भारतीयों की जीवन-शैली तथा व्यवहार का मूल स्रोत — संस्कृत भाषा

  भूमिका:

भारत एक प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर वाला देश है, जिसकी जीवन-शैली, सोच, संस्कार और व्यवहार अनेक शताब्दियों से एक समान प्रवाहित होते आए हैं। इस सांस्कृतिक प्रवाह की भाषा यदि कोई रही है, तो वह है संस्कृत। संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय चेतना की मूल अभिव्यक्ति है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारतीयों की संस्कृति, आचार-विचार, जीवन-शैली और व्यवहार का मूल स्रोत संस्कृत भाषा है।

यह भाषा हमारे धर्म, नीति, समाज, पर्यावरण, शिक्षा और न्याय के हर पक्ष में गहराई से जुड़ी हुई है। संस्कृत साहित्य ने भारतीयों की सोच, संबंधों की गरिमा, आचरण की मर्यादा और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की आदत को सदियों से संस्कारित किया है। अतः यह कहा जा सकता है कि भारतीयों की जीवन-शैली और व्यवहार का वास्तविक स्रोत संस्कृत भाषा ही है।

भारत की संस्कृति और समाज की नींव जितनी प्राचीन है, उतनी ही परिपक्व और संतुलित भी। इस संतुलन, व्यवस्था और उच्च आचार-व्यवहार का जो आधार संस्कृत भाषा में लिखित ग्रन्थ है । संस्कृत न केवल एक भाषा है, अपितु भारतीय चिंतन, धर्म, व्यवहार, नीति, प्रकृति-संरक्षण, संबंध-गठन और न्याय का मूल स्रोत है। संस्कृत साहित्य ने भारतीयों को केवल धर्म नहीं, बल्कि संयम, सदाचार, प्रकृति प्रेम और न्यायप्रियता की जीवन-शैली प्रदान की है।

धार्मिक एवं नैतिक जीवन का निर्माण:

भारतीय सभ्यता का आधार संस्कृत भाषा है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों, महाकाव्यों और गीता जैसे ग्रंथों ने भारतीयों को जीवन के उद्देश्य, आस्था और नैतिक व्यवहार का मार्ग दिखाया। श्रीमद्भगवद्गीता का कर्मयोग, धर्म, सत्य, कर्म, आत्मा, मोक्ष जैसे मूल जीवन-सिद्धांतों से परिचित कराया। मनुस्मृति के सामाजिक नियम, उपनिषदों का आत्म-चिंतन तथा पुराणों में वर्णित कथा-साहित्य ने भारतीयों के जीवन को दिशा दी है। इन ग्रंथों के अनुसार, सत्कर्म ही धर्म है, अहिंसा ही परमो धर्मः और कर्तव्य ही सबसे बड़ा अधिकार है। संस्कृत साहित्य ने भारतीयों के व्यवहार को इन उच्च आदर्शों से जोड़कर, समाज को स्थायित्व दिया। गीता में अर्जुन को दिया गया श्रीकृष्ण का उपदेश आज भी भारतीय आचरण का पथ-प्रदर्शन करता है।

सामाजिक व्यवस्था एवं व्यवहारिक दिशा:

संस्कृत ग्रंथों में सामाजिक न्याय और व्यवस्था नियमन का स्पष्ट विधान है। धर्मशास्त्रों और स्मृतियों (जैसे याज्ञवल्क्यस्मृति, नारदस्मृति) में उत्तराधिकार, ऋण अदायगी, लेन-देन, दंड और अपराध जैसे विषयों पर विस्तृत नियम हैं। इन व्यवस्थाओं के कारण घूसखोरी, काला बाजारी, ठगी, अन्याय जैसी कुरीतियाँ समाज में अंकुश में रहीं।

इनसे ही भारतीय समाज में संपत्ति का न्यायपूर्ण बँटवारा, घूस और काला बाज़ारी का निषेध, ऋण की समय पर अदायगी, विवेकपूर्ण दंड-विधान की चेतना विकसित हुई।

सम्बन्धों की गरिमा:

संस्कृत ग्रंथों ने व्यक्ति के कुल, गृह, सामाजिक दायित्व, पारिवारिक कर्तव्य को प्रमुख स्थान दिया। यहाँ पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों की उच्चतम गरिमा का चित्रण हुआ है। रामायण में राम का पिता के वचनों के प्रति समर्पण, भरत का त्याग और सीता का धैर्य ये सभी भारतीयों को अपने कर्तव्य, मर्यादा और रिश्तों के प्रति सजग बनाते हैं। महाभारत में युधिष्ठिर का धर्मपालन और कर्ण का दानवीरता भारतीय व्यवहार का आदर्श है।

संस्कारों एवं जीवन-परंपराओं में उपयोग:

भारतीय जीवन में सोलह संस्कारों का अत्यधिक महत्व है जैसे जन्म, नामकरण, उपनयन, विवाह, अन्त्येष्टि आदि। इन सभी संस्कारों में जो मंत्र और विधियाँ प्रयुक्त होती हैं, वे सभी संस्कृत भाषा में ही हैं। पूजा, व्रत, यज्ञ, हवन इत्यादि में उच्चारित मंत्रों से भारतीय जीवन पवित्र और अनुशासित होता है।

