्ध तथा अन्य सामग्री प्राप्त होती है।  गूगल,worldpress पर अपना ब्लाग बनाया जा सकता है। आप मेरा यह संस्कृतभाषी ब्लाग पढ ही रहे हैं। इसमें मैंने विषय विभाजन के लिए लेबल की सुविधा ही है। कई पेज अलग से निर्मित हैं। आपके लिए यह निःशुल्क सेवा है। कुछ ब्लाग का विवरण निम्नानुसार हैं- 

भाषा शिक्षण के लिए कुछ महत्वपूर्ण अन्य लिंक
1- Special Center for Sanskrit Studies 
2. संस्कृत ई बुक्स

संस्कृतविकिपीडिया ।  इसकी सह परियोजनायें हैं-

 

विकिस्रोत, विकिसूक्ति, विकिशब्दकोश, विकिमीडिया, मेटाविकि, विकिकामन्स्

  गूगल ग्रुप


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संस्कृत क्षेत्र में सूचना सम्प्रेषण प्रौद्योगिकी

ज्ञान सबके लिए उपलब्ध होना चाहिए। कंप्यूटर युग शिक्षा का नया द्‌वार लेकर आया है। एक समय था, जब ज्ञान हस्तलेख के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचता था। इसे हम पाण्डुलिपि भी कहते हैं। तब ज्ञान के हस्तान्तरण की प्रक्रिया अत्यन्त धीमी थी। पुनः प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार हुआ। इसके माध्यम से पाश्चात्य लोगों ने अपना बौद्धिक प्रभाव दुनिया में स्थापित करना आरम्भ किया। परिणाम यह हुआ कि बौद्धिक रूप से सम्पन्न तमाम संस्कृतियां इसके आगे बौनी हो गयी। हर उपलब्धियों का श्रेय इन्होंने खुद लिया। इनका तेज सूचना संचार ने लोगों की मानसिकता को प्रभावित किया। जबतक हमने प्रिंटिंग प्रेस का सहारा लेकर अपनी बात जनता के सम्मुख रखना शुरु किया, तबतक इनके पास सूचना और संचार प्रौद्योगिकी आ चुकी थी। इसके आते ही फिर से हम अपनी बात लोगों के बीच पहुँचाने में कमतर हो गये।

सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के लाभ

सूचना और संचार वह ताकत है,जिसके बलबूते प्रत्येक कार्य की गति को बढाया जा सकता है। रक्षा का क्षेत्र हो या शिक्षा का, पर्यटन हो या निर्माण सभी जगह इसकी महती भूमिका है। आज संस्कृत क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को उपयोग में लाने की आवश्यकता है। हजारों वर्षों की ज्ञान सम्पदा हमारे पुस्तकालयों, विद्वानों के निजी भण्डार कक्षों के ताले में बंद पडी है। वह ज्ञान सभी के लिए उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। विद्वानों के निजी अनुभव और अर्जित ज्ञान का लाभ वर्तमान पीढी को नहीं मिल पा रहा है। वे पुस्तकें लिखते तो हैं परन्तु लोगों तक पहुँचते-पहुँचते बहुत देर हो चुकी होती है। कभी कभी तो एक पीढी का ज्ञान उसी पीढी को लोगों को भी नहीं मिल पाता। उनके गुजर जाने के बाद उनके किसी बंशज या उत्साही विद्वान के सहयोग से दूसरी पीढी के लोगों को मिल पाता है। उनके द्वारा लिखित तथा किसी दूसरे द्वारा मुद्रित करायी गयी ज्ञान सम्पदा सभी तक उपलब्ध भी नहीं हो पाता। मैं लगभग 300 से अधिक संस्कृत क्षेत्र में कार्य कर रहे बुद्धिजीवियों को जानता हूँ, जो अपनी ज्ञान सम्पदा पुस्तकाकार में प्रकाशित करते हैं। कई लोग अर्थाभाव के कारण तो कई लोग जानकारी (सूचना) के अभाव में उसका लाभ नहीं ले पाते। मेरे जानने वाले अनेकों विद्वान् ऐसे हैं जिनका शिक्षण कौशल उत्तम है। शास्त्रों पर उनका एकाधिकार है, परन्तु सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं किये जाने के कारण सीमित छात्र ही उनसे लाभ ले पाते हैं। यदि यूट्यूब पर एक चैनल बनाकर, फेसबुक लाइव के माध्यम से उनके अध्यापन का विडियो प्रसारित कर दिया जाय तो अधिक लोगों तक लाभ पहुँचाया जा सकता है। यह एक स्थायी कार्य भी होगा।   कम्प्यूटर और संचार तकनीक के माध्यम से इस ज्ञान को सबके लिए सुलभ बनाया जा सकता है। एक छात्र सूचना के अभाव के कारण ही अच्छे विद्यालयों में प्रवेश लेने से बंचित रह जाता है। सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित लोककल्याणकारी योजनाओं यथा छात्रवृत्ति, विदेशों में अध्ययन के मौके से बंचित रह जाता है। लेखक - जगदानन्द झा।

  मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि शीर्षस्थ संस्थाओं में अध्यापन करने वाले अध्यापकों को फॉन्ट, ईमेल, कीबोर्ड तथा PDF बनाने की जानकारी नहीं है। अधिकांश अध्यापक ई-टेक्स्ट, ई-बुक्स, ई-रिसर्च जर्नल, डिजिटल लाइब्रेरी, ऑनलाइन टीचिंग लर्निंग प्लेटफॉर्म यथा- जूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम, गूगल मीट, वेबेक्स का उपयोग नहीं करते। जिसके फलस्वरूप वे छात्रों को कक्षा के इतर अध्ययन को प्रोत्साहित व शिक्षित नहीं कर पाते।

अब देश के ख्यातिलब्ध विद्वानों के सहयोग से निर्मित अनेक तरह के पाठ्यक्रम ऑनलाइन लर्निंग एवं रिसर्च प्लेटफॉर्म स्वयं, मूक, ई-पाठशाला आदि पर उपलब्ध है। डेलनेट इनफ्लाइबनेट, शोधगंगा, गूगल स्कालर आदि वेबसाइट अध्यापकों को नयी शोध सामग्री से अवगत कराते हैं और शोधार्थी को शोध विषय चयन व लेखन में मार्गदर्शन पा सकते हैं। अध्यापकों के पास उन्नत संस्कृत ज्ञान तो उपलब्ध है, परन्तु वे जूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम, गूगल मीट जैसे संचार सुविधाओं में पारंगत नहीं होने के कारण अपना ज्ञान विस्तृत जन समुदाय के पास नहीं रख पाते। सूचनाओं के आदान प्रदान में धीमी गति के कारण संस्कृत विद्या तेजी से फैल नहीं पा रही है। योग्य होते हुए भी वे  शिक्षा में इस प्रविधि का उपयोग अत्यल्प मात्रा में कर पा रहे हैं। फलतः विशाल जिज्ञासु जनसमुदाय उस ज्ञान से वंचित रह जाता है। कार्यशाला के लिए आवेदन भेजना हो या पुरस्कार पाने के लिए आज हर काम इन्टरनेट के माध्यम से होने लगा है। इसके लिए कम्प्यूटर जानना जरुरी है। शिक्षक और छात्र कई अवसरों पर परेशान होते हैं। आज वह समय आ गया है, जब हर संस्कृत पढ़े लिखे लोगों को प्रविधि की आवश्यकता पड़ती ही है।

   संचार प्रविधि की जानकारी होने पर शिक्षण कौशल का विकास, शिक्षण में बोधगम्यता, सहायता और रोचकता उत्पादित की जा सकती है। आज का हर दूसरा युवा इन्टरनेट का उपयोग करता है। हर दूसरे युवा के पास नेट युक्त स्मार्ट फोन है, जहाँ वे घंटों समय व्यतीत करते हैं। उसके फोन तक रोचक तरीके से शिक्षण सामग्री  पहुँचाने की चुनौती हमारे सामने है। इसके लिए शिक्षकों को प्रविधि में दक्षता पाने की आवश्यकता है।

