मित्राणि
भवन्तः संस्कृतसर्जना ई-पत्रिकायाः सदस्यता स्वीकृतवन्तः इति प्रमोदावहम्। अत्र भवन्तोपि स्व-स्वलेखं प्रदाय पुष्कलविचारेण पत्रिकामिमां पूरयन्तु। मित्राणि अनेकाः पत्रिकाः धनेनैव क्रेतुं शक्यन्ते परन्तु संस्कृतस्य सम्वर्धनं भवतु इति धिया केचन संस्कृतसमुपासकाः यथाशक्यं स्वलेखप्रदानेन सहयोगं कुर्वन्ति । येन एषा पत्रिका समयेन प्रकाशिता भवति। अत्र नूतनशोधलेखाः अन्याः समसामयिकविषययुताः रचना अवश्यं प्रेषणीया पठनीया च।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न- श्रीमन् कृपया अवगत करायें संस्कृतसर्जना पत्रिका कैसे प्राप्त होगी ?
यह संस्कृत और हिन्दी भाषा में प्रकाशित होती है। अक्सर पाठकों का आग्रह रहता है कि पत्रिका मेरे पते पर भेज दीजिये। आदरणीय पाठक! यह एक ई- पत्रिका है। इसे कागज पर छापा नहीं जाता। आप इसे संस्कृतसर्जना के वेबसाइट पर जाकर निःशुल्क पढ सकते हैं।
प्रश्न- क्या इसके साईट से संस्कृतसर्जना ई-पत्रिका को पढ़ने के लिए डाऊनलोड किया जा सकता है सर ?
उत्तर- हाँ। संस्कृतसर्जना ई-पत्रिका के पुराने अंक को इस लिंक पर जाकर Download किया जा सकता है।
संस्कृतसर्जना पत्रिका हरेक तीन महीने जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टुबर में प्रकाशित होती है। इसमें संस्कृत, हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा में संस्कृत के बारे में लेख प्रकाशित होता है। यह जितना संस्कृत पढने वाले के लिए उपयोगी है उससे कहीं अधिक संस्कृत न पढे लोगों के लिए उपयोगी व मार्गदर्शक है। आपको अपने मोबाइल, लैपटाप या कम्प्यूटर में इसे पढने में असुविधा हो तो हमारे तकनीकि सम्पादक से सम्पर्क करें।
पुस्तकों की समीक्षा
प्रश्न- यहाँ किस- किस प्रकार की सूचनायें प्रकाशित होती है?
उत्तर- क्या आपने संस्कृत में कोई नयी पुस्तक लिखी हैं और पाठकों तक उसकी सूचना देना चाहते हैं? के ईमेल पर पुस्तक का फोटो, प्रकाशक का नाम, पता, पुस्तक के मूल्य के साथ उसकी समीक्षा भेज दें। इस पत्रिका में नवीन प्रकाशित पुस्तकों की समीक्षा प्रकाशित की जाती है।
यहाँ पर संस्कृत जगत् में होने वाले विशिष्ट आयोजनों के बारे में समीक्षात्मक आलेख प्रकाशित होता है।
प्रश्न- क्या पत्रिका के अतिरिक्त इसके बेवसाइट पर अन्य किसी प्रकार की शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध है?
यहाँ पर संस्कृत जगत् में होने वाले विशिष्ट आयोजनों के बारे में समीक्षात्मक आलेख प्रकाशित होता है।
प्रश्न- क्या पत्रिका के अतिरिक्त इसके बेवसाइट पर अन्य किसी प्रकार की शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध है?
उत्तर- संस्कृतसर्जना ई- पत्रिका के बेवसाइट पर संस्कृत शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध लेखों की सूची, विषय निर्देश के साथ उपलब्ध है। इसमें कुल 6 फिल्ड हैं।
शोध पत्रिकाओं के प्रकाशक/सम्पादक यदि अपनी अपनी पत्रिका के शीर्षक की टंकित प्रति उपलब्ध करा दें तो हमें अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता नहीं होगी। इस प्रकार शोध पत्रिकाओं का विज्ञापन भी होता रहेगा।
प्रश्न- मैं इस पत्रिका के प्रकाशन में अपना योगदान किस प्रकार से दे सकता / सकती हूँ?
प्रश्न- मैं इस पत्रिका के प्रकाशन में अपना योगदान किस प्रकार से दे सकता / सकती हूँ?