जीव संरक्षण और पर्यावरण चेतना:

संस्कृत साहित्य में प्रकृति और प्राणियों के प्रति जो श्रद्धा दिखाई देती है, वह आज के पर्यावरणीय संकट के समय में अत्यंत प्रासंगिक है।

पशु-पक्षियों को देवताओं का वाहन माना गया: शिव का वाहन नंदी (बैल), दुर्गा का  सिंह, विष्णु का गरुड़,रस्वती का हंस, लक्ष्मी का उल्लूक, गणेश का मूषक, कार्तिकेय का मयूर, इन प्रतीकों के माध्यम से समाज में इन जीवों की संरक्षा और सम्मान सुनिश्चित हुआ।

काक बलि (कौए को अन्न देना), दशहरे पर नीलकंठ पक्षी का दर्शन, तुलसी और पीपल का पूजन, नदी-पूजन, पर्वतों को देवता मानना ये सभी परंपराएँ संस्कृत ग्रंथों में वर्णित हैं, जो पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के प्रति गहरी जागरूकता को दर्शाती हैं।

प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता:

संस्कृत साहित्य में प्रकृति और पर्यावरण के प्रति गहरा सम्मान है। 

- ऋषियों के आश्रम वनों में स्थित होते थे, जो वनसंरक्षण की प्रेरणा देते हैं।  

- नदियों को देवी का स्थान दिया गया जैसे गंगा, सरस्वती, यमुना। 

- वृक्षों को पूजनीय माना गया जैसे पीपल, वट, तुलसी आदि। 

- पशु-पक्षियों में देवत्व की भावना से मनुष्य में करुणा और सह-अस्तित्व की चेतना जागृत होती है।

ये सब जीवन को प्रकृति के साथ जोड़ते हैं और आधुनिक पर्यावरण चेतना का आधार बनते हैं।

पाप-पुण्य और न्यायभावना:

संस्कृत साहित्य में कर्म का विशेष महत्व है। व्यक्ति को सिखाया गया है कि जैसा करेगा, वैसा भरेगा — “यथाकर्मणा प्राप्यते फलम्। यह विचारधारा आत्मनियंत्रण, सदाचरण और सत्य के प्रति आस्था को सुदृढ़ करती है। पाप और पुण्य के स्पष्ट बोध से व्यक्ति स्वयं अनुशासित होता है।

संस्कृत में कर्म-सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण है

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (गीता)

यह शिक्षित करता है कि व्यक्ति को बिना फल की चिंता किए अपने कर्म करने चाहिए।

इसके अतिरिक्त

पापं कर्म कृतं गोप्यं न शक्यं सन्निवर्तितुम्” (स्मृति)

अर्थात् किया गया पाप कभी छिप नहीं सकता यह चेतावनी व्यक्ति को अनुशासन और नैतिकता के मार्ग पर टिकाए रखती है।

जीवन-आदर्श एवं प्रेरक चरित्र:

संस्कृत साहित्य में वर्णित चरित्र केवल कथानक नहीं, बल्कि आदर्श जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं। ये भारतीयों को जीवन में प्रेरणा और दिशा देते हैं

राम कर्तव्य, सत्य और मर्यादा के प्रतीक। 

श्रीकृष्ण नीति, भक्ति और जीवन प्रबंधन के आदर्श। 

सीता आदर्श पत्नी और सहनशीलता की मूर्ति। 

सावित्री साहस और तपस्या

शिव त्याग और ध्यान के प्रतीक

युधिष्ठिर धर्मनिष्ठ और सत्यप्रिय राजा।

इन चरित्रों ने भारतीय आचरण को उच्च मानकों तक पहुँचाया। इन चरित्रों ने पीढ़ियों को उच्च आचरण और नैतिकता का मार्ग दिखाया है।

व्यावहारिक बौद्धिकता और नैतिकता का आधार: (जीवन के व्यवहारिक पक्षों का मार्गदर्शन:)

संस्कृत साहित्य केवल आदर्श नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन समस्याओं का समाधान भी देता है। 

पंचतंत्र, हितोपदेश जैसे ग्रंथों में राजनीति, मित्रता, कूटनीति और व्यवहार कुशलता के गूढ़ पाठ मिलते हैं। नीतिशतक, पंचतंत्र और हितोपदेश जैसे संस्कृत ग्रंथों से नैतिकता, व्यवहार-कुशलता और नीति का विकास हुआ।

चाणक्यनीति जैसे संस्कृत ग्रंथों ने जीवन को केवल आदर्श नहीं, बल्कि व्यवहारिक कौशल, नीति-बुद्धि, मैत्री, राजनीति, प्रबंधन जैसी विधाओं से भी समृद्ध किया। यह साहित्य आज भी बच्चों से लेकर शासकों तक के लिए इसमें व्यवहार-नीति समाहित है।

दर्शन और कर्तव्यपरायणता का आधार:

भारतीय दर्शन के छह प्रमुख संप्रदाय सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत संस्कृत में रचित हैं। इन्हीं दर्शनों ने भारतीय समाज को आत्मनिष्ठ, संयमी और कर्तव्यपरायण बनने की प्रेरणा दी है।

आधुनिक जीवन में संस्कृत की उपस्थिति:

आज भी संस्कृत भाषा भारत की संसद, न्यायपालिका, विद्यालयों की प्रार्थनाओं, विश्वविद्यालयों के आदर्श-वाक्यों, मंदिरों के मंत्रों, विवाह एवं संस्कारों श्लोक, आदर्श-वाक्य नियमित रूप से प्रयोग किए जाते हैं। यह दर्शाता है कि यह भाषा आज भी भारतीय आचरण और चेतना की धुरी बनी हुई है। यह केवल ग्रंथों में सीमित न रहकर जन-जीवन का हिस्सा बनी हुई है।

साहित्य एवं कला में योगदान:

संस्कृत साहित्य अत्यंत समृद्ध है। कालिदास, बाणभट्ट, भवभूति, माघ आदि महाकवियों ने जो साहित्य रचा, उसने न केवल भाषा को गरिमा दी, बल्कि जीवन को दिशा भी दी। नाट्यशास्त्र जैसे ग्रंथों ने नाट्य, नृत्य, संगीत और अभिनय की भारतीय परंपरा को जन्म दिया, जो आज तक जीवित है।

आधुनिक भारतीय भाषाओं पर प्रभाव:

हिन्दी, मराठी, बांग्ला, कन्नड़, तेलुगु आदि अनेक भाषाएँ संस्कृत की पुत्रियाँ मानी जाती हैं। इनके शब्द भंडार, मुहावरे और व्याकरणीय ढाँचा संस्कृत से प्रभावित हैं। यही कारण है कि भारतीयों की भाषा-शैली और अभिव्यक्ति में संस्कृत का प्रभाव सहज देखा जा सकता है।

उपसंहार:

संस्कृत भाषा केवल साहित्य या पूजा-पाठ की भाषा नहीं है, बल्कि भारतीय समाज के हर व्यवहारिक, धार्मिक, सामाजिक, नैतिक और प्राकृतिक पक्ष का आधार है। वह आज भी हमारे जीवन-व्यवहार, संस्कार, सोच और मूल्य-व्यवस्था की रीढ़ है। यह भाषा न केवल ज्ञान की वाहक है, बल्कि जीवन को गरिमा देने वाली संस्कृति की संवाहक भी है। जीवन के प्रत्येक चरण में, प्रत्येक संबंध में, प्रत्येक जिम्मेदारी में संस्कृत ग्रंथों की छाया दिखती है। ग्रंथों में देवताओं के पशु-पक्षियों के साथ संबंध केवल प्रतीकात्मक नहीं है यह जीवों के संरक्षण, सह-अस्तित्व और पर्यावरण संतुलन की गहरी सांस्कृतिक समझ को दर्शाता है। ये परंपराएँ भारतीयों को प्रकृति और प्राणी-जगत के प्रति श्रद्धा, संवेदनशीलता और संरक्षण की प्रेरणा देती हैं।

संस्कृत भाषा ने न केवल भारत की आध्यात्मिक चेतना को आकार दिया है, बल्कि सामाजिक व्यवहार, न्याय, नीति, पर्यावरण संरक्षण और संबंधों की मर्यादा को भी सुदृढ़ बनाया है। इसके ग्रंथों में उल्लिखित आदर्शों और नियमों ने भारतीय जीवन-शैली को एक सुसंस्कृत स्वरूप दिया है।

इस प्रकार यह निर्विवाद सत्य है कि भारतीयों की जीवन-शैली तथा व्यवहार का मूल स्रोत संस्कृत भाषा ही है।
Share:

संस्कृत प्रतिभा खोज – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

📋 प्रतियोगिता से सम्बन्धित प्रश्न

  • कक्षा 6 से स्नातकोत्तर तक के सभी विद्यार्थियों के लिए।
  • भारतीय संस्कृति से प्रेम रखने वाले अभिभावकों, सभी विषयों के शिक्षकों के लिए

संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में भाग लेने के कई लाभ हैं:

  • संस्कृत ज्ञान में वृद्धि: इस प्रतियोगिता में भाग लेने से प्रतिभागी संस्कृत भाषा और साहित्य के बारे में अधिक जान सकते हैं और अपने ज्ञान को बढ़ा सकते हैं।
  • आत्मविश्वास में वृद्धि: प्रतियोगिता में भाग लेने से प्रतिभागी को अपनी प्रतिभा को दिखाने का मौका मिलता है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  • पुरस्कार और सम्मान: विजेताओं को पुरस्कार और सम्मान मिलता है, जो प्रतिभागी के भविष्य के लिए उपयोगी हो सकता है।
  • संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन वृत्ति पाने का अवसर: श्लोकान्त्याक्षरी तथा कंठस्थपाठ राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने वाले को 5 दिवसीय आवासीय कार्यशाला में निःशुल्क भाग लेने का अवसर तथा 100 छात्रों को प्रोत्साहन वृत्ति मिलता है।
  • नेटवर्किंग का अवसर: इस प्रतियोगिता में भाग लेने से प्रतिभागी अन्य संस्कृत प्रेमियों से मिल सकते हैं और अपने नेटवर्क को बढ़ा सकते हैं।
  • यात्रा व्यय, आवास और भोजन की व्यवस्था: मंडल तथा राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में प्रतिभागियों को यात्रा व्यय, भोजन और आवास की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • इन लाभों के अलावा, संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में भाग लेने से प्रतिभागी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझने और उसका सम्मान करने का अवसर प्राप्त करते हैं।
  • सभी प्रतिभागियों को आकर्षक सहभागिता प्रमाण पत्र ।
  • निर्णायकों, शिक्षकों को प्रशस्ति पत्र ।
  • अंक वरीयता क्रम में प्रत्येक प्रतियोगिता के 6-6 विद्यार्थियों को योग्यता प्रमाणपत्र तथा पुरस्कार ।
  • मंडल तथा राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में यात्रा व्यय तथा भोजन, आवास की निःशुल्क व्यवस्था ।
  • श्लोकान्त्याक्षरी तथा कंठस्थपाठ प्रतियोगिता के 100 छात्रों को रूपये 5000/- की संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन वृत्ति ।
  • प्रतियोगिता की तैयारी के साथ पाठ्यपुस्तक तैयारी करने का अवसर
  • संस्कृत प्रतिभा खोज सन् 2023 से संचालित है । इसे उत्तर प्रदेश के सभी जिले, मंडल तथा राज्यस्तर पर आयोजित किया जाता है ।
  • जनपद में 2 प्रतियोगिता, मंडल में 4 प्रतियोगिता तथा राज्यस्तर पर 10 प्रतियोगिताएँ आयोजित होती है ।
  • अंक वरीयता क्रम में प्रत्येक प्रतियोगिता के 6-6 विद्यार्थियों को योग्यता प्रमाणपत्र तथा पुरस्कार ।
  • संस्कृत प्रतिभा खोज के लिए https://upsanskritpratibhakhoj.com/ नाम से एक वेबपोर्टल है, जिसपर आवेदन करने, प्रतियोगिता का परिणाम, पुरस्कार का भुगतान की स्थिति देखने, अध्ययन सामग्री, सूचना आदि की सुविधा है ।
  • सत्र 2023-24 में 13,000 विद्यार्थियों तथा सत्र 2024-25 में 8,000 विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। आचार्य/ विद्यालय के छात्र / अभिभावक आदि सहित 25,000 व्यक्तियों की उपस्थिति में त्रिस्तरीय प्रतियोगिता सम्पन्न हुई ।
  • प्रतियोगिताओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारे फेसबुक पेज को देख सकते हैं।

वर्ष 2025 में संस्कृत प्रतिभा खोज में कुल 10 तरह की प्रतियोगिताएँ हो रही है। जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  • 1. संस्कृत गीत प्रतियोगिता: इसमें प्रतिभागियों को संस्कृत गीत गाना होता है।
  • 2. संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता: इसमें संस्कृत संबंधी प्रश्नों का उत्तर देना होता है।
  • 3. श्लोकान्त्याक्षरी प्रतियोगिता: इसमें प्रतिभागियों को श्लोकों का उच्चारण कर अन्त्याक्षरी करनी होती है।
  • 4. भाषण प्रतियोगिता: इसमें प्रतिभागियों को संस्कृत में भाषण देना होता है।
  • 5. कंठस्थपाठ प्रतियोगिता: इसमें प्रतिभागियों को अष्टाध्यायी, अमरकोष, तर्कसंग्रह तथा लघुसिद्धान्तकौमुदी याद कर मौखिक सुनाना होता है।
  • 6. श्रुतलेखन प्रतियोगिता: इसमें प्रतिभागियों को संस्कृत वाक्यों को सुनकर लिखना होता है।
  • इन प्रतियोगिताओं के माध्यम से, प्रतिभागी अपनी संस्कृत भाषा और साहित्य की ज्ञान को प्रदर्शित कर सकते हैं और अपनी प्रतिभा को विकसित कर सकते हैं।
  • 1.संस्कृत प्रतिभा खोज इस वेब पोर्टल से जानकारी मिलेगी।
  • 2. संस्कृत प्रतिभा खोज के लिए नामित संयोजकों से जानकारी मिलेगी ।
  • 3. अपने नगर/गाँव में स्थित विद्यालय तथा महाविद्यालय के प्रधानाचार्य/ प्राचार्य / अध्यापकों से ।
  • 4. व्हाट्सएप, यूट्यूब, फेसबुक के माध्यम से।

जिला, मंडल और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में होती है। प्रतियोगिता स्थल की जानकारी वेबपोर्टल पर दी जाती है।

  • नही, केवल 2 प्रतियोगिताएँ जिला स्तर से शुरू होती हैं। मंडल से 2 अन्य प्रतियोगिता आरंभ होती है। इस तरह मंडल में कुल 4 प्रतियोगिताएँ होती हैं। राज्य स्तर पर सभी 10 प्रतियोगिताएँ होती हैं।