मैंने संस्कृत के पुस्तक प्रेमियों तक सूचना पहुँचाने के लिए पुस्तक संदर्शिका नामक ऐप तथा हिन्दी संस्कृत शब्दकोश का निर्माण किया है। पहले जहाँ लोगों को पुस्तकालय में आने पर कैटलाग कार्ड के सहारे पुस्तकों की जानकारी मिलती थी, वहीं अब पाठक कभी भी और कहीं भी अपने मोबाइल से जानकारी ले सकते हैं। ऐप में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों की सूची दी गयी है। इच्छित पुस्तक को वे प्रकाशक से मंगा कर पढ़ सकते हैं। किसी एक विषय पर लिखित पुस्तकों की एकत्र जानकारी पा सकते हैं। वांछित पुस्तक पर किस -किस टीकाकार की पुस्तकें उपलब्ध है, इसकी जानकारी पाने के लिए अब किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है । जब भी जिज्ञासा हो समाधान के लिए पुस्तक संदर्शिका नामक ऐप आपकी मुठ्ठी में है।
प्रो. मदनमोहन झा ने अपने पुत्र सृजन झा तथा श्रुति झा के तकनीकि सहयोग से संस्कृत शिक्षण, कोश, व्याकरण, साहित्य आदि विषयों पर 40 से अधिक ऐप का निर्माण किया है। आज शायद ही कोई संस्कृत पढ़ने वाला व्यक्ति होगा, जिसके मोबाइल में इनके ऐप नहीं हों। व्याकरण द्वारा शब्द सिद्धि प्रक्रिया, कोश आदि विषयों पर अनेक टूल्स निर्मित हो चुके हैं। भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आरंभ किए गए कार्यक्रम भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास (TDIL) पर अनेक टूल एवं ई- अध्ययन सामग्री उपलब्ध है। किसी अन्य लेख में संस्कृत भाषा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे गैर सरकारी तथा सरकारी कार्यों पर विस्तार से जानकारी दी जाएगी।

  इन कुछेक उदाहरणों से आप समझ चुके होंगें कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी किस प्रकार हमारा सहयोगी बन सकता है। यह शैक्षिक प्रशासन में उपयोगी होने के साथ ही शिक्षा का प्रसार में भी उपयोगी है। हाल ही में सम्पन्न कानपुर की कार्यशाला में प्रतिभाग करने के लिए प्रतिभागियों से online आवेदन मांगे गये थे। कार्यशाला विषयक समस्त सूचनायें वाट्सअप, ईमेल तथा दूरभाष द्वारा दिये गये। कार्यशाला से जुडे लोग अपने-अपने स्थान पर रहते हुए पंजीकृत आवेदनों की संख्या से अवगत हो रहा थे। आमंत्रण पत्र, बैनर, प्रमाण पत्र का विषयवस्तु, रूप सज्जा आदि पर विचार विमर्श कर मुद्रणादेश भी इसी प्रौद्योगिकी की सहायता से दिया गया। कुल मिलाकर यह कार्यशाला पेपरलेस थी। संस्कृत में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग के लिए तीन आवश्यक अंग हैं तभी इसका लाभ प्राप्त हो सकता है।

1. हमें संस्कृत भाषा आती हो।

2. कंप्यूटर संचालन में दक्षता प्राप्त हो।

3. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों/ संचार माध्यमों के द्वारा सूचना संप्रेषण करने की विधि ज्ञात हो।

कुल मिलाकर संस्कृत भाषा का ज्ञान, कंप्यूटर में दक्षता तथा संप्रेषण तकनीक का ज्ञान होना आवश्यक है।

