आज मैं अपने facebook
पर यह देख रहा था कि मुझे कितने ग्रुप में सम्मिलित कर लिया
गया है। 150 से अधिक ग्रुप में मेरी उपस्थिति दिखी। इनमें से मैं लगभग 30 ग्रुप
से परिचित था। कुछ ग्रुप 2013
से कोई भी Post
नहीं किया गया था। कई ग्रुप जिस उद्देश्य के लिए निर्मित
किया गया, आज वह अपने उद्येश्य से भटक चुका है। 50
ग्रुप में एक समान सामग्री परोसी गयी है, हरेक
ग्रुप में व्यक्ति लगभग वही हैं। ग्रुप निष्क्रिय इसलिए हुआ, क्योंकि
कोई एक उत्साही आकर ग्रुप बनाया,
जबतक वह सक्रिय था,
ग्रुप सक्रिय रहा। यही हाल whatsApp पर भी
है। समस्या तब विकराल हो जाती है,जब आप यहाँ 2 से 3
घंटे से अधिक समय
देने लगते हैं। हम जो जानना चाहते हैं,
वह सब कुछ यह मुखपुस्तक उपलब्ध नहीं करा सकता। यहाँ
मनमौजियों की अनियंत्रित भीड है, जो अपनी हर दमित इच्छा पूरा करने को आतुर दिखता है। कोई भी मित्र आपसे कभी भी
हालचाल पूछने बैठ जाएगा। आपका कीमती समय खा सकता है। मनमाफिक व्यवहार न मिलने पर
कभी भी unfriend
कर भीड में गुम हो जाएगा। कम आयुवर्ग के बच्चों के लिए यह
अभिशाप से कम नहीं। किसी से बात कर ठोस नतीजे तक पहुँचने की गारंटी नहीं है। बिना
पुख्ता प्रमाण के आपको दिग्भ्रमित किया जा सकता है। सारांशतः सोशल मीडिया पर
सोद्येश्य आना चाहिए। प्रामाणिक बात कहने वालों को पहचान कर दोस्ती करनी चाहिए।
जिस facebook ग्रुप की चर्चा मैं कर रहा था उनमें से अनेक में अच्छे विचार व्यक्त किये गये
थे। संग्रह भी उत्तम रहा। अब इसे सहेजने वाला कोई नहीं। सारा श्रम समाप्त। यदि यही
काम संगठित किया जाता है तो एक के थकने पर भी दूसरा आगे आ जाता है। संगठित कार्य
संस्थागत स्वरुप जैसा होता है। उसमें बारम्बारता नहीं रहती। लोग विश्वास पूर्वक
जुडते हैं। ब्लाग और बेवसाइट पर उपलब्ध जानकारी इससे कहीं अच्छी होती है। http://www.sanskritsarjana.in/
जैसा बेवसाइट आपको अच्छी जानकारी देता है। एकीकृत जानकारी
उपलब्ध कराता है। संस्कृतसर्जना के पृष्ठ (Page)
https://www.facebook.com/sanskritsarjanamagazine/ पर
संस्कृत की ताजातरीन रचनाएँ तथा संस्कृतसर्जना से जुडी खबर ही मिलेगी। facebook
ग्रुप का नाम यदि संस्कृत बाल साहित्य रखा गया है तो इसपर
संस्कृत बाल साहित्य ही मिलेगा। संस्कृत से जुडी सूचना के लिए https://www.facebook.com/groups/843977982314744/ है तो यहाँ केवल सूचना मिलेगी। हमारा आपका समय व्यर्थ नहीं
जाता। वस्तुएँ साफ और सही सही दिखती। हमारा भी दायित्व है कि यहाँ दूसरी सामग्री न
डालें। एडमिन को चाहिए कि उससे स्वीकृति लेकर ही कोई सामग्री डाल सके। अनेक पेज या
ग्रुप बनाने से बेहतर है,
किसी ग्रुप से जुड जायें। एडमिन से बात कर कार्य को
संस्थागत रूप दें। जो अबतक उपलब्ध नहीं है,ऐसा कुछ आप नया देना चाह रहे हैं तब उसके बारे में मित्रों से बात करें।
सामुहिक काम करें। आपका परिणाम बेहतर दिखेगा। व्यक्तिगत कार्य तथा संगठित कार्य
में स्पष्ट अन्तर दिखेगा। दीर्घजीवी होगा। प्रभावी होगा।
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सोशल मीडिया के गुण एवं दोष
संस्कृत, हमारी अमूल्य धरोहर, को अन्तर्जाल के माध्यम से विश्व के प्रत्येक कोने तक पहुँचाने और इस प्राचीन ज्ञान-राशि में नवीन पीढ़ी की रुचि जागृत करने की प्रबल इच्छा ने मुझे इस ब्लॉग की स्थापना की ओर अग्रसर किया। मैं निरन्तर प्रयासरत हूँ ई-शिक्षण सामग्री के निर्माण में, जिसमें संस्कृत पुस्तकों का डिजिटल संग्रह, आधुनिक संस्कृत गीतकारों की उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन और बहुआयामी ऑडियो-वीडियो संसाधन शामिल हैं। यहाँ आपको निम्नलिखित का लाभ मिलेगा: शास्त्रीय समृद्धि: मेरे 100 से अधिक वैचारिक निबन्ध, हिन्दी कविताएँ, 20 से अधिक ग्रन्थों का ट्यूटोरियल और 21,000 से अधिक संस्कृत पुस्तकों की विस्तृत सूची। यहाँ 100 से अधिक संस्कृतज्ञ विद्वानों की प्रेरणादायी जीवनी मिलेगी। शिक्षण और ज्ञान: व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, कर्मकाण्ड जैसे शास्त्रीय विषयों पर गहन लेख, साथ ही शिक्षण-प्रशिक्षण सामग्री। संसाधन: टेक्स्ट, ऑडियो, और वीडियो प्रारूप में उपलब्ध समृद्ध सामग्री। मेरा उद्देश्य संस्कृत को जीवन्त बनाना और इसे आधुनिक युग में प्रासंगिक रखना है। इस पवित्र कार्य में आपका सहयोग अपेक्षित है। यदि आप संस्कृत पुस्तकों के मुद्रण हेतु दान देना चाहते हैं, तो कृपया दूरभाष संख्या 73 8888 33 06 पर सम्पर्क करें। आपके वित्तीय योगदान को पुस्तक पर सम्मानपूर्वक अंकित किया जाएगा।





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