जिला में कक्षा 6 से 12 तक के विद्यार्थियों के लिए 1. संस्कृत गीत प्रतियोगिता तथा 2. संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता होती है। प्रतियोगिता की संख्या तथा नाम में बदलाव होते रहता है अतः प्रतिवर्ष की प्रतियोगिता के लिए जारी अधिसूचना का देखना चाहिए।

अलग-अलग प्रतियोगिता के विभिन्न चरण होंगे। प्रतियोगिता की नियमावली देखें।

नियमावली डाउनलोड मीनू से डाउनलोड या प्राप्त की जा सकती है।


प्रतियोगी अपनी प्रतियोगिता के अनुसार निर्धारित पुस्तक, नमूना प्रश्न पत्र और ऑनलाइन संसाधनों से तैयारी करें। अधिक जानकारी के लिए वेबपोर्टल या संयोजक से संपर्क करें।


प्रतियोगी अपनी प्रतियोगिता के अनुसार निर्धारित पुस्तक, नमूना प्रश्न पत्र और ऑनलाइन संसाधनों से तैयारी करें। अधिक जानकारी के लिए वेबपोर्टल या संयोजक से संपर्क करें।


इस प्रतियोगिता में उत्तर प्रदेश राज्य के किसी भी बोर्ड, किसी भी विद्यालय तथा किसी भी विषय के छात्र भाग ले सकते हैं।


किसी एक प्रतियोगिता में एक विद्यालय या महाविद्यालय से अधिकतम 4 छात्र भाग ले सकते हैं, जबकि किसी विश्वविद्यालय के एक संकाय से भी अधिकतम 4 छात्र ही भाग ले सकते हैं।


नहीं, यह प्रतियोगिता केवल व्यक्तिगत रूप में आयोजित की जाती है। समूह में भाग लेने की अनुमति नहीं है।


नहीं, मंडलस्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए हर वर्ष जनपद स्तर की प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त करना अनिवार्य है।


मंडलस्तर पर दो नई प्रतियोगिताएँ शुरू होती हैं:-

  • संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता (युवा वर्ग):– इसमें स्नातक एवं स्नातकोत्तर के छात्र भाग ले सकते हैं।
  • श्लोकान्त्याक्षरी प्रतियोगिता:– इसमें कक्षा 6 से 12 तक के छात्र भाग ले सकते हैं।

संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता की वेबसाइट के 'हमसे संपर्क करें' अनुभाग में प्रत्येक जनपद के संयोजक का नाम और मोबाइल नंबर उपलब्ध हैं। वहाँ से आवश्यक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।


संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता की वेबसाइट के 'हमसे संपर्क करें' अनुभाग में प्रत्येक जनपद के संयोजक का नाम और मोबाइल नंबर उपलब्ध हैं। वहाँ से आवश्यक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।


आवेदन पूर्ण करने के बाद प्राप्त प्रिंटेड आवेदन पत्र पर प्रतियोगिता स्थल अंकित होता है। साथ ही, प्रतियोगिता स्थल की जानकारी वेबपोर्टल पर भी उपलब्ध कराई जाती है।


आवेदन पूर्ण करने के बाद प्राप्त प्रिंटेड आवेदन पत्र पर प्रतियोगिता स्थल अंकित होता है। साथ ही, प्रतियोगिता स्थल तथा दिनांक की जानकारी वेबपोर्टल पर भी उपलब्ध कराई जाती है।


संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता की तैयारी के लिए निम्नलिखित कदम उठाएँ:-

  • 1. अपनी तथा पिछली कक्षा की संस्कृत पुस्तकें पढ़ें।
  • 2. वेबपोर्टल पर जाकर अध्ययन सामग्री मीनू से नमूना प्रश्नोत्तरी डाउनलोड करें।
  • 4. शिक्षकों, अभिभावकों या परिचितों से मदद लें।

नहीं, मुख्यतः एक बार ही आवेदन करना होता है । भविष्य में केवल संशोधन की आवश्यकता होती है।

1. संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता (युवा वर्ग), 2. संस्कृत भाषण तथा 3. श्रुतलेखन प्रतियोगिता इन तीन प्रतियोगिताओं में से किसी एक प्रतियोगिता में भाग ले सकते है ।

 (भाषण व श्रुतलेखन केवल राज्य स्तर पर होती है)।

प्रत्येक छात्र केवल एक प्रतियोगिता में भाग ले सकता है।

हाँ, यह एक वार्षिक प्रतियोगिता है जो उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा आयोजित की जाती है।

प्रतियोगिता मुख्यतः संस्कृत भाषा में होती है, कुछ निर्देश हिंदी में भी दिए जा सकते हैं।

हाँ, नकारात्मक अंकन के रूप में उसके एक अवसर में कटौती की जाती है।

नहीं, केवल निर्धारित गीत ही गाए जा सकते हैं।

हाँ, जनपद में गाया गया गीत मंडल व राज्य स्तर पर भी गा सकते हैं। चाहें तो गीत बदल सकते हैं।