 संस्कृत भाषा प्रौद्योगिकी

स्मरणीय यह है कि जब भी हम संस्कृत की बात करते हैं तो इसके साथ-साथ उसकी लिपि भी जुड़ी होती है। संस्कृत में निहित ज्ञान को देवनागरी लिपि के द्वारा व्यक्त करना सहज है। इंटरनेट पर लेखन के लिए यूनिकोड टंकण का ज्ञान आवश्यक है। इसी लेख में आगे हम भाषा प्रौद्योगिकी पर विस्तार से चर्चा करेंगें।

  शिक्षा के क्षेत्र में सूचना और संचार तकनीक का उपयोग किया जाने लगा है। पहले इस तकनीक का उपयोग केबल कार्यालयीय कार्यों के लिए ही किया जाता था, परंतु इसका प्रयोग शिक्षा देने के लिए भी किया जा रहा है। इसके द्वारा छात्रों को सटीक जानकारी दी जा सकती है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी जिसे आईसीटी भी कहा जाता है। आईसीटी में प्रौद्योगिकी के साथ-साथ दूरभाष के माध्यम से संचार, प्रसारण मीडिया और सभी प्रकार के ऑडियो एवं वीडियो के द्वारा सूचनाओं का संप्रेषण शामिल होता है। संस्कृत क्षेत्र में इस पर अभी विमर्श के साथ कुछ प्रयोग चल रहा है। इस प्रौद्योगिकी का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में कैसे किया जा सकता है, इसपर भी हम आगे चर्चा करेंगें। मैंने हाल ही के कुछ वर्ष पहले संस्कृत माध्यम के विद्यालयों के लिए अनुशिक्षण टुटोरिअल निर्माण की संकल्पना की थी। जगदानन्द झा द्वारा या लेख लिखा गया है। इससे जहां हम दृश्य श्रव्य संसाधनों के माध्यम से पाठ्यपुस्तकों का अध्ययन, उच्च अध्ययन, रोजगार तथा छात्र वृति आदि की जानकारी पा सकते हैं, वही शारीरिक एवं मानसिक रुप से दिव्यांग छात्र-छात्राओं को शैक्षिक वातावरण उपलब्ध करा सकते है। इसकी खासियत यह है कि यह कक्षा केंद्रित शिक्षण के बजाए विद्यार्थी केंद्रित हो जाता है।

संस्कृत क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को लागू करने में समस्यायें

        संस्कृत क्षेत्र में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को लागू करने में अधोलिखित समस्यायें हैं-

1. 45 वर्ष से अधिक आयु के आधिकाधिक संस्कृत शिक्षक कम्प्यूटर चलाना नहीं जानते। पाठ्योपकरण निर्माण तथा इसके अनन्तर ई-शिक्षण में शिक्षकों की महती भूमिका होगी।

2. 35 से 45 वर्ष तक के अध्यापकों में ई- साक्षरता तो है परन्तु विद्यालयों में संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। संस्कृत पढने वाले छात्र गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के होते हैं। इनके पास इतना धन नहीं होता कि वे कम्प्यूटर खरीद कर उसपर इन्टरनेट डाटा के लिए प्रतिमाह खर्च कर सकें।

3. 35 से कम आयु के लोग अभी रोजगार विहीन हैं। उनमें छात्रवृत्ति पा रहे छात्रों के पास संसाधन भी है और पर्याप्त उत्साह भी। वे अपने दैनिक जीवन में इसका भरपूर उपयोग करते हैं। इन्हें अध्यापन की जिम्मेदारी मिलने तक प्रतीक्षा भी नहीं की जा सकती। इसके लिए हमलोगों ने प्राविधिक संस्कृत शैक्षिक उपकरण निर्माण कार्यशाला का पाठ्यक्रम तैयार किया तथा कानपुर के BSSD कालेज में त्रिदिवसीय प्रशिक्षण शिविर का सफल संचालन किया गया। इस कार्यशाला में अध्यापकों, संस्कृत प्रचारकों तथा भावी अध्यापकों को पाठ्योपकरण निर्माण करने के साथ शिक्षा के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर दिखाया गया। आज भी वाट्सअप पर एक ग्रुप संचालित है,जिसमें प्रशिक्षणार्थी अपनी प्रगति से हमें अवगत कराते रहते हैं।

