शंकर
वेदांत के पूर्व अद्वैतवादी सिद्धान्त में भर्तृहरि का शब्दाद्वैतवाद प्रमुख स्थान
रखता है। भर्तृहरि ने सर्वप्रथम स्फोट सिद्धांत की सुव्यवस्थित आधार शिला रखी। स्फुट विकसने धातु से भाव में घञ् प्रत्यय करने पर स्फोट शब्द बनता है, जिसका अर्थ होता है- विकास। शब्द
को ब्रह्म स्वीकार करते हुए इसे मोक्ष का साधन कहा। इनके पूर्व शब्दब्रह्म की
चर्चा उपनिषदों...
लिंगानुशासन (शब्दों के लिंग ज्ञान करने का शास्त्र)
जैसे हिन्दी
के वाक्य प्रयोग में लिंग का ज्ञान आवश्यक हो जाता हैं, वैसे ही संस्कृत भाषा के
वाक्य प्रयोग में भी लिंग का ज्ञान आवश्यक है। यह प्रश्न तब और जटिल हो जाता है, जब
किसी वस्तु का लिंग ज्ञान शारीरिक विशेषताओं से नहीं हो पाता। प्राणियों में लिंग
का ज्ञान करना सरल होता है, परंतु निर्जीव वस्तुओं में लिंग का ज्ञान अत्यंत ही
कठिन होता है। प्राचीन...