हाँ, ये विद्यार्थी स्नातक/स्नातकोत्तर वर्ग में भाग ले सकते हैं।

बाल वर्ग की मंडल स्तर की सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में वाचन शामिल होता है। स्नातक तथा स्नातकोत्तर के छात्र संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता (युवा वर्ग) में आवेदन करें।

हाँ, भाषण का विषय हर साल अलग होता है। विषय की जानकारी वेब पोर्टल पर दी जाती है।

नहीं, इसमें केवल श्लोक बोले जाते हैं। एक प्रतिभागी द्वारा बोले गए श्लोक के अंतिम अक्षर से आरंभ होने वाला श्लोक आगे वाला प्रतिभागी बोलता है। 

 👉 यदि आपके मन में कोई और प्रश्न है, तो https://upsanskritpratibhakhoj.com पर संपर्क करें या अपने संयोजक से जानकारी लें।

नहीं, नहीं। प्रतिभागी केवल एक ही विषय की प्रतियोगिता में भाग ले सकता है। प्रतिभागी तीनों स्तरों पर अलग-अलग विषयों या प्रतियोगिताओं का चयन नहीं कर सकता।


📋 आवेदन से संबंधित प्रश्न

  • पासपोर्ट साइज फ़ोटो (1 MB तक)
  • हस्ताक्षर की स्कैन कॉपी (1 MB तक)
  • आधार कार्ड नंबर
  • एक सक्रिय मोबाइल नंबर
  • बैंक खाता विवरण (स्वयं या माता/पिता का)
  • एक वैकल्पिक मोबाइल नंबर

प्रतिभागियों को दो वर्गों में बाँटा गया है:

  • कक्षा 6–12 के छात्र → 7 प्रतियोगिताओं में से किसी एक में
  • स्नातक/परास्नातक छात्र → 3 प्रतियोगिताओं में से किसी एक में
  • वेब पोर्टल पर पंजीकरण और आवेदन
  • चुनी गई प्रतियोगिता की तैयारी
  • प्रतियोगिता के लिए ऑनलाइन आवेदन उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की अधिकृत वेब पोर्टल पर किया जा सकता है।
  • प्रतियोगिता के लिए ऑनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि हर वर्ष अलग हो सकती है। कृपया पोर्टल पर प्रकाशित नवीनतम अधिसूचना देखें।
  • हाँ, यह आवेदन पूर्णतः निःशुल्क है।
  • हाँ, OTP सत्यापन हेतु मोबाइल नंबर आवश्यक है।

    हाँ, पंजीकरण संख्या मिलती है जिसका उपयोग:

    • प्रतियोगिता में भाग लेने
    • परिणाम देखने
    • पुरस्कार भुगतान की स्थिति जानने में होता है।

    हाँ, जिनकी कक्षा या विषय में संस्कृत नहीं है, वे भी आवेदन कर सकते हैं।

    👉 https://upsanskritpratibhakhoj.com/
    गूगल पर "संस्कृत प्रतिभा खोज" टाइप करके भी पहुँच सकते हैं।

    केवल आवेदक, माता या पिता के बैंक खाते का विवरण मान्य है।

    नाम आवेदन फॉर्म में दर्ज नाम से अक्षरशः मिलना चाहिए।

    📋 अर्हता परीक्षा से सम्बन्धित प्रश्न

    प्रतियोगिता में भाग लेने की सामान्य योग्यता जांचने की प्रक्रिया है अर्हता परीक्षा । यह सुनिश्चित करती है कि आवेदक प्रतिभागी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए उपयुक्त है या नहीं। यदि योग्य पाया जाता है, तो उसे प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति मिलती है। महत्वपूर्ण अंतर यह है कि प्रतियोगिता में पुरस्कार और प्रमाणपत्र दिए जाते हैं, जबकि अर्हता परीक्षा में ऐसा कुछ नहीं होता। यह केवल प्रतिभागी की योग्यता को जांचने का माध्यम है। प्रतियोगिता और अर्हता परीक्षा अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं।

    श्लोकान्त्याक्षरी तथा कंठस्थपाठ के प्रतिभागियों के लिए एक वर्ष में दो बार अर्हता परीक्षा आयोजित होती है। शेष के लिए केवल एक बार।

    संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता की अर्हता परीक्षा की तिथि, समय और अन्य नवीनतम जानकारी आधिकारिक वेब पोर्टल https://upsanskritpratibhakhoj.com/Latest_News.aspx पर “नोटिस” अनुभाग में प्रकाशित की जाती है। छात्रों को समय-समय पर इस पृष्ठ को अवश्य देखना चाहिए।

    हाँ, कोई आवेदक एक वर्ष में दो बार अर्हता परीक्षा में भाग ले सकता है, यदि उसने श्लोकान्त्याक्षरी अथवा कंठस्थपाठ जैसी प्रतियोगिताओं के लिए आवेदन किया हो। यदि किसी आवेदक को प्रथम बार में 50% अंक प्राप्त नहीं हुए हों अथवा वह प्रतियोगिता में चयन सुनिश्चित करने हेतु अधिक अंक प्राप्त करना चाहता हो, तो वह पुनः परीक्षा दे सकता है।