संस्कृत शिक्षा के प्रसार में सोशलमीडिया का योगदान पर चटका लगाकर लेख पढें।

     परम्परागत संस्कृत विद्यालयों का पाठ्यक्रम 100 वर्ष से भी पुराने हैं, अतः यहाँ पर सूचना और संचार प्रविधि की सर्वाधिक आवश्यकता है। भाषा शिक्षण में यदि ध्वनि एवं चित्र का प्रयोग किया जाय तो छात्रों में अभिगम का स्तर बढेगा। संसाधनी तथा शब्दकोश की सहायता से स्वतः शिक्षण को बढावा दिया जा सकता है। छात्रों को सोशल मीडिया के द्वारा निर्देशित किया जा सकता है। आपस में शैक्षिक परिचर्चा का मंच उपलब्ध कराया जा सकता है। विविध विषयों के हल किये प्रश्न पत्र, प्रश्न पत्र के नमूने, नोट्स दिये जा सकते हैं। यह लेख जगदानंद झा द्वारा लिखा गया है। अब अन्तर्जाल पर संस्कृत की पुस्तकें एवं पत्रिकायें उपलब्ध हैं। छात्रों के ज्ञानवर्धन में ये सहयोगी हैं। छन्द सीखने के लिए कुछ विद्वानों ने सीडी उपलब्ध कराया है। इस प्रकार संस्कृत शिक्षा के प्रसार में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी अत्यधिक उपयोगी है।

सबके लिए शिक्षा अर्थात् आनलाइन शिक्षा

संस्कृत के शिक्षण केंद्र बहुत दूर दूर रहने के कारण से आज के बच्चे संस्कृत शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। आज के कंप्यूटर युग ने शिक्षा के नये द्‌वार खोल दिए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी की सामर्थ्य में वृद्धिकम दाम पर कंप्यूटर मिलनाइंटरनेट ब्राड-बैण्ड सुविधा उपलब्ध होना आदि के परिणामस्परूप आनलाइन गुरु-शिष्य संबंध का बीज बोया जा सकता हैं। इसकी प्रक्रिया ये हैं:

दृश्य एवं श्रव्य पद्‌धति

  आप एक शिक्षक के रूप में वेबसाइट या ब्लाग बनाकर दुनिया को अपना परिचय दे सकते हैं। वेबसाइट के माध्यम से विद्यार्थियों तक शिक्षकों की जानकारी होती है। इनसे संपर्क करते हैं और शिक्षण लेते हैं। जो सुदूर रहते हैंउनके लिए इस प्रकार के बेवसाइट काफी उपयोगी हैं। आप अपने कक्षा के पाठ्यक्रमों अथवा किसी एक संस्कृत पुस्तक का आडियो और वीडियो रिकार्डिंग कर उसकी एडिटिंग कर लें। ई-मेल, सोशल मीडिया यथा वाट्सअप के चैटिंग व्यवस्थाओं के जरिए दृश्य एवं श्रव्य (आडियो विजुवल) पद्‌धति के द्वारा अपने विद्यार्थियों कों शिक्षण दे सकते हैं। आज विदेशों में रहने वाले विद्यार्थी भी अपनी अभिरुचि के अनुसार शिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। आनलाइन पाठ्‌यक्रमों द्‌वारा स्वामी रामकृष्णतीर्थ अकादमी जैसे अनेक साइट भी अपने अस्तित्व को बनाए रखे हैं। मैंने व्याकरण, दर्शन, साहित्य, आदि अनेक विषयों का ऑडियो बुक तैयार किया है, जिसे इसी ब्लॉग के Audio Book मीनू पर जाकर सुना तथा डाउनलो़ड किया जा सकता है। यूट्यूब चैनल पर लघुसिद्धान्तकौमुदी सहित लगभग 25 पुस्तकों की ई- अध्ययन सामग्री का निर्माण किया है।