उत्तर- सबसे पहले आप इस पत्रिका की सदस्यता ले लें, ताकि प्रकाशन समिति को आपसे सम्पर्क करने में सुविधा हो। संस्कृतसर्जना पत्रिका के प्रत्येक अंक में एक संस्कृत विद्यालय का परिचय दिया जाता है। आप यदि किसी संस्कृत विद्यालय में पढ रहे हो या पढा रहे हों तो अपने विद्यालय का फोटो सहित पूरा विवरण हमारे ईमेल पर भेज दें। इस लेख में संस्कृत विद्यालयों में प्रवेश की प्रक्रिया, वहाँ उपलब्ध व्यवस्था, शैक्षणिक स्तर तथा विद्यालय की उपलब्धि दर्शाया गया हो। आपसे फिर आग्रह है पत्रिका में सर्जनात्मक आलेख हमारे ईमेल पर भेजें। आपको अपनी रचना या लेख प्रकाशित कराने के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं देना होगा। रचना या लेख प्रकाशित करने के पूर्व आपसे एक ही आग्रह - आप संस्कृत सर्जना का सदस्य बनें।
संस्कृतसर्जना में लेख भेजते समय निम्न बातों का ध्यान रखें-
1. लेख का वर्ड तथा PDF दोनों फाइल भेजें। लेख के अंत में अपना नाम, पता एवं दूरभाष संख्या अवश्य दें।
2. फाईल को अपने नाम से बनायें, क्योंकि डाउनलोड के बाद आप द्वारा फाइल को पहचाना जा सके।
3. अपना चित्र साथ भेजें।
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सूचना
जो पाठक मोबाइल में 2 G का उपयोग करते हैं, वे संस्कृतसर्जना के यूनीकोड संस्करण पर क्लिक कर पत्रिका पढ़ें। बेवसाइट के बीच में दिख रहा चित्र, पत्रिका का PDF संस्करण है। यह 2 से 3 mb का होता है। इसके खुलने में देर हो सकती है।
संस्कृतसर्जना ई-पत्रिका अब दो संस्करणों में प्रकाशित होने लगी है। 1. यूनीकोड 2. PDF
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4- खोज संकेत पर क्लिक कर स्क्रोल डाउन करें। नीचे info share आदि विकल्प दिखेगा। आप share पर क्लिक करें। क्लिक करते ही Direct link लिखा दिखेगा। उसके नीचे के कोड को copy कर लें।
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विविध
संस्कृत पत्रिका का ई – वर्जनः- फायदे अधिक नुकसान कम। इस पत्रिका के लेख को copy कर whatsApp पर अपने नाम से प्रचारित करने पर पाठकों की प्रतिक्रिया।
संस्कृत भाषा के प्रचार का दायित्व हर हिन्दुस्तानी का है, क्योंकि संस्कृत से ही हमारी संस्कृति है। हर भारतीय प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से संस्कृत से जुड़ा हुआ है। जो प्रत्यक्ष रूप मे संस्कृत से जुड़े हुए हैं, उनका दायित्व अधिक है। यह हम सभी को स्वीकार कर यथाशक्य संस्कृत का विस्तार करना है।
आज कुछ लोगों की ऐसी प्रवृत्ति ही बन गई है । ये लोग नाम तथा अंक कमाने के लिए कुछ भी विचार नहीं करते । इनमें बडे बडे नाम भी हैं । संस्कृतसर्जना आदि जो पत्रिकाएं हैं, उनको तो केवल संस्कृत प्रचारार्थ निःशुल्क एवं ऑनलाइन रखना ही चाहिए, वरना इसका उद्देश्य नष्ट होता है । हम सभी जानते हैं कि फ्री होने के वावजूद लोग संस्कृत पत्रिका को पढते नहीं। सशुल्क होने पर तो भले ही मूल्य देकर सदस्यता ले लेंगे पर अध्येता कम ही होतें है । हाँ जो ऐसे चौर कार्य करते हैं ऐसे संस्कृतज्ञों की सामूहिक भर्त्स्ना करना उचित होगा ।
संस्कृतसर्जना का आनलाइन होना अधिक अच्छा है वर्ना उसको कोई टाइप करवा कर प्रकाशित करता तो ये बात पता भी नहीं चलती ।
संस्कृतसर्जना पत्रिका पर पाठकों की प्रतिक्रिया
बहुत ही चित्ताकर्षक पत्रिका है । उत्तरोत्तर प्रगति करे , यही कामना है । आशा करता हूँ आगे चलकर पृष्ठ और बढेंगे ।।शुभकामना ।। Anand Vardhan Dubey
श्रीमान जी ! संस्कृत सर्जन कब से प्रकाशित हो रही है और संस्थापक सम्पादक, उप सम्पादक, सम्पादक, प्रकार, वार्षिक शुल्क आदि के बारे में, तथा और कोई समाचार पत्रिका के बारे में भी ज्ञात हो तो ... विस्तृत जानकारी देने की कृपा करेंगे!