    अर्हता परीक्षा में लगभग 10 से 20 प्रश्न पूछे जाते हैं। यह परीक्षा मौखिक रूप में आयोजित की जाती है। पिछले वर्ष का नमूना वीडियो भी उपलब्ध है, जिससे अभ्यर्थी परीक्षा की प्रकृति को समझ सकते हैं।

    अर्हता परीक्षा का माध्यम ऑनलाइन (मौखिक) होता है। अभ्यर्थी को निर्धारित समय पर मोबाइल या कंप्यूटर के माध्यम से मौखिक रूप में उत्तर देने होते हैं।

    नहीं, मंडल से आरंभ होने वाली संस्कृत सामान्य ज्ञान (युवा वर्ग) तथा श्लोकान्त्याक्षरी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पहले अर्हता परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य होता है।

    हाँ, प्रत्येक प्रतिभागी को प्रतियोगिता में सम्मिलित होने के लिए हर वर्ष पुनः अर्हता परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक होता है, भले ही उसने पूर्व वर्ष में वही परीक्षा पास की हो।

    📋 🏆 पुरस्कार वितरण से संबंधित प्रश्न

    प्रतियोगिता के अंत में, प्रतियोगिता स्थल पर एक विशेष समारोह में पुरस्कार वितरण किया जाता है।

    आवेदन करते समय आवेदक द्वारा प्रदत्त बैंक खाते में पुरस्कार की धनराशि भेजी जाती है।

    पुरस्कार तथा यात्रा व्यय की धनराशि प्रतिभागी छात्र या प्रतिभागी छात्र के माता-पिता के बैंक खाते में ही भेजी जाती है। अन्य किसी के बैंक खाते में धनराशि देने का नियम नहीं है।

    प्रायः राज्यस्तर तक की प्रतियोगिता होने के बाद पेमेंट की प्रक्रिया में लगभग 3-4 माह का समय लग सकता है, अतः पुरस्कार राशि जनवरी माह के अंत में अथवा फ़रवरी माह में पहुंचती है।

    इस संबंध में प्रतिभा खोज के वेब पोर्टल पर समय - समय पर सूचना प्रसारित की जाती है। वेब पोर्टल के मीनू बटन भुगतान की स्थिति में जाकर आप स्थिति देख सकते हैं।

    प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त करने पर आपको हृदय से शुभकामनाएं! आप प्रतियोगिता आयोजक की आधिकारिक वेबसाइट http://upsanskritpratibhakhoj.com/ पर जाकर भुगतान की स्थिति मीनू से जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा, आप जनपद संयोजक के संपर्क विवरण का उपयोग करके उनसे सीधे संपर्क कर सकते हैं और भुगतान की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

    प्रतियोगिता में आवेदन से लेकर राज्यस्तर तक की प्रतियोगिता में जाने तक प्रतिभागी को खर्च नहीं करना पड़ता है। मंडल और राज्य की प्रतियोगिता में जाने के लिए मार्गव्यय मिलता है तथा भोजन की निःशुल्क व्यवस्था रहती है। राज्यस्तर पर दो दिन निःशुल्क आवास की व्यवस्था भी दी जाती है।

    प्रतिभागी छात्र के बैंक खाते में यात्रा व्यय की प्रतिपूर्ति की जाती है।

    आपके घर से लखनऊ (प्रतियोगिता स्थल) तक आने जाने का लघुतम मार्ग का ट्रेन के शयनयान का अथवा साधारण बस का किराया टिकट प्रस्तुत करने पर प्रतिभागी के खाते में प्रेषित किया जाएगा।

    एक अभिभावक अथवा शिक्षक अपने साथ एक या उससे अधिक प्रतिभागी को साथ लेकर आ सकते हैं। इसके लिए उन्हें नियमानुसार मार्गव्यय, भोजन तथा आवास की व्यवस्था है। मार्गव्यय की धनराशि प्रतिभागी के खाते में दी जाएगी।

    राज्यस्तर की प्रतियोगिता में संस्थान के द्वारा प्रतियोगिता अवधि तक आवास एवं भोजन की व्यवस्था निःशुल्क रहती है।

    📋 बेव पोर्टल से सम्बन्धित प्रश्न

    मोबाइल नेटवर्क की पुष्टि करें या थोड़ी देर बाद पुनः प्रयास करें। फिर भी समस्या बनी रहे तो हेल्पलाइन से संपर्क करें।

    फ़ाइल साइज़ और फॉर्मेट की जाँच करें (PDF/JPG, 1MB तक)। निर्देश देखें। यदि फिर भी समस्या हो तो तकनीकी सहायता या संयोजक से संपर्क करें।

    अपना आधार संख्या दर्ज कर आवेदन संख्या प्राप्त करें।

    Share:

    अनुवाद सुविधा

    ब्लॉग की सामग्री यहाँ खोजें।

    लोकप्रिय पोस्ट

    जगदानन्द झा. Blogger द्वारा संचालित.