डिजिटल रूप में

आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि शंकानिवृत्ति कैसे होगी? आनलाइन चैटवीडियो कान्फ्रेन्सिंग इसके साधन हैं। आनलाइन शिक्षण का इतना विकास हो चुका है कि आनलाइन पाठ्यक्रमोंकोचिंग संस्थानों का संचालन करके आप लाखों कमा सकते हैं। इतना ही नहींदूरस्थ शिक्षा द्‌वारा पढ़ने वाले देश और विदेश के छात्रों को इंटरनेट के जरिए डिजिटल रूप में पाठ उपलब्ध कराया जा सकता हैं। 

संस्कृत क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

इसी माध्यम से अनेक अध्यापक और शिक्षण संस्थाएँ दृश्यश्रव्य रूपों में शिक्षण देकर गुरुशिष्य संबंध को सुदृढ बना रही हैं। संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठानम्, संस्कृतभारती, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, केन्द्र सरकार का भारतवाणी पोर्टल इस दिशा में अग्रेसर है। दूसरी ओर संस्कृत शिक्षा तथा इसके प्रसार के लिए विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गठित संस्थाओं, संगठनों का अबतक वेबसाइट तक नहीं बने हैं। राज्यों के माध्यमिक संस्कृत शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम तथा पाठ्यपुस्तकों सभी जगह उपलब्ध नहीं हैं। इन पाठ्यपुस्तकों का पुनर्लेखन कराकर PDF तथा साफ्टकापी के रूप में उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। मैंने कानपुर की कार्यशाला में अध्यापकों से पूछा था कि इस दिशा में आप क्या सोच रखते हैं? क्या मैं आशा रख सकता हूँ कि आप व्यक्तिगत रूप से ही सही अपने- अपने विश्वविद्यालयों के संस्कृत पाठ्यक्रमों को डिजिटल स्वरूप देकर सबके लिए उपलब्ध करा देंगें। 
       शोध के क्षेत्रों में आनलाइन शिक्षण का महत्व बढ़ गया हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि अनेक भारतीय संस्कृत के विद्वान् विदेशी छात्रों को व्याकरणदर्शन आदि पढाकर हज़ारों डालर कमा रहे हैं। आप सोशल मीडिया के द्वारा अपनी आनलाइन शिक्षण संबंधी वेबसाइटपाठों के बारे में खुद का प्रचार कर सकते हैं।

यदि आप अपनी भाषा से प्यार करते हैं तो संस्कृत भाषा के लिए चमत्कार कर सकते हैविशेष रूप से इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं में लिखकर। आप अपना एक साक्षात्कार का विडियो बनाकर यूट्यूव पर प्रसारित कर सकते हैं 

 बेवसाइट का निर्माण एवं सामग्री उपलब्ध कराने हेतु जरुरी जानकारी

    बेवसाइट बनाते समय डोमेन नाम का बहुत महत्व होता है। डोमेन नाम ऐसा हो कि संस्कृत ज्ञान को तलाश करने वाला व्यक्ति आसानी से आपके बेवसाइट तक पहुँच सके। ज्ञातव्य है कि एक डोमेन नाम विशिष्ट एक इंटरनेट प्रोटोकॉल संसाधन (आईपी) को दिखाता है। 

 जब वेब पेज 90 के दशक में भाषा की सामग्री के साथ प्रदर्शित होना शुरू हुआभाषा डोमेन नामों के लिए मांग बढ़ी। दुनिया में 83 प्रतिशत आबादी गैर अंग्रेजी भाषी होने का अनुमान है। इस प्रकार

दुनिया में बडी जनसंख्या अंग्रेजी भाषा से परिचित नहीं है। अंग्रेजी भाषा जाने बिना यह बहुत मुश्किल है कि वह किसी बेवसाईट का पता लिखकर नेट पर उपलब्ध ज्ञान का उपयोग कर सके। यह सच है नेट पर संस्कृत भाषा की सामग्री हैलेकिन अंग्रेजी जाने बिना कैसे एक व्यक्ति उसे उपयोग कर सकता हैवे डोमेन नाम (वेबसाइट पता) टाइप नहीं कर सकते। 