क्योकि मेरे संस्कृत पत्रकारिता से सम्बन्धित लघु शोध प्रबन्ध में में जोड़ सकूँ
घनश्याम जी www.sanskritsarjana.in पर जायें यहाँ संस्कृतसर्जना के बारे में पूरी जानकारी मिल जाएगी।
पत्रिका को सशुल्क रखा जाय या निःशुल्क-
जिस वस्तु को हम निशुल्क पाते है, उसका महत्व भी कम आँकते है। Anil Sharma
जिन्हें संस्कृत विकास एवं प्रचार प्रसार की चिंता है वैसे लोग सशुल्क पढेंगे और ग्राहक बनायेंगे ,कुछ शुल्क निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि पत्रिका सतत् संचालित रहे। Susheel Kumar Jha
अवश्य | शुल्क के बदले सहयोग कह लें, पर शुल्क होना ही चाहिए | नि:शुल्क मिलने वाली चीजों की महत्ता समाप्त हो जाती है, भले ही वे कितनी ही उपयोगी हों | हवा और पानी के प्रदूषण का यही तो कारण है कि वे नि:शुल्क हैं - कोई मिनरल वाटर की बोतल का प्रदूषण क्यों नहीं करता ? Aditya Ranjan Pathak
शुल्क चाहे कम ही रखें लेकिन खैरात में बांटने से वस्तु का महत्व कम हो जाता है । अतः शुल्क भी लें और धनी लोगों से दान लेकर उन्हें भी जोड़ें । पिछले 70 साल में संस्कृत का महत्व इसलिए घटा कि संस्कृत और संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए धनी लोगों से धन लेने वाले विद्वान नहीं रहे । Attri
संस्कृतसर्जना के वेबसाइट पर विभिन्न शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों के शीर्षक, लेखक, विषय, पत्रिका नाम, पता आदि के विवरणों का एक डाटाबेस तैयार किया जा रहा है। इस डाटाबेस से इच्छित सामग्री खोजने के लिए एक सर्च इंजन लगाया जाएगा। शोधार्थी इसकी सहायता से अपने विषय से सम्बद्ध विविध पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों की सूचना एकत्र पा सकेंगें।
पाठक प्रतियोगिता-
संस्कृतसर्जना के प्रत्येक अंक में पत्रिका में प्रकाशित लेख पर एक प्रतियोगिता करायी जाती है. प्रतियोगिता के माध्यम से उपहार की घोषणा भी करती है जैसे ---
नीचे लिखे प्रश्न का सही उत्तर 17-2-16 को दें और निःशुल्क पायें एक संस्कृत पुस्तक।
प्रश्न- संस्कृतसर्जना वर्ष 2 अंक 1 के किस लेख में अमरकोश की चर्चा की गयी है?
फेसबुक पर पत्रिका से संबंधित एक प्रश्न का सटीक और त्वरित उत्तर देने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र श्री सतीश प्रताप सिंह को आदरणीय श्री जगदानन्द झा जी ने पुरस्कार प्रदान किया। संस्कृतसर्जना और मेरी ओर से बधाई और शुभकामनाएं।
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2- संस्कृतसर्जना में प्रकाशित संस्कृत लेखों में से 30-30 सेकेन्ड का कुल 5 रिकार्डिग बनाये।
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5- सदस्यता सूची से नाम तथा पत्रिका के संस्कृत लेख से ध्वनि (रिकार्डिग) मिलाने के बाद रुपये 50 का रिचार्ज कराया जाता है । समय-समय पर यह योजना चलायी जाती है, जो सिर्फ़ छात्रों/ छात्राओं के लिए होती है। योजना की जानकारी के लिए इस पेज को Like करें-
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सन्देश
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आगामी लेख में पढिये - संस्कृतसर्जना बेवसाइट के संचालन की विधि। बेवसाइट में कहाँ क्या है?
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