    मास्तु प्रतिलिपिः

    इस ब्लॉग के बारे में

    संस्कृतभाषी ब्लॉग में मुख्यतः मेरा
    वैचारिक लेख, कर्मकाण्ड,ज्योतिष, आयुर्वेद, विधि, विद्वानों की जीवनी, 15 हजार संस्कृत पुस्तकों, 4 हजार पाण्डुलिपियों के नाम, उ.प्र. के संस्कृत विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि के नाम व पता, संस्कृत गीत
    आदि विषयों पर सामग्री उपलब्ध हैं। आप लेवल में जाकर इच्छित विषय का चयन करें। ब्लॉग की सामग्री खोजने के लिए खोज सुविधा का उपयोग करें

    समर्थक एवं मित्र

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    विषय श्रेणियाँ

    ब्लॉग आर्काइव

    Recent Posts

    लेखानुक्रमणी

    लेख सूचक पर क्लिक कर सामग्री खोजें

    अभिनवगुप्त (1) अलंकार (3) आधुनिक संस्कृत गीत (16) आधुनिक संस्कृत साहित्य (5) उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (1) उत्तराखंड (1) ऋग्वेद (1) ऋषिका (1) कणाद (1) करवा चौथ (1) कर्मकाण्ड (47) कहानी (1) कामशास्त्र (1) कारक (1) काल (2) काव्य (18) काव्यशास्त्र (27) काव्यशास्त्रकार (1) कुमाऊँ (1) कूर्मांचल (1) कृदन्त (3) कोजगरा (1) कोश (12) गंगा (1) गया (1) गाय (1) गीति काव्य (1) गृह कीट (1) गोविन्दराज (1) ग्रह (1) छन्द (6) छात्रवृत्ति (1) जगत् (1) जगदानन्द झा (3) जगन्नाथ (1) जीवनी (6) ज्योतिष (20) तकनीकि शिक्षा (21) तद्धित (11) तिङन्त (11) तिथि (1) तीर्थ (3) दर्शन (19) धन्वन्तरि (1) धर्म (1) धर्मशास्त्र (14) नक्षत्र (2) नाटक (4) नाट्यशास्त्र (2) नायिका (2) नीति (3) पतञ्जलि (3) पत्रकारिता (4) पत्रिका (6) पराङ्कुशाचार्य (2) पर्व (2) पाण्डुलिपि (2) पालि (3) पुरस्कार (13) पुराण (3) पुस्तक (1) पुस्तक संदर्शिका (1) पुस्तक सूची (14) पुस्तकालय (5) पूजा (1) प्रतियोगिता (1) प्रत्यभिज्ञा शास्त्र (1) प्रशस्तपाद (1) प्रहसन (1) प्रौद्योगिकी (1) बिल्हण (1) बौद्ध (6) बौद्ध दर्शन (2) ब्रह्मसूत्र (1) भरत (1) भर्तृहरि (2) भामह (1) भाषा (2) भाष्य (1) भोज प्रबन्ध (1) मगध (3) मनु (1) मनोरोग (1) महाविद्यालय (1) महोत्सव (2) मुहूर्त (1) योग (5) योग दिवस (2) रचनाकार (3) रस (1) रामसेतु (1) रामानुजाचार्य (4) रामायण (4) रोजगार (2) रोमशा (1) लघुसिद्धान्तकौमुदी (46) लिपि (1) वर्गीकरण (1) वल्लभ (1) वाल्मीकि (1) विद्यालय (1) विधि (1) विश्वनाथ (1) विश्वविद्यालय (1) वृष्टि (1) वेद (6) वैचारिक निबन्ध (26) वैशेषिक (1) व्याकरण (46) व्यास (2) व्रत (2) शंकाराचार्य (2) शरद् (1) शैव दर्शन (2) संख्या (1) संचार (1) संस्कार (19) संस्कृत (15) संस्कृत आयोग (1) संस्कृत कथा (11) संस्कृत गीतम्‌ (50) संस्कृत पत्रकारिता (2) संस्कृत प्रचार (1) संस्कृत लेखक (1) संस्कृत वाचन (1) संस्कृत विद्यालय (3) संस्कृत शिक्षा (6) संस्कृत सामान्य ज्ञान (1) संस्कृतसर्जना (5) सन्धि (3) समास (6) सम्मान (1) सामुद्रिक शास्त्र (1) साहित्य (7) साहित्यदर्पण (1) सुबन्त (6) सुभाषित (3) सूक्त (3) सूक्ति (1) सूचना (1) सोलर सिस्टम (1) सोशल मीडिया (2) स्तुति (2) स्तोत्र (11) स्मृति (12) स्वामि रङ्गरामानुजाचार्य (2) हास्य (1) हास्य काव्य (2) हुलासगंज (2) Devnagari script (2) Dharma (1) epic (1) jagdanand jha (1) JRF in Sanskrit (Code- 25) (3) Library (1) magazine (1) Mahabharata (1) Manuscriptology (2) Pustak Sangdarshika (1) Sanskrit (2) Sanskrit language (1) sanskrit saptaha (1) sanskritsarjana (3) sex (1) Student Contest (2) UGC NET/ JRF (4)