 हाल ही में आईसीएएनएन शीर्ष स्तर पर आइडीएन परिचय की मंजूरी दी। यहाँ ई मेल पते में केवल अंग्रेजी अक्षर का प्रतिबंध हटा। इसलिए उपयोगकर्ताओं को अपनी भाषा में ई मेल आईडी अब मिल सकती है। अब आप भारतीय भाषाओं में भी डोमेन (वेबसाइट पता) पा सकते हैं।

     भाषा प्रौद्योगिकी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। देश भर में कुल तेरह संसाधन केन्द्र हैं इसमें भारतीय विज्ञान संस्थानबंगलुरु (कन्नड़संस्कृत) तथा  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयनई दिल्ली विदेशी भाषा (जापानीचीनी) और संस्कृत (भाषा सीखना सिस्टम्स) पर काम कर रहा है।मशीनी अनुवाद संस्कृत को नयी पहचान दिलाने में सक्षम है। संस्कृत वह भाषा है, जिसके द्वारा हम किसी भी भाषा में सटीक अनुवाद कर सकते हैं। टीडीआईएल की चल रही प्रमुख परियोजनाओं में संस्कृत भाषा के मशीनी अनुवाद के लिए आई आई टीहैदराबाद में कार्य हो रहा है। गूगल ने संस्कृत से अन्य भाषा तथा अन्य भाषा से संस्कृत में अनुवाद की सुविधा उपलब्ध करा दिया है। 

जब हम भाषा प्रौद्योगिकी की बात करते हैं, तब कीबोर्ड पर चर्चा करना जरुरी हो जाता है, क्योंकि इसके विना किसी भाषा को लिख नहीं सकते।

  संस्कृत के लिए कीबोर्ड्स दो प्रकार के है। देवनागरी कीबोर्ड और टाइपराइटर कीबोर्ड।  इस के अलावा हमारे पास रोमानाइज़्ड कीबोर्ड( लिप्यंतरण ) है । गूगल इनपुट टूल तथा वाइस टाइपिंग द्वारा भी देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। कीबोर्ड तथा फॉन्ट पर मैंने इस ब्लॉग पर अलग से विस्तार से लेख लिखा है। मुझे कई कीबोर्ड का प्रयोग करने में कोई समस्या नहीं है जो यूनिकोड वर्ण का निर्माण करते है। रोमानाइज़्ड कीबोर्ड क्वेयर्टी आधारित है। ऐसे कीबोर्ड गति टाइपिंग धीमा करते है।

प्रिंट मीडिया या प्रकाशन गृह कुछ लोकप्रिय सॉफ्टवेयर पर मुद्रण का कार्य करते है। उनमें से कई सॉफ्टवेयर (यथा कोरल, पेजमेकर, फोटोशाप) पर भारतीय भाषा यूनिकोड समर्थन सक्षम नहीं है। माइक्रोसॉफ्ट पब्लिशर प्रकाशन सॉफ्टवेयर अब यूनिकोड का पूर्ण समर्थन करते हैं। अस्तु।  

        शिक्षकों को शिक्षण सामग्री निर्माण का प्रशिक्षण देने के लिए ऐसा प्रारूप तैयार किया जा सकता है।  

क्रमशः-----------------
पावरप्वॉइण्ट निर्माण के लिए - 

आवश्यकं संसाधनम्- 

लिखितशिक्षणविषयः- (कथा, पद्यम्, व्याकरणञ्च) 10 पंक्ति परिमितम्। शिक्षणविषयानुकूलं चित्रम्।

आवश्यकी पूर्वसिद्धता- 

देवनागरी फान्टज्ञानम्, कीबोर्ड परिचालनज्ञानम्,  यूनीकोड टंकणविधिः माइक्रोसाफ्ट वर्ड अथवा नोट पैड ज्ञानम्। 

लेखक - जगदानंद झा, लखनऊ।
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संस्कृत शिक्षा के प्रसार में सोशल मीडिया के योगदान 
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